RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 15 असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन

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RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
अंग्रेजी सरकार की विभिन्न नीतियों के बहिष्कार के लिए चलाए गए आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन कहा गया। इसके दो पक्ष थे नकारात्मक तथा सकारात्मक। अंग्रेजी सत्ता जनता के सहयोग के आधार पर चलती थी अतः इस सहयोग को समाप्त करना ही असहयोग कहलाया जो एक आन्दोलन के रूप में हुआ।

प्रश्न 2.
चौरी-चौरा काण्ड क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन अपने चरम पर था, इसी समय 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा गाँव में कांग्रेस की ओर से निकाले गए जुलूस को पुलिस ने रोकने का प्रयास किया। क्रुद्ध जनता ने सिपाहियों को थाने में विदेड़कर आग लगा दी। इसे ही चौरी-चौरा काण्ड कहते हैं।

प्रश्न 3.
जलियाँवाला बाग हत्या कांड कहाँ हुआ था?
उत्तर:
अमृतसर के जलियांवाला बाग में।

प्रश्न 4.
रोलेट एक्ट का सम्बंध किस पर प्रतिबन्ध से है?
उत्तर:
स्वशासन की मांग के संघर्ष पर तथा भारतीयों की राजनीतिक गतिविधियों पर।

प्रश्न 5.
प्रिंस ऑफ वेल्स भारत में कब आया?
उत्तर:
17 नवम्बर 1921

प्रश्न 6.
यंग इण्डिया क्या था?
उत्तर:
महात्मा गांधी द्वारा 1919 ई. में अहमदाबाद से प्रकाशित अंग्रेजी समाचार – पत्र।

प्रश्न 7.
9 अगस्त 1947 के दिन का महत्व बताइए।
उत्तर:
9 अगस्त 1947 को भारत छोड़ो आन्दोलन का विश्वविख्यात नारा दिया गया।

प्रश्न 8.
“मरो नहीं, मारो!’ का नारा किसने दिया?
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री ने।

प्रश्न 9.
“दिल्ली चलो” का नारा किसने दिया?
उत्तर:
सुभाष चन्द्र बोस ने।

प्रश्न 10.
“करो या मरो’ का नारा किसने दिया?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने।

प्रश्न 11.
“काकोरी कांड” स्मृति दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर:
9 अगस्त को।

प्रश्न 12.
“काकोरी कांड” स्मृति दिवस मनाने की परम्परा किसने प्रारम्भ की?
उत्तर:
भगत सिंह ने।

प्रश्न 13.
भारत कोकिला किसे कहा जाता है?
उत्तर:
सरोजिनी नायडू को।

प्रश्न 14.
केबिनेट मिशन भारत कब आया?
उत्तर:
1946 में।

प्रश्न 15.
गाँधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि से किसने संबोधित किया?
उत्तर:
सुभाष चन्द्र बोस ने।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन – भारत में अंग्रेजी सरकार भारतीयों के सहयोग से ही चलती थी। अंग्रेजी हुकूमत में विभिन्न सहयोगों को रोकना ही असहयोग आन्दोलन था। ब्रिटिश भारत की सभी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक संस्थाओं का बहिष्कार, जिससे सरकारी तंत्र ठप हो जाए, इस आन्दोलन का उद्देश्य था। बहिष्कार के पीछे गांधीजी की दृष्टि यह थी कि जनता के सहयोग से ही सरकार चलती है और इसे असहयोग के माध्यम से ही स्वराज देने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
चौरी-चौरा कांड पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
चौरी – चौरा कांड-उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक गाँव में 5 फरवरी, 1922 को एक घटना हुई। इस दिन असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के तहत कांग्रेस की ओर से जुलूस निकाला जा रहा था। इस जुलूस को पुलिस ने रोकने का प्रयास किया। कुछ लोगों ने सिपाहियों को खदेड़कर थाने में आग लगा दी। इस घटना में पुलिस के 22 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इसे चौरी-चौरा कांड कहा गया।

प्रश्न 3.
रौलट एक्ट क्या था? विवरण दीजिए।
उत्तर:
रौलट एक्ट – न्यायाधीश रौलट की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर आतंकवादी और अपराध अधिनियम बनाया गया, जिसे रौलट एक्ट कहते हैं। इस एक्ट का उद्देश्य किसी भी भारतीय को, किसी भी बहाने से दो वर्ष तक नजरबंद रखने, उनके नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने तथा स्वशासन के संघर्ष को दबाना था, जिसका सम्पूर्ण देश में विरोध किया गया।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने खेड़ा और अहमदाबाद में क्या किया?
उत्तर:
गाँधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए और इसी वर्ष इन्होंने साबरमती में अपना आश्रम बनाया। चम्पारन और खेड़ा में गाँधीजी ने किसानों के हित में काम किये तथा इन्होंने अहमदाबाद में मिल मजदूरों के हित में सत्याग्रह का उपयोग किया। सत्याग्रह के ये सीमित प्रयोग व्यापक प्रयोग की भूमिका मात्र थे।

प्रश्न 5.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकांड – ब्रिटिश सरकार ने 9 अप्रैल को पंजाब में रौलट एक्ट का विरोध करने वाले अमृतसर के प्रसिद्ध नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को बन्दी बनाकर अमृतसर से निष्कासित करने के आदेश दे दिये। सत्याग्रहियों द्वारा उनकी रिहाई के लिए अमृतसर में हड़ताल घोषित कर दी गई। 13 अप्रैल, 1919 के दिन अमृतसर के आस-पास के अनेक गाँव के लगभग 20,000 लोगं वार्षिक वैशाखी मेले में भाग लेने हेतु जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए।

इनमें से अनेक लोग अंग्रेज सरकार द्वारा लागू किए गये दमनकारी कानून का विरोध प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए। शहर में पहले से ही मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था। जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचकर मैदान से बाहर निकलने वाले समस्त रास्तों को बन्द करवा दिया तथा अपने सैनिकों द्वारा भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवा दीं। इस घटना में हजारों लोग मारे गये व अनेक घायल हुए।

प्रश्न 6.
खिलाफत आंदोलन क्या था?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन – प्रथम विश्वयुद्ध में टर्की राज्य अंग्रेजों के विरुद्ध, जर्मनी के साथ था अत: भारतीय मुसलमानों को आशंका थी कि युद्ध के बाद ब्रिटेन, टर्की के विरुद्ध कार्यवाही करेगा। युद्ध के दौरान भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि युद्ध समाप्ति के पश्चात ब्रिटेन टर्की के प्रति प्रतिशोध की नीति नहीं अपनाएगा और उसके साम्राज्य को छिन्न – भिन्न नहीं होने देगा परन्तु युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन ने अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया।

टर्की को साम्राज्य छिन्न – भिन्न होने के साथ ही खलीफा के पद के लिए टर्की के सुल्तान के स्थान पर शेख हसन के दावों को स्वीकार किया गया। ब्रिटेन के इस विश्वासघात से भारतीय मुसलमानों को तीव्र आघात पहुँचा और एक शक्तिशाली खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। इसका लक्ष्य, लौकिक और आध्यात्मिक संस्था के रूप में खलीफा का अस्तित्व बनाए रखना था।

प्रश्न 7.
गाँधी जी के स्वराज को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को लेकर गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा प्रारम्भ किया गया यह आन्दोलन पूर्व में चलाए गए असहयोग आन्दोलन से बिल्कुल भिन्न था। इस आन्दोलन के लिए अपनाई गई रणनीति भी पृथक थी। गाँधी जी ने आन्दोलन चलाने के तरीके पर विचार किया। पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, इस बार कानून का उल्लंघन करने का निश्चय किया गया। अपना संकल्प व्यक्त करने के लिए स्वतंत्रता प्रेमी भारतीयों को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन और सत्याग्रह आन्दोलन का आयोजन करना था।

प्रश्न 8.
लुई फिशर ने किसकी जीवनी लिखी?
उत्तर:
लुई फिशर ने महात्मा गाँधी की जीवनी “दि लाइफ ऑफ महात्मा गाँधी’ शीर्षक पर पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 9.
भारत में प्रिंस ऑफ वेल्स कब और कहाँ आया?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन सरकार की आशा से अधिक सफल हो रहा था। अत: सरकार ने क्रूर दमन करना आरम्भ कर दिया। सरकार ने राजसभा अधिनियम का खुलकर प्रयोग किया और आन्दोलन के नेताओं को गिरफ्तार करना आरम्भ कर दिया। कुछ स्थानों पर तो सरकार ने अत्यधिक पाशविक हिंसा का प्रयोग किया।

सरकार द्वारा वचन देने के उपरान्त भी तत्कालीन प्रमुख नेता अली बन्धुओं को गिरफ्तार कर लिया। अत: कांग्रेस ने अपनी बैठक में अली बन्धुओं की गिरफ्तारी की विरोध किया और गिरफ्तारी के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दिन सम्पूर्ण देश में हड़ताल का निश्चय किया। 17 नवम्बर 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स बम्बई आया और उसका हड़ताल से स्वागत किया गया।

प्रश्न 10.
यंग इंडिया पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
“यंग इण्डिया”, महात्मा गांधी द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्र था। इसका प्रारम्भ सन् 1919 में अहमदाबाद से किया गया था। यह अंग्रेजी में प्रकाशित पत्र था। इस समाचार – पत्र में प्रकाशित लेखों के आधार पर ब्रिटिश सरकार द्वारा गाँधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। इसी समाचार – पत्र के माध्यम से गाँधी जी ने वायसराय को 11 शर्ते मानने के लिए कहा। इन शर्तो को यदि सरकार स्वीकार कर ले तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 11.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अर्थ बताइए।
उत्तरं:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन – पूर्ण स्वराज्य की माँग को लेकर गाँधी जी के नेतृत्व में चलाया जाने वाला एक आन्दोलन था जो पूर्व में चलाए गए असहयोग आन्दोलन से बिल्कुल अलग था। इस आन्दोलन के लिए अपनाई गई रणनीति भी पृथक थी। इसमें पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, कानून का उल्लंघन करने का निश्चय किया गया। अपना संकल्प व्यक्त करने के लिए स्वतंत्रता प्रेमी भारतीयों को देश व्यापी विरोध प्रदर्शन और सत्याग्रह आन्दोलन का आयोजन करना था।

प्रश्न 12.
काकोरी कांड को समझाइए।
उत्तर:
काकोरी कांड – यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक मंशा से हथियार खरीदने के लिए ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो 9 अगस्त 1925 को घटी। इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउजर पिस्तौल काम में लाए गए। इसमें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अन्जाम दिया था। इसमें प्रमुख क्रान्तिकारी रामप्रसाद विस्मिल तथा असफाक उल्लाखाँ थे।

प्रश्न 13.
केबिनेट मिशन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
केबिनेट मिशन – ब्रिटेन में 26 जुलाई 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एंटली ने 15 फरवरी 1946 को भारतीय संविधान की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलंत समस्याओं पर भारतीयों से विचार-विमर्श के लिए केबिनेट मिशन’ को भारत भेजने की घोषणा की।

तीन ब्रिटिश केबिनेट सदस्यों को उच्च शक्ति सम्पन्न मिशनं, जिसमें भारत सजिव लार्ड पैथिक लॉरेन्स, बोर्ड ऑफ ट्रेड के अध्यक्ष सर स्टैफार्ड और नौ सेना प्रमुख ए. वी. अलेक्जेन्डर शामिल थे, 24 मार्च 1946 को दिल्ली पहुँचा। इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिए गए थे तथा इसका कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिए उपायों एवं सम्भावनाओं को तलाशना था।

प्रश्न 14.
लार्ड माउंट बेटन को भारत का वायसराय कब नियुक्त किया गया?
उत्तर:
फरवरी 1947 में वावेल के स्थान पर लार्ड माउंट बेटन को वायसराय नियुक्त किया गया। उन्होंने वार्ताओं के अन्तिम दौर का आह्वान किया। जब सुलह के लिए उनका यह प्रयास भी विफल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन उसका विभाजन भी होगा।

प्रश्न 15.
भारत का विभाजन किस योजना के अधीन हुआ?
उत्तर:
भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर हुआ। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत में पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्तोपनिवेश बना दिए जाएंगे और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन में गाँधी जी की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर
असहयोग आन्दोलन में गाँधी जी की भूमिका गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए ही भारतीय हिन्दू-मुस्लिम एकता में रुचि लेने लगे थे। उनके अनुसार लखनऊ समझौता हिन्दू-मुस्लिम एकता का मजबूत आधार नहीं बन पाया था। गाँधी जी के लिए “खिलाफत, हिन्दू-मुस्लिम एकता का ऐसा सुअवसर था, जो सैंकड़ों वर्षों में नहीं आएगा।”

नवम्बर 1919 में गाँधी जी खिलाफत सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। गाँधी जी ने कहा कि यदि ब्रिटेन ने तुर्की के साथ न्याय नहीं किया तो बहिष्कार और असहयोग प्रारम्भ किया जाएगा, परन्तु इसकी सफलता के लिए काँग्रेस का सहयोग अनिवार्य था। अतः सितम्बर 1920 में काँग्रेस को कलकत्ता अधिवेशन में अहिंसात्मक असहयोग की नई योजना स्वीकार की गई।

सन् 1921 भारतीय जनता के लिए असहयोग का संदेश लेकर आया। इसका उद्देश्य ब्रिटिश भारत की सभी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक संस्थाओं का बहिष्कार था, जिससे सरकारी तंत्रे ठप्प हो जाए। बहिष्कार के पीछे गाँधी जी की दृष्टि यह थी कि जनता के सहयोग से ही सरकार चलती है और इसे असहयोग का माध्यम से ही स्वराज देने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

गाँधी जी ने ‘केसर – ए – हिन्द’ की उपाधि वापिस कर दी। हजारों छात्रों ने स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी, जिनमें लाजपत राय, चितरंजन दास, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल राजेन्द्र प्रसाद आदि प्रमुख थे।

असहयोग आन्दोलन ने सम्पूर्ण भारत को नवीन ऊर्जा प्रदान की। इस विशाल आन्दोलन को देखकर सरकार आश्चर्यचकित और परेशान थी। महात्मा गाँधी की इस रणनीति का सामना करना ब्रिटिश सरकार के लिए कठिन हो गया था। सन् 1857 से अब तक ब्रिटिश सरकार ही राजनीतिक विषयों में नेतृत्व कर रही थी, अब गाँधी जी ने पहल प्रारम्भ की थी।

दिसम्बर 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन को व्यापक रूप प्रदान करने का निश्चय किया गया, गांधी जी को इसके सर्वाधिकार सौंपे गए। गाँधी जी ने। फरवरी 1922 को इस संदर्भ में वायसराय को एक चेतावनी देने वाला पत्र भी लिखा। बारदोली में इस आन्दोलन की पूरी तैयारी की जा चुकी थी किन्तु चौरी-चौरा कांड के कारण इसे बदलना पड़ा।

गांधी जी के द्वारा असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने के इस कदम का सभी कांग्रेस नेताओं ने विरोध किया। मोतीलाल नेहरू और लाजपत राय ने जेल से गांधी जी को पत्र लिखा और इसमें कहा कि एक स्थान के पाप के कारण सारे देश को दण्डित किया गया है। आन्दोलन स्थागित करने के दूसरे ही दिन गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। गाँधी जी को 6 वर्ष का कारावास हुआ।.

