RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 नर एवं मादा युग्मकोभिद-संरचना व विकास

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 2 नर एवं मादा युग्मकोभिद-संरचना व विकास

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
परागकोष के सबसे भीतरी स्तर टेपीटम का कार्य है –
(अ) स्फुटन
(ब) सुरक्षा
(स) पोषण
(द) यांत्रिकीय

प्रश्न 2.
युबिशकाय बनती है –
(अ) बाह्यत्वचा में
(ब) अत:स्थीसियम में
(स) टेपीटम में
(द) अध्यावरण में

प्रश्न 3.
100 परागकण उत्पन्न करने के लिये कितने अर्द्धसूत्री विभाजन परागकोष में आवश्यक होंगे?
(अ) 100
(ब) 75
(स) 50
(द) 25

प्रश्न 4.
मादा युग्मकोभिद् है –
(अ) भ्रूण
(ब) भ्रूणकोष
(स) भ्रूणपोष
(द) सहायक कोशिका

प्रश्न 5.
परिपक्व पॉलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष में पाये जाते हैं –
(अ) सात कोशिकाएँ तथा आठ केन्द्रक
(ब) सात केन्द्रक एवं आठ कोशिकाएँ
(स) आठ कोशिकाएँ एवं आठ केन्द्रक
(द) सात कोशिकाएँ एवं सात केन्द्रक

प्रश्न 6.
आवृतबीजी पादपों में एक परागकण में कितने नर युग्मक बनते हैं।
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला
1. (स)
2. (स)
3. (द)
4. (ब)
5. (अ)
6. (ब)

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टेपीटम कितने प्रकार की होती है? उनके नाम बताइए।
उत्तर
टेपीटम दो प्रकार की होती हैं – अमीबीय टेपीटम तथा ग्रन्थिल या स्रावी टेपीटम।

प्रश्न 2.
पोलन किट क्या है?
उत्तर
अनेक कीट परागित पुष्यों के परागकणों की सतह पर एक तैलीय परत पायी जाती है, जिसे पोलन किट कहते हैं।

प्रश्न 3.
पराग नलिका परागकण के किस स्थल से बाहर निकलती है?
उत्तर
पराग नलिका परागकण जनन छिद्र से बाहर निकलती है।

प्रश्न 4.
अण्ड समुच्चय क्या होता है?
उत्तर
भूणकोष में बीजाण्डद्वारी छोर की तरफ तीन कोशिकाओं का समूह पाया जाता है, जिसे अण्ड समुच्चय कहते हैं।

प्रश्न 5.
द्वितीयक केन्द्रक कैसे बनता है?
उत्तर
ध्रुणकोष में दोनों ध्रुवों से एक-एक केन्द्रक संलीन कोशिका के केन्द्र में आकर आपस में संयुजन करके द्वितीयक केन्द्रक बनाते हैं।

प्रश्न 6.
नागफनी में किस प्रकार का बीजाण्ड पाया जाता है।
उत्तर
कुंडलित बीजाण्ड (Circinotropous Ovule)

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टेपीटम के कार्य लिखिए।
उत्तर
टेपीटम के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. यह वृद्धिशील बीजाणुजन कोशिकाओं, बीजाणुमातृ कोशिकाओं तथा वृद्धिशील सूक्ष्मबीजाणुओं को पोषण उपलब्ध कराता है।
  2. यह एन्जाइम एवं हार्मोन (IAA) का स्रावण करता है जो परागकणों में प्रारम्भिक वृद्धि के लिए संग्रहीत होते हैं।
  3. प्रोउबिस काय उत्पन्न करता हैं जो परिपक्व परागण की बाह्य भित्ति के निर्माण के लिए स्पोरोपोलेनिन तथा अन्य पदार्थ उपलब्ध कराते हैं।
  4. यह परागकणों के लिए विशेष प्रकार की प्रोटीन्स का स्रावण करते हैं जिसके कारण वर्तिकाग्र पर निषेच्यता तथा अनिषेच्यता की पहचान होती है।

प्रश्न 2.
परागकण की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
परागकण की संरचना (Structure of Pollen grain)
प्रत्येक परागकण प्रायः गोलाकार संरचना होती है किन्तु कुछ अन्य जातियों में यह अण्डाकार या बहुभुजी भी हो सकते हैं। प्रत्येक परागकण के केन्द्रक का सघन जीवद्रव्य दो सुनिश्चित भित्तियों द्वारा घिरा होता है। बाहरी भित्ति को बाह्यचोल (Exine) कहते हैं तथा भीतरी भित्ति को अंतश्चोल (Intine) कहते हैं। बाहरी भित्ति स्पोरोपोलेनिन नामक पदार्थ से बनी मोटी भित्ति होती है। यह खुरदरी एवं विभिन्न प्रकार के अलंकरणों (Ornamentation) युक्त होती है। ये अलंकरण जालिकावत्, धारीदार एवं काँटेदार प्रकार के हो सकते हैं। बाह्यभित्ति परागकण को प्रतिरोधी बनाती है। क्योंकि स्पोरोपोलेनिन का भौतिक अथवा जैविक अपघटन आसानी से नहीं। होता है। बाह्य चोल पर छोटी-छोटी छिद्रनुमा संरचनाएँ उपस्थित होती हैं। जिन्हें जनन छिद्र (Germ pores) कहते हैं। इनकी संख्या प्रायः 1-3 होती हैं। अंतश्चोल पतला, कोमल एवं झिल्लीनुमा होता है जो पैक्टिन एवं सैल्युलोज द्वारा निर्मित होता है।

प्रश्न 3.
युबिशकाये क्या होती है?
उत्तर
युबिशकाय (Ubisch bodies)
स्रावी या ग्रन्थिल टेपीटम (Secretory or glundulkar tapetum) को कोशिकाओं में वसीय प्रकृति की गोलाकार संरचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें प्रोयुबिस काय (Proubisch bodies) कहते हैं। प्रोयुबिस काय स्पोरोपोलेनिन नामक पदार्थ के जमने से युबिसकाय (Ubisch bodies) में परिवर्तित हो जाती है जो परागकणों के निर्माण में सहयोग करती है।

प्रश्न 4.
एक प्रारूपिक बीजाण्ड का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर

प्रश्न 5.
पोलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर

प्रश्न 6.
ऋजु एवं प्रतीप बीजाण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
ऋजु एवं प्रतीप बीजाण्ड में अन्तर

