RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 22 न्यायपालिका-सर्वोच्च न्यायालय का गठन, कार्य एवं न्यायिक पुनरावलोकन

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 न्यायपालिका-सर्वोच्च न्यायालय का गठन, कार्य एवं न्यायिक पुनरावलोकन

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में निम्न में से किसे सम्मिलित किया गया है?
(अ) राष्ट्रपति
(ब) विधायिका
(स) मुख्य न्यायाधीश
(द) लोकायुक्त

प्रश्न 2.
सर्वोच्च न्यायालय के परामर्शी क्षेत्राधिकार का आशय है-
(अ) सरकार को प्रत्येक नए कानून बनाने से पहले परामर्श देना।
(ब) विधायिका के सम्मुख प्रस्तुत किए जाने वाले कानूनी मसौदों पर सलाह देना।
(स) भारत के राष्ट्रपति द्वारा लोकहित या संविधान के किसी प्रश्न पर परामर्श माँगने पर सलाह देना।
(द) जनहित याचिकाओं पर परामर्श देना।

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में लोकहितों की सुरक्षा का सर्वाधिक सशक्त साधन है
(अ) जनहित याचिका
(ब) दया याचिका
(स) पुनरीक्षण याचिका
(द) निरीक्षण याचिका

प्रश्न 4.
सर्वोच्च न्यायालय के लिए निम्न में से कौन-सा कथन सही नहीं हैं?
(अ) सर्वोच्च न्यायालय के आदेश सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी हैं।
(ब) यह किसी भी मुकदमें को अपने पास मंगा सकता है।
(स) यह सर्वोच्च न्यायालय की नई पीठ देश में कहीं भी खोल सकता है।
(द) यह उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तबादले कर सकता है।

उत्तर:
1. (अ), 2. (स), 3. (अ), 4. (स)।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकार के तीनों अंगों में शक्ति संतुलन के सिंद्धात की व्याख्या का अधिकार किसे है?
उत्तर:
सरकार के तीनों अंगों में शक्ति संतुलन के सिंद्धात की व्याख्या का अधिकार न्यायपालिका” को है।

प्रश्न 2.
संघीय संबंधों से जुड़े मुकदमों की सीधी सुनवाई कहाँ होती है?
उत्तर:
संघीय संबंधों से जुड़े मुकदमों की सीधी सुनवाई ‘सर्वोच्च न्यायालय में होती है।

प्रश्न 3.
न्यायिक सक्रियता को दर्शाने वाली याचिका को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
न्यायिक सक्रियता को दर्शाने वाली याचिका को ‘जनहित याचिका’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
संविधान की मौलिकता को बनाए रखने हेतु न्यायालय क्या कर सकता है?
उत्तर:
संविधान की मौलिकता को बनाए रखने के लिए न्यायालय दो विधियों का प्रयोग कर सकता है

  1. न्यायालय रिट जारी कर सकता है।
  2. किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक सक्रियता से क्या आशय है?
उत्तर:
न्यायिक पुनर्विलोकन के आधार पर न्यायपालिका ऐसे किसी भी कानून को अवैध घोषित कर सकती है जो संविधान का उल्लंघन करता है। कालांतर में न्यायपालिका ने यह अनुभव किया कि उसे यह शक्ति भी प्राप्त होनी चाहिए। कि यदि कार्यपालिको अकर्मण्यता के कारण अपने कर्तव्यों की अनदेखी करे अथवा वह मनमाना आचरण करने की प्रवृत्ति को अपनाए तो न्यायपालिका

उसे कर्तव्य पालन के संबंध में आवश्यक निर्देश दे अथवा मनमाना आचरण करने की स्थिति में उसे ऐसा करने से रोक दे। इस प्रकार न्यायिक पुनर्विलोकन व्यवस्थापिका के मनमाने कानून निर्माण पर रोक लगाने का साधन है तो दूसरी ओर न्यायिक सक्रियता कार्यपालिका को कर्तव्य पालन की दिशा में प्रवृत्त करने या मनमाना आचरण करने से रोकने का साधन है।

न्यायिक सक्रियता न्यायिक पुनर्विलोकन से आगे का एक चरण है यह एक ऐसा चरण है जिसे व्यवस्था में निहित गतिशीलता, शासन की कमजोरियों एवं दोषों तथा बदलती हुई परिस्थितियाँ ने जन्म दिया है।

प्रश्न 2.
अपीलीय क्षेत्राधिकार क्या है?
उत्तर:
अपीलीय क्षेत्राधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमें पर पुनर्विचार करेगा तथा उसके कानूनी मुद्दों की दुबारा जाँच करेगा। यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का वह अर्थ नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है तथा इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्यवस्था भी दे सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है।

कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है किंतु उच्च न्यायालय को यह प्रमाण – पत्र देना पड़ता है कि सम्बद्ध मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने लायक है अर्थात् उसमें संविधान या कानून की व्याख्या करने जैसा कोई गंभीर मामला उलझा है। इसके साथ ही उच्च न्यायालयों को भी अपने नीचे की अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 3.
मौलिक क्षेत्राधिकार में मुख्यतः कौन – से विषय आते हैं?
उत्तर:
मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई जरूरी नहीं। इसे मौलिक क्षेत्राधिकार इसलिए कहते है क्योंकि इन मामलों को केवल सर्वोच्च न्यायालय ही हल कर सकता है।

इनकी सुनवाई न तो उच्च न्यायालय और न ही अधीनस्थ न्यायालयों में हो सकती है। अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सर्वोच्च न्यायालय न केवल विवादों को सुलझाता है बल्कि संविधान में दी गई संघ व राज्य सरकारों की शक्तियों की व्याख्या भी करता है।

सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार उसे संघीय मामलों से संबंधित सभी विवादों में एक निर्णायक की भूमिका प्रदान करता है। किसी भी संघीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों का उठना स्वाभाविक है। इन विवादों को हल करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों एवं शक्तियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार एवं शक्तियाँ: सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार व शक्तियाँ निम्नलिखित हैं
(1) मौलिक क्षेत्राधिकार:
मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई आवश्यक नहीं। संघीय सम्बन्धों से जुड़े मुकदमें सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार उसे संघीय मामलों से सम्बन्धित सभी विवादों में एक निर्णायक की भूमिका देता है। किसी भी संघीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों के बीच एवं विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों को हल करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की है।

इसे मौलिक क्षेत्राधिकार इसलिए कहते हैं क्योंकि इन मामलों का केवल सर्वोच्च न्यायालय ही समाधान कर सकता है। इनकी सुनवाइ न तो उच्च न्यायालय और न ही अधीनस्थ न्यायालयों में हो सकती है। अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सर्वोच्च न्यायालय न केवल विवादों को सुलझाता है बल्कि संविधान में दी गई संघ और राज्य सरकारों की शक्तियों की व्याख्या भी करता है।

(2) रिट (लेख) सम्बन्धी अधिकार: मूल अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति न्याय पाने के लिए सीधे ही सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है।

उच्च न्यायालय भी रिट जारी कर सकते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन हुआ है उसके पास विकल्प है कि वह चाहे तो उच्च न्यायालय या सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। इन रिटों के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने । या न करने का आदेश दे सकता है।

(3) अपीलीय क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है। कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। लेकिन उच्च न्यायालय को यह प्रमाण – पत्र देना पड़ता है।

कि वह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने लायक है अर्थात् उसमें संविधान या कानून की व्याख्या करने जैसा कोई गम्भीर मामला उलझा है। अगर फौजदारी के मामले में निचली अदालत किसी को फाँसी की सजा दे दे, तो उसकी अपील सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में की जा सकती है।

यदि किसी मुकदमें में उच्च न्यायालय अपील की अनुमति न दे तब भी सर्वोच्च न्यायालय के पास यह शक्ति है कि वह उस मुकदमें में की गई अपील को विचार लिए स्वीकार कर ले। अपीलीय क्षेत्राधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय सम्पूर्ण मुकदमें पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी पहलुओं की पुनः जाँच करेगा।

यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का वह अर्थ नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा है तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है एवं इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्यवस्था भी दे सकता हैं। उच्च न्यायालयों को भी अपने नीचे की अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है।

(4) परामर्श सम्बन्धी क्षेत्राधिकार: इस अधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श देने का अधिकार है, यदि परामर्श माँगा जाए। परामर्श सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रपति, किसी भी कानून संबंधी अथवा लोक महत्व के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श माँग सकता है। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है। दूसरी ओर, यदि परामर्श या मत भेज दिया जाए, तो उसे मानना या न मानना राष्ट्रपति के लिए भी बाध्यकारी नहीं है।

प्रश्न 2.
“न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिकाएँ एक – दूसरे से जुड़ी हैं।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
हाल के वर्षों में ‘जनहित के मुकदमों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने साधारण तथा शोषित नागरिकों के लिए एक नवीन मार्ग प्रशस्त किया। इस व्यवस्था के अंतर्गत न्यायाधीश सार्वजनिक हित से संबंधित मामलों में बगैर न्यायिक फीस तथा निर्धारित प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन द्वारा दायर शिकायत पर सुनवाई कर सामाजिक न्याय की दृष्टि से आदेश पारित कर सकते हैं।

जनहित में दायर इन मुकदमों में सर्वोच्च न्यायालय ने जो दृष्टिकोण अपनाया है इसे ही न्यायिक सक्रियता संबंधी दृष्टिकोण कहा जाता है। न्यायिक सक्रियता तथा जनहित याचिकाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं ये निम्नलिखित विचारों से स्पष्ट होता है

(1) सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित संबंधी मामलों को मान्यता प्रदान की है। इस धारणा के अनुसार कोई व्यक्ति किसी ऐसे समूह अथवा वर्ग की ओर से मुकदमा लड़ सकता है, जिसे कानूनी अथवा संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया हो।

इस दृष्टि से गरीब, अपंग तथा असहाय एवं सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों की ओर से कोई भी व्यक्ति न्यायालय में वाद ला सकता है। न्यायालय अपने समस्त तकनीकी एवं कार्यविधि नियमों की चिंता किए बिना ही उसे केवल लिखित रूप से देने पर ही उस पर कार्यवाही कर सकेगा।

(2) संविधान के अनुच्छेद 21 की नवीन व्याख्या की गई है। इसके अनुसार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी व्यक्ति को उसके जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से अकारण ही वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

यह भी व्यवस्था की गई है कि सरकार निर्धन पक्षकारों को कानूनी सहायता प्रदान करे। अदालती कार्यवाही का खर्चीला एवं विलंबकारी होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति को न्याय प्राप्त होना संभव नहीं होता। इसी प्रकार फौजदारी मामलों में भी यह व्यवस्था की गई है कि अनावश्यक विलंब विवेकपूर्ण नहीं है।