प्रश्न 2.
भारत छोड़ो आन्दोलन में गाँधी जी की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन में गाँधी जी की भूमिका – महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन का विश्वविख्यात नारा दिया। गांधी जी के आह्वान पर सम्पूर्ण भारत में भारत छोड़ो आन्दोलन एक जनसाधारण का राष्ट्रीय आन्दोलन बन गया। यह सविनय अवज्ञा आन्दोलन का एक मुख्य भाग था।

क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के विरोध में अपना तीसरा बड़ा जन आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में, अंग्रेजों भारत छोड़ों का नाम दिया गया था। गांधी जी को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ताओं द्वारा हड़तालों एवं तोड़फोड़ करके आन्दोलन चलाया जाता रहा।

गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समुचित अवसरको ध्यान में रखकर 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से ही अंग्रेजों को भारत छोड़ो व भारतियों को “करो या मरो’ का जनस्पर्शी और आन्दोलनकारी नारा दिया। रणनीति के तहत वे सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खाँ पैलेस में चले गए।

9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ सरोजनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खाँ पैलेस में, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया।

प्रश्न 3.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश सरकार ने 9 अप्रैल को अमृतसर के प्रसिद्ध नेता डॉ. सत्पाल और डॉ. किचलू को बन्दी बनाकर अमृतसर से निस्कासन के आदेश दिए। उन्होंने दिल्ली और पंजाब में महात्मा गांधी का प्रवेश भी निषिद्ध कर दिया। इस समय पंजाब का गवर्नर माइकेल ओ. डायर था। वह भारतीयों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का उपहास करता था।

पंजाब सरकार के इस आदेश से अमृतसर में उत्तेजना फैल गई। उनकी रिहाई के लिए अमृतसर में हड़ताल घोषित कर दी गई। इसका सामना करने के लिए सेना को बुलाया गया और 10 अप्रैल को सत्याग्रहियों पर गोलियाँ चलाई गईं।

13 अप्रैल को अनेक गिरफ्तारियाँ हुईं और सभा करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। किन्तु जनता को इसकी सूचना देने के लिए आवश्यक कार्यवाही नहीं की गई। 13 अप्रैल को ही वैशाखी के दिन जलियाँवाला बाग में एकत्र होती जनता को रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया।

जब लगभग 20 हजार लोग वहाँ एकत्र हो गए तब जनरल डायर के आदेश पर बिना चेतावनी के गोली चलना प्रारम्भ कर दिया और यह गोलीबारी, कारतूस समाप्त होने पर ही थमी। यह बाग चारों ओर से इमारतों से घिरा हुआ था और यहाँ से निकलने का मात्र एक ही रास्ता था। डायर के आदेशानुसार रातभर घायलों को कराहते हुए ही पड़े रहने दिया गया।

प्रश्न 4.
चौरी-चौरा कांड को समझाइए।
उत्तर:
चौरी-चौरा कांड दिसम्बर 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन को व्यापक रूप प्रदान करने का निश्चय किया गया, गाँधी जी को इसके सर्वाधिकार सौंपे गए। गाँधी जी ने 1 फरवरी 1922 को इस संदभ्र में वायसराय को एक चेतावनी वाला पत्र भी लिखा। बारडोली में इस आंदोलन की पूरी तैयारी की जा चुकी थी लेकिन 5 फरवरी 1922 को हुई चौरी-चौरा घटना ने सम्पूर्ण राजनीतिक स्थिति को पलट दिया।

असहयोग आन्दोलन अपने चरम पर था, इसी समय 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा ग्राम में कांग्रेस की ओर से निकाले गए जुलूस को पुलिस ने रोकने का प्रयास किया। क्रुद्ध जनता ने सिपाहियों को थाने में खदेड़कर आग लगा दी। इस घटना में पुलिस के 22 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। चौरी-चौरा घटना से गाँधी जी के अहिंसावादी हृदय को तीव्र आघात पहुँचा और उन्होंने हिंसा के प्रयोग के कारण आन्दोलन वापिस ले लिया। यद्यपि गाँधी जी की गिरफ्तारी हुई और अन्य असहयोग आन्दोलनकारियों को आन्दोलन वापिस लेने का अफसोस भी हुआ।

प्रश्न 5.
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में गाँधीजी के योगदान का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में गाँधीजी का योगदान:
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में गाँधीजी ने बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है।
1. भारत के राष्ट्रपिता – राष्ट्रवाद के इतिहास में प्रायः एक अकेले व्यक्ति को ही राष्ट्र निर्माता का श्रेय दिया जाता है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ जार्ज वाशिंगटन, इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी तथा वियतनाम को मुक्त कराने के संघर्ष के साथ हो ची चिन्ह का नाम जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार महात्मा गाँधी को भारतीय राष्ट्र का पिता माना जाता है क्योंकि ये स्वतन्त्रता संघर्ष में हिस्सा लेने वाले समस्त राष्ट्रवादी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली व सम्मानित थे।

2. देशहित में सर्वस्व न्योछावर – गाँधीजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया। उन्होंने देश को अंग्रेजी दासता से स्वतंत्रता दिलाने हेतु आमरण अनशन किया तथा जेल भी गये। अंग्रेजों द्वारा उन्हें अनेक प्रलोभन दिये जाने के बावजूद उन्होंने देशहित को सर्वोपरि रखा और अंग्रेजों को डटकर मुकाबला किया।

3. अहिंसात्मक आन्दोलनों का नेतृत्व – महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध अनेक अहिंसात्मक आन्दोलनों का नेतृत्व किया जिनमें असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, स्वदेशी आंदोलन व भारत छोड़ो आन्दोलन आदि प्रमुख हैं। महात्मा गाँधी ने अपने आन्दोलनों के माध्यम से भारतीय जनता को जागृत किया कि वे अंग्रेजों का साथ नहीं दें। यदि वे अंग्रेजों का साथ नहीं देंगे तो शीघ्र ही अंग्रेज भारत से बाहर होंगे।

4.  देश को सत्याग्रह एवं अंहिसारूपी हथियार प्रदान करना – गाँधीजी के दो प्रमुख हथियार थे – सत्याग्रह एवं अहिंसा। अपनी बात को मनवाने के लिए. गाँधीजी धरना देते थे या कुछ दिनों का उपवास रख लेते थे। उन्होंने कई बार आमरण अनशन किया। गाँधीजी को सम्पूर्ण विश्व के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता सत्याग्रह से मिलती थी।

इनके सत्याग्रहरूपी हथियार से अंग्रेज सरकार भी काँपती थी। इसके अतिरिक्त गाँधीजी अपनी बात को मनवाने के लिए कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करते थे, बल्कि अहिंसक तरीके से उसका विरोध करते थे। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि अंग्रेज सरकार हर प्रकार से शक्तिशाली है उससे लड़कर नहीं जीता जा सकता।

5. भारतीय राष्ट्रवाद से समाज के सभी वर्गों को जोड़ना – गाँधीजी ने स्वतंत्रता हेतु संचालित राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद से समाज के सभी वर्गों यथा-वकीलों, डॉक्टरों, जर्मीदारों, किसानों, मजदूरों, व्यापारियों, युवकों, महिलाओं, निम्न जातियों, हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों आदि को जोड़ने का कार्य किया अथवा उनमें परस्पर एकता स्थापित की। उन्होंने समस्त जनता को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़कर उसे जन आंदोलन बना दिया।

6. समाज सुधारक – गाँधीजी ने भारतवासियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अनेक कार्य किया। भारत की गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने को सन्देश दिया। समाज में छुआछूत, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने का प्रयास किया। अछूतों के उद्धार के लिए उन्हें हरिजन नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गाँधीजी ने गाँव-गाँव घूमकर लोगों को भाईचारे का संदेश दिया।

7.  हिन्दू मुस्लिम एकता के समर्थक – अंग्रेजों ने भारतीयों को एक-दूसरे से अलग रखने के उद्देश्य से अनेक प्रयास किये। हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता को कायम रखने के भरसक प्रयत्न किये, जिससे अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति सफल न हो सकी।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
चौरी-चौरा कांड कब हुआ?
(अ) 4 अगस्त 1920
(ब) 4 फरवरी 1922
(स):8 अगस्त 1942
(द) 6 दिसम्बर 1922
उत्तर:
(ब) 4 फरवरी 1922

प्रश्न 2.
महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन कब प्रारम्भ किया?
(अ) सितम्बर 1920
(ब) 8 अगस्त 1942
(स) 13 मार्च 1922
(द) 26 नवम्बर 1949
उत्तर:
(अ) सितम्बर 1920

प्रश्न 3.
“मरो नहीं मारो।” को क्रान्तिकारी नारा किसने दिया था?
(अ) लाल बहादुर शास्त्री
(ब) महात्मा गाँधी.
(स) बाल गंगाधर तिलक
(द) सावरकर
उत्तर:
(अ) लाल बहादुर शास्त्री

प्रश्न 4.
काकोरी कांड कब हुआ?
(अ) 9 अगस्त 1925
(ब) 9 अगस्त 1942
(स) 14 अगस्त 1947
(द) 16 जनवरी 1950
उत्तर:
(अ) 9 अगस्त 1925

प्रश्न 5.
8 अगस्त 1942 को गाँधी जी ने कौन-सा नारा दिया?
(अ) दिल्ली चलो।
(ब) करो या मरो
(स) अंग्रेजों भारत छोड़ो
(द) ब और स
उत्तर:
(द) ब और स

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के अतिवादी युग के नेतृत्वकर्ता थे
(अ) बाल गंगाधर तिलक
(ब) महात्मा गाँधी
(स) लाला लाजपत राय
(द) पं. जवाहरलाल नेहरू।
उत्तर:
(अ) बाल गंगाधर तिलक

प्रश्न 2.
सन् 1920 के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे
(अ) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ब) बाल गंगाधर तिलक
(स) पं. मोतीलाल नेहरू
(द) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(द) महात्मा गाँधी।

प्रश्न 3.
गाँधी युग का प्रथम आन्दोलन था
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन
(ब) व्यक्तिगत सत्याग्रह
(स) असहयोग आन्दोलन
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) असहयोग आन्दोलन

प्रश्न 4.
निम्न में से किस वर्ष गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आए
(अ) 1915
(ब) 1921
(स) 1932
(द) 1942.
उत्तर:
(अ) 1915

प्रश्न 5.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कहाँ हुआ था-
(अ) दिल्ली
(ब) लाहौर
(स) अमृतसर
(द) कलकत्ता।
उत्तर:
(स) अमृतसर

प्रश्न 6.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड हेतु गठित समिति के अध्यक्ष थे
(अ) लार्ड हण्टर
(ब) जनरल डायर
(स) इरविन
(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
उत्तर:
(अ) लार्ड हण्टर

प्रश्न 7.
नवम्बर 1919 में निम्न में से कौन खिलाफत सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गये
(अ) पं. जवाहर लाल नेहरू
(ब) स्वामी विवेकानंद
(स) महात्मा गाँधी
(द) लाला लाजपत राय।
उत्तर:
(स) महात्मा गाँधी

प्रश्न 8.
गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन के नकारात्मक पक्ष का प्रमुख कार्यक्रम था-
(अ) सरकारी पदों व उपाधियों का त्याग
(ब) चुनावों का बहिष्कार
(स) विदेशियों का भारत से बहिष्कार
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन के सकारात्मक पक्ष का प्रमुख कार्यक्रम था
(अ) राष्ट्रीय स्कूलों व कॉलेजों की स्थापना
(ब) स्वदेशी का व्यापक प्रचार
(स) अस्पृश्यता का अंत
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
हिन्दू-मुस्लिम एकता निम्न में से किस आन्दोलन की एक विशेष बात थी
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन
(ब) असहयोग आन्दोलन
(स) व्यक्तिगत सत्याग्रह
(द) सविनय अवज्ञा आन्दोलन।
उत्तर:
(ब) असहयोग आन्दोलन

प्रश्न 11.
चौरी-चौरा काण्ड किस वर्ष हुआ-
(अ) 1922 ई.
(ब) 1925 ई.
(स) 1928 ई.
(द) 1942 ई.
उत्तर:
(अ) 1922 ई.

प्रश्न 12.
‘एक वर्ष में स्वराज प्राप्ति का वचन देना न केवल अविवेकपूर्ण वरन् बालक सदृश घोषणा भी थी।” यह “कथन किस स्वतंत्रता सेनानी का है
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) सुभाषचन्द्र बोस
(स) लाला लाजपत राय
(द) भगत सिंह।
उत्तर:
(ब) सुभाषचन्द्र बोस

प्रश्न 13.
1929 ई. के लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष थे
(अ) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ब) महात्मा गाँधी
(स) भगत सिंह
(द) लाला लाजपत राय।
उत्तर:
(अ) पं. जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 14.
निम्न में से किस नदी के तट पर 31 दिसम्बर, 1929 की मध्य रात्रि को ‘वंदे मातरम्’ और ‘इन्कलाब जिन्दाबाद के नारों के मध्य राष्ट्रीय तिरंगा फहराया गया
(अ) झेलम नदी
(ब) गंगा नदी
(स) रावी नदी
(द) यमुना नदी।
उत्तर:
(स) रावी नदी

प्रश्न 15.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन किस वर्ष प्रारम्भ किया गया
(अ) 1922 ई.
(ब) 1925 ई.
(स) 1930 ई.
(द) 1942 ई.।
उत्तर:
(स) 1930 ई.

