UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 9 Mental Hygiene and Mental Health (मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान तथा मानसिक स्वास्थ्य)

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UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 9 Mental Hygiene and Mental Health (मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान तथा मानसिक स्वास्थ्य)

दीर्घ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान (Mental Hygiene) से आप क्या समझते हैं? मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के महत्व को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भौतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों से समायोजन स्थापित करने की दृष्टि से मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) का विचार अत्यन्त महत्त्व रखता है। मानसिक स्वास्थ्य तथा सन्तुलन बनाये रखने के लिए एक विज्ञान की उत्पत्ति हुई, जिसका नाम ‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान (Mental Hygiene) है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के जन्मदाता डब्लयू० बीयर नामक मनोवैज्ञानिक हैं, जिन्होंने व्यक्तित्व सम्बन्धी विकारों के निवारण तथा उनके दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ नियमों का प्रतिपादन किया। बीयर के सत्प्रयासों से 1908 ई० में मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान समिति की स्थापना हुई जिसके बाद इसी सम्बन्ध में एक राष्ट्रीय परिषद् का निर्माण हुआ। आगे चलकर एक आन्दोलन के रूप में यह पूरे यूरोप में फैल गया 1911 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर 1930 ई० में इसका प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन वाशिंगटन में हुआ। शनैः-शनै: मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का प्रचार विश्व के सभी प्रगतिशील देशों में हो गया।

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ
(Meaning of Mental Hygiene)

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित एक विज्ञान है। यह विज्ञान व्यक्तित्व के सन्तुलित विकास का अध्ययन करता है, क्योंकि सन्तुलित व्यक्तित्व वाला मनुष्य ही स्वयं को सम-विषम परिस्थितियों के अनुरूप समायोजित करके मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार के कार्यों को सम्मिलित किया जाता है –

  1. मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा – व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने से सम्बन्धित सभी सामान्य कार्य इस पक्ष के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।
  2. मानसिक रोगों की रोकथाम – मानसिक रोगों से व्यक्ति को बचाना ताकि वे दशाएँ या परिस्थितियाँ उत्पन्न न हों जो मानसिक रोग पैदा कर सकती हैं।
  3. मानसिक रोगों का प्रारम्भिक उपचार – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति के प्रारम्भिक मानसिक रोगों का उपचार किया जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान उपर्युक्त तीनों कार्यों को सम्पन्न करता है। इन कार्यों को दो पहलुओं के रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं –

(i) विधेयात्मक पहलू (Positive Aspect) – इसमें उन नियमों, सिद्धान्तों तथा तरीकों की जाँच व खोज की जाती है जिनमें व्यक्ति का सन्तुलन स्थापित हो सके। वह अपने को वातावरण की परिस्थितियों से अधिकाधिक समायोजित कर सके तथा अपने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा कर सके।

(ii) निषेधात्मक पहलू (Negative Aspect) – यह व्यक्ति को मानसिक अस्वस्थता से बचाता है, जिसके परिणामतः उसमें संघर्ष, मानसिक विकार तथा समायोजन के दोष उत्पन्न नहीं हो पाते। दूसरे शब्दों में, यह मानसिक रोगों की रोकथाम तथा प्रारम्भिक उपचार से सम्बन्धित पहलू है।

इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान (Mental Hygiene) वह विज्ञान है जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करता है, उसे मानसिक रोगों से मुक्त रखता है तथा यदि व्यक्ति मानसिक विकार/रोग अथवा समायोजन के दोषों से ग्रस्त हो जाता है तो उसके कारणों का निदान करके समुचित उपचार की व्यवस्था का प्रयास करता है।

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की परिभाषा
(Definition of Mental Hygiene)

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की प्रमुख परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं –

  1. हैडफील्ड के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य बनाये | रखने तथा मानसिक अस्वस्थता रोकने से हैं।”
  2. ड्रेवर के कथनानुसार, “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ है-मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की खोज करना और उसको सुरक्षित रखने के उपाय करना
  3. भाटिया के शब्दों में, “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान मानसिक रोगों से बचने और मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने का विज्ञान और कला है। यह कुसमायोजनों के सुधारों से सम्बन्धित है। इस कार्य में यह आवश्यक रूप से कारणों के निर्धारण का कार्य भी करता है।”

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का महत्त्व या उपयोगिता
(Importance or Utility of Mental Hygiene)

मानसिक स्वास्थ्य का एक लक्ष्य है जिसकी पूर्ति के लिए मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की सहायता लेनी पड़ती है। यह विज्ञान मानसिक रोगियों की समस्याओं का समाधान करने तथा उनके उपचार करने की दशा में एक वैज्ञानिक प्रयास है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की आधुनिक दृष्टिकोण सहानुभूति, सहृदयतापूर्ण और सुधारवादी है। पेरिस के प्रसिद्ध कारागार चिकित्सक पिने (Phillipe Pinel) ने सर्वप्रथम इन रोगियों को सुधारने के लिए सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार तथा नैतिक उपचार का मार्ग सुझाया। उसने मानसिक रोगियों की जंजीरें खुलवा दी और उन्हें घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता प्रदान की है। इसके परिणामस्वरूप बहुत-से रोगी अधिक सहयोगी व आज्ञाकारी बन गये और दूसरों के बेहतर उपचार को मार्ग प्रशस्त हुआ। इसका समस्त श्रेय मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की विचारधारा को ही जाता है। वर्तमान समय में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का महत्त्व निम्नलिखित है –

(1) सन्तुलित व्यक्तित्व (Balanced Personality) – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान हमारे व्यक्तित्व के विभिन्नु पक्षों-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा सांवेगिक आदि को सन्तुलित रूप से विकसित होने का अवसर प्रदान करता है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की सहायता से मानसिक संघर्ष कम होता है तथा भावना ग्रन्थियाँ नहीं पनपने पातीं।

(2) सुसमायोजित जीवन (Well-adjusted Life) – मनुष्य का सन्तुलित व्यक्तित्व उसे सन्तुलित जीवन जीने में सहायता देता है। इससे व्यक्ति को सम-विषम परिस्थितियों का अनुकूलन स्थापित करने में सहायता मिलती है। सन्तुलित जीवन के अवसर मिलने का अर्थ है–सुखी और सुसमायोजित जीवन-यापन का सौभाग्य प्राप्त होना।।

(3) स्वस्थ सामाजिक जीवन (Healthy Social Life) – व्यक्ति समाज की इकाई है और व्यक्तियों के समूह से समाज बनता है। समाज के सभी व्यक्तियों का सन्तुलित व्यक्तित्व तथा समायोजित जीवन सामाजिक जीवन को साम्य एवं स्वस्थ बनाता है। ऐसे सन्तुलित समाज में सामाजिक विषमता और संघर्ष नहीं होंगे। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान, सामाजिक जीवन को स्वस्थ और सुन्दर बनाता है।

(4) स्वस्थ पारिवारिक वातावरण (Healthy Environment of the Family) – स्वस्थ व्यक्तित्व के निर्माण से पारिवारिक सन्तुलन, सुसमायोजन, शान्ति, व्यवस्था और सुख में वृद्धि होती है। परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम और सौहार्दपूर्ण व्यवहार से हर प्रकार के आनन्द तथा स्वस्थ वातावरण का सृजन होता है।

(5) शिशुओं का उचित पालन-पोषण (Well_Rearing of the Infants) – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के माध्यम से शिशुओं के माता-पिता एवं परिवारजन भली प्रकार यह समझ सकते हैं। कि नवजात शिशुओं की देखभाल किस प्रकार की जाए। इससे शिशुओं की उचित सेवा सुश्रूषा हो सकेगी तथा उनका विकास भी पूर्ण रूप से हो सकेगा। यह पारिवारिक सन्तुलन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।

(6) शैक्षिक प्रगति (Educational Progress) – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के नियम और सिद्धान्त बालकों के स्वस्थ संवेगात्मक विकास में सहायक होते हैं। भावना ग्रन्थियों तथा मानसिक संघर्ष से मुक्त रहकर वे पास-पड़ोस तथा विद्यालय से समायोजन स्थापित कर सकते हैं। शिक्षा के मार्य में बाधक मानसिक रोग ग्रन्थियाँ हटने से शैक्षिक प्रगति सम्भव होती है।

(7) उपचारात्मक महत्त्व (Treatmentative Importance) – व्यावसायिक स्वास्थ्य विज्ञान मात्र स्वस्थ रहने और समायोजित जीवन व्यतीत करने सम्बन्धी नियम एवं सिद्धान्त ही निर्धारित नहीं करता अपितु उपचार लेकर मानव-समाज की सेवा में उपस्थित होता है। रोकथाम और बचाव के साधन प्रयोग में लाने पर भी यदि कोई व्यक्ति मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाता है तो मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान उसके प्रारम्भिक उपचार की व्यवस्था करता है।

(8) व्यावसायिक सफलता (Vocational Progress) – व्यावसायिक सफलता के लिए व्यक्ति का जीवन सन्तुलित एवं समायोजित होना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान सन्तुलित व्यक्तित्व का सृजन करके व्यक्ति की व्यावसायिक क्षमता में वृद्धि करता है।

(9) राष्ट्रीयता की भावना एवं सांवेगिक एकता (Feeling of Nationality and Emotional Integration) – विषमता और विघटनकारी प्रवृत्तियों के प्रभाव से वर्तमान परिस्थितियों में हमारा राष्ट्र सम्प्रदायवाद, भाषावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि दूषित विचारधाराओं से जूझ रहा है। इससे बचाव के लिए देश के नागरिकों में संवेगात्मक एकता का संचार करना होगा। यह कार्य मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की सक्रियता के अभाव में नहीं हो सकता।

(10) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सहयोग (International Peace and Cooperation) – अन्तर्राष्ट्रीय (विश्व) शान्ति के लिए आवश्यक है कि दुनिया के सभी देशों के नेतागण, चिन्तक, विचारक, समाज-सुधारक तथा नागरिक सन्तुलित और समायोजित व्यक्तित्व वाले हों। यदि देश के कर्णधारों का मानसिक स्वास्थ्य खराब होगा तो विभिन्न देशों के बीच तनाव और संघर्ष निश्चित रूप से होगा। प्रायः एक ही व्यक्ति को असन्तुलित मस्तिष्क समूची मानव-संसृति को युद्ध एवं विनाश की अग्नि में झोंक देगा। उस असन्तुलित मस्तिष्क के उपचार का दायित्व मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान पर है। इससे विश्व-स्तर पर उत्पन्न तनाव और संघर्ष समाप्त होगा और विरोधी विचारधारा वाले देश निकट आकर मित्रता में बंध जाएँगे।

उपर्युक्त विवेचैन से स्पष्ट होता है कि मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का महत्त्व व्यक्ति के निजी जीवन से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक समान रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। मनुष्य और उसके समाज से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं में मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की उपयोगिता एकमत से स्वीकार की जाती है।

