RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार

हेलो स्टूडेंट्स, यहां हमने राजस्थान बोर्ड Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार सॉल्यूशंस को दिया हैं। यह solutions स्टूडेंट के परीक्षा में बहुत सहायक होंगे | Student RBSE solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार pdf Download करे| RBSE solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार notes will help you.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
शीघ्रनाशी वस्तुओं का बाजार होता है –
(अ) राष्ट्रीय
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय
(स) स्थानीय
(द) प्रादेशिक

प्रश्न 2.
प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत का निर्धारण कैसे होता है?
(अ) विक्रेता द्वारा।
(ब) माँग व पूर्ति के साम्य द्वारा
(स) सरकार द्वारा
(द) वित्त मंत्री द्वारा

प्रश्न 3.
प्रतियोगी बाजार में दीर्घकाल में फर्मों को प्राप्त होता है –
(अ) असामान्य लाभ
(ब) हानि
(स) सामान्य लाभ
(द) शून्य लाभ

प्रश्न 4.
क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या किस बाजार में अत्यधिक (असंख्य) होती है?
(अ) अल्पाधिकार
(ब) पूर्ण प्रतियोगी बाजार
(स) एकाधिकारात्मक प्रतियोगी बाजार
(द) द्वयाधिकार

प्रश्न 5.
राजस्थानी चुनरी’ का बाजार कहलायेगी –
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय
(ब) राष्ट्रीय
(स) प्रादेशिक
(द) स्थानीय

उत्तरमाला:

  1. (स)
  2. (ब)
  3. (स)
  4. (ब)
  5. (स)

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बाजार से आशय उस समस्त क्षेत्र से लगाया जाता है जिसमें क्रेता एवं विक्रेता स्पर्धायुक्त वातावरण में फैले होते हैं।

प्रश्न 2.
‘विशिष्ट बाजार’ के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. आभूषण बाजार
  2. कपड़ा बाजार।

प्रश्न 3.
ऑनलाइन बाजार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऑनलाइन बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें वस्तुओं का क्रय-विक्रय इन्टरनेट के माध्यम से होता है। क्रेता एवं विक्रेता का प्रत्यक्ष सामना नहीं होता है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, होमशॉप 18 इसके उदाहरण है।

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन में कोई रुकावट नहीं होती है।
  2. साधनों में पूर्ण गतिशीलता पाई जाती है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खुदरा बाजार एवं थोक बाजार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
थोक बाजार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय बड़ी मात्रा में होता है तथा थोक व्यापारियों एवं खुदरा व्यापारियों के बीच , लेन-देन होते हैं, जबकि फुटकर बाजार में खुदरा विक्रेता सीधे उपभोक्ताओं को सामान बेचते हैं। थोक व्यापार की तुलना में खुदरा व्यापार में कीमतें ऊँची होती हैं।

प्रश्न 2.
अति अल्पकालीन बाजार से आप क्या समझते हैं? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर:
अति अल्पकालीन बाजार वह होता है जिसमें समयावधि इतनी कम होती है कि वस्तु की पूर्ति में कमी या वृद्धि करनासम्भव नहीं होता है। इस बाजार में वस्तु की पूर्ति पूर्णतया स्थिर रहती है। शीघ्र नाशवान वस्तुओं के बाजार इसी श्रेणी में आते हैं।
जैसे – दूध, फल, सब्जी आदि के बाजार। इस बाजार में केवल माँग में ही परिवर्तन होता रहता है। इस बाजार में माँग व पूर्ति के वक्र निम्न रेखाचित्र में प्रदर्शित किए गये हैं –
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
चित्र में x अक्ष पर वस्तु की माँग व पूर्ति तथा y अक्ष पर वस्तु की कीमत दर्शायी गई है। पूर्ति वक्र SQ एक खड़ी रेखा है जो स्थिर पूर्ति की द्योतक है। माँग वक्र DD व पूर्ति वक्र SQ E बिन्दु पर काटते हैं अतः वस्तु की कीमत OP है। जब वस्तु की माँग बढ़ने पर माँग वक्र D1D1 हो जाता है तो साम्य बिन्दु E1 हो जाता है तथा वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है। इसके विपरीत जब माँग घटने पर माँग वक्र D2D2 हो जाता है तो साम्य बिन्दु E2 हो जाता है तथा वस्तु की कीमत घटकर OP2 रह जाती : है। इससे स्पष्ट है कि अति अल्पकालीन बाजार में कीमत निर्धारण में माँग की ही अहम् भूमिका रहती है।

प्रश्न 3.
समय के आधार पर बाजार को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
समय के आधार पर बाजार को निम्न चार भागों में बाँटा जाता है –

  1. अति अल्पकालीन बाजार
  2. अल्पकालीन बाजार
  3. दीर्घकालीन बाजार
  4. अति दीर्घकालीन बाजार।

