UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए बहुमूल्य संसाधन होते हैं, यदि वे स्वस्थ्य, शिक्षित एवं कुशल हों, क्योंकि मानवीय संसाधन के बिना आर्थिक क्रियाएँ संभव नहीं हैं। मानव, श्रमिक, प्रबन्धक एवं उद्यमी के रूप में समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन करता है। इसे मानव संसाधन भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
मानवीय संसाधन अन्य संसाधनों से इस प्रकार भिन्न है

  1. मानवीय संसाधन उत्पादन का एक अत्याज्य (Indispensable) साधन है।
  2. मानवीय संसाधन श्रम, प्रबंध एवं उद्यमी के रूप में कार्य करता है।
  3.  मानवीय संसाधन उत्पादन को एक जीवित, क्रियाशील एवं भावुक साधन है।
  4.  मानवीय संसाधन कार्य कराता है और अन्य साधनों को कार्यशील करता है।

प्रश्न 3.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी (मानव संसाधन) निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं।
इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह शिक्षा ही है जो एक व्यक्ति को उसके सामने उपलब्ध आर्थिक अवसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और कुल उत्पादकता में वृद्धि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी निर्माण अथवा मानव संसाधन विकास में स्वास्थ्य की प्रमुख भूमिका है, जिसे हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं

  1. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अपनी क्षमता एवं बीमारी से लड़ने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
  2. केवल एक पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति ही अपने काम के साथ न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के कामकाजी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  3. एक अस्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संगठन एवं देश के लिए दायित्व है। कोई भी संगठन ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखेगा जो खराव स्वास्थ्य के कारण पूरी दक्षता से काम न कर सके।
  4.  स्वास्थ्य न केवल किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है अपितु मानव संसाधन विकास में वर्धन करता है जिस पर देश के कई क्षेत्रक निर्भर करते हैं।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
स्वास्थ्य मानव को स्वस्थ, सक्रिय, शक्तिशाली एवं कार्य कुशल बनाता है। यह सही कहा गया है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग होता है। अच्छा स्वास्थ्य एवं मानसिक जागरुकता एक मूल्यवान परिसंपत्ति है जो मानवीय संसाधन को देश के लिए एक संपत्ति बनाती है। स्वास्थ्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है।
स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुदृढ़ता शामिल हैं। स्वास्थ्य में परिवार कल्याण, जनसंख्या नियंत्रण, दवा नियंत्रण, प्रतिरक्षण एवं खाद्य मिलावट निवारण आदि बहुत से क्रियाकलाप शामिल हैं यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है तो वह ठीक से काम नहीं कर सकता। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में एक अस्वस्थ मजदूर अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को कम करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता

प्रश्न 6.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती
उत्तर:
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में पृथक्-पृथक संचालित की जाने वाली प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं|

  1.  प्राथमिक क्षेत्र–कृषि, वन एवं मत्स्य पालन, खनन तथा उत्खनन ।
  2. द्वितीयक क्षेत्र—उत्पादन, विद्युत-गैस एवं जल की आपूर्ति, निर्माण, व्यापार, होटल तथा जलपानगृह
  3.  तृतीयक क्षेत्र- परिवहन, भण्डार, संचार, वित्तीय, बीमा, वास्तविक संपत्ति तथा व्यावसायिक सेवाएँ, सामाजिक एवं व्यक्तिगत् सेवाएँ।।

प्रश्न 7.
आर्थिक और गैर आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो जीविका कमाने के लिए और आर्थिक उद्देश्य से की जाती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ उत्पादन, विनियम एवं वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से संबंधित होती हैं। लोगों का व्यवसाय, पेशे और रोज़गार में होना आर्थिक क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का मूल्यांकन मुद्रा में किया जाता है।
गैर-आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए की जाती हैं। और जिनका कोई आर्थिक उद्देश्य नहीं होता, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से संबंधित हो सकती हैं।

प्रश्न 8.
महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर:
महिलाएँ निम्न कारणों से निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं

  1.  ज्ञान व जानकारी के अभाव में महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में कार्य करती हैं जो उन्हें कम मजदूरी देते हैं। उन्हें अपने
    कानूनी अधिकारों की जानकारी भी नहीं है।
  2.  महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उन्हें प्रायः कम वेतन दिया जाता है।
  3. बाजार में किसी व्यक्ति की आय निर्धारण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
  4. भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा कम शिक्षित होती हैं। उनके पास बहुत कम शिक्षा एवं निम्न कौशल स्तर हैं। इसलिए उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
  5.  महिलाएँ भौतिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
  6. महिलाएँ खतरनाक कार्यों (hazardous work) के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं।
  7.  महिलाओं के कार्यों पर सामाजिक प्रतिबंध होता है।
  8. महिलाएँ दूर स्थित, पहाड़ी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में कार्य नहीं कर सकती।

प्रश्न 9.
‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
वह स्थिति जिसके अन्तर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं किन्तु कार्य नहीं प्राप्त कर पाते, तो ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है, यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रच्छत्र एवं मौसमी बेरोजगारी में अंतर इस प्रकार है
प्रच्छन्न बेरोजगारी–इस बेरोजगारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः किसी क्रिया से जुड़े परिवारों के सदस्यों के साथ होता है।

जिस काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है किन्तु उसमें आठ लोग लगे हुए हैं, जहाँ 3 लोग अतिरिक्त हैं। यदि इन 3 लोगों को हटा लिया जाए तो भी उत्पादकता कम नहीं होगी। यही बचे 3 लोग प्रच्छन्न बेरोजगारी में शामिल हैं।
मौसमी बेरोजगारी-वर्ष के कुछ महीनों के दौरान जब लोग रोजगार नहीं खोज पाते, तो ऐसी स्थिति मौसमी बेरोजगारी कहलाती है।
भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोजगार नहीं है। यह मौसमी है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है। कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बिजाई, कटाई, निराई और गहाई की जाती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

प्रश्न 11.
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर:
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक कठिन चुनौती के रूप में उपस्थित हुई है। मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है।
एक विरोधाभासी जनशक्ति-स्थिति सामने आती है क्योंकि कुछ वर्गों में अतिशेष जनशक्ति अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी के साथ-साथ विद्यमान है। एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों में बेरोजगारी व्याप्त है जबकि दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी तकनीकी कौशल की कमी है।

उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। । अधिकांश शिक्षित बेरोज़गारी शिक्षित मानवशक्ति के विनाश को प्रदर्शित करती हैं। बेरोजगारी सदैव बुरी है किन्तु यह हमारी शिक्षित युवाओं की स्थिति में एक अभिशाप है। हम अपने कुशल दिमाग का उपयोग करने योग्य नहीं होते।

प्रश्न 12.
आपके विचार से भारत किस क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर:
सेवा क्षेत्र भारत में सर्वाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकता है। भूमि की अपनी एक निर्धारित सीमा है जिसे बदला नहीं जा सकता है अतः कृषि क्षेत्र में हम अधिक रोजगार के अवसर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। कृषि में पहले से ही छिपी बेरोजगारी विद्यमान है जबकि दूसरी ओर उद्योग स्थापित करने में बड़े पैमाने पर संसाधन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हम सरलता से नहीं कर सकते हैं।
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है और जिसे उचित शिक्षा, पेशेवर गुणवत्ता एवं कुशल श्रमशक्ति की आवश्यकता है। कुशल लोगों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माँग होती है। अतः हम कह सकते। हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र में रोजगार की असीम सम्भावनायें हैं।

प्रश्न-13.
क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित सुधार करके हम शिक्षित बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं

  1. शिक्षा द्वारा लोगों को स्वावलंबी एवं उद्यमी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. शिक्षा के लिए योजना बनाई जानी चाहिए एवं इसकी भावी संभावनाओं को ध्यान में रखकर इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
  3. रोजगार के अधिक अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
  4.  केवल किताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अधिक तकनीकी शिक्षा दी जाए।
  5. शिक्षा को अधिक कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। एक किसान के बेटे को साधारण स्नातक की शिक्षा देने की अपेक्षा इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि खेत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है।
  6.  हमारी शिक्षा प्रणाली को रोज़गारोन्मुख (Job oriented) एवं आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उच्च स्तर तक सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् विभिन्न शैक्षिक शाखाएँ प्रशिक्षण के साथ प्रारंभ करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर:
निश्चय ही हम ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि हमने अपने गाँव के वयोवृद्ध लोगों से आर्थिक रूप से पिछड़े गाँवों के बारे में काफी कुछ सुना है। लोगों ने बताया है कि देश की स्वतंत्रता के समय गाँव में मूलभूत सुविधाओं जैसे-अस्पताल, स्कूल, सड़क, बाजार, पानी, बिजली, यातायात का अभाव था।
लेकिन स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से गाँवों में आवश्यक सेवाओं का विस्तार हुआ। गाँव के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। पंचायत ने एक स्कूल खोला जिसमें कई लोगों को रोजगार मिला।
जल्द ही गाँव के बच्चे वहाँ पढ़ने लगे और वहाँ कई प्रकार की तकनीकों का विकास हुआ। अब गाँव वालों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ एवं पानी, बिजली की भी उचित आपूर्ति उपलब्ध थी। सरकार ने भी जीवन स्तर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए थे। कृषि एवं गैर कृषि क्रियाएँ भी अब आधुनिक तरीकों से की जाती हैं।

प्रश्न 15.
किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर:
जिस तरह जल, भूमि, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है उसी प्रकार मानव संसाधन भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। मानव राष्ट्रीय उत्पादन का उपभोक्ता मात्र नहीं है बल्कि वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधनों जैसे-भूमि, जल, वन, खनिज की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ है। भूमि, पूँजी, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन स्वयं उपयोगी नहीं है, वह मानव ही है जो इसे उपयोग करता है या उपयोग के योग्य बनाता है। यदि हम लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें तो जनसंख्या के बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है।
हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है।
इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानवीय पूँजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई बार गुणा किया जा सकता है। भौतिक पूँजी का निर्माण, प्रबंध एवं नियंत्रण मानवीय पूँजी द्वारा किया जाता है। मानवे पूँजी केवल स्वयं के लिए ही कार्य नहीं करती बल्कि अन्य साधनों को भी क्रियाशील बनाती है। मानवीय पूँजी उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी वह स्थिति है जिसके अंतर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं लेकिन कार्य नहीं प्राप्त कर पाते।

प्रश्न 2.
महिलाओं एवं पुरुषों के बीच विभेद को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए चार उपाय बताइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा सामज से लिंग-भेद मिटाने के लिए भिन्न उपाय किए गए हैं-

  1.  विधवा का पुनर्विवाह,
  2.  सती प्रथा से सुरक्षा,
  3. बाल अवस्था में विवाह पर रोक,
  4. लिंग के आधार पर सभी विभेद को रोकना।

प्रश्न 3.
चा गैर-आर्थिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती हैं, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे

  1.  परिवार के सदस्यों के लिए खाना बनाना,
  2. माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाना।
  3. गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था,
  4.  गरीब लोगों के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था।

प्रश्न 4.
‘रोजगार से क्या आशय है?’
उत्तर:
रोजगार से अभिप्राय किसी अनुबंध के अंतर्गत दूसरे व्यक्तियों के लिए कार्य करना और उसके बदले पारितोषिक प्रा करना है। इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं। कर्मचारी कुछ निवेश नहीं करते और न ही व्यवसाय में उनका कोई जोखिम होता है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय झा अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं का लाभ के उद्देश्य से किया गया विक्रय, विनिमय का हस्तांतरण व्यवसाय कहलाता है।
वसाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है।
  2. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय, विनियम एवं हस्तांतरण से संबंधित है।
  3. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार करता है।
  4. व्यवसाय एक निरंतर क्रिया है।
  5.  व्यवसाय में जोखिम का तत्व होता है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति द्वारा प्रदत वस्तु को एकत्र करने या उपलब्ध कराने से जुड़ी क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन एवं खनन आदि।

