RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 पादपों में खनिज पोषण

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 8 पादपों में खनिज पोषण

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-से तत्व सूक्ष्म पोषक कहलाते हैं?
(अ) Mo, Cu, Zn, Ca
(ब) Mg, S, K, P
(स) Mn, Zn, Ca, Mg
(द) Mn, Mo, Cu, Zn

प्रश्न 2.
पर्णहरिम में पाया जाता है –
(अ) FeO
(ब) Mn
(स) Mg
(द) K

प्रश्न 3.
Mo का मुख्य कार्य है –
(अ) पुष्पवर्धन
(ब) नाइट्रोजन स्थिरीकरण
(स) जल अवशोषण
(द) प्रकाश संश्लेषण

प्रश्न 4.
लघु पर्ण रोग किस तत्व की न्यूनता से होता है –
(अ) Zn
(ब) Mg
(स) B
(द) Zn

प्रश्न 5.
पादपों में कार्बोहाइड्रेटों के स्थानान्तरण के लिए कौन-सा तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण है?
(अ) Fe
(ब) Mo
(स) B
(द) Zn

प्रश्न 6.
पौधों की सामान्य वृद्धि व जीवन चक्र के पूर्ण होने के लिए अनिवार्य पोषक तत्वों की संख्या है –
(अ) 105
(ब) 60
(स) 27
(द) 17

प्रश्न 7.
असंचरणशील पोषक तत्व हैं –
(अ) Cu, S, Fe, Mn
(ब) Ca, B, Cu, S
(स) N, P, Fe, Mn
(द) P, K, Zn, Mo
उत्तरमाला
1. (द)
2. (स)
3. (ब)
4. (अ)
5. (स)
6. (द)
7. (अ)

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप नाइट्रोजन का अवशोषण किस रूप में करते हैं?
उत्तर
पादप नाइट्रोजन का अवशोषण मुख्यतः (NO3) नाइट्रेट, कमतर (NO2) नाइट्राइट तथा अपवाद स्वरूप NH4+ (अमोनियम) रूप में करते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक वृहत मात्रिक तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर
नाइट्रोजन (N)
फॉस्फोरस (P)
पोटैशियम (K)।

प्रश्न 3.
वर्मीकुलाइट तथा हाइड्रोपोनिक्स पदों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वर्मीकुलाइट (Vermiculite) – यह एक खनिज पदार्थ है जो पृथ्वी में प्राकृतिक अवस्था (Native state) में पाया जाता है। इस खनिज को ताप भट्टियों में 2000°F तक गर्म करके जो उत्पाद प्राप्त होता है उसे पौधों को उगाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) – वे सभी विधियाँ जिसमें पौधों को उगाने के लिए मिट्टी के अतिरिक्त पोषक विलयनों का प्रयोग किया जाता है जल संवर्धन या हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) कहलाती हैं।

प्रश्न 4.
Fe तथा CI किस रूप में मृदा से अवशोषित होते हैं?
उत्तर
Fe का अवशोषण फैरिक आयनों (Fe3+) के रूप में होता है परन्तु उपापचयी क्रियाओं में यह फैरस आयन (Fe2+) के रूप में क्रियाशील होता है।
क्लोरीन का अवशोषण Cl (क्लोराइड आयनों) के रूप में होता हैं।

प्रश्न 5.
खनिज लवण अवशोषण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
पौधों के वृद्धि तथा जीवन चक्र के लिए आवश्यक खनिज तत्वों का मृदा से अवशोषण खनिज लवण अवशोषण कहलाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप भस्म विश्लेषण का वर्णन कीजिए।
उत्तर
पादप भस्म का विश्लेषण (Analysis of Plant Ash) – इस विधि में ताजे पौधे को ओवन (0ven) में एक या दो दिन तक 70-80°C तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे पौधे में उपस्थित समस्त जल वाष्पित होकर उड़ जाता है। बचे हुए अवशेष को तोलकर पौधे का शुष्क भार (Dry weight) ज्ञात कर लिया जाता है। इस शुष्क भार के प्रमुख घटक कोशिका भित्ति (Cell wall), पॉलीसैकेराइड्स (Polysacharides) लिग्निन (Lignin), जीवद्रव्यी घटक (Protoplasmic components), कार्बनिक अम्ल (Organic acid) होते हैं। पौधे के शुष्क भार में अकार्बनिक तत्वों को ज्ञात करने के लिए पौधे के शुष्क नमूनों को भट्टी में लगभग 6000°C तापमान पर जलाया जाता है।

इसके परिणामस्वरूप इसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ विघटित होकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), अमोनिया (NH3) ऑक्सीजन (O2) के रूप में बाहर निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया के अन्त में शेष पदार्थ पादप भस्म (Plant ash) कहलाता है। इसमें मुख्यतः पौधों के बचे हुए अवाष्पशील (Non-volatile) खनिज तत्व होते हैं। पादप भस्म के विश्लेषण से पादपों में उपस्थित विभिन्न तत्वों की उपस्थिति का निर्धारण किया जाता है। इस विधि द्वारा तत्वों की उपयोगिता अथवा अनिर्वायता का निर्धारण नहीं किया जाता है।

प्रश्न 2.
नाइट्रोजन की उपयोगिता व इसकी न्यूनता के लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Nitrogen) –

