RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 4 स्वतंत्रता एवं समानता

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 स्वतंत्रता एवं समानता

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता का अर्थ है
(अ) प्रतिबन्धों का अभाव
(ब) कोई भी कार्य करने की छूट
(स) कोई भी कार्य करने की शक्ति
(द) नागरिक के सर्वांगीण विकास के लिए उपलब्ध सुविधाएँ

प्रश्न 2.
इनमें से कौन – सा / से वक्तव्य उचित हैं, सही युग्म छाँटिए
(i) राजनीतिक स्वतन्त्रता के बिना समानता का कोई औचित्य नहीं।
(ii) समानता, विधि के शासन में सम्भव है।
(iii) समाज में सम्पत्ति का सभी नागरिकों में समान वितरण हो।
(iv) राष्ट्रीय सम्प्रभुता के बिना स्वतन्त्रता कपोल कल्पना है।
(अ) i, ii, iii
(ब) i, ii , iv
(स) ii, iii , iv
(द) i, ii, iii , iv

प्रश्न 3.
सामाजिक समानता को स्पष्ट करने वाला कौन – सा कथन सही है
(i) व्यक्ति को विकास के समान अवसर
(ii) बिना भेदभाव के कानूनी संरक्षण
(iii) समाज के सभी नागरिकों की समान आय
(iv) जातीय आधार पर भेदभावों की समाप्ति
(अ) ii, iii, iv
(ब) i, ii, iii
(स) i, ii, iv
(द) i, iii, iv

प्रश्न 4.
कौन – सा विचार स्वतन्त्रता का मूल मन्त्र माना जाता है ?
(अ) विधि का शासन
(ब) अराजकता का साम्राज्य
(स) कार्यपालिका की स्वेच्छारिता
(द) असाक्षरता

प्रश्न 5.
किस देश के नागरिक को समानता, मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त है
(अ) भारत
(ब) अफगानिस्तान
(स) पाकिस्तान
(द) श्रीलंका

उत्तर:
1. (द), 2. (ब), 3. (स), 4. (अ), 5. (अ)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के दो विचार कौन-से हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में दो विचार इस प्रकार हैं

  1. बन्धनों का अभाव तथा
  2.  युक्तियुक्त बन्धनों का होना।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में तिलक का नारा लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में तिलक का नारा था-“स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।”

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र की आत्मा किस स्वतन्त्रता को माना गया है?
उत्तर:
राजनीतिक स्वतन्त्रता को लोकतन्त्र की आत्मा माना गया है।

प्रश्न 4.
अवसर की समानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अवसर की समानता से अभिप्राय है – जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण, लिंग तथा नस्ल आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को राज्य द्वारा समान सुविधाएँ उपलब्ध कराना।

प्रश्न 5.
पूँजीवादी देशों में किस समानता का अभाव पाया जाता है?
उत्तर:
पूँजीवादी देशों में आर्थिक समानता का अभाव पाया जाता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4  लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के कोई पाँच प्रकार बताइये।
उत्तर:
स्वतंत्रता के प्रकार: स्वतन्त्रता के पाँच प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता – यह स्वतन्त्रता प्रकृति प्रदत्त है। व्यक्ति स्वयं भी इसका हस्तान्तरण नहीं कर सकता।
  2. नागरिक स्वतन्त्रता – यह स्वतन्त्रता भारत के समस्त नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त है। ये स्वतन्त्रता मूल अधिकार के रूप में संविधान द्वारा प्रदत्त है।
  3. राजनीतिक स्वतन्त्रता – राज्य के कार्यों व राजनीतिक व्यवस्था में हिस्सेदारी को राजनीतिक स्वतन्त्रता कहते हैं। यह वह स्वतन्त्रता है जिसमें प्रत्येक नागरिक को मतदान करने, चुनाव में हिस्सा लेने व सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति पाने का अधिकार प्राप्त है।
  4. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता – सम्प्रभु राज्य राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का परिचायक है अर्थात् इस स्वतन्त्रता में राज्य अन्य देशों के आदेश पालन से मुक्त हो जाता है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के बिना व्यक्ति के लिए अन्य स्वतन्त्रताएँ गौण हैं।
  5. संवैधानिक स्वतन्त्रता – यह नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतन्त्रता है। संविधान ऐसी स्वतन्त्रताओं की रक्षा की गारण्टी देता है। शासन भी इसमें कटौती नहीं कर सकता

प्रश्न 2.
राजनीतिक स्वतन्त्रता क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता: राज्य के कार्यों व राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की भागीदारी को ही राजनीतिक स्वतन्त्रता कहते हैं। गिलक्राइस्ट नामक राजनीतिक चिंतक ने इसे लोकतन्त्र का दूसरा नाम कहा है। यह वह स्वतंत्रता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को मतदान करने, चुनाव में भाग लेने एवं सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति पाने का अधिकार है। जब अपनी आकांक्षा की अभिव्यक्ति तथा राजशक्ति के प्रयोग के अधिकार सर्वसाधारण जनता के हाथों में आ जाते हैं तो राजनीतिक स्वतंत्रता स्थापित हो जाती है।

सरकार का जनता के अधीन रहना और जनमत के अनुसार कार्य करना राजनीतिक स्वतंत्रता का द्योतक है। वर्तमान काल के राज्यों में राजनीतिक स्वतंत्रता नागरिकों को प्राप्त मताधिकार से प्रकट होती है। जनता उन प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है जो न केवल व्यवस्थापन का कार्य करते हैं वरन् शासन विभाग पर नियंत्रण भी रखते हैं।

प्रश्न 3.
समानता की अवधारणा पर लास्की के विचार लिखें।
उत्तर:
समानता से अभिप्राय उस परिस्थिति से है जिसके कारण सभी व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त हो सके लास्की ने लिखा है -“समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाये या प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए।” यदि एक मजदूर का वेतन एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक या गणितज्ञ के बराबर कर दिया जाए जो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग नहीं रहे और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।

प्रश्न 4.
विधि का शासन अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘विधि का शासन की अवधारणा’ – विधि के शासन से तात्पर्य है कि कानून की दृष्टि से सम्पत्ति, जाति-पाँति, धर्म आदि के आधार पर किसी के साथ भी कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और समस्त व्यक्तियों को अपराध करने पर समुचित दण्ड का प्रावधान होगा। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का आधार विधि का शासन होता है। इस प्रकार के शासन में शासक व शासित दोनों ही कानून के अधीन होते हैं।

इसका आशय यह है कि विधि ही सर्वोपरि और सर्वव्यापी है। शासन विधि के अधीन है तथा विधि द्वारा मर्यादित है। व्यक्ति के अधिकार शासकीय स्वेच्छाचारिता पर निर्भर नहीं होते वरन् विधि के अधीन होते हैं। विधि के शासन में सभी नागरिक कानून के सम्मुख समान होते हैं एवं सभी को विधि से समान आरक्षण प्राप्त होता है।.

