RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 मुद्राः अर्थ, कार्य एवं महत्त्व

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Chapter 17 मुद्राः अर्थ, कार्य एवं महत्त्व

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से M2 ज्ञात कर सकते हैं –
(अ) M1 + व्यावसायिक बैंकों की निबल आवधिक जमाएँ
(ब) M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ।
(स) C + DD
(द) M1 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य मुद्रा का मुख्य कार्य है –
(अ) विनिमय का माध्यम
(ब) नोटों का मापन
(स) बिलों का भुगतान
(द) साधनों की कार्य कुशलता

प्रश्न 3.
मुद्रा का निम्न में से कौन-सा कार्य नहीं है –
(अ) विनिमय का माध्यम
(ब) मूल्य मापन
(स) साख का आधार
(द) मूल्य स्थिरता

प्रश्न 4.
वस्तु विनिमय की प्रमुख कठिनाई निम्न में से कौन-सी है –
(अ) दोहरे संयोग को न मिलना
(ब) मुद्रा मूल्य ज्ञात न होना।
(स) भावी बचत सम्भव न होना
(द) इनमें से सभी

प्रश्न 5.
वस्तु के बदले वस्तु खरीदने की प्रक्रिया कहलाती है –
(अ) मुद्रा प्रणाली
(ब) वस्तु मुद्रा प्रणाली
(स) वस्तु विनिमय प्रणाली
(द) पत्र मुद्रा प्रणाली

उत्तरमाला:

  1. (द)
  2. (अ)
  3. (द)
  4. (द)
  5. (स)

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली से आशय अर्थव्यवस्था की ऐसी व्यवस्था से है जिसमें वस्तुओं का वस्तुओं से ही प्रत्यक्ष विनिमय होता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, स्थगित भुगतानों के आधार एवं मूल्य के संचय के साधन के रूप में विस्तृत रूप से स्वीकार की जाती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा के दो प्रमुख कार्यों को बताइए।
उत्तर:
मुद्रा के दो प्रमुख कार्य हैं –

  1. विनिमय को माध्यम,
  2. मूल्य का मापक।

प्रश्न 4.
वस्तु विनिमय की कोई दो कठिनाइयाँ लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की दो कठिनाइयाँ हैं –

  1. दोहरे संयोग का अभाव,
  2. वस्तु के मूल्य मापने में कठिनाई।

प्रश्न 5.
मुद्रा उपभोक्ता को निर्णय का अधिकार किस प्रकार देती है?
उत्तर:
मुद्रा एक वस्तु है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य आंका जाता है। इस कारण मुद्रा मनुष्य को आर्थिक निर्णय लेने में सहायता करती है; जैसे – वह कौन-सी वस्तु खरीदे, कौन-सी नहीं।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली को एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
यदि मोहन गेहूं का उत्पादन करता है और उसके पास गेहूँ अपनी आवश्यकता से ज्यादा है। इसी प्रकार यदि सोहन कपड़ा तैयार करता है और उस पर कपड़ी अपनी आवश्यकता से ज्यादा है तो ये दोनों व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर गेहूं व कपड़े का आदान-प्रदान करके अपनी दोनों आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं अर्थात् मोहन गेहूँ देकर कपड़ा खरीद लेगा तथा सोहन कपड़ा देकर गेहूं खरीद लेगा। यही वस्तु विनिमय प्रणाली है।

प्रश्न 2.
मुद्रा के मूल्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा के मूल्य के अलग-अलग अर्थ लगाये हैं लेकिन सर्वाधिक प्रचलित अर्थ में मुद्रा के मूल्य का आशय उसकी क्रय शक्ति से लगाया जाता है। इसका आशय यह है कि मुद्रा की एक इकाई के बदले खरीदी जा सकने वाली वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा ही उसका मूल्य होता है। उदाहरण के लिए, यदि एक किलो गेहूं का मूल्य ₹ 20 है तो इसका आशय यह भी हो सकता है कि ₹ 20 में एक किलो गेहूं मिलता है अर्थात् ₹20 की क्रय शक्ति एक किलो गेहूँ के बराबर है। प्रो० रॉबर्टसन के अनुसार मुद्रा की क्रय शक्ति से हमारा तात्पर्य वस्तुओं एवं सेवाओं की उस मात्रा से है जो सामान्य रूप से मुद्रा की एक इकाई के बदले प्राप्त की जा सकती है। यही मुद्रा का मूल्य कहलाता है।

प्रश्न 3.
वर्तमान युग में मुद्रा के महत्व को समझाइए।
उत्तर:
वर्तमान युग में आर्थिक क्रियाओं के प्रत्येक क्षेत्र में मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है। मुद्रा के बिना अर्थव्यवस्था के संचालन की आज के समय में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मार्शल ने ठीक ही कहा है कि, “मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।” प्रो० हैरिस ने मुद्रा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा है कि,” समस्त मानवीय व दैवीय वस्तुएँ, ख्याति और सम्मान मुद्रा के सामने सिर झुकाते हैं।”

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान में मुद्रा का अत्यधिक महत्व है।

प्रश्न 4.
मुद्रा के आकस्मिक कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मुद्रा के आकस्मिक कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. सामाजिक आय का वितरण (Distribution of Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण के कार्य को सरल बनाती है। उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के सामूहिक प्रयासों से उत्पादन कार्य किया जाता है। अतः उत्पादित वस्तु से प्राप्त आय को इन साधनों में न्यायोचित ढंग से वितरित करना आवश्यक है। इस कार्य को मुद्रा ने ही सम्भव बनाया है।
  2. साख का आधार (Basis of Credit) – मुद्रा ने ही साख व्यवस्था को जन्म दिया है। बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करना मुद्रा द्वारा ही सम्भव हुआ है।
  3. सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of Property) – मुद्रा ने सम्पत्ति को तरलता प्रदान की है। आज कोई भी व्यक्ति एक शहर के मकान को बेचकर मुद्रा प्राप्त करके दूसरे शहर में दूसरा मकान आसानी से खरीद सकता है।