  1. पादपों में नाइट्रोजन की कमी के कारण हरिमाहीनता (Chlorosis) के लक्षण सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं जिससे वह पीली दिखाई देती हैं।
  2. नाइट्रोजन की कमी के समय पत्तियों में अधिक एन्थोसायनिन (Enthocyanin) नामक वर्णक का निर्माण होता है जिसके कारण पत्तियाँ बैंगनी या गहरी भूरी दिखाई देती हैं।
  3. नाइट्रोजन की कमी से प्रोटीन संश्लेषण की दर प्रभावित होती है जिससे पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है तथा पौधे बौने (Stunted) रह जाते हैं।
  4. पादप में इसकी अधिक कमी के कारण पत्तियाँ एवं शाखाएँ लाल या पीले रंग की हो जाती हैं जिन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  5. नाइट्रोजन की कमी से पादपों में पुष्पीकरण (Flowering) विलम्ब से होता है।
  6. कोशिका विभाजन एवं श्वसन क्रिया मंद हो जाती है।
  7. जल सन्तुलन, जल की गति, रन्ध्रों का खुलना व बन्द होना भी प्रभावित होता है।

इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन की अधिकता भी पादपों के लिए। हानिकारक होती है। मृदा में अधिक नाइट्रोजन उपस्थित होने पर पादपों में तीव्र कायिक वृद्धि होती है। ये पादप लम्बे, दुर्बल तथा कवकों और जीवाणुओं के प्रति अधिक सुग्राही (Sensitive) होते हैं।

प्रश्न 3.
निष्क्रिय व सक्रिय लवण अवशोषण में अन्तर कीजिए।
उत्तर
निष्क्रिय तथा सक्रिय लवण अवशोषण में अन्तर

 निष्क्रिय अवशोषणसक्रिय अवशोषण
1.उपापचयी ऊर्जा के बिना आयनों व अवशोषण निष्क्रिय अवशोषण (Passive absorption) कहलाता है।उपापचयी ऊर्जा (ATP) के प्रयोग से आयनों का अवशोषण सक्रिय अवशोषण (Active absorption) कहलाता है।
2.यह अवशोषण भौतिक बलों द्वारा होता है।यह अवशोषण वैद्युत रासायनिक विभव के विरुद्ध होता है।
3.खनिज लवणों का अवशोषण ताप तथा उपापचयी संदमकों पर निर्भर नहीं करता है।निर्भर करता है।

प्रश्न 4.
हरिमाहीनता तथा ऊतक क्षय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

  • हरिमाहीनता (Chlorosis) – क्लोरोफिल की हानि से पौधों की पत्तियों का पीला पड़ जाना हरिमाहीनता (Chlorosis) कहलाता है। ऐसा पौधों में खनिज तत्वों की न्यूनता के कारण होता है।
  • ऊतक क्षय (Nacrosis) – पत्तियों में स्थानीय कोशिकाओं का नष्ट होना ऊतक क्षय (Nacrosis) कहलाता है। ऊतक क्षय खनिज तत्वों की न्यूनता से उत्पन्न संलक्षण है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में खनिज पोषण पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर
पौधों के अनिवार्य पोषक तत्व (Essential Elements of Plants) – पौधों के लिए अनेक खनिज तत्व आवश्यक होते हैं। ये तत्व खनिज पोषक (Mineral nutrients) कहलाते हैं। पृथ्वी पर अब तक ज्ञात 105 तत्वों में से पौधों में 60 तत्वों की उपस्थिति दर्शायी गयी है। लेकिन ये सभी तत्व पौधों के लिए आवश्यक नहीं होते हैं। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार पौधों की सामान्य वृद्धि के लिए केवल 17 तत्व आवश्यक होते हैं। इन तत्वों को अनिवार्य तत्व (Essential elements) कहते हैं तथा शेष तत्व अनावश्यक तत्व (non-essential elements) कहलाते हैं। अनेक अनावश्यक तत्व पौधों के लिए विषाक्त (poisonous) होते हैं।
पौधों के लिए 17 अनिवार्य तत्वों की अनिवार्यता का निर्धारण निम्न तथ्यों से किया जा सकता है –

  1. तत्व जो पौधे की सामान्य वृद्धि तथा जनन के लिए अपरिहार्य होते हैं तथा जिनके अभाव में पादप अपना जीवन चक्र (Life cycle) पूर्ण नहीं कर पाते हैं।
  2. तत्व की अनिवार्यता विशिष्ट होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में अमुक तत्व की कमी को केवल उसी तत्व द्वारा पूरा किया जा सकता है। किसी अन्य तत्व से नहीं।
  3. तत्व जो पादप की उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) में प्रत्यक्षतः सम्मिलित होता है। उक्त मापदण्डों के आधार पर ही अनिवार्य तत्वों की पहचान की गयी है।
  4. प्रत्येक तत्व की कमी से विशिष्ट लक्षण उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 2.
पौधों के लिए आवश्यक तत्वों के नाम बताइए तथा किन्हीं चार तत्वों के कार्य, प्राप्ति, स्वरूप व न्यूनता लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
पादप पोषण में प्रयुक्त अनिवार्य तत्वों की पादपों की कई कायिकीय क्रियाओं (Physiological activities) में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरणार्थ-विभिन्न पदार्थों के संघटक के रूप में, कोशिका झिल्ली को पारगम्यता, परासरण दाब का नियंत्रण, इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र, जैव रासायनिक अभिक्रियाओं का एन्जाइमों द्वारा सन्तुलन, बफर कार्य, संग्राहक अंगों में भोज्य पदार्थों का संग्रहण आदि पोषक तत्वों के अभाव में सम्पन्न नहीं हो सकती है।
अब हम विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्धता, उपयोगिता तथा उनकी कमी या न्यूनता व अधिकता के पादपों पर प्रभावों का संक्षेप में अध्ययन करेंगे।

कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन (Carbon, Hydrogen and Oxygen) – कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन तत्व खनिज तत्वों की श्रेणी के अन्तर्गत नहीं आते हैं लेकिन अनिवार्य तत्व होने के कारण इनका अध्ययन किया जाता है। पौधे को कार्बन (C) की प्राप्ति CO2 से, ऑक्सीजन की प्राप्ति CO2 तथा O2 से जबकि हाइड्रोजन की प्राप्ति H2O से होती है। इनके कार्यों का विवरण पूर्व में दिया जा चुका है। पौधों को सामान्यतः इनकी न्यूनता नहीं होती हैं।

