तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय :-
परिचय : शरीर को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी व उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने के लिए तंत्रिका तंत्र की आवश्यक होती है | तन्त्रिका तंत्र की क्रियाएँ तीव्र होती है , तंत्रिका तन्त्र भ्रूणीय परिवर्तन के दौरान बनने वाला प्रथम तंत्र होता है , तंत्रिका तंत्र का उद्भव एक्टोडर्म के द्वारा होता है , मनुष्य में तंत्रिका तंत्र को तीन भागों में बाँटा गया है –
- केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र (CNS)
- परिधीय तंत्रिका तंत्र (PNS)
- स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (ANS)
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) : इसके द्वारा प्राप्त संवेदनाओ का विश्लेषण किया जाता है –
- मस्तिष्क (Brain) : यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है , इसका भार 1.4Kg होता है , यह कपाल द्वारा घिरा रहता है , मस्तिष्क के चारो ओर संयोजी ऊत्तक से निर्मित मस्तिष्क आवरण पाया जाता है जो मस्तिष्क को चोट , दुर्घटना एवं बाहरी आघातों से सुरक्षा करता है तथा पोषण प्रदान करता है | मस्तिष्क आवरण निम्न तीन झिल्लियों का बना होता है –
- दृढतानिका (ड्यूरामेटर) : यह मस्तिष्क की सबसे बाहरी झिल्ली होती है , यह मोटी व दृढ होती है , इस परत में कोलेजन तन्तु पाये जाते है इसमें अनेक रक्त पात्र होते है | दृढतानिका व जाल तानिका के मध्य ड्यूरल अवकाश पाया जाता है जिसमे सिरमी द्रव भरा होता है जो दोनों परतो को नम व चिकना बनाएँ रखता है |
- जालतानिका (एरेकनॉइड) : यह मध्य मस्तिष्क आवरण है , इसमें रुधिर केशिकाओं का जाल पाया जाता है , जाल तानिका व मृदुतानिका के मध्य अद्योजालतानिका अवकाश पाया जाता है जिसमें प्रमस्तिष्क मेरुद्रव भरा होता है |
- मृदु तानिका (पायामेटर) : यह सबसे भीतरी मस्तिष्क आवरण है , यह मस्तिष्क व मेरुराज्जू से चिपकी रहती है , इस परत में भी रूधिर कोशिकाओ का जाल पाया जाता है जिससे मेरुरज्जु व मस्तिष्क को पोषण व ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है |
प्रमस्तिष्क मेरुद्रव : यह द्रव क्षारीय प्रकृति का होता है , इसकी मात्रा 150ml होती है , इसमें प्रोटीन , ग्लूकोज , यूरिया Cl– , K+ , Na+ , Ca++ , CO3– , SO4– , PO4– , क्रिएटिन व यूरिक अम्ल पाये जाते है |
कार्य
- यह मस्तिष्क व मेरुरज्जु को सुरक्षित व नम बनाए रखता है |
- यह मस्तिष्क व रक्त के मध्य पोषक पदार्थो CO2 व O2 का आदान प्रदान करता है |
- यह मस्तिष्क व मेरुरज्जू की रोगाणुओं से सुरक्षा भी करता है |
मस्तिष्क की संरचना :
मस्तिष्क निलय : मस्तिष्क में खोखली व अनियमित निलय पायी जाती है जिनमें मेरुद्रव भरा होता है , ये चार प्रकार की होती है –
- दाँया व बाँया निलय : ये दोनों निलय प्रमस्तिष्क में स्थित होते है , ये मोनरो के छिद्र द्वारा तृतीय निलय से जुड़े होते है |
- तृतीय निलय : यह थैलेमान के मध्य डायएनसेफेलोन में स्थित होता है , यह प्रमस्तिष्क जल सेतु द्वारा चतुर्थ निलय से जुड़ा होता है |
