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एम्पीयर का नियम चुम्बकीय क्षेत्र के सम्बन्ध में क्या है :
किसी धारा वितरण के लिए चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात कर सकते है। अर्थात जब किसी चालक तार इत्यादि में धारा समान रूप से प्रवाहित हो रही हो तो इस तार के कारण किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र का मान क्या होगा यह हमने पढ़ लिया था।
मान लीजिये चालक तार में विद्युत धारा का वितरण समान न हो अर्थात तार में एक समान धारा प्रवाहित न हो रही हो तो इस चालक तार के कारण किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करने में बायो सावर्ट का नियम कठिन पड़ जाता है , इस स्थिति में हम दूसरा नियम काम में लेते है इस नियम को एम्पीयर का नियम कहते है।
अतः एम्पीयर का नियम तब काम में लिया जाता है जब विद्युत धारा का वितरण असममित हो और हमें इस असममित धारा के कारण किसी बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करना हो।
एम्पीयर के नियम की परिभाषा:
इस नियम के अनुसार ” निर्वात या वायु में किसी भी बंद पथ के अनुदिश चुम्बकीय क्षेत्र का रेखीय समाकलन (∫B.dl ) , निर्वात की चुंबकशीलता (μ0) व उस पथ से गुजरने वाली धाराओं के बीजगणितीय योग (ΣI) के बराबर होता है “
अतः इसको गणितीय रूप में निम्न प्रकार लिख सकते है
∫B.dl = μ0 ΣI यहाँ ∫B.dl चुम्बकीय क्षेत्र का रेखीय समाकलन है , इसे ज्ञात करने के लिए तार को छोटे छोटे अल्पांश में मानकर जिनकी लम्बाई dl है के कारण चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात किया जाता है और फिर सबका योग किया जाता है।
μ0 निर्वात की चुंबकशीलता है।
ΣI पथ से गुजरने वाली धाराओं के बीजगणितीय योग है , इसका मान ध्यान पूर्वक ज्ञात किया जाता है क्योंकि इसमें धारा किदिशा भी ज्ञात करनी पड़ती है।
धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए दाहिने हाथ का नियम काम में लेते है तथा विद्युत धारा के मान के साथ दिशा का उपयोग करते हुए पथ से गुजरने वाली धाराओं के बीजगणितीय योग ज्ञात करते है।
Remark:
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