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Rajasthan Board RBSE Class 11 Pratical Geography Chapter 7 जरीब व फीतासर्वेक्षण
RBSE Class 11 Pratical Geography Chapter 7 प्रायोगिक पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
जरीब कितने प्रकार की होती है ? प्रत्येक प्रकार के जरीब की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जरीब तीन प्रकार की होती है-1. इंजीनियर जरीब, 2. मीटर जरीब, 3. गन्टर जरीब ।।
1. इंजीनियर जरीब की विशेषताएँ-
- यह जरीब 100 फीट लम्बी होती है।
- यह जरीब 100 कड़ियों में विभाजित होती है जिसमें प्रत्येक कड़ी की लम्बाई 1 फुट होती है।
- इस जरीब में प्रत्येक दस कड़ी के पश्चात् पीतल के दाँते लगे होते हैं।
- यह जरीब क्षैतिज दूरियों के मापने के काम आती है।
2. मीटर जरीब की विशेषताएँ-
- यह जरीब सामान्यतया 10, 20 व 30 मीटर की लम्बाई में मिलती है।
- दस मीटर लम्बी जरीब को डेकामीटर जरीब भी कहते हैं।
- यह जरीब सौ कड़ियों में विभाजित होती है।
3. गन्टर जरीबं की विशेषताएँ-
- यह जरीब 66 फीट अथवा 22 गज लम्बी होती है।
- इस जरीब में सौ कड़ियाँ होती हैं।
- प्रत्येक कड़ी 0-66 फुट अथवा 7-92 इंच लम्बी होती है।
- यह जरीब अधिक प्रचलन में है।
- यह जरीब पटवारियों एवं अमीनों के लिए बहुत अधिक महत्व रखती है।
प्रश्न 2.
जरीब व फीता सर्वेक्षण में कौन-कौन से उपकरण काम में आते हैं ?
उत्तर:
जरीब व फीता सर्वेक्षण में निम्नलिखित उपकरण काम में आते हैं-
- जरीब,
- फीता,
- तीर,
- ट्रफ कम्पास,
- सर्वेक्षण दण्ड,
- गुनिया,
- प्रकाशीय गुनिया।
1. जरीब-ये लोहे या इस्पात से बनी होती है। इसके दोनों सिरों पर पीतल के हत्थे लगे होते हैं। यह दूरी मापने का प्रमुख उपकरण है। प्रत्येक जरीब में 100 कड़ियाँ होती हैं जिनके सिरे गोल कड़ी के रूप में मुड़े होते हैं। प्रत्येक कड़ी
चित्र – जरीब
की घुण्डी अगली कड़ी की घुण्डी से एक छल्ले द्वारा जुड़ी होती है। इससे जरीब को आसानी से मोड़कर रखा जा सकता है। जरीब तीन प्रकार की होती हैइंजीनियर जरीब, मीटर जरीब एवं गन्टर जरीब।
2. फीता – जरीब व फीता सर्वेक्षण में क्षेत्र की दूरियों के मापन के लिए .. सर्वेक्षक को एक मापक फीते की आवश्यकता होती है। ये फीते निर्माण सामग्री के आधार पर कई प्रकार के होते हैं लेकिन सर्वेक्षण में धात्विक फीते का अधिक उपयोग होता है। धात्विक फीते में प्रयुक्त कपड़े की बुनाई में संश्लेषित रेशों एवं धातु के तारों का प्रयोग किया जाता है। फलस्वरूप मापन में इसकी शुद्धता लम्बी अवधि तक बनी रहती है। सामान्यतया सर्वेक्षण के लिए 30 मीटर की लम्बाई के फीते का अधिक उपयोग किया जाता है।
3. तीर – जरीब व फीता सर्वेक्षण में लोहे से निर्मित तीरों की आवश्यकता पड़ती है। ये तीर सामान्यतया 12 से 18 इंच लम्बे होते हैं। इनका निचला सिरा नुकीला रखा जाता है ताकि जरीब में इन्हें आसानी से गाड़ा जा सके। सर्वेक्षण . के समय एक जरीब पूरी होने पर उसके सिरे पर तीर गाड़ते हुए चलते हैं। इससे जरीब रेखा की कुल लम्बाई ज्ञात करने में सुविधा रहती है।