किसी भी व्यक्ति को तभी दण्डित किया जा सकता है जब उसने किसी विद्यमान विधि का उल्लंघन किया हो और वह उल्लंघन देश के सामान्य न्यायालयों में सामान्य कानून प्रक्रिया द्वारा प्रमाणित हो चुका हो । प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक डायसी ने अपनी पुस्तक ‘लॉ ऑफ दी कांस्टीट्यूशन’ में विधि के शासन के तीन अर्थ बताए हैं-

  1. विधि के शासन का अभिप्राय देश में कानूनी समानता का होना है।
  2. विधि के शासन के अनुसार किसी व्यक्ति को कानून के उल्लंघन के लिए दण्डित किया जा सकता है अन्य किसी बात के लिए नहीं
  3. विधि के शासन की तीसरी शर्त यह है कि संविधान की व्याख्या अथवा अन्य किसी कानूनी विषय पर न्यायाधीशों का निर्णय अन्तिम व सर्वमान्य होता है।

प्रश्न 5.
अवसर की समानता का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अवसर की समानता: अवसर की समानता से अभिप्राय है कि राज्य अपने समस्त नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समुचित विकास के लिए समान अवसर प्रदान करता है। समान अवसरों को प्रदान करने में राज्य जाति, धर्म, वर्ग, लिंग, नस्ल आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता है। सभी नागरिकों को शिक्षा, नौकरी एवं अन्य क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त होने चाहिए। भारतीय संविधान द्वारा सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गयी है तथा शिक्षा को मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों में भी सम्मिलित किया गया है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4  निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“मुझे स्वतन्त्रता दीजिए या मृत्यु” – पैट्रिक हेनरी के इस कथन के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता की अवधारणा पर अपने विचार सविस्तार लिखिए।
उत्तर:
पैटिक हेनरी के कथन के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता की अवधारणा-“मुझे स्वतन्त्रता दीजिए या मृत्यु” पैट्रिक हेनरी के ये शब्द उनके हृदय के स्वाभिमान और स्वतन्त्रता के प्रति उत्कट भावना को व्यक्त करते हैं। इनके लिए स्वतन्त्रता से अभिप्राय राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से है जिसके लिए वे मृत्यु का वरण करने को भी तैयार हैं। उनके लिए स्वतन्त्रता का महत्व जीवन के मूल्य से किसी प्रकार कम नहीं है।

परतन्त्रता में जीने के अपेक्षा उनकी इच्छा है कि वह मृत्यु का वरण करना श्रेयस्कर समझेंगे। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में हमारे देश के असंख्य लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्राणोत्सर्ग किया था । यह उनका देश के लिए सबसे पवित्र बलिदान था । हमारे देश के असंख्य देशभक्तों ने देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत होकर स्वतन्त्रता के इस आन्दोलन में अपने प्राणों की बलि देने में तनिक भी संकोच नहीं किया था । उनको उद्घोष था-

“जिये तो सदा इसी के लिए , यही अभिमान, रहे यह हर्ष
न्यौछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष”

बाल गंगाधर तिलक जिन्हें लोकमान्य तिलक के नाम से जाना गया। उनका नारा था-”स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।” व्यापक रूप से स्वतन्त्रता एक शब्द नहीं एक आन्दोलन है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन हो या अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम अथवा फ्रान्स की राज्य क्रान्ति – सभी का मूल उद्देश्य स्वतन्त्रता प्राप्त करना ही था।

संसद का इतिहास स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष का इतिहास रहा है क्योंकि स्वतन्त्रता एक सभ्य राजव्यवस्था की प्रथम कसौटी व लोकतन्त्र का मूल है। इतिहासकार रिची ने जीवन के अधिकार के बाद स्वतन्त्रता के अधिकार को ही महत्वपूर्ण माना है। कुछ व्यक्तियों के लिए यह अधिकार प्रथम एवं सबसे अधिक महत्वपूर्ण अधिकार है।

वस्तुतः स्वतन्त्रता जीवन के किसी लक्ष्य की प्राप्ति का साधन नहीं है बल्कि यह स्वयं सर्वोच्च साध्य है। इस सर्वोच्च साध्य की प्राप्ति हेतु एक देश भक्त अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देने को सदैव तत्पर रहता है। स्वतंत्रता मानव जीवन का एक विशेष लक्षण है। स्वतंत्रता हर व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति है। स्वतंत्रता मानव की प्रेरणा स्रोत है। स्वतंत्रता को प्राप्ति के लिए मानव सदैव संघर्षशील रहा है।

एक अधिकार के रूप में स्वतंत्रता भले ही आधुनिक युग की देन हो किन्तु किसी न किसी रूप में यह सदैव विद्यमान रही है। सुकरात और प्लेटो बौद्धिक  वअन्त:करण की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। पुनर्जागरण काल में मानव सभी वस्तुओं का मानदण्ड था। इस काल में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व दिया गया। मॉण्टेस्क्यू ने स्वतंत्रता को अपना सर्वोत्तम आदर्श बनाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मानव ने उत्पादन, अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध सदैव संघर्ष किया है।

प्रश्न 2.
निर्बाध स्वतन्त्रता आज सम्भव नही है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्वतन्त्रता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को सोदाहरण बताइए।
उत्तर:
विश्व के विभिन्न भागों में अधिकारों के प्रति जागरूकता ने जनता को स्वतन्त्रता के लिए युद्ध करने को प्रेरित किया। लोगों को स्वतन्त्रता मिली किन्तु वर्तमान समय में आवश्यकता है कि स्वतन्त्रता की रक्षा की जाय विभिन्न शासन व्यवस्थाओं में निर्बाध स्वतन्त्रता सम्भव नहीं है। निर्बाध स्वतन्त्रता के लिए किसी राज्य की जनता के लिए आवश्यक है कि वह स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु सदैव सतर्क व जागरूक रहे। कृत्रिम देशप्रेम स्वतन्त्रता में बाधक है। लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक है क्योंकि ऐसी व्यवस्था में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

सरकार की शक्तियों का स्पष्ट विभाजन हो जिससे कोई अंग दूसरे के कार्यों में बाधा न डाल सके। विधायिका में बहुमत का बोलबाला होता है अतएव उसकी शक्ति पर नियन्त्रण आवश्यक है। प्रशासन में विधि का शासन होना आवश्यक है। इसके अलावा पूर्ण साक्षरता, आर्थिक दृष्टि से पूर्णतः समतामूलक समाज व्यवस्था, किसी विशिष्ट वर्ग, वर्ण, जाति और लिंग को विशेषाधिकार न मिले।

समाज में सर्वत्र शान्ति व सुरक्षा का वातावरण हो तथा न्यायपालिका की पूर्ण स्वतन्त्रता में ही स्वतन्त्रता की रक्षा हो सकती है। स्वस्थ जनमत और स्वतन्त्र प्रेस स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान समय में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ जो निर्बाध स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक हैं, इनका अभाव पाया जाता है अतएव वर्तमान समय में निर्बाध स्वतन्त्रता सम्भव नहीं है

स्वतन्त्रता के मार्ग में आने वाली बाधाएँ: यह मान्यता है कि लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सबसे उपयुक्त प्रशासन है किन्तु वर्तमान समय में ऐसी शासन प्रणाली में भी स्वतन्त्रता के लिए बहुत से खतरे उत्पन्न होते जा रहे हैं। स्वतन्त्रता के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं

  1. स्वतन्त्रता के प्रति जागरूकता का अभाव
  2. अशिक्षा का होना
  3.  गरीबी, बेरोजगारी तथा संसाधनों की कमी
  4. न्यायपालिका के कार्यों में कार्यपालिका का हस्तक्षेप
  5. संविधान व कानूनों के प्रति सम्मान का अभाव
  6. अराजकता का वातावरण,
  7. कार्यपालिका का स्वेच्छाचारी आचरण
  8. राष्ट्रविरोधी तत्वों तथा आतंकवाद का भय