इस विलंब को समाप्त करने के लिए न्यायालय राज्य शासन को अधिक न्यायालय स्थापित करने तथा अधिक संख्या में न्यायाधीश नियुक्त करने का आदेश दे सकता है। अतः सर्वोच्च न्यायालय का स्वरूप न्यायिक एवं जनहित याचिका से सक्रिय एवं विधेयात्मक बन गया है तथा उसने जनता के दुख-दर्द तथा सामाजिक – आर्थिक सुधार में स्वयं को भागीदार बनाना आरम्भ कर दिया है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन – सा अधिकार उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है?
(अ) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
(ब) अपीलीय क्षेत्राधिकार
(स) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा है’
(अ) 55 वर्ष
(ब) 60 वर्ष
(स) 65 वर्ष
(द) 68 वर्ष

प्रश्न 3.
उच्चतम न्यायालय के कार्य क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है
(अ) संसद द्वारा
(ब) राष्ट्रपति द्वारा
(स) मंत्रिमंडल द्वारा
(द) प्रधानमंत्री द्वारा

प्रश्न 4.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय स्थित है
(अ) मद्रास
(ब) नई दिल्ली
(स) मुम्बई
(द) इलाहाबाद

प्रश्न 5.
अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार का कौन-सा अंग सबसे महत्वपूर्ण है?
(अ) न्यायपालिका
(ब) व्यवस्थापिका
(स) कार्यपालिका
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 6.
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश कितने वरिष्ठतम् न्यायाधीशों की सलाह से नाम प्रस्तावित करेगा।
(अ) 5
(ब) 4
(स) 3
(द) 2

प्रश्न 7.
‘सामूहिकता का सिंद्धात’ किससे संबंधित है?
(अ) प्रधानमंत्री
(ब) संसद
(स) सर्वोच्च न्यायालय
(द) राष्ट्रपति

प्रश्न 8.
भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाए रखने हेतु अपेक्षित है]
(अ) पद की सुरक्षा
(ब) सीमित कार्यकाल
(स) विधायिका का हस्तक्षेप
(द) न्यायाधीशों का निर्वाचन

प्रश्न 9.
भारत में न्यायपालिका का स्वरूप है
(अ) संसदीय न्यायपालिका
(ब) एकीकृत न्यायपालिका
(स) बहुल न्यायपालिका
(द) निरंकुश न्यायपालिका

प्रश्न 10.
भारतीय नागरिक अपने मूल अधिकारों का हनन किये जाने पर सुरक्षा प्राप्त कर सकता है
(अ) सर्वोच्च न्यायालय से
(ब) कार्यपालिका से
(स) व्यवस्थापिका से
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 11.
किस अनुच्छेद में उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है?
(अ) अनुच्छेद 225
(ब) अनुच्छेद 226.
(स) अनुच्छेद 227
(द) अनुच्छेद 228

प्रश्न 12.
कानून को लागू करने का कार्य सरकार का कौनसा अंग करता है?
(अ) व्यवस्थापिका
(ब) न्यायपालिका
(स) कार्यपालिका
(द) कोई भी नहीं

प्रश्न 13.
‘परमादेश’ किस अनुच्छेद में स्पष्ट किया गया है?
(अ) अनुच्छेद 30
(ब) अनुच्छेद 31
(स) अनुच्छेद 32
(द) अनुच्छेद 34

प्रश्न 14.
निम्न में से भारतीय न्याय व्यवस्था की शीर्षस्थ संस्था है
(अ) जिला न्यायालय
(ब) उच्च न्यायालय
(स) अधीनस्थ न्यायालय
(द) सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 15.
‘जनहित याचिका की शुरूआत किस वर्ष से हुई ?
(अ) 1979
(ब) 1980
(स) 1981
(द) 1982

प्रश्न 16.
न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार किस न्यायालय को है?
(अ) सर्वोच्च न्यायालय को
(ब) उच्च न्यायालय को
(स) जिला न्यायालय को
(द) अधीनस्थ न्यायालय को

उत्तर:
1. (द), 2. (स), 3. (अ), 4. (ब), 5. (अ), 6. (ब), 7. (स), 8. (अ), 9. (ब), 10. (अ),
11. (ब), 12. (स), 13. (स), 14. (द), 15. (अ), 16. (अ)।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सबसे शक्तिशाली न्यायालय कौन – सा है?
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय।

प्रश्न 2.
‘कानून के शासन’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कानून के शासन का भाव यह है कि धनी तथा गरीब, स्त्री तथा पुरुष तथा पिछड़े सभी लोगों पर एक समान कानून लागू हो।

प्रश्न 3.
न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका क्या है?
उत्तर:
न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका यह है कि वह कानून के शासन की रक्षा तथा कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करे।

प्रश्न 4.
भारत में स्वतंत्र न्यायालय की आवश्यकता क्यों महसूस की गई?
उत्तर:
संविधान की रक्षा, मौलिक अधिकारों की रक्षा, कानून के शासन को सुनिश्चित करने एवं संघात्मक व्यवस्था की रक्षा के लिए भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता हुई।

प्रश्न 5.
न्यायपालिका के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
न्यायपालिका के दो कार्य-

  1. व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है।
  2. विवादों को कानून के अनुसार हल करती है।

प्रश्न 6.
न्यायाधीशों की नियुक्ति में किसे शामिल नहीं किया गया है?
उत्तर:
न्यायाधीशों की नियुक्तियों में विधायिका को शामिल नहीं किया गया है।

प्रश्न 7.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति।

प्रश्न 8.
न्यायाधीश कब तक अपने पद पर बने रहते हैं?
उत्तर:
न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने तक पद पर बने रहते हैं, केवल अपवाद स्वरूप विशेष परिस्थितियों में ही इन्हें हटाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
न्यायाधीशों को हटाने के लिए कठिन प्रक्रिया क्यों निर्धारित की गई?
उत्तर:
संविधान निर्माताओं का मानना था, कि हटाने की प्रक्रिया कठिन हो तो न्यायपालिका के सदस्यों का पद। सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न 10.
न्यायाधीशों की नियुक्ति की वास्तविक शक्ति किसके पास है?
उत्तर:
किसी भी न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद् के पास है।