प्रश्न 7.
द्वितीय क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे क्रियाएँ जो कच्चे माल या प्राथमिक उत्पाद को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदलती हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः उद्योग, विद्युत, बाँध, जल आदि।

प्रश्न 8.
तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
इस क्षेत्र में वे क्रियाएँ आती हैं जो आधुनिक कारखानों को चलाने या प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों क्षेत्रों की क्रियाएँको सहारा देने के लिए तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं।
उदाहरणतः बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा आदि।

प्रश्न 9.
भारत में सभी राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएँ एक समान नहीं हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में अनेक स्थान हैं जिनमें मौलिक स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। केवल चार राज्यों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में देश के कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से 81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार क्रियाएँ किस तरह गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 4

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 4

प्रश्न 2.
भौतिक पूँजी और मानव पूंजी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 5

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 5

प्रश्न 3.
अल्प रोजगार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति पूर्ण समय का कार्य प्राप्त नहीं कर पाता तो यह अल्प रोजगार कहलाता है। यदि कार्य में परिवर्तन से किसी व्यक्ति की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है तो भी उसकी अल्प रोज़गार में गणना की जाती है। अल्प रोजगारी की समुस्या भी ढंकी-छुपी बेरोज़गारी से संबंधित है, जहाँ श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य या नकारात्मक हो जाती है। ।
स्व रोज़गार से संबंधित लोगों में अल्प रोज़गार अधिक होता है। आकस्मिक रोज़गार वाले लोगों में भी यह अधिक पाया जाता है। कृषि एवं इसकी सहायक क्रियाओं में अल्प रोज़गार का दबाव अधिक महसूस किया जाना है। लगभग इस क्षेत्र में 36.3% अल्प रोज़गारी है।

प्रश्न 4.
प्रौढ़ साक्षरता दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की दर एवं प्रतिशत जो अपने दैनिक जीवन में छोटे और सरल वाक्य पढ़, लिख और समझ सकते हैं, वह साक्षर कहे जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि साक्षर व्यक्ति अवश्य कुछ निश्चित कथन पढ़ने एवं लिखने योग्य होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करने योग्य है किंतु सरल वाक्यों को पढ़ने एवं लिखने योग्य नहीं है तो वह साक्षर नहीं है।
इसी प्रकार केवल पढ़ने की योग्यता या केवल लिखने की योग्यता किसी व्यक्ति को साक्षर नहीं। बनाती है। साक्षरता निःसंदेह लोगों की गुणवत्ता का प्रतीक है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसंपत्ति है; इसे सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसंपत्ति। किन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक परिसंपत्ति बनाया जा सकता है यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के उपभोक्ता मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं।
वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं।
भूमि एवं पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।

प्रश्न 6.
यह सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण दीजिए कि मानव पूँजी में निवेश समृद्धशाली प्रतिफल देता है।
उत्तर:
लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करने से जनसंख्या के एक बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हमें जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।
इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
बेरोजगारी के प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं

  1.  किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
  2. बेरोजगार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
  3. किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो अंततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती है।
  4.  बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक परिसंपत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाती हैं।
  5.  बेरोजगारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोजगारों की कार्यरत जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशी बढाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए थे

  1. बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा-बच्चा देख-रेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्युदर में कमी आई है। शिशु मृत्युदर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम हो कर 2001 में 63 रह गई।
  2.  जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। शिशु मृत्यु दर जो 1951 में 25 प्रति हजार थी वह 2001 में घट कर 8.1 प्रति हजार हो गई।
  3. जीवन प्रत्याशी 2011 में बढ़कर 64 वर्ष से अधिक हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि लोग किस प्रकार संपत्ति के रूप में संसाधन होते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए वास्तविक एवं बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। इसे निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है–

