RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 28 भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ एवं गुटनिरपेक्षता

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ एवं गुटनिरपेक्षता

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सह – अस्तित्व का भावार्थ है
(अ) जीओ और जीनो दो।
(ब) साथ-साथ संघर्ष करो।
(स) सबके साथ राष्ट्र की सीमाएँ मिला दो
(द) अपना अस्तित्व बनाए रखो

प्रश्न 2.
भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य से मेल नहीं खाने वाला कथन है
(अ) उपनिवेशवाद का विरोध
(ब) साम्राज्यवाद का प्रसार
(स) साम्राज्यवाद का विरोध
(द) संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास

प्रश्न 3.
‘शील’ शब्द का भावार्थ है
(अ) मोहर
(ब) लिफाफा बंद करना
(स) आचरण
(द) शिलालेख

प्रश्न 4.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के किस अंग की स्थाई सदस्यता की माँग कर रखी है
(अ) महासभा
(ब) न्यास परिषद्
(स) सुरक्षा परिषद्
(द) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

प्रश्न 5.
गुट – निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक थे
(अ) नेहरू
(ब) नासिर
(स) टीटो।
(द) ये सभी

उतर:
1. (अ), 2. (ब), 3. (स), 4. (स), 5. (द)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय विदेश नीति की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भारतीय विदेश नीति पंचशील सिद्धान्त पर आधारित है।
  2. भारतीय विदेश नीति गुट – निरपेक्षता से सम्बन्धित है।

प्रश्न 2.
पंचशील के दो सिद्धान्त कौन – से हैं ?
उत्तर:
पंचशील के दो सिद्धान्त

  1. अनाक्रमण,
  2. समानता हैं।

प्रश्न 3.
गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य राष्ट्र कौन-से हैं ?
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक सदस्य राष्ट्र हैं-

  1. भारत,
  2.  मिस्र,
  3.  यूगोस्लाविया।

प्रश्न 4.
बांग्लादेश को स्वतंत्रता कब मिली ?
उत्तर:
बांग्लादेश को स्वतंत्रता 1971 में मिली।

प्रश्न 5.
यू.एन.ओ का पूरा नाम बताइए।
उत्तर:
‘United Nations Organization’ UNO का पूरा नाम है, इसे हिंदी में संयुक्त राष्ट्र संघ कहा जाता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचशील के सिद्धांतों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धांत – पंचशील के सिद्धांत आचरण के 5 सिद्धांतों पर आधारित है

  1. पंचशील के सिद्धान्त के अंतर्गत देश एक – दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता तथा सर्वोच्च सत्ता के लिए। पारस्परिक सम्मान की भावना रखते हैं।
  2. इस सिद्धान्त के अन्तर्गत कोई भी अन्य देशों पर बिना कारण के आक्रमण या युद्ध नहीं करता है।
  3. कोई भी देश इस सिद्धान्त के अन्तर्गत एक – दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं अर्थात् अपनी सीमाओं के अनुसार ही कार्य करते हैं।
  4.  इस सिद्धान्त के अंतर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जो भी नीति बनायी जाती है, उसका पालन सभी देश समान रूप से करते हैं, अर्थात् यह सिद्धान्त समानता की अवधारणा पर आधारित है।
  5. यह सिद्धान्त शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व का समर्थन करता है।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद क्या है ?
उत्तर:
उपनिवेशवाद से अभिप्राय – उपनिवेशवाद की अवधारणा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को इंगित करती है जिसमें एक विदेशी समाज दूसरे समाज पर राजनीतिक विजय द्वारा सांस्कृतिक प्रभुत्व सहित जबरदस्ती सामाजिक परिवर्तन को थोपता है। उपनिवेशवाद का सम्बन्ध एक विशिष्ट प्रकार के ऐसे औद्योगिक पूँजीवाद से होता है जिसमें वित्तीय एकाधिकार के साथ – साथ पूँजी का एक – दूसरे राष्ट्रों में प्रवाह होता है।

प्रादेशिक विस्तार के रूप में, उपनिवेशवाद विकासशील वैश्विक पूँजीवादी व्यवस्था में असमान विकास के एक रूप में साथ-साथ बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय श्रम-विभाजन को प्रकट करता है। उपनिवेशवाद के युग की शुरुआत एशिया, अफ्रीका, लैटिन, अमेरिका और विश्व के अन्य भागों में 15 व शताब्दी में यूरोपीय देशों के अपने राज्यों के विस्तार की महत्त्वकांक्षाओं से हुई थी।

प्रश्न 3.
रंगभेद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
रंगभेद से आशय – रंगभेद की नीति भेदभाव की नीति पर आधारित व्यवस्था है। कठोर प्रजातीय आधार पर पृथकत्व, शोषण एवं घोर दमन की व्यवस्था को प्रजाति-पार्थक्य या रंगभेद का नाम दिया जाता है। इसका व्यापक प्रयोग सर्वप्रथम (1948 में) दक्षिणी अफ्रीका में हुआ था, किन्तु सन् (1994) के बहु प्रजातिक राष्ट्रीय चुनावों के बाद स्थापित प्रजातंत्रात्मक सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से अब वहाँ भी इसे समाप्त कर दिया गया है। पश्चिमी देशों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी अभी कुछ समय पूर्व तक काले-गोरे के आधार पर भेदभाव तथा शोषण विद्यमान था। ‘नेल्सन मंडेला’ को भी रंगभेद का सामना करना पड़ा था।

प्रश्न 4.
गुट – निरपेक्षता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता का अर्थ – गुटनिरपेक्षता के लिए असंलग्नता, गुटनिरपेक्षता तथा तटस्थता आदि विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस शब्द का प्रयोग तो प्रायः उस राष्ट्र की उस नीति के लिए होता है, जो किसी युद्ध के दौरान दोनों पक्षों में से किसी का साथ नहीं देता अर्थात् दोनों में से किसी पक्ष की ओर से युद्ध में सम्मिलित नहीं होता है।

गुटनिरपेक्षता का स्पष्ट अभिप्राय है कि किसी भी देश विशेष के साथ सैनिक गुटबंदी में शामिल न होना, पश्चिमी व पूर्वी गुट के किसी भी देश विशेष के साथ सैनिक दृष्टि से न बँधना, किसी भी प्रकार की आक्रामक संधि से अलग रहना, शीत युद्ध से पृथक रहना तथा राष्ट्रीय हित का ध्यान रखते हुए न्यायोचित ढंग से अपनी विदेश नीति का संचालन करना आदि।

प्रश्न 5.
सह – अस्तित्व के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सह – अस्तित्व का सिद्धांत – भारतीय विदेश नीति का सार ‘शांतिपूर्ण तरीके से किया गया सह – अस्तित्व की भावना है”। सह – अस्तित्व का अर्थ है – बिना किसी द्वेष – भाव के मित्रतापूर्ण तरीके से एक देश का दूसरे देश के साथ रहना तथा संकट के समय उसकी सहायता करना। यदि देश आपस में मैत्रीपूर्ण तरीके से नहीं रहेंगे तो विश्व में शांति की स्थापना नहीं हो पाएगी, तथा हर तरफ आंदोलन व कलह – केन्द्र ही बनते हुए दिखायी देंगे। इस कारण समाज के विकास के लिए विभिन्न देशों का एक – दूसरे के साथ रहना आवश्यक है।

भारत पंचशील व गुटनिरपेक्षता नीति के माध्यम से सह – अस्तित्व की धारणा में विश्वास रखता है। पंचशील के सिद्धान्त ‘सह – अस्तित्व को बढ़ावा देने का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण आधार है। ‘सह – अस्तित्व’ के पाँच सिद्धान्तों की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की थी।.