प्रश्न 2.
मानसिक स्वास्थ्य क्या है? मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की क्या विशेषताएँ होती हैं?
या
मानसिक स्वास्थ्य का मनोवैज्ञानिक अर्थ क्या है? मानसिक रूप से स्वस्थ एक 18 वर्षीय किशोर के मानसिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
या
मानसिक स्वास्थ्य से क्या तात्पर्य है? उन प्रमुख लक्षणों की विवेचना कीजिए जिन्हें आप अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का द्योतक मानते हैं?
उत्तर :
प्राचीन काल के समाजों में व्यक्ति का जीवन सरल तथा साधारण था और आवश्यकताएँ बहुत सीमित थीं। मानव सभ्यता के बढ़ते कदम ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी की उपलब्धियों के साक्षी हैं, किन्तु इससे मानव का जीवन जटिल हो गया। भौतिकवादी उन्माद ने बड़ी-बड़ी महत्त्वाकांक्षाओं को जन्म दिया जिनकी असफलता ने मनुष्य के मन को निराशा, असन्तोष तथा चिन्ताओं से भर दिया। परिणामत: उसे अपने समाज के साथ समायोजन स्थापित करने में कठिनाइयों का अनुभव होने लगा। दुःख, चिन्ता और तनाव लम्बे समय तक सहन नहीं किये जा सकते। इन्हीं परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में व्यक्ति के लिए मानसिक सुख और शान्ति प्राप्त कर समाज का सुसमायोजित प्राणी बनने हेतु मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) का अध्ययन परमावश्यक है।

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ
(Meaning of Mental Health)

मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य व्यक्ति की उस योग्यता से है जिसके माध्यम से वह अपनी कठिनाइयों को दूर कर हर परिस्थिति में अपने को समायोजित कर लेता है। सुखी जीवन के लिए जितना शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यक है, उसना ही मानसिक स्वास्थ्य भी। चिकित्साशास्त्रियों के अनुसार सामान्य शारीरिक व्याधियाँ; यथा–रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि मानसिक कारकों से उत्पन्न होती हैं। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति चिन्तारहित, पूर्णत: समायोजित, आत्मनियन्त्रित, आत्मविश्वासी तथा संवेगात्मक रूप से स्थिर व्यक्ति होता है। उसके व्यवहार में सन्तुलन रहता है तथा वह अधिक समय तक मानसिक तनाव की स्थिति में नहीं रहता। वह प्रत्येक परिस्थिति में स्वयं को शीघ्र ही समायोजित कर लेता है। वर्तमान परिस्थितियों में, पूरे समाज में, उसके विभिन्न अंगों में तथा उसके नागरिकों के बीच अच्छे से अच्छा समायोजन समष्टिगत कल्याण का द्योतक है, जिसके लिए मानसिक स्वास्थ्य एक पूर्व आवश्यकता है।

मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा
(Definition of Mental Health)

विभिन्न विद्वानों ने मानसिक स्वास्थ्य की अनेक परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं। प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –

(1) हैडफील्ड के अनुसार, “सम्पूर्ण व्यक्तित्व की पूर्ण एवं सन्तुलित क्रियाशीलता को मानसिक स्वास्थ्य कहते हैं।’

(2) मैनिंजर के अनुसार, “हम मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा अधिकतम प्रभावोत्पादकता और आनन्द के साथ मानव-प्राणियों का संसार से और परस्पर समंजन के रूप में कर सकते हैं। यह एक सम स्वभाव, एक जागरूक बुद्धि, सामाजिक रूप से सन्तुलित व्यवहार और एक स्वस्थ स्नायु-विन्यास बनाये रखने की योग्यता है।”

(3) लैडल के शब्दों में, “मानसिक स्वास्थ्य से अभिप्राय वास्तविक आधार पर वातावरण से पर्याप्त समायोजन करने की योग्यता है।”

(4) प्रो० एम० आर० भाटिया ने मानसिक स्वास्थ्य के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, मानसिक स्वास्थ्य यह बताता है कि कोई व्यक्ति जीवन की माँगों और अवसरों के प्रति कितनी अच्छी तरह समायोजित है।

उपर्युक्त वर्णिते. परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि मानसिक स्वास्थ्य से आशय व्यक्ति की उस दशा या योग्यता से है जिसके आधार पर वह जीवन में समायोजित रहता है। मानसिक स्वास्थ्य का व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्त्व है तथा इससे व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रभावित होता है।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
(Symptoms of Mentally Healthy Person)

जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य को कुछ विशिष्ट लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है, उसी प्रकार से मानसिक स्वास्थ्य की भी कुछ लक्षणों के आधार पर पहचान सम्भव है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य एक कल्पनामात्र है और कोई भी व्यक्ति मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ नहीं होता। तथापि मानसिक स्वास्थ्य से सम्पन्न व्यक्ति के विशिष्ट लक्षण अवश्य हैं। इनमें सर्वप्रथम (A) हैडफील्ड के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य की नितान्त आवश्यकताओं का उल्लेख किया जाएगा और इसके बाद (B) अन्य प्रमुख लक्षणों का विवेचन किया जाएगा। ये निम्नलिखित हैं –

(A) मानसिक स्वास्थ्य की नितान्त आवश्यकताएँ या प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण)
हैडफील्ड के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य की निम्नलिखित तीन नितान्त आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण भी कहा जा सकता है

(1) पूर्ण अभिव्यक्ति (Full Expression) – व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य उसकी मूलप्रवृत्तियों, इच्छाओं व शक्तियों की पूर्ण अभिव्यक्ति पर निर्भर है। इनके अवदमन से वृत्तियाँ दमित व कुण्ठित होकर व्यक्तित्व में मानसिक विकारों तथा कुसमायोजन का कारण बनती हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

(2) सन्तुलन (Harmonization) – व्यक्ति को भावना ग्रन्थियों के निर्माण, प्रतिरोध व मानसिक द्वन्द्व जैसे दोषों से बचाने के लिए आवश्यक है कि उसकी मूल प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं तथा समस्त क्षमताओं के बीच आपसी सन्तुलन व वातावरण से समायोजन बना रहे। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सन्तुलन और समायोजन परमावश्यक है।

(3) सामान्य लक्ष्य (Common End) – विभिन्न क्षमताओं, इच्छाओं व प्रवृत्तियों के बीच सन्तुलन व समन्वय तथा उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति सिर्फ तभी सम्भव है जब वे एक सामान्य एवं व्यापक लक्ष्य की ओर उन्मुख हों। ये लक्ष्य मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से निर्धारित किये जाने चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व से सम्बन्धित है जिसके लिए व्यक्तित्व के गुणों की पूर्ण अभिव्यक्ति, उनकी सन्तुलित क्रियाशीलता तथा सामान्य एवं व्यापक लक्ष्य आवश्यक हैं।

(B) अन्य प्रमुख लक्षण

मानसिक स्वास्थ्य को कुछ अन्य प्रमुख लक्षणों के आधार पर भी पहचाना जाता है, जो निम्नलिखित रूप में वर्णित हैं

(1) अन्तर्दृष्टि एवं आत्म-मूल्यांकन – जिस व्यक्ति में स्वयं के समायोजन सम्बन्धी समस्याओं की अन्तर्दृष्टि होती है, वह अपनी सामर्थ्य की अधिकतम और निम्नतम दोनों सीमाओं से भली-भाँति परिचित होता है। ऐसा व्यक्ति अपने दोषों को स्वीकार कर या तो उन्हें दूर करने की चेष्टा करता है या उनसे समझौता कर लेता है। वह आत्म-दर्शन तथा आत्म-विश्लेषण की क्रिया द्वारा अपनी उलझनों, तनावों, पूर्वाग्रहों, अन्तर्द्वन्द्वों तथा विषमताओं का सहज समाधान खोजकर उन्हें समाप्त या कम करने की कोशिश करता है। वह अपनी इच्छाओं, क्षमताओं तथा शक्तियों का वास्तविक मूल्यांकन करके उन्हें सही दिशा प्रदान कर सकता है।

(2) समायोजनशीलता – मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के लचीलेपन के गुण के कारण, नवीन एवं परिवर्तित परिस्थितियों से शीघ्र एवं उचित समायोजन स्थापित करने में सफल रहता है। वह विषम परिस्थितियों से भय खाकर या घबराकर उससे पलायन नहीं करता, अपितु उनका दृढ़ता से सामना करता है और उनके बीच से ही अपना मार्ग खोज लेता है। समायोजनशीलता के अन्तर्गत दोनों ही बातें सम्मिलित हैं–(i) परिस्थितियों को अपने अनुसार ढाल लेना या (ii) स्वयं परिस्थितियों के अनुसार ढल जाना। स्वस्थ व्यक्ति समाज के परिवर्तनशील नियमों तथा रीति-रिवाजों से परिचित होने के कारण उनसे उचित सामंजस्य स्थापित कर लेता है।

(3) बौद्धिक तथा सांवेगिक परिपक्वता – मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बौद्धिक एवं सांवेगिक परिपक्वता की नितान्त आवश्यकता है। बौद्धिक परिपक्वता से युक्त मनुष्य अपने ज्ञान का विस्तार करता है, उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है तथा अपना निर्माण स्वयं करने के लिए प्रयासशील रहता है। प्रखर बुद्धि से अहं भाव तथा मन्द बुद्धि से हीनभावना को जन्म हो सकता है; अतः बौद्धिक स्वास्थ्य की दृष्टि से इनके प्रति सतर्कता की आवश्यकता है। सांवेगिक रूप से परिपक्व व्यक्ति अपने संवेगों तथा भावों पर उचित नियन्त्रण रखता है। वह सांवेगिक ग्रन्थियों (यथा ईष्र्या, उन्माद आदि) से पूर्णतया मुक्त होता है। स्पष्टतः मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में बौद्धिक एवं सांवेगिक परिपक्वता आवश्यक है।

(4) यथार्थ दृष्टिकोण एवं स्वस्थ अभिवृत्ति – मानसिक स्वास्थ्य से युक्त व्यक्ति जीवन के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण तथा स्वस्थ अभिवृत्ति अपनाता है। ऐसे व्यक्ति के विचारों, वृत्तियों, आकांक्षाओं तथा कार्य-पद्धति के बीच उचित सन्तुलन रहने से वह कल्पना-प्रधान, अतिशयवादी या कोरा स्वप्नदृष्टा नहीं होता, वरन् उच्च एवं हीन-भावना ग्रन्थियों के विचार से मुक्त होकर स्वविवेक के आधार पर कार्य करता है। उसकी प्रवृत्तियों तथा अभिवृत्तियों के बीच विरोधाभास दिखाई नहीं देता। वह जो कुछ है। उसका यथार्थ मूल्यांकन करता है और तद्नुसार ही कार्य में रत हो जाता है। उसकी कथनी-करनी में भेद नहीं रहता। इस प्रकार वह अपने जीवन के विषय में वास्तविक दृष्टि एवं श्रेष्ठ अभिवृत्तियाँ अपनाकर सन्तुलित एवं संयमित जीवन व्यतीत करता है।

