RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 8 भारतीया विज्ञानपरम्परा

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Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 8 भारतीया विज्ञानपरम्परा

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 8 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि

1. दत्तेषु विकल्पेषु उचितविकल्पं कोष्ठके लिखत

(क) विद्युत्कोशनिर्माणप्रक्रियां कः दत्तवान्?
(क) भास्कराचार्यः
(ख) वराहमिहिरः
(ग) अगस्त्यः
(घ) बसुः
उत्तराणि:
(ग) अगस्त्यः

(ख) नागपुराभियान्त्रिकमहाविद्यालये परीक्षण कृतवान्।
(क) पी०पी० होले
(ख) सी०वी० रमनः
(ग) सुरेन्द्रनाथ:
(घ) कलामः
उत्तराणि:
(ग) सुरेन्द्रनाथ:

(ग) भारतीकृष्णतीर्थमहाभागः कस्य मानं ज्ञातवान्?
(क) पाई (π)
(ख) तापमानस्य
(ग) आर्द्रतायाः
(घ) न कस्य अपि
उत्तराणि:
(क) पाई (π)

(घ) भारतं कथं विश्वगुरुरासीत्?
(क) ज्ञानेन
(ख) धार्मिकतया
(ग) आध्यात्मिकतया
(घ) सर्वविधरूपेण
उत्तराणि:
(घ) सर्वविधरूपेण

2. अधोलिखितान् प्रश्नान् एकेन पदेन उत्तरत –

(क) कः देश: विज्ञानदृष्ट्यापि विश्वस्य मार्गदर्शकः आसीत्?
(ख) पाठ्यक्रमे कस्य अवहेलना कृता?
(ग) विद्युत्कोशस्य वर्णनं कस्मिन् ग्रंथे अस्ति?
(घ) नागार्जुनः कां विधिं दत्तवान्?
(ङ) गुरुत्वाकर्षणसिद्धान्तस्य भारतीयः प्रतिपादकः कः?
(च) ‘बेतारपद्धतेः’ प्रतिपादकः कः?
उत्तराणि:
(क) भारतदेशः
(ख) भारतीय ज्ञानविज्ञानस्य
(ग) अगस्त्यसंहितायाम्
(घ) पारदधातो: भस्मग्रहणविधिम्
(ङ) भास्कराचार्यः
(च) जगदीशचन्द्र बसुः

3. अधोलिखितान् प्रश्नान् पूर्णवाक्येन उत्तरत –

(क) भारतीकृष्णतीर्थः कस्य पाई इत्यस्य मानं ज्ञातवान्?
(ख)विद्युतकोशनिर्माणप्रक्रियायाः परीक्षणं कुत्र कृतम्?
(ग) कः महान् आयुर्वेदाचार्यः?
(घ) बोसोन’ इति नाम केन सम्बद्धमस्ति?
(ङ) बीरबलसाहनीमहोदयः कस्मिन् क्षेत्रे प्रसिद्धः?
(च) मिसाईलमैन’ इति नाम्ना कः ख्यातिं लब्धवान्?
उत्तरम्:
(क) भारतीकृष्णतीर्थ: गणितस्य पाई इत्यस्य मानं ज्ञातवान्।
(ख) विद्युतकोशनिर्माणप्रक्रियायाः परीक्षणं नागपुर अभियान्त्रिक महाविद्यालये अभवत्।
(ग) चरकः महान् आयुर्वेदाचार्यः।
(घ) बोसोन इति नाम सत्येन्द्र वसुना सम्बद्धम् अस्ति।
(ङ) बीरबल साहनी महोदयः प्रकृतिविज्ञान क्षेत्रे प्रसिद्धः।
(च) मिसाइलमैन इति नाम्ना ए.पी.जे. अब्दुलकलाम महाभागः ख्यातिं लब्धवान्।

(क) भागेन सह ‘ख’ भागस्य उचितं मेलनं कृत्वा लिखत –

क भागः                                 ख भागः
(च) मिसाईलमैन                 (ट) भास्कराचार्य:
(छ) रमनप्रभावः                  (ठ) सुश्रुतः
(ज) पारदभस्मनिर्माणम्        (ङ) नागार्जुन:
(झ) प्रथमशल्यचिकित्सकः     (ढ) सी० वी०रमन:
(क) गुरुत्वाकर्षणसिद्धान्तः     (ण) एपीजे अब्दुलकलामः
उत्तरम्:
(च) – (ण)
(छ) – (ढ)
(ज) – (ङ)
(झ) – (ठ)
(क) – (ट)