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ – भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व की नीति-भारत की विदेश नीति शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व की नीति की समर्थक है। अर्थात् वह सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण नीति का अनुसरण करता है। जिससे समाज में शांति – व्यवस्था स्थापित हो सके। शांति एवं सह – अस्तित्व हमारी भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र हैं। जीओ और जीने दो ही मूल स्रोत हैं हमारी संस्कृति के, जो आज भी हमारे देश की आतंरिक एवं विदेश नीति को दिशा प्रदान करते हैं।

(2) साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध – साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतंत्रता का अपहरण कर उनका शोषण करते हैं संघर्ष व युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवाद वे उपनिवेशवाद का शिकार रहा है। इसलिए भारत की विदेश नीति साम्राज्यवाद व उपनिवेशवादी अवधारणा की विरोधी है। उपनिवेशवादी अवधारणा व्यक्ति व समाज को संकीर्ण विचारधारा की ओर अग्रसर करती है, जिससे समाज का संपूर्ण विकास अवरुद्ध हो जाता है और वह प्रगति नहीं कर पाता है।

(3) रंगभेद का विरोध-भारत की विदेश नीति रंगभेद की नीति की प्रबल विरोधी है। यह समस्त देशों में इस भावना को विरोधी मानते हुए इसे पूर्ण रूप से नकार देती है। इसके अंतर्गत लोगों के साथ रंग के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता है तथा सभी को समान रूप से स्वीकार किया जाता है।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का समर्थन-भारत की विदेश नीति अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का खुलकर समर्थन करती है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने इसकी सदस्यता को स्वीकार कर इसके विभिन्न कार्यक्रमों व एजेन्सियों में अपनी भागीदारी को सार्थक सिद्ध किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का दावा व अंतर्राष्ट्रीय मंचों का समर्थन हमारी विदेश नीति की सफलता का द्योतक है।

(5) पंचशील के सिद्धान्त पर आधारित नीति-पंचशील सिद्धान्त भारत की विदेश नीति की एक मुख्य विशेषता है जो पाँच आचरण के सिद्धान्तों पर आधारित है जिसके अंतर्गत समानता, अनाक्रमण, किसी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, सबकी सत्ता के लिए पारस्परिक सम्मान व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पक्ष शामिल है।

(6) गुट – निरपेक्षता की नीति – द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। इसमें से एक पश्चिमी देशों का गुट था और दूसरा साम्राज्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने साथ लाने के काफी प्रयास किए लेकिन भारत ने दोनों प्रकार के सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी सैनिक गठबंधन का सदस्य नही बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा और प्रत्येक राष्ट्रीय महत्व के प्रश्न पर स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।

प्रश्न 2.
“शक्ति गुटों के विधुवीकरण के पश्चात् गुट – निरपेक्षता की नीति अप्रासंगिक होती जा रही है।” इस कथन के आलोक में गुट – निरपेक्षता की नीति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता की नीति शीत युद्ध के संदर्भ में विकसित हुई थी। शीत युद्ध के अंत और सोवियत संघ के विघटन के पश्चात गुट-निरपेक्ष आंदोलन के औचित्य पर प्रश्न चिह्न लगने लगे हैं। आलोचकों के अनुसार गुट – निरेपक्षता की प्रासंगिकता और प्रभावकारिता में थोड़ी कमी आयी है।

वस्तुतः सत्यता यह है कि गुट निरपेक्ष का तात्पर्य विदेश नीति की स्वतंत्रता से है एवं इसका उद्देश्य संप्रभु राष्ट्रों की समानताव उनकी सम्प्रभुता व अखण्डता को सुरखित रखना है। इस संदर्भ में इसको औचित्य स्वयंसिद्ध हो जाता है।

पहले शीत युद्ध के समय या द्वि – ध्रुवीय व्यवस्था में या यूं कहे कि संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ दो महाशक्तियों के गुटों से पृथक रहने के लिए नव स्वतंत्र देशों ने गुट – निरेपेक्ष आंदोलन की सदस्यता ली ताकि ये दो महाशक्तियाँ इन देशों पर अनुचित प्रभाव नहीं डाल सके एवं विश्व में शांति बनी रहे। दोनों गुटों के बीच संतुलन बना रहे एवं युद्ध की स्थिति उत्पन्न न हो।

लेकिन उत्तर शीत युद्ध या एक-ध्रुवीय विश्व में गुट – निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों में बदलाव आया और गुट – निरपेक्ष आंदोलन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि

1. विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं व चुनौतियों, मानवाधिकार, विश्व-व्यापार, वार्ताएं, जलवायु परिवर्तन अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधार के संदर्भ में सदस्य विकासशील देशों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने हेतु एक प्रभावी मंच की आवश्यकता है। गुट-निरपेक्ष आंदोलन इसी मंच के रूप में कार्य कर रहा है।

2. यद्यपि सोवियत संघ के विघटन के बाद शीत युद्ध की समाप्ति हो गई है एवं द्विध्रुवीय व्यवस्था भी समाप्त हो गई। है, लेकिन गरीब व कमजोर राष्ट्रों की सुरक्षा व संप्रभुता की चुनौतियाँ कम नहीं हुई हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में एक ध्रुवीय व्यवस्था के लक्षण पनप रहे है। अतः विकासशील देशों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए भी गुट – निरपेक्ष आंदोलन को जारी रखने का औचित्य है। भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ एवं गुट निरपेक्षता

3. वर्तमान में भी विश्व की मुख्य चुनौतियों का सामना करने के लिए गुट – निरपेक्ष आंदोलन प्रभावशाली है। यह एक ऐसा मंच है जो विश्व के विकासशील राज्यों को एक समान भागीदारी प्रदान करता है एवं जो विश्व की प्रमुख चुनौतियों; जैसे – सुरक्षा के खतरें, पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य समस्याएं आदि का प्रभावी ढंग से सामना कर सकें।

