RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 4 मनोवैज्ञानिक विकार

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 मनोवैज्ञानिक विकार

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान में मानव व्यवहार को बाँटा गया है –
(अ) अच्छा-बुरा
(ब) सामान्य-असामान्य
(स) ऊँचा-नीचा
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) सामान्य-असामान्य

प्रश्न 2.
Normal शब्द बना है –
(अ) Norma
(ब) Narman
(स) Narme
(द) Narna
उत्तर:
(अ) Norma

प्रश्न 3.
‘Norma’ शब्द है –
(अ) ग्रीक
(ब) लैटिन
(स) अंग्रेजी
(द) फ्रेंच
उत्तर:
(ब) लैटिन

प्रश्न 4.
‘मनोव्याधिकी’ शब्द का अर्थ है –
(अ) मन का रोग
(ब) देह का रोग
(स) माँसपेशियों का रोग
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मन का रोग

प्रश्न 5.
कोमर द्वारा बताए गए चार ‘D’ में से कौन-सा सही है?
(अ) विसामान्यता (Deviance)
(ब) खतरा (Danger)
(स) अपक्रिया (Dysfunction)
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सा एक दुश्चिता विकृति का प्रकार नहीं है?
(अ) दुर्भीति
(ब) मनोग्रस्ति-बाध्यता
(स) कायरूप विकार
(द) आतंक
उत्तर:
(स) कायरूप विकार

प्रश्न 7.
कायरूप विकार का प्रकार है –
(अ) पीड़ा विकार
(ब) परिवर्तन विकार
(स) स्वकायदुश्चिता
(द) सभी
उत्तर:
(द) सभी

प्रश्न 8.
निम्न में से किसका सम्बन्ध द्रव्य सम्बन्ध विकार से है?
(अ) द्रव्य निर्भरता
(ब) द्रव्य दुरुपयोग
(स) (अ) एवं (ब) दोनों
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) (अ) एवं (ब) दोनों

प्रश्न 9.
निम्न में से किसे भावात्मक रोग कहा जाएगा?
(अ) मनोविदलता
(ब) उत्साह विषाद मनोविकृति
(स) भ्रमासक्ति
(द) मानसिक मंदन
(ब) उत्साह विषाद मनोविकृति

प्रश्न 10.
बुलिमिया एक रोग है जिसमें रोगी को –
(अ) भूख कम लगती है
(ब) प्यास अधिक लगती है
(स) भूख अधिक लगती है
(द) प्यास कम लगती है
उत्तर:
(स) भूख अधिक लगती है

प्रश्न 11.
मानसिक दुर्बलता में व्यक्ति की बुद्धि-लब्धि होती है –
(अ) 70 से ऊपर
(ब) 70 से नीचे
(स) 20 से नीचे
(द) 50 से नीचे
उत्तर:
(ब) 70 से नीचे

प्रश्न 12.
विभ्रम तथा भ्रम का सम्बन्ध किस विकृति से है?
(अ) दुश्चिता
(ब) मनोविदलता
(स) विषाद
(द) कायप्रारूप
उत्तर:
(ब) मनोविदलता

प्रश्न 13.
मनोविदलता के धनात्मक लक्षणों में से किसे शामिल करेंगे?
(अ) भ्रमासक्ति
(ब) विभ्रान्ति
(स) असंगठित चिन्तन एवं भाषा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
संज्ञानात्मक त्रिक् का सम्बन्ध किस मानसिक विकृति से है?
(अ) विषाद
(ब) दुश्चिता
(स) व्यक्तित्व विकृति
(द) मानसिक मंदता
उत्तर:
(अ) विषाद

प्रश्न 15.
व्यक्तित्व के विभाजन (splitting of personality) के लिए मनोविदलिता (schizophrenia) पद का प्रयोग सबसे पहले किसने किया था?
(अ) ब्लियूलर
(ब) क्रेपलिन
(स) मोरेल
(द) फ्रायड
उत्तर:
(अ) ब्लियूलर

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपसामान्यता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपसामान्यता शब्द को ऐबनॉरमल (Abnormal) भी कहा जाता है। यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ऐब (Ab) + नॉरमल (Normal), जिसका अर्थ है ‘सामान्य से दूर’ (Away from) इस प्रकार जो व्यवहार सामान्य व्यवहार से विचलित या भिन्न होता है उसे असामान्यतापूर्ण व्यवहार कहा जाता है।

रीगर के अनुसार, “असामान्य व्यवहार एक ऐसा व्यवहार होता है जो सामाजिक रूप से अमान्य, दुःखदायी एवं विकृत संज्ञान के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। चूँकि ऐसे व्यवहार से व्यक्ति को सामान्य समायोजन में कठिनाई होती है, इसलिए इसका स्वरूप कुसमायोजी भी होता है।”

प्रश्न 2.
सामान्य तथा असामान्य व्यवहार में अन्तर बताइए।
उत्तर:
सामान्य तथा असामान्य व्यवहार में निम्न आधारों पर अन्तर को स्पष्ट किया जा सकता है –

A. सामान्य व्यवहार:

  1. इसे अंग्रेजी में (Normal) नॉरमल व्यवहार कहा जाता है।
  2. इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के (Norma) से हुई है, जिसका अर्थ है ‘बढ़ई का स्केल’।
  3. (नॉरमल) सामान्य शब्द का प्रयोग एक पैटर्न या मानक को बोधित करने के लिए किया जाता है।

B. असामान्य व्यवहार:

  1. इसे अंग्रेजी में (Abnormal) ऐबनॉरमल व्यवहार कहा जाता है।
  2. इस शब्द का अर्थ (ऐब) है-दूर होना।
  3. इस शब्द का प्रयोग विचलित या भिन्न व्यवहार के लिए किया जाता है।

प्रश्न 3.
दुश्चिता विकार को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
चिन्ता से तात्पर्य भय एवं आशंका के नकारात्मक भाव से है, जब व्यक्ति में चिन्ता के इस भाव की मात्रा अवास्तविक तथा अतार्किक रूप से इतनी बढ़ जाती है कि उससे उस व्यक्ति का सामान्य जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाता है तथा इसके साथ ही उसका व्यवहार अपअनुकूलित (maladaptive) हो जाता है, तो इसे ‘दुश्चिता विकार’ कहा जाता है। इस विकार के लक्षणों की अभिव्यक्ति व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक दोनों तरफ से स्पष्ट रूप में करता है।

प्रश्न 4.
दुर्भीति क्या है?
उत्तर:
दुर्भीति या फोबिया मनोविकृति चिन्ता-विकृति का एक प्रमुख प्रकार है। फोबिया (Phobia) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘फोबोस’ (Phobos)शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है Dread अर्थात् ‘प्रबल भय’। इस शाब्दिक अर्थ को देखते हुए, फोबिया से एक ऐसे विकृति का बोध होता है, जिसमें सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा किसी विशिष्ट वस्तु, क्रिया, परिस्थिति या घटना के प्रति सतत् प्रबल एवं असंगत भय तथा दुश्चिता के लक्षणों की प्रतिक्रिया की जाती है। – अर्थात् फोबिया एक ऐसा विकार है, जिसमें सम्बन्धित व्यक्ति (रोगी) किसी सामान्य व हानिरहित एवं भयहीन अथवा कम भयपूर्ण उद्दीपक, परिस्थिति, घटना या वस्तु के प्रति अनियंत्रणीय, असंगत व सतत् प्रबल भय की प्रतिक्रिया को व्यक्त करता है।

प्रश्न 5.
भीषिका विकृति को समझाइए।
उत्तर:
भीषिका विकृति को आंतक विकृति भी कहा जाता है। यह चिन्ता विकृति का ऐसा प्रकार है जिसमें अप्रत्याशित एवं प्रकट रूप में जिसकी व्याख्या न की जा सके अर्थात् अव्याख्येय (Inexplicable) ऐसे आतंक या भीषिका (Panic) का अचानक दौरा पड़ता है जो 5-10 मिनट के अन्तर पर अपने शिखर पर पहुँच जाता है। आतंक का यह दौरा अप्रत्याशित एवं बारम्बार (सप्ताह में कम-से-कम एक या दो बार) पड़ता है तथा सामान्यतः थोड़ी देर बाद समाप्त हो जाता है।