प्रश्न 5.
मुद्रा के दो सहायक कार्य लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा के दो सहायक कार्य निम्नलिखित हैं –
(i) भावी भुगतानों का आधार (Basis of Future Payments) – मुद्रा ने भावी भुगतानों को सम्भव बनाया है। क्योंकि मुद्रा के मूल्य में ज्यादा स्थिरता होती है। आजकल ज्यादातर लेने-देन उधार होते हैं। इन उधार लेन-देनों का भुगतान भविष्य में किस प्रकार व कितना करना है, इसका निर्धारण मुद्रा द्वारा ही होता है।

(ii) मूल्य का संचय (Store of Value) – मुद्रा ने भविष्य के लिए मूल्य को संचित करके रखना सम्भव बना दिया है। मनुष्य मुद्रा के रूप में बचत कर सकता है तथा अपनी बचतों पर ब्याज भी प्राप्त कर सकता है। वह अपनी बचतों के माध्यम से अपनी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुद्रा के प्रमुख कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा के कार्यों को निम्न शीर्षकों में बाँटकर देखा जा सकता है –

(अ) मुद्रा के प्रमुख या प्रधान कार्य (Primary functions)
(ब) मुद्रा के सहायक या गौण कार्य (Secondary functions)
(स) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent functions)
(द) मुद्रा के अन्य कार्य (Other functions)

(अ) मुद्रा के प्रमुख या प्रधान कार्य (Primary Functions of Money) – मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं। इन कार्यों को मुद्रा प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था में आवश्यक रूप से सम्पन्न करती है –

(i) विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange) – मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। आजकल सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम से किए जाते हैं। यह मुद्रा का महत्वपूर्ण कार्य है। उत्पादक, विक्रेता अपनी वस्तुओं के मूल्य स्वरूप मुद्रा प्राप्त करते हैं तथा क्रेता मुद्रा के रूप में खरीदी गई वस्तु अथवा सेवा का मूल्य चुकाते हैं।

(ii) मूल्य का मापक (Measure of Value) – मुद्रा का यह दूसरा महत्वपूर्ण कार्य हैं। मुद्रा के चलन के बाद सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मुद्रा में ही निर्धारित होता है। इस कारण वस्तुओं का लेन-देन बहुत सरल हो गया है।

(ब) मुद्रा के सहायक या गौण कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के सहायक कार्यों से आशय ऐसे कार्यों से लगाया जाता है जिन्हें मुद्रा प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करने के लिए करती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

(i) मूल्य संचय का साधन (Means of Store of Value) – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुएँ नाशवान होने के कारण मूल्य का संचय सम्भव नहीं था लेकिन मुद्रा के चलन ने इस कार्य को सरल बना दिया है। मुद्रा में टिकाऊपन होता है। अतः मुद्रा के रूप में मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।

(ii) भावी भुगतान का आधार (Basis of deferred Payment) – मुद्रा ने भुगतान भविष्य में करना सम्भव बना दिया है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश व्यापारिक लेन-देन उधार पर आधारित होते हैं। मुद्रा के माध्यम से भविष्य में उधारी की रकम को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

(iii) क्रय शक्ति हस्तांतरण (Transfer of purchasing Power) – मुद्रा के द्वारा क्रय शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है। ऐसा करने से कोई आर्थिक नुकसान भी नहीं होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति भरतपुर से जयपुर जाकर बसना चाहता है तो वह आसानी से अपनी भरतपुर की सम्पत्तियों को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा उस मुद्रा से जयपुर में सम्पत्ति खरीद सकता है। मुद्रा एक तरल सम्पत्ति हैं। इसलिए इसे लाने ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

(स) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent functions of Money) – मुद्रा कुछ आकस्मिक कार्य भी सम्पादित करती है। इन कार्यों से मुद्रा और भी सुविधाजनक व उपयोगी माध्यम बन जाती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

(i) सामाजिक आय का वितरण (Distribution of Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण को सरल बनाती है। आजकल उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है जिसमें उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन सभी साधनों में उत्पादन से प्राप्त आय को न्यायपूर्ण ढंग से वितरित करने में मुद्रा हमारी सहायता करती है।

(ii) साख का आधार (Basis of Credit) – मुद्रा ही साख का आधार है। आज बैंकिंग संस्थाएँ बड़े पैमाने पर अनेक प्रकार के ऋण उपलब्ध कराती है तथा साख पत्रों के प्रयोग की सुविधा प्रदान करती है। यह कार्य भी मुद्रा के द्वारा ही सम्भव हुआ है।

(iii) सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of Property) – मुद्रा पूँजी एवं सम्पत्ति को तरलता प्रदान करती है। तरल रूप में मुद्रा का किसी भी कार्य में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।

(द) मुद्रा के अन्य कार्य (Other functions of Money) – मुद्रा द्वारा उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त और भी कुछ कार्य किए जाते हैं। इन कार्यों को अन्य कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। अन्य कार्य निम्न प्रकार हैं –

(i) शोधन क्षमता का सूचक (Basis of Solvency) – किसी भी व्यक्ति के पास मुद्रा की उपलब्धता के आधार पर ही उसकी शोधन क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। इससे ही उस व्यक्ति की ऋण चुकाने की क्षमता का अनुमान लगाया जाता है। किसी व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा जितनी ज्यादा होती है उसकी ऋण चुकाने की क्षमता अर्थात् शोधन क्षमता भी उतनी ही ज्यादा होती है।

(ii) निर्णय की वाहक (Bearer of option) – मुद्रा व्यक्ति को अपने धन को विभिन्न कार्यों में विनियोजित करने के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायता करती है। यह मनुष्य द्वारा आर्थिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है।

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इस प्रणाली के दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली का आशय (Meaning of Barter System) – वस्तु विनिमय प्रणाली से आशय अपनी उत्पादित अतिरिक्त वस्तु के बदले दूसरे व्यक्ति द्वारा उत्पादित अन्य अतिरिक्त वस्तु को प्राप्त करने से है। ऐसा करने से दोनों ही व्यक्ति अपनी कम आवश्यक वस्तु के बदले ज्यादा आवश्यक वस्तु को प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।