- चतुर्थ निलय : यह अनुमस्तिष्क के नीचे स्थित होता है , इसकी छत के पिछले भाग में 3 छिद्र होते है , मध्य का छिद्र मेगेंडी का छिद्र तथा पाशर्व के छिद्र लुस्का के छिद्र कहलाते है
मस्तिष्क के तीन भाग होते है –
- अग्रमस्तिष्क (fore brain)
- प्रमस्तिष्क (cerebrelle) : यह पूरे मस्तिष्क का 80% भाग होता है , यह अनुलम्ब विदर से दो भागों में बाँटा होता है | जिन्हें दायाँ व बायाँ प्रमस्तिष्क गोलार्द कहते है , दोनों गोलार्द कोर्पस केलोसन नामक संयोजी तन्तु से आपस में जुड़े होते है , प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्द को तीन दरारें , चारपालियो या पिण्डो में बांटती है |
- अग्र लाट पाली (frantal lobe) : यह सबसे आगे व सबसे बड़ी पाली होती है , यह बोलने की क्रिया को सम्पादित करती है |
- भित्तिय पालि (Parietal lobe) : यह अग्रलाट पालि के पीछे स्थित होती है , इसे पाशर्व कपालखण्ड भी कहते है , इसमें संवेदी व प्रेरक केन्द्र होते है |
- शंख पालि (Temporal lobe) : यह भित्तिय पाली के नीचे स्थित होती है , इसमें श्रवण व प्राण संवेदी केन्द्र होते है |
- अनुकपाल पालि (oxipital lobe) : यह सबसे छोटी व सबसे पीछे की ओर स्थित होती है , इसमें दृष्टि संवेदी केंद्र होते है |
प्रमस्तिष्क के कार्य
- यह शरीर के विभिन्न भागों से स्पर्श , दर्द , चूमन आदि संवेदी उत्तेजनाओ को ग्रहण करता है
- श्रवण संवेदी क्षेत्र शंखपालि में दृष्टि संवेदी केन्द्र अनुकपाल पालि में , घ्राण संवेदी क्षेत्र शंख पालि में तथा वाणि संवेदी केन्द्र अग्रलाट पालि में पाये जाते है |
- प्रमस्तिष्क मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग होता है | यह बुद्धिमता , चेतना , अनुमत , विश्लेषण क्षमता , तर्कशक्ति , वाणि आदि उच्च मानसिक क्रियाकलापों का केन्द्र है|
- यह संवेदी प्रेरक तथा समन्वय का केंद्र भी कहते है |
- डायएनसेफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) : यह अग्र मस्तिष्क का पश्च भाग है , इसे थैलमैनसेफेलॉन भी कहते है , इसके तीन भाग होते है –
- एपिथैलेमस / अधिचेतन : यह तृतीय गुहा की छत के रूप में होता है , इसमें रक्तक जाल होता है , इसकी मध्य रेखा पर पीनियल ग्रन्थि व दोनों पाशर्व में थैलेमिक केन्द्र होते है |
- थैलेमस / चेतन : यह अण्डाकार एवं दो मोटे पिण्डको के रूप में होता है , यह पूरे डायऐनसेफेलॉन का 80% होता है , इसके पिण्डक मेरुरज्जू व मस्तिष्क के विभिन्न भागों में संवेदी व प्रेरक आवेगों को ले जाने के लिए प्रसारण केन्द्र का कार्य करते है , ये संवेदी सूचनाएं जैसे – दृष्टि , स्वाद , स्पर्श , ताप , दाब कम्पन्न , पीड़ा आदि सूचनाओ का प्रसारण करते है | यह स्पर्श , दाब , पीडा , ताप , हर्ष , विषाद (दुःख) आदि की संवेदना की व्याख्या करने में समर्थ है |