आतंक दौरा के लक्षण:

  1. पसीना निकलना।
  2. दम घुटने की अनुभूति का होना।
  3. सीने में तेज दर्द या तकलीफ का होना।
  4. हृदय गति का बढ़ जाना तथा कम हो जाना।
  5. मरने का भय होना।

प्रश्न 6.
रोगभ्रम को समझाइए।
उत्तर:
रोगभ्रम को स्वकायदुश्चिन्ता रोग के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है अर्थात् रोग के न होने पर भी रोग होने का भ्रम होना। इस रोग या विकार में व्यक्ति को स्वयं को किसी रोग से पीड़ित होने का भय सदैव बना रहता है। किसी की बीमारी के लक्षण न होने के बावजूद वह अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा आशंकित रहता है तथा यह आशंका इतनी प्रबल होती है कि उसकी दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या कुसमायोजित हो जाती है।

लक्षण:

  1. व्यक्ति को रोग होने की आशंका का होना।
  2. बीमारी को लेकर चिन्तित रहना।
  3. सदैव भय की स्थिति या अवस्था में रहना।

प्रश्न 7.
कायिक विकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कायिक विकार को काय-आलंबिता विकार (Somatisation disorder) के नाम से भी जाना जाता है। इस विकृति में अनेक अस्पष्ट कायिक लक्षण होते हैं, जो प्रायः चिरकालिक होते हैं।

कायिक विकार के लक्षण:

  1. इस विकार का किसी तरह का दैहिक आधार नहीं होता है अर्थात् इसका शारीरिक आधार स्पष्ट नहीं होता है।
  2. इसमें व्यक्ति की हृदय की धड़कन में वृद्धि होती है।
  3. इसमें व्यक्ति को सामान्य तौर पर सिरदर्द, थकान, पेट-पीठ दर्द आदि होते हैं।
  4. इसमें व्यक्ति अपनी बीमारी को नाटकीय रूप में प्रदर्शित करते हैं।
  5. इसमें व्यक्ति अपनी छोटी-सी बीमारी को बड़ा दिखाते हुए, सदैव काफी मात्रा में दवाएँ लेता है।

प्रश्न 8.
विच्छेदी विकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विच्छेद से अभिप्राय है-‘अलग हो जाना।’ चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तन जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है, विच्छेदी विकार की मुख्य विशेषता होती है। जो व्यक्ति इस विकृति से रोगग्रस्त होते हैं, उनमें वातावरण के प्रति चेतना का अभाव पाया जाता है, वे अपनी पहचान भूल जाते हैं, उन्हें अपने विषय में भ्रम होने की आशंका होने लगती है तथा इसमें उस व्यक्ति में अपनी अनेक पहचान अर्थात् प्रस्थिति की विभिन्न भूमिकाओं की बातें पायी जाती हैं। इस प्रकार के विकार में स्मृतिलोप, आत्मविस्मृति तथा व्यक्तित्वलोप आदि शामिल होते हैं।

प्रश्न 9.
उन्माद-विषाद का अर्थ बताइए।
उत्तर:
उन्माद-विषाद को अंग्रेजी में Mania disorder कहा जाता है, इसका अर्थ है-एक ऐसी दशा, जिसमें व्यक्ति अत्यधिक । सक्रिय रहता है।

उन्माद-विषाद की विशेषताएँ:

  1. इसमें व्यक्ति को अत्यधिक सजग होने की अनुभूति होती है।
  2. इसमें व्यक्ति अति उत्साही रहता है, अपने कार्यों के लिए।
  3. यह एक व्यक्ति की ऐसी भाव दशा विकार है जिसमें वह स्फूर्ति व तेजी का अनुभव करता है।

प्रश्न 10.
मनोविदलता के धनात्मक तथा ऋणात्मक लक्षणों को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मनोविदलता के धनात्मक लक्षण:

  1. विभ्रम अर्थात् बिना किसी बाह्य उद्दीपक के प्रत्यक्षण करना।
  2. इसमें व्यक्ति विचार, संवेग व व्यवहार में अतिशयता दिखलाता है।
  3. इसमें व्यक्ति को ऐसा गलत विश्वास होता है, जिसके गलत होने का सबूत होने पर भी व्यक्ति उसे गलत मानने को तैयार नहीं होता है।

मनोविदलता के ऋणात्मक लक्षण:

  1. इसमें व्यक्ति विचार, संवेग व व्यवहारात्मक कमियों को दिखलाता है।
  2. इसमें व्यक्ति को काम शुरू करने या पूरा करने में असमर्थता की अनुभूति होती है।
  3. इसमें व्यक्ति में इच्छा शक्ति का अभाव या कमी पायी जाती है।

प्रश्न 11.
स्वलीन विकार क्या है?
उत्तर:
स्वलीन विकार बच्चों में पाया जाने वाला एक गम्भीर विकार होता है। इस रोग से ग्रस्त बच्चों की पहचान सबसे पहले लीओ केनर (Leo kanner) ने की थी।

इस रोग से ग्रस्त बच्चों की पहचान सबसे अधिक पायी जाती है। ऐसे बच्चों में अन्य व्यक्तियों में रुचि का अभाव देखने में आता है। यह अंतःक्रिया के लिए निर्जीव वस्तुओं को वरीयता देता है। ऐसे बच्चे अन्तःक्रिया के लिए आँख मिलाने में असफल होते हैं। ऐसे बच्चों में सार्थक व उपयोगी वाणी का विकास नहीं हो पाता है तथा अधिकांश में सीमित तथा विचित्र प्रकार की शाब्दिक अभिव्यक्तियाँ पायी जाती हैं।

स्वलीनता से ग्रस्त बच्चों में वातावरण में एकरूपता बनाये रखने की तीव्र इच्छा होती है। ऐसे बच्चों में जीवन के अत्यन्त आवश्यक क्रियाओं का अधिगम व विकास भी बहुत कम हो पाता है।

प्रश्न 12.
अतिक्रियाशील बच्चों की विशेषताओं को बताइए।
उत्तर:
अतिक्रियाशील बच्चों की विशेषताएँ:

  1. इसे अतिसक्रियता भी कहा जाता है।
  2. ADHD से पीड़ित बालकों में सक्रियता का स्तर सामान्य से कहीं अधिक पाया जाता है।
  3. ऐसे बच्चों का किसी भी क्रिया के समय उनके लिए शान्त या स्थिर बैठे रहना काफी कठिन हो जाता है।
  4. ऐसे बच्चे हमेशा दौड़ना-फिरना, उछलना-कूदना आदि में व्यस्त रहते हैं।
  5. ऐसे बच्चे काफी सक्रिय पाए जाते हैं, अपनी सभी क्रियाओं में।

प्रश्न 13.
विकासात्मक विकारों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
विकासात्मक विकार के प्रकार:

1. स्वलीनता (Autism) विकार:
यह बच्चों में पाया जाने वाला सबसे गम्भीर विकार है। इसमें बच्चों का रुझान अंत:क्रिया के दौरान निर्जीव वस्तुओं के तरह रहता है। ऐसे बच्चे अंतःक्रिया के दौरान आँख मिलाने में असफल रहते हैं।

2. क्षुधा अभाव:
यह भोजन सम्बन्धी विकार है। इसमें व्यक्ति की खाना खाने की इच्छा बिल्कुल समाप्त हो जाती है। वह मृत्यु के स्तर तक स्वयं को भूखा रखने में समर्थ होता है।

3. क्षुधातिशयता:
इसमें व्यक्ति बहुत अधिक खाना खा लेता है फिर उसे दवा के द्वारा उल्टी करवाकर बाहर निकाला जाता है। इससे उसके नकारात्मक संवेगों में कमी होती है।

प्रश्न 14.
मानसिक दुर्बलता के स्तर.बताइए।
उत्तर:
मानसिक दुर्बलता को मानसिक मंदन भी कहा जाता है। इससे तात्पर्य समायोजी व्यवहार में कमी के साथ-साथ अधो औसत बुद्धि से होता है। परम्परागत रूप से जिन व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि का स्तर 70 से नीचे रहता है, वे मंद बुद्धि कहलाते हैं।

