प्रतिवर्त एवं प्रतिवर्ती क्रिया क्या है | परिभाषा | कार्य | प्रकार | क्रियाविधि ,

प्रतिवर्त एवं प्रतिवर्ती क्रिया  : किसी उद्दीपन या बाहरी वातावरण में अचानक परिवर्तन के प्रति जन्मजात या बिना सोचे समझे होने वाली अनुक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते है।

प्रतिवर्त क्रिया की क्रियाविधि

अंगो से प्राप्त संवेदनाओ को संवेदी न्यूरोन मेरुरज्जु तक पहुँचाते है , ये संवेदनाएँ मेरुरज्जु के धूसर द्रव में पहुंचती है , जहाँ उचित निर्णय लेकर उचित आदेश धूसर द्रव में उपस्थित संयोजी न्यूरॉन को दिए जाते है , संवेदी न्यूरॉन मेरुरज्जु से प्राप्त प्रेरणाओं को प्रेरक न्यूरॉन को देते है जो कार्यकारी अंग या पेशी तक पहुंचाते है जिससे उचित अनुक्रिया हो जाती है।

 तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन

परिचय : न्यूरॉन तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है , न्यूरॉन की कोशिकाएँ आवेगों का संचरण करने के लिए विशिष्ट होती है , इनका उद्भव भ्रूणीय एक्टोडर्म द्वारा होता है , प्रत्येक न्यूरॉन के निम्न भाग होते है – 1. कोशिका काय (cyton) : यह न्यूरॉन का गोल फैला हुआ भाग है , इसमें सभी कोशिकांग पाये जाते है , इसमें विशिष्ट कण निस्सल के कण उपस्थित होते है , कोशिका काय में उपस्थित द्रव को न्यूरोप्लाज्मा कहते है।  न्यूरोप्लाज्मा में आवेगों के संचरण के लिए महीन तंत्रिका तंतुक पाये जाते है।
2. डेन्ड्रोंस (dendrons) : कोशिका काय से कई शाखाएँ निकलती है , इन महीन धागे समान संरचनाओ को डेन्ड्रोंस कहते है।  ये तंत्रिका आवेगों को कोशिकाकाय की ओर लाती है।
3. एक्सोन (axon) तंत्रिकाक्ष : कोशिका काय से लगभग 20 माइक्रोन मोटाई का प्रवर्ध निकलता है , जिसे एक्सोन कहते है।  इसका प्रारंभिक भाग मोटा , लम्बा व बेलनाकार होता है , एक्सोन के अन्तिम सिरे गुन्दी के समान होता है जिन्हें साइनोप्टिक बटन या अक्ष तन्तु कहते है।  एक्सोन पर श्वान कोशिकाओ युक्त माइलीन आच्छाद पाया जाता है।  दो माइलिन आच्छादो के मध्य भाग को रेनवियर की पर्वसंधि कहते है।  कार्य की दृष्टि से न्यूरॉन दो प्रकार के होते है –
1. संवेदी न्यूरॉन : ये संवेदनाओं को संवेदी अंगो से मस्तिष्क व मेरुरज्जु तक लाती है।
2. प्रेरक न्यूरॉन : इन्हें चालक न्यूरॉन भी कहते है , ये प्रेरणा को मस्तिष्क व मेरुरज्जु से कार्यकारी अंग पेशी तक पहुंचाते है।

तंत्रिका आवेगों का संचरण

बाहरी उद्दीपनो से तंत्रिका कोशिकाओ का उत्तेजन तंत्रिका आवेग कहलाता है , इनका संचरण विद्युत रासायनिक तरंगो के रूप में होता है।  तंत्रिका तन्तु को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम शक्ति को दैहलीज उद्दीपन कहते है।  विश्रांति काल में तंत्रिका कला के बाहर सोडियम आयनों की अधिकता के कारण धनावेश होता है जबकि भीतर कार्बोनेट आयनों की अधिकता के कारण ऋणावेश होता है।  पोटेशियम आयन वाहक का कार्य करते है , विश्रांति काल में विश्रान्ति कला विभव -70mv होता है।  उद्दीपन की अवस्था में सोडियम आयन भीतर व पोटेशियम आयन बाहर निकलते है।  साम्यावस्था में लाने के लिए तीन सोडियम आयन अन्दर व दो पोटेशियम आयन बाहर पम्प किये जाते है। जिससे बाहर ऋणावेश व भीतर धनावेश हो जाता है इसे विध्रुवित अवस्था कहते है तथा उत्पन्न सक्रीय विभव +30mv हो जाता है।  यह क्रिया आगे की ओर संचरित होती रहती है तथा पुन: सामान्य ध्रुवित अवस्था होती रहती है , यह संचरण दर 45 मीटर / सेकंड से होती है।  मायलिन आच्छाद में संचरण तीव्र होती है , इसे साल्टेटोरियल आवेग संचरण कहते है।

अंतग्रथनी संचरण (synaptic transmission)

एक तंत्रिका कोशिका का एक्सोन दूसरे तंत्रिका कोशिका डेन्ड्रोन के मध्य संयोजन को सिनैप्स कहते है।  सिनैप्स के आवेग के संचरण को अन्तर: ग्रन्थि संचरण कहते है।  एक्सोन का अन्तिम सिरा घुण्डी के समान होता है जिसमे वेसिकल व माइटोकॉन्ड्रिया होते है , जब आवेग विभव सिनैप्स पर पहुंचते है तो सिनौप्टिक वेसिकल विदर में कटकर एसिटोकोलीन का स्त्राव करते है जो आवेगों में डेन्ड्रोन में डेन्ड्रोन संचरित करता है , जब आवेग गुजर जाते है तो एसिटोकोलीन एस्टरेन एंजाइम का स्त्राव करते है जो एसिटोकोलीन का विघटन कर देता है।  एसीटोकोलीन व स्पिथीन व ब्यूरोटाएनमिटसि कहते है।

संवेदिक अभिग्राहण एवं संसाधन

प्रकृति से प्राप्त उद्दीपनों को ग्रहण करने के लिए मानव में संवेदी अंग पाये जाते है।

मानव में संवेदी अंग तीन प्रकार के होते है –

1. बाह्य संवेदी अंग : नाक , आँख , जीभ , कान व त्वचा

2. आन्तरिक संवेदी अंग : कार्बन डाई ऑक्साइड व रक्त की सांद्रता में परिवर्तन भूख , प्यास आदि।

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