4. टुफ कम्पास – जरीब व फीता सर्वेक्षण में ट्रफ कम्पास की सहायता से चुम्बकीय उत्तर दिशा का निर्धारण किया जाता है। इस यंत्र का खोल एक अचुम्बकीय धातु का बना होता है। आन्तरिक भाग में एगेट की कठोर धुरी पर एक चुम्बकीय सुई घूर्णन करती रहती है। इस उपकरण से उत्तर दिशा निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इस उपकरण की चुम्बकीय सुई लोहे की वस्तुओं को आकर्षित करती है। अतः आस-पास लोहे से निर्मित जरीब, लोहे के तीर व लोहे की कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए। वरना चुम्बकीय उत्तर दिशा ठीक निर्धारित नहीं होगी।
5. सर्वेक्षण दण्ड-सर्वेक्षण क्षेत्र में किसी भी स्टेशन की सही अवस्थिति देखने के लिए सर्वेक्षण दण्ड अति उपयोगी उपकरण है। यह दण्ड आठ से दस फीट लम्बा हो सकता है जो कि एक-एक फुट की विपरीत रंगों वाली पट्टियों; जैसे-लाल-सफेद, काला-सफेद आदि में रंगा होता है। इन पट्टियों की सहायता से किन्हीं पाँच बिन्दुओं के मध्य की क्षैतिज दूरी नापने में सुगमता होती है। इसके निचले सिरे पर एक लोहे की नुकीली टोपी लगी होती है जो सर्वेक्षण दण्ड को किसी स्थान पर स्थिर रखने में सहायक होती है।
6. गुनिया-यह लकड़ी से निर्मित एक साधारण उपकरण होता है। इसमें चार फलक परस्पर समकोण पर जुड़े होते हैं। यह उपकरण जरीब को सीधा आगे बढ़ाने एवं समकोण पर आगे बढ़ाने में सहायक होता है।
7. प्रकाशीय गुनिया-यह उपकरण पीतल से निर्मित एक बक्से के रूप में बना होता है। इसके दो पाश्र्व तिरछे होते हैं। इन तिरछे पाश्र्वो के भीतर की ओर एक-दूसरे से 45° के कोण पर दो आयताकार दर्पण लगे होते हैं। प्रत्येक दर्पण के ऊपरी भाग में एक आयताकार झिरीं कटी होती है। इस झिरीं से दोनों ओर आर-पार देखा जा सकता है। इन झिर्रियों में से देखकर जरीब को कम्पास पर मोड़ा जा सकता है। इस गुनिया में साहुल लटकाने के लिए हत्थे के निचले सिरे पर एक गोल घुण्डी होती है।
प्रश्न 3.
जरीब व फीता सर्वेक्षण में जरीब व फीते के क्या-क्या उपयोग हैं ?
उत्तर:
जरीब व फीता सर्वेक्षण में जरीब व फीते के निम्नलिखित उपयोग हैं-
जरीब के उपयोग – जरीब दूरी मापने का प्रमुख उपकरण है। यह लोहे या इस्पात के तार से बनी होती है। इसके दोनों सिरों पर पीतल के हत्थे लगे होते हैं। प्रत्येक जरीब में 100 कड़ियाँ होती हैं जिनके सिरे गोल कड़ी को रूप में मुड़े होते हैं। प्रत्येक कड़ी की घुण्डी अगली कड़ी की घुण्डी से एक छल्ले द्वारा जुड़ी होती है। इससे जरीब के आसानी से मोड़कर रखा जा सकता है।
जरीब का उपयोग पारम्परिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे भूभागों के मापन में किया जाता है। पटवारियों एवं अमीनों द्वारा खेतों की सीमाएँ निर्धारित करने में अथवा खेतों, चकों व सम्पदाओं का क्षेत्रफल ज्ञात करने में जरीब का उपयोग किया जाता है।
फीते का उपयोग – जरीब द्वारा सर्वेक्षण में क्षेत्र में दूरियों के मापन के लिए फीते का उपयोग होता है। निर्माण सामग्री के आधार पर फीते कई प्रकार के होते हैं परन्तु सर्वेक्षण कार्य में धात्विक फीते का सर्वाधिक उपयोग होता है। सामान्यतया शुद्धता वाले सर्वेक्षणों में प्रायः इसी प्रकार के फीते का उपयोग होता है। अन्य प्रकार के सर्वेक्षणों में भी फीते का उपयोग होता है।
प्रश्न 4.