प्रो० जेवन्स के अनुसार, “अपेक्षाकृत कम आवश्यक वस्तु के बदले अधिक आवश्यक वस्तु का आदान-प्रदान ही वस्तु विनिमय है।’

उदाहरण के लिए, अनाज के बदले कपड़ा, कपड़े के बदले दूध तथा खुरपी के बदले सब्जी प्राप्त करना आदि वस्तु विनिमय कहा जाता है।

वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष अथवा कठिनाइयाँ

वस्तु विनिमय प्रणाली ने विकास की प्रारम्भिक अवस्था में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया तथा समाज को आवश्यकता की विभिन्न वस्तुएँ प्राप्त करने को सरल बनाया लेकिन मानवीय आवश्यकताओं में तेजी से वृद्धि होने पर इस प्रणाली में अनेको कठिनाइयाँ हो गईं। इस प्रणाली की प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं –

1. दोहरे संयोग का अभाव (Lack of Double Coincidence) – वस्तु विनिमय तभी सम्भव होता है जबकि दो व्यक्ति आपस में एक-दूसरे की वस्तु लेने के लिए तैयार हों। ऐसा संयोग हमेशा मिलना सम्भव नहीं होता है यदि एक व्यक्ति के पास गेहूँ अपनी आवश्यकता से अधिक है और उसे चने की आवश्यकता है तो उसे ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना होगा जिसके पास चने अपनी आवश्यकता से ज्यादा हों तथा जो बदले में गेहूं लेने के लिए तैयार हो। ऐसा संयोग मिलना बहुत कठिन होता है। यदि ऐसा संयोग नहीं मिलता तो वस्तु विनिमय सम्भव नहीं है।

2. मूल्य मापन की कठिनाई (Difficulty in Value Measurement) – वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य मापने का कोई सर्वमान्य मूल्य मापक नहीं था जिसके कारण प्रत्येक सौदे के लिए नए सिरे से मूल्य निर्धारित करना होता था कि कितने गेहूँ के बदले कितनां दूध लिया जाए या कितने गेहूँ के बदले कितना चना लिया जाए फिर उस मूल्य पर दोनों पक्षों की सहमति होना भी मुश्किल कार्य था। यदि सहमति नहीं बने तो विनिमय सम्भव नहीं होता। इस कठिनाई के कारण वस्तु विनिमय करना अत्यन्त ही कठिन कार्य हो जाता है।

3. विभाज्यता की समस्या (Problem of Divisibility) – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनको विभाजित नहीं किया जा सकता है। यदि उनको विभाजित किया जाता है तो उनकी उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है। ज्यादा महँगी वस्तु के बदले में सस्ती वस्तु लेते समय भी यह समस्या उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति के पास घोड़ा है तथा वह इसके बदले में गेहूं, चावल, कपड़ा लेना चाहता है। ये तीनों वस्तुएँ एक व्यक्ति के पास मिलना मुश्किल है। यदि अलग-अलग व्यक्ति से ये वस्तुएँ लेनी हों तो घोड़े को कैसे विभाजित करके दिया जा सकता है। साथ ही यह भी आवश्यक नहीं है कि वे लोग बदले में घोड़ा लेने को तैयार हों। इस समस्या के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में बहुत कठिनाई होती है।

4. भावी भुगतान में कठिनाई (Difficulty in deferred Payment) – वस्तु विनिमय प्रणाली में उधार लेन-देन में भी बहुत कठिनाई होती है क्योंकि भविष्य के मूल्यों को निर्धारित करना बहुत मुश्किल होता है। बिना उधार लेन-देन के व्यापार का विकास नहीं होता। इससे समाज का आर्थिक विकास भी नहीं हो पाता है।

5. संचय में कठिनाई (Difficulty in Store of Value) – प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए अपनी आय का कुछ भाग बचाकर रखना चाहता है लेकिन वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसा करना बहुत मुश्किल एवं जोखिमपूर्ण होता है क्योंकि अधिकांश वस्तुएँ नाशवान होती हैं और उन वस्तुओं के खराब होने तथा चोरी होने का भय रहता है। इसके साथ ही इन वस्तुओं को संचित करने के लिए ज्यादा स्थान की आवश्यकता होती है।

6. मूल्य स्थानान्तरण में कठिनाई (Difficulty in Transfer of Value) – वस्तु विनिमय प्रणाली में एक बड़ी कठिनाई यह भी है कि इसमें क्रय शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण करना अत्यन्त कठिन होता है; जैसे-यदि कोई व्यक्ति कोटा में अपना मकान बेचकर उसके मूल्य को जोकि वस्तुओं के रूप में होगा, अजमेर ले जाना चाहता है तो उसे ऐसा करने में काफी खर्च करना होगा तथा इस कार्य में कठिनाई भी बहुत होगी। वस्तु विनिमय प्रणाली की उपरोक्त कठिनाइयों के कारण यह व्यवस्था मुद्रा के प्रादुर्भाव के साथ ही धीरे-धीरे लगभग विलुप्त हो गई।

प्रश्न 3.
मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Money) – मुद्रा अंग्रेजी के शब्द मनी (Money) का हिन्दी अनुवाद है। अंग्रेजी भाषा का शब्द मनी (Money) लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा (Moneta) से बना है जो देवी जूनो (Juno) का ही नाम है। प्राचीन काल में देवी जूनो के मन्दिर में ही मुद्रा बनाई जाती थी इसीलिए इसका नाम मुद्रा (Money) पड़ा।। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा को भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। इस कारण मुद्रा की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है।