नाइट्रोजन (Nitrogen) – पौधों को नाइट्रोजन की सर्वाधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। पौधे इसे मृदा से मुख्यत: NO3 (नाइट्रेट) के रूप में तथा कमतर NO2 (नाइट्राइट) व अपवाद स्वरूप NH4+ (अमोनियम) के रूप में प्राप्त करते हैं। नाइट्रोजन की सर्वाधिक आवश्यकता पौधों के वृद्धिशील विभज्योतकी ऊतकों (Meristematic tissues), कलिकाओं (Buds) तथा सामान्यतः समस्त जीवित कोशिकाओं (Living cells) को होती है। नाइट्रोजन ऐमीनो अम्लों, प्रोटीनों, न्यूक्लिक अम्लों, पर्णहरित, विटामिन तथा हॉर्मोन का मुख्य संघटक है। रासायनिक उर्वरकों के रूप में यूरिया नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत है। इसके अन्य स्रोत सोडियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट तथा कैल्शियम नाइट्रेट हैं। मृदा में उपस्थित कुछ जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके पौधों के लिए नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं। पादपों के शुष्कभार में 1-30% नाइट्रोजन होती है।

नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Nitrogen) –

  1. पादपों में नाइट्रोजन की कमी के कारण हरिमाहीनता (Chlorosis) के लक्षण सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं जिससे वह पीली दिखाई देती हैं।
  2. नाइट्रोजन की कमी के समय पत्तियों में अधिक एन्थोसायनिन (Enthocyanin) नामक वर्णक का निर्माण होता है जिसके कारण पत्तियाँ बैंगनी या गहरी भूरी दिखाई देती हैं।
  3. नाइट्रोजन की कमी से प्रोटीन संश्लेषण की दर प्रभावित होती है जिससे पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है तथा पौधे बौने (Stunted) रह जाते हैं।
  4. पादप में इसकी अधिक कमी के कारण पत्तियाँ एवं शाखाएँ लाल या पीले रंग की हो जाती हैं जिन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  5. नाइट्रोजन की कमी से पादपों में पुष्पीकरण (Flowering) विलम्ब से होता है।
  6. कोशिका विभाजन एवं श्वसन क्रिया मंद हो जाती है।
  7. जल सन्तुलन, जल की गति, रन्ध्रों का खुलना व बन्द होना भी प्रभावित होता है।

इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन की अधिकता भी पादपों के लिए हानिकारक होती है। मृदा में अधिक नाइट्रोजन उपस्थित होने पर पादपों में तीव्र कायिक वृद्धि होती है। ये पादप लम्बे, दुर्बल तथा कवकों और जीवाणुओं के प्रति अधिक सुग्राही (Sensitive) होते हैं।

प्रश्न 3.
खनिज लवणों के अवशोषण की क्रियाविधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर
खनिज लवणों के अवशोषण की क्रियाविधि (Mechanism of Absorption of Mineral Salts) – विसरण सिद्धांत के अनुसार कोशिका में एक सीमा से अधिक खनिज तत्वों की सान्द्रता का होना असंभव है। विसरण प्रवणता (Diffusion gradient) के कारण कोशिका में खनिज तत्वों का प्रवेश उस सीमा तक ही सम्भव है जब तक बाह्य विलयन तथा अन्त: विलयन की सान्द्रताएँ समान न हो जाएँ। पूर्व में ऐसा मानना था कि खनिज पदार्थों का अवशोषण तल के साथ होता है परन्तु अब यह सिद्ध हो चुका है कि ये क्रियाएँ अलग-अलग सम्पन्न होती हैं। खनिज लवणों का अवशोषण मृदा से आयनों के रूप में जड़ के विभज्योतक क्षेत्र तथा दीर्घाकरण क्षेत्र से होता है। खनिज लवणों का अवशोषण प्रायः उपापचयी ऊर्जा (Metabolic energy) के उपभोग से होता है। अतः यह एक सक्रिय प्रक्रिया (Active process) है। पौधों में खनिज लवणों का अवशोषण दो प्रक्रियाओं द्वारा होता है।
(A) निष्क्रिय अवशोषण (Passive absorption)
(B) सक्रिय अवशोषण (Active absorption)

(A) निष्क्रिय अवशोषण (Passive absorption) – निष्क्रिय अवशोषण में आयन उनके विद्युत रासायनिक विभव प्रवणता के आधार पर कोशिका द्वारा बिना ऊर्जा खर्च किए कोशिका में प्रवेश करते हैं। निष्क्रिय अवशोषण की क्रियाविधि स्पष्ट करने के लिए तीन मत दिए गए हैं –

  1. संहति प्रवाह परिकल्पना (Mass flow Hypothesis) – इस परिकल्पना के अनुसार वाष्पोत्सर्जन आकर्षण या खिंचाव (Transpirational pull) के प्रभाव के कारण जल के मात्रात्मक प्रवाह के साथ जड़ द्वारा खनिज पोषकों के आयनों को भी ग्रहण कर लिया जाता है।
  2. आयन विनिमय सिद्धान्त (lon Exchange Theory) – जड़ की सतह तथा बाह्य विलयन के मध्य निश्चित संख्या में धनायनों तथा ऋणायनों का विनिमय आयन विनिमय (lon exchange) कहलाता है। आयन विनिमय केवल समान आवेश के आयनों के मध्य सम्भव होता है अर्थात् धनायन का विनिमय केवल धनायन के साथ तथा ऋणायन का विनिमय ऋणायन के साथ होता है। विनिमय के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार के धनायन जड़ की सतह पर अवशोषित हो जाते हैं तथा उनका कोशिका में स्थानान्तरण निष्क्रिय विसरण (Passive diffusion) से होता है।
  3. डोनन साम्यावस्था सिद्धान्त (Donnan Equilibrium Theory) – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन डोनन (Donnan) ने 1927 में किया था। यह सिद्धान्त अविसरणशील अथवा स्थिर (Indiffusible or fixed) आयनों के प्रभाव पर आधारित है, क्योंकि यह कोशिका में सान्द्रण प्रवणता (Concentration Gradient) के विरुद्ध तत्वों को एकत्रित करने की दशा प्रदर्शित करता है।