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार – यह बाजार की ऐसी अवस्था होती है जिसमें फर्मे मूल्य निर्धारक न होकर स्वीकार करने वाली होती हैं। वस्तु का मूल्य उद्योग की माँग व पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है। इस बाजार में वस्तु समरूप होती है तथा उसका एक ही मूल्य प्रचलित होता है। इस बाजार में विक्रेताओं में पूर्ण प्रतिस्पर्धा होती है। व्यक्तिगत क्रेता वे विक्रेता मूल्य को प्रभावित करने में समर्थ नहीं होता है। यह एक काल्पनिक अवधारणा है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(i) क्रेताओं एवं विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है तथा उनकी कुल माँग एवं कुल पूर्ति में व्यक्तिगत हिस्सा नगण्य होता है। इस कारण व्यक्तिगत रूप से वह माँग एवं पूर्ति को प्रभावित करके वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने में समर्थ नहीं होते हैं। उन्हें तो उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य ही स्वीकार करना होता है।

(ii) प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्वतन्त्रता – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में नई फर्मों के प्रवेश तथा पुरानी फर्मों के बहिर्गमन पर कोई रुकावटें नहीं होती हैं। इनके स्वतन्त्र प्रवेश एवं बहिर्गमन के कारण दीर्घकाल में प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त कर पाती है।

(iii) समरूप वस्तुएँ – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ समरूप होती हैं। इस कारण उपभोक्ता को वस्तु के चुनने की कोई समस्या नहीं होती है। वह किसी भी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु को क्रय कर सकता है।

(iv) साधनों की पूर्ण गतिशीलता – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता पाई जाती है। वह आसानी से एक फर्म से दूसरी फर्म में, एक स्थान से दूसरे स्थान पर गतिमान हो सकता है।

(v) बाजार की पूर्ण जानकारी – पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। इस कारण न तो कोई विक्रेता उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य से ज्यादा मूल्य ले सकता है और न ही कम। कम कीमत लेने पर सारे क्रेता उसी के पास आ जायेंगे तथा ज्यादा कीमत लेने पर उसके पास कोई क्रेता नहीं आयेगा।

(vi) परिवहन लागतों का शून्य होना – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेता एवं विक्रेता इतने निकट होते हैं कि वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की लागतें नहीं होती हैं। परिवहन लागतों के शून्य होने के कारण बाजार में वस्तु की कीमत समान रहती है।

(vii) फर्म कीमत स्वीकारकर्ता – पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत निर्धारण में व्यक्तिगत फर्मों का कोई योगदान नहीं होता है। वे तो केवल उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को स्वीकार करने वाली होती है, कीमत निर्धारक नहीं होती है।

(viii) गलाकाट प्रतिस्पर्धा – इस बाजार में विक्रेताओं में गलाकाट प्रतियोगिता (Cut-throat Competition) रहती है।

प्रश्न 2.
प्रतियोगी बाजार में उद्योग का कीमत निर्धारण एक उपयुक्तरेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत उद्योग की कुल माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। माँग करने वाला क्रेताओं का समूह होता है जो निरन्तर कम कीमत पर वस्तु खरीदने के लिए प्रयत्नशील रहता है तथा उसकी कीमत की अधिकतम सीमा सीमान्त उपयोगिता होती है। दूसरी ओर विक्रेताओं का समूह होता है जो ज्यादा से ज्यादा कीमत पर वस्तु बेचना चाहता है। इसकी न्यूनतम सीमा सीमान्त लागत होती है। दोनों पक्षों के एक-दूसरे के विपरीत हित होते हैं। इस कारण उनके बीच निरन्तर सौदेबाजी चलती रहती है, जिस बिन्दु पर वस्तु की माँगी गई मात्रा वस्तु की पूर्ति के बराबर हो जाती है, वहीं मूल्य बाजार में निश्चित हो जाता है। इसे सन्तुलन कीमत कहते हैं।

बाजार में यही कीमत प्रचलित रहती है। क्रेताओं को तथा विक्रेताओं को इसी मूल्य पर वस्तु का क्रय-विक्रय करना होता है। ये लोग कीमत निर्धारक न होकर स्वीकार करने वाले होते हैं। जिस समय भी कीमत सन्तुलन कीमत से कम या अधिक होती है, माँग व पूर्ति में असन्तुलन पैदा हो जाता है जो पुन: कीमत को सन्तुलन बिन्दु पर ले आता है।

निम्न तालिका में विभिन्न कीमतों पर वस्तु की माँग व पूर्ति दर्शायी गई है –
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
तालिका से स्पष्ट है कि साम्य’कीमत ₹3 है जिस पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों 30 इकाइयाँ हैं। यदि कीमत इससे कम हो जाती है अर्थात् ₹2 हो जाती है तो माँग 40 व पूर्ति 20 हो जाती है। यह असन्तुलन कीमत को पुनः तीन रुपये पर ले आयेगा क्योंकि ₹2 पर सभी क्रेताओं को वस्तु नहीं मिल पायेगी और प्रत्येक क्रेता वस्तु को लेने के लिये ज्यादा कीमत देने को तत्पर रहेगा।