(5) व्यावसायिक सन्तुष्टि – मानसिकै स्वास्थ्य की एक प्रमुख विशेषता अपने व्यवसाय अथवा कार्य के प्रति पूर्ण सन्तुष्टि की अनुभूति भी है। अपने कार्य से सन्तुष्ट व्यक्ति मन लगाकर कार्य करता है और श्रम से पीछे नहीं हटता। उसकी कार्यक्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि उसे अपने व्यावसायिक उद्देश्यों के प्रति सुनिश्चित एवं दृढ़ बनाती है। परिणामतः वह व्यावसायिक सफलता प्राप्त कर सुखी-सम्पन्न जीवन बिताता है। इसके विरुद्ध व्यावसायिक दृष्टि से असन्तुष्ट व्यक्ति आर्थिक विपन्नता, निराशा, चिन्ता तथा तनावों से ग्रस्त रहते हैं। वे मानसिक रोगी हो जाते हैं।

(6) सामाजिक सामंजस्य – व्यक्ति अपने समाज का एक अविभाज्य अंग है और उसकी एक इकाई है। उसकी अपूर्ण सत्ता समाज की पूर्णता में समाहित होकर परिपूर्ण होती है; अत: उसका समाज के साथ समायोजन, अनुकूलन तथा समन्वय सर्वथा प्राकृतिक एवं अनिवार्य कहा जाएगा। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समाज के साथ सामंजस्य बनाकर रखता है। वह सदैव समाज की समस्याओं और मर्यादाओं का ध्यान रखता है। वह केवल अपने सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए ही प्रयास नहीं करता, अपितु समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की पूर्ति भी करता है। वह स्व-हित और पर-हित के मध्य सन्तुलन बनाकर चलता है। समाज के साथ प्रतिकूल एवं तनावपूर्ण सम्बन्ध मानसिक अस्वस्थता के परिचायक हैं।

उपर्युक्त लक्षणों के अतिरिक्त, मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति नियमित जीवन बिताने वाला, आत्मविश्वासी, सहनशील, धैर्यवान तथा सन्तोषी मनुष्य होता है। उसकी इच्छाएँ तथा आवश्यकताएँ सामाजिक मान्यताओं की सीमाओं में और उसकी आदतें समाज के लिए हितकारी होती हैं।

प्रश्न 3.
मानसिक अस्वस्थता से आप क्या समझते हैं? मानसिक अस्वस्थता के कुछ लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मानसिक अस्वस्थता का अर्थ
(Meaning of Mental III-health)

‘मानसिक स्वास्थ्य की पूर्णता’ एक आदर्श किन्तु काल्पनिक अवस्था है। यही कारण है कि आधुनिक युग की जटिल परिस्थितियों में मानसिक अस्वस्थता किसी-न-किसी अंश में प्रत्येक व्यक्ति में घर कर गयी है। मानसिक अस्वस्थता और कुछ नहीं, मानसिक स्वास्थ्य की एक विपरीत अवस्था है।

जब कोई मनुष्य अपने कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर करने में असमर्थ रहता है, अथवा उन बाधाओं से उचित समायोजन स्थापित नहीं कर पाता तो उसका मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। और उसमें ‘मानसिक अस्वस्थता’ पैदा हो जाती है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति स्वयं को अपने वातावरण की परिस्थितियों के साथ समायोजित न करने के कारण सांवेगिक दृष्टि से अस्थिर हो जाता है, उसके आत्मविश्वास में कमी आ जाती है, मानसिक उलझनों, तनावों, हताशाओं वे चिन्ताओं के कारण उसमें भावना ग्रन्थियाँ बन जाती हैं तथा वह व्यक्तित्व सम्बन्धी अनेकानेक अव्यवस्थाओं का शिकार हो जाता है।

इस प्रकार, मानसिक अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें जीवन की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में व्यक्ति स्वयं को असमर्थ पाता है तथा संवेगात्मक असन्तुलन का शिकार हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में बहुत-सी मानसिक विकृतियाँ या व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ कहा जाता है।

मानसिक अस्वस्थता के लक्षण
(Symptoms of Mental III-health)

मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति में उन सभी लक्षणों का अभाव रहता है जिनका मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों के रूप में अध्ययन किया गया है। व्यक्ति के असामान्य व्यवहार से लेकर उसके पागलपन की स्थिति के बीच अनेकानेक स्तर या सोपान दृष्टिगोचर होते हैं, तथापि मानसिक अस्वस्थता के प्रमुख लक्षणों का सोदाहरण किन्तु संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित है –

(1) साधारण समायोजन दोष (Minor Mal-adjustment) – साधारण समायोजन सम्बन्धी दोष के लक्षण प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में पाये जाते हैं। इसे मानसिक अस्वस्थता का एक सामान्य रूप कहा जा सकता है। प्राय: देखने में आता है कि कोई बाधा या अवरोध उत्पन्न होने के कारण अपने कार्य की सम्पन्नता में असफल रहने वाला व्यक्ति अतिशय संवेदनशील, हठी, चिड़चिड़ा या आक्रामक हो जाता है। यह मानसिक अस्वस्थता की शुरुआत है।

(2) मनोरुग्णता (Psychopathic Personalities) – सामान्य जीवन जीने वाले कुछ लोगों में भी मानसिक अस्वस्थता के संकेत दिखाई पड़ते हैं। लिखने-पढ़ने, बोलने या अन्य क्रिया-कलापों में प्रायः लोगों से भूल होना स्वाभाविक ही है और इसे मानसिक अस्वस्थता का नाम नहीं दिया जा सकता, किन्तु यदि इन भूलों की आवृत्ति बढ़ जाए और असामान्य-सी प्रतीत हो तो इसे मनोविकृति कहा जाएगा। तुतलाना, हकलाना, क्रम बिगाड़कर वाक्य बोलना, बेढंगे तथा अप्रचलित वस्त्र धारण करना, चलने-फिरने में असामान्य लगना, अजीब-अजीब हरकतें करना, चोरी करना, धोखा देना आदि मानसिक अस्वस्थता के लक्षण हैं।

(3) मनोदैहिक रोग (Psychosomatic Illness) – मनोदैहिक रोगों का कारण व्यक्ति के शरीर में निहित होता है। उदाहरण के लिए-शरीर के किसी संवदेनशील भाग में चोट या आघात के कारण स्थायी दोष पैदा हो जाते हैं और व्यक्ति को जीवन-भर कष्ट देते हैं। सिगरेट, तम्बाकू, अफीम, चरस, गाँजा या शराब आदि पीने से भी अनेक मानसिक विकार उत्पन्न होते. हैं। दमा-खाँसी से चिड़चिड़ापन, निम्न या उच्च रक्तचाप के कारण मानसिक असन्तुलन तथा यकृत एवं पाचन सम्बन्धी व्याधियों में बहुत-से मानसिक विकारों का जन्म होता है। इसी के साथ-साथ किसी प्रवृत्ति का बलपूर्वक दमन करने से रक्त की संरचना, साँस की प्रक्रिया तथा हृदय की धड़कनों में परिवर्तन आता है, जिसके परिणामतः व्यक्ति का शरीर सदा के लिए रोगी हो जाता है। इस प्रकार से शरीर और मन दोनों ही मानसिक अस्वस्थता से प्रभावित होते हैं।

(4) मनस्ताप (Psychoneurosis) – मनस्ताप का जन्म समायोजन-दोषों की गम्भीरता के परिणामस्वरूप होता है। ये व्यक्तित्व के ऐसे आंशिक दोष हैं जिनमें यथार्थता से सम्बन्ध विच्छेद नहीं हो पाता। इसके अन्तर्गत (i) स्नायु दौर्बल्य तथा (ii) मनोदौर्बल्य रोग सम्मिलित हैं

(i) स्नायु दौर्बल्य (Neurasthania) – इसमें व्यक्ति अकारण ही थकावट अनुभव करता है। इससे उसमें अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, विभिन्न अंगों में दर्द, काम के प्रति अनिच्छा, मंदाग्नि, दिल धड़कना तथा हमेशा अपने स्वास्थ्य की चिन्ता के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। ऐसा व्यक्ति किसी एक डॉक्टर के पास नहीं टिकता और अपनी व्यथा कहने के लिए बेचैन रहता है।

(ii) मनोदौर्बल्य (Psychosthenia) – मनोदौर्बल्य में ये मानसिक विकार आते हैं

(a) कल्पना गृह या विश्वासबाध्यता (Obsession) के रोगी के मन में निराधार व असंगत विचार, विश्वास और कल्पनाएँ आती रहती हैं।

(b) हठ प्रवृत्ति (Compulsion) से पीड़ित व्यक्ति कामों की निरर्थकता से परिचित होते हुए भी उन्हें हठपूर्वक करता रहता है और बाद में दुःख भी पाता है।

(c) भीतियाँ (Phobias) के अन्तर्गत व्यक्ति विशेष प्रकार की वस्तुओं, दृश्यों तथा विचारों से अकारण ही भयभीत रहता है; जैसे—खुली हवा से डरना, भीड़, पानी आदि से डरना।

(d) शरीरोन्माद (Hysteria) में व्यक्ति के अहम द्वारा दमित कामेच्छाओं का शारीरिक दोषों के रूप में प्रकटीकरण होता है; जैसे-हँसना, रोना, हाथ-पैर पटकना, मांसपेशियों का जकड़ना, मूच्र्छा आदि।

(e) चिन्ता रोग (Anxiety Neurosis) में अकारण ही भविष्य सम्बन्धी चिन्ताएँ लगी रहती हैं।

(f) क्षति क्रमबाध्यता (Mania) से ग्रस्त व्यक्ति अकारण ही ऐसे काम कर बैठता है जिससे दूसरों को हानि हो; जैसे—मारना-पीटना, हत्या या दूसरे के घर में आग लगा देना। इस रोग का सबसे अच्छा उदाहरण ‘कनपटीमार’ या ‘सीरियल किलर’ व्यक्ति का आतंक है जो कनपटी पर मारकर अकारण ही लोगों की हत्या कर देता था।

(5) मनोविकृति (Psychosis)–यह गम्भीर मानसिक रोग है जिसके उपचार हेतु मानसिकें चिकित्सालय में दाखिल होना पड़ता है। मनोविकृति से पीड़ित व्यक्तियों को यथार्थ से पूरी तरह सम्बन्ध टूट जाता है। वे अनेक प्रकार के भ्रमों व भ्रान्तियों के शिकार हो जाते हैं और उन्हें सत्य समझने लगते हैं। मनोविकृति के अन्तर्गत ये रोग आते हैं—स्थिर भ्रम (Paranoia) से ग्रसित किसी व्यक्ति को पीड़ा भ्रम (Delusion of Persecution) रहने के कारण वह स्वयं को पीड़ित समझ बैठता है तो किसी व्यक्ति में ऐश्वर्य भ्रम (Delusion of Prosperity) पैदा होने के कारण वह स्वयं को ऐश्वर्यशाली या महान् समझता है। उत्साह-विषादचक्र मनोदशा (Manic Depressive Psychosis) का रोगी कभी अत्यधिक प्रसन्न दिखाई पड़ता है तो कभी अत्यधिक उदास।।