मानसिक दुर्बलता के स्तर:

बुद्धि-लब्धि स्तरवर्गीकरण
50 – 70साधारण मानसिक दुर्बलता
35 – 50औसत मानसिक दुर्बलता
20 – 35गम्भीर मानसिक दुर्बलता
20 से कमअति गम्भीर मानसिक दुर्बलता

प्रश्न 15.
द्रव्य दुरुपयोग से क्या आशय है?
उत्तर:
द्रव्य दुरुपयोग का तात्पर्य द्रव्य के ऐसे उपयोग से है जिसमें व्यक्ति की स्थिति ज्यादा गम्भीर तो नहीं होती है, परन्तु उसके घर तथा कार्य स्थल की जिम्मेदारियों का निर्वहन प्रभावित होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों के लिए शारीरिक खतरा उत्पन्न करते हैं। सामान्यतः दुरुपर्युक्त मादक द्रव्य/पदार्थ निम्न प्रकार हैं –

  1. कैफीन – कॉफी, चाय, कोको व चॉकलेट।
  2. निकोटीन – सिगरेट व तम्बाकू।
  3. कोकीन।
  4. फेनसाइक्लिडाइन।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामान्यतया एवं असामान्यता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, असामान्यता के मॉडल बताइए।
उत्तर:
सामान्यता व्यवहार की अवधारणा:

  1. सामान्य व्यक्ति में सूझपूर्ण व्यवहार होता है।
  2. सामान्य व्यक्ति में सन्तुलित सामाजिक समायोजन पाया जाता है।
  3. सामान्य व्यक्ति को वास्तविकता का ज्ञान होता है।

असामान्यता की अवधारणा:

  1. असामान्य व्यक्ति में सूझपूर्ण व्यवहार कम अथवा बिल्कुल नहीं होता है।
  2. ऐसे व्यक्ति का व्यवहार विचित्र एवं ऊटपटांग होता है।
  3. असामान्य व्यक्ति को वास्तविकता का ज्ञान नहीं होता है।

असामान्यता के मॉडल:

  1. मनोवैज्ञानिक मॉडल-इस मॉडल के अनुसार अपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वन्द्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है, जिसका सम्बन्ध सामान्यतः प्रारम्भिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से होता है।
  2. मानवतावादी-अस्तित्वपरक मॉडल-इस मॉडल के अनुसार मनोवैज्ञानिक कष्ट व्यक्ति को अकेलापन तथा जीवन का अर्थ समझने और यथार्थ सन्तुष्टि प्राप्त करने में अयोग्यता की भावनाओं के कारण होते हैं।
  3. संज्ञानात्मक मॉडल-जब व्यक्ति अपने बारे में गलत ढंग से सोचता है, तो उसमें कई तरह के असामान्य व्यवहार उत्पन्न हो जाते हैं।
  4. व्यवहारात्मक मॉडल-इस मॉडल के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार व्यवहार करने में दुरनुकूलक तरीके सीखने के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 2.
असामान्य व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों को बताइए।
उत्तर:
असामान्य व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –

A. जैविक कारक:

  1. आनुवंशिक दोष जिनसे व्यक्ति में असामान्य व्यवहार उत्पन्न होता है। गुणसूत्रीय असामान्यता व दोषपूर्ण जीन्स के कारण हो सकता है।
  2. एक अन्य विचारधारा में असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति जैविक रासायनिक पदार्थों की मात्रा में परिवर्तन को माना गया है।
  3. शरीर गठनात्मक कारक जैसे शारीरिक विकलांगता, शरीर गठन व प्राथमिक प्रतिक्रिया प्रवृत्ति से असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति होती पायी गयी है।

B. मनोसामाजिक कारक:

  1. अगर व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक विकास दोषपूर्ण हो तो इसके फलस्वरूप अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक ही है।
  2. माता-पिता व बच्चे के बीच दुरनुकूलक अन्त:क्रिया से बच्चों का व्यक्तित्व विकास कुप्रभावित हो जाता है।
  3. तीव्र मनोवैज्ञानिक प्रतिबल किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में बाधक एवं असामान्य व्यवहार के कारक हो सकते हैं।
  4. पारिवारिक संरचना से पारिवारिक क्षुब्धता इतनी अधिक मात्रा में होती है कि उससे परिवार के सदस्यों का सामान्य समायोजन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है व व्यक्ति असामान्य व्यवहार से ग्रसित हो जाता है।

C. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक:

  1. सामाजिक व सांस्कृतिक कारणों में युद्ध व हिंसा की अहम् भूमिका होती है जो व्यक्ति में असामान्य व्यवहार को उत्पन्न करती है।
  2. समूह पूर्वाग्रह तथा भेदभाव भी व्यक्ति में असामान्य व्यवहार को उत्पन्न करती है।
  3. समाज में व्यक्तियों में पायी जाने वाली बेरोजगारी भी व्यक्तियों में असामान्य व्यवहार को उत्पन्न करती है।
  4. तीव्र सामाजिक परिवर्तन भी व्यक्ति में असामान्य व्यवहार को उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार है।

अत: उपरोक्त कारणों से स्पष्ट होता है कि इन समस्त कारकों से व्यक्ति में असामान्य व्यवहार उत्पन्न होता है।

प्रश्न 3.
मनोविदलिता पर लेख लिखिए।
उत्तर:
मनोविदलिता विकार एक गम्भीर मनोविकृति है। पहले इसे ‘डिमेन्शया प्रकाक्स’ (dementia praecox) कहा जाता था। ब्ल्युलर ने इस मानसिक रोग को ‘स्कीजोफ्रेनिया’ की संज्ञा दी जो आज तक प्रचलित है।

मनोविदलता वास्तव में मनोविकृति (Psychosis) का एक प्रकार है। इसका शाब्दिक अर्थ है-‘व्यक्तित्व विभाजन’ (splitting of personality)। इस व्यक्तित्व विभाजन के कारण रोगी में गम्भीर संज्ञानात्मक, संवेगात्मक तथा क्रियात्मक विकृतियाँ विकसित हो जाती हैं, जिससे रोगी का सम्बन्ध वास्तविकता से टूट जाता है।

मनोविदलता के पाँच मुख्य प्रकार:

1. व्यामोहक प्रकार (Paranoid Type):
इसमें लक्षण व्यामोह तथा श्रव्य विभ्रम एक क्रमबद्ध एवं संगठित तंत्र का होना है। इसमें दण्डात्मक व्यामोह की प्रबलता होती है। इसमें ईर्ष्या तथा सन्दर्भ का व्यामोह भी पाया जाता है।

2. विसंगठित प्रकार:
विसंगठित भाषा और व्यवहार, कुंठित भाव कोई कैटाटोनिक लक्षण नहीं है।

3. कैटाटोनिक प्रकार:
इस मनोविदलता का सबसे प्रमुख लक्षण पेशीय क्षुब्धता (Motor disturbance) है। रोगी कभी-कभी काफी उत्तेजना में आकर तरह-तरह की पेशीय क्रियाएँ करता है तो कभी वह एक ही तरह की पेशीय क्रिया जैसे एक पैर पर कई घण्टों तक खड़ा रहता है।

4. अविभेदित प्रकार:
यह व्यक्ति मनोविदलता की निर्धारित श्रेणियों में से किसी भी एक श्रेणी के अनुरूप नहीं होते हैं अथवा एक से अधिक श्रेणियों के अनुरूप होते हैं।

5. अवशिष्ट प्रकार:
अवशिष्ट मनोविदलता के लिए यह आवश्यक है कि इससे पीड़ित व्यक्ति अतीत में कम-से-कम एक मनोविदलता घटना से गुजर चुका हो तथा वर्तमान में कोई सकारात्मक लक्षण नहीं किन्तु नकारात्मक लक्षण प्रदर्शित करता हो।