(B) सक्रिय अवशोषण (Active Absorption) – उपापचयी ऊर्जा के सहयोग से वैद्युत रासायनिक विभव (Electro chemical potential) के विरुद्ध आयनों का विसरण सक्रिय अवशोषण (Active obsorption) कहलाता है। इसकी क्रिया में उपापचयी ऊर्जा (ATP) की आवश्यकता होती है। आयनों के सक्रिय अवशोषण के सम्बन्ध में तीन विभिन्न मत प्रस्तुत किए गये हैं –

(i) वाहक संकल्पना (Carrier concept) – किसी कोशिका या ऊतक का वह भाग जिसमें आयनों का अवशोषण उपापचयी ऊर्जा (ATP) के प्रयोग से होता है। जबकि बाह्य दिक् स्थान (Outer space) में अवशोषित आयन स्वतन्त्रतापूर्वक विसरण करते हैं। बाह्य व आन्तरिक दिक्स्थान के मध्य का क्षेत्र आयनों के लिए पारगम्य (Permeable) नहीं होता है।
इस संकल्पना के प्रतिपादक वान डेन होनर्ट (Van Den Honert, 1937) के अनुसार इस अपारगम्य अथवा अवरोधक क्षेत्र को पार करने के लिए आयन वाहकों (Carriers) की सहायता से बाह्य दिक्स्थान से संयोजित हो जाते हैं और इन्हें आंतरिक दिक्स्थान में विमुक्त कर देते हैं। उपर्युक्त विधि को निम्नांकित तीन सूत्रों से स्पष्ट किया जा सकता है –

  • वाहक (Carrier) + ATP → ADP+ सक्रियत वाहक (Actirated carrier)
  • सक्रियत वाहक (Activated carrier) + आयन (lon) – वाहक आयन सम्मिश्रण (Carrier ion complex)
  • वाहक आयन सम्मिश्रण (Carrier-ion complex) – निष्क्रिय वाहक (Passive carrier) + आयन (ion)

(ii) आयन-पम्प अथवा साइटोक्रोम पम्प संकल्पना (Ion-pump or Cytochrome pump Concept) – लुण्डेगार्थ एवं वर्सट्रोम (Lundegorth and Burstrom, 1933) के अनुसार पौधों में श्वसनदर तथा उनके द्वारा ऋणायनों (Anions) के अवशोषण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। इनके अनुसार ऋणायनों तथा धनायनों के अवशोषण की प्रक्रियाएँ भिन्न हैं। ऋणायनों का अवरोधिक झिल्ली की बाह्य सतह से भीतरी सतह की ओर स्थानान्तरण साइटोक्रोमों (Cytochromes) द्वारा होता है।

बाह्य सतहअवरोधक झिल्लीआन्तरिक सतह
ऋणायन (-) →(-) साइटोक्रोम पम्प (-) →(-) ऋणायन →
धनायन (+) →निष्क्रिय प्रवाह →(+) धनायन

(iii) वैद्युत रासायनिक प्रवणता संकल्पना (Electrochemical Gradient Hypothesis) – पीटर माइकल (1968) द्वारा प्रतिपादित इस संकल्पना के अनुसार ऋणायनों का स्थानान्तरण अवरोधक झिल्ली की बाहरी व भीतरी सतह पर उत्पन्न वैद्युत प्रवणता (Electrochemical gradient) के कारण होता है। इस विधि में AT Pase एन्जाइम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।

प्रश्न 4.
वृहत मात्रिक पोषक तत्वों पर लेख लिखिए।
उत्तर
वृहत मात्रिक पोषक तत्व (Macronutrients) – वे तत्व जिनकी मात्रा पौधे के एक ग्राम शुष्क भार में 1-10 mg होती है। वृहत मात्रिक पोषक तत्व कहलाते हैं। ये संख्या में 9 हैं; जैसे- C, H, O, N, P, K, S, Mg, Ca
नाइट्रोजन (Nitrogen) – पौधों को नाइट्रोजन की सर्वाधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। पौधे इसे मृदा से मुख्यत: NO3 (नाइट्रेट) के रूप में तथा कमतर NO2 (नाइट्राइट) व अपवाद स्वरूप NH4+ (अमोनियम) के रूप में प्राप्त करते हैं। नाइट्रोजन की सर्वाधिक आवश्यकता पौधों के वृद्धिशील विभज्योतकी ऊतकों (Meristematic tissues), कलिकाओं (Buds) तथा सामान्यतः समस्त जीवित कोशिकाओं (Living cells) को होती है। नाइट्रोजन ऐमीनो अम्लों, प्रोटीनों, न्यूक्लिक अम्लों, पर्णहरित, विटामिन तथा हॉर्मोन का मुख्य संघटक है। रासायनिक उर्वरकों के रूप में यूरिया नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत है। इसके अन्य स्रोत सोडियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट तथा कैल्शियम नाइट्रेट हैं। मृदा में उपस्थित कुछ जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके पौधों के लिए नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं। पादपों के शुष्कभार में 1-30% नाइट्रोजन होती है।

नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Nitrogen) –

  1. पादपों में नाइट्रोजन की कमी के कारण हरिमाहीनता (Chlorosis) के लक्षण सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं जिससे वह पीली दिखाई देती हैं।
  2. नाइट्रोजन की कमी के समय पत्तियों में अधिक एन्थोसायनिन (Enthocyanin) नामक वर्णक का निर्माण होता है जिसके कारण पत्तियाँ बैंगनी या गहरी भूरी दिखाई देती हैं।
  3. नाइट्रोजन की कमी से प्रोटीन संश्लेषण की दर प्रभावित होती है जिससे पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है तथा पौधे बौने (Stunted) रह जाते हैं।
  4. पादप में इसकी अधिक कमी के कारण पत्तियाँ एवं शाखाएँ लाल या पीले रंग की हो जाती हैं जिन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  5. नाइट्रोजन की कमी से पादपों में पुष्पीकरण (Flowering) विलम्ब से होता है।
  6. कोशिका विभाजन एवं श्वसन क्रिया मंद हो जाती है।
  7. जल सन्तुलन, जल की गति, रन्ध्रों का खुलना व बन्द होना भी प्रभावित होता है।

इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन की अधिकता भी पादपों के लिए हानिकारक होती है। मृदा में अधिक नाइट्रोजन उपस्थित होने पर पादपों में तीव्र कायिक वृद्धि होती है। ये पादप लम्बे, दुर्बल तथा कवकों और जीवाणुओं के प्रति अधिक सुग्राही (Sensitive) होते हैं।

प्रश्न 5.
सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्वों पर लेख लिखिए।
उत्तर
सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व (Micronutrients) – वे तत्व जिनकी मात्रा पौधे के एक ग्राम शुष्क भार में 1 mg से कम होती है सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व कहलाते हैं। ये संख्या में 8 हैं; जैसे- Fe, B, Mn, Cu, Zn, Mo, Cl तथा Ni
मैग्नीशियम (Magnesium) – यह मृदा में मुख्यतः कार्बोनेट MgCO3 तथा डोलोमाइट (MgCO3,.CaCO3) के रूप में पाया जाता है। मैग्नीशियम क्लोरोफिल का मुख्य घटक होता है तथा पत्तियों में राहीनता (Chlorosis) को जोड़ता है। यह तत्व राइबोसोम की दो इकाइयों को परस्पर जोड़ता है। मैग्नीशियम तैलीय बीजों में प्रचुरता से पाया जाता है। सम्भवतः मैग्नीशियम बीजों में तेल निर्माण में उपयोगी होता है। मैग्नीशियम न्यूक्लिक अम्लों (DNA, RNA) के संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ एन्जाइमों के सक्रियक के रूप में कार्य करता है। पादप के शुष्कभार में 0.5-0.7% मैग्नीशियम पाया जाता है।
मैग्नीशियम की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Magnesium) –

  1. पत्तियों में अंतरशिरीय हरिमाहीनता (Interveinal chlorosis) विकसित हो जाती है।
  2. एन्थोसायनिन वर्णक बनने के कारण पत्तियों पर लाल, पीले वे नारंगी धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
  3. पादपों के तनों एवं पत्तियों पर ऊतकक्षयी धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
  4. पादप ऊतक संवर्धन प्रयोग में मैग्नीशियम तत्व न मिलने पर पादप हरिमाहीनता (Chlorosis) प्रदर्शित करते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक डाल्टन में किस खनिज तत्व को आवश्यक तत्व माना?
उत्तर
डाल्टन ने सोडियम तत्व को आवश्यक तत्व माना।

प्रश्न 2.
पादप भस्म से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
पादपों का रासायनिक संगठन ज्ञात करने के लिए पादपों को उच्च ताप पर जलाया जाता है। जलने के पश्चात् बची राख को पादप भस्म (Plant ash) कहते हैं।

प्रश्न 3.
पादप शरीर को आधार तत्व किन्हें कहा जाता है?
उत्तर
कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) तथा ऑक्सीजन (O) को पादप शरीर का आधार तत्व माना जाता है क्योंकि ये काबोहाइड्रेट्स के मुख्य घटक होते हैं जिनसे पादप कोशिका भित्ति का निर्माण होता है।

प्रश्न 4.
हरे पादप कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन कहाँ से ग्रहण करते हैं?
उत्तर
हरे पादप कार्बन डाईऑक्साइड से कार्बन एवं ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन जल से ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 5.
पादप फॉस्फोरस को किस रूप में अवशोषित करते हैं।
उत्तर
पादप फॉस्फोरस को फॉस्फेट आयन (HPO42- तथा H2PO42-) के रूप में अवशोषित करते हैं।

प्रश्न 6.
पोटैशियम की कमी से पादपों में कौन-सा असामान्य लक्षण दिखाई देता है?
उत्तर
हरिमाहीनता (Chlorosis) तथा ऊतकक्षय (Nacrosis)।

प्रश्न 7.
मृदा से कैल्शियम किस रूप में पादपों द्वारा अवशोषित होता है?
उत्तर
कैल्शियम द्विसंयोजक आयनों (Ca) के रूप में अवशोषित होता है।

प्रश्न 8.
हरित लवक संश्लेषण के लिए किस तत्व की आवश्यकता होती है?
उत्तर
मैग्नीशियम (Mg) तथा लौह (Fe)।

प्रश्न 9.
पादपों को सल्फर की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर
पादपों को सल्फर की आवश्यकता कुछ ऐमीनों अम्ल; जैसे सिस्टीन तथा मेथियोनीन के संश्लेषण के लिए होती है।

प्रश्न 10.
पादपों में लौह किस रूप में मृदा से ग्रहण किया जाता है?
उत्तर
फैरस आयन (Fe2+) तथा फेरिक आयनों (Fe3+) के रूप में।