4. विश्व – व्यवस्था के अनेक अभिकरण ऐसे है, जिनके निर्णय – निर्माण में विकासशील देशों की पर्याप्त भूमिका नहीं है। अत: विश्व की विभिन्न संस्थाओं में विकासशील देशों को अधिक प्रभावी प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता है। इस संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं पर गुट-निरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से विशेष रूप से है यान दिए जाने की आवश्यकता है।

5. गुट – निरपेक्ष आंदोलन विश्व के विभिन्न देशों के मध्य सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों के परस्पर आदान – प्रदान के लिए भी सार्थक है।

6. गुट – निरपेक्षता का अर्थ है सैन्य गुटों से पृथक रहना। विश्व में नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता आज भी है जिसे गुट – निरपेक्ष आंदोलन दोहराता रहा है ताकि विश्व में शांति बनी रहे।

7. बड़े एवं पूँजीवादी देशों से सुरक्षा के लिए भी विकासशील देशों को एक आंदोलन की आवश्यकता है।

8. अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने अस्तित्व एवं पहचान को बनाए रखने के लिए भी गुट – निरपेक्ष आंदोलन की वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व में प्रासंगिकता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28  अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘स्वतंत्र विदेश नीति’ का संकल्प किसका था?
(अ) पं. नेहरू का
(ब) गाँधी जी का
(स) भगत सिंह का
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 2.
विश्व का दो गुटों में विभाजन किस युद्ध के पश्चात् हुआ?
(अ) प्रथम विश्व युद्ध
(ब) द्वितीय विश्व युद्ध
(स) तृतीय विश्व युद्ध
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 3.
अरब इजराइल युद्ध किस वर्ष हुआ था?
(अ) 1947
(ब) 1957
(स) 1967
(द) 1977

प्रश्न 4.
भारत – पाक युद्ध कब हुआ था?
(अ) 1935
(ब) 1945
(स) 1955
(द) 1965

प्रश्न 5.
भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र क्या है?
(अ) करो या मरो
(ब) जैसे के साथ तैसा व्यवहार
(स) जीओ और जीने दो।
(द) कोई भी नहीं।

प्रश्न 6.
पंचशील का सिद्धान्त किससे संबंधित है?
(अ) असमानता
(ब) समानता
(स) भेदभाव की नीति
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 7.
निम्न में से कौन – सा कथन असत्य है
(अ) किसी देश की विदेश नीति उस देश के विश्व के अन्य देशों के साथ संबंध पर आधारित होती है।
(ब) भारत की विदेश नीति की जड़ें 1947 में हैं जब भारत स्वतंत्र हुआ था।
(स) राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी मुद्दे विदेश नीति के तहत आते हैं।
(द) शीत युद्ध के मध्य में स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न राज्य के रूप में भारत के जन्म ने विदेश, नीति को प्रभावित किया।

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन – सा कथन गुट – निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
(अ) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ब) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(स) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार।
(द) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।

प्रश्न 9.
बाड्ग सम्मेलन कब हुआ?
(अ) 1989
(ब) 1961
(स) 1955
(द) 1950

प्रश्न 10.
गुट – निरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन कब हुआ?
(अ) 1961
(ब) 1955
(स) 1989
(द) 1960

प्रश्न 11.
गुट – निरपेक्ष देशों का पहला शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(अ) बैडिंग
(ब) बेलग्रेड
(स) नई दिल्ली
(द) यूगोस्लाविया

प्रश्न 12.
कितने विकासशील देशों ने बेलग्रेड सम्मेलन में मुलाकात की?
(अ) 23
(ब) 24
(स) 25
(द) 28

प्रश्न 13.
सोवियत संघ का विघटन किस वर्ष हुआ?
(अ) 1988
(ब) 1989
(स) 1990
(द) 1991

प्रश्न 14
शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन – सा कथन गलत है?
(अ) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथ के देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ब) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(स) शीत युद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(द) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

प्रश्न 15.
‘विमुद्रीकरण’ क्या है?
(अ) समझौता
(ब) निर्णय
(स) लक्ष्य
(द) नीति

प्रश्न 16.
किस देश के लिए ‘ऑपरेशन नीर’ संचालित किया गया था?
(अ) मालद्वीप
(ब) रूस
(स) भूटान
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 17.
सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला कौन – सा देश है?
(अ) भारत
(ब) चीन
(स) जापान
(द) कोरिया

प्रश्न 18.
किस देश में शिया विचारधारा का वर्चस्व अधिक है?
(अ) इराक
(ब) ईरान
(स) सऊदी अरब
(द) कोई भी नहीं।

प्रश्न 19.
निम्न में से किस देश का संबंध एक्ट ईस्ट नीति से है?
(अ) चीन
(ब) जापान
(स) भारत
(द) रूस

प्रश्न 20.
भारत का परम्परागत मित्र रहा है
(अ) रूस
(ब) चीन
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
(द) जर्मनी।

उतर:
1. (अ), 2. (ब), 3. (स), 4. (द), 5. (स), 6. (ब), 7. (स), 8. (द), 9. (स),
10. (अ), 11. (ब), 12. (स), 13. (स), 14. (ब), 15. (ब), 16. (अ), 17. (अ),
18. (ब), , 19. (स), 20. (अ)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के दो लक्ष्य बताइए।
उत्तर:

  1. राष्ट्र की एकता व अखंडता की सुरक्षा करना।
  2. साम्राज्यवाद्, नस्लवाद, निरंकुशतावाद एवं सैन्यवाद का विरोध करना।

प्रश्न 2.
भारतीय विदेश नीति का मूल मंत्र क्या है?
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का मूल – मंत्र गुट – निरपेक्ष है। गुट – निरपेक्षता का अर्थ है – किसी सैन्य गुट में सम्मिलित न होना।

प्रश्न 3.
भारत में विदेश नीति का निर्माता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू को भारत में विदेश नीति का निर्माता माना जाता है।

प्रश्न 4.
मिस्र पर हमला कब हुआ था ?
उत्तर:
1956 में मिस्र पर हमला हुआ था।

प्रश्न 5.
भारत ने किस नीति का सदैव विरोध किया है ?
उत्तर:
भारत ने महाशक्तियों की प्रसारवादी नीति का सदैव विरोध किया है।

प्रश्न 6.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन को आरंभ करने वाले देशों व उनके नेताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्ष आंदोलन को आरंभ करने वाले देश एवं नेता थेः भारत के जवाहरलाल नेहरू मिस्र के नासिर एवं यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो।

प्रश्न 7.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन सर्वप्रथम कब अस्तित्व में आया था ?
उत्तर:
गुट – निरपेक्ष आंदोलन सर्वप्रथम 1955 में बाडुंग सम्मेलन में अस्तित्व में आया था।