 ऋजु बीजाण्ड
(Arthrotropous ovule)
प्रतीप बीजाण्ड
(Anatropous Ovule)
1.यह सीधा होता है।यह बीजाण्डवृन्त की एक पाश्विक वृद्धि के कारण 180° पर घूमकर उल्टा हो जाता है।
2.इसमें बीजाण्ड द्वार, निभाग एवं इसमें बीजाण्ड वृन्त एक सीधी रेखों में होते हैं।इसमें बीजाण्ड द्वार, एवं निभाग सीधी रेखा में होते है और बीजाण्ड़ द्वार हाइलम के समीप आ जाता हैं।
3.यह पोलीगोनोसी तथा पाइपरेसी कुलों में पाया जाता है।यह आवृतबीजियों के 82% कुलों में पाया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परागकोष की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
परागकोष की संरचना (Structure of Pollen Sac)
पुंकेसर (Stamen) को अग्र फूला हुआ भाग परागकोष (Anther) कहलाता है। इसमें दो समान्तर, एक समान, लगभग बेलनाकार दो पराग पालियाँ (Pollen lobes) होती हैं। दोनों पालियाँ सामने की ओर एक गहरे खाँच द्वारा अलग होती हैं। पीछे की ओर ये मोटी पट्टी जो बंध्य (Steril) तथा संवहन (Vascular) ऊतक की बनी होती हैं, से जुड़ी होती है। इसे योजी (Connective) कहते हैं दो पालियों वाले परागकोष को द्विकोष्ठी (Bithecous) कहते हैं।
प्रत्येक परागकोष पाली में प्रायः दो प्रकोष्ठ (Chambers) होते हैं। जिन्हें परागधानी (Pollen sac = Microsporangia) कहते हैं। इनके अन्दर लघु बीजाणुजनन (Microsporognesis) द्वारा अगुणित लघुबीजाणुओं (Microspores) यी परागकणों (Pollen grains) का निर्माण होता है। इस प्रकार प्रत्येक परागकोष में चार परागधानियाँ (Microsporangin) होती हैं। एक पाली की दोनों परागधानियाँ आन्तरिक रूप से बंध्य ऊतक से बनी एक पट्टी से आपस में अलग होती हैं। बाहर से देखने पर ये एक छिछले खाँच जैसी दिखती हैं।

नवजात परागकोष की अनुप्रस्थ कार में परागकोष को मुख्य तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है –
1. भित्ति (Wall)
2. बीजाणुधानियाँ (Microsporangia) तथा
3. संवहन ऊतक (Vascular tissue)।

1. पराग कोष भित्ति (Anther wall) : यह बाहर से अन्दर की ओर क्रमशः चार परतों की बनी होती हैं। ये परतें निम्न प्रकार हैं –

  • बाह्यत्वचा (Epidermis) – यह सम्पूर्ण परागकोष को आवरित करने वाली एक कोशिका मोटी बाह्यतम परत होती है। परिपक्व परागकोष में यह परत सूखकर चपटी हो जाती है।
  • अन्तस्थीसियम (Endothecium) : यह स्तर बाह्यत्वचा के ठीक नीचे स्थित होता है। यह स्तर एक कोशिका मोटा होता है। इसकी कोशिकाएँ मोटी एवं त्रिज्यत: दीर्घित होती हैं, इन कोशिकाओं की आन्तरिक स्पर्शरेखीय भित्तियों में सैल्युलोज के जम जाने से U. आकार की पट्टियाँ बन जाती हैं।
  • मध्य स्तर (Middle layer) : अन्तस्थीसियम के अन्दर की ओर 1-3 कोशिका मोटा मध्यस्तर पाया जाता है। ये कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली एवं अल्पकालिक होती हैं।
  • टेपीटम (Tapetum) : यह परागकोष भित्ति की सबसे आन्तरिक एवं विशिष्ट स्तर है एवं बीजाणुजन ऊतक के चारों ओर एकल स्तर के रूप में पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ स्वभाव के आधार पर दो प्रकार की होती हैं – अमीबाभ तथा ग्रन्थिले कोशिकाएँ।

2. बीजाणुधानियाँ (Microsporangia) – द्विपालित परागकोष में चार बीजाणुधानियां पायी जाती हैं जो टेपीटम स्तर द्वारा घिरी होती हैं। प्रारम्भ में बीजाणुधानी के अन्दर समांग बीजाणुजन ऊतक भरा होता है जो विकास के साथ लघु बीजाणुओं अथवा परागकणों का निर्माण करता है।
3. संवहन ऊतक (Vascular tissue) : पराग पालियों के बीच में संवहनी ऊतक उपस्थित होता है जिसका सम्बन्ध पुतंतु से होता है। यह परागकोष को पोषण एवं जल उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 2.
लघुबीजाणु चतुष्क कितने प्रकार के होते हैं? उनको सचित्र उल्लेख कीजिए।
उत्तर
लघुबीजाणु चतुष्क (Microspore tetrad)
बीजाणुधानी के अन्दर लघुबीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित लघुबीजाणुओं का निर्माण करती है। ये चारों लधुबीजाणु प्रारम्भ में एक समूह में विन्यसित होते हैं जिसे लघुबीजाणु चतुष्क (Microspore tetrad) कहते हैं। लघुबीजाणु चतुष्क सामान्यतया पाँच प्रकार के होते हैं।
1. चतुष्फलकीय (Tetrahedral) – इसमें एक ओर से देखने पर केवल तीन लघुबीजाणु दिखाई देते हैं और चौथा इन तीनों के पीछे की ओर स्थित होता है। अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों में इसी प्रकार के लघुबीजाणु
चतुष्क पाए जाते हैं।

2. समद्विपाश्विक (Isobilateral) – इसमें चतुष्क के चारों ओर लघुबीजाणु एक ही तल में दिखाई देते हैं। इस प्रकार के लघुबीजाणु चतुष्क एकबीजपत्री पौधों में पाये जाते हैं।

3. क्रासित (Docuskate) – इसमें दो-दो लघुबीजाणु एक-दूसरे से समकोण बनाते हैं जिससे ऊपर बाले युग्म के दोनों लघुबीजाणु एवं नीचे वाले युग्म का केवल एक बीजाणु दिखाई देता है।
उदाहरण – मैग्नोलिया (Magnolia)

4. T-आकार (T.Shaped) – इसमें चतुष्क के दो लघुबीजाणु अनुप्रस्थ रूप में तथा दो लम्बवत् रूप में विन्यसित रहते हैं।
उदाहरण – एरिस्टोलोकिया (Aristolochea) में।
5. रैखिक (Linear) – इसमें सभी लघुबीजाणु एक रैखिक क्रम में विन्यसित रहते हैं। उदाहरण – हैलोफिला (Halophylla) में।

प्रश्न 3.
बीजाण्ड के विभिन्न प्रकारों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
बीजाण्ड के प्रकार (Types of Ovules)
बीजाण्ड द्वार (Micropyle) तथा निभाग (Chalaza) की पारस्परिक स्थिति के आधार पर बीजाण्ड निम्नलिखित छः प्रकार के होते हैं –
1. ऋजु अथवा आर्थोट्रॉपस बीजाण्ड (Arthotropous ovule) – इस प्रकार का बीजाण्ड सीधा होता है। इसमें बीजाण्डद्वार, निभाग तथा बीजाण्डवृन्त (Funicle) एक ही सीधी रेखा में होते हैं। उदाहरण – पोलीगोनेसी (Polygonaceae) कुल के पौधे; जैसे – पोलीगोनम (Polygortant), रुमेक्स (Rumer) तथा पाइपरेसी (Piperaceae) कुल के पौधे जैसे – पान (Beetel), काली मिर्च (Black piper) आदि में।