टूफ कम्पास द्वारा उत्तर दिशा ज्ञात करने की प्रक्रिया को समझाइए।
उत्तर:
जरीब एवं फीता सर्वेक्षण में चुम्बकीय उत्तर दिशा निश्चित करने के लिए ट्रफ कम्पास का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण पीतल, एल्युमीनियम अथवा अन्य किसी अलौह धातु से निर्मित आयत रूप बक्से की 2 तरह होता है जिसके ऊपर काँच का ढक्कन लगा होता है। आयताकार बक्से के बीच में लगी एक धुराग्र पिन (एगेट) की नोंक पर चुम्बकीय सुई टिकी होती है जिसके एक ओर अंग्रेजी
भाषा का ‘N’ अक्षर लिखा होता है। यह उत्तर दिशा को बताता है। धुराग्र जिन का सम्बन्ध बक्से के बाहर एक ब्रेक पिन या नॉक से होता है जिसे कस देने पर सुई स्थिर हो जाती है तथा ढीला करने पर दोनों किनारे बक्से के अन्दर चिह्नित चापों पर घूमने लगते हैं। प्रयोग करते समय सुई को नॉव को घुमाकर ढीला कर देते हैं तथा बॉक्स को इस प्रकार रखते हैं कि ‘N’ लगभग उत्तर की ओर हो। इसके पश्चात् जब सुई उत्तर की ओर दोनों ओर लिखे शून्यों की सीध में स्थिर हो जाती है तो नॉब को कस देते हैं और बक्से के किनारे से सरल रेखा खींच देते हैं। ‘N’ अक्षर की ओर वाला सिरा चुम्बकीय उत्तर दिशा को बताता है। इस तरह टूफ कम्पास से चुम्बकीय उत्तर दिशा ज्ञात करते हैं।
प्रश्न 5.
जरीब व फीता सर्वेक्षण में गुनिया का क्या उपयोग होता है एवं यह कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
गुनिया के प्रकार एवं उपयोग-गुनिया जरीब एवं फीता सर्वेक्षण का महत्वपूर्ण उपकरण है। यह दो प्रकार का होता है-
- चतुष्फलक गुनिया,
- प्रकाशीय गुनिया।
1. चतुष्फलक गुनिया-यह लकड़ी से बना साधारण उपकरण होता है। इसमें चार फलक परस्पर समकोण पर जुड़े होते हैं। यह उपकरण जरीब को सीधा आगे बढ़ाने एवं समकोण पर आगे बढ़ाने में सहायक होता है। एक जरीब पर सर्वेक्षण करने के पश्चात् यदि उसे सीधा या समकोण पर आगे बढ़ाना हो तो इस उपकरण को जरीब के अन्तिम सिरे पर लगा लेते हैं। यदि जरीब को सीधा आगे बढ़ाना हो तो जरीब की दिशा में आने वाले फलकों से सीधा मिलाकर जरीब को गुनिया आगे बढ़ाया जाता है। यदि जरीब क़ो समकोण पर मोड़ने की आवश्यकता हो तो जरीब से समकोण पर पड़ने वाले फलकों का उपयोग किया जाता है।
2. प्रकाशीय गुनिया-यह उपकरण पीतल से निर्मित एक बक्से के रूप खिडकी में बना होता है। इसके झुके हुए पाश्र्वो पर अन्दर की तरफ एक-दूसरे से 45° के कोण पर दो आयताकार दर्पण लगे होते हैं। प्रत्येक दर्पण के ऊपर पार्श्व में एक आयताकार झिरी कटी होती है जिससे दोनों पाश्र्वो के आर-पार देखा जा सके। इस गुनिया के द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि चेन रेखा के दायीं अथवा बाय ओर स्थित किसी बिन्दु से गिराया गया लम्ब चेन रेखा को किस बिन्दु पर काटेगा। साधारण गुनिया की अपेक्षा प्रकाशीय गुनिया के उपयोग से अधिक परिशुद्धता रहती है।
प्रश्न 6.