प्रश्न 8.
बेलग्रेड सम्मेलन कब आयोजित हुआ था?
उत्तर:
1961 ई. में बेलग्रेड सम्मेलन आयोजित हुआ था।

प्रश्न 9.
7वाँ गुट – निरपेक्ष आंदोलन किस वर्ष हुआ था?
उत्तर:
7वाँ गुटनिरपेक्ष आंदोलन 1988 ई. में हुआ था।

प्रश्न 10.
भारत ने किस शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी?
उत्तर:
1988 में दिल्ली में आयोजित 7वें गुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत ने की। थी ।

प्रश्न 11.
17 वाँ गुट – निरपेक्ष आंदोलन किस शहर में हुआ था ?
उत्तर:
17वाँ गुट – निरपेक्ष आन्दोलन ‘वेलेजुएला के मारगरीता’ शहर में सम्पन्न हुआ था।

प्रश्न 12.
गुट – निरपेक्षता की नीति का जन्म किस कारण से हुआ था?
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता की नीति का जन्म शीतयुद्ध के समय विश्व के दो शक्ति केन्द्रों में विभाजन के कारण हुआ था।

प्रश्न 13.
विश्व में अमेरिका केन्द्रित एक ध्रुवीय व्यवस्था कब स्थापित हुई ?
उत्तर:
सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी गुट के 1990 में विघटन के बाद विश्व में अमेरिका केन्द्रित एक ध्रुवीय व्यवस्था स्थापित हुई।

प्रश्न 14.
16वाँ शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
16वाँ शिखर सम्मेलने अगस्त 2012 में ईरान की राजधानी तेहरान में हुआ था।

प्रश्न 15.
भारत की विदेश नीति में गुट – निरपेक्षता को अपनाने का एक प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत किसी एक गुट से जुड़कर विश्व में तनाव की स्थिति उत्पन्न करने का पक्षधर नही रहा है।

प्रश्न 16.
वर्तमान सरकार किस परम्परा के अनुरूप विदेश नीति के अनुपालन पर बल देती है?
उत्तर:
वर्तमान सरकार वसुधैव कुटुम्बकम् की परम्परा के अनुरूप विदेश नीति के अनुपालन पर बल देती है।

प्रश्न 17.
भारत की वर्तमान विदेश नीति किस नीति का अनुसरण करेगी?
उत्तर:
आतंकवाद के प्रति शून्य सहृदयता (जीरो टोलरेन्स) की नीति का।

प्रश्न 18.
वर्तमान सरकार की विदेश नीति को प्रेरित करने वाले कोई दो मूल सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  1. निरन्तर वार्ता
  2. राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन।

प्रश्न 19.
भारत ने ‘आपरेशन नीर’ किस देश में संचालित किया था?
उत्तर:
मालद्वीव में।

प्रश्न 20.
विश्व का तीसरा सबसे बड़ा खनिज तेल आयातक देश कौन – सा है?
उत्तर:
भारत।

प्रश्न 21.
ISIS का पूर्ण नाम क्या है ?
उत्तर:
Islamic State of Iraq & Syria को ISIS के नाम से जाना जाता है जो कि ईराक व सीरिया में सक्रिय है।

प्रश्न 22.
भारत और रूस के परम्परागत संबंधों में पुरानी प्रगाढ़ता में कमी आने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. सोवियत संघ को विघटन होना,
  2. भारत द्वारा समाजवादी अर्थव्यवस्था के स्थान पर बाजारोन्मुखी वैश्वीकरणं की अर्थव्यवस्था को अपनाना।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं / लक्षण लिखिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं  / लक्षण – भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं / लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व की नीति।
  2. उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विरोध करना।
  3. रंगभेद का विरोध करना।
  4. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को समर्थन प्रदान करना।
  5. पंचशील के सिद्धान्तों में आस्था रखना।
  6.  गुट – निरपेक्षता की नीति का पालन करना।
  7.  नि:शस्त्रीकरण का समर्थन करना।
  8. समय के अनुरूप गतिशील विदेश नीति।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति व विकास करना है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा का समर्थन करना तथा पारस्परिक मतभेदों के शान्तिपूर्ण समाधान का प्रयत्न करना।
  2. शस्त्रों की होड़ – विशेष तौर से आण्विक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना व व्यापक नि:शस्त्रीकरण का समर्थन करना।
  3. राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना जिससे राष्ट्र की स्वतन्त्रता व अखण्डता पर मंडराने वाले हर प्रकार के खतरे को रोका जा सके।
  4. विश्वव्यापी तनाव दूर करके पारस्परिक समझौते को बढ़ावा देना एवं संघर्ष-नीति व सैन्य-गुटबाजी का विरोध करना।
  5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद, पृथकतावाद एवं सैन्यवाद का विरोध करना।
  6. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं पंचशील के आदर्शों को बढ़ावा देना।
  7. विश्व के समस्त राष्ट्रों, विशेष रूप से पड़ोसी राष्ट्रों, के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना।
  8.  राष्ट्रों के बीच संघर्ष पूर्ण वातावरण को कम करना एवं उनमें परस्पर सूझ-बूझ व मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना।

प्रश्न 3.
‘शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व’ से आप क्या समझते हैं? अथवा भारतीय विदेश नीति के सार ‘शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व’ का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का सार “शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व” है। शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व का अर्थ है बिना किसी मनमुटाव के मैत्रीपूर्ण ढंग से एक देश का दूसरे देश के साथ रहना। यदि भिन्न राष्ट्र एक – दूसरे के साथ पड़ोसियों की तरह नहीं रहेंगे तो विश्व में शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती। शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व विदेश नीति को एकमात्र सिद्धान्त ही नहीं है बल्कि यह राज्यों के बीच व्यवहार का एक तरीका भी है।

भारत एशिया की महाशक्ति बनने की इच्छा नहीं रखता है एवं पंचशील और गुट – निरपेक्षता की नीति से समर्थित शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व में आस्था रखता है। पंचशील के सिद्धान्त हमारी विदेशी नीति के मूलाधार हैं। पंचशील के ये सिद्धान्त ऐसे हैं कि यदि इन पर विश्व के सभी देश अमल करें तो शान्ति स्थापित हो सकती है।

पंचशील के इन सिद्धांतों में से एक प्रमुख सिद्धान्त है “शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व के सिद्धान्त को मानना’ शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों यानि पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की।

प्रश्न 4.
भारत की विदेश नीति जातिवाद एवं रंगभेद का विरोध करती है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जातिवाद एवं रंगभेद का विरोध – भारत की विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता जाति – भेद व रंग – भेद का विरोध करना है। भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसने संयुक्त राष्ट्र संघ में जातीयता एवं रंगभेद की नीति का सबसे प्रबल विरोध किया है। जातिगत भेदभाव के औचित्य पर भारत के द्वारा इतनी दृढ़ एवं शक्तिशाली प्रतिक्रिया भारत की गुट – निरपेक्षता की नीति के कारण ही सफल हो सकी।

