RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 14 भारत और वैश्वीकरण

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 भारत और वैश्वीकरण

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के सम्बन्ध में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(अ) यह बाजारोन्मुखी अवधारणा है।
(ब) इसकी शुरूआत 1960 में हुई है।
(स) वैश्वीकरण और पूँजीवाद एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(द) यह एक बहुआयामी परिघटना है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन – सा कथन सही है?
(अ) विभिन्न देशों और समाजों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
(ब) वैश्वीकरण का सभी देशों पर समान प्रभाव रहा है।
(स) वैश्वीकरण का प्रभाव राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(द) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(अ) इसका एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
(ब) इसमें सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही होती है।
(स) इसका कारण एक विशेष समुदाय है।
(द) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के बारे में कौन – सा कथन सही है?
(अ) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है
(ब) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता है।
(स) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्व गौण है
(द) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(अ) वैश्वीकरण के पक्षधरों का तर्क है कि इससे आर्थिक विकास व समृद्धि बढ़ती है।
(ब) वैश्वीकरण के समर्थक मानते हैं कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आयेगी।
(स) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता जायेगी।
(द) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।

उत्तरमाला:
1. (ब) 2. (द) 3. (अ) 4. (द) 5. (स)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय करना वैश्वीकरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
भारत और वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने किया था। व्यवहार में उस समय के वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने ही उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नई आर्थिक नीतियों को शुरू किया।

प्रश्न 3.
निजीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निजीकरण का तात्पर्य है कि आर्थिक क्रियाओं में सरकारी हस्तक्षेप को उत्तरोत्तर कम किया जाए तथा प्रेरणा व प्रतिस्पर्धा पर आधारित निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाए।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के क्या – क्या लाभ हैं?
उत्तर:

  1.  वैश्वीकरण ने संपूर्ण विश्व को एक वैश्विक गाँव के रूप में सम्बद्ध कर दिया है।
  2.  निजीकरण व उदारवाद के कारण आर्थिक विकास में तीव्रता आई है।
  3. वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है।

प्रश्न 5.
भारत में आर्थिक सुधार कब और क्यों प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
सन् 1991 में वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के बाद भारत में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया आरंभ हुई।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के राजनीतिक पक्ष का राज्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राज्य की अवधारणा में परिवर्तन आने लगा। लोककल्याणकारी राज्य का स्थान न्यूनतम अहस्तक्षेपकारी राज्य ने ले लिया।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव किन देशों पर पड़ा?
उत्तर:
वैश्वीकरण का प्रभाव चीन, भारत व ब्राजील जैसे विकासशील देशों पर पड़ा है किन्तु वैश्वीकरण का सर्वाधिक लाभ विकसित देशों को प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष के बारे बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। पश्चिमी पूँजीवादी देश अपने उत्पादों के लिए एशिया व अफ्रीका में बाजार हूँढ़ने में प्रयत्नशील हैं तथा इससे विकसित व विकासशील देशों में आर्थिक प्रवाह तीव्र हुआ है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण का जीवन प्रत्याशा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप विकासशील देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा दुगुनी हो गई है तथा शिशु मृत्यु दर घट गई है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक पक्ष से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष – वैश्वीकरण का राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसका विश्व के देशों की स्थानीय संस्कृतियों पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है। इससे विश्व की परम्परागत संस्कृतियों को सबसे अधिक खतरा पहुँचने की आशंका है। वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है। जिसका देशज संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर पश्चिमी संस्कृतियों को अन्य स्थानीय,संस्कृतियों पर थोपा जा रहा है। वैश्वीकरण का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि प्रौद्योगिकी के विकास व प्रवाह से एक नवीन विश्व संस्कृति के उदय की प्रबल संम्भावनाएँ बन गई हैं। इन्टरनेट, सोशल मीडिया, फैक्स, उपग्रह तथा केबल टी.वी. ने विभिन्न राष्ट्रों के मध्य विद्यमान सांस्कृतिक बाधाओं को हटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के प्रमुख प्रभाव क्या रहे हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण के प्रमुख प्रभाव:
वैश्वीकरण के विभिन्न क्षेत्रों में निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगत होते हैं

  1. राजनीतिक प्रभाव – विश्व का राजनीतिक पर्यावरण वैश्वीकरण के प्रभाव में आ गया है। राष्ट्रीय राज्य की अवधारणा में परिवर्तन आने लगी है। लोक कल्याणकारी राज्य का स्थान न्यूनतम अहस्तक्षेपकारी राज्य ने ले लिया है।
  2. आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। उदारीकरण की नीति को अपनाया जा रहा है। आयात पर प्रतिबन्ध शिथिल हो गए हैं। धनी देशों के निवेशकर्ता अन्य देशों में निवेश कर रहे हैं। बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग व व्यापारिक लेन-देन की प्रक्रियाएँ सरल हो गई हैं।
  3. सांस्कृतिक प्रभाव – वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है किन्तु इससे देशज संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर उन पर पश्चिमी संस्कृति को थोपा जा रहा है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव:
यद्यपि कतिपय आधारों पर वैश्वीकरण की आलोचना की जाती रही है। किन्तु इसके सकारात्मक प्रभावों को भी नकारा नहीं जा सकता है जो कि इस प्रकार हैं

  1. विकासशील देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा का दोगुना होना व शिशु मृत्यु दर का घटना।
  2.  वयस्क मताधिकार का व्यापक विस्तार।
  3. लोगों के भोजन में पौष्टिकता को बढ़ाना
  4. बालश्रम में कमी।
  5. प्रति व्यक्ति विद्युत, कार, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाइल फोन आदि सुविधाओं की उपलब्धता।
  6. स्वच्छ जल की उपलब्धता
  7. सेवा-क्षेत्रों में अभूतपूर्व सुधार।
  8.  जीवन को अधिक खुशहाल बनाना।

प्रश्न 4.
भारत में भूमण्डलीकरण क्यों अपनाया गया? कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में भूमण्डलीकरण (वैश्वीकरण) को अपनाये जाने के चार प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. आर्थिक गतिविधियों का कौशल सामर्थ्य बढ़ाने एवं उससे मिलने वाले लाभ के प्रतिशत में अधिकतम वृद्धि करने के लिए।
  2.  औपनिवेश काल के प्रभाव से उत्पन्न वित्तीय संकट की स्थिति से उबरने के लिए।
  3.  सन् 1991 में वैश्वीकरण से जुड़ने के बाद भारत ने नई आर्थिक प्रक्रिया के तहत उदारीकरण की प्रक्रिया को अपनाया। सन् 1992 – 93 से रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया। आयात-निर्यात नीति से प्रतिबन्ध हटाये गये। जनवरी 1995 को भारत विश्व व्यापर संगठन’ का सदस्य बन गया। भारत ने उन सभी नियमों व औपचारिकताओं को समाप्त करना आरम्भ किया जो आर्थिक विकास में बाधक थे।
  4. प्रशासनिक क्षेत्र में भी अनेक सुधार किये गये।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के विरोध के मुख्य आधार क्या हैं? समझाइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के विरोध के प्रमुख आधार: वैश्वीकरण के विरोध में निम्नलिखित आधार प्रस्तुत किये जाते रहे।