(6) यौन विकृतियाँ (Sexual Perversions)-मानसिक रोगी का यौन सम्बन्धी का लैंगिक जीवन सामान्य नहीं होता। यौन विकृतियाँ मानसिक अस्वस्थता की परिचायक हैं और अस्वस्थता में वृद्धि करती हैं। इनके प्रमुख लक्षण ये हैं–विपरीत लिंग के वस्त्र पहनना, स्पर्श से यौन सुख प्राप्त करना, स्वयं को या दूसरे को पीड़ा पहुँचाकर काम सुख प्राप्त करना, बालकों-पशुओं-समलिगियों तथा शव से यौन क्रियाएँ करना, हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि।

उपर्युक्त वर्णित विभिन्न मनोरोगों को उनके सम्बन्धित लक्षणों के साथ वर्णन किया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति में ये सभी लक्षण दिखाई पड़े, इनमें से कोई एक लक्षण भी मानसिक अस्वस्थता का संकेत देता है। व्यक्ति में इन लक्षणों के प्रकट होते ही उनका मानसिक उपचार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
मानसिक अस्वस्थता के विभिन्न कारणों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
मानसिक अस्वस्थता के कारण
(Causes of Mental III-health)

वर्तमान युग की जटिलताओं ने किसी-न-किसी अंश में प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक अस्वस्थता का शिकार बनाया है। मानसिक अस्वस्थता के भिन्न-भिन्न प्रकारों के लिए विभिन्न प्रकार के कारण जिम्मेदार हैं। इन कारणों का निम्नलिखित वर्गों के अन्तर्गत इस प्रकार विवेचन किया जा सकता है –

(1) प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाले कारण (Predisposing Causes)
प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है –

(i) शारीरिक कारण (Bodily Causes)-कभी-कभी मानसिक अस्वस्थता के मूल में शारीरिक कारण निहित होते हैं। प्रायः क्षय, संग्रहणी, कैन्सर आदि असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की शारीरिक शक्ति काफी घट जाती है तथा उन्हें शीघ्र ही थकान का अनुभव होने लगता है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़े और दु:खी होते हैं, क्योंकि उनमें जीवन के प्रति निराशा छा जाती है।

(ii) वंशानुक्रमणीय कारण (Hereditary Causes)-कुछ मनुष्य वंशानुक्रम में ऐसी विशेषताएँ लेकर अवतीर्ण होते हैं जिनके कारण वे सामान्य प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं वंशानुक्रमणीय विशेषताओं के कारण ही मनोविकृति का रोग एक पीढ़ी से दूसरे फेढ़ी में संक्रमित होता रहता है।

(iii) संवेगात्मक कारण (Emotional Causes)-मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि संवेग मानसिक रोगों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। व्यक्ति की विभिन्न मूल प्रवृत्तियाँ किसी-न-किसी संवेग से सम्बन्धित हैं। इनमें से क्रोध, भय तथा कामवासना की प्रवृत्तियाँ और संवेग अत्यधिक प्रबल हैं। जिनके दमन से या केन्द्रीकरण से मानसिक असन्तुलन पैदा होता है। वस्तुतः मानसिक स्वास्थ्य की समस्या मूल प्रवृत्ति-संवेग (Instinct-emotion) की समस्या है। जब व्यक्ति में कोई प्रवृत्ति जाग्रत होती है तो उससे सम्बन्धित संवेग भी जाग जाता है। उदाहरणार्थ-आत्मस्थापन के साथ गर्व का, पलायन के साथ भय का तथा कामवृत्ति के साथ वासना का संवेग जाग्रत होता है। जाग्रत संवेग की असन्तुष्टि ही मानसिक रोग को जन्म देती है।

(iv) पारिवारिक कारण (Familial Causes)—कुछ घरों में माता या पिता अथवा दोनों के अभाव से अथवा विमाता व विपिता के होने से बच्चे का पूरा पालन-पोषण, सुरक्षापूर्ण बर्ताव या स्नेह नहीं मिलता। ऐसे बच्चों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पातीं और अभावग्रस्त बने रहते हैं। कहीं-कहीं माता-पिता के लड़ाई-झगड़े के कारण कलह को वातावरण रहता है जिसकी वजह से बालक को मानसिक घुटने अनुभव होती है और वह घर से दूर भागता है। इस प्रकार ‘भग्न परिवार’ (Broken House) मानसिक अस्वास्थ्य का मुख्य कारण बनता है।

(v) विद्यालयी कारण (Causes related to School)—बालकों का मानसिक स्वास्थ्य खराब रहने का एक प्रमुख कारण विद्यालय भी है। जिन विद्यालयों में बच्चों पर कठोरतम अनुशासन थोपा जाता है, बच्चों को अकारण डाँट-फटकार या कठोर दण्ड सहने पड़ते हैं, अध्यापकों का स्नेह नहीं मिल पाता, पाठ्य-विषये अनुपयुक्त होते हैं तथा बालकों को अमनोवैज्ञानिक विधियों से पढ़ाया जाता है, अध्यापक या प्रबन्धक बच्चों को अपनी स्वार्थसिद्धि में भड़काकर आपस में अध्यापकों से लड़वा देते हैं। ऐसे विद्यलियों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।

(vi) सामाजिक कारण (Social Causes)-कभी-कभी कुछ समाज विरोधी तत्त्व व्यक्ति के मन पर भारी आघात पहुँचाकर उसे मानसिक दृष्टि से असन्तुलित कर देते हैं। यदि व्यक्ति के कार्यों व विचारों का व्यर्थ ही विरोध किया जाए तो उसके मित्रों-पड़ोसियों तथा अन्य लोगों द्वारा उसे समाज में उचित मान्यता, स्थान ये प्रतिष्ठा प्राप्त न हो, तो उसमें प्राय: हीनता की ग्रन्थियाँ पड़ जाती हैं। उनका व्यक्तित्व कुण्ठा और तनाव का शिकार हो जाता है। आत्मस्थापन की प्रवृत्ति के सन्तुष्ट न होने के कारण भी व्यक्ति दु:खी और खिन्न हो जाते हैं।

(vii) जीवन की विषम परिस्थितियाँ (Adverse Conditions of Life)—हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में कभी-न-कभी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। ये परिस्थितियाँ निराशा और असफललाओं के कारण जन्म ले सकती हैं। आर्थिक संकट, व्यवसाय या परीक्षा या प्रेम में असफलता तथा सामाजिक स्थिति के प्रति असन्तोष—इनमें सम्बन्धित प्रतिकूल एवं विषम परिस्थितियाँ मानव मन पर बुरा असर छोड़ती हैं। विषम परिस्थितियों के कारण समायोजन के दोष उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे मानसिक अस्वस्थता सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं।

(viii) आर्थिक कारण (Economic Causes)-आर्थिक तंगी के कारण व्यक्ति की आवश्यकताएँ तथा ईच्छाएँ अतृप्त रह जाती हैं और उसे अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है। दमित इच्छाएँ नाना प्रकार के अपराध तथा समाज विरोधी व्यवहार को जन्म देती हैं। धन की कमी से बाध्य होकर व्यक्ति को अथक एवं अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है जिससे उनका मन दुःखी मन मानसिक विकारों को पैदा करता है। अत्यधिक धन के कारण भी जुआ, शराब तथा वेश्यागमन की लत पड़ जाती है जिससे मानसिक असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

(ix) भौगोलिक कारण (Geographical Causes)-भौगोलिक कारण अप्रत्यक्ष रूप से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं। अधिक गर्मी या सर्दी के कारण लोगों का समायोजन बिगड़ जाता है, शारीरिक दशा गिरने लगती है, उनके अभाव में चिड़चिड़ापन या तनाव पैदा होता है, जिससे मानसिक असन्तुलन उत्पन्न होता है।

(x) सांस्कृतिक कारण (Cultural Causes)-यदा-कदा सांस्कृतिक परम्पराएँ व्यक्ति की भावनाओं तथा इच्छाओं की पृर्ति के मार्ग में बाधक बनती हैं। प्रायः व्यक्ति को अपनी प्रवृत्तियों का दमन कर कुछ कार्य विवशतावश करने पड़ते हैं जिससे मानसिक असन्तोष तथा कुण्ठा उत्पन्न होते हैं। एक संस्कृति में जन्मी तथा पलो हुआ व्यक्ति जब किसी दूसरी संस्कृति में कदम रखता है तो उसे मानसिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है जिससे असमायोजन के दोष उत्पन्न होते हैं। अतः सांस्कृतिक कारणों से भी मनोविकार उत्पन्न होते हैं।

(2) उत्तेजक अथवा तात्कालिक कारण (Exciting or Direct Causes)

मानसिक रोगों के तात्कालिक कारण निम्नलिखित हैं –

(i) तीव्र मानसिक संघर्ष (Intense Mental Conflict)-जब व्यक्ति के जीवन मूल्य और आदर्श संसार की यथार्थ परिस्थितियों या प्रचलित व्यवहार से टकराते हैं तो मानसिक संघर्ष का जन्म होता है। यह व्यक्ति के मन में अन्तर्द्वन्द्व के रूप में उभरता है। मानसिक संघर्ष अपनी सामान्य अवस्था में उल्लेखनीय नहीं होते, किन्तु इनकी तीव्रता से व्यक्ति अपना मानसिक सन्तुलन खोकर मनोविकार के शिकार हो जाते हैं।

(ii) अत्यधिक मानसिक दबाव (Stress Conditions)-आज की भौतिकवादी परिस्थितियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिद्वन्द्विता एवं प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है। सीमित सामर्थ्य के साथ व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता। इसके परिणामस्वरूप उसमें अधिक चिन्ता और उद्विग्नता भर जाती है जिससे उसकी उपलब्धियों के स्तर में निरन्तर गिरावट आती है। यह गिरावट और ज्यादा निराशा, उद्विग्नता तथा मानसिक दबाव पैदा करती है। स्पष्टत: अत्यधिक मानसिक दबाव का यह दुश्चक्र ही मानसिक अस्वस्थता के लिए जिम्मेदार होता है।

(iii) मानसिक तनाव (Mental Tension)-समान आकर्षण वाले लक्ष्य विपरीत दिशा में खींचकर व्यक्ति में संवेगात्मक तनाव उत्पन्न करते हैं। इन संवेगात्मक तनावों के कारण व्यक्ति क्षुब्ध और पीड़ित होते हैं जिसके फलस्वरूप व्यक्तित्व के टूटने की स्थिति भी आ सकती है। इसके अतिरिक्त मानसिक आघात; जैसे-माँ से बच्चे का बिछुड़ना तथा किसी प्रियजन की आकस्मिक मृत्यु; मानसिक असन्तुलन के कारण बनते हैं।

(iv) दमित भावना ग्रन्थियाँ (Complexes)-कभी-कभी व्यक्ति में असामान्य भावनाओं का जमाव देखा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भावनाएँ एक-दूसरे से उलझकर ग्रन्थियों बना देती हैं। इन ग्रन्थियों के निर्माण का व्यक्ति को पता नहीं रहता, किन्तु इनसे हीनता की भावना (Inferiority Complex), उच्चता की भावना (Superiority Complex), अपराध भावना (Guilty Complex) आदि भावनाएँ पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार से दमित भावना ग्रन्थियाँ मानसिक विकार उत्पन्न कर सकती हैं।