2. प्रतीप अथवा एनाटॉपस बीजाण्ड (Anatropous Ovule) – इस प्रकार के बीजाण्ड में बीजाण्डवृन्त की एक पाश्विक (Unilateral) वृद्धि के कारण बीजाण्ड 180° पर घूमकर उल्टा हो जाता है जिससे बीजाण्ड द्वार, हाइलम के समीप आ जाता है तथा बीजाण्ड द्वार तथा निभाग एक सीधी रेखा में ही रहते हैं। आवृतबीजी पौधों के 82% कुलों में इसी प्रकार के बीजाण्ड पाए जाते हैं, जैसे – चना, मटर, अरण्ड इत्यादि।

3. अनुप्रस्थ अथवा एम्फीट्रॉपस बीजाण्ड (Amphitropous Ovule) – इस प्रकार का बीजाण्ड फ्यूनिकल के ऊपर अनुप्रस्थ या समकोण पर स्थित होता है। इसमें बीजाण्ड द्वार तथा निभाग विपरीत ध्रुवों की ओर होते हैं। उदाहरण-एलिस्मेसी (Alismaceae) तथा ब्यूटोमेसी (Butomaceae) कुल के पादप।

4. वक्र या केम्पाइलोट्रॉपस बीजाण्ड (Campylotropous 0vule) – इस प्रकार के बीजाणु में बीजाण्डद्वार एवं निभाग एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं। बीजाण्डु में वक्रता (Curvature) के कारण निभाग (Chalaza) बीजाण्डवृन्त (Funicle) के समकोण पर स्थित होता है। इसमें बीजाण्डकाय एवं भ्रूणकोष (Emryosac) दोनों घोड़े की नाले की भाँति मुड़ जाते हैं, जिससे बीजाण्डद्वार भी बीजाण्डवृन्त के निकट आ जाता है। उदाहरण-ब्रेसीकेसी (Brassicaceae) तथा लैग्युमिनोसी (Leguminoceae) कुल के पौधों में।

5. अर्धप्रतीप या हेमीएनाटॉपस बीजाण्ड (Hemianatropous ovule) – जब बीजाण्ड में बीजाण्ड द्वार एवं बीजाण्डवृन्त इनके समकोण में हों तब इसे अर्द्धप्रतीप बीजाण्ड कहते हैं।
उदाहरण – रेननकुलेसी (Rannunculaceae) तथा प्रिमुलेसी (Primulaceae) कुल के पादपों में।

6. कुण्डलित या सरसीनोट्रॉपस बीजाण्डु (Circinotropous Ovule) – इस प्रकार के बीजाण्ड में बीजाण्डवृन्त अत्यधिक लम्बी होता है तथा पूरा बीजाण्ड 360° पर घूमा हुआ होता है। बीजाण्डवृन्त बीजाण्ड को चारों ओर से घेरे रखता है तथा यह बीजाण्ड से केवल एक बिन्दु पर जुड़ा रहता है। उदाहरण-प्लम्बेजिनेसी (Plumbaginaceae) तथा केक्टेसी (Cactaceae) कुल के पौधों में।।

प्रश्न 4.
आवृतबीजी पादप में नर युग्मकोभिद् के परिवर्धन का सचित्रे वर्णन कीजिए।
उत्तर
आवृतबीजी पादप में नर युग्मकोभिद् का परिवर्धन (Development of Male Gametophyte in Angiospermic plants) – लघुबीजाणु (Microspore), नर युग्मकोभिद् (Male gametophyte) की प्रथम कोशिका होती हैं। यह गाढ़े जीवद्रव्य (Dense protoplasm) एवं स्पष्ट केन्द्रक (Clear nucleus) युक्त होती है। चतुष्क से पृथक् होते ही इसका आकार तीव्रता से बढ़ता है। कोशिकाद्रव्य एक पतली परिधीय झिल्ली के रूप में दिखाई देता है एवं इसमें अनेक रसधानियाँ (Vacuoles) उत्पन्न हो जाती हैं। नर युग्मकोभिद के विकास की कुछ अवस्थाएँ परागण क्रिया से पूर्व तथा कुछ परागण क्रिया के बाद सम्पन्न होती हैं।

परागण से पूर्व लघुबीजाणु का केन्द्रक समसूत्री विभाजन (Mitosis) द्वारा विभाजित होकर एक बड़ा कायिक केन्द्रक (Vegetative nucleus) तथा एक छोटा जनन केन्द्रक (Generative nucleus) बनाता है। इन दोनो केन्द्रको के बीच भित्ति निर्माण (Wall formation) से एक बड़ी कायिक कोशिका (Vegetative cell) तथा एक छोटी जनन कोशिका (Generative cell) बन जाती है। अधिकांश पादपों में प्रायः परागकण की इसी द्विकोशिकीय अवस्था में परागण क्रिया (Pollination process) सम्पन्न होती है जिसमें परागकण परागकोषों से मुक्त होकर वर्तिकाग्र (Stigma) तक पहुँचते हैं।

प्रारम्भ में जनन कोशिका परागकण की भित्ति से संलग्न रहती है, परन्तु अपनी भित्ति का निर्माण पूर्ण करने के पश्चात् परागकण की भित्ति से पृथक हो जाती हैं तथा कायिक केन्द्रक की ओर अग्रसर होती है। परागकण की भित्ति से पृथक होने पर जनन कोशिका का आकार चपटा हो जाता है जो बाद में मसूरादार (Lontcular), दीर्घवृत्ताकर (Eleptical), कृमिरुपी (Wormiform) अथवा तर्करपी (Fusiform) हो सकती है।
इससे आगे का विकास परागण के पश्चात् होता हैं। वर्तिकाग्र से जल | एवं पोषक पदार्थ अवशोषित करके ट्यूब कोशिका (‘T’ub coll) फूल जाती है और परागण के किसी एक जनन छिद्र से परागनली (Pollen tube) के रूप में बाहर आती है।

परागनली वर्तिका में रास्ता बनाती हुई आगे बढ़ती है। पराग नलिका के अग्रस्थ सिरे परे कायिक कोशिका का केन्द्र होता है। तथा इसके पीछे जनन कोशिका होती है। यहीं पर जनन कोशिका में सूत्री विभाजन होता है जिससे दो कोशिकाएँ बन जाती हैं जो दो नर युग्मकों के रूप में कार्य करती हैं। प्रत्येक नर युग्मक एक कोशिकीय, अचल अगुणित व एककेन्द्रकी होता हैं।