अतः उपरोक्त प्रकारों से यह स्पष्ट होता है कि मनोविदलता एक गम्भीर मानसिक रोग है जिससे व्यक्ति को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 4.
व्यवहारात्मक एवं विकासात्मक विकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यवहारात्मक एवं विकासात्मक विकार विशेषकर बच्चों के व्यवहार एवं विकास से सम्बन्धित होते हैं। यदि इन विकारों पर समय रहते ध्यान दिया जाए तो इनमें सुधार भी किया जा सकता है। परन्तु इसकी उपेक्षा की जाए तो भविष्य में इसके परिणाम काफी गम्भीर हो सकते हैं। व्यवहारात्मक विकारों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

A. बहिःकरण विकार:
इन्हें अनियंत्रित विकार भी कहा जाता है, इन विकारों में वे व्यवहार आते हैं जो विध्वंसकारी एवं आक्रामक होते हैं। इसमें कुछ प्रमुख विकार शामिल हैं

1. विरुद्धक अवज्ञाकारी विकार:
इससे ग्रसित बालक उम्र के अनुपयुक्त जिद्द करते हैं। ऐसे बालक चिड़चिड़े, अवज्ञाकारी तथा शत्रुतापूर्ण तरह से व्यवहार करने वाले होते हैं।

2. आचरण विकार:
यह उन बालकों में पाया जाता है जो अपनी उम्र के अनुरूप व्यवहार नहीं करते हैं तथा व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करने वाले होते हैं। ऐसे बालक धोखा देना, चोरी करना तथा नियमों का पालन न करने वाले होते हैं।

B. आन्तरिकीकरण विकार:
इसमें आन्तरिक व ऐसी स्थितियाँ होती हैं, जो दूसरों को दिखायी नहीं देती हैं। जैसे वियोगज दुश्चिन्ता तथा अवसाद के रूप में आदि।

विकासात्मक विकार:
बच्चों में पाए जाने वाले गम्भीर विकार को व्यापक विकासात्मक विकार कहा जाता है। इसमें अनेक विकार शामिल होते हैं

1. स्वलीनता:
इस विकार में बच्चे अन्तःक्रिया के दौरान निर्जीव वस्तुओं को महत्व देते हैं। ऐसे बच्चों में अधिगम व विकास काफी कम हो पाता है।

2. अनियंत्रित भोजन:
इस विकार में व्यक्ति या बच्चे में अत्यधिक भोजन करने की प्रवृत्ति सर्वाधिक पायी जाती है।

3. क्षुधतिशयता:
इस विकार में व्यक्ति इतना अधिक भोजन कर लेता है कि उसे दवा के द्वारा बाहर निकलवाना पड़ता है।

4. क्षुधा अभाव:
इस विकार में व्यक्ति की खाना खाने की इच्छा बिल्कुल समाप्त हो जाती है। वह बिना भोजन के एक लम्बी अवधि तक जीवन-यापन कर सकता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के स्तर तक स्वयं को भूखा रखने में समर्थ रहता है।

प्रश्न 5.
दुश्चिता विकार से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
जब व्यक्ति में चिन्ता के भाव की मात्रा अवास्तविक तथा अतार्किक रूप से इतनी बढ़ जाती है कि उससे उस व्यक्ति का सामान्य जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाता है तथा उसका व्यवहार अपअनुकूलित हो जाता है, तो इसे ‘दुश्चिता विकार’ कहा जाता है। इस विकार के लक्षणों की अभिव्यक्ति व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक दोनों तरफ से स्पष्ट रूप में करता है।

दुश्चिता विकार के प्रकार:

1. सामान्यीकृत चिन्ता विकृति:
इसमें चिन्ता इतनी अधिक चिरकालिक व व्यापक होती है कि यह स्वतंत्र प्रवाही लगती है। यह लम्बे समय तक चलने वाला अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय होता है जो किसी भी विशिष्ट वस्तु से जुड़ा हुआ नहीं होता है।

2. आतंक विकार:
इस तरह की विकृति में रोगी को बार-बार दौरे पड़ते हैं। दौरा पड़ने पर सांवेगिक रूप से तीव्र आशंका, दहशत तथा व्यक्तिलोप के लक्षण विकसित हो जाते हैं।

3. दुर्भीति:
इससे आशय कुछ ऐसी वस्तु या परिस्थिति के प्रति अत्यधिक या अनुपयुक्त भय है, जो वास्तव में खतरनाक नहीं होती है। यह तीन प्रकार की होती है –

  • विवृत्ति भीति
  • सामाजिक दुर्भीति
  • विशिष्ट दुर्भीति

4. मनोग्रस्त बाध्यता विकार:
इसमें व्यक्ति बार-बार किसी अतार्किक एवं असंगत विचारों को न चाहते हुए भी मन ही मन दोहराते रहता है। पीड़ित व्यक्ति ऐसे विचारों से छुटकारा भी पाना चाहता है परन्तु वह लाचार रहता है, जिससे उसकी मानसिक शान्ति इस हद तक क्षुब्ध हो जाती है कि उसके समायोजन में बाधा पहुँचती है। यह दो प्रकार के होते हैं –

  • बाध्यता-इसमें रोगी अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी क्रिया को बार-बार करने के लिए बाध्यता महसूस करता है।
  • उत्तर आघातीय प्रतिबल विकृति-इसमें व्यक्ति किसी भी घटना से इतना पीड़ित हो जाता है कि उसका समायोजन बिगड़ जाता है। उसका मानसिक स्तर सांवेगिक शून्यता पर पहुँच जाता है।

प्रश्न 6.
कायरूप विकार एवं विच्छेदी विकार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कायरूप विकार को शरीर प्रारूपी विकार भी कहा जाता है। यह एक ऐसा मनोविकार है जिसमें व्यक्ति शारीरिक कष्ट के लक्षण व्यक्त करता है, परन्तु उसके इन शारीरिक लक्षणों का कोई जैविक आधार नहीं होता है। इसके चार प्रकार होते हैं –

1. पीड़ा विकार:
इस विकार की उत्पत्ति तनाव या किसी अन्य मानसिक आधार के कारण होती है। इसमें व्यक्ति (रोगी) असहनीय पीड़ा की शिकायत करता है।

2. काय-आलम्बिता विकार:
इसमें किसी तरह का स्पष्ट दैहिक आधार नहीं होता है। इसमें व्यक्ति नाटकीय तौर पर अपनी बीमारी को दर्शाता है।

3. परिवर्तन विकार:
इस विकार में व्यक्ति अपने तनाव, मानसिक संघर्ष आदि की अभिव्यक्ति शारीरिक लक्षणों के माध्यम से करता है।

4. स्वकायदुश्चिता रोग:
इस विकार में व्यक्ति को स्वयं को किसी रोग से पीड़ित होने का भय हमेशा बना रहता है। वह सदैव अपने स्वास्थ्य को लेकर आशंकित रहता है।

विच्छेदी विकार:
इस विकार में व्यक्तियों में वातावरण के प्रति चेतना का अभाव पाया जाता है, वे अपनी पहचान भूल जाते हैं। वे एक प्रकार से अपनी पहचान से अलग हो जाते हैं।

इसके प्रकार:

1. विच्छेदी स्मृतिलोप:
इसमें व्यक्ति में विस्मरण प्रायः एकाएक उत्पन्न होता है तथा किसी निश्चित सीमाबद्ध समय विशेष से सम्बन्धित होता है।

2. विच्छेदी आत्मविस्मृति:
इस विकार में व्यक्ति अपने घर को छोड़कर अचानक चला जाता है तथा नए नाम व काम के साथ जिन्दगी की शुरुआत करता है तथा कुछ समय बाद उसे अपना पुराना जीवन याद आता है तथा वह नए जीवन को बिल्कुल भूल जाता है।

3. विच्छेदी पहचान विकार:
इसमें एक ही व्यक्ति में दो या दो से अधिक व्यक्तित्व पाए जाते हैं। एक व्यक्तित्व अवस्था दूसरे व्यक्तित्व अवस्था से नाटकीय रूप से भिन्न होता है।

4. व्यक्तित्वलोप:
इसमें व्यक्ति को एहसास होता है कि वह स्वप्न की दुनिया में रह रहा है। इसमें व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है। इसमें व्यक्ति की आत्म क्षति हो जाती है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसिक क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किस विषय में किया जाता है?
(अ) मनोविज्ञान
(ब) रसायन विज्ञान
(स) भौतिक विज्ञान
(द) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(अ) मनोविज्ञान

प्रश्न 2.
नॉरमल शब्द किसका बोध कराता है?
(अ) मूल्यों
(ब) मानक
(स) विचारों
(द) विश्वासों
उत्तर:
(ब) मानक

प्रश्न 3.
‘ऐब’ का क्या अर्थ है?
(अ) पास
(ब) समीप
(स) दूर
(द) निकट
उत्तर:
(स) दूर

प्रश्न 4.
विचलित का क्या अर्थ है?
(अ) पथभ्रष्ट होना
(ब) भटक जाना
(स) डगमगाना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
कोमर ने असामान्य व्यवहार को कितने भागों में बाँटा है?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) दो
उत्तर:
(ब) चार

प्रश्न 6.
APA का पूर्ण नाम क्या है?
(अ) Adult Physical Association
(ब) Adult Psychological Association
(स) American Psychiatric Association
(द) American Psychological Association
उत्तर:
(स) American Psychiatric Association

प्रश्न 7.
मनोगतिक मॉडल किसने दिया है?
(अ) लेबिस
(ब) मूरे
(स) मोरेल
(द) फ्रॉयड
उत्तर:
(द) फ्रॉयड

प्रश्न 8.
डायथिसिस का क्या अर्थ है?
(अ) विकृति
(ब) असामान्य व्यवहार
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों

प्रश्न 9.
असामान्य व्यवहार के कितने कारक पाए जाते हैं?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) दो
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) तीन

प्रश्न 10.
शरीर की संरचना किसके द्वारा निर्धारित होती है?
(अ) हृदय
(ब) आनुवंशिकता
(स) विभिन्न अंग
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) आनुवंशिकता

प्रश्न 11.
दुर्भीति विकृति की कितनी श्रेणियाँ होती हैं?
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) तीन

प्रश्न 12.
हवा से होने वाली दुर्भीति को क्या कहा जाता है?
(अ) पायराफोबिया
(ब) नोसोफोबिया
(स) हाइड्रोफोबिया
(द) ऐरोफोबिया
उत्तर:
(द) ऐरोफोबिया

प्रश्न 13.
PTSD का पूरा नाम बताइए
(अ) Post Traumatic Stress Disorder
(ब) Pre Traumatic Stress Disorder
(स) Prime Traumatic Stress Disorder
(द) Primary Traumatic Stress Disorder
उत्तर:
(अ) Post Traumatic Stress Disorder

प्रश्न 14.
विच्छेद का क्या अर्थ है?
(अ) अलग होना
(ब) दूर होना
(स) जुदा होना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 15.
‘आत्म’ को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) स्व
(ब) मुझे
(स) मैं
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) स्व

प्रश्न 16.
एक ध्रुवीय विषाद किसे कहा जाता है?
(अ) Major depressive disorder
(ब) Minor depressive disorder
(स) Most depressive disorder
(द) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(अ) Major depressive disorder

प्रश्न 17.
उन्माद (Mania) में रोगी की स्थिति कैसी होती है?
(अ) अति सक्रिय
(ब) अति उत्साही
(स) जोशीली
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
अवधान न्यूनता किसमें पायी जाती है?
(अ) ADHD
(ब) DDHA
(स) ADBD
(द) ADCD
उत्तर:
(अ) ADHD

प्रश्न 19.
ODD का पूर्ण नाम क्या है?
(अ) Opposite Defiant Disorder
(ब) Oppostional Defiant Disorder
(स) Odd Definant Disorder
(द) Opposite Deficiency Disorder
उत्तर:
(ब) Oppostional Defiant Disorder

प्रश्न 20.
निकोटिन किसमें पाया जाता है?
(अ) सिगरेट
(ब) तम्बाकू
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असामान्य व्यवहार के लक्षण बताइए।
उत्तर;
असामान्य व्यवहार के लक्षण:

  1. यह एक प्रकार से समाज विरोधी व्यवहार होता है।
  2. इसमें अपर्याप्त समायोजन पाया जाता है।
  3. इसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व विघटित होता है।
  4. इसमें व्यक्ति में असुरक्षा की भावना पायी जाती है।
  5. इसमें व्यक्ति में सामाजिक अनुकूलन की क्षमता का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 2.
कोमर के द्वारा दिए गए Four – D को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोमर ने असामान्य व्यवहार को ‘चार डी’ के माध्यम से वर्णित किया है, जो इस प्रकार से है –

1. विदलन:
इसमें उन असामान्य व्यवहारों को रखा जाता है, जो सामाजिक मानकों से भिन्न एवं असाधारण होते हैं।

2. तकलीफ:
इसमें उन असामान्य व्यवहारों को रखा जाता है, जो स्वयं व्यक्ति के लिए तकलीफ देह या दुःखदायी होते हैं।

3. दुष्क्रिया:
इसमें असामान्य व्यवहार व्यक्ति को इतना अशांत कर देता है कि वह साधारण सामाजिक परिस्थिति या कार्य में स्वयं को भी ढंग से समायोजित नहीं कर पाता है।

4. खतरा:
इसमें व्यक्ति का असामान्य व्यवहार स्वयं के लिए खतरनाक होता ही है परन्तु अन्य व्यक्तियों के लिए खतरनाक साबित होता है।

प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक विकार से व्यक्ति को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक विकार से व्यक्ति को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है –

  1. मनोवैज्ञानिक विकार व्यक्ति के व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं में दुष्क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। इसके होने से व्यक्ति का व्यक्तित्व विघटित होने लगता है।
  2. इस विकार से व्यक्ति का सामाजिक समायोजन दोषपूर्ण हो जाता है।
  3. इस विकार से व्यक्ति का व्यवहार कुसमायोजित या अपअनुकूलित हो जाता है।
  4. इससे व्यक्ति पर तथा अन्य लोगों का जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगता है।

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक विकारों को समझने के लिए उनका वर्गीकरण करना आवश्यक है तभी इसे आसानी से या सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक विकारों के वर्गीकरण का श्रेय मुख्य रूप से दो अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को जाता है। ‘अमरीकी मनोरोग संघ’ (APA) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO)। अमरीकी मनोरोग संघ ने मानसिक विकारों के वर्गीकरण के लिए DSM – Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders Yonifera fone 291T WHO ने ICD – International Classification of Diseases को प्रकाशित किया।

अत: मनोवैज्ञानिक विकारों के वर्गीकरण से तात्पर्य असामान्य व्यवहार को ऐसी श्रेणियों में विभक्त करने से है जिनसे उसके स्वरूप को स्पष्ट रूप से समझा जा सके।

प्रश्न 5.
रोगोन्मुखता दबाव मॉडल को समझाइए।
उत्तर:
रोगोन्मुखता दबाव मॉडल को अंग्रेजी में Diathesis Stress Model’ कहा जाता है। ‘डायथिसिस’ से तात्पर्य किसी विकृति या असामान्य व्यवहार व्यक्ति में उत्पन्न होने के पूर्ववृत्ति (Predisposition) से होता है।

इस मॉडल के अनुसार असामान्यता या मानसिक विकृति का सम्बन्ध असामान्यता की पूर्ववृत्ति तथा तनाव दोनों के अंत:क्रिया का परिणाम होता है। इस मॉडल के अनुसार दोनों में से कोई अकेले मानसिक विकृति उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.
असामान्य व्यवहार के कारक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
असामान्य व्यवहार के कारकों से तात्पर्य उन कारणों से होता है जो कि असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में सहायक होते हैं। असामान्य व्यवहार की प्रवृत्ति जटिल होने के कारण केवल एक विशिष्ट परिस्थिति ही नहीं होती है। वे परिस्थितियाँ जो व्यक्तित्व विकास में असहायक या अवरोध उत्पन्न करती है तथा साथ ही व्यक्ति के सम्मुख ऐसी दबावपूर्ण स्थिति पैदा कर देती है कि व्यक्ति उनका सामना नहीं कर पाता है, वे सब परिस्थितियाँ असामान्य व्यवहार का कारण बनती हैं। कुछ मानसिक रोग वंशानुक्रम में चलते हैं और कुछ त्रुटिपूर्ण पर्यावरण में व्यक्तित्व के दोषपूर्ण विकास के कारण उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 7.
आरम्भिक वंचन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आरम्भिक वंचन या आघात से अंग्रेजी में ‘Early deprivation or trauma’ कहा जाता है। जब बच्चों के व्यक्तित्व विकास के आरम्भिक निर्माणावस्था में किसी तरह की अपर्याप्तता या वंचन किसी कारण से हो जाता है या कुछ आघातक अनुभूतियाँ होती हैं, तो इससे उनका व्यक्तित्व विकास सही ढंग से विकसित नहीं हो पाता है।