प्रश्न 11.
प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया में जल अपघटन किस तत्व की उपस्थिति में होता है?
उत्तर
मैगनीज (Mn) की उपस्थिति में प्रकाशीय अभिक्रिया में जल अपघटन की क्रिया होती है।

प्रश्न 12.
जिंक की कमी से होने वाले एक पादप रोग का नाम लिखिए।
उत्तर
धान का खैरा रोग।

प्रश्न 13.
पादपों में ताँबे की कमी के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर
(i) पत्तियों के शीर्ष पर हरिमाहीनता (Chlorosis) उत्पन्न हो जाती है।
(ii) इसकी न्यूनता से नीबू में शीर्षारम्भी रोग (Die back disease) उत्पन्न हो जाता है।

प्रश्न 14.
मॉलिब्डेनम का एक कार्य बताइए।
उत्तर
नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में दलहनी पादपों में मॉलिब्डेनम तत्व का उपयोग एन्जाइम को सक्रिय करने के लिए होता है।

प्रश्न 15.
क्लोराइड आयनों का पादपों के लिए क्या महत्व है?
उत्तर
क्लोराइड आयनों की उपस्थिति मूल तथा पत्तियों की कोशिकाओं में कोशिका विभाजन को बढ़ा देती है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वृहत् तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वृहत् तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में अन्तर

 वृहत् पोषक तत्वसूक्ष्म पोषक तत्व
1.पादपों को इनकी अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।ये पादपों द्वारा कम मात्रा में  उपयोग किए जाते हैं।
2.कुछ वृहत् पोषक तत्व कोशिकाओं के परासरण विभव को बनाए रखने में सहायता करते हैं।इनकी परासरण विभव बनाए रखने में कोई भूमिका नहीं होती हैं।
3.यदि पादप इनकी अधिक मात्रा भी अवशोषित करते हैं तो यह विषाक्तता का कारण नहीं होती है।इन तत्वों को आवश्यकता से अधिक अवशोषित करने पर विषाक्तता उत्पन्न होती है।
4.ये तत्व पादप भस्म में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।ये तत्व पादप भस्म में कम मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
जल संवर्धन प्रयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
जल संवर्धन प्रयोग (Water Culture Experiment) – इस विधि में बालू मिट्टी आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस विधि में पौधे की जड़ को पोषक तत्वों (Nutrients) के घोल में रखा जाता है। चूंकि घोल में ऑक्सीजन का अभाव होता है। अत: घोल में जड़ के पास एक नली (Aerator”) से ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती हैं। यह विधि हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) कहलाती है। इस विधि में सैक्स (Sachs, 1860) नॉप (Knop, 1863) तथा होगलैण्ड (Hoangland, 1938) द्वारा निर्धारित किए गए पोषण घोल प्रयोग में लाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
अनिवार्य तत्वों को पादपों में उनके कार्य के आधार पर किस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर
अनिवार्य तत्वों को पादपों में उनके कार्यों के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है –

  1. संरचनात्मक तत्व – पादपों के विभिन्न जैव रसायनों; जैसे- कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, डी.एन.ए., आर.एन.ए. आदि के रचनात्मक घटकों के रूप में उपयोगी है; जैसे- C, H, O, N।
  2. ऊर्जा सम्बन्धित तत्व – वे तत्व जो पौधों की ऊर्जा से सम्बन्धित यौगिकों; जैसे- ATP में फास्फोरस तथा क्लोरोफिल में Mg के रूप में उपयोगी होते हैं।
  3. एन्जाइम सक्रियक – वे तत्व जो विभिन्न एन्जाइमों के सक्रियक तथा निरोधक के रूप उपयोगी होते हैं; जैसे- Mn, Mg, Zn, Mo आदि।
  4. वे तत्व जो पादपों में कोशिकाओं के परासरणी कार्यों का सन्तुलन करते हैं; जैसे- K, Cl आदि।

प्रश्न 4.
पादपों में नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण लिखिए।
उत्तर
नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Nitrogen)

  1. N की न्यूनता से पत्तियों में हरिमाहीनता (Chlorosis = पर्णहरित का नष्ट होना।) हो जाती है जो पहले पुरानी पत्तियों में तथा बाद में तरुण पत्तियों में प्रकट होती हैं।
  2. पर्णहरित के विघटन से गुलाबी रंग का एन्थोसायनिन वर्णक दिखने लगता है जिससे पत्तियाँ गुलाबी हो जाती हैं।
  3. पार्श्व कलिकाओं की प्रसुप्ति बढ़ जाती हैं।
  4. सम्पूर्ण पादप वृद्धि में कमी से पादप बौने (Stunted) रह जाते हैं।

प्रश्न 5.
पादपों में फॉस्फोरस की न्यूनता के लक्षण लिखिए।
उत्तर
फॉस्फोरस की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Phosphorus)

  1. पौधे स्तंभित या बौने (Stunted) वे गहरे हरे रंग के होते हैं।
  2. पत्ती व तने में एन्थोसाइनिन वर्णक का निर्माण।
  3. फॉस्फोरस की अत्यधिक न्यूनता में पत्तियों तथा फलों में ऊतकक्षय क्षेत्र (Necrotic regions) बन जाती हैं।
  4. पत्तियाँ विकृत (Distorted) हो जाती हैं।
  5. कैम्बियम की सक्रियता कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
पादपों में पोटैशियम (K) की न्यूनता के लक्षण लिखिए।
उत्तर
पोटैशियम की न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Potassium)

