RBSE Solutions for Class 8 Social Science Chapter 20 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम

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BoardRBSE
TextbookSIERT, Rajasthan
ClassClass 8
SubjectSocial Science
ChapterChapter 20
Chapter Name1857 का स्वतन्त्रता संग्राम
Number of Questions Solved52
CategoryRBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 8 Social Science Chapter 20 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न एक व दो के सही उत्तर कोष्ठक में लिखें-
प्रश्न 1.
1857 की क्रान्ति का श्रीगणेश करने की तिथि क्या तय की गई थी ?
(अ) 5 अप्रेल
(ब) 29 मार्च
(स) 31 मई
(द) 9 मई
उत्तर
(स) 31 मई

प्रश्न 2.
कोटा में क्रान्ति का नेतृत्व किसने किया?
(अ) जयदयाल
(ब) लक्ष्मीबाई
(स) कुशाल सिंह
(द) कुँअर सिंह
उत्तर
(अ) जयद्याल

प्रश्न 3.
1857 की क्रान्ति राजस्थान में कहाँ से शुरू हुई ?
उत्तर
1857 की क्रान्ति राजस्थान में नसीराबाद से शुरू

प्रश्न 4.
कोटा में किस अंग्रेज अधिकारी की हत्या की गई?
उत्तर
कोटा में मेजर बर्टन नामक अंग्रेज अधिकारी की हत्या की गई।

प्रश्न 5.
1857 की क्रान्ति में गीत रचने वाले कवि कौनकौन थे?
उत्तर
1857 की क्रान्ति में गीत रचने वाले कवि थे कीदास, सूरजमल मिसण, आढ़ा जवानगी, बारहत दुर्गादत्त, आढ़ा जादूराम, आसिया बुधजी, गोपालदान दधिवाड़िया आदि।

प्रश्न 6.
1857 की क्रान्ति में शहीद होने वाला प्रथम क्रान्तिकारी कौन था?
उत्तर
1857 की क्रान्ति में शहीद होने वाला प्रथम क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे था।

प्रश्न 7.
आउवा में हुई प्रमुख क्रान्ति की घटनाओं पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
आउवा में क्रान्ति की प्रमुख घटनाएँ आठवा में हुई क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं का वर्णन निम्नलिरित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(i) एरिनपुरा छावनी में सैनिक विद्रोह तथा आउवा के ठाकुर कुशालसिंह द्वारा सैनिकों का नेतृत्व सम्भालना- 21 अगस्त, 1857 को एरिनपुरा छावनी में तैनात एक सैनिक टुकड़ी ने आबू में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया एवं वहाँ अंग्रेज अधिकारियों पर हमले किये। एरिनपुरा आकर उन्होंने छावनी को लूटा और ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर बढ़े। एरिनपुरा के विद्रोही सैनिकों की भेंट खेरवा’ नामक स्थान पर आउवा (पाली) के ठाकुर कुशालसिंह से हुई। कुशालसिंह जोधपुर के शासक तथा अंग्रेजों से असन्तुष्ट थे। उन्होंने विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व सम्भाल लिया। कुशालसिंह के आह्वान पर आरोप, आलनियावास व गुलर के सामन्त अपनी सेनाओं सहित आडवा आ पहुंचे। खेजड़ला (मारवाड़) तथा मेवाड़ के सलूम्बर, रूपनगर और लहसानी के सामन्तों ने भी अपनी सेनाएँ उनकी सहायता के लिए भेज दीं।

(ii) कुशालसिंह द्वारा जोधपुर राज्य की सेना को पराजित करना- जोधपुर के महाराजा तसिंह ने सैनिक विरोध के समाचार मिलते ही अपनी राजकीय सेना क्रान्तिकारी सैनिकों के विरुद्ध आडवा भेजी। कुशालसिंह की सेना ने 8 सितम्बर, 1857 को ‘बिथोड़ा’ नामक स्थान पर जोधपुर राज्य की सेना को बुरी तरह परास्त किया।

(iii) कुशालसिंह द्वारा ए.जी.जी. जार्ज लारेन्स की सेना को पराजित करना- जोधपुर राज्य की सेना की पराजय का समाचार सुनकर ए.जी.जी, जार्ज लारेन्स स्वयं सेना लेकर आया पहुँचा। परन्तु 18 सितम्बर, 1857 को कुशालसिंह की सेना ने जार्ज लारेन्स को भी पराजित कर दिया। जोधपुर का पोलिटिकल एजेण्ट मेकर्मोन क्रान्तिकारियों द्वारा मारा गया। उसका सिर आङवा के किले के द्वार पर लटका दिया गया।

(iv) अंग्रेजी सेना द्वारा आउवा पर पुनः आक्रमण- जनवरी, 1858 में होम्स के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना ने आठवा पर आक्रमण कर दिया। ठाकुर कुशालसिंह को सलूम्बर के सामन्त के यहाँ शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने आउवा के किलेदार को रिश्वत देकर किले के द्वार खुलवा दिये एवं किले पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने आवा के निवासियों पर अमानवीय अत्याचार किए।

(v) कुशालसिंह द्वारा आत्मसमर्पण करना- 1860 में नीमच में कुशालसिंह ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उस पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें बाद में उसे बरी कर दिया गया।

प्रश्न 8.
इंगजी-जवाहरजी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर
1857 के संग्राम के पूर्व सीकर क्षेत्र में इंगजी व जवाहरजी नामक काका-भतीजा प्रसिद्ध सेनानी रहे। इन्होंने अंग्रेजों की बीकानेर तथा जोधपुर की सेना से संघर्ष किया। अपने बलिदान के कारण ये लोकगीतों में अमर हो गए। समकालीन कवियों ने ड्रैगजी तथा जवाहरजी की प्रशंसा में लोकगीतों की रचना की।

प्रश्न 9.
1857 की क्रान्ति के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर
1857 की क्रान्ति के कारण 1857 की क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1. राजनीतिक कारण

(i) अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति– नार्ड डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति से भारतीय नरेशों में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ। उसने गोद-निषेध नीति के द्वारा सम्भलपुर, सतारा, जैतपुर, नागपुर, झाँसी, बितूर आदि राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जिससे भारतीय शासकों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ।