  1. वाकर (F.A. Walker) के अनुसार, “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।”
  2. हार्टले विदर्स (Hartley Withers) के अनुसार, “मुद्रा वह सामग्री है जिससे हम वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।”
  3. नैप (Knapp) के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कही जाती है।”
  4. सैलिगमैन (Seligmen) के शब्दों में, “मुद्रा वह वस्तु है जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।”
  5. कैन्ट (Kent) के शब्दों में, “मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यत: विनिमय के माध्यम एवं मूल्य के मापक के रूप में स्वीकार किया जाता है।”
  6. किनले (Kinley) के अनुसार, “मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यत: विनिमय के माध्यम अथवा मूल्य के मान के रूप में स्वीकार एवं प्रयोग किया जाता है।”
  7. मार्शल (Marshall) के शब्दों में, “मुद्रा में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं जो किसी विशेष समय अथवा स्थान पर बिना संदेह अथवा विशेष जाँच पड़ताल के वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने और व्यय का भुगतान करने के साधन के रूप में, सामान्यत: प्रचलित होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्री मुद्रा की परिभाषा के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं, परन्तु यह भी स्पष्ट है कि मुद्रा कही जाने वाली वस्तु में मुद्रा के कार्य करने का गुण, सर्वमान्यता एवं वैधानिक स्वीकृति का गुण होना चाहिए। अत: मुद्रा की एक सही परिभाषा निम्न प्रकार हो सकती है –

“मुद्रा कोई ऐसी वस्तु है जिसे विनिमय के माध्यमे, मूल्य के मापक, मूल्य संचय एवं ऋणों के भुगतान के रूप में वैधानिक एवं सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।”

मुद्रा का महत्व (Importance of Money)
वर्तमान आर्थिक जगत में मुद्रा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। प्रो० मार्शल ने इसके महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है। वर्तमान समय में मुद्रा के बिना अर्थव्यवस्था के संचालन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस महत्व के कारण ही वर्तमान युग को मुद्रा का युग कहा जाता है। | मुद्रा के महत्व को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

1. बाजार व्यवस्था की धुरी (Centre point of Market System) – मुद्रा ने बाजार व्यवस्था को सरल एवं गतिशील बना दिया है। यह विनिमय का एक सरल माध्यम है। इसलिए बाजार में सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही किए जाते हैं।

2. आर्थिक विकास का मापक (Measure of Economic Development) – मुद्रा के द्वारा ही देश के आर्थिक विकास का मापन सरल हो गया है। सरकारें आर्थिक विकास की योजनाएँ बनाने एवं उन्हें क्रियान्वित करने में मुद्रा के कारण ही सक्षम हो सकी हैं। विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलना भी मुद्रा के कारण ही सम्भव हो सकी है।

3. श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण (Divison of Labour and Specialisation) – वर्तमान युग में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है जिससे वस्तुओं की उत्पादन लागत कम आती है लेकिन यह कार्य श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है। श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण को अपनाना बिना मुद्रा के सम्भव नहीं है।

4. निवेश का आधार (Basis of Investment) – मुद्रा के चलन ने बचत को सम्भव बनाया है। आज लोग अपनी वर्तमान आये से कुछ पैसा भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बचाते हैं और उसे बचाई हुई राशि को बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं में जमा करके ब्याज भी प्राप्त करते हैं। वित्तीय संस्थाओं के पास इस प्रकार जो एक बड़ी राशि इकट्ठी हो जाती है उसे वह उद्योगों में लगाते हैं। व्यक्तिगत उपभोक्ताओं द्वारा भी सीधे औद्योगिक इकाइयों में पैसा लगाया जाता है। इस प्रकार बचत निवेश का आधार बनती है।

5. आर्थिक क्षेत्र में निर्णय की स्वतन्त्रता (Freedom of Decision in Economic Field) – मुद्रा ने उपभोक्ता एवं उत्पादक दोनों को ही बाजार में उचित निर्णय लेने में सक्षम बना दिया है। उपभोक्ता जहाँ अपने धन को इस प्रकार व्यय करता है कि उसे अधिकतम उपयोगिता मिल सके वहीं उत्पादक उत्पत्ति के साधनों पर इस प्रकार विवेकपूर्ण ढंग से व्यय करते हैं कि उनकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।

6. सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार (Basis of Social Status) – मुद्रा मूल्य संग्रह का आधार होती है। जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक मुद्रा होती है उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी उतनी ही ज्यादा होती है। इस कारण मुद्रा सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार भी है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय सम्भव है –
(अ) सीमित आवश्यकताएँ होने पर
(ब) असीमित आवश्यकताएँ होने पर
(स) विस्तृत क्षेत्र होने पर
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली की विशेषता नहीं है –
(अ) दोहरा संयोग
(ब) सीमित क्षेत्र
(स) विकसित समाज
(द) सीमित आवश्यकताएँ

प्रश्न 3.
मुद्रा का एक महत्वपूर्ण कार्य पूँजी अथवा धन को तरल रूप प्रदान करना है।
(अ) मार्शल का
(ब) पीगू का
(स) कीन्स का
(द) हाटे का

प्रश्न 4.
“मुद्रा वह सामग्ती है, जिससे हम वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।”
(अ) मार्शल
(ब) क्राउथर
(स) हार्टले विदर्स
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5.
‘मुद्रा वह वस्तु है जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो’
(अ) वॉकर
(ब) सैलिगमैन
(स) पीगू
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
विनिमय का माध्यम मुद्रा का कार्य है –
(अ) प्राथमिक
(ब) सहायक
(स) आकस्मिक
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 1.
क्या वर्तमान समय में मुद्रा को समाप्त किया जा सकता है?
(अ) हाँ
(ब) नहीं
(स) मुश्किल
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8.
विमुद्रीकरण (Demonatisation) का अर्थ है –
(अ) नकली नोटों का चलन से बाहर करना
(ब) वैधानिक मुद्रा की वैधानिकता समाप्त कर देना
(स) मुद्रा की छपाई बन्द कर देना
(द) उपर्युक्त से कोई नहीं

प्रश्न 9.
साख का आधार मुद्रा का कार्य है –
(अ) प्राथमिक
(ब) सहायक
(स) आकस्मिक
(द) अन्य कार्य

प्रश्न 10.
मुद्रा का कार्य है –
(अ) विनिमय का माध्यम
(ब) मूल्य का मापक
(स) मूल्य का संचय
(द) ये सभी

उत्तरमाला

  1. (अ)
  2. (स)
  3. (स)
  4. (स)
  5. (ब)
  6. (अ)
  7. (ब)
  8. (ब)
  9. (स)
  10. (द)