इसके अलावा लोकतन्त्र में यह देखा जा रहा है कि सरकारें लोक कल्याण के नाम पर तेजी से अपने प्राधिकार और शक्ति का विस्तार कर रही हैं। इससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन हो रहा है। समाज व राज्य के सभी कार्यों पर सरकारों का अधिकार बढ़ता जा रहा है। विधायिका द्वारा सरकार की शक्ति में वृद्धि होती जा रही है जिससे स्वतन्त्रता में संकुचन हो रहा है।

विधायिका मन्त्री तथा नौकरशाह बहुत से नियमों और कानूनों द्वारा व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर आये दिन कुठाराघात कर रहे हैं। सरकारें जनमत की उपेक्षा या दमन कर रही हैं। इस प्रकार अनेक ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता के मार्ग में बाधक हैं।

प्रश्न 3.
पूर्ण समानता स्वप्नलोकीय कल्पना है। इस अवधारणा को समानता के अर्थ, आधारभूत लक्षण व प्रकारों की व्याख्या के सन्दर्भ में समझाइए।
उत्तर:
प्राकृतिक रूप से सभी व्यक्ति समान रूप से उत्पन्न होते हैं। मानव निर्मित परिस्थितियाँ व्यक्तियों में असमानता उत्पन्न करती हैं। वस्तुतः समानतो वह परिस्थिति है जिसमें सभी व्यक्तियों को अपने अस्तित्व के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त होता है। वस्तुतः समाज में सभी व्यक्तियों को एक समान किया जाना असम्भव है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सभी व्यक्तियों की शारीरिक एवं मानसिक योग्यताएँ एक समान नहीं हैं।

लास्की ने लिखा है -“समानता का यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाय या प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाय । यदि एक मजदूर का वेतन प्रसिद्ध वैज्ञानिक व गणितज्ञ के बराबर कर दिया जाय। तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का अर्थ है कि – विशेष अधिकार वाले वर्ग न रहें और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”

समानता के आधारभूत लक्षण:
समानता के आधारभूत लक्षण निम्न हैं

  1. समान लोगों के साथ समान व्यवहार।
  2. सभी लोगों को विकास के समान अवसर की प्राप्ति।
  3. समाज एवं राज्य द्वारा सबके साथ समान आचारण व व्यवहार करना।
  4. मानवीय गरिमा एवं अधिकारों का समान संरक्षण।
  5. किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण, लिंग, निवास स्थान, सम्पत्ति व राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव न करना।
  6. प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान महत्व देना।

समानता के प्रकार: समानता के विभिन्न प्रकारों को संक्षेप में निम्नलखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. नागरिक समानता-नागरिक समानता, नागरिकों के समान नागरिक अधिकारों का समर्थन करती है जिससे नागरिकों में राज्य के प्रति निष्ठा व लगाव पैदा हो।
  2. राजनीतिक समानता-राजनीतिक समानता प्रजातन्त्र का आधार है। इसके अन्तर्गत समान मताधिकार, निर्वाचन में खड़े होने की छूट तथा सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने का अधिकार सम्मिलित है।
  3. सामाजिक समानता-सामाजिक दृष्टि से सबको समान अधिकार मिलना तथा किसी को विशेषाधिकार न मिलना सामाजिक समानता है।
  4. प्राकृतिक समानता-इस अवधारणा के प्रतिपादकों की मान्यता है कि प्रकृति सबको समान उत्पन्न करती है। केवल सामाजिक परिस्थितियाँ उनमें भिन्नता लाती हैं।
  5. आर्थिक समानता-आर्थिक समानता से तात्पर्य है कि सभी को कार्य करने के समान अवसर उपलब्ध कराये जाएँ। तथा सभी व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो। यह अन्य समानताओं का आधार है।
  6. सांस्कृतिक समानता-अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक वर्गों में समानता का व्यवहार सांस्कृतिक समानता है। यह संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त है।
  7. कानूनी समानता-कानूनी समानता का तात्पर्य है-कानून के समक्ष समानता तथा कानूनों का समान संरक्षण अर्थात् बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को कानून के समक्ष समान समझना तथा सभी के लिए समान कानून, समान न्यायालय व एक जैसे गुनाह पर समान दण्ड का प्रावधान।
  8. अवसर की समानता-जाति, धर्म, वर्ण, वर्ग, लिंग तथा नस्ल आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को समान अवसर प्राप्त होना इसके अन्तर्गत आता है।
  9.  शिक्षा की समानता-शिक्षा की समानता से आशय बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध करवाने से है।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता और समानता के अन्तर्सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता और समानता का अन्तर्सबन्ध:
स्वतन्त्रता और समानता अन्तर्सम्बन्धित हैं। दोनों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित मतभिन्नता विद्यमान है

स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं:
इस मत के मानने वालों का कहना है कि स्वतन्त्रता और समानता अन्तर्विरोधी हैं। जहाँ समानता है वहाँ स्वतन्त्रता नहीं रह सकती और जहाँ स्वतन्त्रता है वहाँ समानता असम्भव है। वस्तुतः प्रकृति ने ही लोगों को असमान बनाया है।

असमानता हमें प्रकृति से मिली है। स्वयं प्रकृति में हमें अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती है जैसे कहीं नर्दी कहीं पहाड़ तो कहीं मैदान हैं। सभी व्यक्ति समान रूप से योग्य नहीं होते हैं। योग्य एवं अयोग्य व्यक्ति को कैसे समान किया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि दोनों परिस्थितियों में से किसी एक को ही प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

स्वतन्त्रता और समानता एक:
दूसरे की पूरक हैं-इस मत के समर्थक रूसो, पोलार्ड, हरबर्ट डीन आदि हैं। रूसो ने लिखा है-”समानता के बिना स्वतन्त्रता जीवित नहीं रह सकती।”

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” यह नारा है
(अ) स्वामी विवेकानन्द का
(ब) भगतसिंह का
(स) बालगंगाधर तिलक का
(द) सुभाषचन्द बोस का

प्रश्न 2.
“स्वतन्त्रता का अभिप्राय निरोध व नियन्त्रण का सर्वथा अभाव है” – यह कथन है
(अ) हाब्स का
(ब) रूसो का
(स) लॉक का
(द) बेन्थम का

प्रश्न 3.
उस विचारक का नाम बताइए जिसका सम्बन्ध स्वतन्त्रता के सकारात्मक पक्ष से है
(अ) हॉब्स
(ब) रूसो
(स) जे. एस .मिल
(द) स्पेन्सर

प्रश्न 4.
“राज्य को व्यक्ति के निजी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए” -यह कथन है
(अ) लॉक का
(ब) जे. एस. मिल का
(स) स्पेन्सर का
(द) रिची का

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन समझौता वादी विचारकों से सम्बन्धित है
(अ) हॉब्स
(ब) लॉक
(स) रूसो
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
व्यवसाय चुनने व रोजगार की स्वतन्त्रता, स्वतन्त्रता के किस प्रकार से सम्बन्धित है?
(अ) प्राकृतिक स्वतन्त्रता
(ब) राजनीतिक स्वतन्त्रता
(स) धार्मिक स्वतन्त्रता
(द) आर्थिक स्वतन्त्रता

प्रश्न 7.
‘सम्प्रभु राज्य’ का सम्बन्ध किस स्वतन्त्रता से है?
(अ) राष्ट्रीय स्वतन्त्रता
(ब) आर्थिक स्वतन्त्रता
(स) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता के मार्ग की प्रमुख बाधा है
(अ) अशिक्षा
(ब) आतंकवाद
(स) गरीबी
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
किस समानता को प्रजातन्त्र की आधारशिला माना गया है?
(अ) नागरिक समानता
(ब) प्राकृतिक समानता
(ब) राजनीतिक समानता
(द)सामाजिक समानता