(ii) मुगल सम्राट् के प्रति अपमानजनक व्यवहार- अंग्रेजों द्वारा मुगल सम्राट् के प्रति अपमानजनक व्यवहार किये जाने |से भारतीय मुसलमानों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। सिक्कों पर उनके नाम की बजाय इंग्लैण्ड के सम्राट् का नाम उत्कीर्ण करवाया गया।

(iii) नानासाहब की पेंशन बन्द करना- पूर्व में मराठा पेशवा से उसका साम्राज्य छीनकर उसे पेंशन दे दी गई। कालान्तर में उसके पुत्र थे नवीन पेशवा नानासाहब की पेंशन बन्द कर दी गई। इससे भारतीय जनमानस में आक्रोश उत्पन्न हुआ।

(iv) भारतीय शासकों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप- अंग्रेजों ने साम्राज्य विस्तार के दौरान भारतीय शासकों से सन्धियों की व उन्हें वचन दिया था कि अंग्रेज उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। परन्तु अंग्रेजों ने पोलिटिकल एजेन्टों के माध्यम से देशी शासकों के राज्यों में निरन्तर इस्तक्षेप किये तथा बाद में प्रशासनिक अव्यवस्था के नाम पर अवध का राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

2. सामाजिक कारण

(i) भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार करना- अंग्रेज भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार करते थे। एक सामान्य अंग्रेज भी बड़े से बड़े भारतीय का अपमान कर देता था।

(ii) भारतीय रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाना- अंग्रेज भारतीय रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाया करते थे तथा उनकी सभ्यता एवं संस्कृति पर कीचड़ उछालते रहते थे।

(iii) भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त न करना-
भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। इससे भारतीय समाज में नाराजगी श्री।

3. धार्मिक कारण

(i) ब्रिटिश सरकार द्वारा इसाई धर्म प्रचारकों को प्रोत्साहन देना- ब्रिटिश सरकार ईसाई धर्म प्रचारकों को ईसाई धर्म के प्रचार के लिए प्रोत्साहन देती थी। ईसाई धर्म-प्रचारकों को सरकारी कोष से धन की सहायता दी जाती थी। जेलों में कैदियों को इंसाई धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता था। ईसाई धर्म स्वीकार करने पर उनकी सजा में कमी कर दी जाती थी तथा अन्य कैदियों की तुलना में उन्हें अधिक सुविधाएँ दी जाती थीं। ईसाई बनने वाले को सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था।

(ii) स्कूलों में ईसाई धर्म का प्रचार–
स्कूलों में ईसाई धर्म का खुलकर प्रचार किया जाता था। सरकारी स्कूलों में आइथिल की शिक्षा अनिवार्य धी। मिशनरी स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षा दी जाती थी।

(iii) भारतीय देवी-देवताओं तथा पूजा-विधियों का मजाक उड़ाना- ईसाई धर्म प्रचारक भारतीय देवी-देवताओं तथा पुजा-विधियों का मजाक उड़ाते थे।

4. आर्थिक कारण

(i) आर्थिक शोषण- अंग्रेजों ने भारतीयों को अत्यधिक शोषण किया। उनकी आर्थिक शोषण की नीति के कारण भारतीय कृषि, उद्योग और व्यापार चौपट हो गए।

(ii) बंगाल की लूट- अंग्रेजों के आगमन से पूर्व बंगाल एक समृद्ध प्रान्त था। किन्तु अंग्रेजों ने उसे इस कदर लूटा कि वहाँ भुखमरी फैल गई। लाखों लोग अकाल में मारे गए। बंगाल के मैदानों में भारतीय किसानों तथा दस्तकारों की हड्डियों के ढेर लग गए, अंग्रेजों ने किसानों से इतना अधिक भू-राजस्व वसूला कि किसान खेती छोड़ने को बाध्य हो गए व कई
पुराने जमींदार लगान न देने के कारण जमींदारी खो बैठे।

(iii) उद्योग-धन्धों का विनाश- अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड़ में बने माल को भारत में खपाने के लिए भारतीय वस्त्रों पर भारी कर लगाया और दस्तकारों पर अत्याचार किये जिससे उन्होंने अपना पुश्तैनी कार्य त्याग दिया।

(iv) राजस्थान से भारी मुनाफा कमाना- राजस्थान में भी अंग्रेजों ने शासकों से भारी मात्रा में खराज वसूल करना शुरू कर दिया व आर्थिक संसाधनों पर भी अंग्रेज नियन्त्रण करने लगे। अंग्रेजों ने अफीम व नमक के व्यापार पर अधिकार जमा लिया। उन्होंने बकाया स्वराज के नाम पर जयपुर व जोधपुर से उनके नमक उपादन के स्रोत छीन लिए। समस्त रियासतों से समझौता कर नमक पर चुंगी लागू कर दी, जिससे जनता में भारी रोष फैला।। हाड़ौती (दक्षिणी राजपूताना) में अफीम की पैदावार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए बंगाली अफीम के मुकाबले सहाँ अफीम को नियन्त्रित करने हेतु भारी कर लगाए, जिससे यहाँ के किसानों एवं व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ। इससे यहाँ भारी मात्रा में तस्करी बढी व खाद्यान्न संकट पैदा हो गया। सम्पूर्ण राजपूताने में नमक से अंग्रेजों ने भारी मुनाफा कमाया। राजपूताने के अन्य सम्बन्धित उद्योगधन्धे भी नष्ट हो गए।

5. जन-कवियों एवं साहित्यकारों की भूमिका- अंग्रेजों के हाथों अपनी स्वायत्तता गंवाना सभी को खल रहा था। यहाँ के साहित्यकार और कवि समाज एवं शासकों को स्वातन्त्र्य-प्रेम तथा बलिदान करने के लिए बढ़-चढ़ कर प्रेरित करते रहे । राजपूताने में साहित्यकारों ने अंग्रेजों की घोर निन्दा की तथा जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के लिए आह्वान किया। राजपूताने के साहित्यकारों ने अति उत्साह से शासकों, जागीरदारों एवं जनता को प्रेरित कर 1857 ई. के लिए बारूद तैयार किया।