  1. इस तत्व की न्यूनता का लक्षण सर्वप्रथम परिपक्व पत्तियों पर दिखाई देता है। पत्तियाँ कुर्बरित (Mottled) हो जाती हैं तथा हरिमाहीनता (Chlorosis) दिखाई देती है।
  2. तने की वृद्धि रुक जाती है और पौधा क्षुपाभ (Bushy) हो जाता है।
  3. पौधे की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 7.
पादपों में मैग्नीशियम का महत्व स्पष्ट कीजिए तथा इसकी न्यूनता के लक्षण बताइए।
उत्तर
यह मृदा में मुख्यतः कार्बोनेट (MgCO3) तथा डोलोमाइट (MgCO3.CaCO3) के रूप में मिलता है। मैग्नीशियम क्लोरोफिल का मुख्य घटक है वे पत्तियों में हरिमाहीनता को रोकता है। यह तत्वे राइबोसोम की दो उप इकाइयों को आपस में जोड़ने में मदद करता है। तैलीय बीजों में मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। अत: सम्भवतः यह तत्व बीजों में तेल निर्माण में उपयोगी होता है। न्यूक्लिक अम्लों (DNA, RNA) के संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ एन्जाइमों के सक्रियक के रूप में Mg प्रयुक्त होता है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms of Potassium)

  1. पत्तियों में अंतराशिरीय हरिमाहीनता (Interveinal chlorosis) विकसित हो जाती है।
  2. एन्थोसाइनिन वर्णक बनने के कारण पर्यों पर लाल, पीले व नारंगी धब्बे दिखायी देते हैं।

प्रश्न 8.
पादपों में सल्फर की उपयोगिता समझाइए तथा इसकी न्यूनती के लक्षण लिखिए।
उत्तर
गंधक, सल्फर (S) – गन्धक मृदा में सल्फेट (SO42-) के रूप में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त वातावरण में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड भी पौधों के लिए सल्फर के स्रोत के रूप में उपलब्ध होती है।
बैसीकेसी (Brassicaceae) कुल के पौधों में में तीखी गंध सल्फर युक्त वाष्पशील पदार्थ के कारण होती है। मृदा में सल्फेट की अधिकता में उगने वाले मटर कुल के पौधों की जड़ों में जीवाण्विक मूल ग्रन्थियाँ (Bacterial root nodules) अधिक विकसित होती हैं।
प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक अमीनो अम्लों के संश्लेषण में गंधक सहायक होता है। यह विटामिन B व को-एन्जाइम-A में उपस्थित होता है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. पत्तियों में हरिमाहीनता का लक्षण दिखाई देता है।
  2. पौधे में सल्फर युक्त अमीनों अम्लों (Cysteine, Methionine) की कमी हो जाती है।
  3. मोटी भिक्ति युक्त ऊतकों जैसे स्कलेरेनकाइमा, जाइलम, कोलेन्काइमा आदि की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
  4. पादप बौने रह जाते हैं।

प्रश्न 9.
पादपों में मैग्नीज का महत्व समझाइए एवं इसकी न्यूनता के लक्षण लिखिए।
उत्तर
मैगनीज (Mn) – यह मृदा में मुख्यतः मैग्नीज डाइऑक्साइड (MnO2) के रूप में पाया जाता है वे पौधे इसका अवशोषण मैगनस आयन (Mn++) के रूप में करते हैं।
यह तत्व श्वसन, नाइट्रोजन के उपापचय तथा प्रकाश संश्लेषण के अनेक एन्जाइमों को सक्रियक है। क्लोरोप्लास्ट के संश्लेषण में मैगनीज की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रकाश संश्लेषण में जल अपघटन व O2 उत्पादन से सम्बन्धित एन्जाइम का आवश्यक भाग है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. पौधों की युवा व परिपक्व पत्तियों में हरिमाहीनता का लक्षण।
  2. जड़ का सीमित विकास।
  3. मैगनीज की कमी के कारण विशिष्ट पादप रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे जई में ग्रे स्पिक (Grey Speek of Oats) मटर का मार्श स्पाट (Marsh spot of pea) इत्यादि।

प्रश्न 10.
पौधों में बोरॉन की उपयोगिता लिखिए। इसकी न्यूनता के लक्षणों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
बोरॉन (B) – इस तत्व का अवशोषण जड़ों द्वारा बोरेट आयनों (BO33-; B4O72-) के रूप में होता है। यह मृदा में उपस्थित कैल्शियम के साथ कैल्शियम बोरेट बनाता है जो जड़ों द्वारा अवशोषित नहीं होता है। अतः अधिक कैल्शियम युक्त मिट्टी में पौधों को बोरॉन की उपलब्धता कम हो जाती है।
पौधों में कार्बोहाइड्रेट के स्थानानतरण, कोशिका झिल्ली की कार्यशीलता, परागकणों के अंकुरण व कोशिका विभाजन में बोरॉन का विशेष महत्व है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. गहरे हरे रंग की मोटी पत्तियाँ बोरॉन की न्यूनता का मुख्य लक्षण हैं।
  2. संग्रहकारी तथा माँसल ऊतकों का विघटन हो जाता है।
  3. पुष्पों की संख्या में कमी तथा पुष्प प्रायः बंध्य होते हैं।

प्रश्न 11.
पादपों में जिंक को महत्व लिखिए तथा इसकी न्यूनता के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जिंक (Zn) – इस तत्व का अवशोषण द्विसंयोजक (Zn++bivalent) के रूप में होता है। यह तत्व अनेक प्रकार के एन्जाइमों मुख्यतः कार्बोक्सिलेज को घटक है व फास्फोरस के अवशोषण को भी नियन्त्रित रखता है। पादप वृद्धि हॉरमोन ऑक्सिन (IAA) के संश्लेषण में इस तत्व की मुख्य भूमिका है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. पत्तियों में श्वेत ऊतकक्षयी क्षेत्र (White necrotic areas) धब्बे के रूप में दिखते हैं।
  2. पौधा स्तंभित या बौना (Stunted) हो जाता है।
  3. पत्तियों को आमाप कम व वे विकृत हो जाती हैं।
  4. फ्लोएम में कुरचना (Malformation) हो जाती है।
  5. जिंक न्यूनता का मुख्य रोग लघु पर्ण (Little leaf) कहलाता है।

