शोषण 

परासरण (Osmosis) :

किसी विलायक का अपने अधिक सांद्रता क्षेत्र से कम सान्द्रता क्षेत्र की ओर अर्द्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा होने वाले विसरण को परासरण कहते है | परासरण स्वत: ही प्रेरित बल की अनुक्रिया से उत्पन्न होता है , परासरण की दिशा एवं गति दाब प्रवणता एवं सांद्रता पर निर्भर करती है |

परासरण दाब (Osmosis pressure) :

वह दाब जो शुद्ध जल को अर्द्ध पारगम्य झिल्ली के दूसरी ओर उपस्थित विलयन में प्रवेश करने से रोकता है , परासरण दाब कहलाता है | यह घोल के आमाप में वृद्धि को रोकता है , किसी विलयन का परासरण दाब उसमें उपस्थित विलेय के अणुओं की संख्या के समानुपाती होता है , परासरण दाब परासरण विभव के बराबर होता है , परासरण दाब धनात्मक जबकि परासरण विभव ऋणात्मक होता है |

विलयनों के प्रकार

  • अतिपरासरी विलयन
  • अल्पपरासरी विलयन
  • समपरासरी विलयन
  • अतिपरासरी विलयन (hypertonic solution) : इस प्रकार के विलयन की सांद्रता कोशिका रस की सान्द्रता की तुलना में अधिक होती है |
  • अल्पपरासरी विलयन (hypotonic solution) : इस प्रकार के विलयन की सांद्रता कोशिका रस की सान्द्रता की तुलना में कम होती है |
  • समपरासरी विलयन (Isotonic solution) : इस प्रकार के विलयन की सांद्रता कोशिका रस की सान्द्रता के बराबर होती है |

जीवद्रव्य कुंचन , प्लोसिड व जीवद्रव्य विकुंचन

  1. जीवद्रव्य कुंचन (plasalysis) : जब कोशिका के अतिपरासरी विलयन में रखा जाता है , तो बहिपरासरण के कारण जत्व कोशिका द्रव्य से बाहर विलयन में आ जाता है | जिससे कोशिका द्रव्य सिकुड़ने लगता है , कोशिका भित्ति व सिकुड़े हुए जीवद्रव्य के मध्य रिक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है , जिसमें बाह्य विलयन भर जाता है , इस प्रक्रिया को जीवद्रव्य कुंचन कहते है |
  2. प्लोसिड (Flosid) : जब कोशिका को समपरासरी विलयन में रखा जाता है तो जल कोशिका तथा विलयन में समान रूप से गति करता है , जिससे कोशिका साम्य अवस्था में बनी रहती है उसे प्लोसिड कहते है |
  3. जीवद्रव्य विकुचन (Deplasmalysis) : जब कोशिका को अल्प परासरी विलयन में रखा जाता है तो जल विलयन से कोशिका द्रव्य में प्रवेश करता है जिससे कोशिकाद्रव्य का आमाप बढ़ जाता है और कोशिका स्पित हो जाती है | इस स्थिति में कोशिका द्रव्य द्वारा कोशिका भित्ति पर दाब डाला जाता है जिसे स्पिति दाब कहते है |

अन्त: शोषण :

जब ठोस एवं कोलाइडी पदार्थो द्वारा पानी को अवशोषित किया जाता है तो उनके आयतन में अत्यधिक वृद्धि होती है , इस प्रक्रिया को अन्त: शोषण कहते है |

अन्त:शोषण एक प्रकार का विसरण है जो सांद्रता प्रवणता के अनुसार होती है , अंत: शोषण के कारण मानव बड़ी चट्टनो एवं पत्थरों को तोड़ने में सफल होता है |

उदाहरण – 1. बरसात में दरवाजों का फूल जाते |

  1. बीजों द्वारा जल अवशोषण कर भूमि से ऊपर अंकुरित होना |

लम्बी दूरी तक जल का परिवहन :

लम्बी दूरी तक पदार्थों का परिवहन विसरण द्वारा नही हो सकता है | विसरण एक धीमी प्रक्रिया है , जो कम दूरी तक अणुओं को पहुँचा जा सकता है | बड़े व जटिल पादपों में पदार्थो का परिवहन लम्बी दूरी तक होता है तथा उत्पादन अवशोषण व संग्रहण स्थल एक दूसरे से काफी दूर होते है अत: विसरण एवं सक्रीय परिवहन पर्याप्त नहीं है | अत: लम्बी दूरी तक सान्द्रता , प्रवणता के विपरीत जल को पहुँचाने के लिए उच्च पादपों में विशेष संवहन उत्तक (जाइलम फ्लोएम) पाये जाते है |

Remark:

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