भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों किया था कर्ण का अंतिम संस्कार?

कर्ण बहुत बड़े योद्धा थे लेकिन वे उतने ही महान दानवीर भी थे। उन्होंने कौरवों की ओर महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। उनका जीवन अनेक परिस्थितियों के बीच उलझा हुआ था।

दुर्योधन उन पर बहुत विश्वास करता था। यह भी माना जाता है कि उसने कर्ण की वजह से ही पांडवों से युद्ध करने का दुस्साहस किया था। अगर कर्ण उसके पाले में न होते तो महाभारत के युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।

कर्ण कुंती के पुत्र थे। जब सूर्य ने कुंती को वरदान दिया तो मंत्रबल से उन्हें पुत्र रूप में कर्ण की प्राप्ति हुई थी। चूंकि उस वक्त कुंती अविवाहित थीं, इसलिए उन्होंने कर्ण का त्याग कर दिया। बाद में उन्हें एक रथचालक ने पाला।

रथचालक का पुत्र होने के कारण उन्हें सूतपुत्र कहा गया। यह नाम कर्ण को पसंद नहीं था क्योंकि कई योद्धाओं ने उनका इस नाम से मखौल उड़ाया था। वे युद्धविद्या में पारंगत थे लेकिन उन्हें क्षत्रिय के समान आदर नहीं दिया गया।

कर्ण का विवाह रुषाली नामक कन्या से हुआ था। वह भी एक रथचालक की पुत्री थी। कर्ण ने दूसरा विवाह सुप्रिया से किया था। कर्ण के नौ बेटे थे। महाभारत युद्ध में उनके आठ बेटों की मृत्यु हो गई थी। मात्र एक पुत्र जीवित रहा।

जो पुत्र युद्ध के बाद बच गया, उसका नाम वृशकेतु था। जब उसकी हकीकत पांडवों को मालूम हुई तो उन्हें बहुत दुख हुआ। पांडवों ने वृशकेतु को बहुत स्नेह से रखा और इंद्रप्रस्थ का सिंहासन सौंपा। वृशकेतु कई युद्ध अभियानों में अर्जुन के साथ गया और उसने अनेक युद्ध जीते थे।

कर्ण की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार भूमि पर नहीं किया गया था। उन्होंने श्रीकृष्ण से यह वरदान मांगा था कि मृत्यु के पश्चात मेरी देह का ऐसे स्थान पर अंतिम संस्कार कीजिए जहां कोई पाप न हुआ हो।

संपूर्ण धरती पर ऐसे स्थान की खोज की गई लेकिन कोई जगह ऐसी नहीं मिली जहां पाप न हुआ हो। सिर्फ कृष्ण के हाथ ही ऐसे स्थान थे जहां कोई पाप नहीं हुआ था। इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार कृष्ण के हाथों पर किया गया।

Remark:

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