  1. वैश्वीकरण से राष्ट्र की आर्थिक स्वायत्तता प्रभावित होने की आशंका रहती है।
  2. अर्द्ध विकसित व विकासशील देशों की विकसित देशों का पिछलग्गू बनने की संभावना रहती है।
  3. वैश्वीकरण एक राष्ट्र की सम्प्रभुता व आत्म निर्भरता को प्रभावित कर सकता है।
  4. भूमण्डलीकरण भारत जैसे विकासशील व अन्य पिछड़े देशों के लिए कभी भी घातक सिद्ध हो सकता है।
  5. भारत के संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्राहक देश बनकर रह जाने की आशंका व्यक्त की जाती है।
  6. वैश्वीकरण, उदारीकरण व निजीकरण की परिस्थितियाँ विकासशील व्यवस्थाओं में अनेक प्रकार की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक समस्याओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
  7. वैश्वीकरण की व्यवस्था उपनिवेशवादी मानसिकता को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण ने राष्ट्रीय सम्प्रभुता को किस प्रकार प्रभावित किया है? बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का राष्ट्रीय सम्प्रभुता पर प्रभाव-वैश्वीकरण के कारण राष्ट्रीय राज्य की अवधारणा में परिवर्तन आया है। सम्पूर्ण विश्व में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की स्थापना होने से विभिन्न राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हुई है। यद्यपि राजनीतिक समुदाय के रूप में राज्य की प्रधानता को अभी भी कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व राजनीति में आज भी राष्ट्रीय राज्य की महत्ता बनी हुई है।

यद्यपि यह भी सत्य है कि वैश्वीकरण राष्ट्रीय राज्यों को कमजोर बना रहा है लेकिन राष्ट्रीय राज्यों का अस्तित्व समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है। वैश्विक समस्याओं का निराकरण करने हेतु जो अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ स्थापित की गई हैं, वे राष्ट्रीय राज्यों की हिस्सेदारी व भागीदारी पर आधारित हैं तथा राष्ट्रीय सम्प्रभुता के मौलिक सिद्धान्तों का सम्मान करती हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण क्या है? इसके राजनीतिक व आर्थिक प्रभावों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ:
वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण विश्व के सभी भागों को एक सूत्र में बाँधने की प्रक्रिया है। यह एक बहुआयामी अवधारणा है तथा जीवन के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित है। वैश्वीकरण ने विश्व को एक छोटे से गाँव में परिवर्तित कर दिया है क्योंकि विश्व में दूर – दूर स्थित देश अब अपने को एक-दूसरे के निकट महसूस करते हैं। वैश्वीकरण की प्रवृत्ति को तीव्र करने में प्रौद्योगिकी का विशेष योगदान रहा है।

अन्य शब्दों में, वैश्वीकरण का अर्थ है। अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण, विश्वव्यापार का खुलना, उन्नत संचार साधनों का विकास, वित्तीय बाजारों का अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कंपनी का महत्व बढ़ना, जनसंख्या का देशान्तर गमन, व्यक्तियों, वस्तुओं, पूँजी, आँकड़ों व विचारों की गतिशीलता बढ़ना वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने विविधता से विश्व को एकल समाज में परिवर्तित कर दिया है।

वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव :
वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिक परिवर्तन, एकीकृत अर्थव्यवस्था एवं अन्य प्रभावकारी प्रवृत्तियों के कारण संपूर्ण विश्व का राजनीतिक पर्यावरण वैश्वीकरण के प्रभाव में आ गया है। विकसित देशों में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का स्थान न्यूनतम अहस्तक्षेपकारी राज्य ने ले लिया। संपूर्ण विश्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थापित हो चुकी हैं।

इससे सरकारों की स्वायत्तता प्रभावित हुई है किन्तु फिर भी राष्ट्रीय राज्य की महत्ता अभी भी कायम है। तकनीकी क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में नागरिकों का जीवन स्तर उल्लेखनीय रूप से सुधरा है। वैश्विक स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं ताकि विभिन्न राष्ट्र मिलजुल कर वैश्विक समस्याओं का निवारण कर सकें। सभी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ राष्ट्रीय सम्प्रभुता के मौलिक सिद्धान्तों का सम्मान करती हैं।

वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव:
वैश्वीकरण के दौरान पूँजीवादी देश एशिया व अफ्रीका में अपने उत्पादों के लिए बाजार हूँढ़ने में प्रयत्नशील रहे। प्रत्येक देश ने अपना बाजार विदेशी वस्तुओं की बिक्री के लिये खोल दिया। ‘अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, और विश्व व्यापार संगठन’ विश्व में आर्थिक नीतियों के निर्धारण में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

विकसित देशों के साथ – साथ चीन, भारत व ब्राजील जैसे विकासशील देश भी इस प्रक्रिया से लाभान्वित हुए हैं। वैश्वीकरण के दौरान आर्थिक प्रतिबन्ध शिथिल होने से विभिन्न देशों में आर्थिक प्रवाह तीव्र हुआ है। बैंकिंग, ऑन लाइन शॉपिंग एवं व्यापारिक लेन-देन की प्रक्रिया अब इन्टरनेट से सम्बद्ध होने के कारण सरल हो गई है।

वैश्वीकरण का सभी देशों पर समान आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ा है। कुछ देशों ने तीव्र आर्थिक प्रगति की है तथा कुछ देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ गये हैं। एक ओर कुछ लोग वैश्वीकरण को ‘नवउपनिवेशवाद’ कहकर इसकी निन्दा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर समर्थकों का मानना है कि वैश्वीकरण से विकास व समृद्धि आयी है तथा लोगों का जीवन खुशहाल बना है।

प्रश्न 2.
भारत व वैश्वीकरण पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
भारत व वैश्वीकरण:
भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने किया था। अमेरिकान्मुख वैश्वीकरण का अनुकरण करने के कारण उन्हें कई बार आलोचना का केन्द्र बनना पड़ा। व्यवहार में उस समय के वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने नई आर्थिक नीतियों (वैश्वीकरण, निजीकरण व उदारीकरण) को शुरू किया।

नई आर्थिक नीति:
सन् 1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति के तहत उदारीकरण की प्रक्रिया को अपनाया। 1992 – 93 से रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया। पूँजी बाजार और वित्तीय सुधारों के लिये कदम उठाये गये। आयात – निर्यात को सुधारा गया तथा प्रतिबन्धों को हटाया गया।

दिसम्बर 1994 में एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने उन नियमों व औपचारिकताओं को समाप्त कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधक बनी हुई थीं। जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना होने पर भारत इसका सदस्य बन गया। सरकारी तन्त्र की जटिलताओं को कम करने के लिये प्रशासनिक सुधार किये गये।

भारतीय राजनीति पर वैश्वीकरण का प्रभाव: भारतीय राजनीति पर वैश्वीकरण के प्रभाव से संबंधित निम्नलिखित विचार व्यक्त किये जाते रहे हैं

1. वैश्वीकरण के कारण अर्थव्यवस्था की कमजोरी से देश की आर्थिक स्थिति पर विषम प्रभाव पड़ा है क्योंकि यह विकसित देशों की बराबरी नहीं कर सकता है। यदि भारतीय राज्य को संतुलित, समग्र और समाजवादी विकास की अभिवृद्धि करनी है तो राष्ट्रीय सरकार की शक्तियों में भी बढ़ोत्तरी करनी पड़ेगी। प्रतिस्पर्धा व बेहतर सेवा प्रदान करने के लिये केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को अपनाना होगा।

2. वैश्वीकरण की प्रवृत्ति वैधता का संकट उत्पन्न करती है। एक ओर राष्ट्रीय राज्य अपनी आर्थिक सम्प्रभुता को तो कम कर देता है किन्तु आन्तरिक सम्प्रभुता का परित्याग करने में संकोच करता है। घरेलू सम्प्रभुता को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय राज्य, को स्थानीय लोकतान्त्रिक संरचनाओं की रचना करनी पड़ती है ताकि राज्य की वैधता आगे बढ़ सके।

3. भारतीय संघवाद के सामने वैश्वीकरण की एक चुनौती है- नागरिक समाज संगठनों की तीव्र वृद्धि। इनमें से कुछ संगठन लोकतान्त्रिक शासन की समानान्तर तथा क्षैतिज संरचनाएँ उत्पन्न कर देते हैं। इससे लोकतन्त्र के संचालन पर बुरा प्रभाव डलता है।

