Biology Notes For Class 12 in Hindi

लैंगिक जनन क्या है | की परिभाषा | जीव विज्ञान

लैंगिकजनन(Sexualreproduction):जब जनन प्रक्रिया में दो जीव जनक भाग लेते है तो उसे लैंगिक जनन कहते है इसमे अर्धसूत्री विभाजन एवं निश्चेतन की क्रिया होती है नर युग्मक एवं नया युग्मक बनते है जिनके संयोजन से बने युग्ननास के द्वारा नया जीव बनता है। लैंगिक जनन में बनी संतति आपस में एवं जनको से समरूप वाली होती है। लैगिक जनन की क्रियामें अधिक समय लगता है। तथा यह एक जटिल विस्तरित एवं धीमी प्रक्रिया है। Remark: दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे| यदि आपको https://hindilearning.in वेबसाइट में दी गयी जानकारी से लाभ मिला हो तो आप अपने दोस्तों के साथ …

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स्त्रीकेसर | गुरु बीजांड और भ्रुणकोश | बीजाण्ड की संरचना

स्त्रीकेसर, गुरु बीजांड और भ्रुणकोश  बीजाण्ड की संरचना:- स्त्री केंसर:– पुष्पासन पर सबसे उपर की पर्व संधि पर पाए जाने वाले पुष्पी भाग को जायांण कहते है इसके अवयय को अण्डप कहते है। अण्डप के तीन भाग होते है। 1. वर्तिकाण्ड:- यह अण्डप का सबसे उपरी भाग होता है। यह गालाकार चपटा, द्वि शाखीत, पंखीय, …

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कायिक जनन क्या है | की परिभाषा |प्रकार तथा उदाहरण

कायिकजनन(plantreproduction):- पादपों में क्रामिक भागों जैसे:- जड, तलना, पत्ती, नदी के साथ होने वाले जनन को क्रारमिक जनन कहते है। कायिक जनन में भाग लेनी वाली संरचना को कायिक प्रवर्ध्य (प्रोपेग्यूल ) कहते है। कायिक जनन एक प्रकार का अलैगिक जनन है। तथा इससे बनी संतति को क्लोन(Clone) भी कह सकते है।  कायिक जनन के प्रकार(types of plant reproduction):- कायिक जनन प्राकृतिक रूप से होता है किन्तु कृत्रिम रूप से कायिक जनन कराया जा सकता है। कायिक जनन:- 1- प्राकृतिक(Natural) 2- कृत्रिम(Artificial) शीशम , सीरस , मुराया ,शकरकंद , एस्पेरेगस भूमिगत , अर्धवायवीय , वायवीय पर्ण पत्त प्रकंद (बुलबिल) भूमिगत कंद – पर्णसंधि द्वारा (आरव) , आलू प्रकंद – अदरक , केला शकंद – प्याज धनकंद – अरबी अर्धवायवीय उपरिभुस्तरी – …

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DNA अंगुली छापन

DNA अंगुली छापन (DNA finger printing ):- किन्ही दो व्यक्तियों की DNA  तुलना करने की विस्तरित विधि को DNA finger printing कहते है। इसमें निम्न क्रियाऐं की जाती है। डीएनए का पता लगाना:- DNA के बहुत बडे भाग का निर्माण पुनवावर्ति अनुक्रम के द्वारा होता है तथा यह भाग विभिन्नता युक्त होता है इसकी पहचान की जाती …

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जीन अभिव्यक्ति का नियमन | लैक प्रचालेक | HGP मानव जीनोम परियोजना

जीन अभिव्यक्ति का नियमन:- यूकैरियोटिक में:- चार स्तरों पर होता है। प्रारम्भिक अनुलेखन अनुलेखन स्तर संसाधन स्तर सम्बंधन स्तर अभिगमन केन्द्रक से कोशिका द्रव रूप में स्थानान्तरण स्तर प्रोटीन संश्लेषण प्रौकैरिमोटिक में:-आसिमकेन्द्रकी में जीन आभिव्यक्ति का नियमन प्रारम्भिक अनुलेखन स्तर पर विशेष स्टान पर होता है। जिसे प्रारम्भन स्टाल/नियामक स्थल/उन्नायक स्थल कहते है। न्नायक की …

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मेण्डलीय विकार या जीन उत्परिवर्तन के कारण

