प्रतिरक्षा परिभाषा क्या है | के प्रकार अर्जित सक्रिय निष्क्रिय प्रतिरक्षा टीकाकरण

प्रतिरक्षा (immunity) – हमारे शरीर में रोगजनकों से लडने की शक्ति होती  है। जिसे प्रतिरक्षा कहते है। यह हमें प्रतिरक्षा तंत्र के  द्वारा प्राप्त होती है।

प्रतिरक्षा के प्रकार:-

1- सहज प्रतिरक्षा/प्राकृतिक आनुवाँशिक या जन्मजाति प्रतिरक्षा;प्ददंजम पउउनदपजलद्ध रू- प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही पायी जानी वाली प्रतिरक्षा को सहज प्रतिरक्षा कहते है। ये विभिन्न प्रकार के अवरोध (वैरियर) उत्पन्न करके हमारे शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करते है। सहज प्रतिरक्षा चार प्रकार की होती है।

1 शारीरिक रोध:- ये रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश को रोकते है।

उदाहरण- त्वचा एवं जनन तथा पाचन तंत्र को आस्तरित करने वाली श्लेष्मा

2 कार्यकीय अवरोध:- ये शरीर में रोगाणुओं की वृद्धि को रोकते है ।

उदाहरण- मुंह में लार, आँख में आँसू, आमाश्य मंे अम्ल आदि।

3 कोशिकीय अवरोध:– ये रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।

उदाहरणः WBC- जैसे-लिम्फीसाइट

1 साइसोकाइन अवरोध:-

शरीर में वायरस का संक्रमण होने पर विशेषप्रकारके प्रतिरक्षी बनते है जिन्हे इन्टरफेरान कहते है जो भविष्य में विषाणु के संक्रमण एवं अन्य को शिकाओं को विषाणु संक्रमण से बचाते है।

2  अर्जित प्रतिरक्षा (acquired immunity)-

जब हमारा शरीर प्रथम बार रोगजनकों का सामना करता है तो कम शक्ति की अनुक्रियाहोती है जिसे प्रथम अनुक्रिया कहते है। जब रोग जनकों से दूसरी बार सामना होता है तो उच्च तीव्रता की अनुक्रिया होती है जिसे द्वितीय अनुक्रिया कहते है। प्रथम अनुक्रिया एवं द्वितीयक अनुक्रिया को सम्मिलित रूप से अर्जित प्रतिरक्षा कहते है। स्मृति उसका एक अभिलक्षण है यह प्रथम मुठभेड की स्मृति पर आधारित होती है तथा रोगजनक विशिष्ट होती है।

प्रथम अनुक्रिया $  द्वितीयक अनुक्रिया अर्जित प्रतिरक्षा

निम्न तीव्रता उच्च तीव्रता प्रथम मुठभेड की स्मृति पर आधारित

अर्जित प्रतिरक्षा के कारक:-

अर्जित प्रतिरक्षा के दो कारक:-

1 B-कोशिका:- ये रोग जनकों का सामना करने वाले विशेष प्रकार के प्रोटीन की सेवा तैयार करते है जिन्हें प्रति रक्षी कहते है।

2 T-cells:- ये प्रतिरक्षी निर्माण नहीं करती है किन्तु प्रतिरक्षा बनाने में ठ. कोशिकाओं की मदद करती है। ठ. कोशिका और ज्. कोशिका लिम्फोसाइट होती है।

3 प्रतिरक्षी अणु की सरंचना एवं प्रकार:-

प्रतिरक्षी अणु पोलीपेप्टाइड का बना होता है जिसमें दो दीर्घ श्रृंखला एवं दो लघु श्रृंखला होती है जो आपस में डाइसल्फाइड बंधके द्वारा जुडी होती है इन्हें H2L2 भी कहते है।

प्रकार- मुख्य पाँच प्रकार के होते है।

1.IgD

2 IgA

3 IgM

4 IgE

5 IgG

4 अर्जित प्रतिरक्षा के प्रकार-

1- तरल मध्यित अर्जित प्रतिरक्षा HIR -यह B- कोशिकाओं द्वारा प्रदान की जाती है। तथा इसकी स्मृति कम होती है अतः यह प्रतिरक्षा कम अवधि की होती है इसके प्रतिरक्षी रक्त में पाए जाते है।

2- कोशिका माध्यित अर्जित प्रतिरक्षा-

यह ज् कोशिकाओं कें द्वारा प्रदान की जाती है। इसकी अवधि अधिक होती है हय अंग प्रत्यारोपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सक्रिय निष्क्रिय प्रतिरक्षा:-

जब रोगजनकों से सामना करने हेतु मृत या कमजोर रोगाणु या प्रोटीन प्रवेश करवाई जाती है तो शरीर में बने वाले प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षी कहलाते है।

जब शरीर में टीकों के द्वारा बने बनाये प्रतिरक्षी प्रवेश करवाये जाते है तो उन्हें निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहते है।

उदाहरण:- साँप के काटने पर लगाया जाने वाला इंजेक्शन, टिटनेस का टीका।

प्रतिरक्षी टीकाकरण:-

इंजेक्शनके द्वारा शरीर के द्वारा शरीर में प्रतिरक्षी प्रवेश करवाने की क्रिया को टीकारकण कहते है इसके द्वारा अर्जित प्रतिरक्षा प्रापत होती है। हमारा प्रतिरक्षी तंत्र रोगजनकों से हमारी सुरक्षा करता है।

स्व-प्रतिरक्षा:- 

उच्च कशेरूकी जीवों में अर्जित प्रतिरक्षा तंत्र स्व पर में भेद करने मे ंसमक्षम हाता है। ये विजातीय तत्वों को प्रतिरक्षी के द्वारा नष्ट कर देते है किन्तु कभी-2 आनुवांशिक एवं अज्ञात कारणों से प्रतिरक्षी कोशिकाओं स्वयं की कोशिकाों को नष्ट कर देती है इसे स्व-प्रतिरक्षा कहते है तथा इस प्रकार होने वाले रोगों को स्व-प्रतिरक्षा की रोग कहते है।

उदाहरण:- आमावती संधिशोध र्यूमेटाइड आर्याइटिस।

अंग प्रत्यारोपण में प्रतिरक्षी तंत्र की भूमिका/महत्व:-

नेत्र, वृक्क, यकृत, हृदय आदि अंगों के खराब होने पर अंग प्रत्यारोपण की एकमात्र उपाय है प्रतिरक्षी तंत्र स्व एवं पर में भेद करने मे ंसक्षम होता है। अंग प्रत्यारोपण में दाता एवं ग्राही की जिनीय संरचना एवं उतरक एवं रक्त समूह समान होने चाहिए। उतक मिलान एवं रक्त मिलानके बावजूद प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है एवं प्रत्यारोपित अंग का विरोध करता है अत प्रतिरक्षी संदमक का प्रयोग किया जाता है। इसके कारण प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है। एवं रोगाणु आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाते है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *