Sandhi Viched in Sanskrit

Sandhi Viched in Sanskrit – संस्कृत मे सन्धि विच्छेद को समझाइये।

हेलो स्टूडेंट्स, आज हम इस आर्टिकल में संस्कृत मे सन्धि विच्छेद (Sandhi Viched in Sanskrit) के बारे में पढ़ेंगे | यह हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसे हर एक विद्यार्थी को जानना जरूरी है |

Sandhi Viched in Sanskrit

संस्कृत मे सन्धि विच्छेद को समझाइये।

दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को व्याकरण में संधि कहते हैं अर्थात दो निर्दिष्ट अक्षरों के पास पास आने के कारण, उनके संयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते हैं। जैसे विद्या + आलय = विद्यालय

सन्धि मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।

1-स्वर संधि  2-विसर्ग संधि  3-व्यंजन संधि

दो स्वरों के पास पास आने से जो सन्धि होती है उसे स्वर सन्धि कहते हैं। जैसे विद्या + आलय = विद्यालय, यहाँ पर अ+आ मिलकर आ हो जाता है इस लिए यह स्वर संधि है।

स्वर संधि के निम्न भेद हैं-

१-दीर्घ संधि

२-गुण संधि

३-वृद्धि संधि

४-यण संधि

५-अयादि संधि

सूत्र-  अक: सवर्णे दीर्घ:

यदि प्रथम शब्द के अंत में हृस्व अथवा दीर्घ अ, इ, उ, में से कोई एक वर्ण हो और द्वितीय शब्द के आदि में उसी का समान वर्ण हो तो दोनों के स्थान पर एक दीर्घ हो जाता है। यह दीर्घ संधि कहलाती है।

जैसे –

(क) अ + अ = आ,  अ + आ = आ,    आ + अ = आ,   आ + आ = आ

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ (अ + अ = आ )

हिम + आलय = हिमालय (अ + आ = आ)

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय (अ + आ =आ)

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)

विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ)

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(ख)  इ + इ = ई, इ + ई = ई, ई + इ = ई, ई + ई = ई

रवि + इंद्र = रवींद्र (इ + इ = ई)

मुनि + ईश = मुनीश (इ + ई = ई)

मही + इंद्र = महींद्र (ई + इ = ई)

नदी + ईश = नदीश (ई + ई = ई)

(ग) उ + उ = ऊ,  उ + ऊ = ऊ,    ऊ + उ = ऊ,   ऊ + ऊ = ऊ

भानु + उदय = भानूदय (उ + उ = ऊ)

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि (उ + ऊ = ऊ)

वधू + उत्सव=वधूल्लेख (ऊ + उ = ऊ)

वधू + ऊर्जा=वधूर्जा (ऊ + ऊ = ऊ)

सूत्र- आद्गुणः

यदि प्रथम शब्द के अंत में हृस्व अथवा दीर्घ अ हो और दूसरे शब्द के आदि में हृस्व अथवा दीर्घ इ, उ,ऋ में से कोई वर्ण हो तो अ + इ = ए, आ + उ=ओ ,अ + ऋ = अर् हो जाता है। यह गुण संधि कहलाती है। जैसे –

(क) अ + इ = ए,   अ + ई = ए,   आ + इ = ए,   आ + ई = ए

नर + इंद्र = नरेंद्र ( अ + इ = ए)

नर + ईश= नरेश (अ + ई = ए)

महा + इंद्र = महेंद्र (आ + इ = ए)

महा + ईश = महेश (आ + ई = ए)

(ख) अ + उ = ओ, आ + उ = ओ, अ + ऊ = ओ, आ + ऊ = ओ

ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश (अ + उ = ओ)

महा + उत्सव = महोत्सव (आ + उ = ओ)

जल + ऊर्मि = जलोर्मि (अ + ऊ = ओ)

महा + ऊर्मि = महोर्मि (आ + ऊ = ओ)

(ग) अ + ऋ = अर्

देव + ऋषि = देवर्षि (अ + ऋ = अर्)

(घ) आ + ऋ = अर्

महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)

वृद्धि संधि

सूत्र- वृद्धिरेचि

जब अ अथवा आ के बाद “ए” या “ऐ” आवे तब दोनों (अ +ए अथवा अ +ऐ) के स्थान पर “ऐ” और जब ओ अथवा औ आये तब दोनों स्थान में “औ” बृद्धि हो जाती है। इसे बृद्धि संधि कहते है। जैसे –

(क) अ + ए = ऐ  अ + ऐ = ऐ,  आ + ए = ऐ, आ + ऐ = ऐ

एक + एक = एकैक (अ + ए = ऐ)

मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)

सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ )

(ख) अ + ओ,  आ + ओ = औ, अ + औ = औ, आ + औ = औ,

वन + औषधि = वनौषधि (अ + ओ = औ)

महा + औषधि = महौषधि ( आ + ओ = औ)

परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)

महा + औषध = महौषध (आ + औ = औ)

सूत्र- इको यणचि

हृस्व अथवा दीर्घ इ, उ,ऋ के बाद यदि कोई सवर्ण ( इनसे भिन्न ) स्वर आता है तो इ अथवा ई के बदले य्,उ अथवा ऊ के बदले व्,ऋ के बदले र् हो जाता है। इसे यण संधि कहते है। जैसे –

यदि + अपि = यद्यपि (इ + अ = य् + अ)

इति + आदि = इत्यादि (ई + आ = य् + आ )

नदी + अर्पण = नद्यर्पण (ई + अ = य् + अ)

देवी + आगमन = देव्यागमन (ई + आ = य् + आ)

अनु + अय = अन्वय (उ + अ = व् + अ)

सु + आगत = स्वागत (उ + आ = व् + आ)

अनु + एषण = अन्वेषण (उ + ए = व् + ए)

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा (ऋ + अ = र् + आ)

अयादि संधि

सूत्र- एचोऽयवायावः

ए, ऐ और ओ, औ के बाद जब कोई स्वर आता है तब “ए” के स्थान पर अय्, ओ के स्थान पर “अव” ऐ के स्थान पर आय, तथा औ के स्थान पर आव, हो जाता है। यह अयादि संधि कहलाती है। जैसे –

ने + अन = नयन ( ए + अ = अय् + अ)

गै + अक = गायक (ऐ + अ = आय् + अ)

पो + अन = पवन ( ओ + अ = अव् + अ)

पौ + अक = पावक (औ + अ = आव् + अ)

विसर्ग संधि

विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मिलाने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे –

निः + छल = निश्छल

दुः + शासन = दुश्शासन

मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

मनः + बल = मनोबल

नमः + ते = नमस्ते

निः + रोग = निरोग

निः + फल = निष्फल

निः + कलंक = निष्कलंक

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आर्टिकल में अपने पढ़ा कि संस्कृत मे सन्धि विच्छेद (Sandhi Viched in Sanskrit)  किसे कहते हैं, हमे उम्मीद है कि ऊपर दी गयी जानकारी आपको आवश्य पसंद आई होगी। इसी तरह की जानकारी अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करे ।

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