इसी प्रकार यदि कीमत ₹3 से अधिक ₹4 हो जाती है तो वस्तु की माँग घटकर 20 इकाइयाँ तथा पूर्ति 40 इकाइयाँ हो जायेगी। ऐसी स्थिति में विक्रेताओं की अपनी सभी वस्तुओं को बेचने के लिए कीमत को घटाना पड़ेगा और वह ₹3 पर ही आ जायेगा। अन्ततः बाजार में कीमत ₹3 ही प्रचलित रहेगी। यही साम्य कीमत है तथा 30 इकाइयाँ साम्य मात्रा है।

इस तालिका के आँकड़ों को रेखाचित्र के रूप में प्रस्तुत करके और स्पष्ट किया जा सकता है –
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा वस्तु की कीमत ₹3 निर्धारित की गई है। यह साम्य कीमत है। इसी कीमत को फर्म A तथा अन्य फर्मों द्वारा स्वीकार करना होता है। व्यक्तिगत फर्मे इस कीमत पर जितनी वस्तुएँ बेचना चाहें, बेच सकती हैं। चित्रे में फर्म A OP कीमत पर जो कि उद्योग द्वारा निर्धारित की गई है, OQ मात्रा भी बेच सकती है तथा OQ1, मात्रा भी इसी प्रकार अन्य कोई मात्रा बेच सकती है लेकिन वह कीमत इससे कम या ज्यादा नहीं ले सकती है क्योंकि उसका माँग वक्र पूर्णतया लोचदार है। फर्म का सीमान्त आगम तथा औसत आगम बराबर होता है।

प्रश्न 3.
निम्न तालिका में कुल आगम और सीमान्त आगम ज्ञात कीजिए।
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
TR = AR × Units

प्रश्न 4.
”पूर्ण प्रतियोगिता एक काल्पनिक अवधारणा है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु के बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता होते हैं जिन्हें बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। पूरे बाजार में समान वस्तु बिक्री के लिए उपलब्ध होती है तथा उस वस्तु का क्रय-विक्रय एक ही कीमत पर होता है एक समय विशेष पर)। इस अवस्था में व्यक्तिगत फर्मों एवं क्रेताओं की मूल्य निर्धारण में कोई भूमिका नहीं होती है। इस बाजार अवस्था में यातायात लागते शून्य होती हैं एवं साधनों में पूर्ण गतिशीलता पाई जाती हैं। नई फर्मों के प्रवेश तथा पुरानी फर्मों ने बहिर्गमन में कोई रुकावट नहीं होती है।

यदि इन विशेषताओं पर ध्यान दे तो स्पष्ट हो जाता है कि वास्तविक जीवन में ये स्थितियाँ देखने को नहीं मिलती हैं। यह स्थिति एक आदर्श स्थिति हो सकती है लेकिन वास्तविक जीवन में इसका पाया जाना असम्भव है। इसी कारण पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति को एक काल्पनिक स्थिति माना जाता है। इसके अध्ययन का सैद्धान्तिक महत्त्व हो सकता है लेकिन कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का मांग वक्र होता है –
(अ) कम लोचदार
(ब) बेलोचदार
(स) x अक्ष के समानान्तर
(द) अत्यधिक लोचदार

प्रश्न 2.
थोक बाजार में वस्तुएँ बेची जाती हैं –
(अ) सीधे उपभोक्ताओं को
(ब) खुदरा व्यापारियों को।
(स) सरकार को
(द) उपर्युक्त में से किसी को नहीं

प्रश्न 3.
अति अल्पकालीन बाजार में वस्तु की पूर्ति होती है –
(अ) पूर्णतया बेलोचदार
(ब) बेलोचदार
(स) लोचदार
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तुएँ होती है –
(अ) समरूप
(ब) भिन्न रूप वाली
(स) भिन्न आकार वाली
(द) अलग-अलग पैकिंग वाली

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत निर्धारित होती है –
(अ) व्यक्तिगत फर्मों द्वारा
(ब) उद्योग द्वारा
(स) फर्मों व उद्योग दोनों के द्वारा
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय बाजार में क्रेता एवं विक्रेता फैले होते हैं?
(अ) किसी विशेष स्थान पर
(ब) किसी राज्य विशेष में
(स) सम्पूर्ण देश में
(द) सम्पूर्ण विश्व में

प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में माँग वक्र होता है –
(अ) लम्बवत्
(ब) क्षैतिज
(स) ऋणात्मक ढाल वाला।
(द) धनात्मक ढाल वाला