प्रश्न 16.
निम्न में से किस आन्दोलन ने भारतीय जनता को निर्भीक बना दिया
(अ) असहयोग आन्दोलन
(ब) सविनय अवज्ञा आन्दोलन
(स) खिलाफत आन्दोलन
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) असहयोग आन्दोलन

प्रश्न 17.
किस घटना से सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत हुई
(अ) जब गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ा।
(ब) जब गाँधीजी ने इरविन को पत्र लिखा
(स) जब गाँधी-अम्बेडकर समझौता हुआ
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) जब गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ा।

प्रश्न 18.
नमक कानून तोड़ते समय किसने यह कहा था कि, ‘सत्याग्रहियों की कभी पराजय नहीं होती, जब तक वे सत्य का परित्याग न कर दें।’
(अ) महात्मा गाँधी ने
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू ने
(स) पं. मोतीलाल नेहरू ने
(द) सरदार पटेल ने।
उत्तर:
(अ) महात्मा गाँधी ने

प्रश्न 19.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति हेतु जो समझौता हुआ, उसका नाम था
(अ) पूना समझौता
(ब) गाँधी – इरविन समझौता
(स) वायसराय समझौता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) गाँधी – इरविन समझौता

प्रश्न 20.
निम्न में से किस वर्ष लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ था?
(अ) सन् 1931
(ब) सन् 1932
(स) सन् 1940
(द) सन् 1942.
उत्तर:
(अ) सन् 1931

प्रश्न 21.
निम्न में से किस गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी सम्मिलित हुए
(अ) प्रथम गोलमेज सम्मेलन
(ब) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
(स) तृतीय गोलमेज सम्मेलन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन

प्रश्न 22.
निम्न में से किस वर्ष मैकडोनाल्ड पंचाट में भारत की दलित जातियों के लिए भी पृथक् निर्वाचन का प्रावधान किया गया-
(अ) 1932 ई.
(ब) 1938 ई.
(स) 1941 ई.
(द) 1942 ई.।
उत्तर:
(अ) 1932 ई.

प्रश्न 23.
25 सितम्बर, 1932 को पूना समझौते पर हस्ताक्षर किए
(अ) गाँधी – इरविन ने
(ब) अम्बेडकर – गाँधीजी ने
(स) हण्टर – लाला लाजपत राय ने
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) अम्बेडकर – गाँधीजी ने

प्रश्न 24.
निम्न में से किस वर्ष गाँधीजी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया
(अ) 1933 ई.
(ब) 1934 ई.
(स) 1940 ई.
(द) 1942 ई.।
उत्तर:
(अ) 1933 ई.

प्रश्न 25.
प्रथम व्यक्तिगत सत्याग्रही थे
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) विनोबा भावे
(स) भगत सिंह
(द) गोपाल कृष्ण गोखले।
उत्तर:
(ब) विनोबा भावे

प्रश्न 26.
निम्न में से किस वर्ष भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ
(अ) 1928 ई.
(ब) 1942 ई.
(स) 1946 ई.
(द) 1947 ई.।
उत्तर:
(ब) 1942 ई.

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के किस युग का नेतृत्व किया था ?
उत्तर:
अतिवादी युग का।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के नेतृत्व में कौन-कौन से आन्दोलन चलाए गए थे ?
उत्तर:

  1. असहयोग आन्दोलन
  2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन
  3. भारत छोड़ो आन्दोलन।

प्रश्न 3.
गाँधी युग का प्रथम आन्दोलन कौन-सा था ?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्व युद्ध कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
सन् 1914 में।

प्रश्न 5.
1919 ई. के किस अधिनियम ने ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
भारत सरकार अधिनियम ने।

प्रश्न 6.
गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब वापस लौटे ?
उत्तर:
सन् 1915 में।

प्रश्न 7.
भारत में गाँधीजी ने कहाँ अपना आश्रम बनाया ?
उत्तर:
अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे।

प्रश्न 8.
किन्हीं तीन स्थानों के नाम बताइए जहाँ गाँधीजी ने सत्याग्रह किया था ?
उत्तर:

  1. चंपारन (बिहार)
  2. खेड़ा (गुजरात)
  3. अहमदाबाद (गुजरात)।

प्रश्न 9.
गाँधीजी द्वारा चंपारन एवं खेड़ा सत्याग्रह किन लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए किया गया था ?
उत्तर:
निर्धन किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए।

प्रश्न 10.
महात्मा गाँधी ने मिल मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु कहाँ सत्याग्रह किया था ?
उत्तर:
अहमदाबाद में।

प्रश्न 11.
रौलट एक्ट क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा न्यायाधीश रौलट की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिसके प्रतिवेदन के आधार पर आतंकवादी और अपराध अधिनियम’ बनाया गया। इसे ही रौलट एक्ट नाम से जाना गया ?

प्रश्न 12.
रौलट एक्ट का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:

  1. भारतीयों को किसी भी बहाने से दो वर्ष तक बिना मुकदमा चलाए नजरबंद रखना।
  2. भारतीयों के नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करना।
  3. स्वशासन के संघर्ष को दबाना ।

प्रश्न 13.
रौलट सत्याग्रह किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
6 अप्रैल 1919 को सम्पूर्ण देश में रौलट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण हड़ताल हुई। इसे ही रौलट सत्याग्रह कहा गया।

प्रश्न 14.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कब, कहाँ हुआ ?
उत्तर:
13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था।

प्रश्न 15.
जलियाँवाला बाग अमृतसर में निहत्थे लोगों पर बिना चेतावनी के ही अंधाधुंध गोलियाँ चलवाने वाला अंग्रेज गर्वनर कौन था ?
उत्तर:
माइकेल. ओ. डायर।

प्रश्न 16.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में किस भारतीय ने ‘सर’ की उपाधि को त्याग दिया था ?
उत्तर:
रविन्द्रनाथ ठाकुर ने।

प्रश्न 17.
ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच हेतु किसकी अध्यक्षता में आयोग को गठन किया था ?
उत्तर:
लॉर्ड हण्टर की अध्यक्षता में।

प्रश्न 18.
कौन-कौन सी घटनाओं ने भारतीयों में अग्रेजों के प्रति असन्तोष में वृद्धि की ?
उत्तर:
रौलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकांड एवं हण्टर कमेटी की रिपोर्ट ऐसी घटनाएँ थी, जिन्होंने भारतीयों के मन में अंग्रेजों के प्रति असंतोष में वृद्धि की।

प्रश्न 19.
खिलाफत आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
लौकिक व आध्यात्मिक संस्था के रूप में खलीफा का अस्तित्व बनाए रखना।

प्रश्न 20.
गाँधीजी ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन क्यों किया ?
उत्तर:
गाँधीजी ने खिलाफत के प्रश्न को हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने का एक अच्छा अवसर समझा।

प्रश्न 21.
गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव कब और कहाँ रखा ?
उत्तर:
सितम्बर 1920 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में।

प्रश्न 22.
गाँधीजी के असहयोग आंदोलन प्रारम्भ करने के प्रस्ताव का किन-किन नेताओं ने विरोध किया ?
उत्तर:
विपिन चन्द्र पाल, एनीबेसेंट, चितरंजन दास व लाला लाजपतराय ने।

प्रश्न 23.
गाँधीजी खिलाफत के अध्यक्ष कब चुने गए ?
उत्तर:
नवम्बर, 1919 में।

प्रश्न 24.
उस स्थान का नाम लिखिए, जहाँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन दिसम्बर, 1920 में हुआ था ?
उत्तर:
नागपुर।

प्रश्न 25.
असहयोग आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत के समस्त राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करना जिससे कि सरकारी तंत्र ठप्प हो जाए।

प्रश्न 26.
असहयोग आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
जनवरी 1921 में।

प्रश्न 27.
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के दो पक्ष कौन – कौन से थे?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन के दो पक्ष इस प्रकार थे-

  1. नकारात्मक पक्ष
  2. सकारात्मक पक्ष।

प्रश्न 28.
असहयोग आन्दोलन के नकारात्मक कार्यक्रम’ पक्ष का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार के साथ असहयोग करके सरकारी तंत्र को ठप्प करना।

प्रश्न 29.
असहयोग आन्दोलन के नकारात्मक पक्ष के किन्हीं दो कार्यक्रमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सरकारी पदों एवं उपाधियों का त्याग करना
  2. चुनावों का बहिष्कार करना।

प्रश्न 30.
असहयोग आन्दोलन के किन्हीं दो रचनात्मक कार्यक्रमों का नाम लिखिए?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना
  2. अस्पृश्यता का अंत।

प्रश्न 31.
असहयोग आन्दोलन की विशेष बात क्या थी ?
उत्तर:
हिंदू – मुस्लिम एकता की स्थापना।

प्रश्न 32.
कौन से राष्ट्रवादी आन्दोलन में जनता ने निर्भीकता के साथ भाग लिया था ?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन में।

प्रश्न 33.
17 नवम्बर, 1921 को बम्बई में ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ का स्वागत हड़ताल से क्यों किया गया था ?
उत्तर:
अली बन्धुओं की गिरफ्तारी के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए।

प्रश्न 34.
सन् 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया ?
उत्तर:
चौरी – चौरा हत्याकांड के कारण।

प्रश्न 35.
चौरी-चौरा हत्याकांड कब व कहाँ हुआ ?
उत्तर:
5 फरवरी, 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा ग्राम में।।

प्रश्न 36.
गाँधीजी के अहिंसा सिंद्धात का राष्ट्रवादी आन्दोलन में प्रयोग का एक आदर्श उदाहरण लिखिए ?
उत्तर:
चौरी-चौरी हत्याकांड के कारण असहयोग आन्दोलन को स्थगित करना।

प्रश्न 37.
असहयोग आन्दोलन वापस लेने के पीछे गाँधीजी का क्या विचार था ?
उत्तर:
गाँधीजी को लगता था कि असहयोग आन्दोलन हिंसक होता जा रहा है तथा सत्याग्रहियों को व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 38.
गाँधीजी द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र का नाम लिखिए ?
उत्तर:
यंग इण्डिया।

प्रश्न 39.
असहयोग आन्दोलन की सबसे बड़ी दुर्बलता क्या थी ?
उत्तर:
धर्म का राजनीति में प्रवेश होना जिसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं हुए।

प्रश्न 40.
असहयोग आन्दोलन से भारतीय लघु उद्योगों के विकास का मार्ग किस प्रकार प्रशस्त हुआ ?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के प्रयोग के कारण भारतीय लघु उद्योगों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 41.
1928 की कलकत्ता कांग्रेस के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
पं. मोतीलाल नेहरू।

प्रश्न 42.
1928 का कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन किस मुद्दे पर विभाजित था ?
उत्तर:
1928 का कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन स्वतंत्रता बनाम औपनिवेशिक स्वराज्य के प्रश्न पर विभाजित था।

प्रश्न 43.
पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कांग्रेस के किस अधिवेशन में की गयी ?
उत्तर:
1929 के लाहौर अधिवेशन में।

प्रश्न 44.
दिसम्बर 1929 में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव लाहौर में कांग्रेस ने किसकी अध्यक्षता में पारित किया?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में।

प्रश्न 45.
दिसम्बर 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में क्या तय किया गया ?
उत्तर:
दिसम्बर 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में यह तय किया गया कि 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस रूप में मनाया जाएगा तथा उस दिन पूर्ण स्वराज्य के लिए संघर्ष की शपथ ली जाएगी।

प्रश्न 46.
1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन का क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज्य की माँग को . औपचारिक रूप से मान लिया गया था।

प्रश्न 47.
कांग्रेस के किस अधिवेशन में 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था ?
उत्तर:
लाहौर अधिवेशन में।

प्रश्न 48.
स्वतंत्र भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया था ?
उत्तर:
क्योंकि 26 जनवरी, 1930 को प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस दिन को चिरस्मरणीय बनाए रखने के लिए ही स्वतंत्र भारत में 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया।

प्रश्न 49.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की रणनीति क्या थी ?
उत्तर:
सभी तरीकों से भारतीयों को सभी स्तरों पर सरकार की अवज्ञा करना एवं सरकार के संचालन को कठिन एवं असंभव बनाना।

प्रश्न 50.
देश की एकजुटता के लिए गाँधीजी को कौन-सा शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया ?
उत्तर:
नमक।

प्रश्न 51.
नमक कानून तोड़ने के लिए गाँधीजी ने कहाँ की यात्रा की थी ?
उत्तर:
दांडी की यात्रा।

प्रश्न 52.
गाँधीजी की दांडी यात्री कब व कहाँ से प्रारम्भ हुई ?
उत्तर:
11 मार्च, 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से।

प्रश्न 53.
11 मार्च, 1930 को 75000 भारतीयों ने साबरमती में क्या प्रतिज्ञा की थी ?
उत्तर:
जब तक भारत स्वतंत्र नहीं हो जाता तब तक हम सरकार को शांति से नहीं बैठने देंगे।

प्रश्न 54.
नमक कानून तोड़ते समय गाँधीजी ने क्या कहा था ?
उत्तर:
नमक कानून तोड़ते समय गाँधीजी ने कहा था कि, सत्याग्रहियों की तब तक पराजय नहीं होती, जब तक वे सत्य का परित्याग न कर दें।

प्रश्न 55.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा के समय गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया।

प्रश्न 56.
गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम निर्धारित करते हुए क्या कहा था ?
उत्तर:
गाँधीजी ने कहा था कि गाँव-गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए। बहनों को शराब, अफीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरना देना चाहिए। विदेशी वस्त्रों को जला देना चाहिए।

