संक्षारण क्या है _ प्रकार _ रोकथाम _ लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि

संक्षारण क्या है | प्रकार | रोकथाम | लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि

हेलो स्टूडेंट, आज हम इस लेख में संक्षारण क्या है | प्रकार | रोकथाम के बारे में पढ़ेंगे |

संक्षारण क्या है:

जब कोई धातु जल और वायुमंडल के संपर्क में आती है तो नमी और वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन के कारण यह धातु ऑक्साइड , हाइड्रोक्साइड कार्बोनेट आदि में परिवर्तित हो जाती है अर्थात धातु धीरे धीरे नष्ट होना शुरू हो जाती है जिसे जंग लगना या संक्षारण कहते है।

उदाहरण : 

  • लोहे पर जंग लगना।
  • चांदी का काला पड़ना।
  • कॉपर व पीतल की सतह पर हरे रंग की परत का बनना।

संक्षारण की परिभाषा :

जब धातु पानी (नमी) और वायुमंडल (ऑक्सीजन) के संपर्क में आती है तो धातुएँ धीरे धीरे अवांछित पदार्थों जैसे ऑक्साइड , हाइड्रोक्साइड कार्बोनेट आदि मे परिवर्तित होने लगती है , धातुओं का अवांछित यौगिकों में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को ही संक्षारण कहते है।

अर्थात जब धातु की सतह पर वायुमंडल और ऑक्सीजन आदि द्वारा आक्रमण किया जाता है तो यह यह अवांछित यौगिक में परिवर्तित होना शुरू हो जाता है , इस प्रक्रिया को संक्षारण कहते है।

जंग लगी हुई अर्थात जिस सतह का संक्षारण होता है उसे संक्षारक सतह कहते है।

यही कारण होता है कि लोहे की चीजो पर पेंट करना आवश्यक होता है , क्यूंकि यह लोहे की सतह को संक्षारण से बचाता है , अर्थात अगर लोहे की सतह पर पेंट आदि न किया जाए तो इस पर जंग लगना शुरू हो जाती है , जिसे संक्षारण कहते है।

हर साल लगभग पूरे विश्व के उत्पादन का 15% लोहा , जंग लगने के कारण नष्ट हो जाता है।

संक्षारण के प्रकार:

यह प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है

1. रासायनिक अथवा शुष्क संक्षारण

2. विद्युत रासायनिक अथवा नम संक्षारण

अब हम इन दोनों प्रकार को विस्तार से अध्ययन करते है।

1. रासायनिक अथवा शुष्क संक्षारण :

इसमें नमी या जल का अभाव या अनुपस्थित रहता है , इसमें धातु , वायुमंडल में उपस्थित गैसों जैसे HCl ,H2S से क्रिया करती है और इसके कारण धातु का संक्षारण होने लगता है , चूँकि यहाँ जल या नमी की कमी है और यह संक्षारण रासायनिक यौगिकों के कारण हो रहा है इसलिए इसे रासायनिक अथवा शुष्क संक्षारण कहते है। इसमें वायुमण्डल में उपस्थित ये रासायनिक पदार्थ , धातु से सीधे क्रिया करने लगते है और अवांछित यौगिक बनाना शुरू कर देते है जिसके कारण वह धातु धीरे धीरे नष्ट होना शुरू हो जाती है।

2. विद्युत रासायनिक अथवा नम संक्षारण :

इस प्रकार के संक्षारण में नमी या जल की उपस्थिति होती है , इसमें जब धातु नमी या अशुद्धियों के संपर्क में आते है तो धातु इनके साथ क्रिया करने लगती है और क्षय होना शुरू हो जाता है अर्थात जल या अशुद्धि की उपस्थिति के कारण होने वाले संक्षारण को ही विद्युत रासायनिक या नम संक्षारण कहते है।

संक्षारण को रोकने या बचाव के उपाय:

लोहे पर जंग लगने से बचाने के लिए लोहे की सतह पर पेंट , ग्रीस , तेल , आदि लगाया जाता है ताकि इसे संक्षारण से बचाया जा सके , इसी प्रकार हम विभिन्न प्रकार के तरीके पढ़ते है जिनके द्वारा अन्य धातुओं को भी संक्षारण से बचाया जा सके।

1. अन्य धातु के साथ मिश्रित करके (मिश्रधातु) : इसमें दो या दो से अधिक धातुओं को आपस में मिश्रित किया जाता है , जैसे लोहे या स्टील को कम क्रियाशील पदार्थों के साथ मिश्रित किया जाता है , यहाँ  कम क्रियाशील धातु जैसे क्रोमियम या मग्नेशियम आदि का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा लोहे आदि अधिक क्रियाशील पदाथों का संक्षारण रोका जा सकता है।

उदाहरण : लोहे और कार्बन को मिश्रित करके स्टेनलेस स्टील बनाया जाता है।

2. अन्य पदार्थ की परत चढ़ाना : इस विधि में धातु को वायुमंडल के संपर्क या जल आदि से बचाने के लिए धातु की सतह पर उपयुक्त पदार्थ की परत चढ़ा दी जाती है जो धातु की संक्षारण से रक्षा करती है।

जैसे लोहे को जंग या संक्षारण से बचाने के लिए इस पर पेंट , तेल , ग्रीस आदि की परत चढ़ा दी जाती है जो लोहे को जंग से बचाता है।

3. जंगरोधी पदार्थ : कुछ पदार्थ जंग विरोधी या संक्षारण विरोधी होते है , इन्हें उन धातुओं पर  चढ़ा दिया जाता है जिन्हें जंग आदि से बचाना है , जैसे फास्फेट और क्रोमियम लवण जंग विरोधी है।  लोहे पर इसकी परत लगा देने से लोहा जंग से बचाया जा सकता है।

संक्षारण की रोकथाम:

  1. धातुएं शुद्ध होनी चाहिए।
  2. धातु की सतह चिकनी होनी चाहिए।
  3. धातुओं की सतह पर तेल , गिरिस , पेंट का लेप करना चाहिए।
  4. धातुओं लोहे की सतह पर अधिक सक्रीय धातु Zn का लेप करना , यहाँ Zn अधिक सक्रीय होता है , Zn ज़्यादा सक्रीय होने के कारण यह स्वम् वायु व नमी से क्रिया करता रहता है तथा लोहे को जंग से बचाता है अर्थात लोहे को जंग से बचाने के लिए जिंक अपना बलिदान कर देता है इसे बलिदानी सुरक्षा कहते है।  लोहे पर जिंक का लेप करना गैल्वेनिकरण कहलाता है।
  5. भूमिगत लोहे के पाइप का सम्पर्क अधिक सक्रीय धातु Mg से करने पर लोहे में जंग नहीं लगती।

लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि :

लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि को विधुत रासायनिक सिद्धान्त से समझाया जाता है जब लोहे का सम्पर्क वायु व नमी से होता है तो उसकी सतह पर विधुत रासायनिक सेल का निर्माण हो जाता है।  इस सेल में अशुद्ध लोहा ऐनोड की तरह, शुद्ध लोहा कैथोड की तरह तथा जल की बून्द विधुत अपघट्य की तरह काम करती है।

सेल में निम्न क्रियायें होती है :

एनोड पर  2Fe → 2Fe2+ + 4e–

कैथोड पर  4H+ + 4e– + O2 → 2H2O

कुल अभिक्रिया 2Fe  + 4H+ + O2 → 2Fe2+  + 2H2O

2Fe2+  + 2H2O + (½)O2 → FeO3  + 4H-1

Fe2O3 . xH2O  → Fe2O3 . xH2O ( जंग लगना )

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