प्रश्न 8.
पूर्णतया लोचदार माँग वक्र पाया जाता है –
(अ) अपूर्ण प्रतियोगिता में
(ब) पूर्ण प्रतियोगिता में
(स) एकाधिकार में
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9.
जब बाजार में वस्तु के बहुत अधिक क्रेता व विक्रेता होते हैं तो यह स्थिति होती है –
(अ) पूर्ण प्रतियोगिता
(ब) अपूर्ण प्रतियोगिता
(स) एकाधिकार
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के लिए बराबर होता है –
(अ) सीमान्त आगम व सीमान्त लागत
(ब) सीमान्त आगम व कुल आगम
(स) सीमान्त आगम व औसत आगम
(द) औसत लागत व औसत आगम

उत्तरमाला:

  1. (स)
  2. (ब)
  3. (अ)
  4. (अ)
  5. (ब)
  6. (स)
  7. (ब)
  8. (ब)
  9. (अ)
  10. (स)

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानीय बाजार से क्या आशय है?
उत्तर:
जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता एक गाँव, शहर, उपनगर या बस्ती तक ही फैले होते हैं तो ऐसे बाजार को स्थानीय बाजार कहते हैं।
जैसे – सब्जी का बाजार।

प्रश्न 2.
प्रादेशिक बाजार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का बाजार किसी प्रदेश तक ही सीमित होता है तो उसे प्रादेशिक बाजार कहते हैं।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता पूरे देश में फैले होते हैं उस वस्तु के बाजार को राष्ट्रीय बाजार कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से क्या आशय है?
उत्तर:
जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता विश्व के विभिन्न देशों में फैले होते हैं तो ऐसे बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार कहते हैं।

प्रश्न 5.
सामान्य बाजार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब एक ही बाजार में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है तो ऐसे बाजार को सामान्य बाजार कहते हैं।

प्रश्न 6.
विशिष्ट बाजार से क्या आशय है?
उत्तर:
जब किसी बाजार में किसी विशिष्ट वस्तु का ही क्रय-विक्रय होता है तो ऐसे बाजार को विशिष्ट बाजार कहते हैं।

प्रश्न 7.
खुदरा बाजार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
खुदरा बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें वस्तुएँ थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सीधे उपभोक्ताओं को बेची जाती है।

प्रश्न 8.
थोक बाजार का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
थोक बाजार ऐसा बाजार होता है जहाँ पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय बड़ी मात्रा अर्थात् थोक में किया जाता है। यहाँ प्रायः वस्तुएँ खुदरा व्यापारियों द्वारा खरीदी जाती है।

प्रश्न 9.
अति अल्पकालीन बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
अति अल्पकालीन बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें समय बहुत कम होने के कारण वस्तु की पूर्ति को घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होता है। इस बाजार में पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है।

प्रश्न 10.
अल्पकालीन बाजार का अर्थ बताइए।
उत्तर:
अल्पकालीन बाजार से आशये ऐसे बाजार से है जिसमें समयावधि कम होने के कारण वस्तु की पूर्ति में बदलाव केवल परिवर्तनशील साधनों को घटा-बढ़ाकर किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
दीर्घकालीन बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
दीर्घकालीन बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें समयावधि पर्याप्त होने के कारण वस्तु की पूर्ति को माँग के अनुरूप किया जाना सम्भव हो जाता है। इस अवस्था में सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार का आशय बताइए।
उत्तर:
संक्षेप में पूर्ण प्रतियोगी बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें सम्पूर्ण बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित होती है। तथा वस्तुएँ समरूप होती है। फर्म मूल्य निर्धारक न होकर उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य को स्वीकार करने वाली होती है।

प्रश्न 13.
समरूप वस्तु से क्या आशय है?
उत्तर:
जब वस्तु की सभी इकाइयाँ रंग, रूप, आकार-प्रकार, डिजाइन, गुण आदि में एक जैसी होती है तो उन्हें समरूप वस्तुएँ कहते हैं।

प्रश्न 14.
उद्योग से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मों के समूह को उद्योग कहते हैं।

प्रश्न 15.
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत उद्योग की माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।

प्रश्न 16.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है। इसका क्या आशय है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत निर्धारण में व्यक्तिगत फर्मों की कोई भूमिका नहीं होती है। बाजार में उद्योग द्वारा कीमत निर्धारित की जाती है और उसी कीमत पर फर्म को अपनी वस्तु बेचनी होती है। इसीलिए उसे कीमत स्वीकार करने वाली फर्म कहा जाता है।

प्रश्न 17.
एक प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
एक प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है अर्थात् वह एक क्षैतिज रेखा के रूप में होता है।

