RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 16 सामाजिक और आर्थिक न्याय एवं महिला आरक्षण

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 सामाजिक और आर्थिक न्याय एवं महिला आरक्षण

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक व आर्थिक न्याय के सम्बन्ध में संविधान के किस भाग में व्यवस्था की गई है?
(अ) भाग एक
(ब) भाग दो
(स) भाग तीन
(द) भाग चार

प्रश्न 2.
इनमें से कौन – सा कथन सामाजिक न्याय की अवधारणा से मेल नहीं खाता है?
(अ) यह स्वतन्त्रता, समानता व न्याय पर बल देता है।
(ब) यह मानवाधिकारों का पोषण करता है।
(स) यह जातिगत भेदभावों को बढ़ावा देता है।
(द) यह समता की अवधारणा पर आधारित है।

प्रश्न 3.
परम्परागत रूप से शोषित व हाशिए पर स्थित लोगों के उत्थान हेतु संविधान में कौन-सा विशेष प्रावधान किया गया है?
(अ) आरक्षण की व्यवस्था
(ब) सभी को आवास
(स) पंचायती राज व्यवस्था
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अवसर की समानता प्रदान करता है?
(अ) अनुच्छेद 15
(ब) अनुच्छेद 16
(स) अनुच्छेद 20
(द) अनुच्छेद 32

प्रश्न 5.
निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून किस तिथि से प्रभावी हुआ?
(अ) 26 जनवरी 1950
(ब)  4 अगस्त 2009
(स) 1 अप्रैल 2010
(स) 15 अप्रैल 2015

प्रश्न 6.
“भूख से मर रहे व्यक्ति के लिये लोकतन्त्र का कोई महत्व नहीं है।” यह कथन किसका है?
(अ) बीसांक
(ब) पं. नेहरू
(स) लोहिया
(द) अमर्त्य सेन

प्रश्न 7.
महिला आरक्षण से संबंधित कौन-सा संविधान संशोधन अधिनियम संसद में अवलम्बित है?
(अ) 108 वाँ
(ब) 118 वाँ
(स) 43 वाँ
(द) 74 वाँ
उत्तर:
1. (द), 2. (स), 3. (अ), 4. (ब), 5. (स), 6. (ब), 7. (अ)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक न्याय के पक्षधर दो समाज सुधारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसे बहुत से समाज सुधारक हैं जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिये संघर्ष किया। इनमें से दो हैं – महात्मा बुद्ध व महात्मा गाँधी।

प्रश्न 2.
युद्ध या क्रान्ति का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
जिन राज्यों में सामाजिक न्याय का अभाव रहता है वहाँ युद्ध या क्रान्ति की आशंका बनी रहती है।

प्रश्न 3.
भारतीय सामाजिक व्यवस्था के चार वर्ण कौन से थे?
उत्तर:
भारतीय सामाजिक व्यवस्था के चार वर्ण थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र।

प्रश्न 4.
आर्थिक स्थिति के आधार पर समाज में कितने वर्ग पाये जाते हैं? नाम बताइए।
उत्तर:
आर्थिक स्थिति के आधार पर समाज में दो वर्ग पाये जाते हैं- धनी वर्ग (शोषक) एवं निर्धन वर्ग (शोषित)।

प्रश्न 5.
भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति कौन थीं?
उत्तर:
भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी थीं जो सन् 2007 से 2012 तक इस पद पर रहीं।

प्रश्न 6.
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए कितने प्रतिशत पद आरक्षित हैं?
उत्तर:
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत पद आरक्षित हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक न्याय का अर्थ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक न्याय का अर्थ: सामाजिक न्याय का अर्थ है कि समाज के सभी मनुष्यों के मध्य समता व एकता की स्थापना होनी चाहिए। उनके मध्य किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। मानव अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की जाये तथा व्यक्ति की प्रतिष्ठा व गरिमा को महत्व दिया जाए। किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों के आधार पर भेदभाव न करना ही सामाजिक न्याय है।

सामाजिक न्याय की अवधारणा का उद्भव सामाजिक मानदण्डों, आदेशों, कानूनों और नैतिकता के विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। सामाजिक न्याय वह प्रत्यय है जो समाज में रहने वाले सभी लोगों की स्वतन्त्रता, समानता और अधिकारों की रक्षा से सम्बन्धित है। समाज के सभी सदस्यों की क्षमताओं के समुचित विकास की अवस्था को सामाजिक न्याय कहा जा सकता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक न्याय की अवधारणा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक न्याय की अवधारणा: आर्थिक न्याय का अर्थ आर्थिक असमानता को समाप्त करना नहीं वरन् कम करना है। समाज में व्यक्ति-व्यक्ति की आय व सम्पत्ति में इतनी विषमता नहीं होनी चाहिये कि जिससे सामाजिक विषमता उत्पन्न हो जाये। मार्क्सवादी राजनीतिक चिन्तन के अनुसार समाज में सदैव से दो वर्ग रहे हैं – धनी व निर्धन वर्ग अर्थात् शोषक व शोषित वर्ग। इन वर्गों की उपस्थिति के कारण समाज में आर्थिक न्याय की स्थापना नहीं की जा सकती है।’