1. मानव साधन की गुणवत्ता लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर का चिन्ह या पहचान है। इस प्रकार मानव विकास को वृद्धि की आवश्यकता है।
2. स्वस्थ, शिक्षित, कुशल एवं अनुभवी लोग राष्ट्र की संपत्ति होते हैं जबकि अस्वस्थ, अशिक्षित, अकुशल एवं अनुभवहीन लोग एक बोझ हैं।
3. मानवीय संसाधन सभी आर्थिक क्रियाओं का अत्याज्य साधन है। सभी उत्पादित क्रियाओं को भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं उद्यम जो उत्पादन के साधन हैं और उसकी आवश्यकता होती है। इन साधनों में से श्रम, संगठन एवं उद्यम मानवीय संसाधन हैं। इसके बिना उत्पादित क्रियाएँ संभव नहीं हैं।
5. मानवीय साधन उत्पादन का केवल आवश्यक तत्व ही नहीं बल्कि यह अन्य उत्पादन के साधनों को भी कार्यशील बनाता है।

प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार वृद्धि हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर:
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रमुख प्रयास

  1. महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं घर से बाहर कार्य करने के संबंध में पारंपरिक विचार को परिवर्तित करने के लिए समाज में सार्वजनिक चेतना का विकास किया जाना चाहिए।
  2. महिलाओं के कार्य के दौरान उनके बच्चों की देख-रेख के लिए शिशुपालन केन्द्र (creches) की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. महिलाओं को अधिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  4. नियुक्तिकर्ताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए कि महिलाओं को रोज़गार प्रदान करें।
  5. महिलाओं के कार्य के लिए आवासीय स्थान प्रदान करना चाहिए। कार्य करने वाली महिलाओं के लिए छात्रावास बनाए जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
महिलाओं द्वारा किए जाने वाले गैर-भुगतान कार्य को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
महिलाओं द्वारा संपादित गैर भुगतान कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  कल्याण क्रियाएँ-मानवीय रूप से कल्याण के लिए दी गई सेवाएँ एवं पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए | किए गए कार्यों का भुगतान नहीं किया जाता।
  2.  सांस्कृतिक क्रियाएँ–सांस्कृतिक क्रियाओं में महिलाओं के योगदान जैसे-नृत्य, नाटक, गीत आदि से उनको कोई कमाई नहीं होती।
  3. धार्मिक क्रियाएँ–कीर्तन, भजन, धार्मिक गान, भगवती जागरण आदि सेवाएँ गैर भुगतान होती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक एवं आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्रियाएँ-उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सेवाएँ जो निजी, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक खुशी की संतुष्टि के उद्देश्य से की जाती हैं वह भी भुगतान प्राप्त नहीं करती।
  5. घरेलू क्रियाएँ-महिलाओं को घरेलू सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होती है जैसे-खाना बनाना, सफाई, धुलाई, कपड़े धोना आदि। जिनके लिए उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें सब कार्य उनके उत्तरदायित्व पर करने होते हैं।
  6. दान क्रियाएँ-पड़ोसियों, कमज़ोरों एवं गरीब लोगों को दान के रूप में सेवाएँ प्रदान करने का भी भुगतान नहीं किया जाता।
  7. सामाजिक सेवाएँ समाज के लाभ के लिए प्रदान की गई सेवाएँ जैसे-गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सफाई के लिए भी भुगतान प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 4.
“मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जनसंख्या शिक्षित नहीं होगी तो वह उत्तरदायित्व में बदल जाएगी। उचित शिक्षा प्रदान करके हम किसी बच्चे को अच्छी तरह विकसित एवं कोई भी काम करने योग्य बना सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में सुधार करती हैं। इससे सकल उत्पादकता में वृद्धि होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि करती है।
बदले में यह व्यक्ति को वेतन एवं अन्य विकल्प प्रदान करती है।
मानव संसाधन विकास में शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान
के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है।

प्रश्न 5.
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
उत्तर:
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं-

  1. हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को सार्वभौमिक निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान के नाम से एक योजना प्रारंभ की है।
  2.  लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
  3.  प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
  4. उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।
  5. स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारंपरिक उपाय कर रही है।
  6. उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
  7. कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल उपलब्ध कराए गए हैं।
  8. दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अंत तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया।
  9. यह योजना दूरस्थ शिक्षा, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित हैं।

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