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के लिए दो वांछित परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. सीमित क्षेत्र होना चाहिए
  2. सीमित आवश्यकताएँ होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली में आने वाली विभाजकता के अभाव की कठिनाई को समझाइए।
उत्तर:
कुछ वस्तुओं को विभाजित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है; जैसे-गाय, भैंस, बकरी। ऐसी वस्तुओं से विनिमय करना बहुत मुश्किल होता है।

प्रश्न 3.
दोहरे संयोग से क्या आशय है?
उत्तर:
दोहरे संयोग का आशय है कि दो व्यक्ति ऐसे मिल जाएं जो एक-दूसरे की वस्तु की अदला-बदली करने को तैयार हों।

प्रश्न 4.
‘विनिमय के माध्यम से क्या आशय है?
उत्तर:
मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। इसका आशय है कि हम मुद्रा द्वारा कोई भी वस्तु खरीद तथा बेच सकते हैं क्योंकि इसमें सर्व स्वीकार्यता का गुण होता है।

प्रश्न 5.
परोक्ष विनिमय में विनिमय का माध्यम क्या होता है?
उत्तर:
परोक्ष विनिमय में विनिमय को माध्यम मुद्रा होती है।

प्रश्न 6.
मुद्रा की तरलता से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी भी वस्तु अथवा सम्पत्ति को बिना किसी हानि के मुद्रा में बदलने की क्षमता को ही तरलता कहते हैं।

प्रश्न 7.
क्या मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व पाया जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के मूल्य में अन्य वस्तुओं की तुलना में ज्यादा स्थायित्व पाया जाता है।

प्रश्न 8.
मुद्रा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. इसमें सर्वग्राह्यता का गुण होता है।
  2. यह सम्पत्ति का तरलतम रूप है।

प्रश्न 9.
मुद्रा का जन्म क्यों हुआ?
उत्तर:
वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को दूर करने के लिए मुद्रा का जन्म हुआ।

प्रश्न 10.
M1 का क्या आशय है?
उत्तर:
M1 = C + DD + OD
C = लोगों के पास संचित नोट व सिक्के
DD = माँग जमाएँ (बैंकों के पास)
OD = रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ

प्रश्न 11.
M2 का क्या आशय है?
उत्तर:
M2 = M1 + डाकघर, बचत बैंकों में जमा राशि

प्रश्न 12.
M3 का क्या आशय है?
उत्तर:
M3 = M2 + व्यावसायिक बैंकों की निबल सावधिक जमाएँ

प्रश्न 13.
‘देवी जूनो’ कौन है?
उत्तर:
प्राचीन रोम में देवी जूनो स्वर्ग की रानी के नाम से जानी जाती थी। इसी के मन्दिर में सिक्के ढाले जाते थे।

प्रश्न 14.
“मुद्रा वह है जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।” यह परिभाषा किस अर्थशास्त्री की है?
उत्तर:
मुद्रा की यह परिभाषा अर्थशास्त्री सैलिगमैन द्वारा दी गई है।

प्रश्न 15.
मुद्रा की हार्टले विदर्स द्वारा दी गई परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हार्टले विदर्स के अनुसार, “मुद्रा वह सामग्री है जिससे हम वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।”

प्रश्न 16.
अर्थशास्त्री नैप ने मुद्रा को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
नैप के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारी मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कही जाती है।”

प्रश्न 17.
मुद्रा विहीन अर्थव्यवस्था में क्या दोष होते हैं?
उत्तर:
मुद्रा विहीन अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली के सभी दोष होते हैं।

प्रश्न 18.
भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति के कितने प्रकार के माप प्रस्तुत करता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक चार माप प्रस्तुत करता है – M1 M2 M3 व M4

प्रश्न 19.
माँग जमाएँ कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
ऐसी जमा राशियों को माँग जमाएँ कहते हैं जो ग्राहकों द्वारा माँगने पर बैंक द्वारा लौटाई जाती है।

प्रश्न 20.
‘विमुद्रीकरण’ से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक द्वारा चलने से पुरानी मुद्रा की वैधानिकता को समाप्त करना ही विमुद्रीकरण कहलाता है।

प्रश्न 21.
वस्तु विनिमय प्रणाली का लोप क्यों हुआ?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में होने वाली अनेको कठिनाइयों के कारण इसकी लोप हो गया।

प्रश्न 22.
मुद्रा ने बचत को कैसे सम्भव बनाया है?
उत्तर:
मुद्रा में एकरूपता एवं स्थायित्व होता है जिसके कारण बचत करने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

प्रश्न 23.
मोनेटा (Moneta) किस भाषा का शब्द है?
उत्तर:
मोनेटा लैटिन भाषा का शब्द है।

प्रश्न 24.
मुद्रा बाजार व्यवस्था की धुरी किस प्रकार है?
उत्तर:
आजकल बाजार में समस्त लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही किए जाते हैं इसीलिए इसे बाजार व्यवस्था की धुरी कहा जाता है।

प्रश्न 25.
अर्थशास्त्री मुद्रा के प्रचलन को नियन्त्रित करने की सलाह क्यों देते हैं?
उत्तर:
मुद्रा के अनियन्त्रित होने पर मुद्रा प्रसार की स्थिति पैदा हो जाती है जिसके अर्थव्यवस्था पर गम्भीर प्रभाव पड़ते हैं। इसलिए इसे नियन्त्रित करने की सलाह दी जाती है।

प्रश्न 26.
विमुद्रीकरण से कालाधन कैसे समाप्त होता है?
उत्तर:
जब किसी मुद्रा की वैधानिकता समाप्त कर दी जाती है तो जिन काला बाजारियों पर यह बड़ी मात्रा में होती है, उनके लिए कागज के टुकड़े के समान हो जाती है।

प्रश्न 27.
मुद्रा के तरल रूप से क्या फायदा है?
उत्तर:
मुद्रा के तरल रूप के कारण इसे कहीं भी कभी भी प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
मुद्रा के सहायक कार्यों से क्या आशय है?
उत्तर:
मुद्रा के प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न कराने में जो कार्य सहयोग प्रदान करते हैं उन्हें सहायक कार्य कहते हैं।