प्रश्न 57.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन कब व कहाँ हुआ ?
उत्तर:
12 नवम्बर, 1930 को लंदन में। प्रश्न 58. प्रथम गोलमेन सम्मेलन के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कौन था ?
उत्तर:
रेम्जे मैकडोनाल्ड।

प्रश्न 59.
महात्मा गाँधी का स्वदेशी और खादी का प्रचार करवाने के पीछे क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनानी।

प्रश्न 60.
गाँधी इदूरविन समझौता कब हुआ ? इस समझौते की मुख्य बात क्या थी ?
उत्तर:
5 मार्च, 1930 को गाँधी इरविन समझौता हुआ। इस समझौते के माध्यम से गाँधी ने लंदन में आयोजित होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर अपनी सहमति प्रदान की थी।

प्रश्न 61.
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन कब व कहाँ हुआ ?
उत्तर:
7 सितम्बर, 1931 को लंदन में।

प्रश्न 62.
मेकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय में क्या प्रमुख प्रावधान किया गया था ?
उत्तर:
भारत की दलित जातियों के लिए पृथक् निर्वाचन का प्रावधान किया गया था।

प्रश्न 63.
कांग्रेस ने कौन-से गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था ?
उत्तर:
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में।

प्रश्न 64.
पूना समझौता कब व किसके मध्य हुआ ?
उत्तर:
26 सितम्बर, 1932 को महात्मा गाँधी और भीमराव अम्बेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ था।

प्रश्न 65.
कांग्रेस ने कब व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया था ?
उत्तर:
कांग्रेस ने 17 अक्टूबर, 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया था।

प्रश्न 66.
व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के प्रथम सत्याग्रही कौन थे ?
उत्तर:
विनोबा भावे।

प्रश्न 67.
गाँधीजी ने सामूहिक के स्थान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया ?
उत्तर:
सन् 1940 में गाँधीजी सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना व्यक्त करना चाहते थे, किन्तु ब्रिटिश सरकार की संकट की स्थिति से अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहते थे। इसलिए 17 अक्टूबर, 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारम्भ किया जो कि केवल प्रतीकात्मक विरोध था।

प्रश्न 68.
भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. क्रिप्स मिशन की असफलता से उत्पन्न निराशा।
  2. विस्थापित भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार।

प्रश्न 69.
भारत छोड़ो आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
9 अगस्त, 1942 को।

प्रश्न 70.
गाँधीजी के ‘करो या मरो’ नारे से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर:
गाँधीजी ने ‘करो या मरो’ के नारे से अभिप्राय था कि भारतीयों द्वारा स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयत्न किया जाना चाहिए किन्तु यह कार्यवाही हिंसात्मक न हो।

प्रश्न 71.
भारत छोड़ो आन्दोलन में भारत के किन-किन दलों ने भाग नहीं लिया ?
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन में मुस्लिम लीग एवं भारतीय साम्यवादी दलों ने भाग नहीं लिया था।

प्रश्न 72.
समाजवादी कांग्रेस के किन्हीं दो नेताओं का नाम लिखिए जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था? ।
उत्तर:

  1. जयप्रकाश नारायण
  2. राम मनोहर लोहिया।

प्रश्न 73.
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व बताइए।
उत्तर:
यद्यपि भारत छोड़ो आन्दोलन अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सका परन्तु इसने भारत में ऐसी अपूर्व जागृति उत्पन्न कर दी कि अब भारत पर लम्बे समय तक ब्रिटिश शासन असम्भव हो गया।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव – प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1. प्रथम विश्व युद्ध ने नई आर्थिक व राजनैतिक स्थिति पैदा कर दी थी।
  2. युद्ध के कारण रक्षा व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हुई जिसकी भरपाई युद्ध ऋणों व करों से की गई।
  3. युद्ध के दौरान देश में विभिन्न वस्तुओं की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई। 1913 से 1918 ई. के मध्य कीमतें लगभग दो गुनी हो गईं जिसके कारण जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उन्हें अपनी आमदनी से घरेलू आवश्यकताओं की वस्तुओं को खरीदना मुश्किल हो गया।
  4. अंग्रेजों ने गाँव के लोगों को जबरदस्ती सेना में भर्ती कर लिया जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रोष फैल गया।
  5. आर्थिक कठिनाइयों के कारण लोगों का जीवन स्तर निम्न होने से उन्हें अनेक बीमारियों ने घेर लिया जिनमें फ्लू एवं प्लेग की महामारी प्रमुख थी।
  6. उस समय देश में फैले हुए अकाल ने स्थिति को और अधिक उग्र बना दिया।
  7. युद्ध के प्रारम्भिक चरण में ब्रिटिश सरकार द्वारा जितनी तेजी से सैनिकों की भर्ती की गई, युद्ध के अन्तिम चरण में उतनी ही तेजी से छटनी भी की गई जिसके कारण सैनिक बेरोजगार हो गये। जनता में यह भावना उत्पन्न हुई कि सरकार को जनता की परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है।

प्रश्न 2.
रौलट सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
रौलट एक्ट के विरुद्ध भारतीय जनमानस की प्रतिक्रिया का वर्णन कीजिए। .
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने रौलट एक्ट पारित किया, जिसमें किसी भी भारतीय को किसी भी बहाने से दो वर्ष तक नजरबंद रखने, उनके नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने तथा स्वशासन के संघर्ष को दबाना था। इसकी भारतीय जनमानस में बहुत गम्भीर प्रतिक्रिया हुई। इसका सम्पूर्ण देश में विरोधस्वरूप सत्याग्रह किया गया। यह एक ऐसा कानून था जिसके तहत ब्रिटिश सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने एवं राजनीतिक केदियों कोदो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिक मिल गया।

इस एक्ट ने अपील, वकील एवं दलील की व्यवस्था का अन्त कर दिया। स्वशासन के संघर्ष को दबाने के कारण अंग्रेजों के इस कानून का सम्पूर्ण देश में भारतीयों ने विरोध किया। महात्मा गाँधी ने भी इस एक्ट के विरोध में अंग्रेजों को चेतावनी दी लेकिन इसके बावजूद रौलट बिल ने कानून का रूप ले लिया। फलतः सम्पूर्ण देश में सार्वजनिक हड़ताल के माध्यम से विरोध करने का निर्णय लिया गया। 6 अप्रैल, 1919 को सम्पूर्ण देश में शहरों और गाँवों में सभी जगह शान्तिपूर्ण हड़ताल हुई जो सफल रही। यह सत्याग्रह ही रौलट सत्याग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 3.
खिलाफत की समस्या क्या थी ? महात्मा गाँधी ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन क्यों किया ?
उत्तर:
खिलाफत की समस्या-प्रथम विश्वयुद्ध में टर्की अंग्रेजों के विरूद्ध जर्मनी के साथ था। इस युद्ध में टर्की को पराजय का सामना करना पड़ा। भारतीय मुसलमान नाराज थे क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने आश्वासन के बावजूद टर्की के सुल्तान के साथ उचित व्यवहार नहीं किया। टर्की के सुल्तान को विश्वभर के मुसलमानों का आध्यात्मिक नेता माना जाता था। टर्की के साम्राज्य को छिन्न – भिन्न कर दिया गया।

खलीफा के लिए टर्की के सुल्तान के स्थान पर शेख हसन के दावों को स्वीकार किया गया। इस प्रकार खलीफा को अपमानित किये जाने से भारतीय मुलसमानों में आक्रोश व्याप्त था। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक शक्तिशाली खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ किया जिसका उद्देश्य था लौकिक और आध्यात्मिक संस्था के रूप में खलीफा का अस्तित्व बनाए रखना।

महात्मा गाँधी द्वारा खिलाफत आन्दोलन का समर्थन करना – गाँधीजी ने खिलाफत के प्रश्न को हिंदू-मुस्लिम एकता बढ़ाने का एक श्रेष्ठ अवसर समझा। उन्होंने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया और हिन्दू मुस्लिम एकता को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का आधार बनाने का निश्चय किया। राष्ट्रीय आन्दोलन में खिलाफत आन्दोलन का बहुत अधिक महत्व था। इसे आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गति प्रदान की तथा हिंदू व मुसलमानों में एकता स्थापित की। मुसलमानों ने भी असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

प्रश्न 4.
गाँधीजी ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग की नीति क्यों अपनायी ?
उत्तर:
गाँधीजी का मत था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन उन्हीं के सहयोग से चल रहा है। यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो वर्ष भर के भीतर ही ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा और स्वराज्य की स्थापना हो जाएगी। असहयोग का विचार आन्दोलन केसे बन सकता है ? इस विषय  में गाँधीजी का सुझाव था कि यह आन्दोलन चरण बद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए।

सर्वप्रथम लोगों को सरकार द्वारा दी गई उपाधियों व पदों को त्याग करना चाहिए, सरकारी स्कूलों व कॉलेजों, सरकारी अदालतों, चुनावों तथा विदेशी माल का बहिष्कार करना चाहिए। तत्पश्चात राष्ट्रीय स्कूलों व कालेजों की स्थापना, स्वदेशी का प्रचार-प्रसार, निजी पंचायतों का गठन, चरखा व हथकरघा को प्रोत्साहन एवं अस्पृश्यता का अंत कर अंग्रेजों पर निर्भरता को समाप्त करना चाहिए।

प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक पक्षों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक पक्ष-असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक पक्ष निम्नलिखित थे–

  1. राष्ट्रीय स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना करना
  2.  स्वदेशी का व्यापक प्रचार – प्रसार
  3. पारस्परिक विवादों के निपटारे के लिए निजी पंचायतों का गठन
  4. अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत
  5. चरखा व हथकरघा को प्रोत्साहन।

असहयोग आन्दोलन के इस कार्यक्रम के माध्यम से एक ओर सामाजिक विषमता का अंत करने का प्रयास किया गया, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को राष्ट्रीय हित के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया। स्वदेशी, चरखा एवं हथकरघों द्वारा निर्धनता एवं बेरोजगारी से लड़ने के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था को विदेशी चंगुल से मुक्त करके, मजबूत बनाने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 6.
गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने का फैसला क्यों किया ?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी – चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी, 1922 की एक घटना ने गाँधीजी को असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने के लिए मजबूर कर दिया। इस दिन असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के तहत गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी ग्राम से कांग्रेस की ओर से जुलूस निकाला जा रहा था।

इस जुलूस को पुलिस ने रोकने का प्रयास किया। कुछ लोगों ने सिपाहियों को खदेड़कर थाने में आग लगा दी। इस घटना में पुलिस के 22 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गाँधीजी के अहिंसावादी हृदय को गहरा आघात लगा। उन्होंने हिंसा के प्रयोग के कारण असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने का फैसला किया।

प्रश्न 7.
असहयोग आन्दोलन को अचानक स्थगित किए जाने पर विभिन्न नेताओं की क्या प्रतिक्रिया रही ?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन के अचानक स्थगित किए जाने पर विभिन्न नेताओं की प्रतिक्रिया – गाँधीजी द्वारा चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने से कांग्रेस के सभी नेता नाराज हुए। उन्होंने इसे राष्ट्रीय अपमान समझा और इसका विरोध किया। पं. मोतीलाल नेहरू एवं लाला लाजपत राय ने जेल से ही गाँधीजी को पत्र लिखे जिनमें उन्होंने कहा कि किसी एक स्थान के पाप के कसूर के कारण सम्पूर्ण देश को दण्डित किया गया।” सुभाष चन्द्र बोस ने कहा कि ” जिस समय जनता का उत्साह अपने चरम पर था। उस समय पीछे हट जाने का आदेश देना राष्ट्रीय अनर्थ से कम नहीं था।” इसके अतिरिक्त चितरंजन दास, सी. राजगोपालाचारी जवाहरलाल नेहरू व अली बंधुओं ने भी गाँधीजी ने इस निर्णय की आलोचना की।

प्रश्न 8.
असहयोग आन्दोलन का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन का महत्व – असहयोग आन्दोलन का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है-

  1. जनता में चेतना एवं निर्भीकता का संचार होना – इस आन्दोलन ने जनता को निर्भीक बना दिया। वह ब्रिटिश शासन द्वारा दी जाने वाली सजा व यातनाओं को भुगतने के लिए पूरी तरह तैयार हो गयी।
  2. राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित करना – असहयोग के माध्यम से गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को जनआन्दोलन में परिवर्तित कर दिया। यह आन्दोलन उच्च वर्ग तक सीमित न रहकर गाँव – गाँव तक पहुँच गया।
  3. रचनात्मक कार्यक्रमों से देश को लाभ प्राप्त होना – असहयोग आन्दोलन के दौरान रचनात्मक कार्यक्रम राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों का संचालन, हथकरघा आदि से देश को विशेष लाभ प्राप्त हुआ।

प्रश्न 9.
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन एवं पूर्ण स्वराज्य की माँग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन एवं पूर्ण स्वराज्य की माँग -1928 ई. में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार को दी गई एक वर्ष की समय सीमा समाप्त होने के पश्चात् भी भारत को औपनिवेशिक स्वराज नहीं दिए जाने एवं अन्य कई घटनाओं के कारण दिसम्बर 1929 में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ जिसमें औपनिवेशिक स्वराज के लक्ष्य को कायरतापूर्ण बताकर पूर्ण स्वराज की माँग की गई। 31 दिसम्बर, 1929 को मध्य रात्रि को रावी नदी के तट पर ‘वंदे मातरम्’ और ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ के नारों के मध्य राष्ट्रीय तिरंगा फहराया गया। जवाहर लाल नेहरू ने अध्यक्ष के रूप में अपने भाषण में कहा कि मैं समाजवादी और गणतंत्रवादी हूँ। कांग्रेस ने आह्वान किया कि 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए। इसके पश्चात् प्रतिवर्ष यह दिन इसी प्रकार मनाया जाता है।

प्रश्न 10.
गाँधीजी की नमक यात्रा को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर:
गाँधीजी की नमक यात्रा – नमक कर को समाप्त करने की गाँधीजी की माँग को ब्रिटिश सरकार द्वारा नहीं माना गया। फलस्वरूप गाँधीजी ने 12 मार्च, 1930 को अपने 78 विश्वसनीय सहयोगियों के साथ प्रसिद्ध दांडी मार्च की शुरूआत की। यह यात्रा साबरमती में गाँधीजी के आश्रम से लेकर गुजरात के तटीय शहर दांडी तक 200 मील लम्बी थी।

6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी दांडी पहुँचे तथा समुद्री पानी को उबालकर नमक बनाकर उन्होंने नमक कानून को तोड़ा। नमक कानून तोड़ते समय गाँधीजी ने कहा था सत्याग्रहियों की कभी पराजय नहीं होती, जब तक वे सत्य का परित्याग न कर दें। इसके बाद भारत में उन सभी स्थानों पर नमक बनाया गया, जहाँ यह बनाया जाता था। कटकपुरी और बालासोर में यह आन्दोलन तीव्र हो गया।

प्रश्न 11.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कार्य योजना को बताइए?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कार्य योजना – गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम निर्धारित करते हुए कहा कि गाँव – गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए। बहनों को शराब, अफीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरना देना चाहिए। विदेशी वस्त्रों को जला देना चाहिए। गाँधीजी द्वारा नमक बनाने के बाद यह आन्दोलन पूरे उत्साह के साथ आगे बढ़ने लगा। गाँधीजी द्वारा प्रारम्भ सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कार्य योजना में निम्नलिखित बातें सम्मिलित थीं:

  1. नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ना।
  2. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना एवं स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना।
  3. महिलाओं द्वारा शराब व विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना देना।
  4. अंग्रेजों को सहयोग न करना।
  5. सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपनी नौंकरियों से त्याग-पत्र देना।
  6. जन सामान्य द्वारा सरकारी स्कूलों व कॉलेजों का बहिष्कार करना।
  7. प्रत्येक घर में चरखा कोतना एवं सूत बनाना आदि।

प्रश्न 12.
सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सविनय आंदोलन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. राष्ट्रव्यापी आन्दोलन – यह आन्दोलन दूसरा महत्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी आंदोलन था असहयोग आन्दोलन की तुलना में यह व्यापक था, इसमें जनता ने अधिक संख्या में भाग लिया था।
  2. राष्ट्रीय चेतना का विस्तार – नमक जैसे साधारण मुद्दे पर आंदोलन की सफलता भारतीय जनता की बढ़ती हुई राजनैतिक चेतना को दर्शाती है। इसमें मध्यम वर्ग, मजदूर और किसान सभी सम्मिलित हुए।
  3.  अहिंसात्मक आंदोलन में जनता की दक्षता – इस आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरुद्ध जनता अहिंसात्मक आंदोलन चलाने में दक्ष हो गयी थी। इसमें जनता ने अपनी श्रद्धा व निष्ठा का अपूर्व प्रदर्शन किया था।

प्रश्न 13.
गाँधी-इरविन समझौते के प्रमुख प्रावधान क्या थे? बताइए।
अथवा
दिल्ली समझौता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँधी-इरविन समझौता-प्रथम गोलमेज सम्मेलन असफल होने के बाद वायसराय लॉर्ड इरविन ने गाँधीजी को 19 फरवरी, 1931 को मिलने के लिए बुलाया। 5 मार्च, 1931 को गाँधीजी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ।
इसे दिल्ली समझौता’ भी कहा जाता है। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे:

  1. हिंसात्मक अपराध सिद्ध हो चुके राजनीतिक बंदियों को छोड़कर अन्य राजनीतिक बंदियों को मुक्त कर दिया जाएगा।
  2. सत्याग्रहियों की जब्त सम्पत्ति लौटा दी जाएगी।
  3. कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
  4. महात्मा गाँधी सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लेंगे।
  5. समुद्र तट से निश्चित दूरी पर रहने वाले लोगों को कर के बिना नमक एकत्रित करने का अधिकार होगा।
  6. विदेशी वस्त्रों व शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने का अधिकार दिया जाएगा।

प्रश्न 14.
अंग्रेज सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद द्वितीय गोलमेज सम्मेलन सफल क्यों नहीं हो सका ?
उत्तर:
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता – प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के उपरान्त द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की सफलता के लिए अंग्रेजों ने अत्यधिक प्रयास किये, इसके लिए उन्होंने गाँधीजी को रिहा कर दिया। 5 मार्च, 1931 को हुए गाँधी – इरविन समझौते के तहत गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया। 7 सितम्बर, 1931 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, इसमें गाँधीजी ने काँग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। यहाँ मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व जिन्ना ने किया।

अनेक रियासतों के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में सम्मिलित हुए। इस सम्मेलन के आरम्भ होते ही षड़यन्त्रों की शुरुआत हो गयी। एक ओर गाँधीजी ने केन्द्र एवं प्रान्तों में पूर्ण रूप से उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग रखी तो वही मुस्लिम लीग ने साम्प्रदायिक चुनाव की माँग रखी। इसके अतिरिक्त हिन्दू महासभा के नेता भी अपनी माँगों पर अड़े रहे। इस प्रकार बी. आर. अम्बेडकर, जिन्ना, हिन्दू महासभा आदि के विरोध के चलते द्वितीय गोलमेज सम्मेलन सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 15.
मैकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय एवं पूना समझौता को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
साम्प्रदायिकता व पूना समझौता का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मैकंडोनाल्ड का साम्प्रदायिक निर्णय ‘साम्प्रदायिक पंचाट’- ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त, 1932 को भारतीयों के लिए साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा की। इस पंचाट में पृथक् निर्वाचन पद्धति को दलितों पर भी लागू किया गया। पहले यह केवल मुसलमानों एवं सिखों पर ही लागू था। यह दलित वर्ग को हिंदुओं से अलग करने की चाल थी। महात्मा गाँधी ने दलित वर्ग को पृथक् निर्वाचन मण्डल दिए जाने के विरोध में यरवदा जेल (पूना) में 20 सितम्बर, 1932 को आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। इस कारण सम्पूर्ण देश की जनता में हलचल मच गयी।

पूना समझौता-दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल बनाने में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। मदनमोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास, सी. राजगोपालाचारी आदि ने अम्बेडकर से भेंट कर दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन की माँग पर बल न देने के लिए सहमत किया। वस्तुतः यह हिंदुओं के विरुद्ध हिंदुओं को लड़वाने की अंग्रेजी सरकार की चाल थी। 26 सितम्बर, 1932 को अम्बेडकर पृथक् निर्वाचन क्षेत्र की माँग पर बल न देने पर सहमत हो गए और इस मुद्दे पर गाँधी जी और उनके बीच समझौता हुआ। ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 16.
व्यक्तिगत सत्याग्रह पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तरे:
सन् 1940 में गाँधीजी सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना व्यक्त करना चाहते थे, किन्तु ब्रिटिश सरकार की संकट की स्थिति से अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहते थे। इसलिए 17 अक्टूबर, 1940 से व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया जो कि केवल एक प्रतीकात्मक नैतिक विरोध था। यह आन्दोलन पवनार (वर्धा के निकट) से प्रारम्भ किया गया। विनोबा भावे प्रथम सत्याग्रही बने। इनका पं. जवाहर लाल नेहरू ने अनुकरण किया। व्यक्तिगत सत्याग्रह का देशव्यापी

आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। ब्रिटिश सरकार ने लगभग 30,000 व्यक्तिगत सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इनमें विनोबा भावे, पं. जवाहर लाल नेहरू, राजगोपालाचारी, अरुणा आसक अली एवं सरोजिनी नायडू प्रमुख र्थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति के आग्रह पर ब्रिटिश सरकार ने व्यक्तिगत सत्याग्रहियों को जेल से मुक्त कर दिया। कांग्रेस कार्यसमिति ने भी युद्ध के संकट को देखते हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह को स्थगित कर दिया।

प्रश्न 17.
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व:
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं के अन्तर्गत स्पष्ट है

  1. जनता में जागृति उत्पन्न करना – भारत छोड़ो आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था – जनता में जागृति उत्पन्न करना एवं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध मुकाबला करने की भावना उत्पन्न करना आन्दोलन इस उद्देश्य को प्राप्त करने में बहुत हद तक सफल रहा। इस आन्दोलन ने लोगों में नवीन चेतना का उदय किया एवं अत्याचारों से निपटने की भावना का विकास किया।
  2. स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार करना – इस आन्दोलन ने भारत की स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार की। इस आन्दोलन से ब्रिटिश शासन के सम्मुख यह स्पष्ट हो गया कि अब वे अधिक दिनों तक भारत में शासन नहीं कर सकते।
  3. नौ सैनिक विद्रोह का होना – इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप ही 1946 ई. में नौ सेना का विद्रोह हुआ जिसमें भारत में ब्रिटिश शासन पर भयंकर चोट की।
  4. विदेशी जनमत का भारतीयों के पक्ष में होना – इसे आन्दोलन के परिणामस्वरूप ही द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमरीका व हालैण्ड का जनमत भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में हो गया और इंग्लैण्ड को विवश होकर भारत छोड़ना पड़ा।

प्रश्न 18.
भारत छोड़ो आन्दोलन की प्रमुख कमियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत छोड़ो आन्दोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका। क्यों ?
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन की प्रमुख कमियाँ: भारत छोड़ो आन्दोलन की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित थीं

  1.  व्यापक तैयारियों का अभाव – राष्ट्रव्यापी जन आन्दोलन के लिए व्यापक तैयारियों की आवश्यकता होती है। इस आन्दोलन को प्रारम्भ करने से पूर्व तैयारियाँ नहीं की गई थीं। इसलिए जब शासन द्वारा प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तब जनता हतप्रभ रह गई और आन्दोलन नेतृत्वविहीन हो गया।
  2. सम्पूर्ण प्रशासन का सरकार के प्रति वफादार रहना – देशी रियासतों के राजा, सेना, पुलिस, उच्च अधिकारी और कर्मचारी, सब आन्दोलन काल में सरकार के प्रति वफादारी निभाते रहे। अत: शासन का कार्य आराम से चलता रहा और सरकार पर जितना दबाव बनना चाहिए था, नहीं बन सका।
  3.  साधनों का अभाव – आन्दोलनकारियों की न तो कोई गुप्तचर व्यवस्था थी और न संचार – साधन थे। उनकी शक्ति और साधन सरकार की तुलना में बहुत कम थे इन कारणों से भी भारत छोड़ो आन्दोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका।

प्रश्न 19.
‘मुस्लिम लीग’ भारतीय साम्यवादी एवं डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत छोड़ो आन्दोलन से अलग क्यों रहे ? बताइए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग, भारतीय साम्यवादी एवं भीमराव अम्बेडकर भारत छोड़ो आन्दोलन से निम्नलिखित कारणों से अलग रहे

  1. मुस्लिम लीग – मुस्लिम लीग इस आंदोलन से पूरी तरह अलग रही क्योंकि उसके अनुसार इस आंदोलन का लक्ष्य भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना था। इसलिए यह आन्दोलन मुसलमानों के लिए घातक था।
  2. भारतीय साम्यवादी – भारतीय साम्यवादियों ने मुस्लिम लीग के मार्ग का ही अनुसरण किया तथा अंग्रेजों के युद्ध प्रयासों का समर्थन किया। इस प्रकार उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए घातक नीति अपनायी।
  3.  डॉ. भीमराव अम्बेडकर – डॉ. अम्बेडकर ने इस आन्दोलन को अनुनारदायित्वपूर्ण कार्य बताया।

प्रश्न 20.
खिलाफत आन्दोलन का क्या कारण था?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन का कारण:
प्रथम महायुद्ध में टर्की अंग्रेजों के विरुद्ध जर्मनी के साथ था। भारतीय मुसलमानों को यह आशंका थी कि युद्ध के बाद ब्रिटेन, टर्की के विरुद्ध कार्यवाही करेगा। युद्ध के दौरान भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि युद्ध समाप्ति के बाद ब्रिटेन, टर्की के विरुद्ध प्रतिशोध की नीति नहीं अपनायेगा तथा उसके साम्राज्य को छिन्न – भिन्न नहीं होने देगा, लेकिन युद्ध के बाद ब्रिटेन ने अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया तथा टर्की के साम्राज्य को न केवल छिन्न – भिन्न कर दिया बल्कि खलीफा के पद के लिए टर्की के सुल्तान के स्थान पर शेख हसन के दावे को स्वीकार किया गया, उसका प्रचार किया गया। ब्रिटेन के इस विश्वासघात से भारतीय मुसलमानों को गहरा आघात पहुँचा और एक शक्तिशाली खिलाफत आन्दोलन प्रारंभ हुआ जिसका लक्ष्य था ‘‘लौकिक और आध्यात्मिक संस्था के रूप में खलीफा का अस्तित्व बनाए रखना”।

प्रश्न 21.
गाँधी ‘सहयोगी’ से ‘असहयोगी’ क्यों बन गये?
उत्तर:
प्रारम्भ में गाँधीजी पूर्ण सहयोगी थे, उन्हें ब्रिटिश नागरिकता उसकी उदारता और न्यायप्रियता में पूर्ण विश्वास था। इस विश्वास के आधार पर गाँधी जी ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों को ब्रिटिश सरकार से तन, मन और धन से सहायता देने के लिए अनुरोध किया, किन्तु युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार के विश्वासघाती, उसकी दमनकारी नीति और भारतीय भावनाओं के प्रति उसकी उदासीनता ने गाँधीजी को ‘सहयोगी’ से ‘असहयोगी’ बना दिया।

मुख्यतः रौलट विधेयक, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड, माइकेल ओ डायर की पंजाब में दमनकारी नीति, मार्शल लॉ, हण्टर समिति की रिपोर्ट, जिसमें सरकारी अपराधों नजरअंदाज किया गया था और हत्यारों को छोड़ दिया गया था। साथ ही साथ खिलाफत के प्रश्न पर ब्रिटिश सरकार के विश्वासघाती कदमों ने गाँधी को सहयोगी से असहयोगी बनाया था।