प्रश्न 10.
किस समानता के अभाव में अन्य समानताओं को अर्थहीन माना गया है?
(अ) आर्थिक समानता
(ब) नागरिक समानता
(स)शैक्षिक समानता
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 11.
“समानता के आवेश ने स्वतन्त्रता की आशा को व्यर्थ कर दिया हैं” – यह कथन है
(अ)स्पेन्सर को
(ब) रिची का
(स) लार्ड एक्टन का
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से स्वतंत्रता का संरक्षक तत्व कौन – सा है?
(अ) आतंकवाद
(ब) विधि का शासन
(स) राजनीतिक समानता
(द) अशिक्षा

उत्तर:
1. (स), 2. (अ), 3. (द), 4. (ब), 5. (द), 6. (द)
7. (अ), 8. (द), 9. (स), 10. (अ),11. (स), 12. (ब)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के महत्व के सम्बन्ध में इतिहासकार रिची का क्या कथन है?
उत्तर:
इतिहासकार रिची महोदय के अनुसार-जीवन के अधिकार के बाद साधारणतया स्वतन्त्रता के अधिकार का नाम लिया जाता है और बहुत से व्यक्तियों के लिए प्राथमिक और सबसे आवश्यक अधिकार है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता शब्द का अंग्रेजी रूपान्तरण क्या है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता शब्द अंग्रेजी के लिबर्टी (liberty) शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ है-बन्धनों का अभाव या मुक्ति ।

प्रश्न 3.
नकारात्मक स्वतंत्रता से क्या आशय है? अथवा स्वतंत्रता का नकारात्मक अर्थ क्या है?
उत्तर:
नकारात्मक स्वतंत्रता से आशय यह है कि व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार का कोई बन्धन न हो।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के नकारात्मक पक्ष के समर्थक किन्हीं दो विचारकों के नाम बताइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के नकारात्मक पक्ष के समर्थक दो प्रमुख विचारक हैं

  1. हॉब्स तथा
  2. रूसो।

प्रश्न 5.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा के मुख्य प्रतिपादक कौन हैं?
उत्तर:
जे. एस. मिल।

प्रश्न 6.
व्यक्तिवादी विचारक जे. एस. मिल, की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में क्या अवधारणा है?
उत्तर:
व्यक्तिवादी विचारक जे. एस. मिल. स्वतन्त्रता के नकारात्मक पक्ष से सम्बन्धित हैं। उनके अनुसारे -“राज्य को व्यक्ति के निजी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।”

प्रश्न 7.
सकारात्मक स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? अथवा स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ क्या है?
उत्तर:
सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति अपने लिए उन परिस्थितियों का निर्माण करे, जो उसके विकास के साथ-साथ साथी नागरिकों के लिए भी ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित करे।।

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में स्पेन्सर के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्पेन्सर के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति वह सब कुछ करने को स्वतन्त्र है जिसकी वह इच्छा करता है। यदि वह इस दौरान अन्य व्यक्ति की समान स्वतन्त्रता का हनन नहीं करता हो।”

प्रश्न 9.
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में पेन महोदय के क्या विचार थे?
उत्तर:
पेन महोदय के अनुसार, “स्वतन्त्रता उन बातों को करने का अधिकार है जो दूसरे के अधिकारों के विरुद्ध न हों ।।

प्रश्न 10.
महात्मा गाँधी स्वतंत्रता को किस रूप में देखते थे?
उत्तर:
व्यक्तित्व के विकास की अवस्था की प्राप्ति के रूप में।

प्रश्न 11.
प्राकृतिक स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में समझौतावादी विचारकों की क्या मान्यता है?
उत्तर:
समझौतावादी विचारक प्राकृतिक स्वतन्त्रता के समर्थक थे। रूसो का कहना है-”मनुष्य स्वतन्त्र जन्म लेता। है किन्तु वह सर्वत्र बन्धनों से जकड़ा रहता है।”

प्रश्न 12.
“मनुष्य स्वतंत्र जन्म लेता है किन्तु वह सर्वत्र बन्धनों में जकड़ा रहता है।” रूसो का यह कथन स्वतंत्रता के किस स्वरूप का समर्थन करता है?
उत्तर:
प्राकृतिक स्वतंत्रता का।

प्रश्न 13.
नैतिक परतन्त्र व्यक्ति कौन है?
उत्तर:
स्वार्थ, लोभ, क्रोध, घृणा तथा दुर्भावना जैसी चारित्रिक दुर्बलताओं के वशीभूत होकर कार्य करने वाला व्यक्ति नैतिक परतन्त्रता की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 14.
सामाजिक स्वतन्त्रता क्या है? बताइए।
उत्तर:
कानून के समक्ष समता तथा समान कानूनी संरक्षण सामाजिक स्वतन्त्रता है।

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सबसे बड़ा शत्रु कौन है?
उत्तर:
उपनिवेशवाद राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सबसे बड़ा शत्रु है।

प्रश्न 16.
संवैधानिक स्वतन्त्रता के बारे में दो मुख्य बातें बताइए।
उत्तर:
संवैधानिक स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में दो मुख्य विचार इस प्रकार हैं

  1. यह नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदान की जाती है तथा
  2. शासन इसमें कोई कटौती नहीं कर सकता है।

प्रश्न 17.
स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक प्रमुख दो शर्ते बताइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक प्रमुख दो शर्ते इस प्रकार हैं

  1. पक्षपातविहीन विधि का शासन तथा
  2. स्वतन्त्र न्यायपालिका।

प्रश्न 18,
स्वतन्त्रता में बाधक किन्हीं दो तत्वों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अशिक्षा
  2. स्वयं की स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता का अभाव।

प्रश्न 19.
समानता के सम्बन्ध में मानव अधिकारों के घोषणा पत्र में क्या उल्लिखित है?
उत्तर:
समानता के सम्बन्ध में मानव अधिकारों के घोषणापत्र में कहा गया है – ”मनुष्य स्वतन्त्र एवं समान पैदा हुए हैं और वे अपने अधिकारों के सम्बन्ध में भी स्वतन्त्र एवं समान रहते हैं।”

प्रश्न 20.
समानता के सम्बन्ध में अमेरिका की स्वतन्त्रता के घोषणा पत्र में क्या उल्लेख था?
उत्तर:
समानता के सम्बन्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा 1776 में कहा गया था “हम इस सत्य को स्वयंसिद्ध मानते हैं कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान उत्पन्न किया है।”

प्रश्न 21.
समानता का लोकतंत्र में क्या महत्व है?
उत्तर:
समानता लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है।

प्रश्न 22.
समानता के किन्हीं दो आधारभूत तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सभी लोगों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों।
  2. मानवीय गरिमा तथा अधिकारों का समान संरक्षण हो

प्रश्न 23.
समानता के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर:

  1. नागरिक समानता
  2. राजनीतिक समानता।

प्रश्न 24.
“स्वतन्त्रता की समस्या का एकमात्र समाधान समानता में निहित है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन पोलार्ड का है।

प्रश्न 25.
बिना किसी भेदभाव के राज्य के कार्यों में भाग लेने की समानता क्या कहलाती है?
उत्तर:
राजनीतिक समानता।