यूरोप की श्वेत जातियों ने अन्य अश्वेत जातियों के साथ दुर्व्यवहार किया है, उन्हें हीन – दृष्टि से देखा है एवं उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया है। भारत में भी अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ बड़े अत्याचार किये थे। भारत ने स्वतंत्र होने के पश्चात् अफ्रीका के अश्वेत लोगों के साथ यूरोप की श्वेत जातियों द्वारा किए जाने वाले भेदभाव का कड़ा विरोध किया।

रोडेशिया (जिम्बाम्बे) एवं दक्षिण अफ्रीका के गोरे शासन की नीतियों का भारत ने खुलकर विरोध किया एवं अफ्रीकी जनता के स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग दिया। इतना ही नहीं, अफ्रीकी देशों और विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका की गोरी अल्पसंख्यक सरकार की अश्वेतों के विरुद्ध रंगभेद नीति के संबंध में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से कठोर रुख अपनाने का आग्रह किया। भारत के प्रयासों के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र ने रंगभेद की नीति के विरुद्ध अनेक प्रस्ताव भी पारित किए हैं।

प्रश्न 5.
भारत की विदेश नीति की एक विशेषता के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए विदेश नीति निर्धारित करनी पड़ती है। सामान्य शब्दों में, विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है, जो एक देश द्वारा अन्य देशों के प्रति अपनाई जाती है। भारत ने भी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। इसकी अनेक विशेषताएं हैं और उनमें से एक विशेषता है-अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण समाधान। इस कार्य के सफलतापूर्वक संचालन हेतु भारत ने विश्व को पंचशील के सिद्धान्त दिए एवं हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन किया।

समय – समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शान्ति – प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की। जैसे – स्वेज नहर की समस्या, हिन्द – चीन का प्रश्न, वियतनाम की समस्या, कांगों की समस्या, साइप्रस की समस्या, भारत – पाकिस्तान युद्ध, ईरान – इराक युद्ध आदि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए भारत ने भरसक प्रयत्न किए एवं अपने अधिकांश प्रयत्नों में सफलता भी प्राप्त की।

प्रश्न 6.
पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार गुट – निरपेक्षता का अर्थ – पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार गुट-निरपेक्षता नकारात्मक, तटस्थता, अप्रगतिशील अथवा उपदेशात्मक नीति नहीं है, इसका अर्थ सकारात्मक है अर्थात् जो उचित और न्यायसंगत है उसकी सहायता तथा समर्थन करना एवं जो अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है उसकी आलोचना तथा निन्दा करना। आगे नेहरू जी ने इस नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि यदि स्वतंत्रता का हनन एवं न्याय की हत्या होती है अथवा कहीं आक्रमण होता है तो वहाँ हम न तो आज तटस्थ रह सकते हैं न ही भविष्य में रहेंगे।

प्रश्न 7.
क्या गुट – निरपेक्षता और तटस्थता एक ही हैं ? बताइए।
उत्तर:
अधिकांश लोग गुट निरपेक्षता का तात्पर्य तटस्थता समझ बैठते हैं जोकि पूर्णतः असत्य है। गुट – निरपेक्षता एक नीति है जबकि तटस्थता एक स्थिति है जो सिर्फ उसी समय होती है जब किन्हीं राज्यों के मध्य युद्ध चल रहा हो, अन्यथा तटस्थता का औचित्य ही नहीं है। गुट – निरपेक्षता का क्षेत्र काफी व्यापक है जबकि तटस्थता वह शब्द है।

जो इसी में ही समाहित है। स्वयं पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने एक भाषण में यह स्पष्ट कर दिया था कि ”गुट – निरपेक्षता का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि हम चुप रहेंगे। जहाँ भी अन्याय होगा, स्वतंत्रता को खतरा होगा या किसी पर आक्रमण किया जाएगा, हम उसका विरोध करेंगे और ऐसे समय में हम तटस्थ भी नहीं रहेंगे।”

प्रश्न 8.
भारत की विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता को अपनाने के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति गुट – निरपेक्षता को अपनाने के कारण-भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता को अपनाने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. भारत के प्रारंभिक नेतृत्व की गुट – निरपेक्षता की नीति में अटूट श्रद्धा व विश्वास था।
  2.  गुट – निरपेक्षता की नीति भारत की सामरिक, सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक मांगों के अनुरूप थी।
  3.  गुट – निरपेक्षता की नीति भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व विविधतापूर्ण बहुलवादी संस्कृति के लिए अनुकूल थी।
  4. भारत किसी एक गुट से जुड़कर विश्व में तनाव की स्थिति उत्पन्न करने का पक्षधर नहीं रहा है।
  5. भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतंत्र नीति (जो अन्य शक्ति के प्रभाव से मुक्त हो) के अनुसरण को अपने लिए अधिक उपयोगी मानता है।
  6. भारत अपने आर्थिक विकास के लिए दोनों ही शक्तियों से समानता के संबंध बनाए रखने को समर्थक रहा है।

प्रश्न 9.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन के उदय के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्ष आंदोलन विशेष परिस्थितियों में प्रारंभ हुआ था। आरंभ में गुट – निरपेक्षता भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण सार थी परंतु बाद में संसार का दो बड़े गुटों (अमेरिकी गुट एवं सोवियत संघ गुट) में बंट जाने से इस गुट-निरपेक्षता ने एक आंदोलन का रूप धारण कर लिया। तब कुछ और देशों ने भी गुट – निरपेक्षता को सैनिक गुटों में बंटे संसार के लिए शांति का दूत बना लिया। युद्ध के निकट आने वाले संसार को गुट – निरपेक्षता की आवश्यकता थी। सैनिक हथियारों की होड़ करने वाले देशों को गुट – निरपेक्षता की आवश्यकता थी। भारत ने यह विदेश नीति व आंदोलन दोनों संसार को दिए थे।

प्रश्न 10.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन के उदय में भारत की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
जब भारत स्वतंत्र हुआ तब भारत ने गुट-निरपेक्षता को अपनी विदेश नीति का सार बना लिया था। इसका अर्थ यह है कि भारत ने अपनी विदेशी नीति में इस तथ्य को सम्मिलित कर लिया कि वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य नहीं बनेगा। अपनी गुट – निरपेक्षता की विदेशी नीति को भारत ने एक नया आकार एवं नई दिशा प्रदान की। भारत ने गुट – निरपेक्षता को एक आंदोलन का रूप दिया। मिस्र के नासिर, इंडोनेशिया के डाँ. सुकर्णो, यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने भारत के जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर गुट-निरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। 1961 में प्रथम गुट-निरपेक्ष आंदोलन हुआ जिसमें 25 देशों ने भाग लिया था। अब यह आंदोलन इतना बढ़ चुका है कि 114 देश इसके सदस्य हैं।