इसके अन्तर्गत कई तरह के असामान्य व्यवहार उत्पन्न हो जाते हैं। मुख्य रूप से तीन बातें आती हैं –

1. संस्थानीकरण:
विभिन्न संस्थाओं में बदलाव; जैसे-परिवार, विवाह आदि में परिवर्तन से बच्चों की मानसिक स्थिति सुदृढ़ नहीं रह पाती है।

2. घर में वंचन:
घर में माता-पिता के द्वारा उपेक्षा करना या उनके हितों को नजरअंदाज करते हुए स्वयं के कार्यों में लीन रहने से घर में वंचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

3. बाल्यावस्था में सदमा:
बचपन में बच्चों के मन में ऐसी बातें या क्रियाएँ घर कर जाती हैं कि उससे उस बच्चे के मस्तिष्क पर गहरा सदमा पहुँचता है।

प्रश्न 8.
तीव्र मनोवैज्ञानिक प्रतिबल किसे कहते हैं?
उत्तर:
तीव्र मनोवैज्ञानिक प्रतिबल को अंग्रेजी में Severe Psychological Stress कहा जाता है। विफलता, निराशा, तनाव, दबाव, चिन्ता तथा अन्तर्द्वन्द्व आदि आधुनिक जीवन की देन है।

ये विकृतिजन्य प्रतिबल तब बनते हैं जब इनकी तीव्रता अधिक हो जाए तथा इसके अलावा इन पर से व्यक्ति का नियंत्रण ढीला या शिथिल पड़ जाए एवं इसके कारण व्यक्ति के दैनिक क्रिया-कलापों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगे। तीव्र मनोवैज्ञानिक प्रतिबल किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में बाधक एवं असामान्य व्यवहार के कारक हो सकते हैं। इसके साथ ही इससे व्यक्ति में अनेक दोष; जैसेसंवेगात्मक अपरिपक्वता, आत्मसम्मान की कमी तथा तनाव व अतिसंवेदनशीलता जैसी समस्याएँ या दोष उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
सामान्यीकृत चिन्ता विकृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामान्यीकृत चिन्ता विकृति को Generalized Anxiety Disorder भी कहा जाता है। यह चिन्ता विकृतियों का एक प्रकार है, जिसमें चिन्ता इतनी अधिक चिरकालिक, दृढ़ तथा व्यापक होती है कि यह स्वतन्त्र प्रवाही (Free floating) होने लगती है। इस विकार के प्रमुख लक्षण संवेगात्मक बेचैनी, तनाव, अत्यधिक सतर्कता व चिन्ता आदि हैं।

यह लम्बे समय तक चलने वाला अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय होता है जो किसी भी विशिष्ट वस्तु से जुड़ा या सम्बन्धित नहीं होता है। इसमें व्यक्ति को सुकून या सन्तुष्टि नहीं मिलती है। वह अपनी हर क्रियाओं के परिणामों के लिए चिन्ताग्रस्त रहता है।

प्रश्न 10.
दुर्भीति के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दुर्भीति के प्रकारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है –

1. विवृत्तिभीति दुर्भीति:
इसमें व्यक्ति अपरिचित स्थितियों में प्रवेश करने के भय से ग्रसित हो जाते हैं। इसलिए जीवन की सामान्य गतिविधियों का निर्वहन करने की उनकी योग्यता भी अत्यन्त सीमित हो जाती है।

2. सामाजिक दुर्भीति:
इसमें व्यक्ति दूसरों के साथ अन्त: क्रिया तथा वैसी सामाजिक परिस्थिति में जाने से डरता है जहाँ वह समझता है कि उसका मूल्यांकन किया जा सकता है।

3. विशिष्ट दुर्भीति:
इसमें व्यक्ति विशिष्ट वस्तु या परिस्थिति से काफी डरता है। जैसे कुछ व्यक्ति विशेष तरह के पशु, पक्षी, रंग या बीमारी आदि से काफी डरते हैं।

प्रश्न 11.
मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार क्या है?
उत्तर:
इसे Obsessive Compulsive Disorders भी अंग्रेजी में कहा जाता है। मनोग्रस्ति व्यवहार में व्यक्ति बार-बार किसी अतार्किक एवं असंगत विचारों को न चाहते हुए भी मन ही मन दोहराते ही रहता है। पीड़ित व्यक्ति ऐसे विचारों से मुक्ति भी पाना चाहता है परन्तु वह लाचार रहता है जिससे उसकी मानसिक शान्ति इस हद तक क्षुब्ध हो जाती है कि उसके समायोजन में बाधा पहुँचती है।

बाध्यता (Compulsion) एक तरह की क्रियात्मक प्रतिक्रिया होती है। जहाँ रोगी अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी क्रिया को बार-बार करने के लिए बाध्यता महसूस करता है।

उदाहरण के लिए-साफ कपड़ों को बार-बार धोने की क्रिया, हाथों को अनेक बार साफ करना तथा दरवाजे को बंद करने के बाद भी खींचकर बार-बार देखना आदि समस्त क्रियाएँ अतार्किक व असंगत होती हैं।

प्रश्न 12.
विच्छेदी पहचान विकार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इसे अंग्रेजी में Dissociative identity disorder भी कहा जाता है। इस विकृति का सबसे बड़ा लक्षण यह है कि एक ही व्यक्ति में दो या दो से अधिक व्यक्तित्व बारी-बारी से पाये जाते हैं।

प्रत्येक व्यक्तित्व अपने आप में संज्ञानात्मक तथा भावात्मक रूप में स्वतन्त्र तथा सुसंगठित होता है। एक व्यक्तित्व अवस्था दूसरे व्यक्तित्व अवस्था से नाटकीय ढंग से भिन्न होता है। यदि एक प्रसन्न तथा सक्रिय है, तो दूसरा अति दुःखी तथा निष्क्रिय हो सकता है यह आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं भी रख सकते हैं। इसमें जब दो से अधिक व्यक्तित्व उत्पन्न हो जाते हैं तो सम्बन्ध बहुत ही जटिल हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आत्महत्या सामान्यत:
भाव दशा विकारों से सम्बन्धित होता है। यह एक आत्म या स्वयं प्रेरित मृत्यु होती है, जिसमें व्यक्ति अपनी जिन्दगी को समाप्त करने का एक ज्ञानकृत, प्रत्यक्ष एवं चेतन प्रयास करता है।

आत्महत्या को प्रेरित करने वाले कारक अनेक हैं-जिसमें तनावयुक्त घटनाएँ एवं परिस्थिति, मनोदशा एवं चिन्तन में परिवर्तन, ऐल्कोहॉल उपयोग, सामाजिक दबाव, मानसिक विकृति या आधुनिक व नवीन इच्छाएँ आदि शामिल हैं। विभिन्न समाजों व व्यक्तियों में आयु व लिंग के आधार पर आत्महत्या दरें एवं कोशिशें अलग-अलग पायी जाती हैं।

वर्तमान समाज में आत्महत्या की समस्या एक जटिल व गम्भीर समस्या है, जिससे निजात पाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

प्रश्न 14.
विभिन्न प्रकार की भ्रमासक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की भ्रमासक्तियाँ:

1. अत्यहमन्यता भ्रमासक्ति:
इसमें व्यक्ति अपने आपको बहुत सारी विशेष शक्तियों से सम्पन्न मानता है।

2. नियंत्रण भ्रमासक्ति:
इसमें व्यक्ति यह मानते हैं कि उनके विचार, भावनाएँ आदि दूसरों के द्वारा नियंत्रित की जा रही हैं।