प्रश्न 29.
मुद्रा को एक महत्वपूर्ण आविष्कार क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्योंकि मुद्रा ने विनिमय के कार्य को बहुत सरल बना दिया है।

प्रश्न 30.
मुद्रा से होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. मुद्रा ने विनिमय कार्य को सरल बना दिया है।
  2. मुद्रा द्वारा वस्तु के मूल्य का निर्धारण आसान हो गया है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA-I)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली में विनिमय के लिए क्या बातें होना आवश्यक है?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में विनिमय के लिए निम्न बातें पूर्ण होना आवश्यक है –

  1. कम-से-कम दो पक्षों का होना।
  2. विनिमय के लिए दोनों के पास एक-दूसरे की आवश्यकता की वस्तु अतिरिक्त होना।
  3. विनिमय के लिए दोनों पक्षों का तैयार होना।

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. दोहरे संयोग का अभाव।
  2. मूल्य मापन में कठिनाई।

प्रश्न 3.
दोहरे संयोग से क्या आशय है?
उत्तर:
दोहरे संयोग का आशय है कि विनिमय के लिए ऐसे दो व्यक्ति आपस में मिल जाएं जिन्हें एक-दूसरे की वस्तु की आवश्यकता हो तथा वह एक-दूसरे से उन वस्तुओं को बदलने के लिए तैयार हों।

प्रश्न 4.
प्राचीन समय में वस्तु विनिमय प्रणाली किन परिस्थितियों के कारण प्रचलित हो सकी?
उत्तर:

  1. मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत सीमित थीं।
  2. बाजार क्षेत्र भी बहुत सीमित थे।
  3. समाज बहुत अविकसित अवस्था में था।

प्रश्न 5.
मुद्रा का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
प्राचीन भारत में राजा-महाराजाओं द्वारा विभिन्न राज्यों पर शासन होता था। इनके द्वारा विनिमय कार्य के लिए अपने-अपने हिसाब से सिक्कों की ढलाई की जाती थी। इन सिक्कों के माध्यम से ही विनिमय कार्य सम्पादित होते थे। ये सिक्के विभिन्न धातुओं के बनाये जाते थे; जैसे–सोना, चाँदी, ताँबा एवं काँसा आदि। इन सिक्कों को राज्य के द्वारा वैधानिकता प्रदान की जाती थी और उन्हें स्वीकार करना कानूनी रूप से अनिवार्य था। समय-समय पर इसके रूप में निरन्तर परिवर्तन होता रहा है।

प्रश्न 6.
मुद्रा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। अर्थशास्त्रियों ने इसे अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है; जैसे-हार्टले विदर्स के अनुसार, “मुद्रा वह सामग्री है जिससे हम वस्तुओं का क्रय विक्रय करते हैं।” किनले ने मुद्रा को अलग ढंग से परिभाषित किया है उनके अनुसार, “मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यत: विनिमय के माध्यम अथवा मूल्य के मान के रूप में स्वीकार एवं प्रयोग किया जा सकता है।”

प्रश्न 7.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा की पूर्ति के कौन-कौन से माप प्रदर्शित किए जाते हैं?
उत्तर:
(i) M1 = C + DD + OD
(ii) M2 = M1 + डाकघर एवं बचत बैंकों की बचत जमाएँ
(iii) M3 = M2 + व्यावसायिक बैंकों की निबल सावधिक जमाएँ
(iv) M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ।
यहाँ C = लोगों के पास रखी करेन्सी नोट व सिक्के
DD = माँग जमाएँ (Demand Deposit)
OD = रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ

प्रश्न 8.
मुद्रा के प्राथमिक कार्यों को बताइए।
उत्तर:
मुद्रा के प्राथमिक कार्य

  1. मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। इसी के द्वारा विभिन्न वस्तुएँ खरीदी व बेची जाती हैं।
  2. मुद्रा मूल्य मापक का कार्य करती है। प्रत्येक वस्तु एवं सेवा का मूल्य मुद्रा में ही व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 9.
मुद्रा के अन्य कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मुद्रा के अन्य कार्यों में मुख्यतः दो कार्य आते हैं –

  1. शोधन क्षमता का सूचक है। इससे व्यक्ति की शोधन क्षमता का पता लगता है।
  2. मुद्रा इच्छा की वाहक है। मुद्रा ने मनुष्य को अपनी इच्छानुसार वस्तुएँ खरीदने एवं बेचने में सक्षम बना दिया है।

प्रश्न 10.
मुद्रा का महत्व संक्षेप में बताइए।
उत्तर:

  1. मुद्रा बाजार व्यवस्था की धुरी है। मुद्रा रूपी धुरी पर ही पूरा अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है।
  2. मुद्रा ने उत्पादन के क्षेत्र में श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण को सम्भव बना दिया है।

प्रश्न 11.
आप वस्तु विनिमय एवं मुद्रा विनिमय में से किसको श्रेष्ठ मानते हैं? कारण सहित बताइए।
उत्तर:
मुद्रा विनिमय प्रणाली वस्तु विनिमय प्रणाली से श्रेष्ठ है। इसके प्रमुख कारण निम्न हैं-

  1. मुद्रा से दोहरे संयोग की समस्या समाप्त हो गई है।
  2. मुद्रा द्वारा किसी भी वस्तु अथवा सेवा का मूल्य मापा जा सकता है।
  3. मुद्रा द्वारा क्रय शक्ति का आसानी से संचय किया जा सकता है।

प्रश्न 12.
“मुद्रा भावी भुगतान का आधार है।” इस कथन से क्या आशय है?
उत्तर:
मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व होता है। इस कारण कोई भी विक्रेता बिना झिझक भविष्य में माल का मूल्य लेने के लिए तैयार हो जाता है। भविष्य में भी भुगतान मुद्रा के रूप में ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 13.
सावधि जमा से क्या आशय है?
उत्तर:
जो राशि बैंक में एक निश्चित अवधि के लिए जमा की जाती है उसे सावधि जमा कहते हैं; जैसे – एक वर्ष या 2 वर्ष के लिए एक निश्चित रकम बैंक में जमा करना। इस जमा रकम के बदले बैंक द्वारा रसीद दी जाती है उसे सावधि जमा रसीद कहते हैं।