6. सैनिक कारण

(i) अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना-1856 में अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाए जाने से बंगाल को सेना में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ क्योंकि बंगाल की सेना  में अधिकांश सैनिक अवध के नागरिक थे। इससे उनके मन में विद्रोह की भावना विकसित हुई।

(ii) सैनिकों की परम्पराओं पर पाबन्दी लगाना- कई सैनिक अपनी परम्पराओं के अनुसार रहन-सहन, खान-पान रखना चाहते थे। वे बाल-दाढ़ी रखवाते थे व पगड़ी तथा साफा बाँधते थे। अंग्रेजों ने इन पर पाबन्दी लगा दी जिसे सैनिकों ने अपना घोर अपमान समझा। भारतीय सैनिकों को मान्य परम्पराओं के विरुद्ध बाहरी देशों में भेजा जाने लगा। इससे भारतीय सैनिकों में आक्रोश व्याप्त था।

(iii) भारतीय सैनिकों को कम वेतन देना- भारतीय सैनिकों को कम वेतन दिया जाता था, उन्हें वर्दी के पैसे भी स्वयं को देने पड़ते थे।

(iv) कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी होना- सैनिकों में असन्तोष का सबसे जबरदस्त कारण कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी का होना था, जिन्हें काम लेने से पहले दाँतों से काटना पछुता था। इन सभी कारणों से सेना में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह करने की भावना पैदा हो गई

प्रश्न 10.
1857 की क्रान्ति की मुख्य घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
1857 की क्रान्ति की मुख्य घटनाएँ
1857 की क्रान्ति की मुख्य घटनाओं का वर्णन निम्नलिखित विन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

(i) मेरठ में क्रान्ति का प्रसार- मेरठ के सैनिकों ने चर्बी लगे हुआ कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार किर दिया। 9 मई, 1857 को उन समस्त सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस पर 10 मई, 1857 को मैछ छावनी के अन्य सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया तथा जेल तोड़ कर अपने साथियों को छुड़ा लिया । कई अंग्रेज अधिकारी मार झाले गए। इसके बाद सैनिकों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।

(ii) दिल्ली पर क्रान्तिकारियों का अधिकार- 11 मई, 1857 को मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिकों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उन्होंने मुगलसम्राट् बहादुरशाह को सम्राट् घोषित कर दिया।

(iii) कानपुर में क्रान्ति का प्रसार- कानपुर में नानासाह्य तथा तान्या टोपे ने क्रान्ति का नेतृत्व किया। उन्होंने कानपुर पर अधिकार कर लिया।

(iv) अवध में क्रान्ति- अवध में बेगम हजरतमहल के नेतृत्व में अवध की जनता ने संघर्ष आरम्भ कर दिया। अवध का अंग्रेज रेजीमेन्ट हेनरी लॉरेन्स मारा गया।

(v) झांसी में क्रान्ति- झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया। अंग्रेज सेनापति रोज ने एक सेना लेकर झांसी पर आक्रमण कर दिया। झांसी की रानी ने वीरतापूर्वक अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया परन्तु  कुछ विश्वासपातियों ने झांसी के किले के फाटक खोल दिये। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई यहाँ से शत्रुओं की सेना को चीरती हुई बच निकली और कालपी पहुँची। वहाँ तान्त्या टोपे भी आ पहुँचा। दोनों ने ग्वालियर पर आक्रमण किया। अंग्रेजी सेना ने ग्वालियर के किले को घेर लिया। रानी वहाँ से बच निकली पर एक स्थान पर अंग्रेजी सेना द्वारा घेर ली गई । रानी अंग्रेजी सेना का वीरतापूर्वक मुकाबला करती रहीं परन्तु अन्त में वीरगति को प्राप्त हुई।

(6) राजस्थान में क्रान्ति

(i) नसीराबाद में क्रान्ति- राजस्थान में क्रान्ति की शुरुआत नसीराबाद से हुई। 28 मई, 1857 को नसीराबाद में तैनात पन्द्रह नेटिव बंगाल इन्फेन्ट्री के सैनिकों ने अंग्रेज । अधिकारियों पर हमला कर दिया। अनेक अंग्रेज अधिकारी मारे गए। इसके बाद क्रान्तिकारी दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहाँ वे क्रान्तिकारियों का साथ देना चाहते थे।

(ii) नीमच में क्रान्ति- नीमच में मोहम्मद अली बेग नामक सैनिक ने कर्नल अवार्ट को चुनौती दी तथा 3 जून, 1857 को नीमच में क्रान्ति हो गई। अंग्रेजों ने भाग कर उदयपुर में शरण ली। अंग्रेज कप्तान शावर्स मेवाड़ की सेना लेकर नीमच आया। तब तक वहाँ से क्रान्तिकारी दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे।

(iii) एरिनपुरा छावनी में क्रान्ति- 21 अगस्त, 1857 को एरिनपुर छावनी में तैनात एक सैनिक टुकड़ी ने आबू में अंग्रेजों के विरुङ विद्रोह कर दिया। एरिनपुरा आकर सैनिकों ने छावनी को लूट लिया। आठवा के अकुर कुशालसिंह ने क्रान्तिकारियों का च साल लिया। मारवाड़ तथा मेवाड़ के अनेक सामन्तों ने भी अपनी सेनाएँ पाकुर कुशालसिंह की सहायता के लिए भेज दी। ठाकुर कुशालसिंह ने 5 सितम्बर, 1857 को जोधपुर राज्य की सेनाओं को पराजित कर दिया। इसके बाद 18 सितम्बर, 1857 को कुशालसिंह ने ए.जी.जी. जार्ज लारेन्स को पराजित कर दिया। जनवरी, 1858 में होम्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आडवा पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने आठवा के दुर्ग पर  अधिकार कर लिया। 1860 में कुशालसिंह ने नीमच में अंग्रेजों  के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