प्रश्न 18.
गलाकाट प्रतियोगिता से क्या आशय है?
उत्तर:
जब विभिन्न फर्मों के बीच अत्यधिक प्रतिस्पर्धा होती है तो इसे गलाकाट प्रतियोगिता (Cut-throat competition) कहते हैं।

प्रश्न 19.
क्या पूर्ण प्रतियोगिता वास्तविक जगत में देखने को मिलती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता एक कोरी कल्पना है। यह वास्तव में देखने को नहीं मिलती है।

प्रश्न 20.
परिवहन लागतों की अनुपस्थिति से क्या आशय है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेता व विक्रेता इतने समीप होते हैं कि वस्तु के एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की कोई लागत नहीं होती है। इसे ही परिवहन लागतों की अनुपस्थिति कहते हैं।

प्रश्न 21.
‘शॉपिंग मॉल्स’ क्या होते हैं?
उत्तर:
जब कम्पनियाँ एक ही छत के नीचे बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय करती हैं तो उन्हें शॉपिंग मॉल्स (Shopping Malls) के नाम से जानते हैं।

प्रश्न 22.
अति दीर्घकालीन बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब समयावधि इतनी अधिक होती है कि माँग व पूर्ति दोनों में ही दीर्घकालीन परिवर्तन हो जाते हैं तो इसे अति दीर्घकालीन बाजार कहते हैं। इस अवधि में संगठनात्मक परिवर्तन भी सम्भव हो जाते हैं।

प्रश्न 23.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।

प्रश्न 24.
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण के सम्बन्ध में फर्म व उद्योग की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है तथा फर्म द्वारा उस कीमत को स्वीकार करना होता है।

प्रश्न 25.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का सीमान्त आगम (MR) वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का सीमान्त आगम वक्र x अक्ष के समानान्तर एक सीधी रेखा के रूप में होता है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की चार विशेषताएँ निम्न हैं –

  1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं की बड़ी संख्या।
  2. बाजार में एक समान वस्तु का क्रय-विक्रय।
  3. फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन पर कोई रोक नहीं।
  4. यातायात लागतों का शून्य होना।

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत कौन निर्धारित करता है-उद्योग या फर्म?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में वस्तु की कीमत उद्योग की कुल माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। व्यक्तिगत फर्म की कीमत निर्धारण में कोई भूमिका नहीं होती है क्योंकि उसका उत्पादन में हिस्सा बहुत अल्प मात्रा में होता है। व्यक्तिगत फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत की स्वीकार करने वाली होती है।

प्रश्न 3.
क्षेत्र के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्र के आधार पर बाजार को चार भागों में बाँटा जाता है –

  1. स्थानीय बाजार – जब वस्तु के क्रेता व विक्रेता किसी गाँव, शहर, बस्ती तक सीमित होते हैं तो उस बाजार को स्थानीय बाजार कहते हैं। शीघ्र नाशवान वस्तुओं का बाजार स्थानीय ही होता है।
  2. प्रादेशिक बाजार – जब किसी वस्तु का बाजार किसी प्रान्त की सीमाओं तक ही सीमित होता है तो उसे प्रादेशिक बाजार कहते हैं। जैसे – राजस्थान की चुनरी, कोल्हापुर की चप्पलें आदि।
  3. राष्ट्रीय बाजार – जब किसी वस्तु का बाजार पूरे देश में फैला होता है तो उसे राष्ट्रीय बाजार कहते हैं। जैसे – कपड़े, का बाजार, लोहे का बाजार आदि।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार – जब किसी वस्तु का बाजार विभिन्न देशों के बीच फैला होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार कहते हैं। जैसे – कारों का बाजार, इन्जीनियरिंग मशीनों का बाजार आदि।

प्रश्न 4.
वस्तुओं के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
वस्तुओं के आधार पर बाजार की निम्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है –

  1. सामान्य बाजार – जिस बाजार में अनेक प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है उसे सामान्य बाजार कहते हैं। जैसे – एक ही बाजार में कपड़ा, बर्तन, आभूषण, सब्जियाँ आदि मिलना।
  2. विशिष्ट बाजार – जिस बाजार में एक विशिष्ट वस्तु ही खरीदी बेची जाती है उसे विशिष्ट बाजार कहते हैं। जैसे – किराना बाजार, कपड़ा बाजार, आभूषण बाजार, फल बाजार आदि।
  3. नमूने द्वारा बिक्री का बाजार – जब माल की बिक्री नमूना देखकर की जाती है तो उसे नमूने द्वारा बिक्री का बाजार कहते हैं। थोक बाजारों में नमूना दिखाकर ही प्रायः बिक्री की जाती है।
  4. ग्रेडिंग द्वारा बिक्री का बाजार-कुछ वस्तुओं का क्रय-विक्रय ग्रेडिंग अर्थात् श्रेणी के आधार पर होता है। जैसे-ऊषा सिलाई मशीन, K-68 गेहूँ, लक्स साबुन, डालडा घी, हीरो साइकिल, बाटा के जूते आदि।