4. अधोलिखितपदेषु प्रकृतिप्रत्ययं च लिखत –
उत्तरम्:
(क) कृता कृ + क्त + टाप्
(ख) दत्तवान् दा + क्तवतु
(ग) ज्ञातवान् ज्ञा + क्तवतु
(घ) प्राप्य प्र + आप् + ल्यप्
(ङ) कृत्वा कृ + क्त्वा

5. रिक्तस्थानेषु धातु-प्रत्ययान् योजयित्वा उचितपदं पूरयतु –

(क) वैज्ञानिकाः अन्वेषणं …………… नूतनं ज्ञानं प्रकटितं कुर्वन्ति। (कृ + क्त्वा )
(ख) ज्ञानं ………….. बालका: वैशिष्ट्यं अर्जयन्ति। (प्र + आप् + ल्यप्
(ग) मृण्मयपात्रे ताम्रपत्रं ……………….. शिखिग्रीवां स्थापये। (सम् + स्था + ल्यप्
(घ) बालकाः प्राचीनग्रंथान् ……………. भारतीयं ज्ञानम् अनुभवेयुः। (पठ् + क्त्वा)
(ङ) सत्येन्द्रबसुः परमाणोः विभाजनस्य सिद्धान्तम् (दा + क्तवतु)
(च) भारतीयाः वैज्ञानिकाः अनेकानि अनुसंधानकार्याणि ……………….. (कृ + क्तवतु)
उत्तराणि:
(क) कृत्वा
(ख) प्राप्य
(ग) संस्थाप्य
(घ) पठित्वा
(ङ) दत्तवान्
(च) कृतवन्तः

6. निम्नशब्दानां प्रयोगः स्वरचितवाक्येषु कुरुत –

(क) आसीत् – सुश्रुतः एकः शल्यचिकित्सकः आसीत्।
(ख) आसन् – भारते बहवः वैज्ञानिकाः आसन्।
(ग) कृतवान् – अद्य सः गृहकार्यं न कृतवान्।
(घ) पठितवन्तः – छात्राः पाठं पठितवन्तः।
(ङ) लब्ध्वा – भिक्षुकः भिक्षां लब्ध्वा गतः।
(च) विलिख्य – अवस्करं विलिख्य अन्नकणान् खादति।
(छ) कृतम् – त्वया उचितमेव कृतम्।

7. रिक्तस्थानानां पूर्तिः निर्देशानुसारं कुरुत –

(क) सत्येन्द्रबसुना ……………… विभाजनक्षेत्रे अनुसन्धानकार्यं कृतम्।। (परमाणुशब्द, षष्ठी)
(ख) ……………….. तीरे ऋषयः न्यवसन्। (नदीशब्दस्य, षष्ठी विभक्तिः)
(ग) गुरोः …………. लभते ज्ञानम्। (आशीर्वादशब्दस्य, तृतीया विभक्तिः)
(घ) आतपः …………………. जायते। (भानुशब्दस्य, पंचमीविभक्तिः)
(ङ) विद्यार्थीनां विश्वास …………………… भवेद। (आचार्यशब्दस्य, सप्तमीविभक्तिः)
उत्तर:
(क) परमाणोः
(ख) नद्याः
(ग) आशीर्वादेन
(घ) भानो:
(ङ) आचायें।

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि

अधोलिखितान् प्रश्नान् संस्कृरभाषयी पूर्णवाक्येन उत्तरत।

प्रश्न 1.
विद्युत्कोषस्य निर्माण विधि: कस्मिन् ग्रन्थे वर्णितम् अस्ति?
उत्तरम्:
विद्युतकोषस्य निर्माण विधि: अगस्त्य संहितायां वर्णितम् अस्ति।

प्रश्न 2.
अगस्त्य संहिता केन विरचितम् अस्ति?
उत्तरम्:
अगस्त्य संहिता भारते अगस्त महर्षिणा विरचिता।