प्रश्न 22.
असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत रचनात्मक कार्यक्रम का महत्व स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत रचनात्मक कार्यक्रमों का महत्व:

  1. असहयोग आन्दोलन का रचनात्क कार्यक्रम एक ऐसा पक्ष था जिसने इस आन्दोलन के परिणामों को स्थायित्व प्रदान किया।
  2. राष्ट्रीय स्कूलों व कॉलेजों की स्थापना, पारस्परिक समस्याओं के समाधान के लिए निजी पंचायतों आदि के माध्यम से एक ओर छुआछूत का अंत करने का प्रयास किया गया, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों के माध्यम से राष्ट्रीय हित के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया।
  3. स्वदेशी, चरखा और हाथकरघे द्वारा गरीबी ओर बेरोज़गारी से लड़ने के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था को विदेशी दासता से मुक्त कराने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 23.
‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
1. नेहरू प्रतिवदेन की औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग को स्वीकार न करना-1928 में नेहरू प्रतिवदेन में भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग की गई थी। इस माँग के साथ यह चेतावनी भी कांग्रेस ने सरकार को दे दी। थी कि यदि एक वर्ष के अन्दर ब्रिटिश सरकार ने औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग स्वीकार नहीं की तो वह पूर्ण स्वराज्य की माँग प्रस्तुत करेगी लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सुझावों व चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

2. पूर्ण स्वराज्य की माँग-ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य नहीं दिये जाने के कारण कांग्रेस ने सन् 1929 में कठोर रुख अपनाया और लाहौर अधिवेशन में इसके स्थान पर पूर्ण स्वराज्य की माँग की गई एवं 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का संकल्प लिया गया तथा इसके बाद प्रतिवर्ष यह इसी प्रकार मनाया जाता है।

3. देश की आन्तरिक स्थिति-इस समय भारत आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा था। श्रमिक और व्यापारी आदि सभी वर्ग असंतुष्ट थे। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के क्रान्तिकारी कार्यों तथा लाहौर षड्यंत्र केस के कारण भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रति असन्तोष बढ़ता जा रहा था। इस प्रकार सन् 1930 के आरंभ में सम्पूर्ण देश में असन्तोष का वातावरण था। उक्त कारणों से विवश होकर कांग्रेस ने गाँधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।

प्रश्न 24.
महात्मा गाँधी ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ क्यों आरंभ किया?
उत्तर:
गाँधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से प्रारम्भ किया

  1. भारतीय जनता को यह विश्वास हो गया था कि क्रिप्स मिशन को भारत भेजना एक राजनीतिक चाल थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण भारत में निराशा का वातावरण बना तथा भारत – ब्रिटिश सम्बन्धों पर तीव्र आघात हुआ।
  2. इस समय युद्ध के कुप्रभावों के कारण देश की आर्थिक स्थिति चिंताजनक थी।
  3. बर्मा पर जापान की विजय के पश्चात् जो भारतीय विस्थापित होकर आ रहे थे उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा था।
  4. भारतीयों को ब्रिटिशों पर विश्वास नहीं रहा क्योंकि जापान मलाया, सिंगापुर व बर्मा तक अंग्रेजों को परजित कर चुका था। सम्पूर्ण देश में जापान के आक्रमण का भय व्याप्त था। इस समय भय को कम करने, निराशा के वातावरण को समाप्त करने, जनता में उत्साह का संचार करने तथा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने आदि कारणों से प्रेरित होकर भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया गया।
  5. पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज था। वहां अंग्रेजों ने अनेक किसानों की भूमि पर अधिकार जमा लिया था।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे कौन-कौन सी परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं ? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे जिम्मेदार परिस्थितियाँ-असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे जिम्मेदार परिस्थितियाँ निम्नलिखित र्थी:
1. प्रथम विश्वयुद्ध द्वारा पैदा की गई परिस्थितियाँ – प्रथम विश्वयुद्ध 1914 ई. में 1918 ई. के मध्य लड़ा गया। युद्ध के कारण रक्षा व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हुई। इन खर्यों की भरपाई के लिए करों में वृद्धि की गयी।

युद्ध के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया तथा आयकर शुरू करें दिया गया। इन सब कारणों से लोगों की मुश्किलें बढ़ गयौँ। ग्रामीण क्षेत्रों में सिपाहियों की जबरन भर्ती के कारण खाद्य पदार्थों को भारी अभाव उत्पन्न हो गया था। दुर्भिक्ष एवं फ्लू की महामारी के कारण अनेक लोग मारे गए। लोगों को ऐसी उम्मीद थी कि विश्वयुद्ध की समाप्ति से उनकी मुसीबत कम होगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

2. गाँधीजी की दक्षिण अफ्रीका से वापसी एवं सत्याग्रह – महात्मा गांधी जनवरी 1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अहिंसा एवं सत्याग्रह का नया तरीका अपनाकर वहाँ की औपनिवेशिक सरकार से सफलतापूर्वक टक्कर ली। भारत में भी उन्होंने अनेक स्थानों, जैसे-चंपारन (बिहार) खेड़ा (गुजरात) एवं अहमदाबाद (गुजरात) आदि में सफलतापूर्वक सत्याग्रह का आयोजन किया। इन सत्याग्रहों ने असहयोग आन्दोलन को आधार प्रदान किया।

3. रॉलेट एक्ट – भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल ने 1919 में रॉलेट एक्ट कानून को पारित कर दिया। इस एक्ट के तहत पुलिस के अधिकारों में बहुत अधिक वृद्धि हुई। इस कानून के तहत सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने के लिए तथा राजनीतिक केदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था।

4. जलियाँवाला बाग हत्याकांड -13 अप्रैल, 1919 को वैशाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा बुलाई गयी। पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल. ओ. डायर ने जलियाँवाला बाग में एकत्रित जनता पर बिना चेतावनी दिए निहत्थी भीड़ पर गोलियाँ चलवाई, जिसमें 1000 से अधिक निर्दोष लोग मारे गए एवं अनेकों घायल हुए। जैसे ही इस हत्याकांड की खबर सम्पूर्ण देश में फैली तो लोग सड़कों पर आ गए।

प्रश्न 2.
रॉलेट एक्ट क्या था ? गाँधीजी द्वारा रॉलेट एक्ट का विरोध एवं ब्रिटिश सरकार की दमनकारी. नीति का वर्णन कीजिए ?
उत्तर:
रॉलेट एक्ट – देश में गाँधीजी के नेतृत्व में संचालित राष्ट्रीय आन्दोलन की बढ़ती हुई लोकप्रियता से ब्रिटिश सरकार चिंतित थी। अतः उसने आन्दोलन के दमन के लिए एक कठोर कानून बनाने का निश्चय किया। मार्च 1919 में भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउसिंल ने जल्दबाजी में एक कानून पारित किया जिसे रॉलेट एक्ट के नाम से जाना गया। इस कानून के तहत भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार को राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने एवं राजनीतिक केदियों को दो वर्ष तक बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद करने का अधिकार मिल गया।

गाँधीजी द्वारा रॉलेट एक्ट का विरोध-गाँधीजी रॉलेट एक्ट जैसे अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध अहिंसात्मक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे। अतः उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निश्चय किया। उन्होंने 6 अप्रैल 1919 को देश भर में एक हड़ताल करने का आग्रह किया। गाँधीजी के आग्रह पर देश के विभिन्न शहरों में रैलियों-जुलूसों का आयोजन किया गया।

रेलवे वर्कशॉप में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। दुकानों को बन्द कर दिया गया। शांतिपूर्ण तरीके से की गयी यह हड़ताल सफल रही। इस ‘रॉलेट सत्याग्रह’ के नाम से जाना गया। इस देशव्यापी हड़ताल में सम्पूर्ण देश में हिन्दू और मुसलमानों के मध्य राष्ट्रव्यापी एकता देखी गयी। हिन्दुओं, मुसलमानों एवं सिखों के मध्य एकता ब्रिटिश सरकार के लिए चिंता का विषय बन गयी।

ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति – गाँधीजी के आह्वान पर रॉलेट एक्ट के विरोध में लोगों द्वारा किये गये आन्दोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति अपनाई। अमृतसर में अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधीजी के दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 10 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में रॉलेट एक्ट के विरोध में एक शांतिपूर्ण जुलूस का आयोजन किया गया।

पुलिस ने इस शांतिपूर्ण जुलूस पर गोलियाँ चला दीं। ब्रिटिश सरकार के इस दमनकारी कदम के विरोध में उत्तेजित होकर लोगों ने बैंकों, डाकखानों एवं रेलवे स्टेशनों पर हमला करना प्रारम्भ कर दिया। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया तथा जनरल डायर ने सेना का नेतृत्व सँभाल लिया।

13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में वार्षिक वैशाखी मेले का आयोजन किया गया जिसमें अनेक लोग रॉलेट एक्ट का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए भी एकत्रित हुए। शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे लोगों पर जनरल डायर के निर्देश पर सैनिकों ने अंधाधुंध गोलाबारी कर दी जिसमें हजारों लोग मारे गए व अनेकों घायल हुए।

इसके पश्चात ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने 15 अप्रैल 1919 को पंजाब के 5 शहरों में सैनिक शासन लागू कर दिया। इस दौरान सभी स्थानों पर बर्बरतापूर्ण दमन किया गया। आम जनता को कोड़े लगाना, बेंत मारना, किसानों पर गोली चलाना एवं पेयजल, विद्युत की आपूर्ति को रोकना आदि ब्रिटिश सरकार का दिन-प्रतिदिन का कार्यक्रम बन गया।

प्रश्न 3.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन किन परिस्थितियों में चलाया गया ?
अथवा
नमक आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे कौन-कौन सी परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं ?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं नमक आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे जिम्मेदार परिस्थितियाँ:
1. साइमन कमीशन की असफलता – भारत में राष्ट्रवादियों की बढ़ती हुई गतिविधियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग का प्रमुख कार्य भारत में संवैधानिक कार्यशैली का अध्ययन कर उसके बारे में सुझाव देना था।

इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य न होने के कारण 1928 में इस कमीशन के भारत पहुँचने पर उसका स्वागत साइमन कमीशन वापस जाओ (साइमन कमीशन गो। बैक) के नारों से किया गया। इस तरह यह कमीशन भारतीय लोगों एवं नेताओं की अपेक्षा पर खरा नहीं उतरा।।

2. पूर्ण स्वराज की माँग – दिसम्बर 1929 में पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में काँग्रेस का लाहौर अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया। इस अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 ई. को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। परन्तु इस ओर बहुत ही कम लोगों का ध्यान गया। अत: महात्मा गाँधी को स्वतन्त्रता के इस अमूर्त विचार को दैनिक जीवन के ठोस मुद्दे से जोड़ने के लिए कोई और रास्ता ढूँढ़ना था।

3. गाँधीजी की ग्यारह माँगें – 31 जनवरी, 1930 ई. को गाँधीजी ने भारतीय जनता के साथ हो रहे अन्याय को समाप्त करने के लिए वायसराय लार्ड इरविन के समक्ष ग्यारह माँगों को प्रस्तुत करते हुए एक पत्र लिखा। इनमें एक प्रमुख माँग थी नमक पर लगाए गए कर को समाप्त करना। महात्मा गाँधी का यह पत्र एक चेतावनी की तरह था ।

उनका कहना था कि यदि 11 मार्च, 1930 तक उनकी माँगें नहीं मानी गर्दी तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आन्दोलन छेड़ देगी। लार्ड इरविन ने गाँधीजी की शर्ते मानने से इनकार कर दिया। फलस्वरूप गाँधीजी ने अपने विश्वासपात्र 78 स्वयं सेवकों के साथ साबरमती स्थित गाँधी आश्रम से डांडी तक नमक यात्रा की। गाँधीजी ने डांडी पहुँचकर समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना प्रारम्भ कर दिया।

4. आर्थिक कारण-1929 ई. की आर्थिक महामंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था विशेषकर कृषि पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ा। कृषि उत्पादों की कीमतें बहुत अधिक गिर गयीं। वहीं दूसरी ओर औपनिवेशिक सरकार ने लगान में वृद्धि कर दी जिससे किसानों को अपनी उपज बेचकर लगान चुकाना भी कठिन हो गया। व्यापारी वर्ग औपनिवेशिक सरकार के व्यापार नियमों से परेशान था। इन सब कारणों ने आन्दोलन करने के मार्ग को प्रशस्त कर दिया।

प्रश्न 4.
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के क्या कारण थे ? इस आन्दोलन के महत्त्व को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन:
क्रिप्स मिशन के वापस लौटने के पश्चात् महात्मा गाँधी ने एक प्रस्ताव तैयार कर अंग्रेजों से भारत छोड़ने की अपील की। 8 अगस्त, 1942 ई. को कांग्रेस की अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बम्बई अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अन्त भारत के लिए और मित्र राष्ट्रों के आदर्श के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इस पर ही स्वतंत्रता तथा प्रजातंत्र की सफलता निर्भर है। इसी के साथ गाँधीजी ने स्वतंत्रता के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया। 9 अगस्त 1942 से भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत हुई।

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण:
1. सुसंगठित योजना का अभाव – इस आन्दोलन के पीछे एक सुसंगठित योजना का अभाव था। गाँधीजी को यह विश्वास था कि जन आन्दोलन की चेतावनी द्वारा सरकार तुरन्त समझौते के लिए तैयार हो जाएगी लेकिन गाँधीजी ऐसा कोई समझौता नहीं कर पाए तथा कुछ करने से पहले ही उन्हें तथा अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अतः जनता हतप्रभ रह गई और आन्दोलन नेतृत्वविहीन हो गया।

2. भारतीयों द्वारा आन्दोलन को पूर्ण सहयोग न दिया जाना – देशी रियासतों के राजा, सेना, पुलिस, उच्च सरकारी अधिकारी और कर्मचारी आदि सभी आन्दोलन काल में सरकार के प्रति वफादारी निभाते रहे। अतः ब्रिटिशों का शासन कार्य सुचारु ढंग से चलता रहा, सरकार पर जितना दबाव बनना चाहिए था नहीं बन सका।