खुली माला रेखा विधि एवं बन्द माला रेखा विधि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
खुली माला रेखा विधि-जरीब व फीता सर्वेक्षण की इस विधि को खुला मार्ग मापन भी कहा जाता है। सर्वेक्षण की वह विधि जिसमें जिस बिन्दु से सर्वेक्षण प्रारम्भ करते हैं, वहीं से एक मार्ग के सहारे आगे बढ़ते रहते हैं। खुली माला रेखा कहलाती है। इसमें दो या दो से अधिक स्टेशन निश्चित कर जरीब रेखा के दोनों ओर विभिन्न लक्ष्यों की दूरी का मापन किया जाता है।
बन्द माला रेखा विधि – जरीब व फीता सर्वेक्षण की वह विधि जिसमें जिस स्टेशन से सर्वेक्षण प्रारम्भ किया जाता है, उसी स्टेशन पर पुनः लौटकर सर्वेक्षण कार्य समाप्त किया जाता है, बन्द माला रेखा विधि कहलाती है।
चित्र – खुली माला रेखा विधि
चित्र – बन्द माला रेखा विधि
प्रश्न 7.
अन्तर्लम्ब किसे कहते हैं ? इनका मापन किस तरह किया जाता है ?
उत्तर:
जरीब व फीता सर्वेक्षण में लम्ब दूरी का अभिलेखन किया जाता है। जरीब तथा फीता सर्वेक्षण में किसी बिन्दु की करीब रेखा से मापी गई लम्ब दूरी अंतर्लम्ब कहा जाता है। जरीब व फीता सर्वेक्षण में कोणीय मापन के लिए कोई उपकरण नहीं होने के कारण लम्ब दूरी का निर्धारण ज्यामितीय विधि से किया जाता है। इस विधि में अन्तर्लम्ब का मापन के लिए फीते का आरम्भिक सिरा लक्ष्य पर रखा जाता है एवं फीते को जरीब रेखा तक फैलाकर चाप की आकृति में घुमाते हैं। यदि फीता अधिक खोल दिया गया है तो उसको चाप अन्तर्लम्ब चित्रानुसार जरीब रेखा को दो स्थानों पर काटेगा। इस कारण फीते का यह फैलाव लक्ष्य की लम्ब दूरी नहीं दर्शाता है। क्योंकि ग प घ प लम्ब नहीं है। ऐसी स्थिति में फीते के फैलाव को कम करके पुनः चाप के रूप में घुमाया जाता है। जरीब के जिस स्थान पर फीते का यह फैलाव न्यूनतम लम्बाई पर स्पर्श करता है वही उस लक्ष्य की ठीक लम्ब दूरी होती है। । दिए गए चित्र में क प वृक्ष का अन्तर्लम्ब है। जरीब रेखा से क प लक्ष्य की न्यूनतम दूरी है। अन्य सभी दूरियाँ ख प आदि अधिक दूरियाँ हैं। अन्य समस्त दूरियाँ ख प आदि न्यूनतम नहीं होंगी।
प्रश्न 8.