प्रश्न 3.
विद्युत्कोष निर्मातुं सुसंस्कृतं ताम्रपत्रं कुत्र स्थापनीयम्?
उत्तरम्:
विद्युत्कोष निर्मातुं सुसंस्कृतं तामपत्रं पात्रे स्थापनीयम्।

प्रश्न 4.
ताम्रपट्टिका शिखिग्रीवामध्ये काभिः छादयेत् ?
उत्तरम्:
ताम्र पट्टिका शिखिग्रीवा मध्ये आर्द्रकाष्ठपांसुभिः छादयेत।

प्रश्न 5.
पारदेन सह किं मेलनीयम्?
उत्तरम्:
पारदेन सह दस्तलोष्टं मेलनीयम्।

प्रश्न 6.
पायथोगोरस प्रमेयस्य मूल प्रतिपादकः कः?
उत्तरम्:
पायथोगोरस प्रमेयस्य प्रतिपादनं मुलतः बोधायनेन कृतम्।

प्रश्न 7.
प्रमेयानां प्रतिपादनां कुत्र प्राप्यते?
उत्तरम्:
प्रमेयानां प्रतिपादनं शुक्ल यजुवेंदे तैत्तरीय संहितायां प्राप्यते।

प्रश्न 8.
पारदस्य निर्माणस्य विधि कः दत्तवान?
उत्तरम्:
पारदधातो: भस्मनिर्माणस्य विधिः नागार्जुनेन प्रदत्ता।

प्रश्न 9.
चरकः कः आसीतू?
उत्तरम्:
चरकः महान् आयुर्वेदाचार्यः आसीत्।

प्रश्न 10.
विश्वस्य प्रथमः शल्यचिकित्सकः कः आसीत्?
उत्तरम्:
विश्वस्य प्रथमः शल्य-चिकित्सकः सुश्रुतः आसीत्।

स्थूल पदान् आधृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत –

प्रश्न 1.
चर्म प्रत्यारोपणस्य प्रथमं सफलं प्रयोग सुश्रुतेन कृतम्।
उत्तरम्:
चर्म प्रत्यारोपणस्य प्रथमं सफलं प्रयोग केन कृतम्?

प्रश्न 2.
जगदीशचन्द्र वसुः महान् वनस्पतिशास्त्री आसीत्।
उत्तरम्:
कः महान् वनस्पति शास्त्री आसीत्।

प्रश्न 3.
‘पादपेषु अपि जीवनम् इति जगदीशचन्द्र वसोः उपलब्धिः
उत्तरम्:
‘पादपेषु अपि जीवनम्’ इति कस्य उपलब्धिः ?

प्रश्न 4.
तन्तु रहित प्रणाले: प्रतिपादक: डॉ० जगदीश चन्द्र वसुः आसीत्।
उत्तरम्:
तन्तु रहित प्रणाले: प्रतिपादकः कः आसीत्?

प्रश्न 5.
चन्द्रशेखर वेंकटरमणः नोबेल पुरस्कारेण सम्मानितः।
उत्तरम्:
चन्द्रशेखर वेंकट रमणः केन सम्मानित:?

पाठ परिचय

प्राचीन काल में भारत विश्व का प्रमुख ज्ञान-केन्द्र था। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त आदि अनेक वैज्ञानिक भारत में ही पैदा हुए। कालान्तर में विदेशी शासकों ने भारतीय ज्ञान परम्परा को नष्ट करने का प्रयास किया। फिर भी यह उज्ज्वल भारतीय परम्परा आज भी जीवित है। संसार में भारतीय वैज्ञानिकों ने पुन: अपने महत्त्व को स्थापित किया। इस भारतीय विज्ञान-परम्परा के निरन्तर प्रवाह का थोड़ा-सा वर्णन यहाँ किया गया है।

शब्दार्थ एवं हिन्दी-अनुवाद

1. ‘भारतदेशः …………………………. मार्गदर्शकः आसीत्।

शब्दार्था:-विश्वगुरुरासीत् = संसार का गुरु था। तदा = उस समय। प्रायशः = प्रायः। मनसि = मन में। तैः मन्यन्ते = वे मानते हैं, उनका मानना है। ते न जानन्ति = उन्हें ज्ञात नहीं, वे नहीं जानते। यद् ज्ञान-विज्ञान-दृष्ट्या अपि = कि ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में।