प्रश्न 14.
विमुद्रीकरण के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
विमुद्रीकरण के निम्नलिखित दो लाभ होते हैं –

  1. देश से काला धन समाप्त हो जाता है।
  2. इससे नकली नोट बनाने तथा आंतकवादी गतिविधियाँ चलाने पर रोक लगती है।

प्रश्न 15.
“मुंद्रा एक अच्छा सेवक है लेकिन बुरा स्वामी है।” इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा एक अच्छा सेवक इसलिए है क्योकि यह वित्तीय कार्य को सरल बना देता है लेकिन यदि चलन में मुद्रा की मात्रा ज्यादा हो जाये तो मुद्रा प्रसार की स्थिति पैदा हो जाती है जिससे जन सामान्य को काफी परेशानी होती है। अतः बिना नियन्त्रण के यह परेशानियाँ पैदा कर सकती है।

प्रश्न 16.
राजनैतिक क्षेत्र में मुद्रा का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरकारें जनता से कर वसूल करती हैं। इस वसूली कार्य को मुद्रा ने बहुत सरल बना दिया है। कर देने से जनता में चेतना उत्पन्न होती है और जन सामान्य सरकार के क्रिया-कलापों पर पैनी नजर रखते हैं। यदि सरकार द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग होता है तो जनता उसका विरोध करती है।

प्रश्न 17.
उत्पादन के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व बताइए।
उत्तर:
मुद्रा ने उत्पादन कार्य को सरल कर दिया है। उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को मुद्रा द्वारा ही खरीदा जाता है तथा मुद्रा के आधार पर वस्तु की उत्पादन लागत ज्ञात की जाती है। मुद्रा ने ही श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण को सम्भव बनाया है। तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन भी मुद्रा की ही देन है।

प्रश्न 18.
नियोजित अर्थव्यवस्था में मुद्रा का क्या महत्व है?
उत्तर:
जब कोई देश आर्थिक विकास के लिए नियोजन का सहारा लेता है तो ऐसे देश को योजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय संसाधन जुटाने होते हैं तथा इन संसाधनों को विभिन्न विकास कार्यों पर न्यायोचित ढंग से व्यय करना होती है। यह कार्य बिना मुद्रा के सम्भव नहीं है।

प्रश्न 19.
‘मुद्रा बाजार व्यवस्था की धुरी है।’ इस कथन को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा विनिमय का एक सरल माध्यम है। मुद्रा के माध्यम से किसी भी वस्तु अथवा सेवा को आसानी से खरीदा व बेचा जा सकता है। बाजार में सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं। अत: मुद्रा बाजार व्यवस्था की धुरी का कार्य करती है।

प्रश्न 20.
मुद्रा ने बचतों को कैसे सम्भव बनाया है?
उत्तर:
वस्तु विनिमय व्यवस्था में बचतं वस्तुओं के रूप में ही की जाती थी लेकिन वस्तुओं के नाशवान होने के कारण उन्हें ज्यादा समय तक रोका नहीं जा सकता था। आजकल मुद्रा ने इस समस्या को दूर कर दिया है क्योंकि मुद्रा में टिकाऊपन होता है। इसे आसानी से बचाकर रखा जा सकता है तथा बैंकों में जमा करके ब्याज भी अर्जित किया जा सकता है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA-II)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दो दोषों को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष

  1. दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय तभी सम्भव हो सकता है जबकि दो ऐसे व्यक्ति आपस में मिल जायें जो उनकी आवश्यकता की वस्तु को आपस में बदलने के लिए तैयार हों। ऐसा संयोग मिलना बहुत कठिन होता है।
  2. मूल्य मापन में कठिनाई – यदि दोहरा संयोग मिल भी जाता है तो भी विनिमय तब तक सम्भव नहीं हो सकता जबकि वस्तु अदला-बदली की मात्रा पर सहमति न हो। किस वस्तु के बदले कितनी दूसरी वस्तु दी जाए। इसका निर्धारण करना बहुत कठिन कार्य है।

प्रश्न 2.
मुद्रा के दो आकस्मिक कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा के आकस्मिक कार्य –

  1. सामाजिक आय का वितरण – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण के कार्य को सरल बनाती है। उत्पादन के क्षेत्र में भी उत्पत्ति के साधनों में न्यायपूर्ण ढंग से आय के वितरण को मुद्रा ने ही सम्भव बनाया है।
  2. साख का आधार – मुद्रा के ऊपर ही साख का विशाल भवन तैयार होता है। आजकल साख-पत्रों को बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है लेकिन साख पत्रों का प्रयोग भी मुद्रा के कारण ही सम्भव हुआ है। उदाहरण के लिए कोई भी व्यक्ति चेक का प्रयोग तभी कर सकता है जबकि बैंक में उसके खाते में पैसा जमा हो।

प्रश्न 3.
मुद्रा का सामाजिक क्षेत्र में महत्व बताइए।
उत्तर:
मुद्रा ने व्यापार एवं उद्योगों का विकास करके समाज के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। सामाजिक कल्याण के स्तर को मापना मुद्रा द्वारा ही सम्भव हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य को बढ़ावा मुद्रा के कारण ही सम्भव हो पाया है। आजकल जन कल्याणकारी सरकारें जनता के कल्याण के लिए अनेको योजनाएँ चलाती हैं। इन योजनाओं का क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन मुद्रा के द्वारा ही सम्भव हो पाया है।

प्रश्न 4.
मुद्रा का राजस्व के क्षेत्र में महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आजकल सभी सरकारें अपना वार्षिक बजट तैयार करती हैं। बजट को मौद्रिक इकाई में ही तैयार किया जाता है। मुद्रा द्वारा ही सरकारों के आय-व्यय का निर्धारण होता है। करों का निर्धारण एवं उनकी वसूली करना तथा विभिन्न योजनाओं पर व्यय को अलग-अलग शीर्षकों के अन्तर्गत बाँटना मुद्रा ने ही सम्भव बनाया है। वर्तमान सरकारें जनकल्याण एवं | सामाजिक सुरक्षा के अनेक कार्यों को सम्पादित करती है। उन योजनाओं पर होने वाले व्यय का अनुमान लगाना तथा व्यय करने के बाद उसका मूल्याकंन करना मुद्रा के बिना असम्भव है।