भारतीय शासन का महत्वपूर्ण लक्ष्य आर्थिक न्याय की स्थापना करना है। आर्थिक विषमता के कारण ही नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, तस्करी व आतंकवाद जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ विकसित हुई हैं जो भारत की एकता व अखण्डता के लिये बड़ी चुनौती हैं। सामाजिक व राजनीतिक न्याय के लिये आर्थिक न्याय अनिवार्य शर्त है। मानव समाज में धन व सम्पत्ति के आधार पर कोई भेद नहीं होना चाहिये। समाज में सभी व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूर्ण होनी चाहिये। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में-“भूख से मर रहे व्यक्ति के लिये लोकतन्त्र का कोई अर्थ एवं महत्व नहीं है।”

प्रश्न 3.
भारत में जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था क्यों की गई?
उत्तर:
भारत में जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था-सामाजिक न्याय का अर्थ है कि समाज के सदस्यों के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये तथा सभी के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिये किन्तु भारतीय समाज का रूढ़िवादी दृष्टिकोण भेदभावपूर्ण था। जातीयता व साम्प्रदायिकता सामाजिक न्याय की स्थापना में सबसे बड़ी बाधाएँ रही हैं।

अनेक समाज सुधारकों जैसे कि महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, कबीर, लोक देवता बाबा रामदेव व महात्मा गाँधी ने भारतीय समाज के भेदभाव व ऊँच – नीच पर आधारित सामाजिक ढाँचे को सुधारने के भरसक प्रयास किये। स्वतन्त्रता के उपरान्त संविधान की प्रस्तावना में भी सामाजिक न्याय को प्राप्त करने की बात कही गई। इसके लिए संविधान में अनेक प्रावधान किये गये। सामाजिक समता की स्थापना के लिये उपेक्षित वर्गों अनुसूचित जाति व जनजाति को सरकारी नौकरियों तथा विधायिका में आरक्षण प्रदान किया गया।

प्रश्न 4.
महिला आरक्षण बिल संसद में पारित नहीं होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
महिलाओं के समुचित विकास के उद्देश्य से एवं उन्हें समानता का स्तर प्रदान करने के लिये महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया तथा संसद एवं विधानसभाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु विधेयक प्रस्तुत किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी ने भी 4 जून 2009 को संसद के समक्ष घोषणा की कि वे महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने का प्रयास करेंगी।

विधेयक को पारित होने के लिए संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन के साथ ही भारत के आधे राज्यों द्वारा पारित होना आवश्यक है। तभी इसे अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है किन्तु दुर्भाग्यवश विभिन्न राजनीतिक दलों की स्वार्थपरता एवं हठधर्मिता के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“सामाजिक न्याय की अवधारणा समता मूलक सामाजिक ढाँचे में ही सम्भव है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? सम्पूर्ण अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक न्याय की अवधारणा सभी मनुष्यों को समान मानने के आग्रह पर आधारित है। इस अवधारणा के अन्तर्गत सामाजिक समानता के सिद्धान्तों के अनुसार नियमों और कानूनों को लागू करने का समर्थन किया जाता है। इसका अभिप्राय है कि समाज के सभी व्यक्तियों के साथ समानता का व्यवहार किया जाये। यदि किसी भी आधार पर किसी व्यक्ति या वर्ग के साथ भेदभाव किया जाता है तो वह उस व्यक्ति या वर्ग के प्रति अन्याय होगा ऐसे में सामाजिक न्याय की कल्पना कैसे की जा सकती है।

सामाजिक न्याय की अवधारणा को प्रमुख उद्देश्य समतामूलक समाज की स्थापना करना है। भारतीय समाज का परम्परागत स्वरूप भेदभावपूर्ण असमानता पर आधारित था । जातीयता व साम्प्रदायिकता भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना में सबसे बड़ी बाधाएँ रही हैं। ये बाधाएँ समानता पर आधारित समाज की स्थापना में बाधा उत्पन्न कर रही थीं।

अनेक समाज सुधारकों ने भारतीय समाज से भेदभाव एवं ऊँच – नीच को समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना के प्रयास किये जिससे सामाजिक न्याय की स्थापना सम्भव हो सके। सामाजिक भेदभाव वस्तुतः एक प्रकार का सामाजिक अन्याय ही है जो असन्तोष एवं विद्रोह का भाव उत्पन्न करता है। यही कारण है कि सामाजिक भेदभाव या असमानता पर आधारित राज्य अस्थायी सिद्ध हुए हैं।

इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है कि भारतीय समाज पहले वर्ण व्यवस्था पर आधारित था। समाज में चार वर्ण थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। इनमें शूद्रों की स्थिति अत्यन्त हीन थी। धीरे – धीरे वर्ण व्यवस्था प्रदूषित होकर जाति – व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। जाति व्यवस्था की रूढ़िवादिता से असमानता, अलगाववाद, क्षेत्रवाद एवं सामाजिक ऊँच – नीच की भावना उत्पन्न हुई जिसका लाभ विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया। अंग्रेजों ने भी अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाकर भारत को पराधीन बनाकर रखा।

स्वतन्त्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राथमिकता देते हुए समानता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। उनकी मान्यता थी कि समानता के अधिकार से ही स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। इसी कारण अनुसूचित जाति व जनजातियों को सरकारी नौकरियों व विधायिकाओं में आरक्षण प्रदान किया गया जिससे कि उन्हें अन्य वर्गों के साथ समानता के स्तर पर लाकर सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सके।