सामाजिक क्षेत्र पर वैश्वीकरण का प्रभाव:
भारत में वैश्वीकरण का आर्थिक क्षेत्र में तो सकारात्मक प्रभाव हुआ है। किन्तु सामाजिक क्षेत्र में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। देश के युवाओं ने पश्चिमी प्रभाव में आकर मान – मर्यादा, रीति – रिवाज का परित्याग कर दिया है। सामाजिकता का स्थान स्वार्थपरता ने ले लिया है। वैश्वीकरण के प्रभाव से व्यक्ति के नैतिक चरित्र में गिरावट आई है तथा मूल्य विहीनता की स्थिति उत्पन्न हुई है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सोवियत संघ व उसके समर्थक देश निम्न में से किस संगठन के सदस्य नहीं थे?
(अ) विश्व बैंक
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(स) व्यापार व टैरिफ सामान्य समझौता (गैट)
(द) उपरोक्त सभी

प्रश्न 2.
सोवियत संघ का विभाजन किस वर्ष हुआ?
(अ) 1990
(ब) 1991
(स) 1992
(द) 1993

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण का अर्थ है
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण
(ब) वित्तीय बाजारों का अन्तर्राष्ट्रीयकरण
(स) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के महत्व में वृद्धि
(द) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव किस क्षेत्र पर हुआ?
(अ) आर्थिक
(ब) सामाजिक
(स) राजनीतिक
(द) सांस्कृतिक

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण में सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर किस संस्कृति को थोपा जा रहा है?
(अ) भारतीय संस्कृति
(ब) पाश्चात्य संस्कृति
(स) यूरोपीय संस्कृति
(द) चीनी संस्कृति

प्रश्न 6.
निम्न में से किस वर्ष भारत ने नई आर्थिक नीति को अपनाया था?
(अ) सन् 1991
(ब) सन् 1992
(स) सन् 2011
(द) सन् 1916

उत्तर:
1. (द) 2. (ब) 3. (द) 4. (अ) 5. (ब) 6. (अ)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व का वैचारिक आधार पर विभाजन कब हुआ?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व विचारधारा के आधार पर दो भागों में विभक्त हो गया। ये विचारधाराएँ। र्थी-पूँजीवादी विचारधारा एवं साम्यवादी विचारधार।

प्रश्न 2.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व किन दो गुटों में विभक्त हो गया।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया। प्रथम गुट संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवाद, निजीकरण व उदारवाद का समर्थन कर रहा था जबकि दूसरा गुट सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद का समर्थक था।

प्रश्न 3.
साम्यवादी देश किन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य नहीं थे?
उत्तर:
साम्यवादी देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य थे किन्तु विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं गैट (GATT) जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य नहीं थे।

प्रश्न 4.
साम्यवादी और पूँजीवादी गुट की अर्थव्यवस्थाओं में क्या अन्तर था?
उत्तर:
साम्यवादी देशों में निरंकुश सत्ता और स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था प्रचलन में थी जबकि पूँजीवादी गुट में निजी स्वामित्व और बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था विद्यमान थी।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध का क्या अर्थ है?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के मध्य उत्पन्न तनाव की स्थिति को शीत युद्ध कहा गया। इसमें वास्तविक युद्ध नहीं हुआ किन्तु युद्ध की संभावना निरन्तर बनी रही।

प्रश्न 6.
साम्यवाद के पतन के क्या कारण थे?
उत्तर:
साम्यवादी देशों के पास इतने साधन नही थे कि वे गरीबी और असमानता का निवारण कर सकें। इन देशों की प्रशासनिक अव्यवस्था एवं हथियारों की अन्धाधुन्ध दौड़ के कारण आर्थिक विषमता निरन्तर बढ़ रही थी। अतः साम्यवाद का पतन निश्चित था।

प्रश्न 7.
सोवियत संघ का विभाजन कब हुआ? उत्तर-सन् 1991 में सोवियत संघ का विभाजन हुआ। प्रश्न 8. वैश्वीकरण से क्या आशय है? ।
उत्तर:
वैश्वीकरण से आशय किसी वस्तु, सेवा, पूँजी तथा विचारों का एक देश से दूसरे देश में निर्बाध रुप से आदान प्रदान से है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण के लिए जिम्मेदार कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. प्रौद्योगिकी
  2. लोगों की सोच में विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव को बढ़ाना।

प्रश्न 10.
किन – किन आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार क्रान्ति ला दी है?
उत्तर:
टेलीग्राफ, टेलीफोन तथा माइक्रोचिप के नवीनतम् आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार क्रान्ति ला दी है।

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में विश्व में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के स्थान पर किस अवधारणा ने ले ली है?
उत्तर:
न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की अवधारणा ने।

प्रश्न 12.
विश्व में आर्थिक नीतियों के निर्धारण में किन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है?
उत्तर:
विश्व में आर्थिक नीतियों के निर्धारण में ‘ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ व ‘विश्व व्यापार संगठन’ प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

प्रश्न 13.
विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव हुआ है?
उत्तर:
विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर वैश्वीकरण का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ये देश विदेशी निवेश के आकर्षण के केन्द्र बन गए हैं।

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक जीवन पर क्या प्रभाव हुआ है?
उत्तर:
वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है जिससे देशज संस्कृतियों को खतरा पहुँचता है। सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति को थोपा जा रहा है।

प्रश्न 15.
किन्हीं तीन अन्तर्राष्ट्रीय समाचार सेवाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सी.एन.एन. (संयुक्त राज्य अमेरिका)
  2. बी.बी.सी.(ब्रिटिश) एवं
  3. अल जजीरा (मध्य पूर्व)

प्रश्न 16.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1 जनवरी 1995 को हुई।

प्रश्न 17.
क्या कारण है कि चीन के उत्पाद विश्व के अधिकांश देशों में हैं?
उत्तर:
आज चीन के उत्पाद विश्व के अधिकांश देशों के बाजारों में उपलब्ध हैं क्योंकि वहाँ मजदूरी सस्ती है जो उसे अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा में मददगार साबित हुई है।

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण का लोक संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण आज किसी भी देश का गीत-संगीत विश्व के हर कोने में सुना जा सकता है। इसने लोक संस्कृति के प्रसार को तो बढ़ाया है किन्तु इसने राष्ट्रीय संगीत को प्रदूषित कर दिया है। पाश्चात्य सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का वर्चस्व बढ़ा है।

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण का भारत के सामाजिक क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
वैश्वीकरण का भारत के सामाजिक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सामाजिकता का स्थान स्वार्थपरता ने ले लिया है। युवाओं ने पश्चिमी प्रभाव में आकर मान-मर्यादा को त्याग दिया है तथा उनके नैतिक चरित्र का ह्रास हुआ है।

प्रश्न 20.
वैश्वीकरण की कोई दो उपलब्धियाँ लिखिए।
उत्तर:

  1. विकासशील देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा का दोगुना होना तथा शिशु मृत्यु दर का घटना।
  2. वयस्क मताधिकार का व्यापक विस्तार होना।

प्रश्न 21.
मिखाइल गोर्बाचोव के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचोव सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति थे। उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पेरेस्त्रोइका वे ग्लासनोत की नीतियों की घोषणा की किन्तु इन नीतियों ने विघटन का कार्य किया और सन् 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया।

प्रश्न 22.
अर्द्धविकसित एवं अविकसित देशों पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव हुआ है?
उत्तर:
वैश्वीकरण का सर्वाधिक लाभ विकसित देशों को प्राप्त हुआ है। विकासशील देशों पर भी सकारात्मक प्रभाव हुआ है किन्तु अविकसित एवं अर्द्धविकसित देशों में तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम सुधार हुए हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व परिदृश्य क्या था? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व विचारधारा के आधार पर दो भागों में बँट गया। एक ओर पूँजीवाद, निजीकरण और उदारवाद का समर्थन करने वाले देश थे जिनका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। दूसरी ओर सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी व समाजवादी विचारधारा के देश थे। दोनों गुट संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य थे किन्तु सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट के सदस्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा गैट के सदस्य नहीं थे।

सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी देशों में निरंकुश सत्ता एवं स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था प्रचलन में थी वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले पूँजीपति देशों में निजी स्वामित्व वाली बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था प्रचलन में थी। साम्यवादी व्यवस्था में निर्धनता, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और शोषण को दूर करने की सम्भावनाएँ अन्तर्निहित र्थी लेकिन स्वत्रंत्रता, प्रेरणा एवं खुशहाली की संभावना न्यूनतम थीं।

नौकरशाही तंत्र पूर्ण रूप से साम्यवादी व्यवस्थाओं पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए था। वहीं पूँजीवाद अर्द्धविकसित व विकासशील देशों को स्वतंत्रता, प्रेरणा और विकास का सपना दिखाकर अपनी ओर आकर्षित कर रहा था लेकिन निर्धनता व शोषण की समाप्ति के प्रति उदासीन था।

प्रश्न 2.
सोवियत संघ का विघटन किन परिस्थितियों में हुआ?
उत्तर:
पूँजीवादी गुट के अग्रणी देश संयुक्त राज्य अमेरिका को यह आभास था कि जहाँ – जहाँ गरीबी, विषमता और पूँजीवाद के तत्व मौजूद होंगे, वहाँ-वहाँ साम्यवाद तेजी से पनप सकता है। अतः अमेरिकी गुट ने वर्चस्व वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के माध्यम से इन देशों में गरीबी व असमानता दूर करने के प्रयास किये।

साम्यवादी गुट के पास न तो इतने साधन थे और न ही सामर्थ्य कि वे गरीबी व असमानता दूर कर सकें। प्रशासनिक अव्यवस्था व हथियारों की दौड़ के कारण साम्यवादी देशों में आर्थिक विषमता बढ़ रही थी। गोर्बाचोव की पेरेस्त्रोइका वे ग्लासनोत की नीति ने इस कार्य को आगे बढ़ाया तथा सन् 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध क्या है? इसका अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
शीतयुद्ध से आशय – शीतयुद्ध से आशय उस अवस्था से है जब दो या दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण तो हो लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के मध्य युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन युद्ध जैसी स्थिति बनी रही। यह स्थिति शीतयुद्ध के नाम से जानी जाती है। शीतयुद्ध का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव – शीतयुद्ध के कारण विश्व को दो गुटों में विभाजन हो गया।

एक गुट पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हो गया तो दूसरा गुट साम्यवादी सोवियत संघ के साथ हो गया। इन गुटों में सम्मिलित देशों को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ समझौता करना पड़ा तथा जो किसी गुट में सम्मिलित नहीं हुए उन पर अपने गुट में सम्मिलित होने के लिए दोनों महाशक्तियों द्वारा दबाव डाला गया। शीतयुद्ध में शस्त्रीकरण को भी बढ़ावा मिला तथा परमाणु युद्ध का भय भी उत्पन्न हो गया।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण की अवधारणा – जब कोई देश विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी एवं बौद्धिक सम्पदा आदि का बिना किसी प्रतिबन्ध के परस्पर आदान-प्रदान करता है तो इसे वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में वर्तमान समय में संचार क्रान्ति ने सम्पूर्ण विश्व की दूरियाँ कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व एक विश्व गाँव में परिवर्तित हो गया है।

विश्व में संचार क्रांति की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक नयी विचारधारा का जन्म हुआ है।वैश्वीकरण की बुनियादी बात है – प्रवाह। प्रवाह कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे – विचार प्रवाह, वस्तु प्रवाह, व्यापार प्रवाह, पूँजी प्रवाह एवं आवाजाही का प्रवाह आदि। इन सब प्रवाहों की निरन्तरता से विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव उत्पन्न हुआ है तथा यह जुड़ाव निरन्तर बना हुआ है। इन सबका मिला – जुला रूप वैश्वीकरण की अवधारणा है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा- वैश्वीकरण को एक बहुआयामी अवधारणा कहा जा सकता है। क्योंकि यह कई पक्षों से सम्बन्धित हैं, जैसे- राजनीतिक पक्ष, आर्थिक पक्ष, सांस्कृतिक पक्ष आदि। वैश्वीकरण से विचारों का प्रवाह पूँजी का प्रवाह, वस्तुओं व सेवा प्रवाह तथा आवाजाही का प्रवाह बढ़ता है, जिससे व्यापार में वृद्धि होती है, पूँजी निवेश बढ़ता है। वस्तुओं एवं सेवाओं की आवाजाही एक देश से दूसरे देश में बढ़ती है। इससे वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष की जानकारी प्राप्त होती है लेकिन यह मान लेना गलत है कि वैश्वीकरण एकमात्र आर्थिक परिघटना है।

वैश्वीकरण का राजनीतिक पक्ष भी है क्योंकि वैश्वीकरण एकमात्र आर्थिक परिघटना है। वैश्वीकरण का राजनीतिक पक्ष भी है क्योंकि वैश्वीकरण के कारण कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ चुकी है तथा इसके स्थान पर न्यूनतम हस्तक्षेप राज्य की अवधारणा स्थापित हुई है। वैश्वीकरण के राजनीतिक तथा आर्थिक पक्ष के साथ-साथ एक सांस्कृतिक पक्ष भी है। वैश्वीकरण से हमारी पसन्द-नापसन्द का निर्धारण होता है। हम जो कुछ विशेष प्रकार का खाते-पीते एवं पहनते हैं अथवा सोचते हैं। इन सभी पर इसका प्रभाव दिखलाई देता है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के कारण बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण- वैश्वीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(i) प्रौद्योगिकी की प्रगति – वैश्वीकरण के लिए प्रमुख जिम्मेदार कारक प्रौद्योगिकी में प्रगति है। टेलग्राफ, टेलीफोन । एवं माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के मध्य संचार की क्रान्ति कर दिखाई है। बिचार, पूँजी, वस्तु एवं लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही में आसानी हुई है। इन प्रवाहों की गति में अन्तर हो सकता है।

उदाहरण – विश्व के विभिन्न भागों के मध्य पूँजी एवं वस्तु की गतिशीलता, लोगों के आवागमन की तुलना में अधिक तीव्र तथा व्यापक हुई है। इसी प्रकार हमारे सोचने-समझने के तरीके पर भी प्रौद्योगिकी का प्रभाव पड़ रहा है। हम अपने एवं सामूहिक जीवन के बारे में किस ढंग से सोचते हैं उस पर भी प्रौद्योगिकी का प्रभाव पड़ा है।

(ii) लोगों की सोच में विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का बढ़ना – विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब समझ रहे हैं कि वे आपस में जुड़े हुए हैं। आज हम इस बात को लेकर सतर्क हैं कि विश्व के एक हिस्से में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे हिस्से में भी पड़ेगा। सुनामी अथवा अन्य भीषण आपदाएँ भी राष्ट्र की सीमाओं में सिमटे नहीं रहते। इस प्रकार की घटनाएँ राष्ट्रीय सीमाओं का जोर नहीं मानती हैं। ठीक इसी प्रकार जब कोई बड़ी घटना घटती है तो उसका प्रभाव सीमित नहीं रहकर सम्पूर्ण विश्व में महसूस किया जाता है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण को एक विश्वव्यापी प्रवाह के रूप में समझाइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो विश्व के दूरस्थ भागों को जोड़ती है। इससे एक का दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। राज्यों के बीच बढ़ती हुई अन्त:क्रिया व अन्त:निर्भरता इसी के परिणाम हैं। वैश्वीकरण को एक विश्वव्यापी प्रवाह के रूप में समझा जाना चाहिये जो विश्वव्यापी जुड़ाव से पैदा हुआ है। विश्वव्यापी प्रवाह के निम्नलिखित उदाहरण हैं