- हाइपोथैलेमस / अद्यचेतन : यह डायऐनसेफेलॉन की पाशर्व दीवारों का नीचला भाग तथा तृतीय निलय का फर्श बनाता है | इससे तंत्रिका कोशिकाओ के लगभग एक दर्जन बड़े बड़े केन्द्रक होते है , यह तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्त: स्त्रावी तंत्र में सम्बन्ध स्थापित करता है | इसमें स्वायत्त तंत्रिका के उच्च केन्द्र होते है , यह शरीर के ताप तथा समस्थापन का नियंत्रण करता है , इसके द्वारा मोचक व निरोधी न्यूरो हार्मोन स्त्रवित होते है |
(2) मध्यमस्तिष्क (mid brain / mesencephalon) : यह मस्तिष्क का सबसे छोटा भाग है , प्रमस्तिष्क के नीचे व पश्च मस्तिष्क के ऊपर स्थित होता है , मध्य मस्तिष्क की गुहा सकरी होती है , इसे इटर कहते है | मध्य मस्तिष्क को दो भागों में बाँटा गया है |
(क) क्रूरा सेरिब्राई : यह एक जोड़ी डंडलनुमा वृन्त है , यह प्रमस्तिष्क को पश्च मस्तिष्क व मेरुरज्जू से जोड़ाता है |
(ख) कॉर्पोरा क्वादड्रीजेमिना : यह चार गोल उभारो का बना होता है , प्रत्येक उभार को कीलिकुलस कहते है , इसमें कई केन्द्रक होते है |
मध्य मस्तिष्क के कार्य
- यह पेशियों गतियो का समन्वय करता है |
- इसके कोलिकुलान दृष्टि व श्रवण सम्बन्धी क्रियाओं का प्रतिवृत्तो की तरह कार्य करते है |
(3) पश्च मस्तिष्क (Hind brain or rhombencephalon) : इसके तीन भाग होते है –
(A) अनुमस्तिष्क (cerebrum) : यह स्तनधारियों में अत्यधिक विकसित होता है , यह पाँच पिण्डको द्वारा निर्मित होता है | 1 वर्मिस पिण्डक 2 पाशर्व पिण्ड और 2 प्लोक्यूलस होते है , वर्मिस सबसे बड़ा पिण्ड होता है , इसकी सतह पर अनेक वलन पाये जाते है |
कार्य :
- यह प्रमस्तिष्क द्वारा प्रेरित ऐच्छिक गतियो के लिए पेशियों का समन्वय करता है |
- यह कंकाल पेशियो के समुचित संकुचन द्वारा चलने फिरने , दौड़ने , लिखने आदि क्रियाओं को सुगम बनाता है |
- यह शरीर का संतुलन व साम्यावस्था बनाए रखने में सहायक होता है |
- पोन्स वेरोलाई (pons varalli) : यह मेडुला ऑव्लागेंटा के ऊपर व प्रमस्तिष्क वृतको के नीचे स्थित होता है , यह अनुमस्तिष्क की पालियो को जोड़ने का कार्य करता है |
कार्य :
- यह चर्वण क्रिया , लार स्त्रवण , अश्रुपात तथा नेत्रों की गतिशीलता का नियंत्रण करता है |
- इसमें श्वसन नियन्त्रण केन्द्र पाये जाते है |
- मेडुला ऑवलागेटा : यह मस्तिष्क का सबसे अन्तिम व नीचला भाग होता है , इसकी गुहा को चतुर्थ निलय कहते है | मस्तिष्क व मेरुरज्जु के मध्य थैले सभी संवेदी व प्रेरक तंत्रिका क्षेत्र मेडुला में ही विद्यमान होते है |
कार्य :
मेडुला ऑवलागेटा सभी अनैच्छिक क्रियाओ जैसे श्वसन , आहारनाल के क्रमांकुचन , ह्रदय स्पंदन आदि क्रियाओ पर नियंत्रण करता है , मेडुला में निगलना , वमन , छिकने व खासने की क्रियाओ के केंद्र होते है |
- मेरुरज्जू (spinal cord) : यह मेडुला का ही खोपड़ी के महारन्ध्र के नीचे विस्तार है , यह तंत्रिका नाल में स्थित होता है , यह प्रथम कशेरुकी से अन्तिम कशेरुक तक फैली रहती है , मनुष्य में यह 45cm लम्बी , खोखली व बेलनाकार संरचना होती है , यह अग्र व पश्च भाग में फूलकर क्रमशः बाहुउत्फुलन व कटि उत्फुलन बनाती है | इसका अन्तिम पतला सिरा अन्तय सूत्र कहलाता है , मस्तिष्क के समान इस पर तीन झिल्लियाँ पायी जाती है | इसमें धूसर द्रव व श्वेत द्रव भरे होते है |