प्रश्न 2.
जनकल्याणकारी राज्य के रूप में भारतीय संविधान के उन प्रावधानों की मीमांसा कीजिए जो आर्थिक न्याय की स्थापना के पक्षधर हैं।
उत्तर:
भारत में आर्थिक न्याय की संकल्पना को व्यावहारिक रूप देने के लिए संविधान में कई प्रावधान किये गए हैं। ऐसे कुछ प्रावधानों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है
अनुच्छेद 16-“राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों के संबंध में समाज के सभी व्यक्तियों को समान अवसर उपलब्ध कराये जाएँगे।”
अनुच्छेद 19(1)6-“सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, व्यापार या आजीविका प्राप्त करने का अधिकार होगा।”
अनुच्छेद 39 – इसके अन्तर्गत निम्न व्यवस्थायें हैं

  1. समान रूप से महिला व पुरुष सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
  2. समुदाय की भौतिक संपत्ति का स्वामित्व और नियन्त्रण इस प्रकार बँटा हो जिससे कि सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो ।
  3. आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार से संचालित हो कि धन और उत्पादन साधनों व संसाधनों का केन्द्रीयकरण न हो।
  4. पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान कार्य के लिये समान वेतन मिले।
  5. श्रमिक पुरुषों व महिलाओं के स्वास्थ्य तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो।

उपर्युक्त संवैधानिक प्रावधानों के अतिरिक्त पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से भी आर्थिक न्याय की स्थापना की दिशा में भरपूर प्रयास किए गए हैं। भारतीय संविधान के भाग 4 में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों (अनुच्छेद 36-51) से भी सामाजिक व आर्थिक न्याय की भावना पुष्ट होती है। उदाहरणार्थ-अनुच्छेद 39 के अन्तर्गत समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान किया गया है जिससे कि जो निर्धन हैं या

किसी अन्य कारण से अपना पक्ष न्यायालय में नहीं रख पाते हैं उनके लिए सरकार का कर्तव्य है कि उन्हें सरकारी खर्चे पर वकील उपलब्ध कराया जाए। अनुच्छेद 39(क) तथा 39(ख) के प्रावधान भी उल्लेखनीय रूप से आर्थिक न्याय से सम्बद्ध हैं। इसकी प्राप्ति के लिए मौलिक अधिकारों में भी कटौती की जा सकती है।  आर्थिक न्याय की स्थापना के उद्देश्य से ही भारत में जर्मीदारी प्रथा व देशी राजाओं के प्रिवीपर्स को भी समाप्त कर दिया गया है।

यद्यपि आर्थिक न्याय की स्थापना हेतु उपर्युक्त व्यवस्थायें की गई हैं किन्तु व्यवहार में अभी भी भारतीय समाज में पर्याप्त आर्थिक विषमताएँ विद्यमान हैं। इस आर्थिक विषमता को समाप्त करने के लिये ठोस व प्रभावशाली व्यवस्थाएँ किए जाने की आवश्यकता है। निस्संदेह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा इस दिशा में सराहनीय प्रयास किये भी जा रहे हैं।

प्रश्न 3.
महिला आरक्षण दिशा व दशा पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
महिला आरक्षण दिशा व दशा: भारतीय समाज पितृसत्तात्मक रहा है। यही कारण है कि परम्परागत रूप से महिलाओं को पुरुषों से हीन माना जाता रहा है। इसी धारणा के कारण भारतीय महिलाओं का समुचित विकास नहीं हो पाया। है। भारतीय महिला खुलकर अपनी क्षमताओं का विकास नहीं कर पायी है और न ही पुरुष प्रधान मानसिकता के समाज ने उसे ऐसा करने दिया है।

पिछले 70 वर्षों में यद्यपि महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है किन्तु रोज़गार प्राप्त करने, उद्योगों में व्यवसाय करने व राजनीतिक क्षेत्रों में कार्य करने के पर्याप्त अवसर भारतीय महिलाओं को अभी तक नहीं मिल पाये हैं। जब तक भारतीय महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक स्थिति पुरुषों के समतुल्य नहीं हो जाती है। तब तक न तो देश का विकास सम्भव है और न ही महिलाओं की प्रगति ।

महिलाओं को सभी क्षेत्रों में पुरुषों के समान सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए जिससे वे पुरुषों के समान विकास कर समाज में समान स्तर प्राप्त कर सकें। महिलाओं को पुरुषों के समान स्तर पर लाने के लिये ही सरकारी नौकरियों व राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण व्यवस्था की गई है। भारतीय सेना – स्थल, जल व वायु सेना भी भारतीय महिलाओं को आंशिक कमीशन के द्वारा नियोजित कर रही है।

अन्य सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है किन्तु फिर भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है। पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण: भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष स्थिति दिलाने के लिए संविधान के 73वें व 74वें संशोधनों द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में 1 / 3 पद सभी श्रेणियों की महिलाओं के लिए आरक्षित किये गये हैं।

इस व्यवस्था से महिलाओं का सामाजिक व राजनीतिक सशक्तिकरण हुआ है। उन्होंने पंचायती क्षेत्र के विकास कार्यों में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। आरक्षण के परिणामस्वरूप पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी 42.3 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है।

संसद व विधानसभा में आरक्षण की माँग: महिलाओं के समुचित व सर्वांगीण विकास के लिए तथा उन्हें पुरुषों के समकक्ष लाने के लिए संसद व विधानसभा में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए जिससे वे स्वयं अपने अधिकारों की सुरक्षा कर सकें। इस हेतु समय – समय पर यह माँग उठाई जाती रही है तथा इस दिशा में प्रयास भी किये जाते। रहे हैं।

उदाहरणार्थ – महिला आरक्षण विधेयक की क्रमशः 1996, 1998, 1999, 2003, 2008, 2010 में बार – बार प्रस्तुति की गई किन्तु दुर्भाग्यवश राजनीतिक दलों की स्वार्थपरता व हठधर्मिता के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका है। वर्तमान में भी इसकी माँग जारी है तथा महिलाओं के उत्थान हेतु अन्य प्रयास भी किये जा रहे हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निम्न में से किसका उल्लेख है?
(अ) सामाजिक न्याय
(ब) राजनीतिक न्याय
(स) आर्थिक न्याय
(द) उक्त सभी का

प्रश्न 2.
निम्न में से क्या सामाजिक न्याय की पूर्ति का साधन है?
(अ) समानता का अधिकार
(ब) स्वतन्त्रता का अधिकार
(स) धार्मिक अधिकार
(द) सम्पत्ति का अधिकार

प्रश्न 3.
संविधान के किस भाग में मौलिक अधिकार वर्णित हैं?
(अ) भाग एक
(ब) भाग दो
(स) भाग तीन
(द) भाग चार

प्रश्न 4.
संविधान के किस अनुच्छेद में सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समान माना गया है?
(अ) अनुच्छेद 14
(ब) अनुच्छेद 15
(स) अनुच्छेद 16
(द) अनुच्छेद 17

प्रश्न 5.
अस्पृश्यता का निषेध किस अनुच्छेद के द्वारा किया गया है?
(अ) अनुच्छेद 16
(ब) अनुच्छेद 17
(स) अनुच्छेद 15
(द) अनुच्छेद 18

प्रश्न 6.
निम्न में से प्रमुख समाज सुधारक हैं
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) महाली स्वामी
(स) कबीर
(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर:
1. (द), 2. (अ), 3. (स), 4. (अ), 5. (ब), 6. (द)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के किस भाग में सामाजिक व आर्थिक न्याय की व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के भाग – चार के अन्तर्गत सामाजिक व आर्थिक न्याय की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 2.
सामाजिक न्याय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामाजिक न्याय का अर्थ है-समतामूलक समाज की स्थापना अर्थात् ऐसे समाज की स्थापना. जिसमें सभी व्यक्तियों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार किया जाए।

प्रश्न 3.
भारत में जाति – व्यवस्था की उत्पत्ति का क्या कारण है?
उत्तर:
प्राचीन भारत में समाज वर्ण व्यवस्था के आधार पर चार वर्षों में विभक्त था। ये वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। कालान्तर में धीरे – धीरे वर्ण व्यवस्था प्रदूषित होकर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई।

प्रश्न 4.
भारतीय समाज पर जाति व्यवस्था का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
जाति व्यवस्था के प्रभाव से भारतीय समाज में असमानता, अलगाववाद, क्षेत्रवाद एवं सामाजिक ऊँच-नीच की भावना उत्पन्न हो गई जिसका लाभ विदेशियों द्वारा उठाया गया।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान निर्माताओं में से किन्हीं दो के नाम दीजिए। उत्तर- भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व डॉ. भीमराव अम्बेडकर का विशिष्ट योगदान रहा।

प्रश्न 6.
किस अधिकार के अभाव में सामाजिक न्याय सम्भव नहीं है?
उत्तर:
समानता के अधिकार के अभाव में सामाजिक न्याय की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 7.
अनुसूचित जातियों व जनजातियों को समानता का स्तर दिलाने के लिए संविधान निर्माताओं ने क्या व्यवस्था की?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों व जनजातियों को समानता का स्तर दिलाने के लिए संविधान निर्माताओं ने इन्हें सरकारी नौकरियों व विधायिका में आरक्षण प्रदान किया।

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन किस भाग के अन्तर्गत किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के भाग-तीन में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में क्या प्रावधान किया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 15 में उल्लिखित है कि ‘धर्म, मूलवंश (नस्ल), जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव निषेध है।’

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान का कौन – सा अनुच्छेद कारखानों में बच्चों से कार्य कराने का निषेध करता है?
उत्तर:
अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बच्चों से काम कराने (बालश्रम) पर रोक लगाता है।

प्रश्न 11.
संविधान के 86वें संशोधन के तहत क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
संविधान के 86वें संशोधन के तहत यह व्यवस्था की गयी है कि राज्य कानून बनाकर निर्धारित करेगा कि 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मौलिक अधिकार के रूप में अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी।

प्रश्न 12.
संविधान का 86वाँ संशोधन कब लागू हुआ?
उत्तर:
संविधान का 86 वाँ संशोधन अधिनियम 4 अगस्त 2009 को अधिनियमित हुआ तथा 1 अप्रैल 2010 को लागू हुआ।

प्रश्न 13.
आर्थिक न्याय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आर्थिक न्याय का अर्थ है – आर्थिक असमानता व विषमता को कम करना