प्रश्न 5.
आवृतबीजी पादप में भ्रूणकोष परिवर्धन का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
भ्रूणकोष का परिवर्धन (Development of Female Gametophyte or Embryosac)
गुरुबीजाणु (Megaspore) मादा युग्मकोद्भिद्, की प्रथम कोशिका है। गुरुबीजाणु बीजाण्डकाय से पोषण प्राप्त करके आकार में बड़ा हो जाता है। तथा बीजाण्डकाय का अधिकतम स्थान घेर लेता है। इसमें छोटी-छोटी अनेक रिक्तिकाएँ प्रकट होती हैं जो संयुक्त होकर एक बड़ी रिक्तिका का निर्माण करती हैं। गुरुबीजाणु के केन्द्रक में तीन बार मुक्त केन्द्रीय सूत्री विभाजन (Mitosis) होता है जिसके फलस्वरूप आठ केन्द्रकों का निर्माण होता है। प्रथम विभाजन द्वारा निर्मित दोनों केन्द्रक रिक्तिका (Vacuole) के दीर्धीकरण के कारण विपरीत ध्रुवों (निभागीय एवं बीजाण्डद्वारी) पर पहुँच जाते हैं।

ध्रुवों पर पहुँचकर दोनों केन्द्रकों में दूसरा एवं तीसरा समसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप दोनों ध्रुवों पर चार-चार केन्द्रक हो जाते हैं। इस अवस्था तक सभी आठों केन्द्रक एक सामान्य कोशिका में रहते हैं। प्रत्येक ध्रुव पर स्थित चार केन्द्रकों में से एक-एक केन्द्रक कोशिका के मध्य में आकर ध्रुवीय केन्द्रक (Polar nucleus) बनाते हैं। तत्पश्चात् ये दोनों आपस में संयुक्त होकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleuk) का निर्माण करते हैं। इसे संलीन केन्द्रक (Definitive nucleus) भी कहते हैं। बीजाण्डद्वारी सिरे (Micropylar end) पर स्थित तीन केन्द्रक अण्ड समुच्चय अथवा अण्ड उपकरण (Egg apparatus) का निर्माण करते हैं। इस समय भित्ति निर्माण द्वारा ये कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाते हैं।

अण्ड समुच्चय में एक अण्ड कोशिका (Egg cell) तथा दो सहायक कोशिकाएँ (Synergids) होती हैं। इसी प्रकार निभागी सिरे पर स्थित तीनों केन्द्रक संगठित होकर तीन कोशिकाओं का निर्माण करते हैं। जिन्हें प्रतिव्यासांत या प्रतिमुखी कोशिकाएँ (Antipodal cells) कहते हैं। अधिकांश आवृतबीजी पादपों में भ्रूणपोष का परिवर्धन इसी प्रकार से होता हैं। इसे एकबीजाण्विक पोलीगोनम प्रकार (Monosporic Polygonum Type) का परिवर्धन कहते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आवृतबीजी पादपों में किस संरचना को बीजाणुपर्णधारी प्ररोह भी कहते हैं?
उत्तर
आवृतबीजी पादपों में पुष्प (Flower) को बीजाणुपर्णधारी प्ररोह (Sporophyll bearing shoot) भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
एक प्रारूपिक पुष्प के नर तथा मादा जननांगों के नाम लिखिए।
उत्तर

  • नर जननांग – पुमंग (Androecium)
  • मादा जननांग – जायांग (Gynoecium)

प्रश्न 3.
पुमंग (Androecium) के एकल सदस्य का नाम लिखिए।
उत्तर
पुंकेसर (Stamen) पुमंग के एकल सदस्य कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
पुंकेसर को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर
पुंकेसर को लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophyll) के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5.
जायांग (Gynoecium) की एकल इकाई क्या कहलाती है?
उत्तर
जायांग की एकल इकाई अण्डप (Carpel) कहलाती है।

प्रश्न 6.
अण्डप को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर
अण्डप को गुरुबीजाणुपर्ण (Mega sporophyll) नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 7.
पुंकेसर के तीन भागों के नाम बताइए।
उत्तर
पुंकेसर के तीन भाग हैं – परागकोष (Anther), पुतंतु (Filament) तथा योजी (Connective)।

प्रश्न 8.
एक द्विपालीय परागकोष में लघुबीजाणु धानियों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर
एक द्विपालीय परागकोष में चार लघुबीजाणुधानियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 9.
मालवेसी कुल के पादपों के पुमंग के परागकोष में कितनी बीजाणुधानियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर
मालवेसी कुल के पौधों में परागकोष एकपालीय होते हैं। अतः इनमें दो लघु बीजाणुधानियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 10.
प्रपसू कोशिकाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर
प्रत्येक परागपुट की कुछ अध:स्त्वक कोशिकाएँ अन्य कोशिकाओं से आकार में बड़ी एवं सघन जीवद्रव्य युक्त हो जाती हैं जिन्हें प्रपस् कोशिकाएँ (Archesporial initials) कहते हैं।

प्रश्न 11.
आवृतबीजी पादपों में परागकोष का परिवर्धन किस प्रकार का होता है?
उत्तर
आवृतबीजी पादपों में परागकोष का परिवर्धन सुबीजाणुधानीय (Eusphorangiate) प्रकार का होता हैं।

प्रश्न 12.
प्रपसू कोशिका विभाजित होकर कौन-सी दो कोशिकाओं को निर्माण करती हैं?
उत्तर
प्रपसू कोशिका विभाजित होकर प्राथमिक भित्तीय कोशिका तथा प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका बनाती है।

प्रश्न 13.
परागकोष भित्ति का निर्माण किस कोशिका से होता है?
उत्तर
परागकोष भित्ति का निर्माण प्राथमिक भित्तीय कोशिका से होता है।

प्रश्न 14.
परागकोष भित्ति की किस परत में U आकार की रेशेदार पट्टियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर
अन्तस्थीसियम में।

प्रश्न 15.
परागकोष भित्ति का सबसे भीतरी स्तर क्या कहलाता है?
उत्तर
टेपीटम (Tepetum)।

प्रश्न 16.
लघुबीजाणुजनन किसे कहते हैं?
उत्तर
परागकोष की लघुबीजाणुधानी में द्विगुणित लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित लघुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया लघुबीजाणुजनन कहलाती है।

प्रश्न 17.
मैग्नोलिया में किस प्रकार के बीजाणु चतुष्क पाए जाते हैं?
उत्तर
मैग्नोलिया में क्रासित (Decusate) प्रकार के बीजाणु चतुष्क पाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
परागपिण्ड (Pollinium) किसे कहते हैं? एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर
कुछ पादपों में परागकण परस्पर मिलकर एक विशिष्ट संरचना बनाते हैं, जिसे परागपिण्ड (Pollinium) कहते हैं।
उदाहरण – आक।

प्रश्न 19.
बहुबीजाणुता किसे कहते हैं?
उत्तर
यदि एक लघुबीजाणु चतुष्क में चार से अधिक लघुबीजाणु उपस्थित हों तो इस अवस्था को बहुबीजाणुता (Polyapory) कहते हैं।

प्रश्न 20.
नर युग्मकोभिद किसे कहते हैं?
उत्तर
अंकुरित परागकण को नर युग्मकोद्भिद (Male gametophyte) कहते हैं।

प्रश्न 21.
परागकण की बाह्य तथा अन्तः भित्तियाँ किस पदार्थ की बनी। होती हैं?
उत्तर
बाह्य भित्ति स्पोरोपोलेनिन की तथा अन्तः भित्ति पैक्टिन तथा सैल्युलोज की बनी होती है।