3. घ्राण विभ्रांति:
इसमें धुएं व जहर की गंध प्रमुख रूप से शामिल हैं।

4. दृष्टि विभ्रांति:
इसमें लोगों या वस्तुओं की सुस्पष्ट दृष्टि या रंग का अस्पष्ट प्रत्यक्षण होता है।

5. दैहिक विभ्रांति:
इसमें शरीर के अन्दर कुछ घटित होना, जैसे- पेट में साँप का रेंगना आदि महसूस होता है व्यक्ति को।

6. स्पर्शी विभ्रांति:
इसमें व्यक्ति अनेक प्रकार की झनझनाहट व जलन महसूस करते हैं।

7. रससंवेदी विभ्रांति:
इसमें व्यक्तियों को खाने तथा पीने की वस्तुओं का विचित्र स्वाद महसूस होता है।

प्रश्न 15.
वियोगज दुश्चिता विकार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसे ‘Separation Anxiety Disorder’ भी कहा जाता है। इस विकार में बच्चे अपने माता-पिता से अलग होने पर अतिशय रूप का अनुभव करते हैं। वे अकेले रहने में, अकेले आने-जाने में, नयी स्थितियों में प्रवेश करने से घबराते हैं तथा हमेशा माता-पिता के साथ रहने का प्रयास करते हैं।

ऐसे बच्चे वियोगज स्थिति से बचने के लिए चीखना-चिल्लाना व आत्महत्या जैसे आदि भय को प्रदर्शित भी कर सकते हैं। अत: यह विकार बच्चों को मानसिक रूप से क्षति पहुँचाता है तथा व्यक्तित्व में बाधा उत्पन्न करता है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 4 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असामान्य व्यवहार की विशेषताओं का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असामान्य व्यवहार की विशेषताएँ:

1. समाज विरोधी व्यवहार:
असामान्य व्यवहार समाज विरोधी होता है। असामान्य व्यवहार सामान्यतया सामाजिक रूप से स्वीकृत नियमों, मानकों, मूल्यों एवं प्रत्याशाओं के प्रतिकूल होता है।

2. परिस्थिति के प्रतिकूल व्यवहार:
असामान्य व्यवहार का वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता है अतएव यह व्यवहार परिस्थिति के प्रतिकूल होता है।

3. मानसिक असन्तुलन:
असामान्य व्यवहार करने वाले व्यक्ति मानसिक रूप से असन्तुलित होते हैं। असामान्य लोगों के व्यक्तित्व के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक पक्षों के बीच कोई समन्वय या सन्तुलन नहीं रहता है। इसी मानसिक असन्तुलन के कारण व्यक्ति के विचारों में अस्थिरता व असंगतता दिखाई पड़ती है।

4. सूझ की कमी:
असामान्य व्यक्ति के व्यवहार में सूझ की काफी कमी होती है। उसे कहाँ, कैसे व क्या व्यवहार करना चाहिए, इसकी समझ नहीं रहती है। इस प्रकार से वह उचित व अनुचित की परख करने में असमर्थ पाया जाता है।

5. ऊटपटांग व्यवहार:
असामान्य व्यक्ति के व्यवहार में नियमितता या प्रासंगिकता का अभाव होता है। इस प्रकार के व्यक्ति घण्टों धूप में घूमते रहते हैं तथा एक ही पैर पर खड़े रहते हैं। इस प्रकार उसके व्यवहार में विचित्रता की विशेषता परिलक्षित होती रहती है।

6. अपर्याप्त समायोजन:
असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार में समायोजन की अपर्याप्तता पायी जाती है। इस प्रकार के व्यक्ति का व्यवहार ‘अनभिज्ञयोजित’ स्वरूप का होता है। सांवेगिक अस्थिरता (Emotional instability) के कारण इनकी मानसिक स्थिति निरन्तर बदलती रहती है। जिससे इसकी सामाजिक एवं घरेलू समायोजन क्षमता मुश्किल दर मुश्किल होती जाती है।

अतः इन विशेषताओं के आधार पर उनकी (असामान्य व्यक्ति) पहचान की जा सकती है।

प्रश्न 2.
असामान्यता के प्रति पायी जाने वाली भ्रामक धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामान्यजन असामान्यता के प्रति अनेक मिथ्या धारणाएँ पाले हुए होते हैं। ये मिथ्या या भ्रामक धारणाएँ निम्नलिखित हैं –

1. असामान्यता एक संक्रामक तथा आनुवंशिक रोग है:
यह एक प्रमुख भ्रामक धारणा है कि सभी सामाजिक रोगों का सम्बन्ध आनुवांशिकता से होता है तथा ये संक्रामक होता है, जबकि वास्तव में सच्चाई यह है कि मनोविदलता और उन्माद अवसाद मनस्ताप (Manic Depressive Psychosis) के अलावा अन्य किसी प्रकार की असामान्यता की उत्पत्ति में आनुवंशिकता का कोई हाथ नहीं होता है।

2. असामान्यता असाध्य है:
असामान्य विकृतियों के बारे में एक मिथ्या धारणा यह है कि ये असाध्य है। इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है क्योंकि आधुनिक मानसिक चिकित्सालयों में आजकल कुशलतापूर्वक उपचार की व्यवस्था की गयी है।

3. असामान्य व्यवहार सदैव विचित्र एवं बेतुका होता है:
जनसामान्य की मिथ्या धारणा है कि सभी असामान्य रोगी हमेशा विचित्र, बेतुका, अतार्किक एवं असंगत व्यवहार ही करते हैं। वस्तुस्थिति यह है कि मानसिक विकृतियाँ कई प्रकार की होती हैं। कुछ विशेष प्रकार की असामान्यता से ग्रस्त व्यक्ति निश्चय ही विचित्र एवं विक्षिप्ततापूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं परन्तु अधिकांश प्रकार की असामान्यता में रोगी प्रायः सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करते हैं।

4. मनोरोग अत्यधिक कामुकता के परिणाम होते हैं:
असामान्यता के सम्बन्ध में एक भ्रांति यह भी है। मनोविकार काम-प्रवृत्ति के अधिक उत्तेजित होने या कामुक विचारों के कारण इतना अधिक उत्पन्न नहीं होते हैं जितने कि अदमनीय, अपराधनीय काम-प्रवृत्ति एवं घृणित आत्मपश्चाताप व आत्मग्लानि के द्वारा उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 3.
दुर्भीति के उपचार की विधियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
दुर्भीति के उपचार के लिए निम्नांकित चार तरह की प्रविधियाँ अधिक लोकप्रिय हैं –

1. जैविक या मेडिकल प्रविधि:
जैविक चिकित्सा के अन्तर्गत यह देखा गया है कि कुछ विशेष चिन्ता विरोधी औषधियों जैसे बारबिट्रेट (barbitrate) तथा प्रोपैनडियोल्स (Propanediols) को लेने से दुर्भीति के भय व चिन्ता के लक्षणों में काफी कमी आती है।

2. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा:
इसके अन्तर्गत रोगी के फोबिया के दमित दुश्चिता के मूल स्रोत की पहचान करने का प्रयास करता है, इसके लिए वह स्वतंत्र साहचर्य विधि तथा स्वप्न विश्लेषण आदि विधियों का उपयोग करता है। इसमें चिकित्सक रोगी में उसकी दुर्भीति के दमित मूल स्रोत को समझने की आवश्यक अन्तर्दृष्टि विकसित करने का प्रयास करता है। इस प्रकार से रोगी के फोबिया का उपचार किया जाता है।

3. व्यवहारवादी चिकित्सा:
इसमें दुर्भीति के उपचार में निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है –

A. व्यनुकूलन:
इसमें रोगी को भयप्रद स्थिति से किसी सुखद स्थिति का सम्बन्ध स्थापित कर दिया जाता है। इससे रोगी के फोबिया की गम्भीरता में आवश्यक सुधार दिखायी देने लगता है।

B. असंवेदीकरण:
यह एक प्रभावी विधि है। इस विधि में भयोत्पादक परिस्थिति के प्रति रोगी को धीरे-धीरे भयमुक्त रहने अथवा भय की आदत को कम करने का निर्माण क्रमिक ढंग से कराया जाता है।