हिन्दी-अनुवाद–भारत संसार का गुरु था’ ऐसा जब हम कहते हैं तब प्रायः लोगों के मन में भारत का (आत्मा-परमात्मा सम्बन्धी) आध्यात्मिक रूप ही प्रकट होता है। वे मानते हैं कि भारत धर्म, दर्शन, तत्त्वज्ञान और भोज्य पदार्थों के कारण ही संसार का गुरु था। वे नहीं जानते कि ज्ञान-विज्ञान की दृष्टि से भी हमारा देश विश्व का मार्गदर्शक था।

2. एवं ज्ञायते …………………………. अत्र प्रस्तुतानि सन्ति।

शब्दार्थाः–एवम् = इस प्रकार। ज्ञायते = जाना जाता है। यदांग्लीयानाम् = कि अंग्रेजों के। कृता = की गई, बरती गई। भारतेऽभवन् = भारत में हुए। तेषु केचन = उनमें से कुछ। प्रस्तुतानि सन्ति = दिये गये।

हिन्दी-अनुवाद-इस प्रकार ज्ञात होता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में शिक्षा विधि में सुनियोजित तरीके से विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान-विज्ञान की उपेक्षा की गई। असलियत तो यह है कि प्राचीनकाल से ही भारत में खोजे, प्रयोग और आविष्कारों की लम्बी श्रृंखला प्रचलित रही है। बिजली, यन्त्र, धातु, वायुयान, कपड़ा, गणित, आकाशीय ज्ञान, भवन निर्माण, रसायन, पेड़-पौधों, खेती, जन्तु, स्वास्थ्य और ध्वनि आदि विज्ञान के क्षेत्रों में विशेष कार्य भारतवर्ष में हुए हैं। उनमें से कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

3. भारते अगस्त …………………………. मित्रावरुणसंज्ञितम्॥

अन्वयः-मृण्मये पात्रे सुसंस्कृतम् ताम्रपात्रं संस्थाप्य शिखिग्रीवने च आर्द्राभिः काष्ठपांसुभिः छादयेत्। ततः पारदाच्छादितः दस्तालोष्टो निधातव्यः (तेषाम्) संयोगात्। मित्रावरुण संज्ञितम् तेजो जायते।।

शब्दार्थाः-विद्युत्कोषस्य = विद्युत संपुट, बैटरी। अवर्णयत् = वर्णन किया। मृण्मये पात्रे = मिट्टी के पात्र में। संस्थाप्य = रखकरे। शिखिग्रीवने = तूतिया/नीला थोथा में। चाभिः = गीले। काष्ठपांसुभिः = गीली लकड़ी के बुरादे से। छादयेत् = ढक देना चाहिए। पारदाच्छादितः = पारे से ढका हुआ। दस्तालोष्टः = जस्ते की डली। विधातव्यः = मिलाना चाहिए। मित्रावरुणसंज्ञितम् = बिजली नाम। जायते। = होता है।

हिन्दी-अनुवाद–भारत में अगस्त्य ऋषि हुए। उन्होंने अपनी संहिता में विद्युत कोष अर्थात् बैटरी निर्माण का वर्णन किया है। अगस्त्य संहिता में वर्णित है–एक मिट्टी के पात्र में शुद्ध ताँबे की प्लेट (पत्तर) रखी जाये। नीले थोथे (तूतिया) में गीले लकड़ी के बुरादे से उसे ढक दिया जाये। उसके ऊपर पारा तथा जस्ते की डली मिलाई जाये। इसके बाद यदि इन दोनों को (ताँबे के तार से) जोड़ दिया जाये तो बिजली उत्पन्न होगी।

4. अस्य तात्पर्यमस्ति …………………………. सफलतापूर्वकं कृतम्।

शब्दार्थाः-स्वीकुर्यात् = स्वीकार करना चाहिए, लिया जाय। तस्मिन् = उसमें। स्थापयेत् = रखना चाहिए। यदि एतयोः = यदि इन दोनों का। ताम्रतन्तुना = ताँबे के तार से। कुर्मः = करते हैं। चेत् = यदि। कृतम् = किया गया।