(v) यौन हताशाएँ (Sexual Frustrations)-प्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी फ्रायड के अनुसार, अधिकांश मानसिक रौगो का मूल कारण यौन हताशा है। यदि व्यक्ति की यौन इच्छाओं की तृप्ति न हो और उनका बलात् दमन कर दिया जाए तो इससे मानसिक संघर्ष पैदा होता हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।

(3) समूचित समायोजन सम्बन्धी बाधाएँ (Factors Thwarting Adjustment)

वस्तुतः समुचित समायोजन ही मानसिक स्वास्थ्य का आधार है। समायोजन में बाधाएँ आने पर मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये बाधक कारक निम्नलिखित हैं –

(i) परिवेशजनित कारक (Environmental Factors)–अनेक बार बाह्य परिवेश के साथ समायोजन में बाधा उपस्थित होने से मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। आजादी मिलने के समय भारत और पाकिस्तान को बँटवारा हुआ और उसमें साम्प्रदायिक हिंसा के नंगे नाच ने न जाने कितने परिवारों को नष्ट कर डाला। इसका सम्बन्धित लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल, गहरा एवं स्थायी प्रभाव पड़ा।

(ii) मनोजनित कारक (Psychic Factors)–मनोजनित कारक मन से उत्पन्न होते हैं। जब व्यक्तित्व, रुचि, अभिरुचि, स्वभाव, आदर्श तथा मूल्य का उसकी योग्यता से तालमेल नहीं बैठता तो असमायोजन उत्पन्न होता है। कुछ लोग बड़े धन्धे के योग्य नहीं होते तथा छोटे धन्धे को अपनाना नहीं चाहते, वे ऐसी दशा में मानसिक असन्तुलन के शिकार होते हैं।

(iii) समाज व संस्कृति से उत्पन्न कारक (Factors Originated from Society and Culture)-समाज में जाति-प्रथा के दोष, रुग्ण प्रथाएँ व परम्पराएँ, नये व पुराने आदर्शों के बीच संघर्ष, प्राथमिकताओं के प्रति अज्ञानता तथा भटकाव व्यक्तित्व के समायोजन में बाधा उत्पन्न करते हैं। अनेक मानसिक विकारों का जन्म सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से होता है।

प्रश्न 5.
साधारण मानसिक अस्वस्थता के उपचार की मुख्य विधियों या उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मानसिक अस्वस्थता साधारण भी हो सकती है तथा गम्भीर भी। साधारण तथा गम्भीर मानसिक अस्वस्थता के उपचार के लिए अलग-अलग विधियों को अपनाया जाता है। साधारण मानसिक अस्वस्थता के उपचार के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियाँ या उपाय हैं-सुझाव, उन्नयन, निद्रा, विश्राम, पुनर्शिक्षण, मनो-अभिनय, सम्मोहन, मनोविश्लेषण विधि, खेल एवं संगीत, व्यावसायिक चिकित्सा तथा सामूहिक चिकित्सा विधि। इन उपायों द्वारा साधारण मानसिक अस्वस्थता का सफल उपचार किया जा सकता है।

साधारण मानसिक अस्वस्थता के उपचार में आवश्यकतानुसार निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है

(1) सुझाव – मानसिक रोगी को सीधे-सीधे सुझाव देकर समझाया जाए कि उसे अपनी अस्वस्थता के विषय में क्या सोचना व करना है। उसके भ्रम व भ्रान्तियों का भी निवारण किया जाए। इस प्रकार के सुझाव से सामान्य रूप से साधारण मानसिक अस्वस्थता का सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है। मानसिक अस्वस्थता में आत्म-सुझाव का भी विशेष महत्त्व होता है।

(2) उन्नयन – इस विधि में यह जाँच की जाती है कि मानसिक रोग का किस प्रवृत्ति या संवेग से सम्बन्ध है। फिर उसी प्रवृत्ति/संवेग का स्तर उन्नत करके उसे किसी उच्च लक्ष्य के साथ जोड़ दिया जाता है।

(3) निद्रा – अचानक आघात या दुर्घटना के कारण यदि कोई व्यक्ति अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा हो तो रोगी को औषधि देकर कई दिनों तक निद्रा में रखा जाता है। शरीर की ताकत को बनाये रखने की दृष्टि से ताकत के इन्जेक्शन दिये जाते हैं।

(4) विश्राम – अधिक कार्यभार, थकावट, तनाव तथा मानसिक उलझनों और कुपोषण के कारण अक्सर मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। ऐसे रोगियों को शान्त वातावरण में विश्राम करने दिया जाता है और उन्हें पौष्टिक भोजन खिलाया जाता है।

(5) पुनशिक्षण – इसके अन्तर्गत मानसिक रोगी में व्यावहारिक शिक्षा, संसूचन तथा उपदेश के माध्यम से आत्मविश्वास व आत्म-नियन्त्रण पैदा किया जाता है। इसके लिए अन्य व्यक्ति, समूह या दैवी-शक्तियों में विश्वास के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है। इसी सिद्धि की सफलता रोगी द्वारा दिये गये सहयोग पर निर्भर करती है। कमजोर तथा कोमल भावनाओं वाले व्यक्तियों की इस विधि से चिकित्सा की जा सकती है।

(6) ग्रन्थ-अध्ययन विधि – पढ़े-लिखे विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगियों के लिए ऐसे विशिष्ट ग्रन्थों की रचना की गयी हैं जिनके पढ़ने से मानसिक तनाव व असन्तुलन घटता है। रोग के अनुसार चिकित्सक सम्बन्धित ग्रन्थ पढ़ने के लिए देता है और इसके पश्चात् उचित निर्देशन प्रदान कर रोग का पूर्ण उचारे कर देता है।

(7) व्यावसायिक चिकित्सा – खाली मस्तिष्क शैतान का घर है, किन्तु कार्य में रत व्यक्ति में कई विशिष्ट गुण उत्पन्न होते हैं; जैसे—सहयोग, प्रेम, सहनशीलता, धैर्य और मैत्री। इन गुणों से। मानसिक उलझन और तनाव में कमी आती है। इसी सिद्धान्त को आधार बनाकर रोगियों को उनके पसन्द के कार्यों (जैसे—चित्रकारी, चटाई-कपड़ा-निवाड़ बुनना, टोकरी बनाना आदि) में लगा दिया जाता है। धीरे-धीरे उनका मानसिक सन्तुलन सुधर जाता है।

(8) सामूहिक चिकित्सा – सामूहिक चिकित्सा विधि में दस से लेकर एक तक एक ही प्रकार के रोगियों की एक साथ चिकित्सा की जाती है। चिकित्सक समूह के सभी रोगियों को इस प्रकार प्रेरित करता है कि वे एक-दूसरे से अपनी समस्याएँ कहें तथा दूसरों की समस्याएँ खुद सुनें। एक-दूसरे को । समस्या कहने-सुनने से पारस्परिक सहानुभूति उत्पन्न होती है। रोगी जब अपने जैसे अन्य पीड़ित व्यक्तियों को अपने साथ पाता है तो उसे सन्तोष अनुभव होता है। धीरे-धीरे चिकित्सक के दिशा निर्देशन में सभी रोगी मिलकर समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं और मानसिक सन्तुलन की अवस्था प्राप्त करते हैं।

(9) मनो-अभिनय – मनो-अभिनय विधि (Psychodrama), सामूहिक विधि से मिलती-जुलती विधि है। इसमें समूह के रोगी आपस में समस्या की व्याख्या नहीं करते बल्कि अभिनय के माध्यम से अपनी समस्या का स्वतन्त्र रूप से अभि-प्रकाशन करते हैं। इससे समस्या का रेचन हो जाता है। मनो-अभिनय चिकित्सक के निर्देशन में किया जाना चाहिए।

(10) सम्मोहन – सम्मोहन (Hypnosis), अल्पकालीन प्रभाव वाली एक मनोवैज्ञानिक विधि है। जिससे मनोरोग के लक्षण दूर होते हैं, रोग दूर नहीं होता। सम्मोहन क्रिया में चिकित्सक मानसिक रोगी । को कुछ समय के लिए अचेत कर देता है और उसे एक आरामकुर्सी पर विश्रामपूर्वक बैठाता है। अब उसे किसी ध्वन्यात्मक या दृष्टात्मक उत्तेजना पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए कहा जाता है। संसूचनाओं के माध्यम से उसे सचेत ही रखा जाता है। रोगी को निर्देश दिया जाता है कि वे अपनी स्मृति से लुप्त हो चुकी अनुभूतियों को कहे। अनुभूति के स्मरण-मात्र से ही रोगी का रोग दूर हो जाता है।

(11) मनोविश्लेषण विधि–फ्रायड नामक विख्यात मनोवैज्ञानिक ने सम्मोहन विधि की कमियों को ध्यानावस्थित रखते हुए ‘मनोविश्लेषण विधि’ (Psycho-analysis) की खोज की। रोगी को एक अर्द्धप्रकाशित कक्ष में आरामकुर्सी पर इस प्रकार विश्रामपूर्वक बैठाया जाता है कि मनोविश्लेषक तो रोगी की क्रियाओं का पूर्णरूपेण अध्ययन के निरीक्षण कर पाये लेकिन रोगी उसे न देख सके। अब मनोविश्लेषक के व्यवहार से प्रेरित् व सन्तुष्ट व्यक्ति उस पर पूरी तरह विश्वास प्रदर्शित करता है। यद्यपि शुरू में प्रतिरोध की अवस्था के कारण रोगी कुछ व्यक्त करना नहीं चाहता, किन्तु उत्तेजक शब्दों के प्रयोग से उसे पूर्व-अनुभव दोहराने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके बाद स्थानान्तरण की अवस्था के अन्तर्गत दो बातें होती हैं –
(i) रोगी चिकित्सक को भला-बुरा कहता या गाली बकता है अथवा
(ii) रोगी मनोविश्लेषक पर मुग्ध हो जाता है और उसकी हर एक बात मानता है। शनैः-शनैः रोगी अपनी समस्त बातों की जानकारी मनोविश्लेषक को दे देता है जिससे उसकी उलझनें समाप्त हो जाती हैं और वह सामान्य व समायोजित हो जाता है।

(12) खेल और संगीत – बालकों तथा दीर्घकाल तक दबाव महसूस करने वाले व्यक्तियों के लिए खेल विधि उपयोगी है। रोगी को स्वेच्छा से स्वतन्त्रतापूर्वक नाना प्रकार के खेल खेलने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। खेल खेलने से उसकी विचार की दिशा बदलती है तथा खेल जीतने से उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है। इसी प्रकार संगीत भी मानसिक उलझनों को तथा तनावों को दूर करने की एक महत्त्वपूर्ण कुंजी है। रुचि का संगीत सुनने से उत्तेजना का अन्त होकर पाचन क्रिया तथा रक्तचाप सामान्य हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान’ अपने आप में एक व्यवस्थित विज्ञान है। इसका अध्ययन-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव-जीवन से है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