3. अंग्रेज शासन की तुलना में आन्दोलनकारियों के पास शक्ति और साधनों की कमी होना – आन्दोलनकारियों की न तो कोई गुप्तचर व्यवस्था थी और न संचार साधन थे। उनकी शक्ति और साधन सरकार की तुलना में बहुत कम थे। इसके अतिरिक्त आन्दोलनकारियों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी।

4. सरकार की दमनकारी नीति – आन्दोलनकारियों की तुलना में सरकार की शक्ति कहीं अधिक थी। सरकार ने आसानी से आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनचक्र का सहारा लिया तथा सफलता भी प्राप्त की।

भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्त्व:

  1. जन जागृति उत्पन्न होना – यद्यपि इस आन्दोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत नहीं छोड़ा किन्तु भारत में जन-जागृति की ऐसी लहर उत्पन्न हुई कि ब्रिटेन के लिए भारत पर लम्बे समय तक शासन करना असंभव हो गया। इस आन्दोलन ने देश के अनेक भागों में ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया।
  2. स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार करना – इस आन्दोलन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी। ब्रिटिश शासन के सम्मुख यह स्पष्ट हो गया कि अब वे अधिक दिनों तक भारत में शासन नहीं कर सकते हैं।
  3. समझौता संबंधी बातचीत की शुरुआत – इस आन्दोलन तथा इससे उत्पन्न चेतना के दवाबों के कारण ही ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्या हल करने के लिए भारतीयों से समझौता संबंधी बातचीत की प्रक्रिया आरंभ कर दी।
  4. विश्व जनमत पर प्रभाव – द्वितीय महायुद्ध के बाद अमेरिका और इंग्लैण्ड में भी जनमत भारतीयों के पक्ष में हो गया तथा अंग्रेज सरकार को अन्ततः भारत छोड़ना ही पड़ा।

प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन के कारण, कार्यक्रम एवं महत्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आंदोलन प्रारम्भ होने का प्रमुख कारण असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
1.  माण्टेस्यू – चेम्सफोर्ड सुधारों से असंतोष – प्रथम महायुद्ध के दौरान भारतीयों ने तन एवं मन, धन से अंग्रेजों की सहायता की थी। अंग्रेजों ने भी भारतीयों की इस सहायता की प्रशंसा की। अंग्रेज यह भी घोषणा कर रहे थे कि युद्ध ‘विश्व में प्रजातंत्र को सुरक्षित रखने के लिए लड़ा जा रहा था।

राष्ट्रपति विल्सन ने अपने चौदह सिद्धान्तों में आत्मनिर्णय के सिद्धान्त की बात कही थी और यह आशा जागृत की थी कि युद्ध के बाद उनके देश में स्वशासित संस्थाओं की स्थापना की जायेगी, लेकिन जो सुधार योजनाएँ जुलाई 1918 में प्रकाशित की गईं उनसे भारतीय न केवल असन्तुष्ट हुये बल्कि निराश भी हुये।

2. आर्थिक कठिनाइयाँ – भारतीयों को 1917 और 1920 के दौरान अनेक प्रकार की आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इससे उनमें असंतोष की भावना जागृत हुई। सर्वप्रथम युद्ध के प्रयासों के कारण कृषि विकास की ओर ध्यान नहीं दिया गया था। जिससे अनाज की कीमतें बहुत बढ़ गईं। दूसरे, अंग्रेजों का व्यवहार बिहार के चम्पारन और गुजरात के खेड़ा किसानों के प्रति दमनकारी था।

3. रौलट विधेयक – प्रथम विश्वयुद्ध के संकट का सामना करने के लिये जो अस्थायी विशेषाधिकार ब्रिटिश नौकरशाही को दिये गये थे। वह युद्ध के बाद भी उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थी बल्कि क्रान्तिकारियों का सफाया करने के लिए तथा सामान्य रूप से भय उत्पन्न करने के लिये विशेषाधिकार अपने पास रखना चाहती थी।

इस उद्देश्य को प्राप्त करने लिए जस्टिस सिडनी रौलटे समिति की सिफारिशों के आधार पर केन्द्रीय व्यवस्थापिका में दो विधेयक प्रस्तुत किये गये जो रौलट विधेयकों के नाम से प्रसिद्ध हैं। विधान मण्डल में गैर सरकारी सदस्यों ने एकमत से इन विधेयकों का विरोध किया किन्तु सरकारी बहुमत के कारण इनमें से एक विधेयक पास हो गया। जब संवैधानिक प्रतिरोध बेअसर रहा तो गाँधीजी ने सत्याग्रह शुरू करने का सुझाव दिया।

4. जलियाँवाला बाग हत्याकांड – 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में अमानुषिक हत्याकाण्ड हुआ। जनरल डायर ने बिना ‘चेतावनी दिये निहत्थे पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों पर उस समय तक गोली चलाई जब तक बारूद समाप्त नहीं हो गया। यह सम्पूर्ण काण्ड इतनी निर्दयता से किया गया कि डायर ने घायलों को बाग में तड़पने के लिए छोड़ दिया। जनरल डायर ने यह सम्पूर्ण काण्ड जान-बूझकर आतंक और भय पैदा करने के लिए किया। इस काण्ड ने ऐसे असंतोष को जन्म दिया जो असहयोग आंदोनल के रूप में प्रकट हुआ।

5. सरकार की दमनकारी नीति एवं अमानवीय व्यवहार – पंजाब में मार्शल लॉ लगने पर प्रशासन ने लोगों पर जो अत्याचार ढाये उसका उदाहरण विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिलता। लोगों को अनेक प्रकार के अपमानों और तिरस्कारों को सहन करना पड़ा, जो कि असहयोग आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ।

6. हण्टर कमेटी की रिपोर्ट से निराशा – पंजाब की घटनाओं की जांच – पड़ताल के लिए जनता के दबाव में अंग्रेज सरकार ने लार्ड हण्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। हण्टर समिति ने अधिकारियों के नृशंस कार्यों पर पर्दा डालने का प्रयास किया। हत्याकांड की जाँच हेतु गठित ‘हण्टर समिति’ की कार्यवाही से सभी राष्ट्रवादी बहुत क्रोधित थे। महात्मा गाँधी भी हण्टर कमेटी की पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट से दुखी हुए और वे सरकार के असहयोगी बन गये।

7. खिलाफत के प्रश्न पर मुसलमानों में असंतोष – मुसलमानों के खलीफा टर्की के सुल्तान के प्रति ब्रिटिश सरकार की क्रूर नीति से भारतीय मुसलमान न केवल असंतुष्ट थे बल्कि उत्तेजित भी हो रहे थे। उन्होंने अपने आपको खिलाफत सम्मेलन में संगठित किया। 24 दिसम्बर, 1919 को दिल्ली में हिन्दू – मुसलमानों की एक सभा आयोजित की गई।

इस सभा के लिए महात्मा गाँधी को अध्यक्षता करने के लिये निमंत्रित किया गया। यह पहला अवसर था कि मुस्लिम सभा के लिये एक हिन्दू को अध्यक्ष पद के निमन्त्रित किया गया था। गाँधीजी ने, जो पहले से हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्के समर्थक थे, इस अवसर को हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये उपयुक्त अवसर समझा।

असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम:
(I) रचनात्मक कार्यक्रम – असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रम की प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं-

  1. राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करना
  2. पारस्परिक विवादों के हल के लिए निजी पंचायतों का गठन करना
  3. स्वदेशी का व्यापक प्रचार करना
  4. चरखा व हथकरघा को प्रोत्साहन प्रदान करना
  5. अस्पृश्यता (छुआछूत) का अन्त करना।

(II) असहयोग आन्दोलन का नकारात्मक कार्यक्रम – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित की गई थीं

  1. सरकारी पदों तथा उपाधियों का त्याग करना
  2. सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का बहिष्कार करना
  3. चुनावों का बहिष्कार करना
  4. न्यायालयों का बहिषकार करना
  5. विदेशी माल का बहिष्कार करना आदि।

असहयोग आन्दोलन का महत्व:
1. जनता में चेतना एवं निर्भीकता का संचार – असहयोग आन्दोलन ने जनता को निर्भीक बना दिया। जनता शासन द्वारा दी जाने वाली सजा और यातनाओं को भुगतने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई।

2. राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन में परिवर्तित करना – असहयोग के माध्यम से गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया। अब तक देशभक्ति और राष्ट्रीयता कुछ गिने – चुने लोगों की विरासत समझी जाती थी। महात्मा गाँधी और असहयोग आन्दोलन के प्रभाव से वह सर्वसाधारण तक पहुँच गई।

3. आन्दोलन के परिणामों को स्थायित्व प्रदान करना – आन्दोलन के दौरान रचनात्मक कार्यक्रम, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं का संचालन, विदेशी के स्थान पर स्वदेशी, चरखा व हथकरघा आदि से देश को विशेष लाभ प्राप्त हुआ। इसने आंदोलन के परिणामों को स्थायित्व प्रदान किया।

4. सामाजिक विषमता, गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का प्रयास – आंदोलन के रचनात्मक कार्यक्रम के माध्यम से एक ओर सामाजिक विषमता का अन्त हुआ तो दूसरी ओर राष्ट्रीय हित के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि असहयोग आन्दोलन ने अपने कार्यक्रमों से भारतीय जनता को एक साथ अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खड़ा करने का कार्य किया।

प्रश्न 6.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारणों, कार्यक्रम एवं प्रभाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण:
1. औपनिवेशिक स्वराज्य की माँग पर ध्यान न देना – नेहरू प्रतिवेदन, 1928 में भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई। कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से नेहरू प्रतिवेदन को पूर्ण रूप से स्वीकार करने को कहा तथा साथ ही यह चेतावनी भी दी कि यदि एक वर्ष के अन्दर ब्रिटिश सरकार ने औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग स्वीकार नहीं किया तो वह पूर्ण स्वराज्य की माँग प्रस्तुत करेगी। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सुझावों एवं चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

2. पूर्ण स्वराज्य की माँग – ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य नहीं दिये जाने तथा अन्य कई घटनाओं के कारण दिसम्बर 1929 में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन प्रारंभ हुआ, जिसमें पूर्ण स्वराज्य की माँग की गई। 31 दिसम्बर, 1929 की मध्य रात्रि को रावी नदी के तट पर ‘वन्दे मातरम्’ और ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारों के मध्य राष्ट्रीय तिरंगा फहराया गया।

3. देश की आन्तरिक स्थिति – इस समय सम्पूर्ण विश्व के समान भारत भी आर्थिक मन्दी के दौर से गुजर रहा था। श्रमिक तथा व्यापारी सभी असंतुष्ट थे। लाहौर षड्यंत्र अभियोग के कारण भी भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा था।

4. गाँधीजी की ग्यारह शर्तों पर ध्यान न देना – यद्यपि 14 – 16 फरवरी, 1930 को साबरमती में कांग्रेस कार्यकारिणी ने गाँधीजी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करने के सम्पूर्ण अधिकार दे दिये थे, तथापि गाँधी ने सरकार को एक और अवसर प्रदान किया। गाँधीजी ने अपने साप्ताहिक पत्र ‘यंग इण्डिया’ में लिखे एक लेख में वायसराय लार्ड इरविन को ग्यारह शर्तों के मानने के लिए कहा।

ब्रिटिश सरकार ने इन माँगों पर ध्यान देना तो दूर, कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियाँ प्रारम्भ कर दीं। ऐसी स्थिति में आंदोलन आरंभ करना आवश्यक हो गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम गाँधीजी से 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा का प्रारंभ करते हुए सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ किया। इसके प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार थे-

  • गाँव – गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए
  • बहनों को शराब, अफीम और विदेशी पकड़े की दुकानों पर धरना देना चाहिए
  • विदेशी वस्त्रों को जला दिया जाये
  • विदेशी माल का बहिष्कार किया जाये,
  • सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र दिया जाये,
  • सरकारी स्कूलों व कॉलेजों का बहिष्कार किया जाये,
  • किसानों को लगान देना बन्द कर देना चाहिए,

इस आन्दोलन में उक्त समस्त कार्यक्रमों को जोश – खरोश के साथ अपनाया गया। महिलाओं और किसानों की इसमें । व्यापक सहभागिता रही।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रभाव:

  1. राष्ट्रीय आन्दोलन को व्यापक बनाना – असहयोग आन्दोलन की तुलना में इस आन्दोलन में जनता ने अधिक संख्या में भाग लिया।
  2. भारतीय राष्ट्रीय चेतना का प्रसार – नमक जैसे मुद्दे को लेकर चलाया गया यह आन्दोलन आशा से भी अधिक सफल रहा। इससे भारतीय राष्ट्रीय चेतना का अत्यधिक प्रसार हुआ।
  3. राष्ट्रीय आन्दोलन में सभी वर्गों का समावेश – इस आंदोलन में मध्यम वर्ग, मजदूर वर्ग और किसान भी सम्मिलित थे। इस प्रकार यह जन-जन का आंदोलन था।
  4. अहिंसा की शक्ति का व्यावहारिक प्रयोग – सविनय अवज्ञा आन्दोलन राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में सफल रहा। अब सरकार की नीतियों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा तथा अहिंसात्मक आंदोलन चलाने में जनता कुशल हो गयी थी। इसलिए आंदोलन के दौरान जनता ने दमने की प्रतिक्रिया में हिंसात्मक कार्यवाही नहीं की।
  5. कृषकों में नवीन चेतना का जन्म – सविनय अवज्ञा आन्दोलन में कृषकों ने अपना सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। कृषकों ने जमींदारों व ब्रिटिश अधिकारियों को लगान देना बंद कर दिया।
  6. महिलाओं में जागृति-सविनय अवज्ञा आन्दोलने में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। वे घर से बाहर निकलीं। उन्होंने जुलूसों में भाग लिया, नमक बनाया एवं विदेशी वस्त्रों तथा शराब दुकानों पर विरोध प्रदर्शन किया।