प्रश्न 22.
वर्तिकाग्र पर अंकुरण हो जाने के पश्चात् परागनलिका में केन्द्रकों की संख्या तथा उनके नाम लिखिए।
उत्तर
तीन – एक कायिक या ट्यूब केन्द्रक तथा दो नर युग्मक या जनन केन्द्रक।

प्रश्न 23.
नर युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या किस प्रकार की होती है?
उत्तर
नर युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित होती है।

प्रश्न 24.
बीजाण्ड को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर
बीजाण्ड को गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll) के नाम से भी जाना जाता हैं।

प्रश्न 25.
बीजाण्ड वृन्त किसे कहते हैं?
उत्तर
प्रत्येक चीजाण्ड अण्डाशय से एक वृन्तनुमा संरचना द्वारा जुड़ा रहता है जिसे बीजाण्डवृन्त (Funicle) कहते हैं।

प्रश्न 26.
रैफी किसे कहते हैं?
उत्तर
कभी-कभी बीजाण्ड वृन्त के अण्डाशय से जुड़ने के स्थान पर एक उभार जैसी रचना पायी जाती है जिसे रैफी (Raphe) कहते हैं।

प्रश्न 27.
बीजाण्डकाय किसे कहते हैं?
उत्तर
बीजाण्ड का मुख्य भाग मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। जिसमें बीजाण्डकोश धंसा होता है, बीजाण्डकाय (Nucellus) कहलाता है।

प्रश्न 28.
अण्ड समुच्चय की कोशिकाओं के नाम बताइए।
उत्तर
एक अण्ड कोशिका तथा दो सहायक कोशिका।

प्रश्न 29.
पोलीगोनेसी कुल के पौधों में किस प्रकार का बीजाण्ड पाया जाता है?
उत्तर
पोलीगोनेसी कुल के पौधों में ऋजु वीजाण्ड (Arthotropous ovule) पाया जाता है।

प्रश्न 30.
किन पौधों में वक़ बीजाण्ड पाया जाता है? दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर
क्रूसीफेरी कुल (जैसे – सरसों) तथा लैग्युमिनोसी कुल (जैसे – मटर) के पौधों में वक़ बीजाण्ड पाया जाता है।

प्रश्न 31.
गुरुबीजाणु जनन किसे कहते हैं?
उत्तर
गुरुबीजाणु मातृ कोशिका द्वारा गुरुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया गुरुबीजाणुजनन कहलाती है।

प्रश्न 32.
गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्द्धसूत्रण होने पर कितने और कैसे गुरु बीजाणु बनते हैं?
उत्तर
चार अंगुणित गुरुबीजाणु (Haploid Megaspores)।

प्रश्न 33.
मादा युग्मकोभिद् का निर्माण किसके द्वारा होता है?
उत्तर
मादा युग्मकोभिद् का निर्माण सक्रिय गुरुबीजाणु से होता हैं।

प्रश्न 34.
निभागीय छोर पर उपस्थित तीन कोशिकाओं का समूह क्या कहलाता है?
उत्तर
प्रतिव्यासांत या प्रतिमुखी कोशिकाएँ।

प्रश्न 35.
एक बीजाण्विक पोलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष में केन्द्रक व कोशिकाओं की संख्या कितनी होती है?
उत्तर
सात कोशिकाएँ एवं आठ केन्द्रक।

प्रश्न 36.
द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) किसे कहते हैं?
उत्तर
भूणकोष के दोनों ध्रुवों से एक-एक केन्द्रक कोशिका के बीच में आकर संलयित हो जाते हैं तब इसे द्वितीयक केन्द्रक कहते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ, जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है।
उत्तर
एक आवृतबीजी पुष्य में नर युग्मकोभिद् (Male Gametophyte) का विकास पुंकेसर (Stamen) के परागकोष (Anther) में परागकणों के रूप में होता है तथा मादी युग्मकोद्भिद् (Female gametophyte) का विकास स्त्रीकेसर (Pistil) के अण्डाशय (Ovary) में बीजाण्ड (Ovule) के अन्दर भ्रूणकोष (Embryo sac) के रूप में होता है।

प्रश्न 2.
पुंकेसर के विभिन्न भागों के नाम तथा प्रत्येक का कार्य बताइए।
उत्तर
पुंकेसर के तीन भाग होते हैं –
(1) परागकोष
(2) पुतंतु तथा
(3) योजी।

  1. परागकोष (Anther) : इसमें परागकणों का निर्माण होता है।
  2. पुतंतु (Filament) : इसका शीर्ष भाग परागकोष को धारण करता है। तथा इसे जल व पोषण उपलब्ध कराता है।
  3. योजी (Connective) : परागकोष की पालियों को जोड़ता है तथा इसी से पुततु जुड़ा रहता है।

प्रश्न 3.
लघु बीजाणुधानी किसे कहते हैं? आवृतबीजी पादपों में इनकी संख्या बताइए।
उत्तर
लघु बीजाणुधानी (Microsporanrium) – पुंकेसर के परागकोष की अनुप्रस्थ काट को देखने पर यह प्रकोष्ठो (Chambers) में बँटा दिखाई देता है, ये प्रकोष्ठ लघुबीजाणुधानी कहलाते हैं। लघुबीजाणुधानी में लघुबीजाणुओं का निर्माण होता हैं। मालवेसी कुल के पादपों में परागकोष एक पालिय (Single lothed) होता है। ऐसे परागकोष में दो लघुबीजाणुधानियाँ होती है। अधिकांश आवृतबीजियों में परागकोष द्विपालित (Bilobed) होता हैं। द्विपालित परागकोष में चार लघु बीजाणुधानियाँ होती हैं।

प्रश्न 4.
प्रपसू कोशिकाएँ किसे कहते हैं? इससे बनने वाली कोशिकाओं के नाम तथा कार्य बताइए।
उत्तर
विकास की प्रारम्भिक अवस्था में परागकोष एक सुनिश्चित बाह्यत्वचा द्वारा आवरित अविभेदित कोशिकाओं का समरूपी समूह (Homogenous mass) होता है जिसमें अनेक संरचनात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप चार परागपुटों का विभेदन होता है। प्रत्येक परागपुट की कुछ अधस्त्वचीय कोशिकाएँ (Hypodermal cells) अन्य कोशिकाओं से आकार में बड़ी हो जाती हैं, जिन्हें प्रपसू
कोशिकाएँ (Archesporial cells) कहते हैं।
प्रत्येक प्रपसू कोशिका एक परिनतिक विभाजन द्वारा दो कोशिकाओं का निर्माण करती हैं –

  • प्राथमिक भित्तीय कोशिका-यह परागकोष की भित्ति का निर्माण करती हैं।
  • प्राथमिक बीजाणुजनन कोशिका-यह लघुबीजाणुओं का निर्माण करती है।