(1) सामान्य व्यक्तियों का अध्ययन – सामान्य रूप से माना जाता है कि मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान द्वारा केवल मानसिक रोगियों अथवा असामान्य व्यक्तियों का ही अध्ययन किया जाता है, परन्तु यह धारणा भ्रामक है। वास्तव में, मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान सामान्य व्यक्तियों के लिए भी आवश्यक एवं उपयोगी है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान व्यक्तियों के अन्तर्गत मानसिक स्वास्थ्य के नियमों तथा उपायों का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से समस्त सामान्य व्यक्ति लाभान्वित होते

(2) मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों का अध्ययन – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तर्गत मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। मानसिक अस्वस्थता के विभिन्न प्रकारों, उनके कारणों, लक्षणों तथा रोकथाम एवं उपचार के उपायों का अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तर्गत ही किया जाता है।

(3) सम्पूर्ण समाज का अध्ययन – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है तथा उसे लाभ पहुँचाता है। मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान सम्पूर्ण समाज को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाये रखने में सहायता पहुँचाती है।

प्रश्न 2.
फ्रायड के अनुसार मन के गत्यात्मक पक्ष की व्याख्या करें।
या
फ्रायड के अनुसार इड, इगो (अहम) तथा सुपर इगो का समुचित विवेचन कीजिए।
उत्तर :
फ्रायड ने मन के गत्यात्मक पक्ष की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया है कि मन के गत्यात्मक पक्ष के तीन अंग होते हैं जिन्हें फ्रायड ने क्रमशः इदम्, (Id), अहम् (Ego) तथा परम अहम् (Super Ego) कहा है। मन के गत्यात्मक पक्ष के इन तीनों भागों का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है

(अ) इदम्-फ्रायड के अनुसार, मन के गत्यात्मक पक्ष का एक मुख्य भाग इदम् या इड है। अर्थात् व्यक्ति की सम्पूर्ण मनोजैविक शक्तिस्रोत मन का यही भाग अर्थात् इड ही है। इसे व्यक्ति की जीवन मूल प्रवृत्ति तथा मृत्यु मूल प्रवृत्ति का केन्द्र माना गया है। इड का सम्बन्ध व्यक्ति के आन्तरिक जगत से होता है, इसलिए इस वास्तविक मानसिक सत्यता माना गया है। इड के माध्यम से ही व्यक्ति का सम्बन्ध बाहरी विश्व से स्थापित होता है। व्यक्ति के इड का संचालन सुखवादी सिद्धान्त होता है।

(ब) अहम – फ्रायड के अनुसार, मन के गत्यात्मक पक्ष का दूसरा भाग अहम् है। अहम् के माध्यम से व्यक्ति का बाहरी जगत से सम्पर्क स्थापित होता है। मन का अहम् नामक भाग व्यवस्थित भाग है। इसका सम्बन्ध इड से भी होता है। इड द्वारा इच्छाएँ उत्पन्न की जाती हैं; इन इच्छाओं की सामाजिक और बाहरी जगत की अर्थात् भौतिक जगत की वास्तविकताओं के सन्दर्भ में अहम् द्वारा सन्तुष्टि की जाती है। अहम् में समायोजन का गुण होता है। यह इड तथा बाहरी जगत की वास्तविकताओं में समायोजन स्थापित करता है। अहम् का निर्देशन वास्तविकता के सिद्धान्त से होता है। इसलिए अहम् को समय तथा स्थान का पूर्ण ध्यान रहता है। अहम् अपनी की जाने वाली समस्त क्रियाओं के विषय में परिणामों का भी विचार करता है। जहाँ तक नैतिक-अनैतिक का प्रश्न है, उसका विचार अहम् नहीं करता परन्तु वह अवसर का विचार अवश्य करता है। अवसर उपलब्ध होने पर वह अनैतिक तथा असमाजिक कार्यों को भी सम्पन्न कर देता है।

(स) परम अहम् या सुपर इगो – मन के गत्यात्मक पक्ष का जो भाग नैतिकता तथा आदर्शों से सम्बन्धित होता है, उसे फ्रायड ने परम अहम् या सुपर इगो कहा है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में इस भाग का विकास इड तथा इगो के बाद ही होता है। सुपर इगो का उद्देश्य व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करना होता है। परम अहम् का सम्बन्ध मुख्य रूप से नैतिकता, धर्म, संस्कृति एवं सभ्यता से होता है। परम अहम् के कुछ विशिष्ट कार्य हैं इसका एक कार्य मूल प्रवृत्तियों की सन्तुष्टि को रोकना है। यह रोक समाज के उच्च आदर्शों तथा मानदण्डों के आधार पर होती है। व्यक्ति का परम अहम् अपने अहम् के प्रति उसी प्रकार का व्यवहार करता है जिस प्रकार का व्यवहार माता-पिता अपने बच्चों के प्रति करते हैं। परम अहम् व्यक्ति के इड को पूरी तरह से प्रतिबन्धित करने का प्रयास करता है क्योंकि इड द्वारा उत्पन्न कामुक इच्छाएँ एवं आक्रामक आवेग पूर्ण रूप से आदर्शों के विरुद्ध होते हैं।

प्रश्न 3.
मानसिक स्वास्थ्य के संवर्द्धन में परिवार की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका परिवार की होती है। व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में परिवार की भूमिका का विवरण निम्नलिखित है

(1) प्रारम्भिक विकास और सुरक्षा – मानव-जीवन के प्रारम्भिक 5-6 वर्षों में बालक का सर्वाधिक विकास हो जाता है। यह बालक की कलिकावस्था है जिसे उचित सुरक्षा प्राप्त होनी चाहिए। परिवार का इसमें विशेष दायित्व है-उसे शिशु की देख-रेख तथा रोगी से रक्षा करनी चाहिए। शिशु को सन्तुलित आहार दिया जाना चाहिए तथा उसकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जानी चाहिए। कुपोषण और असुरक्षा की भावना से बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

(2) माता-पिता का स्नेह – बालक के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए उसे माता-पिता का प्रेम, स्नेह तथा लगाव चाहिए। प्रायः देखा गया है कि जिन बच्चों को माता-पिता का भरपूर स्नेह नहीं मिलता, वे स्वयं को अकेला महसूस करते हैं तथा असुरक्षा की भावना से भय खाकर मानसिक ग्रन्थियों के शिकार हो जाते हैं। ये ग्रन्थियाँ स्थायी हो जाती हैं और उसे जीवन-पर्यन्त असन्तुलित रखती हैं।

(3) परिवार के सदस्यों का व्यवहारे – परिवार के सदस्यों; खासतौर से माता-पिता को व्यवहार सभी बालकों के साथ एक समान होना चाहिए। उनके बीच पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाना अनुचित है। उनकी असफलताओं के लिए भी बार-बार दोषारोपण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे उनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है और वे कुसमायोजन के शिकार हो जाते हैं।

(4) उत्तम वातावरण – परिवार का उत्तम एवं मधुर वातावरण बालक के मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि करता है। परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्यार, सहयोग की भावना, सम्मान की भावना व प्रतिष्ठा, एकमत्य, माता-पिता के मधुर सम्बन्ध तथा परिवार का स्वतन्त्र वातावरण मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने में योग देते हैं। इसके अलावा बालक की भावनाओं व विचारों को उचित आदर, मान्यता व स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए।

(5) संवेगात्मक विकास – बालक का संवेगात्मक विकास भी ठीक ढंग से होना चाहिए। परिवार में यथोचित सुरक्षा, स्वतन्त्रता, स्वीकृति, मान्यता तथा स्नेह रहने से संवेगात्मक विकास स्वस्थ रूप से होता है तथा नये विश्वासों तथा आशाओं का जन्म होता है।

(6) खेलकूद और घूमना – मानसिक स्वास्थ्य का शारीरिक स्वास्थ्य के साथ गहरा सम्बन्ध है। परिवार को चाहिए कि बालकों के लिए खेलकूद का पर्याप्त प्रबन्ध किया जाए। उन्हें दर्शनीय स्थल दिखाने, पिकनिक पर ले जाने, ऐतिहासिक स्थलों पर घुमाने तथा भाँति-भाँति की वस्तुओं का निरीक्षण कराने का प्रयास भी किया जाना चाहिए।

(7) अनुशासन और अनुकरण – बालक अधिकांश बातें अनुकरण के माध्यम से सीखते हैं। अनुकरण आदर्श वस्तु या विचार का होता है; अत: माता-पिता का जीवन अनुशासित एवं आदर्श जीवन होना चाहिए। परिवार में आत्मानुशासन की शिक्षा प्रदान की जाए।

प्रश्न 4.
मानसिक स्वास्थ्य के संवर्द्धन में पाठशाला या विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पाठशाला तथा मानसिक स्वास्थ्य-संवर्द्धन

बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर परिवार के बाद सर्वाधिक प्रभाव पाठशाला या विद्यालय का पड़ता है। बालक के मानसिक स्वास्थ्य में विद्यालय या पाठशाला की भूमिका का विवरण निम्नलिखित

(1) पाठशाला का वातावरण – पाठशाला का सम्पूर्ण वातावरण शान्ति, सहयोग और प्रेम पर आधारित तथा उत्तम होना चाहिए। अध्यापक का विद्यार्थी के प्रति प्रेम एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, विद्यार्थी के मन में अध्यापक के प्रति रुचि और आदर उत्पन्न करता है। इससे बालक स्वतन्त्रता तथा प्रसन्नता का अनुभव करते हैं जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। विद्यार्थियों के प्रति बालक का भेदभावपूर्ण बर्ताव बालकों के मन में अनादर और खीझ को जन्म देता है जिसके परिणामस्वरूप अध्यापक के निर्देशों की अवहेलना हो सकती है और परस्पर कुसमयोजन पैदा हो सकता है। इसके अलावा, पाठशाला में किसी प्रकार की राजनीति, गुटबाजी, साम्प्रदायिक भेदभाव नहीं रहना चाहिए। इससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(2) श्रेष्ठ अनुशासन – पाठशाला में अनुशासन का उद्देश्य बालकों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा करना है, न कि उनके मन और जीवन को पीड़ा देना है। अनुशासन सम्बन्धी नियम कठोर न हों, उनसे बालकों में विरोध की भावना उत्पन्न न हो तथा पालन सुगमता से कराया जा सके। बालकों को आत्मानुशासन के महत्त्व से परिचित कराया जाए। उन्हें अनुशासन समिति में स्थान देकर कार्य सौंपे जाएँ ताकि उनमें उत्तरदायित्व की भावना का विकास हो सके। इससे बालक का व्यक्तित्व विकसित व समायोजित होता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में योगदान मिलता है।

(3) सन्तुलित पाठ्यक्रम – बालकों के ज्ञान में अपेक्षित वृद्धि तथा उनके बौद्धिक उन्नयन के लिए पाठ्यक्रम का सन्तुलित होना आवश्यक है। पाठ्यक्रम लचीला और बच्चों की रुचि के अनुरूप होना चाहिए। रुचिजन्य अध्ययन से विद्यार्थियों को मानसिक थकान नहीं होती और उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है। इसके विपरीत, असन्तुलित पाठ्यक्रम के बोझ से बालक मानसिक थकान महसूस करते हैं, अध्ययन में रुचि लेते हैं तथा पढ़ने-लिखने से जी चुराते हैं। अतः असन्तुलित पाठ्यक्रम मानसिक सन्तुलन एवं स्वास्थ्य में सहायक हैं।