प्रश्न 26.
कानून के समक्ष समानता का क्या आशय है?
उत्तर:
कानून के समक्ष समानता का आशय यह है कि बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को कानून के समक्ष समान समझना, जिसमें विधि के शासन की स्थापना हो सके।

प्रश्न 27.
कानून के समान संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कानून के समान संरक्षण से अभिप्राय है -“एक जैसे लोगों से कानून का एक जैसा व्यवहार।” अर्थात् सभी के लिए समान कानून, समान न्यायालय व एक जैसे गुनाह पर समान दण्ड हो।

प्रश्न 28.
नागरिक समानता कैसे स्थापित की जा सकती है?
उत्तर:
विधि के शासन द्वारा नागरिक समानता को स्थापित किया जा सकता है।

प्रश्न 29.
प्रजातन्त्र में कानूनी समानता के दो तरीके बताइए।
उत्तर:
प्रजातन्त्र में कानूनी समानता के दो तरीके इस प्रकार हैं –

  1. कानून के समक्ष समानता तथा
  2. कानूनों का समान संरक्षण

प्रश्न 30.
राजनीतिक असमानता के क्या दुष्परिणाम होंगे?
उत्तर:
राजनीतिक असमानता की स्थिति में नागरिकों का एक बड़ा समूह शासन में भागीदारी से वंचित हो जायेगा।

प्रश्न 31.
आर्थिक असमानता के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर:
आर्थिक असमानता की स्थिति में सम्पत्ति का केन्द्रीकरण पूँजीपतियों के हाथों में हो जायेगा और शेष समाज उनकी सहानुभूति पर अश्रित हो जाएगा।

प्रश्न 32.
स्वतंत्रता व समानता को परस्पर विरोधी मानने वाले प्रमुख विद्वान कौन हैं?
उत्तर:
लार्ड एक्टन।

प्रश्न 33.
भारतीय संविधान का कौन – सा अनुच्छेद नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है।
उत्तर:
अनुच्छेद – 32

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4  लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में आदर्शवादी दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर:
स्वतंत्रता मानव जीवन का एक विशेष लक्षण तथा व्यक्ति की मूल प्रवृति है। स्वतंत्रता का आशय यह है कि मनुष्य अपने अधिकारों का उपयोग इस प्रकार करे कि सामाजिक नियम, राज्य के कानून और दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। स्वतंत्रता के आदर्शवादी दृष्टिकोण में मनुष्य की स्वतन्त्रता की खोज मानव इतिहास की केन्द्रीय धारा और मानवशास्त्र की सर्वश्रेष्ठ आकांक्षा रही है। इसकी पूर्ति हेतु मानव सदैव प्रयत्नशील रहा है। स्वतन्त्रता किसी अन्य साध्य के लिए साधन मात्र नहीं अपितु स्वयंसाध्य है। इस साध्य की प्राप्ति हेतु मानव अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देने को तैयार रहता है।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की नकारात्मक विचारधारा की मान्यताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता की नकारात्मक विचारधारा की मान्यताएँ – स्वतंत्रता की नकारात्मक विचारधारा की प्रमुख मान्यताएं इस प्रकार हैं

  1. प्रतिबन्धों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
  2. राज्य के कार्यक्षेत्र में वृद्धि होने से व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है।
  3. न्यूनतम शासन करने वाली सरकार अच्छी सरकार है।
  4. मानव विकास के लिये खुली प्रतियोगिता का सिद्धांत लाभदायक है।
  5. सरकार द्वारा समर्थित संरक्षण व्यक्तिगत रूप से ठीक नहीं है।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता की सकारात्मक विचारधारा की मान्यताएँ कौन – कौन – सी हैं? लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता की सकारात्मक विचारधारा की मान्यताएँ – स्वतंत्रता की सकारात्मक विचारधारा की प्रमुख मान्यताएं इस प्रकार हैं

  1.  स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध आवश्यक हैं।
  2. व्यक्ति एवं समाज के हित परस्पर निर्भर हैं।
  3. स्वतंत्रता का सही स्वरूप राज्य के कानून – पालन में है।
  4. स्वतंत्रता के अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए दूसरों की स्वतंत्रता को मान्यता देना आवश्यक है।
  5. राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता का मूल्य आर्थिक स्वतंत्रता के बिना निरर्थक है।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी को क्या विचार थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप के पक्षधर थे। वे स्वतंत्रता को नियन्त्रण के अभाव के रूप में नहीं अपितु व्यक्तित्व के विकास की अवस्था की प्राप्ति के रूप में देखते हैं। इस रूप में स्वतन्त्रता का अर्थ उन परिस्थितियों से है जो व्यक्ति को एक उन्मुक्त जीवन जीने तथा जीवन को सुरक्षित रख सके। उसको जीवनयापन के संसाधन जुटाने के अवसर प्राप्त हों, वह अपने विचारों को प्रकट कर सके तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सके।

प्रश्न 5.
आर्थिक स्वतन्त्रता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक स्वतन्त्रता आर्थिक सुरक्षा भी है। आर्थिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय यह है कि व्यक्ति का आर्थिक स्तर ऐसा होना चाहिए जिसमें कि वह स्वाभिमान के साथ बिना वित्तीय चुनौतियों का सामना किये, स्वयं का व अपने परिवार का जीवन निर्वाह कर सके। इसके अन्तर्गत व्यक्ति के स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीने के लिए प्रावधान भी सम्मिलित हैं। आर्थिक आधार पर विषमताओं को कम करने के लिए निम्न प्रयास किये जाने चाहिए

  1. शोषण का दायरा न्यूनतम हो
  2. आर्थिक गुलामी की अवस्था से मुक्ति
  3. सभी को आर्थिक उन्नति के समान अवसरों की प्राप्ति तथा
  4. व्यवसाय चुनने एवं रोजगार की स्वतन्त्रता आदि।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक स्वतन्त्रता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक स्वतंत्रता – प्रकृति प्रदत्त स्वतन्त्रता को प्राकृतिक स्वतन्त्रता कहते हैं। यह स्वतन्त्रता प्रकृति द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व में जन्म के साथ ही समाहित कर दी जाती है। स्वयं व्यक्ति विशेष इस प्रकार की स्वतन्त्रता का हस्तान्तरण दूसरे को नहीं कर सकता। जब राज्य का अस्तित्व नहीं था यह स्वतन्त्रता उससे पूर्व से ही व्यक्ति को प्रकृति ने दी थी।

विचारकों की मान्यता है कि राज्य के अस्तित्व में आने के साथ – साथ यह स्वतन्त्रता धीरे – धीरे क्षीण हो जाती है। रूसो ने इस सम्बन्ध में लिखा है -“मनुष्य स्वतन्त्र जन्म लेता है किन्तु वह सर्वत्र बन्धनों से जकड़ा रहता है।”समझौतावादी विचारक इस प्रकार की स्वतन्त्रता के समर्थक थे। प्राकृतिक स्वतन्त्रता व्यक्ति को किसी संस्था द्वारा प्रदान नहीं की जाती। यह प्रकृति प्रदत्त स्वतन्त्रता व्यक्ति को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता – इसे निजी स्वतंत्रता भी कहते हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता से आशय यह है कि मनुष्य को अपने जीवन के कार्यों में स्वतंत्रता होनी चाहिए। इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यक्तिगत कार्यों पर केवल समाज हित में ही प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं। लोकतांत्रिक देशों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बहुत अधिक महत्व है। वहाँ के नागरिकों को अपनी पसंद, विचार, अभिव्यक्ति और मूल्यों के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता होती है।