प्रश्न 5.
बिक्री के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
बिक्री के आधार पर बाजार को निम्न दो भागों में बाँटा जाता है –

  1. खुदरा बाजार – जिस बाजार में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में वस्तुएँ सीधे उपभोक्ताओं को बेची जाती है उसे खुदरा बाजार कहते हैं। जैसे – मोहल्ले की किराने की दुकान, कपड़े की दुकान, मिठाई की दुकान आदि।
  2. थोक बाजार – इस बाजार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय बड़ी मात्रा में किया जाता है। इस बाजार में थोक व्यापारी खुदरा व्यापारियों को वस्तुएँ बेचते हैं। थोक का कपड़ा बाजार, दवा बाजार आदि।

प्रश्न 6.
अल्पकालीन बाजार को रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
अल्पकालीन बाजार वह होता है जिसमें समयावधि इतनी होती है कि वस्तु की पूर्ति में कमी व वृद्धि केवल परिवर्तनशील साधनों को घटा-बढ़ाकर की जा सकती है अर्थात् उत्पादक विद्यमान क्षमता का पूर्ण प्रयोग करके ही उत्पादन को बढ़ा सकता है। इस बाजार में वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है। वस्तु के मूल्य पर पूर्ति की अपेक्षा माँग का ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
चित्र से स्पष्ट है कि अति अल्पकाल में साम्य बिन्दु E तथा E2 है जहाँ पर वस्तु की मात्रा OQ के बराबर हैं। कीमत में परिवर्तन OP से OP2 माँग के कारण हुआ है लेकिन अल्पकाल में पूर्ति में भी परिवर्तन होने के कारण साम्य E1 पर होता है तथा साम्य मात्रा OQ1 हो जाती है और वस्तु की कीमत OP1 हो जाती है जो OP2 से कम है। यह कमी पूर्ति के परिवर्तन के कारण हुई है।

प्रश्न 7.
दीर्घकालीन बाजार से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
दीर्घकालीन बाजार, बाजार की वह अवस्था है जिसमें समयावधि इतनी होती है कि वस्तु की पूर्ति को माँग के अनुरूप घटाया-बढ़ाया जा सकता है। इस बाजार में वस्तु के मूल्य निर्धारण में माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है। इस बाजार में वस्तु की कीमत सदैव उत्पादन लागत के बराबर होती है। इस अवधि में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।

प्रश्न 8.
अति दीर्घकालीन बाजार का आशय समझाइए।
उत्तर:
जब समयावधि इतनी अधिक हो कि माँग व पूर्ति दोनों में ही दीर्घकालीन बदलाव हो जाता है तो इसे अति दीर्घकालीन बाजार कहते हैं। इस अवधि में उत्पादन के क्षेत्र में नई-नई तकनीकें आ जाती है, नये आविष्कार हो जाते हैं। इस कारण पूर्ति पक्ष में नवीनतम बदलाव आ जाते हैं। इसी प्रकार माँग में भी रुचि, फैशन, जनसंख्या की संरचना एवं आकार में परिवर्तन के कारण अत्यधिक परिवर्तन हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
ग्रेडिंग द्वारा बिक्री तथा नमूने द्वारा बिक्री में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जब वस्तुओं को प्रमाणित कर दिया जाता है तो इसे ग्रेडिंग द्वारा बिक्री कहते हैं। जैसे – K-68 व RR.21 गेहूँ या डालडा घी, हॉलमार्क आभूषण आदि। इसके विपरीत जब वस्तु के नमूने दिखाकर बिक्री की जाती है तो उसे नमूने द्वारा बिक्री कहते हैं।
जैसे – ऊनी कपड़ों के नमूने के आधार पर आदेश प्राप्त करना या नमूने की पुस्तक दिखाकर आदेश प्राप्त करना आदि।

प्रश्न 10.
निम्न तालिका में औसत आगम व सीमान्त आगम ज्ञात कीजिए।
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार

प्रश्न 11.
एक फर्म का औसत आगम वक्र तथा सीमान्त आगम वक्र बनाइये जबकि पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत ₹8 से घटकर ₹5 प्रति इकाई हो जाती है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्म को वही मूल्य स्वीकार करना होता है जो उद्योग द्वारा निर्धारित किया जाता है। अतः ₹5 कीमत पर ही फर्म को अपनी वस्तु बेचनी होगी। इस बाजार में फर्म का औसत आगम व सीमान्त आगम सदैव बराबर रहता है। अत: उसका वक्र अग्र प्रकार होगा –
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 पूर्ण प्रतियोगी बाजार