हिन्दी-अनुवाद-इसका अभिप्राय यह है कि एक मिट्टी का पात्र लिया जाये। उसमें ताँबे की चद्दर (प्लेट) रखी जाये। इसके बाद नीलेथोथे (तूतिया) के अन्दर लकड़ी के गीले बुरादे से ढक दिया जाये। उसके ऊपर पारा और जस्ते की डलियाँ मिलाई जाये। इसके बाद यदि इन दोनों का सम्पर्क ताँबे के तार से करें अर्थात् इन दोनों को यदि ताँबे के तार से जोड़ दिया जाये तो बिजली पैदा होती है। इस प्रयोग का परीक्षण नागपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में पी.पी. होले महोदय द्वारा सफलतापूर्वक किया गया।

5. वैज्ञानिकागस्तः एव …………………………. मिश्रधातवः सन्ति।

शब्दार्था:-पद्धतिं = विधि को। दत्तवान् = प्रदान की, दी। कृतम् = किया। आसवनविधि द्वारा = आसवन विधि द्वारा। प्राप्त्यर्थम् = प्राप्त करने के लिए। शुद्धाशुद्धधातूनां = शुद्ध और अशुद्ध धातुओं के। अस्माकं = हमारे। ग्रन्थेषु मिलति = ग्रन्थों में मिलता है। एतानि = ये। स्वर्ण, रजतं, ताम्र, त्रपु, सीसकं, आयसम् षड् शुद्ध धातवः = सोना, चाँदी, ताँबा, टिन, सीसा, लोहा ये छः मूल/शुद्ध धातुएँ। मिश्रधातवः = मिश्रित धातुएँ।

हिन्दी-अनुवाद-वैज्ञानिक अगस्त्य ने ही ताँबे के पदार्थों में कृत्रिम रूप से सोने का पानी चढ़ाने तथा चॉदी का पानी चढ़ाने की विधि इस संसार के लिए प्रदान की। जस्ता धातु का उल्लेख अगस्त्य संहिता में किया गया है। उसका आसवने विधि द्वारा प्राप्ति के लिए बारह सौ डिग्री तापमान आवश्यक है। वह भी हमारे वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त किया गया है। इस विधि की स्थापना या निरूपण तेरहवीं शताब्दी के मध्य ‘रसरत्नसमुच्चय’ नामक ग्रन्थ में हुआ। शुद्ध और अशुद्ध धातुओं के विषय में भी उल्लेख हमारे ग्रन्थों में मिलता है–सोना, चाँदी, ताँबा, टिन, सीसा तथा लोहा ये छ: धातुएँ शुद्ध (मूल) धातुएँ हैं। काँसा और पीतल कृत्रिम धातुएँ हैं।

6. भारतीय कृष्णतीर्थस्वामि …………………………. भस्म मिश्रियते।

शब्दार्था:-भारतीय = भारत के रहने वाले। मानं = मान। दशमलवानन्तरम् = दशमलव के बाद। एवमेव = इसी प्रकार से प्रतिपादनं = प्रतिपादन किया। तानेव प्रमेयान् = उन्हीं प्रमेयों को। जानीमः = जानते हैं। नागार्जुनमद्य वयं = हम अब नागार्जुन को। तस्यविचारानुसारेण= उसके मत के अनुसार। मिश्रियते = मिलाई जाती है।

हिन्दी-अनुवाद-भारत के निवासो कृष्णतीर्थ स्वामी द्वारा पाई का मान दशमलव के बाद इकत्तीस अंक तक ज्ञात किया था। उनके अनुसार (पाई का मान है)

π = 3.1415926535897932384626433832792

इसी प्रकार बोधायन ने कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में जिन प्रमेयों का प्रतिपादन किया था उन्हीं प्रमेयों को बहुत वर्षों के बाद आज हम पायथोगोरस प्रमेय के रूप में जानते हैं। नागार्जुन को आज हम महान् गणितज्ञ, ज्योतिर्विद्, रसायनशास्त्री के रूप में जानते हैं। उसने पारे की भस्म बनाने की विधि प्रदान की। उसके मतानुसार ही आज दवाइयों में धातुओं की भस्म मिलाई जाती है।

7. चरकः महान् …………………………. अपि कुर्वन्ति।

शब्दार्था:-प्रथमः = पहले। चर्मप्रत्यारोपणस्य = चमड़ी का प्रत्यारोपण। प्रथमोल्लेख = पहला उल्लेख। षत्रिंशत्तमे = 36वें। रचनां कृतवान् = रचना की। तस्योपयोगः = उसका उपयोग। अपि कुर्वन्ति = भी करते हैं।