प्रश्न 12.
पादपों में कॉपर को अवशोषण, महत्व तथा न्यूनता लक्षण लिखिए।
उत्तर
ताँबा या कॉपर (Cu) – इस तत्व का अवशोषण जड़ों द्वारा द्विसंयोजक क्यूपिक (Cu++) अथवा एकसंयोजक क्यूप्रस (Cu+) आयन के रूप में होता है। ऑक्सीकरण अपचयन (Oxidation reduction) क्रिया में इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य वह तत्व करता है। यह प्लास्टोसाइनिन व साइटोक्रोम ऑक्सिडेज का मुख्य घटक है जो प्रकाश संश्लेषण में इलेक्ट्रॉन वाहक के रूप में कार्य करता है।
न्यूनती के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. पत्तियों का मुरझाना, मुड़ना व शीर्ष का सफेद पड़ना।
  2. नींबू (Citrus) में न्यूनता से उत्पन्न रोग शीर्षारंभी रोग (Die back disease) है।

प्रश्न 13.
पादपों में मॉलिब्डेनम का महत्व तथा न्यूनती लक्षण लिखिए।
उत्तर
मॉलिब्डेनम (Mo) – यह तत्व मृदा में प्रायः कम मात्रा में पाया जाता है व पौधे इसको अवशोषण मॉलिब्डेनम ऑक्साइड (MoO2) के रूप में करते हैं। यह तत्वे एन्जाइम नाइट्रोजनेज व नाइट्रेट
रिडक्टेज का मुख्य कारक है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency Symptoms)

  1. पौधों में नीचे की पत्तियों का कर्बरण (Mottling) इस तत्व की कमी का मुख्य लक्षण हैं।
  2. पत्तियों में हरिमाहीनता तथा कर्म पुष्पन होना।
  3. मॉलिब्डिनम की कमी से फूल गोभी में व्हिप टेल (Whiptail) रोग होता है, जिसमें पौधे की पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं।

प्रश्न 14.
क्लोरीन का पादपों में महत्व लिखिए।
उत्तर
क्लोरीन (Chlorine) – मृदा में यह Cl आयनों अर्थात क्लोराइडों के रूप में उपलब्ध रहती है तथा विलेयशील होती है। पौधे इसका सहज ही अवशोषण कर लेते हैं। यह तत्व किसी भी जैवरसायन का घटक नहीं है। कार्य की दृष्टि से इसको कार्बोहाइड्रेट उपापचय तथा विद्युत आवेशों के सन्तुलन में उपयोगी पाया गया है। इस तत्व की न्यूनता से पत्तियों में चितकबरी हरिमाहीनता उत्पन्न हो जाती है जो अन्त में ऊतकक्षय में परिणत हो जाती है। फलों को निर्माण कम हो जाता है।

प्रश्न 15.
पादपों में निकेल पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
निकेल (Nickle) – Ni को 1988 में डाल्टन द्वारा अनिवार्य तत्व के रूप में सम्मिलित किया गया है। निकेल तत्व न तो किसी प्रमुख जैवरसायन का घटक है और न ही इसके कार्यों तथा न्यूनता के प्रभावों की जानकारी है, हालांकि एन्जाइम यूरिएज (Urease) का यह प्रमुख घटक है। यह सम्भवतः Ni2+ के रूप में पौधों को उपलब्ध होता है।

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हाइड्रोपोनिक्स या जल संवर्धन तकनीक का वर्णन कीजिए। वर्मीकुलाइट के प्रमुख गुणों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
हाइड्रोपोनिक्स अथवा जल संवर्धन (Hydroponics or Water Culture) – वे समस्त विधियाँ जिनमें पौधों को उगाने के लिए मिट्टी के अतिरिक्त पोषक विलयनों का प्रयोग किया जाता है हाइड्रोपोनिक्स या जल संवर्धन (Hydroponic) तकनीकें कहलाती हैं। हाइड्रोपोनिक्स एक ग्रीक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है-जल के साथ कार्य करना (Working with water)। शुरुआत में बालू का प्रयोग संवर्धन घोल के रूप में किया गया था परन्तु वर्तमान में पौधों के संवर्धन के लिए वर्मीकुलाइट (Vermiculite) नामक माध्यम का प्रयोग किया जा रहा है।
वर्मीकुलाइट एक खनिज पदार्थ है जो पृथ्वी में प्राकृतिक अवस्था (Native state) में पाया जाता है। इस खनिज को विशेष प्रकार की ताप भट्टियों में 2000 तक गर्म करके जो उत्पाद प्राप्त होता है उसे पौधों को उगाने के लिए संवर्धन माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।

वर्मीकुलाहट के गुण (Properties of Vermiculite)

  1. यह हल्के भार वाला पदार्थ है।
  2. यह रासायनिक रूप से अक्रिय (Chemical inactive) पदार्थ है।
  3. यह एक बन्ध्य (Sterile) माध्यम है जिसमें कीट, खरपतवारे उत्पन्न नहीं होते हैं।
  4. मिट्टी की तुलना में इसकी जल अवशोषण क्षमता उच्च होती है।
  5. इसकी ढीली बनावट (Loose texture) होती है। अर्थात यह पौधे के मूल तन्त्र के विकास में बाधक नहीं है।
  6. यह विघटित नहीं होता है अतः यह निरन्तर एक के बाद एक फसल उगाने के लिए उपयुक्त माध्यम है।

वर्तमान में वर्मीकुलाइट का उपयोग पौधे उगाने में संवर्धन माध्यम के रूप में किया जाता है। इस तकनीक को वर्मीकुलोपोनिक्स (Vermiculoponics) कहते हैं।

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