प्रश्न 5.
मुद्रा को एक महत्वपूर्ण आविष्कार क्यों माना जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के चलन से पहले वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी। इस प्रणाली में लोगों को अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को प्राप्त करने में काफी कठिनाई होती थी तथा अनेको बार व्यक्ति अपनी आवश्यकता की वस्तु को प्राप्त करने में सफल हो नहीं हो पाता था क्योंकि ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ना बहुत कठिन कार्य था जो उसकी आवश्यकता की वस्तु को देकर उसकी अतिरिक्त या अनावश्यक वस्तु को बदले में ले सके। यदि ऐसा व्यक्ति मिल भी जाए तो मूल्य निर्धारण में कठिनाई आती थी। मुद्रा ने इस कठिनाई को पूरी तरह समाप्त कर दिया तथा आर्थिक क्रियाओं को मुद्रा द्वारा संचालित करना बहुत आसान हो गया। इसी कारण मुद्रा को एक महत्वपूर्ण आविष्कार के रूप में देखा जाता है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुद्रा के सहायक एवं आकस्मिक कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(अ) मुद्रा के सहायक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के सहायक कार्यों से आशय उन कार्यों से है जो मुद्रा के प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता करते हैं। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

1. मूल्य संचय का साधन (Means of Store of Value) – वस्तुओं के नाशवान होने के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में आये को संचित करने में कठिनाई होती थी लेकिन मुद्रा में टिकाऊपन होने के कारण इसने इस कार्य को सरल बना दिया है। आजकल कोई भी व्यक्ति मुद्रा के रूप में धन को संचित करके रख सकता है।

2. भावी भुगतान का आधार (Basis of deferred Payment) – मुद्रा ने भावी भुगतानों को सरल एवं सम्भव बनाया है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में ज्यादा स्थिरता होती है। आजकल ज्यादातर व्यापारिक लेन-देन उधार होते हैं। मुद्रा के रूप में इसको भविष्य में एक मुश्त अथवा किश्तों के रूप में प्राप्त किया जा सकता है तथा उधारी की राशि पर ब्याज भी वसूला जा सकता है।

3. क्रय-शक्ति का हस्तांतरण (Transfer of purchasing Power) – मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी संचित क्रय शक्ति अथवा मूल्य को दूसरे स्थान पर अथवा दूसरे व्यक्ति को आसानी से हस्तांतरित कर सकता है। ऐसा करने से उसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में यह सुविधा नहीं थी।

(ब) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money) – मुद्रा द्वारा कुछ ऐसे कार्य भी किए जाते हैं। जो मुद्रा को और भी सुविधाजनक एवं उपयोगी बना देते हैं। इन कार्यों को आरम्भिक कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

1. सामाजिक आय का वितरण (Distribution of Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण के कार्य को सरल करती है। आजकल बड़े पैमाने पर उत्पादन होने के कारण उत्पादन प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। उत्पादन कार्य करने के लिए उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को उचित अनुपात में जुटाना होता है तथा उत्पादने से प्राप्त आय को इन साधनों में बाँटना होता है। यह कार्य मुद्रा के माध्यम से ही सम्भव है। उत्पत्ति के साधनों के योगदान के अनुपात में ही मुद्रा द्वारा उनमें आय का वितरण किया जाता है।

2. साख का आधार (Basis of Credit) – बड़े पैमाने के उत्पादन के इस दौर में बैंकों का कार्यक्षेत्र काफी बढ़ गया है। उनके द्वारा अनेको रूपों में जमाएँ स्वीकार की जाती हैं तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऋण भी प्रदान किए जाते हैं। बिना मुद्रा के इन कार्यों को करना सम्भव नहीं है। मुद्रा ही साख का आधार होती है।

3. सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of Property) – मुद्रा ही धन एवं पूँजी को तरल रूप प्रदान करती है। इसके तरल रूप में होने के कारण किसी भी कार्य में इसका तत्काल प्रयोग किया जा सकता है। इससे पूँजी की उत्पादकता में वृद्धि होती है। पूँजी को बड़ी आसानी से कम लाभदायक विनियोग से निकालकर अधिक लाभदायक विनियोग में लगाया जा सकता है।

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों का वर्णन कीजिए। मुद्रा ने किस प्रकार इन दोषों को दूर किया है?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष – इसके उत्तर के लिए पाठ्य पुस्तक के निबंधात्मक प्रश्न 2 के उत्तर को देखें।

मुद्रा द्वारा वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों का निराकरण-मुद्रा के प्रादुर्भाव ने वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को पूरी तरह दूर कर दिया है तथा विनिमये कार्य को बहुत सरल बना दिया है। अब उपभोक्ताओं को दोहरे संयोग की आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी अतिरिक्त वस्तु को बाजार में बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा उस मुद्रा से अपनी आवश्यकता की वस्तु प्राप्त कर सकता है। मुद्रा ने मूल्यमापन के कार्य को भी सरल कर दिया है। बाजार में माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के आधार पर मूल्य निर्धारित होता है और उसे मुद्रा के रूप में ही प्राप्त किया जाता है। मुद्रा को आसानी से विभाजित किया जा सकता है। विभिन्न मूल्य की मुद्रा होने के कारण भुगतान में कोई कठिनाई नहीं होती है। मुद्रा में स्थायित्व का गुण होता है अतः भावी भुगतान में भी कोई परेशानी नहीं होती है। मुद्रा नाशवान न होने के कारण आसानी से संचित की जा सकती है। मुद्रा ने मूल्य हस्तान्तरण की समस्या को भी पूरी तरह हल कर दिया है। मुद्रा को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को तथा एक स्थान से दूसरे स्थान को आसानी से हस्तान्तरित किया जा सकता है।

अतः स्पष्ट है कि मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को पूरी तरहे दूर कर दिया है।

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