मेण्डलीय विकार या जीन उत्परिवर्तन के कारण :- उत्परिवर्तन जीनो में अक्समता होने वाले परिवर्तन जो वंशानुगत होते है उनके उत्परिवर्तन कहते है। इनमें क्छ। क्षारकों में परिवर्तन होता है जिससे जीन के जीनोटाइप एवं फनोटाइप लक्षण बदल जाते है। मेण्डलीन विकार:- जीन उत्परिवर्तन के कारण 1:- हीमोफिलिलिया:- यह लिंग सह लग्न रोग है जिसमें …

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आनुवाँशिक कूट | प्रकूट स्थानान्तरण RNA

आनुवाँशिक कूट/प्रकूट (genetic code ):- प्रोटीन संश्लेषण के दौरान अमीनो अम्लो के अनुक्रमों का निर्धारण करने वाले क्षरकों के विशेष क्रम को आनुवाँशिक दूर करते है। आनुवाँशिक प्रकूट त्रीक के रूप में होते है यह जानकारी गैमो, निरेनकर्म तथा डाॅ. हरगोविन्द खुराना ने की। विशेषता:- 1- ये त्रीक के रूप में होते है। 2- ये लगातार …

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वंशानुगति का गुणसूत्रीय सिद्धान्त क्रोमोसोमवाद

वल्टर सदन व थियोडोर बोमेरी 1902:- सटन और बीमेरी ने गुणसूत्र की संख्या एवं जीव विनिमय की क्रिया विधि को मेण्डलीय नियमों केसाथ जोडकर अनुगाँशिकता का एक नया सिद्धान्त दिया जिसे वंशानुगति का गुणसूत्रीय सिद्धान्त कहा जाता है। इसके अनुसार:- गुणसूत्र जीव जोडे में होते है। 1. गुणसूत्र पर जीन पाये जाते है। 2. एक …

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अनुलेखन | अनुलेखन इकाई व जीन

अनुलेखन (transcription):- DNA  से RNA  के निर्माण की क्रिया को अनुलेखन कहते है इसमें DNA  अपनी आनु वाँशिक सूचनाओं का प्रतिलिपिकरण RNA  में करता है। DNA =  अनुलेखन =  RNA अनुलेखन क्रिया में 5 से 3 ध्रुवण वाले टेम्पलेट रज्जुक पर की RNA का निर्माण होता है तथा पूरक रज्जुक में T  के स्थान पर U  आ जाता है RNA का निर्माण दोनो …

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मेडल का तृतीय नियम | स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम | अपवाद

स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम:-एक लक्षण की वंशानुगति दूसरे लक्षण की वंशानुगति से प्रभावित नहीं होती है एक पीढी से दूसरी पीढी में लक्षणों की वंशानुगति स्वतंत्र रूप से होती है। इसे स्वतंत्र अपव्यहून का नियम कहते है। इसे द्विसंकर संकरण प्रयोग द्वारा समझाया जा सकता है। अपवाद:-(linkage):-किसी गुणसूत्र पर पास-पास जीन आपस में मिलकर एक …

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विकिरण सक्रिय S-35 | P – 35 \ DNA  की प्रतिकृति |(कार्य प्रणाली व एन्जाइम)

DNA  की आनुवाँशिक पदार्थ है:- विधि:– जीवाणुभोजी जीवाणुओं का भक्षण करता है इसका स्ंदक ।बुनपेपजपवद व्ििपबमतर्धन दो माध्यमों में किया गया। 1:- विकिरण सक्रिय S-35 यह प्रोटीन में पाया जाता है जब जीवाणु भोजी का संकरण जीवाणु पर कराया तथा इसका अनावरण करके अपकेन्द्रण किया तो पाया गया कि जीवाणुभोजी विकिरण सक्रिय रहा अर्थात जीवाणुभोजी ने जीवाणु …

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मेण्डल का नियम | मेण्डलनिय अपवाद | प्रभाविता | पृथक्करण का नियम

1 मेण्डल का प्रथम नियम:- प्रभाविता का नियम:- लक्षण कारक के रूप में होते है। कारक जोड़े में नहीं होते है। यदि कारक असमान हो तो पीढी में जो लक्षण प्रकट होते है उसे प्रभावी लक्षण कहते है तथा जो लक्षण प्रकट नहीं होता है से अप्रभावी लक्षण कहते है। 2 मेण्डल का दूसरा नियम:-पृथक्करण …

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