प्रश्न 12.
वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की पूर्ति क्यों बढ़ जाती है?
उत्तर:
जब वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उत्पादकों का लाभ बढ़ जाता है। ऐसी अवस्था में एक ओर तो वर्तमान उत्पादक उत्पादन बढ़ाकर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते हैं, दूसरी ओर लाभ से आकर्षित होकर नये उत्पादक उद्योग में प्रवेश करने लगते हैं जिससे बाजार में वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की पूर्ति क्यों कम हो जाती है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत कम होने पर उत्पादकों का लाभ कम हो जाता हैं जिसके कारण वह अपना या तो उत्पादन घटाते हैं या माल को उचित कीमत के इंतजार में स्टॉक में रख देते हैं। कीमत में कमी होने के कारण जिन फर्मों को हानि होने लगती है। वे उद्योग से बहिर्गमन कर जाती हैं जिससे वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है।

प्रश्न 14.
समरूप वस्तुओं की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या बढ़ने पर एक वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब बाजार में समरूप वस्तुओं की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की सन्तुलन कीमत में कमी आ जाती है तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 15.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन कब स्थापित होता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन उस बिन्दु पर स्थापित होता है जिस बिन्दु पर वस्तु की उद्योग की माँग व पूर्ति दोनों बराबर हो जाते हैं। इस कार्य में फर्म का कोई योगदान नहीं होता है। फर्म तो उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को स्वीकार करने वाली होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत में परिवर्तन उद्योग की माँग एवं पूर्ति में परिवर्तन के कारण ही होता है।

RBSE Class 12 Economics Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्षेत्र के अनुसार बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्र के आधार पर बाजार को चार भागों में बाँटा जा सकता है –

(i) स्थानीय बाजार (Local Market) – जब किसी वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं का फैलाव एक गाँव, शहर, उपनगर अथवा बस्ती तक सीमित होता है तो उस बाजार को स्थानीय बाजार कहते हैं। जैसे – सब्जी बाजार, फल बाजार, मछली बाजार, दूध-दही बाजार आदि। भारी वस्तुओं; जैसे-ईंट, मिट्टी, बालू आदि का बाजार भी स्थानीय ही होता है।

(ii) प्रादेशिक बाजार (Provincial Market) – जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता पूरे प्रदेश या प्रान्त में फैले होते हैं। तो ऐसे बाजार को प्रादेशिक बाजार कहते हैं। जैसे – राजस्थान की लाख की चूड़ी, कोल्हापुरी चप्पलें आदि प्रादेशिक बाजार के उदाहरण हैं।

(iii) राष्ट्रीय बाजार (National Market) – जब किसी वस्तु का क्रय-विक्रय सम्पूर्ण देश में होता है तो ऐसी वस्तु के बाजार को राष्ट्रीय बाजार कहते हैं। कार, स्कूटर, कपड़ा आदि का बाजार राष्ट्रीय स्तर का ही होता है।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार (International Market) – जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता सारे विश्व में फैले होते हैं। तो ऐसे बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के उदाहरण हैं – सोने-चाँदी का बाजार, कच्चे तेल का बाजार, चाय का बाजार, चावल का बाजार, कपड़े का बाजार आदि।

प्रश्न 2.
समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण कीजिये।
उत्तर:
वस्तु की पूर्ति के समय के आधार पर बाजार निम्न चार प्रकार के होते हैं –

(i) अति अल्पकालीन बाजार (Very Short Period Market) – अति अल्पकालीन बाजार को दैनिक बाजार भी कहते हैं। ऐसी वस्तुओं का बाजार जिनकी पूर्ति माँग के अनुसार घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होता है अर्थात् समयाभाव के कारण पूर्ति स्टॉक तक ही सीमित रहती है, अति अल्पकालीन बाजार कहलाता है। ऐसे बाजार में केवल माँग में ही परिवर्तन होता है तथा माँग ही मूल्य को प्रभावित करती है। शीघ्र नाशवान वस्तुओं; जैसे – फल, सब्जी, दूध, दही, मछली, बर्फ आदि के बाजार अति अल्पकालीन बाजार की श्रेणी में आते हैं।

(ii) अल्पकालीन बाजार (Short Period Market) – जब किसी वस्तु की माँग बढ़ने पर उत्पादक को इतनी समय मिल जाता है कि वह परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाकर उत्पादन को बढ़ा सके तो ऐसी वस्तु के बाजार को अल्पकालीन बाजार कहते हैं। इस प्रकार के बाजार की विशेषता यह है कि पूर्ति को बढ़ाया तो जा सकता है लेकिन माँग के अनुरूप बढ़ाना सम्भव नहीं होता है। इसका कारण समय का अभाव होता है। ऐसी वस्तुओं की कीमत भी पूर्ति की अपेक्षा माँग से ही ज्यादा प्रभावित होती है।