(iv) कोटा में क्रान्ति-15 अक्टूबर, 1857 को कोटा के |सैनिकों ने रेजीडेन्सी पर आक्रमण कर दिया और मेजर बर्टना को मार डाला। राज्य के समस्त प्रशासन पर सैनिकों का नियन्त्रण हो गया। जयदयाल एवं मेहराब खाँ के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने लगभग 6 माह तक कोटा के प्रशासन पर नियन्त्रण जमाए रखा। मार्च, 1858 में जनरल बर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कोट शहर को क्रान्तिकारियों से मुक्त करवाया। जयदयाल एवं मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई।

(v) अन्य घटनाएँ- धौलपुर राज्य की सेना तथा भरतपुर की जनता में भी विद्रोही तेवर दिखे यद्यपि शासकों ने ब्रिटिश भक्ति दर्शायी। लेकिन देशी रियासती शासकों की ब्रिटिश स्वामि-भक्ति के कारण अंग्रेजों ने कठोरतापूर्वक विद्रोह को दबा दिया।

प्रश्न 11.
1857 की क्रान्ति के परिणाम लिखिए।
उत्तर
1857 की क्रान्ति के परिणाम 1857 की क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए
(i) ब्रिटिश सरकार द्वारा रियासतों के शासकों को पुरस्कृत करना- रियासतों के शासकों ने क्रान्ति के समय स्वामिभक्ति निभाते हुए अंग्रेजों का तन-मन-धन से सहयोग किया था। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पुरस्कृत किया। गोद-निषेध का सिद्धान्त समाप्त कर दिया, राजाओं को गोद लेने की अनुमति दी गई। रानी विक्टोरिया ने अपने घोषणा पत्र (1858 ई.) में आश्वासन दिया कि सभी देशों राजाओं का अस्तित्व बना रहेगा।

(ii) भारत का ब्रिटिश क्राउन के सीधे नियन्त्रण में आना-1857 की क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत कम्पनी के शासन के स्थान पर अब ब्रिटिश क्राउन (राजपद) के सीधे नियन्त्रण में आ गया।

(iii) अंग्रेजों द्वारा सामन्तों की शक्ति समाप्त करने की नीति अपनाना-जागीरदार चर्ग ने विद्रोह के दौरान अंग्रेजविरोधी भूमिका निभाई थी। अतः अंग्रेजों ने सामन्त वर्ग की शक्ति समाप्त करने की नीति अपनाई । सामन्तों से सैनिक सेवा के बदले अब नकद राशि ली जाने लगी । सामन्तों की सेनाएँ भंग कर दी गई। सामन्तों के न्यायिक अधिकार छीन लिए गए। जागीर क्षेत्रों में सामन्तों की प्रतिष्ठा कम करने के प्रयास किए गए। उनके विशेषाधिकार छीन लिए गए। प्रशासन मन्तों की भूमिका समाप्त करने के लिए नौकरशाही में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त अनुभव व स्वामिभक्त व्यक्तियों को नियुक्ति देना प्रारम्भ हुआ। इसके फलस्वरूप राजभक्त अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग का विकास हुआ।

(iv) रेलवे व सड़क व्यवस्था का विकास- अंग्रेजों ने अपने सैनिक तथा व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए रेलवे व सड़क व्यवस्था का विस्तार किया।

(v) देशी शासकों के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रबन्ध करना- अंग्रेजों ने देशी शासकों के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रबन्ध किया, ताकि वे ब्रिटिश तौर तरीकों को अपनाएँ और उनकी निष्ठा ब्रिटिश ताज व पाश्चात्य सभ्यता के प्रति बनी रहे।

(vi) भारत में आगामी ब्रिटिश नीतियों को प्रभावित करना- 1857 की क्रान्ति ने भारत में आगामी ब्रिटिश नीतियों को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया। बाद के सभी गवर्नर जनरलों ने जो निर्णय लिए, उन पर इस क्रान्ति का प्रभाव दिखाई देता हैं । लार्ड डफरिन ने अपने कार्यकाल में कांग्रेस की स्थापना की जो अनुमति प्रदान की उसके पीछे उद्देश्य यह था कि भारतीयों को अपनी बात कहने का कोई मंच मिल जाए, ताकि पुनः 1857 ई. जैसी क्रान्ति न हो। बाद के काल में स्वतन्त्रता सेनानियों विशेषकर क्रान्तिकारियों ने 1857 की क्रान्ति से प्रेरणा ग्रहण की।

(vii) सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करना- 1857 की क्रान्ति ने सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया। यह क्रान्ति विश्व में पहली बार यूरोपियन साम्राज्यवाद के विरुद्ध व्यापक विद्रोह एवं महान चुनौती थी। इससे बड़ा संधर्ष किसी भी देश की प्रसिद्ध क्रान्तियों में नहीं हुआ।

(viii) स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रथम अध्याय- अंग्रेजों ने स्वतन्त्रता के संग्राम के स्थान पर इसे सैनिक विद्रोह कहकर इसके प्रभाव को सीमित करना चाहा, किन्तु सर्वप्रथम वीर सावरकर ने अपने अकाट्य तुकों द्वारा इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम साबित किया। भारतीयों की दृष्टि से यह क्रान्ति संघर्ष का अन्त नहीं, बल्कि स्वतन्त्रता आन्दोलन को प्रथम अध्याय थी जिसकी इतिश्री 1947 ई. में देश की स्वतन्त्रता के रूप में हुई।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न बहुविकल्पात्मक

प्रश्न 1.
किस ब्रिटिश अधिकारी ने अपनी कूटनीति से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक व्यापारिक संस्था से राजनीतिक संस्था बना दिया था?
(अ) क्लाइव ने
(ब) वेलेजली ने
(स) हेस्टिंग्स ने
(द) डलहौजी ने
उत्तर
(अ) क्लाइव ने

प्रश्न 2.
लार्ड डलहौजी की किस नीति से भारतीय शासकों में असन्तोष था?
(अ) शासन-सुधार
(ब) गोद-निषेध नीति
(स) सैनिक नीति
(द) सहायक सन्धि
उत्तर
(ब) गोद-निषेध नीति