प्रश्न 14.
समाज की आर्थिक स्थिति के संबंध में मार्क्सवादी राजनीतिक चिन्तकों की क्या धारणा रही है?
उत्तर:
माक्र्सवादी राजनीतिक चिन्तकों ने इतिहास की व्याख्या आर्थिक भौतिकवाद के सिद्धान्त के आधार पर करते हुए लिखा है कि समाज में सदैव से दो वर्ग रहे हैं – शोषक वर्ग एवं शोषित वर्ग।

प्रश्न 15.
भारत में निरन्तर बढ़ती हुई आर्थिक विषमता का क्या परिणाम हुआ है?
उत्तर:
भारत के विभिन्न राज्यों में निरन्तर बढ़ती आर्थिक विषमता के कारण ही नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, तस्करी व आतंकवाद जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ विकसित हुई हैं।

प्रश्न, 16.
यह कथन किसका है -“आर्थिक सुरक्षा एवं आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना कोई भी व्यक्ति सच्ची स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकता।”
उत्तर:
यह कथन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रहे फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट का है।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान के कौन – से अनुच्छेद नीति निर्देशक तत्वों से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के भाग चार में अनुच्छेद 36 से 51 नीति निर्देशक तत्वों से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 18.
देशी राजाओं के प्रिवीपर्स एवं जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का मूल कारण क्या रहा है?
उत्तर:
देश में आर्थिक न्याय की स्थापना करना

प्रश्न 19.
डिजिटल डिवाइड क्या है?
उत्तर:
इन्टरनेट व प्रौद्योगिकी का अभी तक गाँवों में अपेक्षित प्रसार नहीं हुआ है। इसे गाँव व शहर के मध्य भेद करने वाली परिघटना के रूप में डिजिटल डिवाइड के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 20.
किन संवैधानिक संशोधनों के द्वारा भारतीय महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण प्रदान किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के 73वें एवं 74वें संवैधानिक संशोधनों के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 1 / 3 पद आरक्षित किये गये हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सत्ता का अस्थायित्व सामान्यतया किन राज्यों में देखा जाता है?
उत्तर:
सामाजिक न्याय के अभाव में किसी भी देश की एकता व अखण्डता अक्षुण्ण नहीं रह सकती है। भारत को विभिन्न सामाजिक विषमताओं, जातिवाद, साम्प्रदायिकतावाद आदि के कारण लम्बे समय तक विदेशी शासन के आधीन रहना पड़ा। यदि किसी राज्य में सामाजिक विषमताएँ अधिक होती हैं तो इसका अभिप्राय है कि वहाँ सामाजिक न्याय का अभाव है।

जिन राज्यों में सामाजिक न्याय का अभाव रहता है वहाँ युद्ध, क्रान्ति, विद्रोह की अधिक आशंका रहती है। यही कारण है कि श्रेष्ठ शासकों के द्वारा अपने राज्य में सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी जाती है। जिन राज्यों और प्रशासकों ने सामाजिक न्याय के सिद्धान्त के विरुद्ध कार्य किया उनकी सत्ता हमेशा अस्थिर रही है।

प्रश्न 2.
अंग्रेज भारत को पराधीन बनाने में क्यों सफल हो सके?
उत्तर:
भारतीय समाज प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था पर आधारित था। समाज चार वर्षों:
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में विभक्त था। कालान्तर में वर्ण व्यवस्था प्रदूषित होकर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। यह जाति व्यवस्था रूढ़िवादिता पर आधारित थी जिसके कारण समाज में असमानता, अलगाववाद, क्षेत्रवाद, सामाजिक ऊँच – नीच के कारण विखण्डन की स्थिति उत्पन्न हुई। इसका लाभ विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया। अंग्रेजों ने भी भारतीय समाज के इस विभाजन का लाभ उठाते हुए ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति अपनाई तथा भारत को पराधीन बनाने में सफल हुए।

प्रश्न 3.
सामाजिक न्याय की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजिक न्याय की प्रकृति – सामाजिक न्याय का अर्थ है कि सामाजिक स्थिति के आधार पर व्यक्तियों के मध्य कोई भेद न किया जाये तथा सभी को विकास के समान अवसर प्राप्त हों। व्यक्ति का किसी भी रूप में शोषण न हो। व्यक्ति एक साध्य है किसी लक्ष्य की पूर्ति का साधन मात्र नहीं ।

राजनीतिक सत्ता का दायित्व है कि वह एक समतामूलक समाज की स्थापना करे। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के आदर्श को कई रूपों में स्वीकार किया गया है। उदाहरणार्थ मौलिक अधिकारों व नीति निर्देशक तत्वों से सम्बन्धित अनुच्छेद इसी दिशा में किए गए सराहनीय प्रयास हैं।

प्रश्न 4.
सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किये गए हैं?
उत्तर:
सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु भारतीय संविधान में प्रावधान:
सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु एक समतामूलक समाज की स्थापना करना आवश्यक है तथा सामाजिक न्याय के अभाव में व्यक्ति का विकास एवं राष्ट्र की एकता कोरी कल्पना है। लोकतन्त्र को व्यावहारिक रूप देने के लिये भी सामाजिक न्याय होना आवश्यक है। यही कारण था कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने सामाजिक न्याय को मूल उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया तथा निम्नलिखित व्यवस्थायें –

  1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का उल्लेख है।
  2. समानता के अधिकार को मौलिक अधिकार में सम्मिलित किया गया।
  3. अनुसूचित जातियों व जनजातियों की स्थिति सुधारने व उनके हितों की रक्षा के लिये उन्हें सरकारी नौकरियों व विधायिका में आरक्षण प्रदान किया गया।
  4. संविधान के भाग – चार के अनुच्छेद 38 में सामाजिक न्याय का उल्लेख करते हुए कहा गया कि राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रणित करे, भरसक कार्यसाधन के रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोककल्याण की उन्नति का प्रयास करेगा।”
    संविधान निर्माताओं ने यह स्पष्टतया समझ लिया था कि सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना के लिए समानता के साथ-साथ न्याय भी आवश्यक है।

प्रश्न 5.
भारत में सामाजिक न्याय की व्यावहारिक स्थिति क्या है?
उत्तर:
भारत में सामाजिक न्याय की व्यावहारिक स्थिति-भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना करने के लिये यद्यपि संविधान के अन्तर्गत विभिन्न व्यवस्थाएँ की गई हैं किन्तु समाज का एक वर्ग आज भी सुविधाविहीन है। संविधान के अन्तर्गत पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था की गई है किन्तु व्यवहार में उसका लाभ सीमित लोगों को ही मिल पा रहा है।

इसका कारण यह है कि सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों में एक ऐसे कुलीन वर्ग का जन्म हुआ है जिसने सरकारी नौकरियों व राजनीति में बार-बार लाभ उठाकर अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया है। एक ही परिवार के लोगों द्वारा बार-बार लाभ उठाने से अन्य लोग वंचित रह गये हैं। शिक्षित वर्ग ही इसका विशेष लाभ उठा सका है।

सामाजिक रूप से पृथक रहने वाली आदिवासी जनजातियाँ व निराश्रित वंचित अनुसूचित जातियाँ इन सुविधाओं का आंशिक लाभ ही ले पाई हैं। भारत की दलीय राजनीति ने वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देकर सामाजिक न्याय को विक्षिप्त कर दिया है। कानूनों के क्रियान्वयन के उपरान्त भी वंचित को दी जाने वाली सुविधाएँ समताधारी न होकर दया, सहानुभूति व करुणा का बीज बन जाती है जो अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।

सामाजिक न्याय के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि सहृदयता से वंचित वर्ग का सामाजिक उत्थान हो। केवल आरक्षण देने मात्र से ही सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती। वंचित वर्ग के मानसिक व शैक्षणिक विकास के सतत्। व सार्थक प्रयास ही उन्हें संकीर्ण सामाजिक क्रियाकलापों से मुक्त रख सकेंगे।

प्रश्न 6.
86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 में सामाजिक न्याय को स्थापित करने की दिशा में क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 में सामाजिक न्याय को स्थापित करने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(क) सामाजिक न्याय को स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत राज्य कानून द्वारा निर्धारित करेगा कि 6 से 14 वर्ष के आयु समूह के सभी बच्चे मौलिक अधिकार के रूप में नि: शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करेंगे। यह अनुच्छेद 4 अगस्त 2009 को संसद द्वारा पारित किया। गया। इस अधिनियम को 1 अप्रैल 2010 से लागू कर दिया गया।

प्रश्न 7.
“आर्थिक न्याय से तात्पर्य व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूर्ण करने से है।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आर्थिक न्याय का अर्थ बताइए।
उत्तर:
मानव समाज में धन वै सम्पत्ति का सदैव से महत्वपूर्ण स्थान रहा है। समाज में सम्मान व प्रतिष्ठा पाने में धन व सम्पत्ति की अहम् भूमिका होती है। किसी राज्य या समाज में धन – सम्पदा का समान वितरण न होने पर आर्थिक असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है। अतः कहा जा सकता है कि धन संपदा का न्यायपूर्ण वितरण ही आर्थिक न्याय है। समाज में सभी की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूर्ण होनी चाहिए।

पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसी तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा था -“भूख से मर रहे व्यक्ति के लिये लोकतन्त्र का कोई अर्थ एवं महत्व नहीं है।” डॉ. राधाकृष्णन ने भी कहा था कि जो लोग गरीबी की ठोकरें खाकर इधर-उधर भटक रहे हैं, जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती और जो भूख से मर रहे हैं, वे संविधान या उसकी विधि पर गर्व नहीं कर सकते।

प्रश्न 8.
आर्थिक न्याय के सन्दर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 में क्या प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर:
आर्थिक न्याय के संदर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 में किए गए प्रावधान:
आर्थिक न्याय के सन्दर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 में प्रावधान किया गया है कि

  1. समान रूप से महिला व प्ररुष सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो।
  2. समुदाय की भौतिक सम्पत्ति का स्वामित्व एवं नियंत्रण इस प्रकार विभाजित हो कि जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो।
  3. पुरुष एवं महिलाओं दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त हो।
  4. आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार संचालित हो कि धन एवं उत्पादन-साधनों व संसाधनों का केन्द्रीयकरण न हो।
  5. श्रमिक पुरुष एवं महिलाओं के स्वास्थ्य एवं शक्ति और बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो एवं आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगार में जाने के लिए विवश न होना पड़े जो उनकी आयु एवं शक्ति के अनुकूल न हो।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान में आर्थिक न्याय के बारे में क्या कहा गया है?
अथवा
भारत में आर्थिक न्याय की संकल्पना को व्यवहार रूप में सफल बनाने के लिए संविधान में कौन-कौन से प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान और आर्थिक न्याय: भारत में आर्थिक न्याय की संकल्पना को व्यवहार रूप में सफल बनाने के लिए संविधान में कई प्रावधान किए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों के सम्बन्ध में समाज के सभी व्यक्तियों को समान अवसर उपलब्ध करवाये जाएँगे। संविधान के अनुच्छेद 19