वेशभूषा, खान – पान, रहन – सहन, परिवार और धर्म आदि क्षेत्रों में व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। सामाजिक कुरीतियों को रोकने, समाज सुधार करने, सामाजिक शान्ति एवं व्यवस्था को बनाए रखने तथा समाज में सौहार्द के वातावरण को बनाए रखने के लिए राज्य द्वारा व्यक्तियों की स्वतंत्रताओं पर समुचित प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।

प्रश्न 8.
नागरिक स्वतंत्रता क्या है? समझाइए।
उत्तर:
नागरिक स्वतंत्रता – नागरिक स्वतंत्रता वह स्वतन्त्रता है जिसे देश का नागरिक होने के कारण समाज स्वीकार करता है और राज्य मान्यता प्रदान कर उनका संरक्षण भी करता है। गैटिल के अनुसार, “स्वतंत्रताएँ उन अधिकारों और विशेषाधिकारों को कहते हैं, जिनको राज्य अपने नागरिकों के लिए उत्पन्न करता है और रक्षा करता है।”

वर्तमान में प्रत्येक लोकतांत्रिक सरकार अपने नागरिकों को भाषण, लेखन, घूमने – फिरने, कोई भी व्यवसाय करने, किसी भी धर्म का पालन करने तथा उचित तरीकों से सम्पत्ति जमा करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है क्योंकि इनके अभाव में नागरिक का विकास सम्भव नहीं है।राज्य के रूप में संगठित जनसमुदाय में यह आवश्यक होता है कि मनुष्यों की स्वतंत्रता मर्यादित व नियमित रहे।

हमारे देश के संविधान द्वारा नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण व बिना किन्हीं शस्त्रों के सम्मेलन की स्वतंत्रता, संगम व परिसंघ बनाने की स्वतंत्रता, भारत के राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता, कृति, आजीविका या कारोबार के साथ-साथ कई व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ मूल अधिकारों के रूप में प्रदान की गई हैं

प्रश्न 9.
धार्मिक स्वतंत्रता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धार्मिक स्वतंत्रता – धार्मिक स्वतंत्रता का सम्बन्ध अन्त:करण से है। यह व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, आस्था व आचरण की छूट प्रदान करता है। इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत धर्म के संस्कार, रीति – रिवाज, पूजा के तरीके, संस्थाओं का गठन व धर्म के प्रचा – प्रसार की आजादी है। धर्म के नाम पर कानून व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न करने व जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की अनुमति इस स्वतंत्रता में सम्मिलित नहीं है। भारतीय संविधान द्वारा मूल अधिकारों के अन्तर्गत नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अन्तर्गत प्रदान किया गया है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर सदाचार, स्वास्थ्य एवं सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर राज्य द्वारा युक्तियुक्त-प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
नैतिक स्वतंत्रता का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नैतिक स्वतंत्रता से आशय-अंत:करण और नैतिक गुणों से प्रभावित होकर जब व्यक्ति कार्य करता है तो उसे नैतिक स्वतंत्रता कहते हैं। इसका सम्बन्ध व्यक्ति के चरित्र, नैतिकता एवं औचित्यपूर्ण व्यवहार से है। राज्य संस्था द्वारा जो विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताएँ व्यक्तियों को प्राप्त होती हैं, उनका सदुपयोग मनुष्य तभी कर सकता है जब वह नैतिक दृष्टि से भी स्वतंत्र हो। मानवीय संस्थाओं का संचालन मनुष्य द्वारा ही होता है।

मनुष्य का जैसा स्वभाव, चरित्र व मन होगा वैसी ही उसकी संस्थाएँ भी होंगी। यदि राज्य में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना हो, संविधान द्वारा समस्त नागरिकों को समस्त नागरिक स्वतंत्रताएँ प्राप्त हों यह भी व्यवस्था की गई हो कि आर्थिक जीवन में कोई व्यक्ति किसी दूसरे का शोषण न कर सके। इन सभी व्यवस्थाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस राज्य के नागरिक नैतिक दृष्टि से कितने सुदृढ़ हैं।

यदि वे आसानी से लोभ, मोह, भय आदि के वशीभूत हो जाएंगे तो अच्छी से अच्छी व्यवस्था भी उन्हें स्वतंत्र नहीं रख सकेगी। राज्य शक्ति का प्रयोग करने वाले लोगों को भी नैतिक दृष्टि से सुदृढ़ होना चाहिए। स्वार्थ, लोभ, क्रोध, घृणा आदि चारित्रिक दुर्बलताओं के वशीभूत होकर कार्य करने वाला व्यक्ति नैतिक स्वतंत्रता की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 11.
समाजिक स्वतंत्रता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक स्वतंत्रता की अवधारणा – सामाजिक स्वतंत्रता से आशय यह है कि मनुष्य के साथ जाति, वर्ण, लिंग, वर्ग, धर्म, नस्ल आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाये व समस्त व्यक्तियों से समान व्यवहार किया जाये। इसके अतिरिक्त सामाजिक स्वतंत्रता के अन्तर्गत कानून के समक्ष समता व समान कानूनी संरक्षण भी है।

हमारे संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 में प्रदत्त समानता का अधिकार इसी स्वतंत्रता को मजबूती प्रदान करने के लिए। दिया गया है। हमारे संविधान में कानून के समक्ष समानता, धर्म, मूलवंश, जाति या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का निषेध तथा उपाधियों का अंत आदि समानता के अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय स्वतंत्रता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय स्वतंत्रता से आशय – जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य को स्वतंत्र रहने का अधिकार है उसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने का पूर्ण अधिकार है। इसी अधिकार को राष्ट्रीय स्वतंत्रता कहते हैं। भाषा, धर्म, संस्कृति, नस्ल, ऐतिहासिक परम्परा आदि की एकता के कारण जिन लोगों में एकानुभूति हो, उन्हें हम एक राष्ट्रीयता कहते हैं। ऐसी प्रत्येक राष्ट्रीयता को अधिकार है कि वह अपने पृथक व स्वतंत्र राज्य का निर्माण करे। वह किसी अन्य राज्य के नियंत्रण में न हो क्योंकि राष्ट्रीय स्वतंत्रता की स्थिति में ही वहाँ के निवासी अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रख सकते हैं।

और प्रगति कर सकते हैं। प्रत्येक देश स्वतंत्र राज्य चाहता है क्योंकि स्वतंत्रता के बिना उसका विकास सम्भव नहीं है। यदि कोई देश किसी ताकतवर साम्राज्यवादी देश के द्वारा पराधीन हो जाता है तो वह देश अपनी स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करता रहता है। भारत ने अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए तुर्क, मुगल और ब्रिटिश काल में जो अद्वितीय बलिदान किए, वे हमारे इतिहास की अमर गाथाएँ हैं। राष्ट्रीय स्वंतत्रता का सबसे बड़ा शत्रु उपनिवेशवाद है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के बिना व्यक्ति की अन्य स्वतंत्रताएँ गौण हैं।

प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के लिए आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं? बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के लिए आवश्यक शर्ते – स्वतंत्रता के लिए आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं

  1. स्वतंत्रता के प्रति निरन्तर जागरूकता,
  2. नागरिकों की निडरता एवं साहस
  3. समाज में लोकतांत्रिक भावनाओं का उत्पन्न होना,
  4.  स्वतंत्रताएँ लोकतांत्रिक शासन में ही पनप सकती हैं।
  5. आर्थिक दृष्टि से समतामूलक समाज होना,
  6. साथी नागरिकों का विशेषाधिकार न होना,
  7. पक्षपातरहित विधि का शासन,
  8. निष्पक्ष जनमत का होना
  9. प्रेस की स्वतंत्रता,
  10. न्यायपालिका का स्वतंत्र होना,
  11. समाज में शांति व सुरक्षा का वातावरण,
  12. संविधान के अनुसार शासन का संचालन होना।

प्रश्न 14.
समानता के आधारभूत तत्वों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समानता के आधारभूत तत्व-समानता के आधारभूत तत्व निम्नलिखित हैं

  1. समान लोगों के साथ समान व्यवहार ही समानता है।
  2. समस्त लोगों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों।
  3. मानवीय गरिमा एवं अधिकरों को समान संरक्षण प्राप्त हो।
  4. राज्य समाज के समस्त लोगों के साथ समान आचरण एवं व्यवहार करें।
  5. समाज में किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण, भाषा, लिंग, निवासस्थान, सम्पत्ति एवं राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाए।
  6. प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान महत्व प्रदान किया जाए।

प्रश्न 15.
नागरिक समानता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नागरिक समानता – नागरिक समानता से आशय है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान होने चाहिए और कानून की दृष्टि से ऊँच – नीच, धनवान – निर्धन, धर्म और नस्ल आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए ताकि नागरिकों के मन में राज्य के प्रति विश्वास कायम हो सके। विधि के शासन की स्थापना द्वारा नागरिक समानता को स्थापित किया जा सकता है। भारत में संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत अनुच्छेद 14 द्वारा सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण का अधिकार प्रदान किया गया है।

प्रश्न 16.
आर्थिक समानता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक समानता का अर्थ – आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि समस्त व्यक्तियों की आय अथवा वेतन बराबर का दिया जाए वरन् आर्थिक समानता से तात्पर्य यह है कि समाज में आर्थिक विषमता कम से कम रहे। लोगों के जीवन स्तर में बहुत अधिक अंतर न हो सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों तथा कोई विशेष अधिकारों वाला वर्ग न हो आर्थिक समानता तभी स्थापित हो सकती है जबकि सभी को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो।

सभी को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति का अवसर प्राप्त हो। सभी को रोजगार के उचित अवसर उपलब्ध हों। लोगों को बेरोजगार, अपंग होने एवं वृद्धावस्था में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए। तथा उत्पादन व वितरण के साधनों पर कुछ लोगों का ही नियंत्रण न हो। आर्थिक समानता अन्य समस्त समानताओं का आधार है। आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक, नागरिक व सामाजिक समानता अर्थहीन है।

प्रश्न 17.
कानूनी समानता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कानूनी समानता की अवधारणा – कानूनी समानता आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों की एक विशेष अवधारणा है। कानूनी समानता के माध्यम से ही सामाजिक विषमताओं का अंत किया जा सकता है। कानूनी समानता के माध्यम से ही सामाजिक विषमताओं का अंत किया जा सकता है।

कानूनी समानता में दो बातें शामिल हैं – प्रथम, कानून के समक्ष समानता एवं द्वितीय, कानून का समान संरक्षणकानून के समक्ष समानता का आशय बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को कानून के समक्ष समान समझना, जिससे विधि के शासन की स्थापना हो सके। द्वितीय, कानून के समान संरक्षण का तात्पर्य है – एक जैसे लोगों से कानून का एक जैसा व्यवहार अर्थात् सभी के लिए समान कानून, समान न्यायालय व एक जैसे गुनाह पर समान दण्ड देना। भारतीय संविधान द्वारा इसी सिद्धान्त को अपनाया गया है।

प्रश्न 18.
समानता की अनुपस्थिति में स्वतन्त्रता निष्प्रयोज्य होगी-सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विद्वानों में स्वतन्त्रता और समानता के आपसी सम्बन्धों के विषय में मतभेद है। कुछ विद्वानों ने दोनों के सम्बन्धों को अनिवार्य माना है। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों की असमानता के निम्न दुष्परिणाम बताये हैं

  1. राजनीतिक असमानता स्वतन्त्रता को अर्थहीन कर देगी जिससे नागरिकों का एक बड़ा समूह शासन में भागीदारी नहीं कर पायेगा।
  2. नागरिक असमानता की स्थिति में नागरिकों को स्वतन्त्रता का उपभोग करने का अवसर नहीं मिलेगा।
  3. सामाजिक असमानता में स्वतन्त्रता कुछ लोगों का विशेषाधिकार बन कर रह जायेगी।
  4. आर्थिक असमानता में सम्पत्ति का केन्द्रीकरण पूँजीपतियों के हाथों तक सीमित होगा तथा शेष जनता उनकी कृपापात्र बनकर रह जायेगी।

प्रश्न 19.
स्वतन्त्रता एवं समानता परस्पर विरोधी हैं-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं। इस विचार को मानने वालों का कहना है कि इन दोनों में कोई साम्यता नहीं है। लार्ड एक्टन की मान्यता है कि समानता के आवेश ने स्वतन्त्रता की आशा को ही नष्ट कर दिया है। ऐसे विचारकों का मत है कि जहाँ स्वतंत्रता है, वहाँ समानता नहीं रह सकती और जहाँ समानता है वहां स्वतंत्रता नहीं हो सकती।

इस मत के समर्थकों के अनुसार प्रकृति ने ही सबको असमान पैदा किया है। स्वयं प्रकृति में हमें अनेक प्रकार की विभिन्न्ताएँ देखने को मिलती हैं जैसे कहीं नदी, कहीं पहाड़ व कहीं मैदान हैं। सब व्यक्ति समान रूप से योग्य नहीं होते हैं। योग्य और अयोग्य के बीच समानता किस प्रकार स्थापित की जा सकती है और उनमें समानता लाना औचित्यपूर्ण भी नहीं है। स्वतन्त्रता और समानता में से किसी एक की ही स्थापना की जा सकती है।

प्रश्न 20.
स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ कौन – कौन सी हैं? लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ – स्वतंत्रता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं

  1. अपनी स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता का अभाव
  2. अशिक्षा का होना
  3. निर्धनता एवं संसाधनों का अभाव होना
  4. कार्यपालिका द्वारा न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करना।
  5. विधि के शासन का अभाव एक अराजकता का वातावरण होना
  6. संविधान व कानूनों के प्रति सम्भाव का अभाव होना।
  7. कार्यपालिका का स्वेच्छाचारी आचरण
  8. राष्ट्र विरोधी तत्व एवं आतंकवाद।

प्रश्न 21.
स्वतंत्रता की प्रमुख विशेषताओं को बताइए। अथवा स्वतंत्रता के लक्षणों को समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के लक्षण / विशेषताएँ – स्वतंत्रता के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं|

  1. मनुष्य के मार्ग में किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध न होने को स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता। किसी भी प्रकार की मर्यादा व नियंत्रण के अभाव की स्थिति को स्वतंत्रता के स्थान पर मनमानी नहीं कहा जा सकता।
  2. स्वतंत्रता का स्वरूप केवल नकारात्मक नहीं होता। स्वतंत्रता के लिए यह भी आवश्यक होता है कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाएँ जिनमें व्यक्ति अपनी शक्ति, योग्यता व गुणों का भलीभाँति विकास कर सके।
  3. राज्य की प्रमुख शक्ति और मनुष्यों की स्वतंत्रता में विरोध नहीं होता। वस्तुतः राज्य संस्था ही उन परिस्थितियों का निर्माण करती है जिनके कारण मनुष्य स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकता है तथा अपने व्यक्तित्व का ठीक प्रकार से विकास कर सकता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 4  निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के नकारात्मक एवं सकारात्मक विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में दो तरह के विचार हैं
(1) बन्धनों का अभाव तथा
(2) युक्तियुक्त बन्धनों का होना। इनका विवेचन निम्नलिखित है