प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने जयपुर व जोधपुर के शासकों से नमक उत्पादन । के किस स्रोत को छीन लिया?
(अ) बूंदी
(ब) नागौर
(स) सांभर
(द) अजमेर
उत्तर
(स) सांभर

प्रश्न 4.
क्रान्तिकारियों द्वारा कई सभी जगह एक साथ क्रान्ति का श्रीगणेश करना था?
(अ) 31 मई, 1857
(ब) 9 मई, 1857
(स) 10 जून, 1857
(द) 4 जून, 1857
उत्तर
(अ) 31 मई, 1857

प्रश्न 5.
बैरकपुर की छावनी के किस भारतीय सैनिक ने चर्बी लगे हुए कारतूसों का विरोध करते हुए दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला?
(अ) हरदयाल
(ब) जयदयाल
(स) मोहम्मद खाँ
(द) मंगरने पाण्डे
उत्तर
(द) मंगरने पाण्डे

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. जोधपुर में आलूणियावास के ठाकुर पोलिटिकल एजेण्ट से अत्यन्त नाखुश थे। (केसरीसिंह/अजीतसिंह)
2. अंग्रेजों ने राजस्थान में ……….के व्यापार पर अधिकार जमा लिया। (जवाहरात/अफीम च नमक)
3. ……….ने पीपल्या के ठाकुर फुलसिंह को वि.सं. 1914 को पत्र लिखते हुए राजाओं को लताड़ा था। (सूरजमल मिसण/बांकीदास)
4. मंगल पाण्डे को- को फाँसी दे दी गई। (8 मई/3 अप्रेल)
उत्तर
1. अजीतसिंह
2. अफीम व नमक
3. सूरजमल मिसण
4. 8 अप्रेल

निम्नलिखित प्रश्नों में सत्य/असत्य कथन बताइये

1. लार्ड वेलेजली ने गोद निषेध नीति शुरू की थी। (सत्य/असत्य)
2. लार्ड डलहौजी के शासन काल में 1857 की क्रान्ति ( सत्य/असत्य)
3. क्रान्तिकारियों ने सम्पूर्ण भारत में 31 मई, 1857 को एक साथ क्रान्ति शुरू करने की योजना बनाई। (सत्य/असत्य)
4. अवध में बेगम हजरतमहल के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने संघर्ष आरम्भ किया। (सत्य/अन्य )
5. 9 मई, 1857 को मंगल पाण्डे को फाँसी दी गई थी। (सत्य/असम)
उत्तर
1. असय
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य
5. असत्य

स्तम्भ ‘अ’ को स्तम्भ ‘ब’ से सुमेलित कीजिए

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल से आपने क्या सीखा?
उत्तर
(1) दुश्मनों का वीरतापूर्वक मुकाबला करना चाहिए।
(2) परिस्थिति अनुसार बच निकलने की तथा पुन: युद्ध करने की भी नीति अपनानी चाहिए।
(3) कोई अन्य उपाय न होने पर शत्रुओं को अधिकाधिक नुकसान पहुँचाते हुए अपनी आखिरी सांस तक उनका मुकाबला करना चाहिए।

प्रश्न 2.
1857 की क्रान्ति में ड्रैगजी व जवाहरजी के योगदान से आपको क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर
1857 की क्रान्ति के पूर्व सीकर क्षेत्र में इंगजी व जवाहरजी नामक काका-भतीजा प्रसिद्ध सेनानी रहे। उन्होंने अंग्रेजों की बीकानेर व जोधपुर की सेना से संघर्ष किया। हमें इनसे देश के प्रति त्याग व बलिदान की प्रेरणा मिलती हैं।

प्रश्न 3.
किस गवर्नर-जनरल ने गोद निषेध नोति चलई थी?
उत्तर
नाई डलहौजी ने गोद-निषेध नीति चलाई थी।

प्रश्न 4.
लार्ड डलहौजी ने गोद निषेध नीति के अनुसार किन चार राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था।
उत्तर
लाई डलहौजी ने गोद निषेध नीति के अनुसार सतारा, सम्भलपुर, जैतपुर तथा झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था।

प्रश्न 5.
आपके विचार में 1857 की क्रान्ति में भारतीय सैनिकों में असतोष का सबसे प्रबल कारण क्या था?
उत्तर
भारतीय सैनिकों में असन्तोष का सबसे प्रबल कारण कारतूसों पर गाय तथा सूअर की चर्बी का लगा होना था, जिन्हें प्रयोग करने से पहले दाँत से काटना पड़ता था।

प्रश्न 6.
राजपूताना के किन्हीं चार साहित्यकारों की सूची बनाइये, जिन्होंने ‘1857 की क्रान्ति’ में लोगों को प्रेरित किया।
अथवा
राजस्थान की जनता तथा शासकों को क्रान्ति के लिए प्रोत्साहित करने वाले चार साहित्यकारों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. ऑकीदास
  2. सूरजमरन मिसण
  3. आड़ा जवान जी
  4. बारहठ दुर्गादत्त

प्रश्न 7.
क्रान्तिकारियों ने क्रान्ति के प्रतीक चिन्ह के रूप में किन्हें सम्पूर्ण देश में घुमाया?
उत्तर
क्रान्तिकारियों ने क्रान्ति के प्रतीक चिन्ह ‘कमल का फूल’ तथा ‘चपाती को सम्पूर्ण देश में घुमाया।

प्रश्न 8.
1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर
1557 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण अंग्रेजों द्वारा भारतीय सैनिकों को गाय तथा सुअर की चर्बी लगे कारतूसों का उपयोग करने को बाध्य करना था। इसके विरोध में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।

प्रश्न 9.
कानपुर तथा अवध में क्रान्ति का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर
कानपुर में नानासाहय तथा तात्या टोपे ने तथा अवध |में बेगम हजरतमहल ने क्रान्ति का नेतृत्व किया।

प्रश्न 10.
क्रान्ति के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
उत्तर
क्रान्ति के समय भारत का गवर्नर जनरल लाई कैनिंग था।

प्रश्न 11.
1857 की क्रान्ति में शहादत को प्राप्त होने वाले तीन क्रान्तिकारियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. मंगल पाण्डे
  2. तान्त्या टोपे
  3. रानी लक्ष्मीबाई