(4) पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ – पाठशाला में समय-समय पर पाठ्य-सहगामी गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहिए। इनसे बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा उसकी रुचियों का उचित अभि-प्रकाशन होता है। खेलकूद और मनोरंजन द्वारा मस्तिष्क में दमित भावनाओं को मार्ग मिलता है तथा मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

(5) उपयुक्त शिक्षण विधियाँ – पाठशाला में अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त विधियों का प्रयोग करे। नीरस शिक्षण से बालकों में अरुचि तथा थकान पैदा होती हैं, जिससे उनमें कक्षा से पलायन की प्रवृत्ति उभरती है तथा अनुशासनहीनता के अंकुर विकसित होते हैं।

(6) शैक्षिक, व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत निर्देशन – विद्यार्थियों की व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखकर उनकी मानसिक योग्यता तथा रुचि के अनुसार ही विषय दिये जाने चाहिए। इसके लिए कुशल मनोवैज्ञानिक द्वारा शैक्षिक निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अलावा उनके भावी जीवन को ध्यान में रखकर उन्हें उचित व्यवसाय चुनने हेतु भी परामर्श व दिशा निर्देश दिये जाएँ। व्यक्तिगत निर्देशन् की सहायता से उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाया जा सकता है, जिससे मानसिक ग्रन्थियाँ समाप्त हो जाती हैं तथा मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है।

प्रश्न 5.
गम्भीर सोनसिक अस्वस्थता के उपचार का विधियों की उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कुछ मानसिक विकार काफी गम्भीर होते हैं तथा उनका उपचार साधारण उपायों द्वारा नहीं किया जा सकता। इस प्रकार के मानसिक रोगियों का उपचार कुशल मनोचिकित्सकों द्वारा ही किया जा सकता है। इन रोगियों की प्राय: मनोरोग चिकित्सालयों में भर्ती भी करना पड़ता है। इन गम्भीर मानसिक रोगों के उपचार के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता है –

(1) आघात विधि – पहले कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन के मिश्रण को सुंघाकर रोगी के मस्तिष्क को आघात (Shock) दिया जाता था जिससे क्षणिक लाभ होता था। इसके बाद अधिक मात्रा में इन्सुलिन या कपूर या मेट्राजॉल के द्वारा आघात दिया जाने लगा। रोगी को 15 से 60 तक आघात पहुँचाये जाते थे। आजकल रोगी के मस्तिष्क पर बिजली के हल्के आघात देकर मानसिक रोग ठीक किये जाते हैं।

(2) रासायनिक विधि – रासायनिक विधि (Chemo Therapy) में कुछ विशेष प्रकार की ओषधियों या रसायनों का प्रयोग करके रोगी की चिन्ता तथा बेचैनी कम की जाती है। भारत में आजकल सर्पगन्धा (Rauwolia) नामक ओषधि काफी प्रचलित वै लाभदायक सिद्ध हुई है।

(3) मनोशल्य चिकित्सा – मनोशल्य चिकित्सा (Psycho-Surgery) के अन्तर्गत मस्तिष्क का ऑपरेशन करके थैलेमस व फ्रण्टल लोब का सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाता है। इससे मानसिक उन्माद और विकृतियाँ ठीक हो जाती हैं। यह देखा गया है कि इस ऑपरेशन के बाद दूसरी मानसिक असमानताएँ पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार, यह विधि सुधार की दृष्टि से तो उपयुक्त कही जा सकती है। किन्तु इससे पूर्ण उपचार नहीं हो सकता।

प्रश्न 6.
मनोरचनाएँ समायोजन में सहायक हैं।” इस कथन की विवेचना दीजिए।
उत्तर :
व्यक्ति के जीवन तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए समायोजन का विशेष महत्त्व है। समायोजन के लिए निरन्तर प्रयास एवं उपाय करने आवश्यक होते हैं। समायोजन के लिए किये जाने वाले उपायों में मनोरंजनों (Mental Mechanisms) का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। मनोरचनाएँ कुछ ऐसी प्रक्रियाएँ होती हैं, और चेतन भी होती हैं तथा अचेतन भी। मनोरचनाओं के द्वारा व्यक्ति अपने अन्तर्द्वन्द्वों से छुटकारा प्राप्त करने का प्रयास करता है। मनोरचनाओं के माध्यम से व्यक्ति विभिन्न चिन्ताओं से भी अपना बचाव करता है। मनोरचनाएँ चिन्ता से केवल रक्षा ही नहीं करतीं बल्कि यह उन विधियों की ओर संकेत भी करता हैं जिनसे चिन्ता उत्पन्न करने वाले आवेगों की दिशा भी बदली जा सकती है। इस प्रकार मनोरचनाएँ अन्तर्द्वन्द्वों को समाप्त करके तथा चिन्ताओं से मुक्ति दिलाकर व्यक्ति के जीवन में समायोजन बनाये रखने में सहायक सिद्ध होती हैं। मैक्डूगल के अनुसार, “अधिक सामान्य जैविक दृष्टि से मनोरचनाएँ व्यक्ति की अपने वातावरण से समायोजन स्थापित करने में सहायता करती हैं।”

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
टिप्पणी लिखिए-मानसिक अस्वस्थता का निदान।
उत्तर :
मानसिक अस्वस्थता के व्यवस्थित अध्ययन एवं उपचार के लिए मानसिक अस्वस्थता का समुचित निदान आवश्यक होता है।

निदान के अन्तर्गत मानसिक अस्वस्थता के कारणों का पता लगाने के लिए रोगी के व्यक्तित्व सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को प्राप्त करना आवश्यक है। ये सूचनाएँ इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होती हैं –

  1. शारीरिक दशा
  2. पारिवारिक दशा
  3. शैक्षणिक दशा
  4. सामाजिक दशा
  5. आर्थिक दशा
  6. व्यावहारिक दशा
  7. व्यक्त्वि सम्बन्धी लक्षण तथा
  8. मानसिक तत्त्व।

इन सूचनाओं को निम्नलिखित विधियों की सहायता से उपलब्ध कराया जाता है –

  1. प्रश्नावली
  2. साक्षात्कार
  3. निरीक्षण
  4. जीवन-वृत्त
  5. व्यक्तित्व परिसूची
  6. डॉक्टरी जाँच
  7. विभिन्न मनोवैज्ञानिक (बुद्धि, रुचि, अभिरुचि तथा मानसिक योग्यता सम्बन्धी) परीक्षण
  8. विद्यालय का संचित आलेख
  9. प्रक्षेपण विधियाँ तथा
  10. प्रयोगात्मक एवं अन्वेषणात्मक विधियाँ

प्रश्न 2.
टिप्पणी लिखिए-मानसिक अस्वस्थता के उपचार की विधि : सम्मोहन।
उत्तर :
सम्मोहन (Hypnosis), अल्पकालीन प्रभाव वाली एक मनोवैज्ञानिक विधि है जिससे मनोरोग के लक्षण दूर होते हैं, रोग दूर नहीं होता। सम्मोहन क्रिया में चिकित्सक मानसिक रोगी को कुछ समय के लिए अचेत कर देता है और उसे एक आरामकुर्सी पर विश्रामपूर्वक बैठाता है। अब उसे किसी ध्वन्यात्मक या दृष्टात्मक उत्तेजना पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए कहा जाता है। संसूचनाओं के माध्यम से उसे अचेत ही रखा जाता है। रोगी को निर्देश दिया जाता है कि वह अपनी स्मृति से लुप्त हो चुकी अनुभूतियों को कहे। अनुभूति के स्मरण-मात्र से ही रोगी का रोग दूर हो जाता है।

प्रश्न 3.
मनोविश्लेषण विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
फ्रायड नामक विख्यात मनोवैज्ञानिक ने सम्मोहन विधि की कमियों को ध्यानावस्थित रखते हुए मनोविश्लेषण विधि’ (Psycho-analysis) की खोज की। रोगी को एक अर्द्ध-प्रकाशित कक्ष में आरामकुर्सी पर इस प्रकार विश्रामपूर्वक बैठाया जाता है कि मनोविश्लेषक तो रोगी की क्रियाओं का पूर्णरूपेण अध्ययन व निरीक्षण कर पाये लेकिन रोगी उसे न देख सके। अब मनोविश्लेषक के व्यवहार से प्रेरित व सन्तुष्ट व्यक्ति उस पर पूरी तरह विश्वास प्रदर्शित करता है। यद्यपि शुरू में प्रतिरोध की अवस्था के कारण रोगी कुछ व्यक्त करना नहीं चाहता, किन्तु उत्तेजक शब्दों के प्रयोग से उसे पूर्व-अनुभव दोहराने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके बाद स्थानान्तरण की अवस्था के अन्तर्गत दो बातें होती हैं-(i) रोगी चिकित्सक को भला-बुरा कहता या गाली बकता है अथवा (ii) रोगी मनोविश्लेषक पर मुग्ध हो जाता है और उसकी हर एक बात मानता है। शनैः-शनै: रोगी अपनी समस्त बातों की जानकारी मनोविश्लेषक को दे देता है, जिससे उसकी उलझनें समाप्त हो जाती हैं और वह सामन्य व समायोजित हो जाता है।

प्रश्न 4.
किन्हीं दो मनोरक्षा युक्तियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बनाये रखने का एक उपाय मनोरक्षा युक्तियाँ (Defence Mechanisms) भी हैं। मनोरक्षा युक्तियाँ वे चेतन और अचेतन प्रक्रियाएँ हैं जिनसे आन्तरिक अन्तर्द्वन्द्व कम होता है अथवा समाप्त हो जाता है। दो मुख्य मनोरक्षा युक्तियों का सामान्य विवस्ण निम्नलिखित है –

(1) दमन (Repression) – दमन एक मुख्य एवं प्रधान मनोरक्षा युक्ति है। इस मनोरक्षा युक्ति के माध्यम से सम्बन्धित व्यक्ति अपनी अप्रिय एवं समाज-विरोधी इच्छाओं, कटुस्मृतियों एवं घटनाओं को मन के चेतन स्तर से हटाकर अचेतन स्तर पर भेज देता हैं दमन से कुछ हद तक मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा में सहायता प्राप्त होती है, परन्तु निरन्तर दमन की मनोरक्षा युक्ति को अपनाने से कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकते हैं।

(2) प्रक्षेपण (Projection) – प्रेक्षपण भी एक सामान्य रूप से पायी जाने वाली मनोरक्षा युक्ति है। व्यवहार में देखा जा सकता है कि कभी-कभी व्यक्ति में कुछ दोष या कमियाँ होती हैं, परन्तु वह इन दोषों की जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेना चाहता। ऐसे में वह अपने आप को दोष-रहित समझने के लिए अपने दोषों या कमियों को अन्य व्यक्तियों पर थोपता या आरोपित करता है। इस प्रकार के दोषारोपण से वह सन्तुष्टि महसूस करता है। यही प्रक्षेपण है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न I.

निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए –

  1. मानसिक स्वास्थ्य एवं सन्तुलन बनाये रखने में सहायक विज्ञान को ……………….. के नाम से जाना जाता है।
  2. मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का जन्मदाता ……………….. नामक मनोवैज्ञानिक को माना जाता है।
  3. शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक स्वास्थ्य में ……………….. है।
  4. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति बौद्धिक एवं संवेगात्मक रूप में ……………….. होता है।
  5. जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकार कर उनका सामना करना ……………….. का लक्षण है।
  6. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का जीवन के प्रति ……………….. दृष्टिकोण होता है।
  7. नवीन परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता ……………….. कहलाती है।
  8. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने व्यवसाय से ……………….. होता है।
  9. मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के जीवन में ……………….. की कमी होती है।
  10. व्यक्ति में अतिशयता की उपस्थिति-मानसिक ……………….. का लक्षण है।
  11. मन के तीन पक्षों, इड, इगों एवं सुपर-इगो में ……………….. व्यक्तित्व का तार्किक, व्यवस्थित एवं विवेकपूर्ण भाग है।
  12. शारीरिक विकलांगता तथा दीर्घकालिक रोगों का मानसिक स्वास्थ्य पर ……………….. प्रभाव पड़ता है।
  13. अत्यधिक मानसिक दबाव, मानसिक तनाव तथा दमित भावना ग्रन्थियाँ भी मानसिक स्वास्थ्य पर। ……………….. प्रभाव डालती हैं।
  14. सुझाव, निद्रा तथा समुचित विश्राम का मानसिक स्वास्थ्य पर ……………….. प्रभाव पड़ता है।
  15. उदात्तीकरण एक ……………….. है।
  16. सिगमण्ड फ्रायड द्वारा दी गई मानसिक अस्वस्थता के उपचार की विधि को ……………….. कहते हैं।
  17. मनोविश्लेषण का व्यापक प्रयोग ……………….. ने किया है।

उत्तर :

  1. मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान
  2. डब्ल्यू० बीयर
  3. घनिष्ठ सम्बन्ध
  4. परिपक्व
  5. उत्तम मानसिक स्वास्थ्य
  6. यथार्थ
  7. समायोजन शीलता
  8. सन्तुष्टे
  9. समायोजन
  10. अस्वस्थता
  11. सुपर इगो
  12. प्रतिकूल
  13. प्रतिकूल
  14. अनुकूल
  15. मनोरक्षा युक्ति
  16. मनोविश्लेषण
  17. सिगमण्ड फ्रायड

प्रश्न II.

निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान से क्या आशय है?
उत्तर :
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करता है, उसे मानसिक रोगों से मुक्त रखता है। तथा व्यक्ति मानसिक विकार/रोग अथवा समायोजन के दोषों से ग्रस्त हो जाता है तो उसके कारणों का निदान करके समुचित उपचार की व्यवस्था का प्रयास करता है।

प्रश्न 2.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान समिति की सर्वप्रथम स्थापना किसने तथा कब की थी?
उत्तर :
‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान समिति की स्थापना 1908 ई० में डब्ल्यू बीयर नामक मनोवैज्ञानिक ने की थी।

प्रश्न 3.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के तीन मुख्य कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के तीन मुख्य कार्य हैं –

  1. मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा
  2. मानसिक रोगों की रोकथाम तथा
  3. मानसिक रोगों को प्रारम्भिक उपचार।

प्रश्न 4.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की ड्रेवर द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
ड्रेवर के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ है-मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की खोज करना और उसको सुरक्षित रखने के उपाय करना।”

प्रश्न 5.
मानसिक स्वास्थ्य की एक सरल एवं स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
एच० आर० भाटिया के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य यह बताता है कि कोई व्यक्ति जीवन की माँगों और अवसरों के प्रति कितनी अच्छी तरह से समायोजित है।”

प्रश्न 6.
मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति का एक मुख्य लक्षण बताइए।
उत्तर :
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समय-समय पर आत्म-निरीक्षण करता है।

प्रश्न 7.
मानसिक अस्वस्थता से क्या आशय है?
उत्तर :
मानसिक अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें जीवन की आवश्यकताओं को। सन्तुष्ट करने में व्यक्ति स्वयं को असमर्थ पाता है तथा संवेगात्मक असन्तुलन का शिकार हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में बहुत-सी मानसिक विकृतियाँ या व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ कहा जाता है।

प्रश्न 8.
मानसिक अस्वस्थता के चार मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. साधारण समायोजन का दोष
  2. मनोरुग्णतो
  3. मनोदैहिक रोग तथा
  4. मनस्ताप।

प्रश्न 9.
मानसिक अस्वस्थता उत्पन्न करने वाले चार प्रत्यक्ष कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. अत्यधिक थकान एवं परिश्रम
  2. संवेगात्मक असन्तुलन
  3. मानसिक दौर्बल्य तथा
  4. यौन-हताशाएँ।

प्रश्न 10.
मानसिक स्वास्थ्य पर किस मनोवैज्ञानिक कारक का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
प्रबल मानसिक संघर्ष का मानसिक स्वास्थ्य पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 11.
गम्भीर मानसिक अस्वस्थता के उपचार के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. आघात चिकित्सा विधि
  2. रासायनिक विधि तथा
  3. मनोशल्य चिकित्सा।

प्रश्न 12.
बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर सर्वाधिक प्रभाव किस संस्था का पड़ता है?
उत्तर :
बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर सर्वाधिक प्रभाव परिवार नामक संस्था का पड़ता है।

प्रश्न 13.
परिवार के बाद बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर किस संस्था का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
परिवार के बाद बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर विद्यालय का प्रभाव पड़ता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए 

प्रश्न 1.
“मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने तथा मानसिक अस्वस्थता को रोकने से है।” यह परिभाषा प्रतिपादित की है –
(क) फ्रायड ने
(ख) हैडफील्ड ने
(ग) ड्रेवर ने।
(घ) भाटिया ने

प्रश्न 2.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान उपयोगी एवं आवश्यक है –
(क) केवल गम्भीर मानसिक रोगियों के लिए
(ख) केवल पथभ्रष्ट व्यक्तियों के लिए।
(ग) सभी व्यक्तियों के लिए।
(घ) किसी के लिए भी नहीं

प्रश्न 3.
मानसिक स्वास्थ्य पर किस कारक का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
(क) उत्तम पोषण का
(ख) शारीरिक सौन्दर्य का
(ग) शारीरिक विकलांगता का
(घ) इन सभी कारकों का

प्रश्न 4.
मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के नियम तथा उपाय बताने वाले विज्ञान को कहते हैं –
(क) व्यावहारिक मनोविज्ञान
(ख) प्राकृतिक चिकित्साशास्त्र
(ग) मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5.
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का जीवन के किस क्षेत्र में महत्त्व है?
(क) जीवन के असामान्य क्षेत्रों में
(ख) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में
(ग) जीवन के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में
(घ) जीवन के किसी भी क्षेत्र में नहीं

प्रश्न 6.
पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है
(क) मानसिक रूप से स्वस्थ होना
(ख) शारीरिक रूप से स्वस्थ होना
(ग) संवेगात्मक रूप से स्वस्थ होना
(घ) ये सभी

प्रश्न 7.
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पाये जाने वाले लक्षण हैं
(क) व्यवहार में परिपक्वता तथा सर्वांग जीवन
(ख) समुचित आत्म-निरीक्षण
(ग) सम्मोहन पद्धति
(घ) उपर्युक्त सभी लक्षण

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन मानसिक स्वास्थ्य का सूचक नहीं है?
(क) वास्तविकता से समायोजन
(ख) सन्तुलित क्रियाशीलता
(ग) वास्तविकता को स्वीकार करना
(घ) आत्मविश्वास की कमी

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का लक्षण है?
(क) संवेगात्मक अस्थिरता
(ख) अतिशयता की उपस्थिति
(ग) आत्मविश्वास की कमी
(घ) नियमित जीवन

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन मानसिक अस्वस्थता से सम्बन्धित है?
(क) दिमागी बुखार
(ख) कैंसर
(ग) तपेदिक
(घ) असंगत भय

प्रश्न 11.
मानसिक अस्वस्थता की रोकथाम के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है –
(क) समय पर डॉक्टरी जाँच
(ख) आत्मसम्मान की, सन्तुष्टि
(ग) बालक का उचित लालन-पालन
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 12.
मानसिक उपचार की वह पद्धति क्या कहलाती है, जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित मानसिक रोगी को अचेतनावस्था में ले जाकर आवश्यक निर्देश दिये जाते हैं
(क) सुझाव एवं संकेत पद्धति
(ख) आघात चिकित्सा पद्धति
(ग) सम्मोहन पद्धति
(घ) मनोविश्लेषण पद्धति

प्रश्न 13.
मनोविश्लेषण विधि की खोज किस मनोवैज्ञानिक द्वारा की गयी थी?
(क) सिगमण्ड फ्रॉयड
(ख) थॉर्नडाइक
(ग) गार्डनर मर्फी
(घ) पैवलोव

प्रश्न 14.
इड, इगो तथा सुपर इगो का वर्णन किसने किया है?
(क) युंग ने
(ख) बिने ने।
(ग) फ्रॉयड ने
(घ) एडलर ने

प्रश्न 15.
मन के तीन गत्यात्मक पक्षों इड, ईगो और सुपर इगो के सम्बोधन का वर्णन किया है –
(क) फ्रॉयड ने
(ख) जोन्स ने
(ग) मैक्डूगल ने।
(घ) तुष्ट ने

प्रश्न 16.
सामाजिक नैतिकता से संचालित होता है।
(क) इदम्
(ख) अहम्
(ग) पराहं।
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 17.
प्रसिद्ध कहावत “अंगूर खट्टे हैं” किस मानसिक मनोरंजन से सम्बंधित है?
(क) दमन
(ख) प्रतिक्रिया निर्माण
(ग) विस्थापन
(घ) युक्तिकरण

प्रश्न 18.
अहम् की रक्षा के लिए प्रयोग की जाने वाली रक्षा-युक्ति है –
(क) कुण्ठा
(ख) अन्तर्द्वन्द्व
(ग) दमन
(घ) दुश्चिन्ता

उतर :

  1. (ख) हैडफील्ड ने
  2. (ग) सभी व्यक्तियों के लिए
  3. (ग) शारीरिक विकलांगता का
  4. (ग) मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान)
  5. (ख) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में
  6. (घ) ये सभी
  7. (घ) उपर्युक्त सभी लक्षण
  8. (घ) आत्मविश्वास की कमी
  9. (घ) नियमित जीवन
  10. (घ) असंगत भय
  11. (ग) बालक का उचित लालन-पालन
  12. (ग) सम्मोहन पद्धति
  13. (क) सिगमण्ड फ्रॉयड
  14. (ग) फ्रायडने
  15. (क) फ्रायड ने
  16. (ग) पराहं
  17. (ख) प्रतिक्रिया निर्माण
  18. (ग) दमन।

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