  1. विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना।
  2. पूँजी का एक से अधिक देशों में जाना।
  3. वस्तुओं का विभिन्न देशों में पहुँचना।
  4. बेहतर आजीविका की तलाश में विश्व के विभिन्न देशों में लोगों की आवाजाही। वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है जिसने विश्व को एक छोटे से गाँव का रूप दे दिया।

इससे विश्व के दूर – दूर तक फैले देशों के लोग अब अपने को एक – दूसरे के निकट अनुभव करते हैं। इस विश्वव्यापी प्रवाह में यातायात व संचार साधनों, इन्टरनेट व सोशल मीडिया आदि का विशेष योगदान रहा है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभावों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने जोर पकड़ा। आर्थिक वैश्वीकरण के कारण विश्व के विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक प्रवाह तीव्र हो गया है। इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूँजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हो गया है।

वैश्वीकरण के कारण अब विचारों का प्रवाह की अबाध हो गया है। इन्टरनेट तथा कम्प्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार हुआ है। वैश्वीकरण के कारण अब विचारों का प्रवाह भी अबाध हो गया है। इन्टरनेट तथा कम्प्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार हुआ है। वैश्वीकरण के कारण विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों ने एक – सी आर्थिक नीतियों को अपनाया है।

यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों का मत है कि वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश लोगों को लाभ हुआ है। उनके जीवन-स्तर में सुधार हुआ है तथा खुशहाली बढ़ी है परन्तु इसके आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ सम्पूर्ण आबादी को नहीं मिलकर एक छोटे से वर्ग को ही प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 9.
“वैश्वीकरण का अलग-अलग देशों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ा है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अलग – अलग देशों पर अलग – अलग प्रभाव पड़ा। कुछ देशों की अर्थव्यवस्था तेज गति से प्रगति कर रही है। वहीं कुछ देश आर्थिक रूप से पिछड़ गये हैं। वैश्वीकरण के दौर में सामाजिक न्याय की स्थापना अभी भी संकट में है। सरकार का संरक्षण छिन जाने के कारण समाज के कमजोर वर्ग को लाभ की अपेक्षा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

कई विद्वान वैश्वीकरण के दौर में पिछड़े लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवच तैयार करने की बात कर रहे हैं। कुछ लोग वैश्वीकरण को नवउपनिवेशवाद का नाम देकर उसकी आलोचना कर रहे हैं। वहीं वैश्वीकरण के समर्थकों का मत है कि वैश्वीकरण ने विकास व समृद्धि को बढ़ाया है। आम जनता की खुशहाली बढ़ी है। प्रत्येक देश वैश्वीकरण से लाभ प्राप्त कर रहा है।

प्रश्न 10.
“वैश्वीकरण का आर्थिक प्रभाव नकारात्मक रहा है।” कथन को सिद्ध कीजिए। अथवा आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में कौन – कौन से तर्क दिये जा सकते हैं।
उत्तर:
आर्थिक वैश्वीकरण के विरोध में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं
(i) विश्व जनमत का विभाजन – आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में जनमत बड़ी गहराई में विभाजित हो गया है।

(ii) सरकारों द्वारा सामाजिक न्याय की उपेक्षा – आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें अपनी कुछ जिम्मेदारियों से अपना हाथ खींच रही हैं। इस कारण सामाजिक न्याय के पक्षधर लोग चिन्तित हैं। इनका कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण से जनसंख्या के एक बड़े वर्ग पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जाएँगे।

(iii) गरीब देशों के लिए अहितकर – विश्व भर में हो रहे अनेक आन्दोलनों ने बलपूर्वक किए जा रहे वैश्वीकरण को रोकने की आवाज बुलन्द की है क्योंकि इससे गरीब देश आर्थिक रूप से बर्बादी के कगार पर पहुँच जाएँगे। विशेषकर इन देशों के गरीब लोग एकदम बदहाल हो जाएंगे।

(iv) विश्व का पुनः उपनिवेशीकरण – विश्व के कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि वर्तमान विश्व में हो रही आर्थिक गतिविधियाँ धीरे-धीरे पुनः उपनिवेशीकरण का रूप ले लेगी।

प्रश्न 11.
विश्व के विभिन्न देशों की संस्कृति पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है? बताइए।
उत्तर:
विश्व के विभिन्न देशों की संस्कृति पर वैश्वीकरण का मिश्रित प्रभाव पड़ा है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से विश्व की परम्परागत सांस्कृतियों के सम्मुख खतरा होने की आशंका जतायी जा रही है। वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव विशिष्ट देशज सांस्कृतियों पर पड़ता है।

वैश्वीकरण के अन्तर्गत सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर पश्चिमी संस्कृति को थोपा जा रहा है जिससे खान – पान, रहन – सहन व जीवनशैली पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। वैश्वीकरण का नकारात्मक पक्ष यह है कि प्रौद्योगिकी के विकास व प्रवाह से एक नवीन विश्व संस्कृति के उदय की मजबूत भावनाएँ बढ़ गयी हैं।

प्रश्न 12.
I. सांस्कृतिक प्रवाह बढ़ाने में किन माध्यमों का योगदान रहा है? बताइए। उत्तर-सांस्कृतिक प्रवाह बढ़ाने में विभिन्न माध्यमों का योगदान रहा। इन्हें दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है
सूचनात्मक सेवाएँ:

  1. इंटरनेट व ईमेल से सूचनाओं का आदान – प्रदान।
  2. इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति ने सूचनाओं को जनतान्त्रिक बना दिया है।
  3. विचारों एवं धारणाओं का आदान-प्रदान आसान बनाना।
  4. सूचना तकनीकी के विस्तार से डिजीटल क्रान्ति आई है वहीं विषम डिजीटल दरार भी उत्पन्न हुई है।
  5. अविकसित, अर्द्धविकसित व कुछ विकासशील देशों में सूचना सेवाओं पर राज्य का नियन्त्रण है।
  6. एक विशिष्ट समूह द्वारा सूचना माध्यमों पर आधिपत्य स्थापित कर लेना अलोकतान्त्रिक है।

II. समाचार सेवाएँ – सी.एन.एन. (संयुक्त राज्य अमेरिका), बी.बी.सी. (ब्रिटिश) एवं अल जजीरा (मध्य पूर्व) आदि सैकड़ों अन्तर्राष्ट्रीय चैनलों का विश्वव्यापी प्रसारण हो रहा है जिसने वैश्वीकरण को अधिक प्रभावशाली बना दिया है।

प्रश्न 13.
भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात कब और किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने किया था। वे अमेरिकोन्मुख वैश्वीकरण के लिये कई बार आलोचना के केन्द्र बने। व्यवहार में उस समय के वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने ही वैश्वीकरण, उदारीकरण व निजीकरण की नई आर्थिक नीतियों को शुरू किया। नई आर्थिक नीति को अपनाने के बाद 1992 – 93 से रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया। पूँजी बाजार और वित्तीय सुधारों के लिये कदम उठाये गये।

प्रतिबन्धों को हटाकर आयात – निर्यात नीति को सुधारा गया। 30 दिसम्बर 1994 में भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किये तथा 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना होने पर भारत इसका सदस्य बन गया। समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने उन सभी नियमों व औपचारिकताओं को समाप्त करना आरम्भ कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधक बने हुए थे। प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार किये गये तथा सरकारी तन्त्र की जटिलताओं को समाप्त किया गया।