प्रश्न 11.
गुट – निरपेक्षता की नीति किन – किन सिद्धान्तों पर आधारित है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने गुट – निरपेक्षता की नीति को अपनाया। भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनाई है। गुट – निरपेक्ष आंदोलन को जन्म देने एवं उसको बनाए । रखने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गुट – निरपेक्षता की नीति मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है

  1. गुट – निरपेक्ष राष्ट्र दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी स्वतंत्र नीति अपनाते हैं। गुण – दोषों के आधार पर दोनों गुटों का समर्थन या आलोचना करते हैं।
  2. गुट – निरपेक्ष राष्ट्र सभी राष्ट्रों से मैत्री-संबंध स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं, इन्हें तटस्थ रहने की कोई विधिवत् औपचारिक घोषणा नहीं करनी पड़ती।।
  3. गुट – निरपेक्ष राष्ट्र युद्ध किसी पक्ष से सहानुभूति अवश्य रख सकते हैं। ऐसी स्थिति में वे सैनिक सहायता के स्थान पर घायलों के लिए दवाइयां व चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध
    करा सकते हैं।
  4.  गुट – निरपेक्ष राष्ट्र निष्पक्ष रहते हैं। वे युद्धरत देशों को अपने क्षेत्र में युद्ध करने की अनुमति नहीं देते एवं न ही उन्हें किसी अन्य देश के साथ युद्ध करने हेतु सामरिक सुविधा प्रदान करते हैं।
  5. गुट – निरपेक्ष राष्ट्र किसी प्रकार की सैनिक संधि या गुप्त समझौता कस्के किसी भी गुटबंदी में शामिल नहीं होते है।

प्रश्न 12.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्य या सिद्धान्त कौन से हैं?
उत्तर:
गुट – निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्य एवं सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
1. विश्व – शान्ति बनाये रखना – गुट – निरपेक्ष देश सैनिक गुटों से इसलिए अलग रहते हैं कि वे विश्व में अशान्ति के वातावरण को रोक सकें और यदि कहीं युद्ध छिड़ गया है तो वे बीच में पड़कर दोनों पक्षों में फैसला करवाकर शान्ति स्थापित कर सकें।

2. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को समाप्त करना – उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद ने शोषण की प्रवृत्ति को जन्म दिया है। इसलिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अन्तर्गत इनको जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए निरन्तर प्रयत्न किये जाते हैं।

3. सह – अस्तित्व या सभी देशों से मिलकर रहना – गुटनिरपेक्ष आंदोलन लड़ाई – झगड़े की भावना के बिल्कुल विरुद्ध है। वह तो मेल – मिलाप और सह – अस्तित्व की भावना में विश्वास करता है।

4. रंगभेद की नीति का खण्डन – गुटनिरेपक्ष आंदोलन समानता के सिद्धान्त में विश्वास करता है। यह रंगभेद की नीति का बड़ा विरोधी है। उसने इसका खण्डन भी किया है। दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद की नीति का इस आंदोलन ने खूब विरोध किया हैं यह इस आंदोलन के दबाव का ही परिणाम था कि दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने रंगभेद की नीति का मार्ग छोड़कर अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के नेता नेल्सन मण्डेला को जेल से मुक्त कर दिया और रंग-भेद की नीति के बहुत से कानूनों को रद्द कर दिया।

5. मानव – अधिकारों में विश्वास – गुट – निरपेक्ष आंदोलन मानव – अधिकारों का पूर्ण आदर करता है; क्योंकि यदि आज का मानव स्वतंत्र नहीं है तो उसकी अन्य सभी उपलब्धियाँ बेकार हैं।

प्रश्न 13.
गुट – निरपेक्ष आंदोलन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान विश्व के संदर्भ में गुटनिरपेक्षता का व्यापक महत्व है जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. गुट – निरपेक्षता ने तृतीय विश्व युद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  2. गुट – निरपेक्ष राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं।
  3. गुट – निरपेक्षता के कारण ही विश्व की दोनों महाशक्तियों के मध्य शान्ति बनी रही।
  4. गुट – निरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
  5. गुट – निरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में एक – दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
  6.  गुट – निरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
  7. यह आंदोलन निर्धन एवं पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दे रहा है।
  8. गुट – निरपेक्ष आंदोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतंत्र कराने और रंगभेद की नीति का विरोध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 14.
गुट – निरपेक्षता की नीति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता की नीति की प्रमुख विशेषताएँ – गुट – निरपेक्षता की नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह नीति विश्व राजनीति में स्वतंत्र नीति के अनुगमन पर बल देती है।
  2. यह नीति सभी गम्भीर अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निरपेक्ष, पूर्वाग्रह रहित, स्वतंत्र व वस्तुनिष्ठ रुख अपनाने की वकालत करती है।
  3. यह नीति तटस्थता की नीति नहीं है, बल्कि विश्व राजनीति की जटिल गुटीय प्रभावशीलता से मुक्त एक स्वतंत्र नीति है।
  4. यह नीति अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्वक वे अहिंसक समाधान की पक्षधर है।
  5. यह नीति शीतयुद्ध के समय के दो शक्तिशाली गुटों से दूर रहने पर बल देती थी।
  6. यह नीति अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का गुण-दोष के आधार पर आकलन वस्तुनिष्ठ निर्णय करने की पक्षधर रही है।
  7.  गुट – निरपेक्षता की नीति विरोधी गुटों के मध्य संतुलन बनाये रखने पर बल देती है।
  8. यह नीति अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं से पृथक् रहने की नीति नहीं है, बल्कि विश्व-राजनीति में सार्थक योगदान प्रदान करने वाली नीति है।

प्रश्न 15.
‘आज भी विश्व की प्रमुख चुनौतियों का सामना करने के लिए गुटनिरपेक्षता आंदोलन प्रभावशाली है।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि आज भी विश्व की प्रमुख चुनौतियों का सामना करने के लिए गुट – निरपेक्षता आंदोलन प्रभावशाली है – यह एक ऐसा मंच है जो विश्व के विकासशील देशों को एक समान भागीदारी प्रदान करता है जिससे कि वे विश्व की प्रमुख चुनौतियों; जैसे सुरक्षा के खतरे, पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य समस्याएं आदि का प्रभावी ढंग से सामना कर सकें। विश्व – व्यवस्था के अनेक अभिकरण ऐसे हैं जिनके निर्णय-निर्माण में विकासशील देशों की पर्याप्त भूमिका नहीं है।