प्रश्न 5.
प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका (Primary sporogenous cell) वह प्रारम्भिक कोशिका है जिसमें अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) द्वारा चार अगुणित (Haploid = n) बीजाणुओं (Spores) का निर्माण होता है। आवृतबीजी पौधों में दो प्रकार के बीजाणु बनते हैं-लघुबीजाणु (Microspores) तथा गुरुबीजाणु (Megaspores)| अतः पुष्य के नर भाग परागकोष में बीजाणु जनक ऊतक (Sporogenous tissue) से प्राथमिक लघुबीजाणु मातृ कोशिकाएँ (Primary microspore mother cells) तथा मादा भाग बीजाण्ड से गुरुबीजाणु मातृकोशिकाएँ (Megaspore mother cells) का निर्माण होता है।

प्रश्न 6.
2000 परागकणों के निर्माण में कितनी पराग मातृ कोशिकाओं की आवश्यकता होगी? इन कोशिकाओं में किस प्रकार का विभाजन होगा?
उत्तर
पराग मातृ कोशिका (Pollen Mother cell) द्विगुणित (271) होती है, परागकण (Pollen grain) बनाने के लिए इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) होता है तथा प्राय: बीजाणु चतुष्क का समूह बनता हैं। चतुष्क की प्रत्येक कोशिका एक परागकण बनाती हैं। अतः 2000 परागकण बनाने के लिए 2000/4 = 500 पराग मातृ कोशिकाओं की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(i) अन्तस्थीसियम
(ii) टेपीटम
उत्तर
(i) अन्तस्थीसियम (Endothecium) – यह स्तर बाह्यत्वचा के ठीक नीचे स्थित होता है। परागकोष के विस्फुटन के समय इसकी कोशिकाएँ अधिकतम विकसित होती हैं। यह परत प्रायः एक स्तरीय
होती है जिसमें कोशिकाएँ मोटी एवं त्रिज्यतः दीर्घित (Radially elongated) होती हैं। इन कोशिकाओं की आन्तरिक, स्पर्शरेखीय । भित्तियों में सैल्युलोज (G-cellulose) के जम जाने से रेशामय पटिटयाँ बन जाती हैं जो U आकार की दिखाई देती हैं। ये कोशिकाएँ आर्द्रताग्राही प्रकृति (Hygroscopic nature) की होती हैं। शुष्क अवस्था में इनमें खिंचाव या तनाव उत्पन्न होता है जिससे परागकोष के स्फुटन में सहायक होती हैं।

(ii) पोषूतक या टेपीटम (Tapetum) – यह परागकोष भित्ति का सबसे भीतरी तथा विशिष्ट स्तर है। यह बीजाणुजन ऊतक के चारों ओर एकल परत के रूप में पाया जाता है। लघुबीजाणु की चतुष्क अवस्था (Tatrad stage) तक यह स्तर पूर्ण विकसित हो जाता है। इसकी कोशिकाओं का कोशिकाद्रव्य सघन एवं केन्द्रक स्पष्ट होता है। परिपक्व अवस्था में ये कोशिकाएँ प्रायः बहुकेन्द्रकी एवं बहुगुणित हो जाती हैं। आवृतबीजी पादपों में कोशिकाओं के स्वभाव के आधार पर टेपीटम दो प्रकार का होता है-अमीबीय टेपीटम (Amoeboid or Periplasmodial Tapetum) जो कि विकासशील परागकणों का पोषण करता है तथा स्रावी या ग्रन्थिल टेपीटम (Secretory or Glandular Tapetum) जो परागकणों की बाह्य भित्ति (Exine) के निर्माण में सहायक होता है।

टेपीटम की कोशिकाओं में वसीय प्रकृति की गोलाकार संरचनाएँ। प्रो-उबिस काय (Pro-Ubisch bodies) पायी जाती हैं। प्रो-उबिस काय स्पोरोपोलेनिन (Sporopolanin) नामक पदार्थ के जमने से उबिस काय (Ubisch bodies) में परिवर्तित हो जाती हैं तथा परागकणों के बाह्यचोल (Exine) के निर्माण में सहयोग करती हैं।
परागकणों (Pollen grains) के परिवर्धन में टेपीटम पोषण प्रदान करने के साथ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में सहयोग प्रदान करता है। यदि किसी परागकोष में टेपोटम का ह्रास (Degeneration) परागकणों के विकास के पूर्व हो जाता है तो उसके परागकण बन्ध्य (Steril) अथवा रुद्ध वृद्धि (Abortive) वाले होते हैं।

प्रश्न 8.
परागपिण्ड एवं संयुक्त परागकण से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
परागपिण्ड (Pollinium) – कुछ पादपों में परागकण परस्पर मिलकर एक विशिष्ट संरचना बनाते हैं जिसे परागपिण्ड या पोलिनियम कहते हैं। उदाहरण – आक एवं कुछ आर्किड्स।
संयुक्त परागकण (Compound pollen grains) – ड्रॉसेरा एवं टाइफा आदि पौधों में अनेक परागकण चतुष्क परस्पर संलग्न होकर संयुक्त परागकण बनाते हैं।

प्रश्न 9.
परागकोष के स्फुटन के विभिन्न प्रकारों को लिखिए।
उत्तर
परागकोष का स्फुटन (Dehiscence of Anther) – परिपक्व परागकोष के मध्यस्तर (Middle layer) तथा टेपीटम (Tapetum) नष्ट हो जाते हैं। इसमें केवल बाहर की ओर बाह्यत्वचा (Epidermis) तथा अन्दर की ओर अन्तस्थीसियम (Endothecium) शेष रह जाती हैं। अन्तस्थीसियम की कोशिकाओं से जल वाष्प के रूप में उड़ता रहता है जिससे इन कोशिकाओं की पतली बाह्य भित्ति अन्दर की ओर सिकुड़ने लगती है जिससे स्टोमियम (Stomium) की कोशिकाओं पर दबाव उत्पन्न हो जाता है और परागकोष फट जाते हैं। परागकोष का स्फुटन निम्नलिखित चार विधियों द्वारा होता हैं –

  1. अनुप्रस्थ स्फुटन (Transverse Dehiscence) – इस प्रकार के स्फुटन में परागकोष की पालियाँ परागकोष के अनुप्रस्थ स्फुटित होती हैं, जैसे – तुलसी (Ocimum sanctum)।
  2. लम्बवत् स्फुटन (Longitudinal Dehiscence) – इस प्रकार के परागकोष स्फुटन में पराग पालियाँ लम्बवत् स्फुटित होती हैं। जैसे- धतूरा (Daturd), कपास (Gossypium) आदि।
  3. छिद्रमय स्फुटन (Porous Dehiscence) – इसमें परागकोष के शीर्ष पर एक या दो छिद्र बन जाते हैं। जैसे- मकोय (Solanu mnigrum)।
  4. कपाटीय स्फुटन (Valvular Dehiscence) – इस प्रकार के स्फुटन में एक या दो या अधिक कपाट बन जाते हैं जिनसे परागकणों का प्रकीर्णन होता है; जैसे – बारबेरिस (Barberis)।