जरीब व फीता सर्वेक्षण में तिर्यक अन्तर्लम्ब कब लिए जाते हैं ? इनकी मापन की विधि को समझाइए।
उत्तर:
जरीब व फीता सर्वेक्षण में तिर्यक अन्तर्लम्ब निम्नलिखित दो मापन की कठिनाइयों की वजह से लिए जाते हैं-
1. सर्वेक्षण क्षेत्र में कई लक्ष्यों की जरीब से लम्ब दूरी नहीं ली जा सकती है। ऐसी स्थिति में जरीब के किन्हीं दो स्थानों से लक्ष्य की दूरियाँ नापली जाती हैं। चूँकि ये लम्ब दूरी न होकर तिरछी दूरियाँ होती हैं जिन्हें तिर्यक दूरियाँ कहते हैं। तिर्यक दूरियों के आधार पर उस लक्ष्य की स्थिति पुनः मानचित्र पर सरलता से अंकित की जा सकती है। सर्वप्रथम पूर्व में दिए गए मापक के अनुसार जरीब रेखा पर उन दोनों स्थानों की स्थिति अंकित की जाती है जहाँ से लक्ष्य की दूरियाँ मानी गई थीं। तत्पश्चात् मापक के अनुसार तिर्यक दूरियों को परकार में भरकर क्रमशः दो चाप बनाये जाते हैं जहाँ ये चाप परस्पर एक-दूसरे को काटते हैं, वही उस लक्ष्य की मानचित्र पर स्थिति होती है।
2. जरीब व फीता सर्वेक्षण में तिर्यक अन्तर्लम्ब दूसरी स्थिति में तब लिया जाता है जब उत्तर इंगित करने वाली रेखा जरीब से समकोण पर होती है। ऐसी स्थिति में उत्तर इंगित करने वाली रेखा पर दो लक्ष्य बिन्दुओं की लम्ब दूरी नहीं ली जा सकती जिस कारण उत्तर इंगित करने वाली रेखा को जरीब तक बढ़ा दिया जाता है। जहाँ यह रेखा जरीब पर मिलती
चित्र (ख) उत्तर रेखा पर तिर्यक मान
चित्र (ग) तिर्यक दूरियों से उत्तर रेखा का मानचित्रण
है, एक लक्ष्य बिन्दु तो उसे ही मान लिया जाता है। जैसा कि चित्र में क बिन्दु माना गया है। क्षेत्र-पुस्तिका में क बिन्दु की जरीब दूरी अंकित कर ली जाती है। इसके पश्चात् उत्तर इंगित करने वाली रेखा पर कोई एक बिन्दु लेकर जरीब के किसी बिन्दु से उसकी तिर्यक दूरी नापकर क्षेत्र पुस्तिका में अभिलेखन कर लिया जाता है। इस अभिलेखन में दो दूरियाँ सम्मिलित हैं-अ ख जरीब दूरी तथा ख ग तिर्यक दूरी (चित्र संख्या ख) इसके साथ ही क ग तिर्यक दूरी का अभिलेखन किया जाता है। मानचित्र आलेखन के समय मापक के अनुसार जरीब रेखा बनाकर अ क एवं अ ख दूरियों पर चिन्ह लगाने से क तथा ख की स्थिति ज्ञात हो जाती है। इन दोनों बिन्दुओं से मापक के अनुसार अवकलित दूरियों के चाप जरीब से दाहिनी ओर बनाये जाते हैं जहाँ ये चाप एक-दूसरे को काटते हैं, वही ग की स्थिति होती है। अब क ग को जोड़ने वाली रेखा चित्रानुसार चित्र से ग उत्तर दिशा दर्शाएगी।
प्रश्न 9.
क्षेत्र-पुस्तिकी किसे कहते हैं ? जरीब व फीता सर्वेक्षण में इसका क्या उपयोग है ?
उत्तर:
क्षेत्र-पुस्तिका – जरीब व फीता सर्वेक्षण में समस्त मापों का अभिलेखन सारणी के रूप में किया जाता है जिसे क्षेत्र-पुस्तिका कहते हैं।
उपयोग – क्षेत्र-पुस्तिका में जरीब वे फीता सर्वेक्षण से सम्बन्धित समस्त प्रविष्टियाँ दर्ज की जाती हैं। क्षेत्र-पुस्तिका के आधार पर ही मानचित्र आलेखन का कार्य किया जाता है।
All Chapter RBSE Solutions For Class 11 Geography Hindi Medium
All Subject RBSE Solutions For Class 11 Hindi Medium
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