अतः विश्व की विभिन्न संस्थाओं में विकासशील देशों को अधिक प्रभावी प्रतिनिधित्व प्रदान करने की आवश्यकता है। इस संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं पर गुट निरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन विश्व के विभिन्न देशों के मध्य राजनीतिक व सांस्कृतिक, सामाजिक मूल्यों के परस्पर आदान-प्रदान के लिए भी उपयोगी है।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण के युग में गुटनिरपेक्षता आंदोलन अपनी परम्परागत महत्ता खो चुका है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता की नीति का अर्थ है कि विश्व के किसी भी गुट का साथ, जिसका स्वरूप सैनिक हो, के साथ जुड़ाव न रखना; नाटो, सीटो व वारसा संगठनों जैसे सैनिक गठबंधनों में शामिल न होकर अलग रहना। यह ऐसी नीति है जो विश्व राजनीति में स्वतंत्र नीति के अनुगमन पर बल देती है। यह नीति सभी गम्भीर अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निरपेक्ष, पूर्वाग्रह रहित, स्वतंत्र व वस्तुनिष्ठ रुख अपनाने की वकालत करती है। यह नीति तटस्थता की नीति नहीं है बल्कि राजनीति की जटिल गुटीय प्रभावशीलता से मुक्त एक स्वतंत्र नीति है।

राजनीति वैज्ञानिकों का मत है कि गुट निरपेक्षता की नीति का जन्म शीत युद्ध के समय विश्व के दो शक्तिकेन्द्रों में विभाजन के कारण हुआ था जिसमें एक का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका कर रहा था तो दूसरे का नेतृत्व पूर्व सोवियत संघ ।

सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी गुट के 1990 में विघटन के पश्चात् विश्व में अमेरिका केन्द्रित एक ध्रुवीय व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। उनके अनुसार वैश्वीकरण के युग में गुट – निरपेक्षता आंदोलन अपनी परम्परागत महत्ता खो चुका है और वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की मांगों के अनुरूप नहीं रहा है।

प्रश्न 17.
गुट – निरपेक्षता और भारत की वर्तमान सरकार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता और भारत की वर्तमान सरकार- भारत गुट – निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक देशों में से एक है। भारत आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश है। पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ाने का निरन्तर कार्य कर रहा है। इस आतंकवाद की लड़ाई में भारत को पाकिस्तान को अलग – थलग करने तथा आतंकवाद के मुद्दे पर उसे घेरने के लिए भी गुट – निरपेक्ष आंदोलन एक उचित मंच प्रदान करता है।

इस समस्या से निपटने के लिए गुट – निरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देशों का समर्थन अति आवश्यक है। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए कई वर्षों से प्रयत्नशील है और इसमें गुट – निरपेक्ष देशों के समर्थन की आवश्यकता निरन्तर बनी हुई है।गुट – निरपेक्ष देशों का समर्थन निश्चित रूप,से उसकी इस मांग को मजबूत बनाता है।

भारत जिस प्रकार की विदेश नीति का अनुसरण कर रहा है उसको देखते हुए गुट – निरपेक्ष नीति को आज भी उतना ही महत्व है जितना कि इस संगठन के स्थापना के समय था। आज की विदेश नीति की व्यवस्था को देखते हुए हमें इस संगठन की सदस्यता भले ही अर्थपूर्ण न लगे, परन्तु इस परिवर्तनशील दौर में विश्व समुदाय को साथ लेकर चलना अपने आप में एक बड़ा कीर्तिमान है।

प्रश्न 18.
भारत की विदेश नीति के नवीन आयाम बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के नवीन आयाम – वर्तमान विश्व में भारत एक तीव्र गति से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। भारत ने 1990 के दशक में आर्थिक क्षेत्र में जो उदारवादी सुधार प्रारम्भ किये थे वे आज भी भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार बने हुए हैं। भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य एक सुरक्षित और स्थिर क्षेत्रीय पर्यावरण की स्थापना करना है ताकि भारत का आर्थिक विकास लगातार जारी रहे। मात्र सरकार के परिवर्तन से भारत की विदेश नीति की व्यापक रूपरेखा या ढांचे में परिवर्तन नहीं आता

वर्तमान सरकार की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की परम्परा के अनुरूप विदेश नीति के अनुगमन पर बल देती है। भारत अपने सहयोगी देशों का एक क्षेत्र विकसित करना चाहता है। भारत की वर्तमान विदेश नीति आतंकवाद के प्रति शून्य सहृदयता (जीरो टोलरेन्स) की नीति का अनुसरण करती है। वर्तमान सरकार ने भारतीय विदेश नीति को सक्रिय बनाने का प्रयास किया है। वर्तमान सरकार एशिया को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए अर्थव्यवस्था से भ्रष्टाचार, लालफीताशही ही एवं अवसंरचनात्मक सुधार पर विशेष बल दे रही है।

प्रश्न 19.
वर्तमान सरकार की विदेश नीति को प्रेरित करने वाले पांच मूल सिद्धांत बताइए।
उत्तर:
वर्तमान सरकार की विदेश नीति को प्रेरित करने वाले पांच मूल सिद्धांत-वर्तमान सरकार की विदेश नीति को प्रेरित करने वाले पांच मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  1.  निरन्तर वार्ता की नीति
  2. आर्थिक समृद्धि को प्रोत्साहन,
  3. भारत की प्रतिष्ठा एवं सम्मान में वृद्धि
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन एवं
  5. भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की मान्यताओं को प्रोत्साहन देना।

प्रश्न 20.
किसी देश के लिए विदेशों से संबंध स्थापित करना क्यो महत्वपूर्ण होता है?
उत्तर:
प्रत्येक संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के लिए विदेशों संबंध सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उसकी स्वतंत्रता बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों से ही बनी होती है। यही स्वतंत्रता की कसौटी भी है, बाकी सब कुछ तो स्थानीय स्वायत्तता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को आंतरिक एवं बाहरी कारक निर्देशित करते हैं उसी प्रकार एक देश की विदेश – नीति पर भी घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक संसाधनों का अभाव होता है। इसके कारण वे विकसित देशों की अपेक्षा बड़े सीधे – सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देशों का जोर इस बात पर होता है। कि उनके पड़ोस में शांति स्थापित रहे एवं विकास होता रहे। इसके अलावा विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से अधिक ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं।

इस निर्भरता का भी उनकी विदेश नीति पर असर पड़ता है। जैसे – भारत ने भी अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धान्त पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे है। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत ने विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये हैं। इसी कारण भारत आज आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में तीव्र गति से उन्नति कर रहा है।