प्रश्न 12.
राजस्थान में सर्वप्रथम क्रान्ति कहाँ हुई और कब हुई?
उत्तर
राजस्थान में सर्वप्रथम क्रान्ति 28 मई, 1857 को नसीराबाद में हुई।

प्रश्न 13.
‘चलो दिल्ली मारों फिरंगी’ का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान करने वाले सैनिक कौन थे?
उत्तर
एरिनपुरा छावनी के सैनिक।

प्रश्न 14.
एरिनपुरा के सैनिकों का नेतृत्व सम्भालने वाला कौन था?
उत्तर
आउवा का ठाकुर कुशालसिंह

प्रश्न 15.
कोटा के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर
कोटा के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व जयदयाल एवं मेहराब खाँ ने किया।

प्रश्न 16.
किस किले के द्वार पर जोधपुर के पोलिटिकल एजेण्ट मेकमसन का सिर काट कर लटका दिया गया था?
उत्तर
आउवा के किले के द्वार पर जोधपुर के पोलिटिकल एजेण्ट मेकमसन का सिर काट कर लटका दिया गया था।

प्रश्न 17.
किस गवर्नर जनरल ने राजस्थान के शासकों द्वारा दिए गए सहयोग के बारे में कहा था कि “इन्होंने तूफान में तरंग अवरोध का कार्य नहीं किया होता तो हमारी कश्ती बह जाती।”
उत्तर
तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने।

प्रश्न 18.
राजस्थान का कौनसा निवासी व्यापारी दूसरे भामाशाह के नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर
अमरचन्द् बौदिया।

प्रश्न 19.
सर्वप्रथम किसने 1857 की क्रान्ति को सैनिक विद्रोह के स्थान पर भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम साबित किया?
उत्तर
सर्वप्रथम वीर सावरकर ने अपने अकाट्य तर्को द्वारा साबित किया कि 1857 की क्रान्ति सैनिक विद्रोह न होकर भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति के लिए उत्तरदायी आर्थिक कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
(i) शासकों से भारी मात्रा में खराज वसूल करना- राजस्थान में भी अंग्रेज यहाँ के शासकों से भारी मात्रा में खराज वसूल करते थे।

(ii) अफीम व नमक के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करना- अंग्रेजों ने राजस्थान में अफीम व नमक के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। उन्होंने बकाया खराज के नाम पर जयपुर व जोधपुर से उनके नमक उत्पादन के स्त्रोत छीन लिए, जैसे सांभर आदि।

(iii) नमक पर चुंगीकर लगाना- अंग्रेजों ने समस्त रियासतों से समझौता कर नमक पर भी चुंगी कर लागू कर दिया जिससे जनता में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ।

(iv) अफीम पर भारी कर लगाना- हाड़ौती (दक्षिणी राजपूताना) में अफीम की पैदावार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए बंगाली अफीम के मुकाबले यहाँ अफीम को निर्यान्वित करने के लिए अंग्रेजों ने भारी क्रूर लगाए, जिससे यहाँ के किसानों एवं व्यापारियों को भारी हानि हुई। इससे यहाँ भारी मात्रा में तस्करी बढी व खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया। सम्पूर्ण राजस्थान में नमक से अंग्रेजों ने भारी मुनाफा कमाया परन्तु जनसाधारण को पर्याप्त हानि उठानी पड़ी। राजपूताने के अन्य सम्बन्धित उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए।

प्रश्न 2.
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति में साहित्यकारों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति को प्रोत्साहित करने में अनेक लोककवि एवं साहित्यकारों ने योगदान दिया। जोधपुर के बाँकीदास, बूंदी के सूरजमल मिसण, आड़ा जवानजी, बारहठ दुर्गादत्त, आढ़ा जादूराम, आसिया बुधजी, गोपालदान दधिवाड़िया आदि साहित्यकारों ने अंग्रेजों के अत्याचारों की निन्दा की। उन्होंने राजस्थान के लोगों एवं शासकों को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित किया। सूरजमला मिसण ने पीपल्या के ठाकुर फूलसिंह को वि.सं. 1914 में पत्र लिखते हुए राजाओं को लताड़ा। अंग्रेजों की छावनियों को लूटने वाले इंगजी तथा जवाहरजी की प्रशंसा में लोकगीत रचे गए। कवियों ने बीकानेर के शासक की प्रशंसा की क्योंकि उसने जवाहरजी को अंग्रेजों को सौंपने से मना कर दिया। परन्तु उन्होंने जोधपुर के शासक की कटू निन्दा की क्योंकि उसने गजी को अंग्रेजों को सौंप दिया था। इस प्रकार राजस्थान में साहित्यकारों ने शासकों, सामन्तों तथा जनता को प्रेरित कर 1857 की क्रान्ति के लिए याद तैयार किया।

प्रश्न 3.
“1857 का विद्रोह भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था।” विवेचना कीजिए।
उत्तर
अंग्रेजी राज्य में सबसे बड़ा और देशव्यापी विद्रोह 1857 में हुआ था। इस विद्रोह को जनता का भी समर्थन प्राप्त था। 1857 के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहे जाने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. इस विद्रोह में केवल सैनिकों ने ही नहीं, बल्कि उनके साथ लाखों नागरिकों ने भी भाग लिया था।
  2. यह पहला संगठित विद्रोह था जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों ने कन्धे से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था।
  3. इस क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से निकालना था।
  4. इस विद्रोह को जन-साधारण का समर्थन प्राप्त था।
  5. जिन लोगों या शासकों ने अंग्रेजों का पक्ष लिया था, उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया तथा जिन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया, उनका यशोगान किया गया। वीर सावरकर ने भी अपने अकाट्य तर्को द्वारा इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम साबित किया।

प्रश्न 4.
यद्यपि अंग्रेजों की नीतियों के कारण भारत के शासकों में असन्तोष व्याप्त था, परन्तु इसके बावजूद अधिकांश भारतीय शासकों ने अंग्रेजों का भरपूर समर्थन किया। आपके विचार में इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर
भारतीय शासकों द्वारा अंग्रेजों का समर्थन करने के कारण