हिन्दी-अनुवाद-चरक महान् आयुर्वेदवेत्ता थे। संसार का पहला सर्जन सुश्रुत भारतीय था। उसने ही सबसे पहले त्वचा प्रत्यारोपण का सफल प्रयोग किया। विमान निर्माण का पहला उल्लेख ऋग्वेद के छत्तीसवें सूत्र में हुआ है। महर्षि भरद्वाज ने विमान विज्ञान से सम्बन्धित संसार के प्रथम ग्रन्थ की रचना कीं। उसका उपयोग आज संसार के वैज्ञानिक करते हैं।

8. गुरुत्वाकर्षणसिद्धान्तस्य …………………………. पंजीकरणं न कारितम्।

शब्दार्थाः-प्रणेता = बनाने वाले। एतादृशाः = ऐसे। विश्वस्य पटले = संसार की चोटी पर। प्रतिपादनम् = प्रतिपादन। इयम् = यह। वर्धन्ते एव = बढ़ा रहे हैं। अमन्यत् = मानते थे। यत् ज्ञानं तु सर्वेषां = ज्ञान तो सभी का। तस्योपरि = ज्ञान पर। कस्यापि = किसी एक का। पञ्जीकरणं न कारितम् = पंजीकरण रजिस्ट्रेशन) नहीं कराया।

हिन्दी-अनुवाद-गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त के प्रवर्तक महान् गणितज्ञ खगोल वैज्ञानिक भास्कराचार्य थे। इस प्रकार के अनेक वैज्ञानिकों ने प्राचीनकाल से संसार के शिखर पर भारतीय उज्ज्वल वैज्ञानिक परम्परा का प्रतिपादन किया। न केवल प्राचीनकाल में अपितु आधुनिक काल में भी यह गौरवशाली परम्परा अनवरत (लगातार) चल रही है। आज भी भारतीय वैज्ञानिकों ने विविध क्षेत्रों में नवीन अन्वेषण करके भारत का सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं। डॉ० जगदीशचन्द्र बसु महान् भौतिकशास्त्री और वनस्पतिशास्त्री थे। ‘पौधों में भी जीवन’ उन्हीं की उपलब्धि थी। बेतार का तार प्रणाली के प्रवर्तक बसु ही थे। ये वैज्ञानिक मानते थे कि ज्ञान सभी का और सार्वजनिक होता है। उसके ऊपर किसी एक का अधिकार नहीं होना चाहिए। अतः उन्होंने अपने अनुसंधानों का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) नहीं करवाया।

9. कालान्तरे अनेके …………………………. ‘फर्मियोन’ इति कृतम्।

शब्दार्थाः–कालान्तरे = समय बीतने पर। अभवन् = हुए। तेन ते = उसी वजह से वे। वर्धिता = बढ़ा। प्रकाशीयवर्णविषये = प्रकाश के रंगों के विषय में। एवमेव = इसी प्रकार से। विभाजनम् सम्भवं जातम् = विभाजन सम्भव हो गया। तेन नाम्ना = इस नाम से। मित्रनाम्ना = मित्र के नाम से।

हिन्दी-अनुवाद-समय के बीतने पर अनेक वैज्ञानिक हुए जिन्होंने अपनी खोज रजिस्टर्ड करवाई। इस कारण से वे विशेष पुरस्कारों से सम्मानित हुए। भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ी। इसे श्रृंखला में मुख्यतः हैं चन्द्रशेखर वेंकटरमण महोदय। वे 1930 ईस्वी सन् में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए। प्रकाश के रंगों के विषय में उनके शोध का परिणाम ‘रमनप्रभाव’ नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार से प्रकृतिविज्ञान के क्षेत्र में बीरबल साहनी महोदय, आइंस्टीन महोदय से सम्बद्ध डॉ० सत्येन्द्र बसु महान् वैज्ञानिक हुए। फर्मी महोदय के साथ सत्येन्द्र बसु महोदय के अन्वेषण कार्य से ही परमाणु का भी दो भागों में विभाजन सम्भव हो गया। उसके नाम से परमाणु का एक भाग का नाम ‘बोसोन’ हो गया और दूसरे का मित्र के नाम पर फर्मियोन रखा।

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