प्रश्न 10.
बीजाण्ड क्या है? इसके विभिन्न भागों के नाम लिखिए।
उत्तर
बीजाण्ड (Ovule) – अण्डाशय के भीतर अनेक छोटी-छोटी अण्डाकार संरचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें बीजाण्ड कहते हैं। इसे गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium) भी कहते हैं।
बीजाण्ड के विभिन्न भागों के नाम –

  • बीजाण्डवृन्त
  • नाभिका
  • बीजाणुद्वार
  • निभाग
  • बीजाण्डकाय
  • अध्यावरण
  • भ्रूणकोष।

प्रश्न 11.
लघुबीजाणु जनन तथा गुरुबीजाणुजनन में अन्तर लिखिए।
उत्तर
लघुबीजाणु जनन तथा गुरुबीजाणु जनन में अन्तर

 लघु बीजाणु जनन
(Microsporogenesis)
गुरु बीजाणु जनन
(Megasporogenesis)
1.इसमें द्विगुणित (2n) लघुबीजाणु मातृ मातृ कोशिका से अगुणित (n) लघुबीजाणुओं अथवा पराकणों का का निर्माण होता है।इसमें द्विगुणित गुरुबीजाणु कोशिका से अगुणित गुरुबीजाणुओं  निर्माण होता है।
2.यह परागकोष की परागधानी या लघुबीजाणु धानी में होता है।यह बीजाण्ड या गुरुबीजाणु धानी  में होता है।
3.लघुबीजाणुधानी में अनेक लघु बीजाणु मातृ कोशिकाएँ होती हैं।गुरुबीजाणु धानी में प्रायः एकल गुरुबीजाणु मातृ कोशिका होती है।
4.एक लघुबीजाणु मातृ कोशिका से चार लघुबीजाणु बनते हैं। जो चतुष्कीय चतुष्क में व्यवस्थित होते हैं।गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से बने चार गुरुबीजाणु प्रायः रैखिक चतुष्क में व्यवस्थित रहते हैं।
5.प्रायः चारों लघुबीजाणु सक्रिय होते है।केवल एक गुरुबीजाणु सक्रिय होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पराग कोश की भित्ति के विभिन्न स्तरों का विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर
परागकोष भित्ति (Anther wall) – परागकोष भित्ति का निर्माण प्राथमिक भित्तीय कोशिका से होता है। परिपक्व अवस्था में यह अनुप्रस्थ काट में चार स्तरों में दिखाई देती है। ये चारों स्तर परधि से केन्द्र की ओर एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। ये स्तर निम्न प्रकार हैं –
(i) बाह्य त्वचा (Epidermis) – यह परागकोष के सबसे बाहर पायी। जाने वाली परत हैं। यह केवल एक कोशिका मोटी होती है। पराग कोष के विकास के साथ-साथ इसकी कोशिकाओं में अनेक अपनतिक विभाजन (Anticlinal divisions) होते हैं। यह परत परागकोष की सुरक्षा का कार्य करती है। परिपक्व परागकोष की बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ स्पर्श रेखीय दिशा में दीर्घित तथा चपटी होती हैं।

(ii) अन्तस्थीसियम (Endothecium) – यह स्तर बाह्यत्वचा के ठीक नीचे स्थित होता है। परागकोष के विस्फुटन के समय इसकी कोशिकाएँ अधिकतम विकसित होती हैं। यह परत प्रायः एक स्तरीय होती है जिसमें कोशिकाएँ मोटी एवं त्रिज्यतः दीर्धित (Radially elongated) होती हैं। इन कोशिकाओं की आन्तरिक, स्पर्शरेखीय भित्तियों में सैल्युलोज (G1-cellulose) के जम जाने से रेशामय पटिटयाँ बन जाती हैं जो U आकार की दिखाई देती हैं। ये कोशिकाएँ आर्द्रताग्राही प्रकृति (Hygroscopic nature) की होती हैं। शुष्क अवस्था में इनमें खिंचावे या तनाव उत्पन्न होता है जिससे परागकोष के स्फुटन में सहायक होती हैं।

(iii) मध्य स्तर (Middle laver) – यह अन्तस्थीसियम के अन्दर की ओर स्थित होती है तथा एक से तीन परतों की बनी होती है। इसकी कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली तथा अल्पकालिक होती हैं।

(iv) पोषूतक या टेपीटम (Tapetum) – यह परागकोष भित्ति का सबसे भीतरी तथा विशिष्ट स्तर है। यह बीजाणुजन ऊतक के चारों ओर एकल परत के रूप में पाया जाता है। लघुबीजाणु की चतुष्क अवस्था (Tatrand stage) तक यह स्तर पूर्ण विकसित हो जाता हैं। इसकी कोशिकाओं का कोशिकाद्रव्य सघन एवं केन्द्रक स्पष्ट होता हैं। परिपक्व अवस्था में ये कोशिकाएँ प्रायः बहुकेन्द्रकी एवं बहुगुणित हो जाती हैं। आवृतबीजी पादपों में कोशिकाओं के स्वभाव के आधार पर टेपीटम दो प्रकार का होता है-अमीबीय टेपीटम (Amoeboid or Periplasmodial Tapetum) जो कि विकासशील परागकणों का पोषण करता है तथा यावी या ग्रन्थिल टेपीटम (Secretory or Glandular Tapetum) जो परागकणों की बाह्य भित्ति (Exine) के निर्माण में सहायक होता है।

टेपीटम की कोशिकाओं में वसीय प्रकृति की गोलाकार संरचनाएँ प्रो-उबिस काय (Pro-Ubisch bodies) पायी जाती हैं। प्रो-उबिस काय स्पोरोपोलेनिन (Sporopolanin) नामक पदार्थ के जमने से उबिस काय (Ubisch bodies) में परिवर्तित हो जाती हैं तथा परागकणों के बाह्यचोल (Exine) के निर्माण में सहयोग करती हैं।
परागकणों (Pollen grains) के परिवर्धन में टेपीटम पोषण प्रदान करने के साथ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में सहयोग प्रदान करता है। यदि किसी परागकोष में टेपीटम का ह्रास (Degeneration) परागकणों के विकास के पूर्व हो जाता है तो उसके परागकण बन्ध्य (Steril) अथवा रुद्ध वृद्धि (Abortive) वाले होते हैं।

प्रश्न 2.
गुरुबीजाणु पर्ण क्या है? बीजाण्ड की संरचना समझाइए।
उत्तर
आवृतबीजी पादपों में बीजाण्ड की संरचना अत्यंत जटिल होती है। एक प्रारूपिक परिपक्व बीजाण्ड लगभग गोलाकार अथवा दीर्घवृत्तीय संरचना होती है जिसका मुख्य भाग मृदूतकीय कोशिकाओं (Parenchymatous cells) द्वारा निर्मित होता है, जिसे बीजाण्डकाय या न्यूसेलस (Nucellus) कहते हैं। यह प्राय: एक या द्विस्तरीय आवरण से घिरा रहता हैं जिन्हें अध्यावरण (Integuments) कहते हैं। बाहरी आवरण बाह्यअध्यावरण (Outer integument) तथा भीतरी आवरण अन्तःअध्यावरण (Inner integument) कहलाता है। अध्यावरणों की संख्या के आधार पर बीजाण्ड एक अध्यावरणी (Unitegmic), द्विअध्यावरणी (Bitegmic) अथवा अध्यावरणी (Ategmic) हो सकते हैं।