  1. भारतीय शासक अपने स्वार्थों एवं हितों की पूर्ति के लिए अंग्रेजों की सहायता पर निर्भर करते थे। उनकी सैनिक शक्ति एवं आर्थिक स्थिति शोचनीय थी। अंग्रेज अपनी सैन्य शक्ति के बल पर उनके राज्यों को कभी भी हड़प सकते थे।
  2. अनेक शासकों ने अंग्रेजों के साथ सन्धियों कर रखी  जिनके अनुसार भारतीय शासकों को बाह्य आक्रमणकारियों एवं आन्तरिक विद्रोहों से रक्षा करने के लिए अंग्रेज वचनबद्ध थे। इसलिए भारतीय शासक अंग्रेजों के प्रति वफादार बने रहते थे।
  3. भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने कूटनीति से नाम लेते हुए भारतीय शासकों से निश्चित प्रतिज्ञा कर उनका समर्थन प्राप्त कर लिया। विद्रोह समाप्त होने के बाद उसने भारतीय शासकों को विशेष रूप से पुरस्कृत भी किया था।
  4. भारतीय शासक अंग्रेजों की सहायता से अनेक रूढ़िवादी एवं निरंकुश शासन को बनाये रखना चाहते थे। क्रान्ति सफल होने पर क्रान्तिकारी उनके रूढ़िवादी शासन को समाप्त कर उदार एवं लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था की स्थापना करना चाहते थे।

प्रश्न 5.
सामन्त वर्ग अंग्रेजों से क्यों नाराज था?
उत्तर
सामन्त वर्ग के अंग्रेजों से नाराज होने के निम्न कारण थे

  1. सामन्तों पर शासकों को निर्भरता खत्म होने से वे उनकी उपेक्षा करने लगे थे।
  2. सामन्त वर्ग अपनी जनता से कर वसूल करता था तथा राजा को देता था। युद्ध के समय राजा को सैनिक शक्ति प्रदान करता था। अत: दरबार में सामन्तों का सम्मान था। किन्तु सहायक संधियों के बाद शासकों की सामंतों पर से निर्भरता खत्म हो चुकी थी व राजाओं ने सामन्तों के अधिकारों में कटौती कर दी। सामन्त इसका कारण अंग्रेजी शासन को ही मानते थे।
  3. मेवाड़ के सामन्त विशेषतया रावत केसरी सिंह (सलूम्बर) महाराणा के दुर्व्यवहार को अंग्रेजों की शह मानते थे।
  4. जोधपुर में ठाकुर अजीत सिंह (आलणियावास) पॉलिटिकल एजेण्ट से अत्यन्त नाखुश था।
  5. जयपुर में दीवान झै थाराम ने अंग्रेजी समर्थन के यल पर जागीरदारों को उनके पैतृक अधिकारों से वंचित कर देने | पर बाध्य किया।
  6. जोधपुर में आहुवा, आसोप, गुलर, आलगियावास के सामन्त शासक से नाराज थे और अपनी शक्तिहीनता का कारण अंग्रेजों को मानते थे।
  7. शासकों और सामंतों की निर्णय लेने की स्वतन्त्रता भी कम्पनी शासन में खत्म हो गई थी।

प्रश्न 6.
1857 की क्रांति से पूर्व भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध कौन-कौनसे विदोह हुए, उनके क्या कारण थे तधा ने क्यों असफल रहे? उत्तर
1857 की क्रांति से पूर्व हुए अंग्रेज विरोधी
संघर्ष- 1857 की क्रांति से पूर्व भी भारत में भारतीयों ने अंगेजों के विरुद्ध कई स्थानों पर संघर्ष किया, जैसे

  1. बंगाल में संन्यासियों ने विद्रोह किया
  2. महाराष्ट्र में रामोसी जाति ने तथा
  3. देश में विभिन्न जनजातियों ने समय-समय पर अंग्रेजी सेना से संघर्ष किया

संघर्षों के कारण- इन संघर्षों के प्रमुख कारण थे-

  1. अंग्रेजों के अत्याचार और
  2. उनका विश्वासघात

असफलता के कारण- ये सभी संघर्ष स्थानीय स्तर पर हुए और अलग-अलग समय पर हुए। इसलिए ये व्यापक रूप धारण नहीं कर पाये। इसी कारण वे असफल रहे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थान के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थान का योगदान– 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थान के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है ।

(i) नसीराबाद में क्रान्ति- राजस्थान में क्रान्ति का सूत्रपात नसीराबाद से हुआ। 28 मई, 1857 को नसीराबाद में तैनात पन्द्रहवीं नेटिव बंगाल इन्फेन्ट्री के सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों पर आक्रमण कर दिया। अनेक अंग्रेज अधिकारी मारे गए। इसके बाद क्रान्तिकारी दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहाँ वे क्रान्तिकारियों का साथ देना चाहते थे

(ii) नीमच में क्रान्ति- नीमच में मोहम्मद अली बेग नामक सैनिक ने कर्नल एवार्ट को चुनौती दी तथा 3 जून, 1857 को नीमच में भी क्रान्ति हो गई। अंग्रेजों ने भागकर उदयपुर में शरण ली। अंग्रेज कप्तान शॉवर्स मेवाड़ की सेना लेकर नीमच आया। तब तक क्रान्तिकारी वहाँ से दिल्ली के लिए रवाना हो चुके थे। इन क्रान्तिकारी सैनिकों के शाहपुरा पहुंचने पर वहाँ के शासक ने स्वागत किया परन्तु उसने पीछा करने वाली अंग्रेजी सेना के लिए अपने किले के द्वार नहीं खोले । वहाँ से नीमच के सैनिक भी दिल्ली की ओर रवाना हो गए।

