क्वथनांक क्या है | सूत्र

क्वथनांक क्या है | क्वथनांक का उन्नयन | सूत्र

क्वथनांक किसे कहते है:

 

वह ताप जिस पर किसी द्रव का वाष्पदाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है उस ताप को द्रव का क्वथनांक कहते है।

एक वायुमण्डलीय (atm) या (1.013 ) बार पर शुद्ध जल का क्वथनांक 373.15 k होता है।

 

विलयन का क्वथनांक शुद्ध विलायक से अधिक होता है क्यों ?

जब किसी शुद्ध विलायक में अवाष्पशील विलेय घोला जाता है तो उसका वाष्पदाब कम हो जाता है अर्थात विलयन का वाष्पदाब शुद्ध विलायक से कम होता है , विलयन के वाष्पदाब के वायुमण्डलीय दाब के बराबर रखने के लिए विलयन को और अधिक गर्म करना पड़ता है।

अतः विलयन का क्वथनांक शुद्ध विलायक से अधिक होता है इसे क्वथनांक में उन्नयन कहते है।

माना शुद्ध विलायक व विलयन के क्वथनांक क्रमशःTb व   Tहै। तो क्वथनांक में उन्नयन

ΔT= Tb –  T1

 

क्वथनांक का उन्नयन:

 

हमने वाष्प दाब के आपेक्षिक अवनमन में पढ़ा था कि जब किसी शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील पदार्थ मिलाया जाता है तो अवाष्पशील पदार्थ के कण द्रव की सतह पर आ जाते है जिससे वाष्प दाब का मान कम हो जाता है , अब चूँकि अवाष्पशील पदार्थ घोलने से वाष्प दाब कम हो जाता है|
इसलिए द्रव के वाष्प दाब को वायुमंडलीय दाब के बराबर करने के लिए द्रव को और अधिक ताप देना पड़ेगा अर्थात जब किसी द्रव में अवाष्पशील पदार्थ घोल दिया जाता है तो इसका क्वथनांक का मान बढ़ जाता है या इसके क्वथनांक में उन्नयन हो जाता है , इसे क्वथनांक का उन्नयन कहते है।
किसी विलयन का , शुद्ध विलायक की तुलना में वाष्प दाब का मान कम होता है , जिस ताप पर कोई शुद्ध द्रव उबलता है अर्थात शुद्ध विलायक के क्वथनांक ताप पर कोई विलयन नहीं उबलता है अर्थात जो क्वथनांक एक शुद्ध विलायक का होता है वह विलयन का नही होता है क्यूंकि विलयन का वाष्प दाब , शुद्ध विलायक से कम होता है।
इसलिए विलयन का वाष्प दाब का मान बाह्य या वायुमंडलीय दाब से कम होता है , इसे बराबर करने के लिए विलयन को अतिरिक्त ताप दिया जाता है जिससे विलयन के क्वथनांक में वृद्धि या उन्नयन हो जाता है।
उदाहरण : कोई भी शुद्ध जल 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलता ही अर्थात शुद्ध जल का क्वथनांक 100 डिग्री सेल्सियस होता है , अर्थात इस ताप पर शुद्ध जल का वाष्प दाब का मान वायुमंडलीय दाब (1.013 बार) के बराबर हो जाता है।
अब यदि इस शुद्ध जल में कुछ ग्लूकोज मिला दिया जाता है तो इसका वाष्प दाब का मान कम हो जाता है अर्थात 100 डिग्री पर वाष्प दाब का मान 1.013 बार के बराबर नहीं होता है इससे कम रह जाता है , वायुमंडलीय दाब के बराबर 1.013 बार करने के लिए विलयन को और अधिक ताप दिया जाता है अर्थात इसका क्वथनांक का मान बढ़ जाता है अर्थात वह ताप का मान बढ़ जाता है जिस पर द्रव उबलना शुरू होता है , इसे क्वथनांक का उन्नयन कहते है।
यहाँ ग्राफ में शुद्ध विलायक (solvent) और विलयन के वाष्प दाब और ताप के मध्य ग्राफ दर्शाया गया है , ग्राफ में दर्शाया गया है कि शुद्ध विलायक के लिए ताप Tb0 पर विलायक का वाष्प दाब का मान वायुमंडलीय दाब अर्थात 1 atm के बराबर हो जाता है |
तथा जब शुद्ध विलायक में अवाष्पशील पदार्थ मिलाकर विलयन बनाया जाता है तो इस विलयन के लिए Tb ताप पर विलयन का वाष्प दाब का मान वायुमंडलीय दाब अर्थात 1 atm के बराबर होता है अर्थात यहाँ क्वथनांक में उन्नयन हो जाता है।
क्वथनांक में उन्नयन = विलयन का क्वथनांक – शुद्ध विलायक का क्वथनांक
ΔTTb  – Tb0
क्वथनांक का उन्नयन एक अणु संख्यक गुण है , क्वथनांक में उन्नयन , विलयन में उपस्थित विलेय पदार्थ की मोलल सांद्रता अर्थात मोललता के समानुपाती होता है।
क्वथनांक में उन्नयन ∝ मोललता
ΔTb ∝ m
ΔTb = km
यहाँ m = विलयन की मोललता
kb = मोलल उन्नयन स्थिरांक अथवा क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक होता है।

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