अध्यायवरण बीजाण्डकाय को पूर्ण रूप से नहीं ढकते वरन् इसका कुछ भाग एक पतली नलिका जैसी संरचना का निर्माण करता है, जिसे बीजाण्डद्वार (Micropyle) कहते हैं। बीजाण्डकाय का आधारीय भाग निभाग (Chalaza) कहलाता है। निभाग से ही अध्यावरणों की उत्पत्ति होती है।

प्रत्येक बीजाण्ड एक वृन्तनुमा संरचना द्वारा अण्डाशय की भीतरी भित्ति पर बीजाण्डासन (Placentation) से जुड़ा रहता है। इस वृन्तनुमा संरचना को बीजाण्डवृन्त (Funicle) कहते हैं। बीजाण्डवृन्त बीजाण्ड से जिस स्थल पर जुड़ा रहता है उसे नाभिका (lilum) कहते हैं। कभी-कभी बीजाण्ड वृन्त के जुड़ने के स्थल पर उभारनुमा संरचना पायी जाती है जिसे रैफी (Raphe) कहते हैं।

बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार के समीप मादा युग्मकोभिद् के रूप में भ्रूणकोष (Embryosac) पाया जाता है। भ्रूणकोष में बीजाण्ड द्वार छोर की ओर तीन कोशिकाओं का समूह पाया जाता है, जिसे अण्ड समुच्चय (Egg apparatus) कहते हैं। इसमें नाशपाती के आकार (Pear shaped) की एक अण्ड कोशिका (Egg cell) तथा दो पाश्र्वीय कोशिकाएँ सहाय कोशिकाएँ (Synergids) कहलाती हैं। निभागी छोर की ओर भ्रूणकोष में तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ (Antipodal cells) उपस्थित होती हैं। भ्रूणकोष के मध्य में केन्द्रीय कोशिका (Central cell) उपस्थित होती है, जिसमें दो अगुणित ध्रुवीय केन्द्रक उपस्थित होते हैं जो निषेचन से ठीक पूर्व संयुक्त होकर द्विगुणित (2n) द्वितीयक केन्द्रक (Secondary 0″ definitive nucleus) का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 3.
गुरुबीजाणु जनन की प्रक्रिया का सचित्र उल्लेख कीजिए।
उत्तर
गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) से गुरुबीजाणु (Megaspore) के विकास की प्रक्रिया गुरुबीजाणुजनन कहलाती हैं। बीजाण्डकाय (Nucellus) की अधस्त्वचा Hypodermis) की कोई भी कोशिका प्रपसू आरम्भक (Archesporial initial) का कार्य करती है। यह कोशिका बीजाण्डकाय की अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा आकार में बड़ी होती है। इसका कोशिकाद्रव्य सघन तथा केन्द्रक सुस्पष्ट होता है प्रपसू प्रारम्भिक, परिनतिक विभाजन (Periclinal division) द्वारा बाहर की ओर एक प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary parietal cell) वे भीतर की | ओर एक प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका (Primary sporogenous cell) का निर्माण करती है। प्राथमिक भित्तीय कोशिका या तो अविभाजित रहती है अथवा बारम्बार विभाजित होकर भित्ति का निर्माण करती है। प्राथमिक बीजाणु कोशिका गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore mother (cell) की तरह कार्य करती हैं।

यद्यपि अधिकांश पौधों में प्रत्येक वीजाण्ड में केवल एक ही प्रपसू कोशिका विभाजित होती है परन्तु अनेक द्विबीजपत्री कुलों जैसे- Rosaceae, Compositae, Rannunculaceae, Fogaceae तथा कुछ एक बीजपत्री कुलों जैसे-Liliaceae आदि में एक से अधिक कोशिकाएँ प्रपसूतक (Archesporium) की तरह कार्य करती हैं।

गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) द्वारा विभाजित होकर चार अगुणित (Haploid) गुरुबीजाणुओं (Mogaspores) का निर्माण करती है जो प्रायः रेखी चतुष्क (Linear tetrad) में विन्यसिते रहते हैं।

रेखिक गुरुबीजाणु चतुश्क (Linear megaspore tetrad) में से केवल एक (प्रायः निभाग की ओर वाला) गुरु बीजाणु सक्रिय होता है जो मादा युग्मकोभिद का निर्माण करता है। शेष तीन गुरुबीजाणु अपह्वासित (Degenerate) हो जाते हैं तथा इनका उपयोग सक्रिय गुरुबीजाणु द्वारा पोषण के लिए कर लिया जाता है। सक्रिय गुरुबीजाणु वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा भूणकोष (Embryo sac) अर्थात मादा युग्मकोभिद (Female Gametophyte) का निर्माण करता है।

प्रश्न 4.
नर युग्मकोभिद् तथा मादा युग्मकोभिद् में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
नर युग्मकोभिद् तथा मादा युग्मकोभिद् में अन्तर

 मादा युग्मकोभिद्
(Male Gametophyte)
नर युग्मकोभिद्
(Female Gametophyte)
1.इसका विकास लघुबीजाणु या परागकण से होता है।इसका विकास गुरुबीजाणु से होता है।
2.यह पूर्णरूपेण लघुबीजाणुधानी के अन्दर नहीं रोका जा सकता है।यह स्थाई रूप से गुरुबीजाणुधानी के अन्दर रहता है।
3.इसका विकास दो अवस्थाओं में होता है – परागण पूर्व तथा परागण पश्चात्।इसका विकास केवल एक चरण में निषेचन से पूर्व होता है।
4.नरयुग्मकोभिद् लघुबीजाणु की सीमा से बाहर आता है।यह गुरुबीजाणु के अन्दर ही रहता है।
5.इसकी वृद्धि मादा जननांग पर पूर्ण होती है क्योंकि नर युग्मकों को मादा युग्मकोभिद् में पहुँचना होता है।इसकी वृद्धि गुरुबीजाणु के अन्दर ही होती हैं।
6.इसमें तीन कोशिकाएँ होती हैं- एक नलिका कोशिका व दो नर युग्मक।इसमें सात कोशिकाएँ होती हैं –
1. अण्डे कोशिका दो सहायक कोशिका तीन प्रतिमुखी कोशिका तथा एक संलीन कोशिका।
7.सभी कोशिकाएँ आवश्यक होती हैं नलिका कोशिका परागनली बनाकर पथ देती है तथा नर युग्मक द्विनिषेचन में भाग लेते हैं।सभी कोशिकाएँ आवश्यक नहीं होती हैं। अण्ड एवं मध्य कोशिका निषेचन में काम आती है। सहायक कोशिका परागनली को पथ प्रदान करती है।
8.निषेचनोपरान्त नर युग्मकोभिद् का शेष नष्ट हो जाता हैनिषेचन के बाद युग्मकोभिद् से भ्रूण एवं भ्रूणपोष का विकास होता है।

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