प्रश्न 7.
असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी ने भारत में अनेक प्रकार के अहिंसक आन्दोलनों का संचालन किया। वस्तुत:
1920 से 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास गाँधीजी के सत्याग्रह आन्दोलनों का इतिहास है। असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका

(1) काँग्रेस पार्टी को सुव्यवस्थित संगठन प्रदान करना – गाँधीजी के नेतृत्व में दिसम्बर 1920 के नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस संगठन को नया संविधा देकर उसके ढांचे को व्यवस्थित किया गया। कांग्रेस को एक ठोस एवं राजनैतिक संगठन में परिवर्तित किया जिसमें 15 सदस्यों की एक कार्यकारिणी समिति, 350 सदस्यों की एक अखिल भारतीय समिति और ऐसी ही प्रान्तीय समितियों की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार गाँधीजी ने इन आन्दोलनों के दौरान कांग्रेस को मजबूत करने का कार्य किया।

(2) कांग्रेस को गतिशील एवं क्रांतिकारी संस्था बनाना – असहयोग आन्दोलन ने कांग्रेस के स्वरूप एवं स्वभाव में मूलभूत परिवर्तन कर दिया। अब कांग्रेस एक गतिशील और क्रान्तिकारी संस्था बन गई। गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक क्रान्तिकारी स्वरूप प्रदान किया। अहसयोग, सविनय अवज्ञा व भारत छोड़ो आन्दोलनों में ब्रिटिश सरकार की सत्ता को मानने से इन्कार करना, अत्याचारी कानूनों का विरोध करना, बहिष्कार व स्वदेशी का सहारा लेना साधारण सी बात हो गई। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना कांग्रेस का एक उद्देश्य बन गया।

(3) राष्ट्रीय भावनाओं का विकास करना – गाँधीजी ने इन आंदोलनों के माध्यम से जनता में राष्ट्रीय भावनाओं का विकास किया। भारत के समस्त निवासियों को उन्होंने एक झंडे के अधीन ला खड़ा किया। स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम भारतीयों के लिए राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गया। चरखा एवं खादी राष्ट्रीय चिन्ह बन गये। खादी स्वाधीनता के सिपाहियों की पोशाक बन गई। स्वदेश प्रेम की कोने-कोने में गूंज होने लगी।

(4) राष्ट्रीय आन्दोलन को लोकप्रिय बनाना – गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को न केवल क्रान्तिकारी बनाया बल्कि उसे लोकप्रिय भी बनाया। उन्होंने केवल नगरों में ही जागृति पैदा नहीं की, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी जागृति उत्पन्न कर दी।

(5) राष्ट्रीय आन्दोलन को निश्चित उद्देश्य प्रदान करना – गाँधीजी से पूर्व के राष्ट्रीय नेता स्वतंत्रता के इच्छुक थे, परन्तु उनके पास निश्चित कार्यक्रम का अभाव था। गाँधीजी ने पहली बार राष्ट्रीय उद्देश्य प्रदान किये। उनकी प्राप्ति के लिए ऐसे साधन प्रस्तुत किये जिनमें उदारवादियों, अतिवादियों एवं क्रान्तिकारियों के साधनों का समन्वय देखने को मिलता था।

(6) आम जनता में साहस, निडरता और निर्भयता का संचार करना – गाँधीजी ने आम जनता में उस समय साहस, निडरता एवं निर्भयता का संचार किया जिस समय लोगों में सर्वत्र भय समाया हुआ था। यह गाँधीजी द्वारा निर्मित प्रेरणा और साहस को फल था कि सत्याग्रही अपने भूख-प्यास की चिंता किये बिना अंग्रेजी तोपों की प्यास बुझाने के लिए अपनी छातियाँ खोल देते थे।

सत्याग्रहियों के लिए कारागार दुखदाई और अपमानजनक नहीं रह गये। कायरता उनसे कोसों दूर भाग गई तथा त्याग, कष्ट और बलिदान उनके नित्य के आहार बन गये थे। इस प्रकार गाँधीजी ने भारतीयों को अंग्रेजों से साहस, निडरता एवं निर्भयता से मुकाबला करना सिखाया।

(7) साम्प्रदायिक एकता-गाँधीजी हिन्दू – मुस्लिम एकता के पुजारी थे और अनेक बार उन्होंने साम्प्रदायिक एकता उत्पन्न करने के लिए अपनी जान की बाजी भी लगाई। खिलाफत आन्दोलन में अगुवा बनना गाँधीजी की साम्प्रदायिक एकता की एक सफल कोशिश रही। इसके अतिरिक्त 1932 में उन्होंने साम्प्रदायिक एकता के लिए मैकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक पंचाट के विरुद्ध आमरण उपवास भी रखा।

(8) नैतिक साधनों द्वारा राजनैतिक उद्देश्यों को प्राप्त करना – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को गाँधीजी की एक अन्य प्रमुख देन यह रही कि उन्होंने नैतिक शक्ति को पशु शक्ति के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। गाँधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के अस्त्रों को पाशविक शक्ति के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने अहिंसा की शक्ति को प्रदर्शित किया। भारत छोड़ो आन्दोलन में भी गाँधीजी ने यद्यपि ‘करो या मरो’ का नारा दिया लेकिन उन्होंने कहा कि भारतीयों द्वारा स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए किन्तु यह कार्यवाही हिंसात्मक नहीं हो। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गाँधीजी ने नैतिक साधनों का प्रयोग कर राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त किया।

प्रश्न 8.
भारत छोड़ो आन्दोलन के कारणों, कार्यक्रम और प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण:
(1) क्रिप्स मिशन की असफलता – भारतीय जनता को यह विश्वास हो गया था कि 1942 ई. में क्रिप्स मिशन को भारत भेजना केवल एक राजनीतिक चाल थी। इसका उद्देश्य ब्रिटेन द्वारा युद्ध सहयोगियों को संतुष्ट करना और उसकी असफलता का उत्तरदायित्व भारतीय जनता पर डालना था। क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण भारत में निराशा का वातावरण बना।

(2) खराब आर्थिक दशा – इस समय द्वितीय विश्व युद्ध के कुप्रभावों के कारण देश की आर्थिक स्थिति भी चिंतनीय हो गई थी।

(3) विस्थापित भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार – बर्मा पर जापान की विजय के बाद जो भारतीय विस्थापित होकर भारत आ रहे थे उनके साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा था।

(4) पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज्य – पूर्वी बंगाल में इस समय भय और आतंक को राज्य था। वहां ब्रिटिश सरकार द्वारा अनेक किसानों की भूमि पर जबरदस्ती अधिकार जमा लिया गया था।

(5) ब्रिटिश रक्षा व्यवस्था पर अविश्वास होना – इस समय जापान सिंगापुर, मलाया, बर्मा तक अंग्रेजों को पराजित कर चुका था। ऐसी दशा में भारतीयों को ब्रिटिश रक्षा व्यवस्था पर विश्वास नहीं हो रहा था। अतः भारतीय यह सोचने लगे थे कि यदि अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाएं तो सम्भवतः भारत पर जापान का आक्रमण न हो। सम्पूर्ण देश में व्याप्त जापान के आक्रमण के भय को कम करने, निराशा के वातावरण को समाप्त करने तथा जनता में उत्साह का संचार करने और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए अब आन्दोलन आवश्यक हो गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन का कार्यक्रम:
(1) वर्धा प्रस्ताव जुलाई, 1942 – कांग्रेस कार्यसमिति की वर्धा बैठक में गाँधीजी ने जन भावनाओं का समर्थन करते हुए कहा कि भारतीय समस्या का हल अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ देने में ही है।” इसे ही वर्धा प्रस्ताव कहा गया।

(2) 8 अगस्त 1942 का भारत छोड़ो प्रस्ताव – वर्धा प्रस्ताव के अनुसार 7 अगस्त को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। इस समिति ने पर्याप्त विचार-विमर्श के उपरान्त ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अन्त भारत अपने और मित्र राष्ट्रों के आदर्श के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

(3) करो या मरो का नारा-भाषण में गाँधीजी ने भारतवासियों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इससे स्पष्ट था। कि अब निर्णायक अवसर आ गया था।

(4) आन्दोलन की प्रगति एवं शासन द्वारा दमन – आन्दोलन की प्रगति तथा शासन के दमन को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

  • आंदोलन की घोषणा के साथ ही काँग्रेस के प्रमुख नेताओं को सरकार द्वारा गिरफ्तार करना।
  • स्कूल व कॉलेजों के विधार्थियों एवं महिलाओं की भूमिका तथा हिंसात्मक संघर्ष।
  • व्यापक जन विद्रोह।
  • समानान्तर सरकारों की स्थापना।
  • समाजवादी काँग्रेस द्वारा भूमिगत रहकर आन्दोलन का संचालन।.
  • कठोर दमनकारी कार्यवाही। उपरोक्त गतिविधियाँ भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम में सम्मिलित थीं।

भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रभाव भारत छोड़ो आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया सबसे महान प्रयास था। इस आन्दोलन से भारत में ब्रिटिश सत्ताधारी चिंतित और भयभीत हो गये।

इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे:

  1.  जन जागृति – यद्यपि इस आन्दोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत नहीं छोड़ा, लेकिन इसके कारण भारत में जनजागृति की ऐसी लहर उत्पन्न हुई कि ब्रिटेन के लिए भारत पर लम्बे समय तक शासन करना असम्भव हो गया। इस आन्दोलन ने देश के अनेक भागों में ब्रिटिश शासन को अन्दर तक हिलाकर रख दिया।
  2. स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार करना – इस आन्दोलन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। ब्रिटिश शासन के सम्मुख यह स्पष्ट हो गया कि अब वे अधिक दिनों तक भारत में शासन नहीं कर पाएंगे।
  3. समझौता वार्ताओं की शुरुआत – इस आन्दोलन तथा इससे उत्पन्न चेतना के दबाव के कारण ही ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्या हल करने के लिए भारतीयों से समझौता – वार्ताओं की प्रक्रिया आरम्भ कर दी।
  4. विश्व जनमत पर प्रभाव – द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैण्ड में भी जनमत भारतीयों के पक्ष में हो गया। सरकार को अन्तत: भारत छोड़ना ही पड़ा।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि भारत छोड़ो आन्दोलन अपने उद्देश्य में काफी सफल रहा। इसने भारत की स्वतंत्रता के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने का कार्य किया।

प्रश्न 9.
इंग्लैण्ड में हुए गोलमेज सम्मेलनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गोलमेज सम्मेलन – इंग्लैण्ड में तीन गोलमेज सम्मेलन हुए जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं:
(1) प्रथम गोलमेज सम्मेलन – भारतीय संविधान पर विचार करने के लिए लन्दन में 12 नवम्बर, 1930 को प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने की। इस सम्मेलन में 50% भारतीय उपस्थित हुए। इस सम्मेलन में उपस्थित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों को भारत की जनता का प्रतिनिधि नहीं कहा जा सकता था क्योंकि इसमें काँग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं था।

इस सम्मेलन में मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी चौदह शर्तों को स्वीकार करने पर बल दिया। सम्मेलन में साम्प्रदायिकता के प्रश्न को विभिन्न जातियों द्वारा परस्पर हल करने के लिए छोड़ दिया गया। कांग्रेस के भाग न लेने से यह सम्मेलन पूरी तरह असफल रहा।

(2) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के उपरान्त द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की सफलता के लिए अंग्रेजों ने अत्यधिक प्रयास किये। इसके लिए उन्होंने गाँधीजी को रिहा कर दिया, गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया। 7 सितम्बर, 1931 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।

यह सम्मेलन 1 दिसम्बर, 1931 को समाप्त हुआ। इसमें गाँधीजी ने काँग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। गाँधीजी का कहना था कि उनकी पार्टी भारत का प्रतिनिधित्व करती है, परन्तु उसके दावे को अन्य तीन पार्टियों ने चुनौती दी।

इस सम्मेलन में भाग ले रहे मुस्लिम लीग के जिन्ना का कहना था कि उनकी पार्टी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित का काम करती है। अनेक रियासतों के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में सम्मिलित हुए। उनका दावा था कि कांग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भू-भाग पर कोई प्रभाव नहीं है। तीसरी चुनौती डॉ. भीमराव अम्बेडकर की ओर से थी। उनका कहना था कि गाँधीजी की कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।

इस सम्मेलन के प्रारम्भ होते ही षडयंत्रों की शुरुआत हो गई। एक ओर गाँधीजी ने केन्द्र एवं प्रांतों में पूर्ण रूप से उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग रखी तो वहीं मुस्लिम लीग ने साम्प्रदायिक चुनाव की माँग रखी। इसके अतिरिक्त हिन्दू महासभा के नेता भी अपनी माँगों पर अड़े रहे। कुल मिलाकर भीमराव अम्बेडकर, जिन्ना, हिन्दू महासभा इत्यादि के विरोध के चलते यहाँ कुछ निर्णय नहीं लिया जा सका।

(3) तृतीय गोलमेज सम्मेलन – जिन दिनों भारत में महात्मा गाँधी ने सशक्तता के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन चला रखा था, उसी समय लन्दन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। यह सम्मेलन 17 नवम्बर, 1932 को प्रारम्भ हुआ तथा 24 दिसम्बर, 1932 को समाप्त हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता रैम्जे मैकडोनाल्ड ने की। इस सम्मेलन में काँग्रेस ने भाग नहीं लिया। इस प्रकार यह सम्मेलन भी असफल रहा। इंग्लैण्ड की मुख्य लेबर पार्टी ने भी

इसमें भाग नहीं लिया। भारत में कांग्रेस पार्टी ने भी इस सम्मेलन का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया। वे भारतीय प्रतिनिधि जो सिर्फ अंग्रेजों की हाँ में हाँ मिलाते थे, वे इस सम्मेलन में उपस्थित थे। इस सम्मेलन में लिये गये निर्णयों को श्वेत-पत्र के रूप में प्रकाशित किया गया। इस श्वेत पत्र के आधार पर 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया। कांग्रेस के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इस सम्मेलन में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।

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