C. फ्लडिंग:
इस विधि में रोगी को दुर्भीति उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में तब तक रखा जाता है, जब तक उसका असंगत भय स्वतः कम या समाप्त नहीं हो जाता है।

D. मॉडलिंग:
इस विधि में रोगी के समक्ष किसी मॉडल या व्यक्ति द्वारा उस व्यवहार का प्रदर्शन किया जाता है जो उसके फोबिया से सम्बन्धित होता है। इससे उसमें भय की व्यर्थता का आभास होने लगता है, फलतः उसमें उस दुर्भीति के लक्षण कम होने लगते हैं।

अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि दुर्भीति के अनेक नैदानिक लक्षण हैं, जो विभिन्न कारकों से उत्पन्न तथा सम्प्रेषित होते हैं।

प्रश्न 4.
मनोव्याधिकी के मानवतावादी-अस्तित्ववादी विचारधारा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके गुण व दोषों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मानवतावादी-अस्तित्वात्मक विचारधारा या प्रपंचवादी या परिघटनात्मक मॉडल का विकास, मनोगत्यात्मक एवं व्यवहारवादी मॉडल के विरोध में किया गया है। यह एक ऐसा मॉडल है जो इस बात पर जोर डालता है कि मानव व्यवहार मुख्यत: इस तथ्य द्वारा निर्धारित होता है कि व्यक्ति वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों या घटनाक्रमों का प्रत्यक्षीकरण किस ढंग से करता है। इस मॉडल की मूलभूत धारणा यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का वातावरण के प्रति अपना एक विलक्षण दृष्टिकोण होता है। जिसके द्वारा वह उसका प्रत्यक्षण अपने-अपने ढंग से करता है और प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार में प्रत्यक्षण के उस विशेष ढंग की स्पष्ट झलक मिलती है।

परिघटनात्मक या मानवतावादी अस्तित्वात्मक मॉडल के गुण तथा दोष-इस मॉडल के प्रमुख गुण तथा लाभ इस प्रकार से हैं

गुण:

  1. इस मॉडल का पहला लाभ यह है कि यह मानव व्यवहार को समझने के लिए एक आशावादी दृष्टिकोण अपनाता है क्योंकि इसमें मानव जीवन के अन्तःशक्ति तथा उसके उपयुक्त वर्द्धन की क्षमता पर अधिक बल डाला जाता है।
  2. इस मॉडल में व्यक्ति के अध्ययन में स्वयं व्यक्ति के दृष्टिकोण को महत्व दिया जाता है।
  3. इसमें प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अनुभूतियों को महत्व दिया जाता है।

दोष:
इस मॉडल के प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं –

  1. यह मॉडल वैज्ञानिक नहीं है।
  2. इस मॉडल के अस्पष्ट होने के साथ यह आत्मनिष्ठ भी है। अत: इन्हें न ठीक से समझा जा सकता है और न ही परिकल्पना बनाकर इनका सत्यापन किया जा सकता है।
  3. इस मॉडल में मूल प्रवृत्तियों, प्रासंगिकता तथा जैविक कारकों की पूर्णतया उपेक्षा की गयी है जो तर्कसंगत नहीं है।

प्रश्न 5.
व्यामोही विकृति के लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
व्यामोही विकृति से पीड़ित रोगियों में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं –

1. व्यामोह:
व्यामोही विकृति से पीड़ित रोगियों का प्रधान लक्षण उनमें विभिन्न तरह के स्थायी एवं सुव्यवस्थित व्यामोहों का पाया जाना है। इनमें दण्ड, व्यामोह तथा महानता व्यामोह अधिकतर रोगियों में उपस्थित होता है। दण्ड व्यामोह ही इस रोग का केन्द्रीय लक्षण है। इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों में अनेक प्रकार के व्यामोह; जैसे-ईर्ष्या का व्यामोह, रोगभ्रम व्यामोह तथा मुकदमेबाजी का व्यामोह आदि पाये जाते हैं।

2. विभ्रम की कमी:
इस रोग में विभ्रम नहीं पाया जाता है। अगर कभी किसी रोग में विभ्रम का लक्षण दिखायी भी देता है तो उसका स्वरूप अधिकतर श्रव्य (Auditory) होता है। इस प्रकार से व्यामोही विकृति में विभ्रम की कमी पायी जाती है।

3. स्थायी भ्रान्ति की कमी:
मनस्तापी विकार के अन्य प्रकारों के विपरीत व्यामोही विकृति के रोगियों को स्थान, समय व स्वयं का पूर्णतः ज्ञान होता है। उसे दिन-रात का पूरा ज्ञान होता है। रोगी अच्छी तरह समझता है कि वह कौन है तथा कहाँ पर है।

4. क्रमबद्ध एवं तार्किक चिन्तन:
रोगियों का एक लक्षण यह भी है कि रोगी अपने व्यामोह के पक्ष में निपुणतापूर्वक क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित तार्किक आधार भी ढूँढ़ लेता है तथा इसी पृष्ठभूमि में अपने व्यामोह का सार्थक एवं तर्कसंगत रूप में वर्णन करता है।

5. व्यामोही रोगियों का व्यवहार:
व्यामोही रोगियों के व्यवहार में कोई महत्वपूर्ण विकृति नहीं पायी जाती है। हाँ, इतना अवश्य है कि रोगी जिस प्रकार के व्यामोह से ग्रस्त रहता है, वह प्रायः उसी तरह का आचरण भी करता है।

अतः उपरोक्त तथ्यों से व्यामोही विकृति के लक्षण स्पष्ट होते हैं।

प्रश्न 6.
वर्तमान में युवाओं में बढ़ते मादक पदार्थों के प्रयोग के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनेक कारण युवा वर्ग में मादक पदार्थों के प्रति बढ़ते हुए उपयोग के लिए अधिक उत्तरदायी हैं; जो निम्नलिखित हैं –

1. वर्तमान युवा पीढ़ी अनेक प्रकार की निराशाओं व कुंठाओं से ग्रस्त है। इन कठिनाइयों से युवा वर्ग का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। व्यक्तित्व जब विकारयुक्त हो जाता है तो उसकी आकांक्षाएँ और अधिक बढ़ जाती हैं। इन परिस्थितियों से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए बहुत से युवा मादक पदार्थों को एक सहारे के रूप में ग्रहण कर लेते हैं।

2. व्यक्ति जब अपने युवा साथी को मादक पदार्थ का सेवन करते हुए देखता है तो उससे अपनी अनुरूपता सिद्ध करने के लिए वह भी मादक पदार्थों को एक रोचक कार्य, नये अनुभव तथा मिलनसारिता के साधन के रूप में ग्रहण कर लेता है। आज स्कूलों व कॉलेजों में छात्रों में इस प्रवृत्ति को बढ़ाने में मादक द्रव्य पदार्थों का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

3. आज पश्चिमीकरण व नगरीय सभ्यता के कारण नगरों में लोगों व युवाओं में एक फैशन के तौर पर इसका प्रयोग किया जाता है। शहरों की चकाचौंध व व्यस्त जीवन प्रणाली ने इसके प्रयोग में काफी अहम् भूमिका निभायी है।

4. वर्तमान युग में तेजी से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है, जहाँ नशीले पदार्थों के उपयोग को एक बुराई माना जाता था, अब उसे संयम व सदाचार को रूढ़िवादिता समझा जाता है। अश्लील साहित्य, डेटिंग केन्द्रों तथा रोमांटिक मनोरंजन के प्रभावों में वृद्धि से मादक द्रव्य पदार्थों को प्रोत्साहन मिलता है।

5. मानसिक रूप से विकारयुक्त व्यक्ति आसानी से मादक पदार्थों की तरफ आकर्षित हो जाते हैं। उन्हें सही व गलत का अन्तर पता नहीं होता है तथा इन पदार्थों का सेवन करने से वह अपने मित्रों व लोगों के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय बनाना चाहते हैं। इस प्रकार से असामान्य व्यक्तित्व के युवा अपनी ही कमजोरियों को छिपाने के लिए मादक पदार्थों का सेवन आरम्भ कर देते हैं।

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