प्रश्न 11.
न्यायालयों की क्रमशः स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला तथा अधीनस्थ न्यायालय हैं।

प्रश्न 12.
सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. मौलिक क्षेत्राधिकार
  2.  रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
  3. अपीलीय क्षेत्राधिकार
  4. परामर्श सम्बन्धी। क्षेत्राधिकार।

प्रश्न 13.
अपील सम्बन्धी अधिकार किस तरह के मामलों से सम्बन्धित हो सकते हैं?
उत्तर:
अपील सम्बन्धी अधिकार दीवानी, फौजदारी एवं संवैधानिक मामलों से सम्बन्धित हो सकते हैं।

प्रश्न 14.
सर्वोच्च न्यायालय को किस आधार पर संविधान का संरक्षक कहा जाता है?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के आधार पर।

प्रश्न 15.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को किस प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है?
उत्तर:
महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा।

प्रश्न 16.
भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:
भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका है।

प्रश्न 17.
C. B.I. का पूर्ण नाम बताइए।
उत्तर:
C. B. I. का पूरा नाम Central Bureau of investigation अर्थात् ‘केन्द्रीय जाँच ब्यूरो’ है। प्रश्न 18. संसद किस कार्य में सर्वोच्च है? उत्तर-संसद कानून बनाने तथा संविधान का संशोधन करने में सर्वोच्च है। प्रश्न 19. लोकतांत्रिक शासन का क्या आधार है?
उत्तर:
लोकतांत्रिक शासन का आधार यह है कि सरकार का प्रत्येक अंग एक-दूसरे की शक्तियों तथा क्षेत्राधिकार का सम्मान करे।।

प्रश्न 20.
‘रिट’ के माध्यम से न्यायालय क्या कर सकता है?
उत्तर:
रिट’ के द्वारा न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का आदेश दे सकता है।

प्रश्न 21.
यदि किसी व्यक्ति को फाँसी की सजा मिली है तो वह कहाँ अपील कर सकता है?
उत्तर:
अगर व्यक्ति को निचली अदालत में फौजदारी मामले में फाँसी की सजा मिली है तो उसकी अपील वह सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में कर सकता है।

प्रश्न 22.
न्यायिक पुनरावलोकन से क्या आशय है?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन से आशय न्यायपालिका की ऐसी शक्ति से है जिसके द्वारा वह विधायिका तथा कार्यपालिका द्वारा किए गए कार्यों की संवैधानिकता एवं वैधता का परीक्षण कर सकती है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22  लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों स्थापित की गई हैं?
उत्तर:
भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना-भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना निमनलिखित कारणों से की गई है

  1. भारत में संविधान की व्याख्या एवं संविधान के अनुसार कानूनों की व्याख्या करने का कार्य न्यायपालिका को प्रदान किया गया है। इस कार्य को एक स्वतंत्र न्यायपालिका ही निष्पक्ष ढंग से सम्पन्न कर सकती है।
  2. नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने के लिए एवं यह सुनिश्चित करने के लिए कि व्यवस्थापिका व कार्यपालिका द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो, एक स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता थी।
  3. भारत में विधि के शासन को सुनिश्चित करने के लिए भी एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है।
  4. संघ एवं राज्यों के मध्य क्षेत्राधिकार से संबंधित विवादों के संबंध में न्यायिक निर्णय करने हेतु स्वतंत्र न्यायपालिका । स्थागित की गई है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में न्यायपालिका को स्वतंत्रता एवं सुरक्षा कैसे प्रदान की गयी है? उत्तर-न्यायपालिका की स्वतंत्रता व सुरक्षा के लिए भारतीय संविधान में प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं

  1.  न्यायाधीशों की नियुक्ति को दलगत राजनीति से दूर रखा गया है। कोई भी कानून का विशेषज्ञ तथा वकालत को अनुभव रखने वाला व्यक्ति न्यायाधीश बन सकता है?
  2. न्यायाधीशों को आसानी से पद से नहीं हटाया जा सकता है। उनको कार्यकाल निश्चित होता है। उनके हटाने की प्रक्रिया को संविधान ने अत्यन्त कठिन बनाया गया है।
  3. न्यायाधीशों के कार्यों एवं नियमों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह न्यायिक अवमानना का दोषी माना जाएगा तथा न्यायालय उसे दण्डित कर सकता है।

प्रश्न 3.
सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को बताइए।
उत्तर:
सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया:
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम् न्यायाधीशों के परामर्श से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्तियाँ करेगा।

इसे ‘कॉलेजियम व्यवस्था’ कहा जाता है। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों की सिफारिश के सम्बन्ध में सामूहिकता का सिद्धान्त’ स्थापित किया। वर्तमान में केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए 13 अप्रैल 2015 को राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 एवं 99 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2014 को अधिसूचित किया है।

प्रश्न 4.
सर्वोच्च न्यायालय का गठन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का गठन: मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय के लिए मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अंन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी थी तथा संविधान के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या, सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार, न्यायाधीशों का वेतन और सेवा शर्ते निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया है।

संसद के द्वारा समय – समय पर कानून में संशोधन कर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की गयी है। 1985 ई. में विधि द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश होंगे। 2008 ई. में न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 31 कर दी गई।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करने में राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से अवश्य ही परामर्श लेता है। विशेष स्थिति उत्पन्न होने पर भारत का मुख्य न्यायाधीश भारत के राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त कर तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है।