कार्य :-
- यह प्रतिवर्ती क्रियाओ का मुख्य केन्द्र होता है |
- यह शरीर के विभिन्न भागों व मस्तिष्क के मध्य सम्बन्ध बनाए रखने का कार्य करता है |
परिधीय तंत्रिका तंत्र (peripheral nervous system)
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र में कपालीय तंत्रिकाएँ व मेरु तंत्रिकाएं शामिल है , मनुष्य में 12 जोड़ी जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ पायी जाती है |
- घ्राण तंत्रिकाएँ
- दृक तंत्रिकाएँ
- अक्षि चालक तंत्रिकाएं
- चक्रक तंत्रिकाएँ
- ट्राइजेमिनल तंत्रिकाएँ
- अपचालक तंत्रिकाएं
- आननी तंत्रिकाएँ
- श्रवण तंत्रिकाएं
- जिह्वा ग्रसनी तंत्रिकाएँ
- वेगस तंत्रिकाएं
- सुषुम्नीय तंत्रिकाएँ
- जिव्हा अद्योग्रसनी तंत्रिकाएँ
मनुष्य में 31 जोड़ी मेरुतंत्रिकाएँ होती है जो मेरुरज्जु से निकलती है , ये मिश्रित प्रकृति की होती है |
- ग्रीवा तंत्रिकाएँ – 8 जोड़ी
- वक्षीय – 12 जोड़ी
- कटि तंत्रिकाएँ – 5 जोड़ी
- त्रिक तंत्रिकाएँ – 5 जोड़ी
- पुच्छीय तंत्रिकाएं – 1 जोड़ी
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system)
शरीर की अनैच्छिक क्रियाओ का नियंत्रण व नियमन स्वायत तंत्रिका तंत्र द्वारा किया जाता है , इस तंत्र की खोज लेंग्ले द्वारा की गई | यह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से सम्बन्धित होता है , यह संरचनात्मक व क्रियात्मक आधार पर दो प्रकार का होता है |
अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system) : अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की गुच्छिकाएं मेरुरज्जू व कटि के धूसर द्रव से निकलती है अत: इसे वक्षीय कटि तंत्र भी कहते है |
परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Ansympathetic nervous system) : यह शरीर की सभी सामान्य क्रियाओ का नियमन व नियंत्रण करता है , शरीर की आन्तरिक वातावरण की अखंडता को बनाए रखने में सहायक है | अनुकम्पी व परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र एक दूसरे के विपरीत कार्य करते है |
आंतरागो के नाम | अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र | परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र |
1. आइरिस | पुतली का फैलना | पुतली का सुकड़ना |
2. अश्रु ग्रंथियाँ | उत्तेजन | संदमन |
3. लार ग्रंथियां | संदमन | उत्तेजन |
4. ह्रदय स्पन्दन | ह्रदय स्पंदन बढाता है | कम करता है |
5. फेफड़े | फैलाव करता है | सिकुडन करता है |
6. रुधिर वाहिकाएँ | संकिर्णन करता है | विस्तारण करता है |
7. आहारनाल | क्रमांकुचन में कमी करता है | क्रमांकुचन में वृद्धि करता है |
8. अधिवृक्क ग्रन्थि | उत्तेजन | संदमन |
9. बालों की पेशियाँ | बालों को खड़ा करता है | बालों को शिथिल करता है |
10. स्वेद ग्रंथियां | उत्तेजन | संदमन |
11. मूत्राशय | मूत्राशय को शिथिल करता है | मूत्राशय को सिकोड़ता है |
Remark:
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