(1) स्वतन्त्रता का नकारात्मक अर्थ: स्वतन्त्रता की इस अवधारणा में यह माना जाता है कि सब प्रकार के बन्धनों का अभाव ही स्वतन्त्रता है। इस विचारधारा के समर्थकों में समझौतावादी विचारकों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। व्यक्तिवादी विचारक भी इसके समर्थक थे। हॉब्स के अनुसार, “स्वतन्त्रता का अभिप्राय निरोध व नियन्त्रण का सर्वथा अभाव है।”

रूसो भी इसी विचार से प्रभावित थे। व्यक्तिवादी विचारक जे. एस, मिल का कहना है -“अन्त:करण, विचार, धर्म, प्रकाशन, व्यवसाय, दूसरों से सम्बन्ध बनाने के क्षेत्र में व्यक्ति को निर्बाध छोड़ देना चाहिए।” जे. एस. मिल ने इसी सम्बन्ध में कहा है -“राज्य को व्यक्ति के निजी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।” नकारात्मक विचारधारा की मान्यता है कि

  1. प्रतिबन्धों का अभाव स्वतन्त्रता है।
  2. राज्य के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ व्यक्ति की स्वतन्त्रता सीमित होती जाती है।
  3. कम से कम शासन करने वाली सरकार अच्छी सरकार है।
  4. मानव विकास के लिए खुली प्रतियोगिता का सिद्धान्त हितकर है।
  5. सरकार द्वारा समर्थित संरक्षण व्यक्तिगत हित के लिए उचित नहीं है।

स्वतन्त्रता का सकारात्मक अर्थ: स्वतन्त्रता की यह अवधारणा सबके लिए समान स्वतन्त्रता की पक्षधर है। स्पेन्सर के अनुसार-“प्रत्येक व्यक्ति वह सब करने को स्वतन्त्र है जिसकी वह इच्छा करता है यदि वह इस दौरान अन्य व्यक्ति की समान स्वतन्त्रता का हनन नहीं करता हो।” पेन के अनुसार -“स्वतन्त्रता उन बातों को करने का अधिकार है, जो दूसरों के अधिकारों के विरुद्ध न हों।” महात्मा गाँधी भी इसी विचारधारा के समर्थक थे।

महात्मा गाँधी स्वतंत्रता को नियंत्रण के अभाव के रूप में नहीं बल्कि व्यक्तित्व के विकास की अवस्था की प्राप्ति के रूप में देखते हैं। इस रूप में स्वतंत्रता का अर्थ उन परिस्थितियों से सम्बन्ध है, जो व्यक्ति को एक उन्मुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित करें एवं जीवन को सुरक्षित रख सकें। उसको जीवनयापन के संसाधन जुटाने के अवसर प्राप्त हों, वह अपने विचारों को प्रकट कर सके एवं व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सके।
स्वतन्त्रता की सकारात्मक विचारधारा की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं

  1. स्वतन्त्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध आवश्यक है।
  2. समाज एवं व्यक्ति के हित परस्पर निर्भर हैं।
  3. स्वतन्त्रता का वास्तविक स्वरूप राज्य के कानूनों के पालन सन्निहित है।
  4. राजनीतिक एवं नागरिक स्वतन्त्रता का मूल्य आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना निरर्थक है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के विभिन्न प्रकारों को संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
स्वतंत्रता के प्रकार / रूप: स्वतन्त्रता के विविध प्रकार। रूप हैं जिनको निम्नलिखित तरह से समझा जा सकता है
1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता: यह प्रकृति प्रदत्त स्वतन्त्रता है जो व्यक्ति को जन्म के समय ही प्राप्त हो जाती है। राज्य या मानव निर्मित अन्य संस्थाएँ इस स्वतन्त्रता में बाधा उत्पन्न करती हैं। समझौतावादी विचारक – हॉब्स, लॉक, रूसो आदि इसके समर्थक थे।

2. निजी या व्यक्तिगत स्वतन्त्रता: इस स्वतन्त्रता का सम्बन्ध व्यक्ति की जीवन शैली से है। इसका अभिप्राय है यह है कि व्यक्ति को अपने निजी जीवन के कार्यों में स्वतन्त्रता होनी चाहिए। लोकतान्त्रिक देशों में इस प्रकार की स्वतन्त्रता को बहुत महत्व दिया गया है किन्तु जब इसका प्रभाव समाज पर विपरीत पड़ने लगे तो उस पर नियन्त्रण आवश्यक हो जाता है।

3. नागरिक स्वतन्त्रता: हमारे देश में स्वतन्त्रताएँ मौलिक अधिकारों के रूप में संविधान द्वारा प्रदत्त हैं। ये वे स्वतन्त्रताएँ हैं जिन्हें देश का नागरिक होने के कारण समाज स्वीकार करता है और राज्य मान्यता प्रदान कर उनका संरक्षण भी करता है।

4. राजनीतिक स्वतन्त्रतता: राज्य के कार्यों व राजनीतिक व्यवस्था में सहभागिता राजनीतिक स्वतन्त्रता है। गिलक्राइस्ट ने इसे दूसरा लोकतन्त्र कहा है।

5. आर्थिक स्वतन्त्रता: आर्थिक स्वतन्त्रता को सभी प्रकार की स्वतन्त्रताओं का आधार माना गया है। इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति का आर्थिक स्तर ऐसा होना चाहिए जिससे वह बिना किसी वित्तीय चुनौतियों के स्वयं का तथा अपने परिवार का जीवन-यापन आसानी से कर सके। इसमें व्यवसाय चुनने तथा रोजगार की स्वतन्त्रता महत्वपूर्ण है।

6. धार्मिक स्वतन्त्रता: इसका सम्बन्ध व्यक्ति के आन्तरिक विचारों से है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति को किसी धर्म को मानने, आस्था व आचरण की छूट का प्रावधान है।

7. नैतिक स्वतन्त्रता: इसका सम्बन्ध व्यक्ति के चरित्र, नैतिकता तथा औचित्यपूर्ण व्यवहार से है। अन्त:करण और नैतिक गुणों से प्रभावित होकर किया जाने वाला कार्य नैतिक स्वतन्त्रता कहलाता है।

8. सामाजिक स्वतन्त्रता: व्यक्ति के साथ जाति, वर्ण, लिंग, नस्ल, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाना सामाजिक स्वतन्त्रता है। कानून के समक्ष सबको समानता के समान कानूनी संरक्षण प्राप्त हो, यही सामाजिक स्वतन्त्रता है।

9. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता: सम्प्रभु राष्ट्र राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का परिचायक है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के बिना व्यक्ति की अन्य सभी स्वतन्त्रताएँ गौण हैं।

10. संवैधानिक स्वतन्त्रता: यह स्वतन्त्रता नागरिकों को संविधान द्वारा दी जाती है। संविधान इनकी रक्षा की गारण्टी देता है और शासन इनमें कटौती नहीं कर सकता। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में नागरिकों को संवैधानिक उपचारों के अधिकार की व्यवस्था दी गयी है।

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