प्रश्न 5.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए किन योग्यताओं का होना आवश्यक है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में निम्न योग्यताओं का होना आवश्यक है

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा ऐसे दो या दो से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार कम-से-कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो।

या किसी उच्च न्यायालय अथवा न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता (advocate) रह चुका हो। या राष्ट्रपति के विचार में एक पारंगत विधिवेत्ता हो। यह अंतिम उपबंध वस्तुत: चुनाव के क्षेत्र को व्यापक करने के लिए रखा गया है। इस उपबंध के अनुसार किसी विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाला कोई विख्यात विधिवेत्ता सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जा सकेगा।

प्रश्न 6.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसके द्वारा और कैसे हटाए जा सकते हैं?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया:
साधारणतया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकते हैं। इस अवस्था से पूर्व कोई न्यायाधीश स्वयं त्यागपत्र दे सकता है। इसके अलावा सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के आधार पर भी संसद महाभियोग द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटा सकती है।

यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना बहुत कठिन है। न्यायाधीश के विरुद्ध आरोपों पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृति जरूरी होती है। यदि संसद के दोनों सदन अलग – अलग अपने कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से किसी न्यायाधीश को अयोग्य या आपत्तिजनक आचरण करने वाला प्रमाणित कर देते हैं तो भारत के राष्ट्रपति के आदेश से उस न्यायाधीश को अपने पद से हटना होगा।

प्रश्न 7.
भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
भारत में संविधान के अनुसार एकीकृत न्यायिक व्यवस्था लागू है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है तथा निम्न स्तर पर अधीनस्थ न्यायालय कार्यरत हैं। अधीनस्थ न्यायालयों के फैसलों की समीक्षा जिला न्यायालय करते हैं। इसी प्रकार जिला न्यायालयों के फैसलों की समीक्षा उच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के फैसलों की सर्वोच्च न्यायालय समीक्षा करता है।

इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय को सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है। वह अपने पूर्व में दिए गए निर्णयों की भी समीक्षा कर सकता है। सभी उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बाध्य होते हैं तथा उसके निर्णय देश के अन्य न्यायालयों को भी दिशा देते हैं। इस प्रकार देश में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था लागू है।

प्रश्न 8.
सर्वोच्च न्यायालय के रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार को बताइए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय का रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार बहुत अधिक महत्व रखता है। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति सीधे ही न्याय पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है।

उच्च न्यायालय भी रिट जारी कर सकता है लेकिन जिस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है उसके पास विकल्प है कि वह चाहे तो उच्च न्यायालय या सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। इन रिटों के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या। न करने का आदेश दे सकता है।

प्रश्न 9.
सर्वोच्च न्यायालय के सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार से आप क्या समझते हैं?
अथवा
उच्चतम न्यायालय के परामर्श सम्बन्धी क्षेत्राधिकार को बताइए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श / सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार-संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श / सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार प्रदान किया है। अनुच्छेद 143 के अनुसार यदि किसी समयं राष्ट्रपति को यह प्रतीति हो कि विधि या तथ्यों का कोई ऐसा प्रश्न पैदा हुआ है, जो सार्वजनिक महत्व का है तो वह उस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है।

न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है। सर्वोच्च न्यायालय की परामर्श देने की शक्ति की दो मुख्य उपयोगिताएँ हैं-

  1. इससे सरकार को छूट मिल जाती है कि किसी महत्वपूर्ण मसले पर कार्यवाही करने से पहले वह अदालत की कानूनी राय जान लें। इससे बाद में कानूनी विवाद से बचा जा सकता है।
  2. सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मानकर सरकार अपने प्रस्तावित निर्णय या विधेयक में समुचित संशोधन कर सकती है।

प्रश्न 10.
जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का सबसे प्रभावी साधन कैसे है?
उत्तर:
जनहित याचिका: जब पीड़ित लोगों की ओर से कोई अन्य व्यक्ति अथवा सामान्य जनहित को ध्यान में रखकर कोई व्यक्ति या समूह न्यायालय में याचिका दायर करता है एवं उस पर न्यायालय सुनवाई करता है तो इस प्रकार की याचिकाएँ जनहित याचिका कहलाती हैं। जनहित याचिका के अन्तर्गत लोगों के अधिकारों की रक्षा, गरीबों के जीवन को और बेहतर बनाने, पर्यावरण की सुरक्षा एवं लोकहित से जुड़े मामलों की सुनवाई होती है।

इनमें सामानय जन से जुड़ी समस्याओं को न्यायालय के समक्ष रखा जाता है। सन् 1979 में कुछ अखबारों में बिहार में लम्बे समय से बन्द कैदियों के बारे में खबरें छप जो अपने अपराध की सजा भुगतने के बाद भी जेल में बन्द थे। इनसे सम्बन्धित एक वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिस केस को हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य के नाम से जाना गया। इसी से भारत में जनहित याचिका की शुरूआत हुई।

प्रश्न 11.
भारत जैसे विकासशील देश में सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत जैसे विकासशील देश में सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता के कारण:
भारत जैसे विकासशील देश में सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

  1. संविधान के संघीय स्वरूप को बनाये रखने के लिए।
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए।
  3. संसद द्वारा संविधान के विरुद्ध बनाये गये कानूनों की वैधानिकता की जाँच करना।
  4. सामाजिक तथा आर्थिक विकास को सुचारु रूप से संचालन के लिए कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को सकारात्मक निर्देश देना।

प्रश्न 12.
न्यायपालिका और अधिकार विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
न्यायपालिका और अधिकार: न्यायपालिका को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का दायित्व सौंपा गया है। संविधान ऐसी दो विधियों का वर्णन करता है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय अधिकारों की रक्षा कर सके। यह अनेक रिट (याचिका); जैसे-बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेषण लेख, अधिकार पृच्छा लेख आदि जारी करके मौलिक अधिकारों को फिर से स्थापित कर सकता है; उच्च न्यायालयों को भी ऐसी रिट जारी करने की शक्ति है।

सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर – संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है। ये दोनों प्रावधान एक ओर सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकार के संरक्षक एवं दूसरी ओर संविधान के व्याख्याकार के रूप में स्थापित करते हैं। उपर्युक्त प्रावधानों में दूसरा प्रावधान न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था करता है।

प्रश्न 3.
न्यायपालिका और संसद विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
न्यायपालिका और संसद: संसद कानूनों का निर्माण एवं संविधान का संशोधन करती है। वहीं कार्यपालिका इन्हें लागू करने का कार्य करती है। न्यायपालिका विवादों को सुलझाने का कार्य करने के साथ – साथ यह सुनिश्चित करती है कि बनाये गए कानून संविधान के अनुकूल हैं या नहीं।

इस कार्य विभाजन के बावजूद न्यायपालिका और संसद के बीच टकराव होता रहता है। संविधान लागू होने के तुरन्त बाद सम्पत्ति के अधिकार पर रोक लगाने की संसद की शक्ति पर विवाद खड़ा हो गया।

संसद सम्पत्ति रखने के अधिकार पर कुछ प्रतिबन्ध लगाना चाहती थी जिससे भूमि – सुधारों को लागू किया जा सके। न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकती। संसद ने तब संविधान को संशोधित करने का प्रयास किया लेकिन न्यायालय ने कहा कि संविधान के संशोधन के द्वारा भी मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 14.
न्यायिक पुनरावलोकन से आप क्या समझते हैं? ।
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन से अभिप्राय: न्यायिक पुनरावलोकन का अभिप्राय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान एवं उसकी सर्वोच्चता की रक्षा करने की व्यवस्था है अर्थात् न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक समीक्षा के अधिकार का आशय सर्वोच्च न्यायालय के उस अधिकार से है जिसके अन्तर्गत वह व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों एवं कार्यपालिका द्वारा जारी आदेशों की वैधता को परीक्षण करता है कि कहीं वे संविधान का उल्लंघन तो नहीं करते।

संविधान के अनुच्छेद 131 व 132 सर्वोच्च न्यायालय को क्रमशः संघ और राज्यों की विधि के न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा मूल अधिकारों की रक्षा तथा सरकार के अंगों में अवरोध एवं सामंजस्य स्थापित करने के लिए न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति न्यायालय को देते

RBSE Class 12 Political Science Chapter 22 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता तथा महत्व का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व – सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता तथा महत्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) संविधान की व्याख्या का कार्य – सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान के रक्षक और संविधान के आधिकारिक व्याख्याता के रूप में कार्य किया जाता है। संविधान निर्मात्री सभा में कहा गया था, “यह संविधान का व्याख्याकार तथा संरक्षक होगा।” भारतीय संविधान की भावना की आधिकारिक व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ही की जाएगी।

(2) शासन का संतुलन चक्र – सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका एक संतुलन चक्र के समान है क्योंकि जहां शासन के अन्य अंग जनता की उत्तेजित भावना से प्रभावित हो सकते हैं, वहां सर्वोच्च न्यायालय शासन का एक ऐसा अंग है जो निष्पक्षतापूर्वक सरकार के कार्यों की व्याख्या संविधान के अनुसार करके सरकार के विभिन्न अंगों में संतुलन स्थापित करता है।

(3) मौलिक अधिकारों का रक्षक – संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत यह न्यायालय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का रक्षक है। हमारे संविधान द्वारा नागरिकों के 6 मौलिक अधिकार निर्धारित किए गए हैं। संघीय अथवा राज्यों की सरकारों द्वारा इन अधिकारों का अतिक्रमण रोकना तथा अतिक्रमण होने पर उपचार करना इस न्यायालय का कर्तव्य है।

(4) विशिष्ट परामर्श देने के लिए – जटिल कानूनी उलझनों पर सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को परामर्श देने का कार्य भी करता है। सार्वजनिक महत्व के जिन कानूनों तथा तथ्यों के विषय में राष्ट्रपति इस न्यायालय के विचार जानना चाहते हैं, उन विषयों पर यह राष्ट्रपति को परामर्श देता है।

(5) सामाजिक क्रांति का अग्रदूत – भारत में सर्वोच्च न्यायालय न केवल लोकतंत्र का प्रहरी है अपितु संवैधानिक और साधारण कानूनों की प्रगतिवादी व्याख्या करके सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का अग्रदूत भी है।

(6) संविधान का संरक्षक – सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान के विरुद्ध हो। अपनी इस शक्ति के आधार पर वह संविधान की प्रभुता तथा सर्वोच्चता की रक्षा करता है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। सर्वोच्च न्यायालय के अभाव में संघात्मक व्यवस्था सुचारु रूप में नहीं चल सकती। कार्यपालिका व व्यवस्थापिका भी निरंकुश हो सकती हैं। सर्वोच्च न्यायालय शासन के इन अंगों को उनकी सीमाओं के भीतर कार्य करने को बाध्य करता है।

संसद, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और राज्य सरकारें तथा विधानमंडल इस न्यायालय द्वारा दी गई संवैधानिक नियमों की व्यवस्था को स्वीकार करते हैं। नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में भी सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्रश्न 2.
न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाए रखने के लिए किन व्यवस्थाओं का उल्लेख संविधान में किया गया है?
उत्तर:
न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाए रखने के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ हैं
(1) न्यायाधीशों की नियुक्ति – संविधान के द्वारा सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को सौंपा गया है जो आवश्यकतानुसार मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से परामर्श भी लेता है।