  1. 6 में प्रावधान है कि समस्त नागरिकों को कोई भी वृत्ति, व्यापार या आजीविका प्राप्त करने का अधिकार होगा। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत भी आर्थिक न्याय के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। अनुच्छेद 39 सबसे उल्लेखनीय उपलब्ध है जिसमें निर्धारित किया गया है, ”राज्य अपनी नीति का विशेषतया ऐसा संचालन नागरिकों कि निश्चय ही
  2. समान रूप से महिला व पुरुष सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो, साथ ही पुरुष महिलाओं दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त हो।”

प्रश्न 10.
भारत में आर्थिक न्याय की स्थापना करने के लिए क्या व्यवस्थाएँ की गई हैं?
उत्तर:
भारत में आर्थिक न्याय की स्थापना हेतु की गयीं व्यवस्थाएँ:
स्वतन्त्रता के पश्चात यद्यपि निर्धनों की स्थिति में सुधार आया है किन्तु फिर भी गरीबी व अमीरी के मध्य का अन्तर बढ़ रहा है। भारत सरकार ने आर्थिक न्याय की स्थापना हेतु निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की हैं

  1. आर्थिक विषमता को दूर करना।
  2. असीमित सम्पत्ति के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाना।
  3. प्रत्येक नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराकर उसकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  4. धन का उचित वितरण करना।
  5. गरीबों के कल्याण हेतु नवीन योजनाओं का निर्माण व क्रियान्वयन।
  6. प्रभावशाली कर प्रणाली की स्थापना व कर प्रणाली में सुधार।
  7. राजनीतिक आधार पर आरक्षण न देकर आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करना।

प्रश्न 11.
पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण की व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण की व्यवस्था :
महिलाओं का समुचित विकास हो सके तथा वे सक्रिय रूप से स्थानीय स्वशासन की गतिविधियों में भाग ले सकें, इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारतीय संविधान के 73वें एवं 74 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में 1 / 3 पद सभी श्रेणियों में महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं।

इस प्रावधान से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की तीव्रता के साथ भागीदारी बढ़ी है जिससे न केवल उनका सामाजिक व राजनीतिक सशक्तिकरण हुआ है अपितु उन्होंने पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से विकास के कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभायी है। अधिकांश महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों ने ग्राम सभा व पंचायत की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभायी है।

इस आरक्षण से स्थानीय स्वशासन के स्तर पर महिलाओं में काफी जागरूकता आई है। भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम समझा जा रहा है। आज आरक्षण के परिणास्वरूप भारत में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी ने 42.3 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर दिया है।

प्रश्न 12.
महिलाओं को आरक्षण की आवश्यकता क्यों है? बताइए।
उत्तर:
महिलाओं की आरक्षण की आवश्यकता- महिलाओं को आरक्षण देने का सबसे ठोस आधार यह है कि अब तक सामाजिक कारणों से महिलाएँ अपना समुचित व सर्वांगीण विकास करने में सफल नहीं हुईं। समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता से महिलाओं के विकास के सभी मार्ग बाधित हो गए है। आरक्षण की आवश्यकता इसलिए है कि वह समस्त सामाजिक प्रतिबन्धों व बाधाओं को दूर कर सके।

राजनीति व समाज में अपना सार्थक योगदान दे सके। उनके सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। लोकसभा व राज्यसभा में आरक्षण द्वारा महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सकारात्मक कदम है जो भारत के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को एवं अधिक मजबूत करेगा।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के आदर्श को किस प्रकार स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय का आदर्श – भारत के संविधान निर्माताओं ने लोककल्याणकारी प्रजातन्त्र की स्थापना के लिए सामाजिक न्याय की स्थापना को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के आदर्श को निम्नलिखित प्रकार से स्वीकार किया गया है। संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख – भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का उल्लेख किया गया है। संविधान मात्र उदारवादी ही नहीं है वरन् सामाजिक न्याय से सम्बद्ध है। सामाजिक न्याय से अभिप्राय सभी मनुष्यों को समान मानने से है।

सामाजिक न्याय की अवधारणा का उद्भव सामाजिक मानदण्डों, आदेशों, कानूनों तथा नैतिकता के विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। मौलिक अधिकारों में व्यवस्था – संविधान निर्माताओं की मान्यता थी कि सामाजिक न्याय की स्थापना एक समतामूलक समाज में ही की जा सकती है।

इसी आधार पर समानता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया। समाज में सभी सदस्यों के मध्य बिना किसी भेदभाव के समानता व एकता की स्थापना की जानी चाहिये। भारतीय समाज में समानता का अभाव प्रारम्भ से रहा है जिसके कारण देश की एकता को खतरा उत्पन्न हुआ तथा विदेशियों ने इसका लाभ उठाया।