(iii) एरिनपुरा छावनी में क्रान्ति- 21 अगस्त, 1857 को एरिनपुरा छावनी में तैनात एक सैनिक टुकड़ी ने आबू में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । एरिनपुरा आकर सैनिकों ने छावनी को लूट लिया । आउवा के ठाकुर कुशालसिंह ने क्रान्तिकारियों का नेतृत्व सम्भाल लिया। मारवाड़ तथा मेवाड़ के अनेक सामन्तों ने भी अपनी सेनाएँ ठाकुर कुशालसिंह की सहायता के लिए भेज दीं। मारवाड़ के आसोप, आलूणियावास व गूलर के सामन्त अपनी सेनाएँ लेकर आया पंच गए। मेवाड़ के सलूम्बर, रूपनगर, लसानी आदि के सामन्तों ने भी अपनी सेनाएँ वार कुशालसिंह की सहायता के लिए भेज दीं। ठाकुर कुशालसिंह ने जोधपुर की सेनाओं को तथा अंग्रेजों को पराजित किया। लेकिन अन्ततः 1860 में नीमच में ठाकुर कुशालसिंह ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें बाद में उसे बरी कर दिया गया।

(iv) कोटा में क्रान्ति- कोटा का महाराव रामसिंह अंग्रेजों का समर्थक था परन्तु वह जन-असन्तोष के कारण सैनिकों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सका। मेजर बर्टन ने कोटा के महाराय को सैनिकों पर कार्यवाही करने हेतु दबाव डाला। इस पर कोटा की सेना में आक्रोश उत्पन्न हुआ और 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा के सैनिकों ने रेजीडेन्सी पर आक्रमण कर दिया और मेजर बर्टन का सिर काट कर पूरे कोटा शहर में घुमाया। कोटा राज्य के समस्त प्रशासन पर विद्रोहियों का नियन्त्रण हो गया। कोटा महाराव रामसिंह की स्थिति अपने ही महल में कैदी के समान हो गई। जयदयाल और मेहराब खां कोटा के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नेता थे। उनके नेतृत्व में क्रान्तिकारियों का लगभग 6 माह तक कोटा के प्रशासन पर नियन्त्रण रहा। मार्च, 1855 में जनरल राबर्ट्स के नेतृत्व वाली सेना ने कोटा शहर को क्रान्तिकारियों से मुक्त कराया। जयदयाल एवं मेहराब खां को बन्दी बना लिया गया तथा उन्हें सरे आम फाँसी दी गई।

(v) अन्य क्रान्तिकारियों का योगदान– धौलपुर राज्य को सेना तथा भरतपुर की जनता ने भी अंग्रेजी विरोधी नीति अपनाई । राजपूताना के कुछ सामन्तों ने आउवा के ठाकुर कुशालसिंह के नेतृत्व को स्वीकार करके ब्रिटिश विरोधी नीति अपनाई । क्रान्तिकारियों को प्राय: प्रत्येक स्थान पर स्थानीय कृषकों, जनसामान्य, हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों का पर्याप्त समर्थन मिला।

ड्रैगजी व जवाहरजी की का योगदान – 1857 की क्रान्ति के पूर्व सीकर क्षेत्र में इंगजी व जवाहरजी नामक काका| भतीजा प्रसिद्ध सेनानी रहे। उन्होंने अंग्रेजों की बीकानेर व जोधपुर की सेना से संघर्ष किया। अपने त्याग व बलिदान के कारण ये लोकगीतों में अमर हो गए।

अमरचन्द बाँठिया की भूमिका- राजपुताने का ही निवासी व्यापारी अमरचन्द बाँठा अपने त्याग व बलिदान के लिए दूसरे भामाशाह के रूप में प्रसिद्ध है। अमरचन्द बाँठया ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति तात्या टोपे को देने का प्रस्ताव र ताकि राजस्थान में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष चलाया जा सके।

प्रश्न 2.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के क्या कारण रहे?
उत्तर
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के कारण 1857 का स्वतंत्रता का संग्राम असफल रहा। इसकी असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
(i) क्रांति का समय से पूर्व होना- क्रांति की योजना नानासाहेब पेशवा और उनके सहयोगी अजीमुल्ला तभी रंगोजी बापू ने मुख्य रूप से तैयार की थी। मुगल बादशाह बहादुरशाह के मेतृत्व में 31 मई 1857 ई. के दिन समूचे भारत में एक साथ क्रांति शुरू करनी थी। लेकिन चर्बी वाले कारतूसों से उत्पन्न आक्रोश ने सारी योजना छिन्न-भिन्न कर दी और 31 मई से पूर्व ही अधूरी तैयारी में 9-10 मई को ही क्रांति प्रारंभ हो गई।

(ii) दिल्ली में लक्ष्य विहीन स्थिति का होना- देशभर के क्रांतिकारी सैनिक क्रांति के दौरान अपनी छावनियों में विद्रोह करने के बाद दिल्ली की ओर बढ़े। लेकिन दिल्ली पहुंचने पर वे लयविहीन हो गये तथा वहाँ उनकी एकता भी खंडित हो गई।

(iii) साधनों की अपर्याप्तता- क्रांतिकारियों के पास हथियार सीमित थे तथा वे पुराने थे। उनके पास आवागमन व संचार-संवाद के साधन नहीं थे। जबकि अंग्रेजों के पास यातायात के व संचार के रेल व सड़क के तीव्र साधन थे।

(iv) शासकों का असहयोग- रियासती शासकों ने क्रांति के समय स्वामिभक्ति निभाते हुए अंग्रेजों का तन-मन-धन से सहयोग किया । यदि ये शासक क्रांति के समय क्रतिकारियों का इस प्रकार साथ देते तो क्रांति असफल नहीं होती क्योंकि क्रांतिकारियों को स्थाई सफलता मिलती तथा उन्हें साधनों की कमी व लक्ष्य विहीनता से नहीं जूझना पड़ता।

(v) अस्थायित्व- क्रांति के समय जैसे-जैसे नाराज़ सैनिक दिल्ली की ओर बढ़े, वैसे-वैसे उनकी अनुपस्थिति में अंग्रेजों ने रियासती. शासकों के सहयोग से पुन: अपना नियंत्रण कायम कर लिया। फलत: क्रांतिकारियों को स्थायी सफलता नहीं मिल पाई तथा देशी रियासतों के सहयोग से अंग्रेजों ने इसे दबा दिया तथा जून 1358 तक अंग्रेजों ने अधिकांश स्थानों पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया।

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