(2) लंबी कार्यविधि तथा कार्यविधि की सुरक्षा – भारत में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रहते हैं। उन्हें साधारण तरीके से पदच्युत नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को केवल । सिद्ध कदाचार अथवा अक्षमता के आधार पर हटा सकता है, लेकिन पदच्युति की इस प्रक्रिया को व्यवहार में अपनाया जाना अत्यधिक कठिन होता है।

(3) उन्मुक्तियाँ – सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा कार्य आलोचना से परे हैं। संसद भी न्यायाधीशों के किन्हीं भी। ऐसे कार्यों पर जिसे कर्तव्य पालन करते हुए किया गया है, विचार – विमर्श नहीं कर सकती।

(4) कर्मचारी वर्ग पर नियंत्रण – न्यायालय को कर्मचारी वर्ग पर नियत्रंण के अभाव में उसकी स्वतत्रंता को आघात पहुंच सकता है। अतः सर्वोच्च न्यायालय को अपने कर्मचारी वर्ग पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। न्यायालय के सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों द्वारा की जाती है।

(5) अवकाश प्राप्ति के बाद वकालत करने पर प्रतिबंध – संविधान एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को भारतीय क्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकारी के समक्ष वकालत करने से मना करता है, लेकिन विशेष प्रकार के कार्य संपादन के लिए उनकी नियुक्ति की अनुमति देता है; जैसे–विशेष जांच-पड़ताल तथा अन्वेषण करना।

(6) कार्य प्रणाली के नियमन हेतु नियम बनाने की शक्ति – सर्वोच्च न्यायालय को अपनी कार्य-प्रणाली के नियमन हेतु नियम बनाने का अधिकार है, लेकिन नियम संसद द्वारा निर्मित विधि के अंतर्गत होने चाहिए तथा इन पर राष्ट्रपति का अनुमोदन आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, इसके निर्णय या आदेश भारत राज्य क्षेत्र के अंदर सभी न्यायाधीशों को मान्य होते हैं।

(7) कार्यपालिका से पृथकता – एक ही व्यक्ति के हाथ में कार्यकारी एवं न्यायिक शक्ति होने से न्याय के सिद्धांत की उपेक्षा सम्भव है। न्यायपालिका को कार्यपालिका के बंधनों से मुक्त रखा जाना आवश्यक है।

भारत के संविधान में नीतिनिर्देशक तत्वों में यह अपेक्षा की गई है कि कार्यपालिका न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप न करे। न्यायाधीशों के काम में कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका द्वारा तब तक हस्तक्षेप न किया जाए जब तक कि उनका आचरण एवं व्यवहार संविधान सम्मत है।

प्रश्न 3.
न्यायिक सक्रियता की धारणा के उदय तथा विकास में सहायकं तत्त्वों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
न्यायिक सक्रियता की धारणा के उदय में प्रमुख रूप से निम्नलिखित तत्त्वों का योग रहा है।
(1) अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे जनहित अभियोगों की शुरूआत की थी, जिनमें पीड़ित पक्ष की कमजोर स्थिति को दृष्टि में रखते हुए पीड़ित पक्ष (एक व्यक्ति या वर्ग) की ओर से किसी अन्य व्यक्ति ने न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और न्यायालय ने उसे विचार के लिए स्वीकार किया। यह ‘जनहित अभियोग’ की स्थिति थी।

(2) गत तीन दशकों से यह बात अनुभव की जा रही थी कि राजनीतिक दल तथा राजनीतिक दलों के नेता, जो व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में स्थान पाते हैं, बहुत ऊँचे स्तर और नारेबाजी के रूप में आर्थिक – सामाजिक न्याय के प्रति लगाव की बातें निरंतर कर रहे थे, लेकिन व्यवहार में उन्होंने सामान्य जन और उनके हितों के प्रति घोर उदासीनता की स्थिति को अपना लिया था।

यह स्थिति न्यायाधीशों सहित समाज के सभी संवेदनशील तत्त्वों को उद्विग्न कर रही थी। ऐसी स्थिति में न्यायाधीशों ने सोचा कि व्यवस्थापिका और कार्यपालिका को जन हितों के प्रति सचेत किया जाना चाहिए।

(3) इस सदी के अंतिम दशक में सर्वोच्च कार्यपालिका ने दायित्व से बचने की चेष्टा करते हुए न्यायपालिका को कुछ ऐसे काम सौंपने की चेष्टा की, जो अपनी प्रकृति में राजनीतिक थे। कार्यपालिका जब ‘मंडल विवाद’ को हल नहीं कर पाई, तब उसने सर्वोच्च न्यायालय की ओर देखा। चाहे आरक्षण का प्रश्न हो या नदी जल विवाद, हर किसी विवाद को हल करने के लिए न्यायापालिका की ओर देखा जाने लगा।

(4) इस अंतिम दशक में ही कार्यपालिका का कोई ऐसा पदाधिकारी नहीं बचा, जिस पर भ्रष्ट आचरण के आरोप न लगे हों। ये सभी आरोप करोड़ों – अरबों रुपयों की धनराशि के संबंध में थे। दूसरी ओर महामारियों की रोकथाम का प्रश्न हो या पर्यावरण की रक्षा अथवा कानून और व्यवस्था का प्रश्न। कार्यपालिका सभी मामलों में घोर अकर्मण्यता का परिचय दे रही थी।

ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने जरूरी समझा कि कार्यपालिका को कर्तव्य पालन के लिए निर्देश दिए जाएँ। 1980 के लगभग ‘न्यायिक सक्रियता’ का उदय हुआ तथा समय के साथ-साथ यह धारणा विकसित होती गई। 20 वीं सदी के अंतिम दशक तथा 21 वीं सदी के प्रारंभिक कालों में तो न्यायिक सक्रियतावाद’ भारतीय संविधान और राजव्यवस्था का एक प्रमुख तत्व बन गया।

प्रश्न 4.
“सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक एवं मौलिक अधिकारों का रक्षक है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कह सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक एवं मौलिक अधिकारों का रक्षक है। भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है तथा सर्वोच्च न्यायालय इसका व्याख्याता तथा संरक्षक है। यह कार्यपालिका । या संसद को इसके किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करने देता।

यह सरकार के किसी भी कार्य को जिससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, न्यायिक पुनरावलोकन कर सकता है। यदि सर्वोच्च न्यायालय को लगे कि संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन हो रहा है तो यह संबंधित कानून को असंवैधानिक अथवा अवैध घोषित कर सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के इसी अधिकार के आधार पर इसे संविधान का संरक्षक कहा जाता है। इसे संविधान का समर्थक और लोकतंत्र का रखवाला भी कहा जाता है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका तथा कार्य विशाल एवं विस्तृत हैं।

सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों दोनों को निर्देश देने, आदेश देने तथा संवैधानिक उपचारों के अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार है। यह बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा, उत्प्रेषण लेख के रूप में है।

ये तथ्य सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का संरक्षक तथा प्रहरी बना देते हैं। इस आशय से कि यदि किसी कानुन का उल्लंघन होता है अथवा अधिकार का हनन होता है, तो न्यायालय संवैधानिक नियमों के पालन का आदेश दे सकता है। इस प्रकार भारत के नागरिक मौलिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में सुरक्षित हैं।

यदि विधायिका द्वारा पारित कोई भी कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह इसे रद्द कर दे। इसने ऐसे कई कानून रद्द किए हैं जिनसे मौलिक अधिकारों का हनन होता था। यह दर्शाता है कि किस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने सदैव मौलिक अधिकारों का कार्य किया है।

प्रश्न 5.
‘न्यायिक पुनरावलोकन’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ: इससे आशय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान तथा उसकी सर्वोच्चता की रक्षा करने की व्यवस्था से है। यदि संघीय या राज्य विधानमंडलों द्वारा संविधान का अतिक्रमण किया जाता है, अपनी निश्चित सीमाओं के बाहर कानूनों का निर्माण किया जाता है या मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानूनों का निर्माण किया जाता है, तो संघीय संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि अथवा संघीय या राज्य प्रशासन द्वारा किए गए ऐसे प्रत्येक कार्य को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है।

‘सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ही न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति कहा जाता है। राज्यों के संबंध में इस शक्ति का प्रयोग संबंधित उच्च न्यायालय के द्वारा किया जा सकता है। महत्व-

  1. संविधान द्वारा संघीय व राज्य सरकार के बीच जो शक्ति-विभाजन किया गया है, न्यायिक पुनर्विलोकन के आधार पर ही उसकी रक्षा संभव है।
  2. शासन की शक्ति पर अंकुश रखने तथा नागरिक अधिकारों व स्वतंत्रताओं की रक्षा करने का कार्य भी न्यायिक पुनरावलोकन के आधार पर ही किया जा सकता है।
  3.  न्यायिक पुनरावलोकन शासन की शक्ति को मर्यादित रखने का एक प्रमुख साधन है।
  4. न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था संविधान के संतुलन चक्र का कार्य करती है।
  5.  न्यायिक पुनरावलोकन के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय संविधान के अधिकारिक व्याख्याता तथा रक्षक के रूप में कार्य कर सकते हैं।

(6) कानूनों की वैधानिकता के परीक्षण की शक्ति न्यायिक पुनरावलोकन में सम्बन्धित है। अनुच्छेद 131 तथा 132 सर्वोच्च न्यायालय की, संघीय तथा राज्य सरकार द्वारा निर्मित विधियों के पुनरावलोकन का अधिकार देते हैं। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि न्यायिक पुनरावलोकन के दो शक्तिशाली आधार संघात्मक व्यवस्था तथा मौलिक अधिकार हैं।

प्रश्न 6.
न्यायपालिका की संरचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
न्यायपालिका की संरचना: भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है। जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय एवं सबसे नीचे जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय हैं। नीचे के न्यायालय अपने ऊपर के न्यायालयों की देख-रेख में अपने कार्य का संपादन करते
हैं।
1. भारत का सर्वोच्च न्यायालय-

  1. इसके फैसले देश के समस्त न्यायालयों को मानने होते हैं।
  2. यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानान्तरण कर सकता है।
  3. यह किसी न्यायालय का मुकदमा अपने पास मँगवा सकता है।
  4. यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमें को दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित कर सकता है।

2. उच्च न्यायालय-

  1. यह निचले न्यायालयों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करता है।
  2. यह नागरिकों के अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट (लेख जारी) कर सकता है।
  3. यह राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमों का निपटारा करता है।
  4. यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता है।

3. जिला न्यायालय-

  1. यह जिलों में दायर मुकदमों की सुनवाई करता है।
  2. यह निचले न्यायालयों के फैसलों पर की गई अपील की सुनवाई करता है।
  3. यह गम्भीर किस्म के अपराधिक मामलों पर फैसला देता है।

4. अधीनस्थ न्यायालय – यह न्यायालय फौजदारी एवं दीवानी किस्म के मुकदमों की सुनवाई करता है।

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