प्रश्न 21.
भारत और रूस के संबंधों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और रूस के संबंध – भारत एवं रूस दोनों परम्परागत मित्र रहे हैं। परन्तु सन् 1991 में पूर्व सोवियत संघ के विघटन व भारत द्वारा समाजवादी अर्थव्यवस्था के स्थान पर बाजारोन्मुखी वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था को अपनाने से दोनों देशों के परम्परागत संबंधों में कुछ कमी आई है, यद्यपि भारत आज भी रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश है।

रूस भारत की परमाणु योजना के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत और रूस विभिन्न वैज्ञानिक परियोजनाओं में साझीदार हैं। किन्तु, विश्व की तीव्र गति से परिवर्तित होती राजनीतिक परिस्थितियों में भारत के लिए फ्रांस और जर्मनी जैसे अन्य यूरोपीय देश एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से निकट संबंध स्थापित करना आवश्यक हो गया है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 28  निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गुट – निरपेक्षता क्या है? गुट – निरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को विस्तार पूर्वक समझाइए।
उत्तर:
गुट – निरपेक्षता से आशय – गुट – निरपेक्षता का आशय है कि विश्व के किसी भी गुट के साथ, जिसका स्वरूप सैनिक हो, के साथ जुड़ाव न रखना बल्कि अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का निर्धारण कर विश्व राजनीति में शांति व स्थिरता के लिए क्रियाशील रहना है। यह नीति समस्त गम्भीर अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निरपेक्ष, पूर्वाग्रह रहित, स्वतंत्र एवं वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाने पर बल देती है।

यह नीति तटस्थता की नीति नहीं है बल्कि विश्व राजनीति की जटिल गुटीय प्रभावशीलता से मुक्त एक स्वतंत्र नीति है। यह नीति अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण व अहिंसक समाधान की पक्षधर है। यह नीति शीतयुद्ध के समय के दो शक्तिशाली गुटों; यथा – संयुक्त राष्ट्र अमेरिका व सोवियत संघ से दूर रहने पर बल देती।

थी। यह नीति अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का गुण – दोषों के आधार पर आकलन कर वस्तुनिष्ठ निर्णय करने की पक्षधर रही है। गुट – निरपेक्षता की नीति विरोधी गुटों के मध्य संतुलन बनाए रखने पर बल देती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं से अलग रहने की नीति नहीं बल्कि विश्व राजनीति में सार्थक योगदान देने वाली नीति है। गुट – निरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका – गुट – निरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-

(i) गुट – निरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य – भारत गुट – निरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट – निरपेक्षता की नीति लागू करने का श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने यूगोस्लाविया के नेता जोसेफ ब्रांज टीटो व मिस्र के नेता गमार्ल अब्दुल नासिर के साथ मिलकर गुट – निरपेक्षता की नीति का प्रतिपादन किया। इण्डोनेशिया के सुकणी वघाना के वामें एनन्मा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पांचों नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक कहलाए। एक सक्रिय सदस्य के रूप में भारत ने सदैव गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सम्मान व समर्थन किया।

(ii) स्वयं को महाशक्तियों की खेमेबंदी से अलग रखना – शीतयुद्ध के दौरान भारत ने दोनों महाशक्तियों-संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ की खेमेबंदी से स्वयं को दूर रखा तथा अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखा।

(iii) विश्व शान्ति एवं स्थिरता के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सक्रिय बनाये रखना भारत ने शान्ति और स्थिरता बनाये रखने के लिए दोनों प्रतिद्वन्द्वी गुटों – संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया।

(iv) नव स्वतंत्र देशों को गुटनिरपेक्ष आंदोलन में सम्मिलित होने हेतु प्रेरित करना- भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में औपनिवेशिक शक्तियों के चंगुल से मुक्त हुए नव स्वतंत्र देशों की दोनों महाशक्तियों के गुटों से दूर रहकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन में सम्मिलित होने हेतु प्रेरित किया। इस प्रकार भारत ने नव स्वतंत्र देशों के समक्ष तीसरा विकल्प प्रस्तुत किया।

प्रश्न 2.
पड़ोस पहल की नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पड़ोस पहल की नीति – वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संचालित पड़ोस पहल की नीति भारत की विदेश नीति को नवीन दिशा प्रदान करने वाली नीति है। इस नीति को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।
1. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी पड़ोसी देशों की यात्रा कर भारतीय विदेश नीति में एक नये अध्याय का सूत्रपात किया। यह भारतीय विदेश नीति के मूलभूत परिवर्तन को प्रतिबिम्बित करता है

2. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्वतंत्र रूपान्तकारी कूटनीति की शुरुआत देश के नजदीकी पड़ोसियों के साथ सम्पर्क से हुई। मॉरीशस सहित समस्त दक्षेस देशों के नेताओं को सरकार के शपथग्रहण समारोह में बुलाकर भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करने का एक अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया।

3. इसी प्रकार भारत की संसद द्वारा बांग्लादेश के साथ सीमा करार की पुष्टि हुई। नेपाल के साथ पनबिजली, परियोजनाओं के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, भारत – भूटानी 600 मेगावॉट खोलोगचु पनबिजली परियोजना की आधारशिला रखी गई। अफगानिस्तान में हमारी प्रमुख परियोजनाओं को निश्चित समयावधि में पूरा किया गया व 24 वर्ष बाद कोलम्बो जाफना रेल सम्पर्क को पुनः भारतीय सहयोग से खोला गया।

4. सच्ची मित्रता की भावना से भारत ने अपने संकटग्रस्त पड़ोसियों की तत्परता से सहायता दी। जब मालद्वीव गंभीर संकट से घिर गया था तब भारत ऑपरेशन नीर के तहत पानी के जहाज एवं हवाई जहाज के माध्यम से वहाँ जल पहुँचाने । वाला पहला देश था।

5. नेपाल में तीव्र गति से भूकम्प आने पर बहुत अधिक जान-माल की हानि हुई। भारत ने एक सच्चे पड़ोसी का कर्तव्य निभाते हुए अपने संसाधनों से हर सम्भव सहायता की। इस प्रकार भारत की पड़ोसी देशों के प्रति कूटनीति की शक्ति, कौशल ऊर्जा एवं करुणा समान रूप से प्रदर्शित हुई है।

6. जिसे लुक ईस्ट नीति के नाम से जाना जाता था वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में विदेश नीति में आई सक्रियता के कारण अब इसे एक्ट ईस्ट नीति के रूप में जाना जाता है। इस नीति के अन्तर्गत आर्थिक रूप से गतिशील क्षेत्र में अधिक सघन सम्पर्क हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान, म्यामांरे, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर एवं चीन । की यात्रा की जबकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सिंगापुर, वियतनाम, म्यांमार, दक्षिण कोरिया, चीन एवं इण्डोनेशिया की। यात्रा की।

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