भारतीय राजनीति पर वैश्वीकरण के प्रभाव को लेकर विभिन्न मत व्यक्त किये जाते रहे हैं। एक मत यह है कि वैश्वीकरण के कारण अर्थव्यवस्था की ढील से देश के आर्थिक विकास पर विषम प्रभाव पड़ा है। दूसरा मत यह है कि वैश्वीकरण की प्रवृत्ति वैधता का संकट उत्पन्न करती है। एक तीसरे मत के अनुसार वैश्वीकरण के कारण नागरिक संगठनों में तीव्र वृद्धि हुई है।

प्रश्न 14.
भारतीय संघवाद वस्तुतः अर्द्धसंघवाद है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत की संघीय परियोजना एक तरफ औपनिवेशिक विरासत से प्रभावित थी वहीं दूसरी तरफ यह राष्ट्र निर्माण की बाध्यताओं और चुनौतियों के प्रति प्रतिक्रिया थी। संविधान निर्माताओं को यह अपेक्षाएँ थीं कि उनके द्वारा दिया गया संस्थागत ढाँचा देश की जटिल विविधताओं और राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपट सकेगा।

भारतीय संघ में बहुलवाद और विकेन्द्रीयकरण की प्रवृत्तियाँ भी मौजूद हैं। इन दोनों विरोधी प्रवृत्तियों का सह – अस्तित्व भारत के संघवाद को अर्धसंघवाद बनाता है। वर्तमान में वैश्वीकरण के भारत पर विभिन्न प्रभाव पड़े हैं जिसके कारण निम्नलिखित चुनौतियाँ उभर कर सामने आई हैं

  1. भारत वैश्वीकरण की सकारात्मक प्रवृत्तियों का लाभ लेने में विकसित राष्ट्रों की बराबरी नहीं कर सका है।
  2. वैश्वीकरण वैधता का संकट उत्पन्न करता है जिसमें आर्थिक सम्प्रभुता तो सीमित की जा सकती है किन्तु आन्तरिक सम्प्रभुता नहीं।
  3. भारतीय संघवाद के सामने वैश्वीकरण की तीसरी चुनौती है-नागरिक समाज संगठनों में तीव्र वृद्धि, जिनके विकास का लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 15
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है? बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान – वैश्वोकरण का एक महत्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति है। इसमें कोई शक नहीं कि टेलीग्राम, टेलीफोन तथा माइक्रोचिप एवं कम्प्यूटर व इन्टरनेट के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार क्रांति कर दिखाई है। इस प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारे सोचने के तरीके एवं सामूहिक जीवन की गतिविधियों पर उसी तरह पड़ रहा है जिस तरह मुद्रण की तकनीकी का प्रभाव राष्ट्रवादी भावनाओं पर पड़ा था।

हम जानते हैं कि वैश्वीकरण का मूल तत्व है विचारों, वस्तुओं, पूँजी एवं व्यक्तियों का विश्वव्यापी प्रवाह। प्रौद्योगिक की तकनीकों ने इन चारों चीजों के प्रवाह की गति व पहुँच को बढ़ाने के साथ-साथ उसे सरल बना दिया है। उदाहरण के लिए विश्व के विभिन्न भागों के बीच पूँजी व वस्तु की गतिशीलता अत्यन्त तीव्र व व्यापक है।

आज इन्टरनेट की सुविधा के चलते ई – कॉमर्स ई – बैंकिंग ई – लर्निंग सी तकनीक अस्तित्व में आ गई है जिनके द्वारा विश्व के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में व्यापार किया जा सकता है। बाजार खोजे जा सकते हैं तथा ज्ञान के लिए नए स्रोत खोजे जा सकते हैं। निष्कर्षतः प्रौद्योगिकी, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को सरल, तेज एवं व्यापक बना दिया है।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण के प्रमुख परिणाम बताइये।
उत्तर:
वैश्वीकरण के प्रमुख परिणाम: वैश्वीकरण के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. वस्तुएँ, पूँजी, लोग, ज्ञान संचार, हथियार, अपराध, फैशन, विचार एवं विश्वास तेज गति से एक देश से दूसरे देश में पहुँच जाते हैं।
  2. वैश्वीकरण ने वैश्वीकृत संस्कृति के साथ एक वैश्विक व्यवस्था को जन्म दिया है।
  3. वैश्वीकरण एक प्रक्रिया के रूप में जन आन्दोलन एवं पलायन को प्रेरित करता है जिसका सबसे अधिक प्रभाव बुजुर्गों पर पड़ता है।
  4. वैश्वीकरण ने यूरोप व अन्य राज्यों में शरणार्थी समस्या को जन्म दिया है।
  5. वैश्वीकरण ने गरीब देशों, कामगारों एवं प्राकृतिक पर्यावरण के हितों की अनदेखी करते हुए केवल कॉरपोरेट जगत के हितों की पूर्ति की है।

प्रश्न 17.
वैश्वीकरण की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण की उपलब्धियाँ: वैश्वीकरण की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. विकासशील देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा दुगनी हुई है।
  2. विकासशील देशों में शिशु मृत्यु दर घटी है।
  3. बालश्रम घटा है।
  4. लोगों के भोजन में पौष्टिकता बढ़ी है।
  5. स्वच्छ जल उपलब्ध हुआ है।
  6. प्रत्येक सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार हुआ है।
  7. जीवन अधिक खुशहाल बना है।
  8. प्रति व्यक्ति को विद्युत, कार, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाइल फोन आदि सुविधाएँ उपलब्ध हुई हैं।
  9. वयस्क मताधिकार का व्यापक विस्तार हुआ है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 14 निबंधात्मक प्रश्न।

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभाव: वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(i) वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों के हस्तक्षेप से राज्य की स्थिति कमजोर हुई है। राज्यों के कार्य करने की क्षमता अर्थात् सरकारों को जो करना है उसे करने की ताकत में कमी आयी है। सम्पूर्ण विश्व में आज लोक कल्याणकारी राज्य का स्थान न्यूनतम हस्तक्षेप वाले राज्य ने ले लिया है।

अब राज्य मुख्य कार्यों तक ही अपने को सीमित रखता है, जैसेकानून एवं व्यवस्था को बनाये रखना एवं अपने नागरिकों की सुरक्षा करना। इस प्रकार राज्य ने स्वयं को कई ऐसे लोक कल्याणकारी कार्यों से अलग कर लिया है जिसका लक्ष्य आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण होता था। लोक कल्याणकारी राज्य के स्थान पर अब बाजार आर्थिक एवं सामाजिक प्राथमिकताओं का मुख्य निर्धारक है।

(ii) कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के चलते राज्य की शक्तियाँ कम नहीं हुई हैं। राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नही मिली है। राज्य कानून एवं व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपने अनिवार्य कार्यों को पूरा कर रहे हैं एवं अपनी इच्छा से कई कार्यों से राज्य अपने आपको अलग कर रहे हैं।

(iii) वैश्वीकरण के कारण राज्यों को आधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है, जिसके बल पर राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं। इन सूचनाओं के आधार पर राज्य अधिक कारगर ढंग से कार्य कर सकते हैं। उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि हुई है।

(2) वैश्वीकरण का आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण का आर्थिक प्रभाव सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक जोर पकड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रिया में विश्व के विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं तो कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा शक्तिशाली देशों द्वारा थोपे जाते हैं।

वैश्वीकरण वैश्वीकरण के अन्तर्गत वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी, विचारों तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में आवागमन आसान हुआ है। विश्व के अधिकांश देशों ने आयात से प्रतिबन्ध हटाकर अपने बाजारों को विश्व समुदाय के लिए खोल दिया है। अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विकासशील देशों में निवेश कर रही हैं।

यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार इससे अधिकांश लोगों को लाभ प्राप्त होगा परन्तु वैश्वीकरण के आलोचक इस कथन से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार विकसित देशों ने अपने बीजा नियमों को कठोर बनाना शुरू कर दिया है जिससे लोगों के वैश्विक आवागमन में कमी आयी है। इसके अतिरिक्त आर्थिक वैश्वीकरण का लाभ धनिक वर्ग को अधिक प्राप्त हुआ है। निर्धन वर्ग आज भी इसके लाभों से वंचित है।

(3) वैश्वीकरण का सांस्कृतिक प्रभाव – वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव ने भी लोगों को प्रभावित किया है। वैश्वीकरण का हमारे खाने – पीने, पहनने एवं सोचने पर प्रभाव पड़ रहा है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस बात को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचायेगी।

विश्व संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है, जिससे एक देश विशेष की संस्कृति के पतन का डर उत्पन्न हो गया है। परन्तु वैश्वीकरण के समर्थकों का मत है कि वैश्वीकरण से संस्कृति के पतन की आशंका निराधार है, उनके अनुसार इससे एक मिश्रित संस्कृति का उदय होता है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
अथवा
“वैश्वीकरण ने विश्व की राज व्यवथाओं को प्रभावित किया है।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव: वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है
(1) वैश्वीकरण द्वारा कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति को कमजोर करना – वैश्वीकरण ने कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति को कम किया है। वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता अर्थात् सरकारों को जो करना है उसे करने की शक्ति में कमी आती है,।

  1. वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गयी है। इसके स्थान पर राज्य की एक नयी अवधारणा को विकास हुआ है जिसे न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा कहा जाता है। इस धारणा को अपनाये जाने के कारण राज्य अब कुछ कार्यों तक ही अपने को सीमित रखता है, जैसे- कानून एवं व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना आदि।
  2. राज्य पूर्व में कई लोककल्याणकारी कार्य करता था कल्याणकारी राज्य के स्थान पर अब बाजार आर्थिक एवं सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक बन गया है।
  3. कुछ राष्ट्रीय कम्पनियों के प्रभाव में कृषि वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में विशेषकर विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने पैर पसार लिए हैं। उनकी भूमिका में वृद्धि हुई है। इससे सरकारों को अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आयी है।

(2) कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति पर वैश्वीकरण का कोई प्रभाव नहीं- यह बात ध्यान रखने योग्य है कि वैश्वीकरण से सदैव राज्य की शक्ति में कमी नहीं आती है। राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को वैश्वीकरण से कोई चुनौती नहीं मिली है एवं राज इस अर्थ में आज भी प्रमुख है।

वैश्विक राजनीति में अब भी विभिन्न देशों के मध्य मौजूद पुरानी ईष्र्या एवं प्रतिद्वन्द्विता विद्यमान है। आज भी राज्य कानून एवं व्यवस्था तथा राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अनिवार्य कार्यों को पूर्ण कर रहे हैं। राज्य बहुत सोच-समझकर अपने कदम उन्हीं कार्यों से खींच रहे हैं, जहाँ उनकी मर्जी हो । राज्य अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं।

(3) वैश्वीकरण द्वारा कुछ क्षेत्रों में राज्य की शक्ति में वृद्धि- कुछ क्षेत्रों में वैश्वीकरण के कारण राज्य की शक्ति में वृद्धि भी हुई है। वर्तमान विश्व में वैश्वीकरण के कारण राज्यों के पास आधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बल पर राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकता है। इन सूचनाओं के बल पर राज्य अधिक कारगर ढंग से कार्य कर सकते हैं। इस क्षेत्र में राज्यों की क्षमता बढ़ी है। इस प्रकार प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप राज्य अब पूर्व की तुलना में अधिक शक्तिशाली हुए हैं।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव क्या रहे? इस सन्दर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है? बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं
(1) वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। पश्चिमी पूँजीवादी देश एशिया एवं अफ्रीका में अपने उत्पादों के लिए बाजार हूँढने का प्रयास कर रहे हैं।

(2) विश्व में आर्थिक नीतियों के निर्धारण में अब अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन के साथ-साथ अन्य समूह व संस्थाएँ यथा बहुराष्ट्रीय निगम शामिल होते हैं। पहले यह कार्य मुख्यतः अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किया जाता था।

(3) वैश्वीकरण के कारण दुनिया के देशों के मध्य आर्थिक प्रवाह तेज हो गए हैं। ये प्रवाह स्वैच्छिक भी हो सकते हैं। तथा बाध्यकारी भी।

(4) देशों के मध्य व्यापार व पूँजी के प्रवाह में लगे पूर्व प्रतिबन्ध अब शिथिल हो गए हैं। उदाहरण के लिए धनी देश अपनी पूँजी उन विकासशील देशों में लगा सकते हैं, जहाँ उन्हें अधिक लाभ हो रहा है।

(5) व्यापार व पूँजी प्रवाह की तुलना में देशों के मध्य व्यक्तियों का प्रवाह अब भी सीमित है। कई देश बीजा नीति में छूट देने के लिए तैयार नहीं हैं।

(6) वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों में लगभग एक साथ व्यापारिक व पूँजी निवेश नीतियों को अपनाया गया है। परन्तु विभिन्न देशों में इसका प्रभाव अलग-अलग है।

(7) वैश्वीकरण के कारण राज्य आर्थिक क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारी कम करते जा रहे हैं। इससे निजीकरण व उदारीकरण को बढ़ावा मिला है तथा सामाजिक व आर्थिक न्याय के क्षेत्र में राज्य की भूमिका कम हुई है।

(8) वैश्वीकरण के कारण आर्थिक क्षेत्र में देशों के मध्य पारस्परिक निर्भरता बढ़ रही है।

(9) वैश्वीकरण ने पूरी दुनिया में वैचारिक क्रान्ति लाने का कार्य किया है। अब विचारों के आदान – प्रदान में राष्ट्रीय सीमाओं का असर समाप्त हो गया है। इन्टरनेट एवं कम्प्यूटर से जुड़ी सेवाओं जैसे बैंकिग, ऑनलाइन शॉपिग व व्यापारिक लेन – देन तो बहुत सरल हो गया है।

वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव: भारत में वैश्वीकरण का सूत्रपात, जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने किया था। सन् 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। सन् 1992 – 93 से रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया। पूँजी बाजार तथा वित्तीय सुधारों के लिए कदम उठाए गए।

आयात – निर्यात नीति को सुधारा गया है। इसमें प्रतिबन्धों को हटाया गया हैं। 30 दिसम्बर 1994 को भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतावादी दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई तथा भारत इस पर हस्ताक्षर करके इसका सदस्य बन गया। समझौते पर हस्तक्षर करने के बाद भारत ने अनेक नियमों तथा औपचारिकताओं को समाप्त करना शुरू कर दिया।

वैश्वीकरण में भारतीय उत्पादकों को वस्तुओं तथा सेवाओं के अनेक विकल्प दिए हैं तथा भारतीय उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उच्च गुणवता वाली वस्तुओं की प्राप्ति होती है। उपभोक्ता को विश्व स्तर की वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध होती। हैं। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है, जिससे देश में उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण ने संपूर्ण विश्व को एक वैश्विक गाँव में परिवर्तित कर दिया है। विश्व के एक हिस्से में घटित घटना का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व पर पड़ता है। वैश्वीकरण का प्रभाव सभी देशों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक स्थितियों पर देखने को मिलता है। वैश्वीकरण को सर्वाधिक प्रभाव आर्थिक पक्ष पर पड़ा है। यद्यपि अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक प्रभाव हुआ है। यहाँ हम सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेंगे।

वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभाव-साम्यवादी विचारधारा का पतन होने पर विश्व में अमेरिका के नेतृत्व में एक ध्रुवीय व्यवस्था अस्तित्व में आई। धीरे – धीरे अन्य देशों का झुकाव पूँजीवाद व बाजारोन्मुखी प्रवृत्ति की ओर बढ़ने लगा। इसी के साथ सामाजिक जीवन में भी पाश्चात्य मूल्यों को प्रवेश होने लगा। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

हमारे युवाओं ने पश्चिमी प्रभाव में आकर मान – मर्यादा, रीति – रिवाज का परित्याग कर दिया है। सामाजिकता का स्थान स्वार्थपरता ने ले लिया है तथा मूल्य विहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव – वैश्वीकरण का लोगों के सांस्कृतिक जीवन पर भी काफी प्रभाव पड़ा है। इससे विश्व की परम्परागत संस्कृतियों को खतरा पहुँचने की आशंका है।

वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता को जन्म देता है। जिसको विशिष्ट देशज संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सांस्कृतिक समरूपता के नाम पर पश्चिमी सांस्कृतिक मूल्यों को अन्य स्थानीय संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वैश्वीकरण का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि प्रौद्योगिकी के विकास के प्रवाह से एक नवीन विश्व संस्कृति के उदय की प्रबल सम्भावनाएँ बन गई हैं।

इन्टरनेट, सोशल मीडिया, फैक्स, उपग्रह तथा केबल टी.वी. ने विभिन्न राष्ट्रों के मध्य विद्यमान सांस्कृतिक बाधाओं को हटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय चैनलों जैसे कि सी.एन.एन., बी.बी.सी. व अल जजीरा ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। वैश्वीकरण के कारण आज किसी भी देश का गीत- संगीत विश्व के हर कोने में सुना जा सकता है।

किन्तु इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि इसने राष्ट्रीय संगीत को दूषित कर दिया है। पाश्चात्य सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का वर्चस्व बढ़ा है। पॉप कल्चर ने शास्त्रीय संगीत परम्परा पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है। पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण ने परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास किया है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के परिणाम-वैश्वीकरण ने आज सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में बाँध दिया है। वैश्वीकरण ने वैश्विक संस्कृति के साथ एक वैश्विक व्यवस्था को जन्म दिया है। इस प्रक्रिया ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। यह प्रभाव सकारात्मक वे नकारात्मक दोनों रूपों में देखने को मिलता है।

वैश्वीकरण की आलोचना: वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों के कारण निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती रही है

  1. वैश्वीकरण ने यूरोप व अन्य राज्यों में शरणार्थी समस्या को जन्म दिया है। 2016 तक 7.4 अरब जनसंख्या में से लगभग 60 करोड़ लोग शरणार्थी है अर्थात् हर 122 वाँ व्यक्ति शरणार्थी है।
  2. कुछ आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण केवल कॉरपोरेट सेक्टर व उद्योगपतियों के हितों का संवर्धन करता है और इसका गरीब वर्ग के हितों से कोई सरोकार नहीं है।
  3. आलोचकों का मत है कि वैश्वीकरण की मुक्त बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था से विश्व की जो अपेक्षाएँ थी, वे पूरी नहीं हो सकी हैं।
  4. वैश्वीकरण बड़े देशों के साम्राज्यवाद का एक नवीन रूप है।
  5. वैश्वीकरण ऋण आधारित अर्थव्यवस्था को थोपने के लिये कटिबद्ध है जिसके कारण ऋण में तीव्र वृद्धि एवं ऋण संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।
  6. वैश्वीकरण एक राष्ट्र की स्वायत्तता, सम्प्रभुता और आत्म-निर्भरता को प्रभावित कर सकता है।
  7. यह प्रक्रिया विकासशील देशों के लिए कभी भी घातक सिद्ध हो सकती है। यह नव – उपनिवेशवादी मानसिकता को बढ़ावा देती है।

वैश्वीकरण की उपलब्धियाँ: आलोचनाओं के बावजूद वैश्वीकरण की सकारात्मक भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। वैश्वीकरण की निम्नलिखित उपलब्धियाँ रही हैं-

  1. विकासशील देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशी का दोगुना होना व शिशु मृत्यु-दर कम होना।
  2. वयस्क मताधिकार का व्यापक विस्तार।
  3. लोगों के भोजन में पौष्टिकता को बढ़ना।
  4. संचार सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  5. स्वच्छ जल उपलब्ध कराना।
  6. सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार।
  7. जीवन को अधिक खुशहाल बनाना।

वैश्वीकरण का सर्वाधिक लाभ विकसित देशों को प्राप्त हुआ है। विकासशील देशों पर सकारात्मक प्रभाव हुए हैं किन्तु अर्द्धविकसित व विकसित देशों को अपेक्षाकृत कम लाभ हुए हैं।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभावों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(1) वैश्वीकरण के सकारात्मक आर्थिक प्रभाव:

(i) वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि – वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई है। अलग-अलग देशों ने अपने यहाँ होने वाले आयात पर लगने वाले प्रतिबन्धों को कम किया है।

(ii) पूँजी के प्रवाह में वृद्धि – वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में पूँजी की आवाजाही में वृद्धि हुई। पूँजी के आवाजाही पर अब अपेक्षाकृत कम प्रतिबन्ध हैं। अब धनी देश के निवेशकर्ता अपने धन का अपने देश के स्थान में कहीं और निवेश कर सकते हैं विशेषकर विकासशील देशों में उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होगा।

(iii) विचारों के समक्ष राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं – वैश्वीकरण के कारण अब विचारों के समक्ष राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रभाव अबाध हो उठा है। इन्टरनेट तथा कम्प्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है।

(iv) व्यक्तियों के आवागमन में वृद्धि – वैश्वीकरण के कारण एक देश से दूसरे देश में लोगों के आवागमन में वृद्धि हुई है। एक देश के लोग दूसरे देश में काम-धन्धा कर रहे हैं, यद्यपि लोगों का आवागमन वस्तुओं एवं पूँजी के प्रवाह की गति से नहीं बढ़ा है।

(v) आर्थिक समृद्धि का बढ़ना – वैश्वीकरण के कारण लोगों की आर्थिक समृद्धि बढ़ी है एवं खुलेपन के कारण अधिकाधिक जनसंख्या की खुशहाली बढ़ी है।

(vi) पारस्परिक जुड़ाव का बढ़ना – आर्थिक वैश्वीकरण से लोगों में पारस्परिक जुड़ाव बढ़ रहा है। पारस्परिक निर्भरता की गति अब तीव्र हो गयी है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न भागों में सरकार व्यवसाय तथा लोगों के मध्य जुड़ाव बढ़ रहा है।

(2) वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक प्रभाव:

  1. जनता का विभाजन – आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व में जनता बड़ी गहराई से विभाजित हो गई है।
  2. सरकारों द्वारा सामाजिक न्याय की उपेक्षा – आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें अपनी कल जिम्मेदारियों से हाथ खींच रही हैं। इस कारण सामाजिक न्याय के पक्षधर लोग चिन्तित हैं। इनका मत है कि आर्थिक वैश्वीकरण से एक ही वर्ग को विशिष्ट लाभ प्राप्त हुआ है, जबकि नौकरी एवं जनकल्याण के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदलहाल हो रहे हैं।
  3. गरीब देशों के लिए अहितकर – विश्वभर में हो रहे अनेक आन्दोलनों ने बलपूर्वक किये जा रहे वैश्वीकरण को रोकने की आवाज उठायी है। क्योंकि इसने गरीब देश आर्थिक रूप से बर्बादी के कगार पर पहुँच रहे हैं।
  4. विश्व के पुनः उपनिवेशीकरण का भय – विश्व के कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने चिन्ता जाहिर की है कि वर्तमान विश्व में हो रहा आर्थिक वैश्वीकरण धीरे धीरे पुनः उपनिवेशीकरण की ओर ले जा रहा है।

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