अनुच्छेद 14 में भारत के सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 15 में धर्म, मूलवंश (नस्ल), जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध किया गया है।
अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत राज्याधीन पदों पर नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्राप्त है।
अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता का कानूनी तौर पर अन्त कर दिया गया।
अनुच्छेद 23(1) के द्वारा बलातश्रम व बेगार प्रथा पर रोक लगा दी गई।
अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बच्चों से काम कराने अर्थात् बालश्रम पर रोक लगाता है।

आरक्षण व्यवस्था: संविधान निर्माताओं का विचार था कि मात्र समानता के अधिकार से सदियों से अत्याचार सह रहे। वर्गों की स्थिति में सुधार लाना सम्भव नहीं है। अत: उनकी स्थिति सुधारने व उनके हितों की रक्षा हेतु अनुसूचित जाति व जनजाति को सरकारी नौकरियों तथा विधायिका में आरक्षण प्रदान किया गया। आरक्षण का उद्देश्य इन वंचित वर्गों को अन्य वर्गों के समकक्ष लाना था।

नीति निर्देशक तत्वों में व्यवस्था: संविधान के भाग – चार में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 38 में सामाजिक न्याय को आदर्श रूप में स्थापित करते हुए कहा गया है-“राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक कार्यसाधन के रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोककल्याण की उन्नति का प्रयास करेगा।”

अनुच्छेद 41 व 42 में संविधान ने राज्यों को यह दायित्व सौंपा है कि वह काम की यथोचित और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए तथा प्रसूति सहायता के लिए उपबन्ध करेगा।
अनुच्छेद 43 में श्रमिकों के निर्वाह एवं मजदूरी से संबंधित प्रावधान हैं। अनुच्छेद 44 का संबंध नागरिकों के लिए समान व्यवहार संहिता से है।
अनुच्छेद 45 में अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा एवं अर्थ संबंधी हितों की बात कही गई है।
अनुच्छेद 47 के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाना राज्य का कर्तव्य है। इन सब संवैधानिक व्यवस्थाओं के बावजूद सामाजिक न्याय के लक्ष्य को अभी भी प्राप्त नहीं किया जा सका है।

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक न्याय की व्यावहारिक स्थिति क्या है?
उत्तर:
भारत में आर्थिक न्याय की व्यावहारिक स्थिति-भारत में आर्थिक विषमता को समाप्त करने तथा आर्थिक न्याय की स्थापना के सतत् प्रयास किये जाते रहे हैं। आर्थिक न्यायं की संकल्पना को व्यवहार में सफल बनाने के लिए संविधान में कई प्रावधान किये गये हैं। इस संबंध में अनुच्छेद 39 सर्वाधिक उल्लेखनीय है। नीति निर्देशक तत्व भी आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करते हैं।

आर्थिक न्याय की स्थापना के उद्देश्य से ही जमींदारी प्रथा व प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। विकास दर – इन सभी प्रयासों तथा अन्य व्यवस्थाओं एवं योजनाओं के परिणामस्वरूप आज वस्तुस्थिति यह है कि भारत विश्व का सबसे तीव्र विकास दर वाला देश बन गया है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में भारत की विकास दर 7.6 प्रतिशत थी जो कि चीन की 6.7 प्रतिशत विकास दर से आगे है। विमुद्रीकरण – पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर समाप्त कर देना विमुद्रीकरण कहलाता है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने 500 व 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया है।

यह कदम कालाबाजारी, तस्करी एवं आतंकवाद आदि गतिविधियों पर नियन्त्रण हेतु उठाया गया। आशा है कि विमुद्रीकरण के ठोस निर्णय के बाद आगामी वर्षों में भारत की विकास दर 8-9 प्रतिशत हो सकती है। देश की विकास दर में वृद्धि के बावजूद आर्थिक विषमता एवं उससे जुड़ी हुई समस्यायें अभी भी बनी हुई हैं। आर्थिक न्याय की स्थापना तभी हो सकती है जबकि आर्थिक विकास का समुचित लाभ सभी वर्गों को प्राप्त हो विकास दर बढ़ने पर व्यावहारिक स्थिति यह है कि धनी अधिक धनी तथा निर्धन अधिक निर्धन हो रहे हैं।

डिजिटल डिवाइड-देश की विकास दर में सन्तोषजनक वृद्धि हुई है किन्तु उसका लाभ शहरों तक ही सीमित रहा है। भारत के गाँवों में जहाँ लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, वहाँ के लोग अभी भी भीषण अभावों से जूझ रहे हैं। इन्टरनेट व प्रौद्योगिकी का अभी तक गाँवों में अपेक्षित प्रसार नहीं हो पाया है। गाँव व शहर में भेद करने वाली इस परिघटना को डिजिटल डिवाइड के नाम से जाना जाता है।

मेक इन इण्डिया- भारत में निर्माण व उत्पादन क्षेत्र लम्बे समय से पिछड़ रहे थे लेकिन मेक इन इण्डिया परियोजना एवं विदेशी निवेश की सम्भावना से ये क्षेत्र आने वाले समय में शहरों व गाँवों दोनों में रोजगार व ढाँचागत सुधार लाने में सार्थक सिद्ध हो सकता है। भ्रष्टाचार नियन्त्रण का भी इस पर सकारात्मक प्रभाव होगा। स्टार्ट अप इण्डिया – स्टार्ट अप इण्डिया योजना के परिणामस्वरूप ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भी आमूलचूल परिवर्तन आने की सम्भावनाएँ हैं जिसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से गरीबों को भी प्राप्त होगा।

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