(iii) दीर्घकालीन बाजार (Long Period Market) – दीर्घकालीन बाजार में उत्पादक को इतना समय मिल जाता है कि वह अपनी पूर्ति को माँग के अनुरूप घटाने-बढ़ाने में समर्थ हो जाता है। इस अवस्था में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। इस कारण माँग को दृष्टि में रखते हुए उत्पादक अपने उत्पादन को समायोजित करने में सफल हो जाता है इस बाजार में वस्तु का मूल्य सदैव उत्पादन लागत के बराबर होता है तथा वस्तु के मूल्य निर्धारण में माँग से ज्यादा पूर्ति को प्रभाव रहता है। इस बाजार में माँग एवं पूर्ति के बीच पूर्ण साम्य स्थापित करना आसान हो जाता है।

(iv) अति दीर्घकालीन बाजार (Very Long Period Market) – जब समयावधि इतनी अधिक होती है कि माँग एवं पूर्ति में दीर्घकालीन परिवर्तन हो जाते हैं तो ऐसे बाजार को अति दीर्घकालीन बाजार कहते हैं। ऐसे बाजार में उत्पादक नई तकनीकों एवं आविष्कारों का उत्पादन के क्षेत्र में प्रयोग करने में समर्थ हो जाते हैं तथा उपभोक्ताओं के स्वभाव, रुचि, फैशन तथा जनसंख्या के आधार एवं संरचना में परिवर्तन के कारण उनकी माँग में भी काफी परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 3.
प्रतियोगिता की दृष्टि से बाजार का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
प्रतियोगिता की दृष्टि से बाजार तीन प्रकार का होता है –

(i) पूर्ण बाज़ार (Perfect Market) – पूर्ण बाजार ऐसे बाजार को कहते हैं जिसमें क्रेताओं एवं विक्रेताओं में पूर्ण प्रतियोगिता होती है जिसके कारण बाजार में वस्तु विशेष का एक ही मूल्य प्रचलित होता है। इस बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(a) इस बाजार में वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है।
(b) वस्तु रंग, रूप, गुण, आकार में एक समान होती है।
(c) सम्पूर्ण बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण वस्तु का एक ही मूल्य प्रचलित होता है।
(d) व्यक्तिगत क्रेता एवं विक्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित करने में समर्थ नहीं होते क्योंकि उनका कुल माँग एवं पूर्ति में हिस्सा नगण्य होता है।
(e) यातायात लागते शून्य होती है क्योंकि क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच दूरी नहीं होती है।
(f) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
(g) पूर्ण बाजार वास्तविक स्थिति न होकर कोरी कल्पना मात्र है।

(ii) अपूर्ण बाजार (Imperfect Market) – अपूर्ण बाजार एक वास्तविकता है जो कि वास्तविक जीवन में देखने को मिलता है। इस बाजार में कुछ कारणों से क्रेताओं तथा विक्रेताओं के मध्य स्वतन्त्र प्रतियोगिता नहीं हो पाती है जिसके कारण एक ही वस्तु के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग मूल्य देखने को मिलते हैं। अपूर्ण बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(a) क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या सीमित होती है।
(b) क्रेताओं एवं विक्रेताओं में पूर्ण स्पर्धा नहीं होती है।
(c) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।
(d) बाजार में अलग-अलग विक्रेताओं द्वारा अलग-अलग स्थानों पर भिन्न मूल्य वसूल किया जाता है।
(e) वस्तुओं में उत्पादकों द्वारा रंग, रूप, आकार, पैकिंग आदि में अन्तर कर दिया जाता है और वह उनके लिए अलग-अलग कीमत वसूलने में सफल हो जाते हैं।

(iii) एकाधिकार (Monopoly) – एकाधिकार बाजार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है। उसका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं होता। यह पूर्ण बाजार का बिल्कुल उल्टा है। बाजार में प्रतिस्पर्धा न होने के कारण एकाधिकारी अपनी वस्तु का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मूल्य लेने में समर्थ हो जाता है। इस बाजार में एकाधिकारी का अपनी वस्तु की पूर्ति एवं कीमत पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। एकाधिकारी की वस्तु की बाजार में कोई निकट स्थानापन्न वस्तु भी नहीं होती है।

All Chapter RBSE Solutions For Class 12 Economics

—————————————————————————–

All Subject RBSE Solutions For Class 12

*************************************************

————————————————————

All Chapter RBSE Solutions For Class 12 Economics Hindi Medium

All Subject RBSE Solutions For Class 12 Hindi Medium

Remark:

हम उम्मीद रखते है कि यह RBSE Class 12 Economics Solutions in Hindi आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है |

यदि इन solutions से आपको हेल्प मिली हो तो आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है और HindiLearning.in को सोशल मीडिया में शेयर कर सकते है, जिससे हमारा मोटिवेशन बढ़ेगा और हम आप लोगो के लिए ऐसे ही और मैटेरियल अपलोड कर पाएंगे |

आपके भविष्य के लिए शुभकामनाएं!!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *