RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 4 फर्म का समापन

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 फर्म का समापन

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समापन के समय डूबत ऋण खाते का शेष हस्तान्तरित किया जाता है
(अ) देनदारों के खाते में
(ब) डूबत ऋण खाते में
(स) वसूली खाते में
(द) पूँजी खाते में।

प्रश्न 2.
साझेदार फर्म के विघटन पर हानियाँ सबसे पहले चुकायी जाएयेंगीं
(अ) लाभों में से
(ब) साझेदारों के ऋण खातों में से
(स) साझेदारों की पूँजी में से
(द) साझेदारों के निजी साधनों से

प्रश्न 3.
फर्म के समापन पर ख्याति खाते को बन्द करने के लिए हस्तान्तरित किया जाता है
(अ) पुनर्मूल्यांकने खाते में
(ब) साझेदारों के पूँजी खाते में
(स) वसूली खाते में।
(द) लाभ-हानि खाते में ।

प्रश्न 4.
गार्नर बनाम मरें नियम के अनुसार एक दिवालिया साझेदार के पूँजी की न्यूनता शेष साहूकार साझेदारों में बाँटी जाती है
(अ) लाभ-हानि अनुपात में
(ब) वर्ष के आरम्भ के पूँजी अनुपात में
(स) समापन के लाभ-हानि के पूर्व के पूँजी अनुपात में
(द) बराबर अनुपात में ।

प्रश्न 5.
जब गार्नर बनाम मरें नियम लागू होता है तब वसूली की हानि साझेदार वहन करेंगे
(अ) बराबर अनुपात में ।
(ब) लाभ-हानि अनुपात में
(स) पूँजी अनुपात में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं ।

उत्तर-
1. (स),
2. (अ),
3. (स),
4. (स),
5. (ब)

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक फर्म के Rs 50,000 के देनदारों से समापन पर Rs 45,000 वसूल हुये। जर्नल प्रविष्टि वसूली की क्या होगी ?
उत्तर-
Cash/Bank Ac Dr. 45,000
To Realization A/C 45,000
(Assets realized on dissolution)

प्रश्न 2.
गार्नर बनाम मरें के मुकदमे में दिवालिया साझेदार कौन था ? उसको घाटा किस अनुपात में बाँटा गया ?
उत्तर-
गार्नर बनाम मरें के मुकदमे में विल्किन्स दिवालिया साझेदार था । उसका घाटा विघटन से ठीक पूर्व बने चिड़े में दी गयी पूँजी के अनुपात में बाँटा गया।

प्रश्न 3.
वसूली खाते से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
फर्म के समापन पर फर्म की सम्पत्तियों के विक्रय पर राशि वसूल की जाती है तथा फर्म के दायित्वों का भुगतान किया जाता है। इस कार्य के लिये फर्म की पुस्तकों में एक विशेष प्रकार का खाता खोला जाता है जिसे वसूली खाता कहते हैं।

प्रश्न 4.
फर्म के समापन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
समस्त साझेदारों के मध्य साझेदारी का समाप्त हो जाना ही फर्म का समापन कहलाता है।

प्रश्न 5.
फर्म के समापन पर भुगतान का क्रम बताइये।
उत्तर-
फर्म के समापन पर भुगतान का क्रम इस प्रकार रहता है
(a) सभी हानियों को लाभ से, बाद में पूँजी से और अन्त में साझेदारों की निजी सम्पत्ति से पूरा किया जाता है।
(b) सम्पत्तियों की बिक्री के साझेदारों द्वारा लाई गयी राशि का उपयोग निम्न प्रकार होगा-

  • सर्वप्रथम फर्म द्वारा तीसरे पक्षकार के ऋण को चुकाने में,
  • फर्म को दिये गये ऋण अथवा अग्रिम का आनुपातिक भुगतान,
  • साझेदार की पूँजी आनुपातिक,
  • शेष यदि रहती है तो साझेदारों में उनके लाभ-हानि के अनुपात में बाँट दी जायेगी।

प्रश्न 6.
न्यायालय द्वारा समापन से क्या आशय है ?
उत्तर-
भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 44 के अनुसार, किसी साझेदार द्वारा अभियोग चलाने पर न्यायालय द्वारा समापन को आदेश देनी न्यायालय द्वारा समापन कहलाता है।

प्रश्न 7.
एक फर्म में साझेदारों की पूँजी Rs 20,000 दायित्व Rs 15,000 तथा रोकड़ शेष Rs 1,000 है। फर्म के समापन करने पर विविध सम्पत्तियों से Rs 9,000 वसूल हुये। वसूली से हानि होगी।
उत्तर-
चिट्ठे के दोनों पक्षों को योग समान होता है इसलिए
वसूली से हानि = दायित्व पक्ष योग – सम्पत्ति पक्ष का योग
= (20,000 + 15,000) – (1,000 + 9,000)
= 35,000 – 10,000 = 25,000
34,000 की सम्पत्ति में से Rs 9,000 वसूल हुये अर्थात् 25,000 की वसूली से हानि हुयी।

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गार्नर बनाम मरें नियम को समझाइये।
उत्तर-
गार्नर बनाम मरें नियम निम्न प्रकार है

  • दिवालिया साझी की पूँजी की कमी को साहूकार साझी अपनी पूँजी के अनुपात में वहन करेंगे।
  • साहूकार साझीदार वसूली की हानि में अपने भाग को नकद लाये ।।

पूँजी का अनुपात साहूकार साझीदारों की उस पूँजी के आधार पर निकाला जावेगा जो फर्म के विघटन से पूर्व बने नियमित चिट्टे में दी गयी है।

प्रश्न 2.
साझेदारी का समापन फर्म के समापन से भिन्न है। इस कथन को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
साझेदारी के समापन का अर्थ है कि एक साझेदार का अन्य साझेदारों के साथ सम्बन्ध टूट जाना । ऐसी स्थिति में यह आवश्यक नहीं है कि फर्म का करोबार बन्द हो जाये शेष साझेदार चाहें तो फर्म का कारोबार चालू रख सकते हैं।

जबकि समस्त साझेदारों के मध्य साझेदारी का समाप्त हो जाना फर्म का विघटन या फर्म का समापन कहलाता है । इस स्थिति में फर्म का कारोबार बन्द हो जाता है । अतः यह सही है कि साझेदारी का समापन फर्म के समापन से भिन्न है।

प्रश्न 3.
ए बी एवं सी का लाभ विभाजन अनुपात 1:2:2 है तथा वसूली की हानि डेबिट करने से पूर्व पूँजी खाते के शेष क्रमश: 3,000 (Dr.), 6,000 (Cr.) तथा 2,000 (Cr.) हैं। वसूली की हानि Rs 5,000 है। दिवालिया हो गया उसकी न्यूनता वहन करने की प्रविष्टि होगी ?
उत्तर-
B’s Capital A/c DR. 3,000
C’s Capital A/c DR. 1,000
To A’s Capital 4,000
(Deficiency of A’s account bear by B & C their capital ratio 3:1)

प्रश्न 4.
हिमी व श्रीकान्त साझेदार हैं। 31 मार्च, 2012 को साझेदारों की पूँजी क्रमशः Rs 1,00,000 व Rs 50,000 है तथा लेनदार Rs 30,000 हैं। इसी तिथि को फर्म के समापन पर सम्पत्तियों से वसूली मूल्य Rs 40,000 है। समापन पर वसूली खाता बनाइये।
हल :
Realization A/C
RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 4 फर्म का समापन

प्रश्न 5.
अनिवार्य समापन किन परिस्थितियों में होता है ?
उत्तर-
निम्नलिखित परिस्थितियों में फर्म अनिवार्य रूप से समाप्त हो जाती है

  • यदि फर्म का व्यवसाय अवैध हो ।
  • यदि कोई भी साझेदार शत्रु देश का नागरिक हो ।
  • यदि एक साझेदार के अलावा सभी साझेदार दिवालिया हो जायें ।
  • यदि साझेदारों की अधिकतम संख्या सामान्य साझेदारी में 50 या बैंकिंग व्यवसाय में 10 से अधिक हो ।

प्रश्न 6.
साझेदारी फर्म के विघटन की रीतियाँ बताइये।
उत्तर-
साझेदारी फर्म के विघटन की रीतियाँ निम्न हैं

  • समझौते द्वारा समापन
  • अनिवार्य समापन
  • नोटिस द्वारा समापन
  • न्यायालय द्वारा समापन
  • विशेष घटना के होने पर समापन ।

प्रश्न 7.
साझेदारी के विघटन पर पूँजी खाते किस प्रकार बन्द किये जाते हैं ?
उत्तर-
साझेदारी के विघटन पर पूँजी खातों को बन्द करने के लिए इसके क्रेडिट पक्ष में प्रारम्भिक जमाशेष, चालू खातों के जमा शेष, समापन पर लाभ में हिस्सा, किसी दायित्व को लेने या उसकी राशि, संचय एवं अवितरित लाभ में हिस्सा, पूँजी की कमी हेतु लाई गयी राशि लिखी जाती है तथा डेबिट पक्ष में प्रारम्भिक नाम शेष, चालू खातों के नाम शेष, समापन पर हानि में हिस्सा, किसी सम्पत्ति के लेने पर उसकी राशि, अवितरित हानि में हिस्सा तथा भुगतान की गयी राशि लिखी जाती है। इस प्रकार पूँजी खाते बन्द हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
कोई दो परिस्थितियाँ बताइये जिसके अन्तर्गत साझेदारी को विघटित किया जाता है।
उत्तर-

  • ए, बी, सी एक फर्म में साझेदार हैं। सी की मृत्यु हो गयी ऐसी परिस्थिति में साझेदारी फर्म का समापन होगा।
  • ए, बी, सी, एक फर्म में साझेदार हैं। बी पागल हो गया तो ऐसी परिस्थिति में भी साझेदारी फर्म का समापन होगा।

प्रश्न 9.
फर्म के विघटन के समय वसूली खाता बनाने के नियम लिखिये।
उत्तर-
यह खाता एक नाममात्र के खाते की तरह होता है। इस खाते को बनाने का उद्देश्य सम्पत्तियों के विक्रय व दायित्वों के भुगतान से होने वाले लाभ-हानि को ज्ञात करना होता है । रोकड़ व बैंक, साझेदारों के ऋण, संचय व अवितरित लाभ तथा साझेदारों के चालू व पूँजी खातों के शेषों को छोड़कर अन्य समस्त सम्पत्ति एवं दायित्वों को इस खाते में अन्तरित कर दिया जाता है जिससे समस्त सम्पत्ति एवं दायित्वों के खाते बन्द हो जाते हैं। सम्पत्तियों के विक्रय से प्राप्त राशि किसी साझेदार द्वारा की गयी सम्पत्ति दायित्वों के भुगतान एवं समापन व्यय सम्बन्धी लेखे भी इस खाते में किये जाते हैं। इस खाते का शेष वसूली पर लाभ अथवा हानि प्रदर्शित करता है जिसे लाभ विभाजन अनुपात में बाँटकर साझेदारों के चालू अथवा पूँजी खातों में अन्तरित कर दिया जाता है।

प्रश्न 10.
कोई दो आधार बताइये जिन पर न्यायालय फर्म के विघटन का आदेश दे सकता है ?
उत्तर-
न्यायालय निम्न दो आधारों पर फर्म के विघटन का आदेश दे सकता है

  • जब अभियोग चलाने वाले साझेदार के अलावा अन्य कोई साझेदार स्थायी रूप से कार्य करने के अयोग्य हो जाये ।
  • जब कोई साझेदार फर्म में अपने हित को किसी तीसरे पक्ष को हस्तान्तरित कर दे ।

प्रश्न 11.
कपिल एक साझेदार Rs 25,000 के लेनदारों को Rs 22,000 में लेने को सहमत हुआ। फर्म के विधटन के संग आवश्यक जर्नल प्रविष्टि होगी।
उत्तर-
Realization A/c Dr. 22,000
To Kapil’s Capital A/c 22,000
(Liabilities taken over by Kapil)

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वसूली खाते एवं पुनर्मूल्यांकन खाते में अन्तर बताइये।
उत्तर-
वसूली खाते तथा पुनर्मूल्यांकन खाते में निम्न बिन्दुओं के आधार पर अन्तर को स्पष्ट किया जा सकता है-

आधार वसूली खाता पुनर्मूल्यांकन खाता
1. उद्देश्यवसूली खाता फर्म के समापन पर सम्पत्तियों के विक्रय से वसूली तथा दायित्वों के भुगतान से सम्बन्धित व्यवहारों का लेखा करने के लिये बनाया जाता है।पुनर्मूल्यांकन खाता किसी नये साझेदार के प्रवेश अथवा किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने या उसकी मृत्यु पर सम्पत्तियों एवं दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन के कारण मूल्यों में वृद्धि/कमी का लेखा करने के लिये बनाया जाता है ।
2. तैयार करने का समयवसूली खाता फर्म के समापन पर फर्म की पुस्तकों को बन्द करने के लिये बनाया जाता है।पुनर्मूल्यांकन खाता फर्म को चालू रखने पर फर्म के संगठन में परिवर्तन के फलस्वरूप तैयार किया जाता है।
3. व्ययफर्म के समापन पर वसूली के सम्बन्ध में कुछ व्यय किये जाते हैं जिनसे वसूली खाता डेबिट किया जाता है।फर्म के संगठन में परिवर्तन के फलस्वरूप सम्पत्ति एवं दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन संस्था के लेखपालों द्वारा ही किया जाता है। अतः किसी प्रकार का व्यय नहीं होता है।
4. लेखा प्रविष्टियाँवसूली खाते के डेबिट पक्ष में रोकड़ तथा बैंक शेष के अलावा समस्त सम्पत्तियों के शेष तथा क्रेडिट पक्ष में पूँजी, संचय, अवितरित लाभ तथा साझेदारों के ऋणों को छोड़कर अन्य दायित्वों के शेषों को अन्तरित किया जाता हैपुनर्मूल्यांकन खाते के डेबिट पक्ष में सम्पत्तियों के मूल्यों में कमी, दायित्वों में वृद्धि व संदिग्ध ऋणों के लिये प्रावधान तथा क्रेडिट पक्ष में सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि तथा दायित्वों में कमी अंकित की जाती है।
5. अनिवार्यताफर्म के समापन पर वसूली खाता बनाना अनिवार्य होता है।फर्म के संगठन में परिवर्तन होने पर पुनर्मूल्यांकन खाता खोले बिना भी लाभ अथवा हानि का समायोजन किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
फर्म का विघटन किन-किन परिस्थितियों में किया जा सकता है ?
उत्तर-
जब किसी फर्म के समस्त साझेदारों के मध्य साझेदारी समाप्त हो जाती है तो उसे फर्म का समापन अथवा फर्म का विघटन कहते हैं। भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 40 से 44 तक के अन्तर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में साझेदारी फर्म को समापन अथवा विघटन हो सकता है-
(1) समझौते द्वारा समापन (Dissolution by Agreement)-
साझेदार स्वेच्छा से किसी भी समय साझेदारी की समाप्ति कर सकते हैं।
(2) अनिवार्य समापन (Compulsory Dissolution)-
निम्नलिखित परिस्थितियों में फर्म अनिवार्य रूप से समाप्त हो जाती हैं।

  • यदि फर्म को व्यापार अवैध हो ।
  • यदि कोई साझेदार शत्रु देश का नागरिक हो।
  • यदि एक साझेदार के अलावा सभी साझेदार दिवालिया हों।
  • यदि साझेदारों की अधिकतम संख्या सामान्य साझेदारी में 50 व बैंकिंग व्यवसाय में 10 से अधिक हो ।

(3) नोटिस द्वारा समापन (Dissolution by Notice)-
यदि साझेदारी स्वेच्छा पर निर्भर करती हो तो किसी भी साझेदार द्वारा समापन का नोटिस दिये जाने पर साझेदारी समाप्त हो जाती है।
(4) न्यायालय द्वारा समापन (Dissolution by Court)-
किसी भी साझेदार के आवेदन पर न्यायालय निम्नलिखित परिस्थितियों में फर्म के समापन का आदेश दे सकता है

  • यदि कोई साझेदार मानसिक रूप से अस्वस्थ हो।
  • यदि कोई सक्रिय साझेदार स्थायी रूप से अपाहिज हो जाए और साझेदार के रूप में अपना कार्य करने में असमर्थ हो ।
  • यदि कोई साझेदार दुराचार का दोषी हो जो कि फर्म के व्यापार को प्रभावित करे।
  • यदि कोई साझेदार जान-बूझकर प्रसंविदा की अवहेलना करे।
  • यदि फर्म को व्यापार से केवल हानि ही होने की शंका हो ।
  • यदि कोई साझेदार फर्म में अपने हित को किसी तीसरे पक्ष को हस्तान्तरित कर दे ।
  • यदि न्यायालय किसी भी उचित कारण से सन्तुष्ट हो।।

(5) विशेष घटना के होने पर समापन (Dissolution on the happening of certain contingencies)-
इसमें निम्नलिखित घटनाओं के होने पर फर्म की समाप्ति हो सकती है

  • साझेदारी यदि किसी विशेष अवधि के लिए है तो अवधि समाप्ति पर।
  • साझेदारी यदि किसी विशेष कार्य के लिए स्थापित की गई हो तो उस कार्य के पूर्ण होने पर।
  • किसी भी साझेदार की मृत्यु होने पर।
  • किसी भी साझेदार के न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित होने पर।

प्रश्न 3.
गार्नर बनाम परें नियम से क्या समझते हैं ? स्थायी और परिवर्तनशील पद्धतियों के अन्तर्गत यह कैसे लागू होता है ? समझाइये।
उत्तर-
दिवालिया साझेदार के दायित्व की पूर्ति शेष समर्थ साझेदारों द्वारा की जाती है। दिवालिया साझेदार के फर्म के प्रति दायित्व की पूर्ति समर्थ साझेदारों द्वारा किस अनुपात में की जावेगी इस सम्बन्ध में भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 में कोई व्याख्या नहीं दी गयी है। यदि किसी साझेदारी संलेख में कोई अनुपात निश्चित नहीं किया गया हो तो गार्नर बनाम मरें के मुकदमे में दिया गया निर्णय लागू होगा।

गार्नर बनाम मरें मुकदमे के निर्णय के अनुसार दिवालिया साझेदार की पूँजी की कमी को शेष साझेदार अपनी पूँजी के अनुपात में वहन करेंगे।
इस निर्णय के अनुसार पूँजी के अनुपात का अर्थ इस प्रकार है-
(1) पूँजी खाते स्थायी होने पर-
यदि पूँजी खाते स्थायी हैं तो विघटन से तुरन्त पूर्व बनाये गये चिट्टे में पूँजी खातों के शेषों के आधार पर पूँजी का अनुपात ज्ञात किया जावेगा तथा दिवालिया साझेदार के हिस्से की कमी सक्षम साझेदारों द्वारा उनके पूँजी अनुपात में विभाजित की जायेगी।

(2) पूँजी खाते परिवर्तनशील होने पर-
यदि पूँजी खाते परिवर्तनशील है तो संचय, अवितरित लाभ, पूँजी पर ब्याज, वेतन, कमीशन, आहरण तथा आहरण पर ब्याज का समायोजन करने के पश्चात् पूँजी खातों के शेषों के आधार पर पूँजी का अनुपात ज्ञात किया जायेगा और दिवालिया साझेदार के हिस्से की कमी सक्षम साझेदारों द्वारा उनके उक्त पूँजी अनुपात में विभाजित की जायेगी। पूंजी का अनुपात ज्ञात करने के लिये वसूली पर लाभ या हानि का समायोजन नहीं किया जायेगा। वसूली के लाभ या हानि का विवरण करने से पूर्व यदि किसी साझेदार के पूँजी खाते का डेबिट शेष हो तो वह साझेदार दिवालिया साझेदार के पूँजी खाते की न्यूनता का भागीदार नहीं होगा।

प्रश्न 4.
फर्म के विघटन पर हिसाब का निपटारा करने की लेखांकन विधि समझाइए।
उत्तर-
फर्म के समापन की तिथि से सामान्य व्यापारिक कार्य बन्द हो जाते हैं तथा फर्म की सम्पत्तियों से वसूली करने और दायित्वों का भुगतान करने की कार्यवाही प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिये निम्न खाते तैयार किया जाते हैं

  1. वसूली खाता
  2. बैंक/रोकड़ खाता
  3. साझेदारों के पूँजी खाते
  4. अन्य आवश्यक खाते

1. समापन पर वसूली खाते से सम्बन्धित निम्न प्रकार प्रविष्टियाँ की जाती हैं
(i) रोकड़, बैंक तथा काल्पनिक सम्पत्तियों को छोड़कर शेष सभी सम्पत्तियों को वसूली खाते में हस्तान्तरित करने पर
Realization A/c Dr.
To Sundry Assets A/C
(Sundry assets transferred to realization A/C)

(ii) साझेदारों के ऋण, पूँजी, संचय तथा अवितरित लाभों को छोड़कर शेष सभी दायित्वों को वसूली खाते में अन्तरि करने पर
Sundry Liabilities A/c Dr.
Provision for Depreciation A/c Dr.
Provision for Doubtful Debts A/C Dr.
To Realization A/C
(Provision and other liabilities traf. to realization A/C)

(iii) सम्पत्तियों के बेचने पर
Cash A/C Dr.
To Realization A/C
(Assets realize)

(iv) सम्पत्ति को किसी साझेदार द्वारा लेने पर
Partners Capital A/C Dr.
To Realization A/c
(Assets taken over by partner)

(v) दायित्वों का भुगतान करने पर-
Realization A/C Dr.
To Cash A/C
(Liabilities pail off)

(vi) दायित्वों को किसी साझेदार द्वारा लेने पर
Realization A/C Dr.
To Partner’s Capital A/C
(Liabilities taken over by partners)

(vii) वसूली या समापन के व्ययों का भुगतान करने पर
Realization A/C Dr.
To Cash A/c
(Realization exp. or Dissolution cost paid)

(viii) वसूली व्यय किसी साझेदार द्वारा चुकाने पर
Realization A/C Dr.
Dr. To Partner’s Capital A/C
(Realization exp, paid by partner’s)

(ix) किसी सम्पत्ति की वसूली पर किसी साझेदार को कमीशन देय होने पर
Realization A/C Dr.
To Partner’s Capital A/c
(Commission due to partners)

(x) पुस्तकों में न दी गयी सम्पत्तियों से वसूली होने पर
Cash A/C Dr.
To Realization A/C
(Unrecorded assets realize)

(xi) पुस्तकों में न दिये गये दायित्वों को चुकाने पर
Realization A/C Dr.
To Cash A/c
(Unrecorded liabilities paid off)

(xii) वसूली पर हानि होने पर
Partner’s Capital A/C Dr.
To Realization A/C
(Loss on realization transferred to capital a/c)

(xiii) वसूली पर लाभ होने पर
Realization A/C Dr.
To Partner’s Capital A/C
(Profit on realization traf. to capital a/c)

2. साझेदारों के पूँजी खाते से सम्बन्धित निम्न प्रविष्टियों की जाती हैं
(i) काल्पनिक सम्पत्तियाँ जैसे अवितरित हानि आदि को बाँटने पर
Partner’s Capital A/C Dr.
To Profit & Loss A/C
(Balance of P&L a/c transferred)

(ii) संचय, अवितरित लाभ आदि को बाँटने पर
General Reserve A/C Dr.
P/L A/C Dr.
To Partner’s Capital A/C
(Balance transferred)

(iii) साझेदारों के पूँजी खाते में डेबिट शेष होने पर रकम वसूल करने पर
Cash A/c Dr.
To Partner’s Capital A/C
(Debit balance of partners received)

(iv) साझेदार के पूँजी खाते को क्रेडिट शेष होने पर उसे भुगतान करने पर
Partner’s Capital A/c Dr.
To Cash A/c
(Credit balance of partners paid)

3. बैंक अथवा रोकड़ खाता-
यदि बैंक तथा रोकड़ दोनों के प्रारम्भिक शेष दिये गये हैं तो इनमें से एक खाते के शेष को दूसरे में अन्तरित करके उसे बन्द कर दिया जाता है। अब रोकड़ या बैंक में से एक ही खाता शेष बचता है। वह खाता भी वसूली खाते एवं पूँजी खातों के बन्द होने के साथ ही बन्द हो जाता है। इस प्रकार फर्म के समापन का लेखांकन पूर्ण हो जाता है।
उपरोक्त से सम्बन्धित खातों के नमूने निम्न प्रकार हैं-
RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 4 फर्म का समापन
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RBSE Class 12 Accountancy Chapter 4 आंकिक प्रश्न

प्रश्न 1.
रमेश, नरेश एवं महेश 3:2:1 के अनुपात में लाभ का वितरण करते थे। 31 दिसम्बर, 2014 को अपनी साझेदारी के समापन का निर्णय लेते हैं। इस दिन का चिट्ठा इस प्रकार है
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समापन पर निम्नलिखित लेन-देन हुए-

  1. संयुक्त जीवन बीमा पॉलिसी को Rs 15,000 में समर्पण किया।
  2. रमेश ने विनियोग Rs 17,500 में लिए तथा अपनी पत्नी के ऋण का भुगतान करने के लिए सहमत हुए।
  3. नरेश ने Rs 7,500 में स्टॉक लिया तथा Rs 5,000 के देनदारों को Rs 4,000 में लिया।
  4. मशीन से Rs 50,000 वसूल हुए तथा शेष देनदारों को पुस्तक मूल्य का 50 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ।
  5. वसूली व्यय Rs 1,000 हुए।
  6. Rs 3,000 के मूल्य के विनियोग जिनका पुस्तकों में लेखा-जोखा नहीं हुआ उनसे यही मूल्य वसूल हुआ।

फर्म की पुस्तकें बन्द करने हेतु जर्नल प्रविष्टियाँ एवं आवश्यक खाते बनाइए।
उत्तर:
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Realization A/c
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प्रश्न 2.
गोपेश एवं राकेश साझेदार हैं लाभ-हानि बराबर बाँटते हैं। उन्होंने साझेदारी व्यवसाय को विघटित करने का निश्चय किया। 31 मार्च 2014 को चिट्ठा निम्न प्रकार था
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सम्पत्तियों से वसूली निम्न प्रकार हुई–

  1. गोपेश ने प्लांट एवं मशीन तथा फर्नीचर पुस्तक मूल्य से 10 प्रतिशत कम पर लिया।
  2. राकेश ने स्टॉक एवं ख्याति Rs 35,000 में ली
  3. विविध देनदारों से Rs 37,000 वसूल हुए
  4. लेनदारों को 5 प्रतिशत बट्टे पर भुगतान कर दिया । फर्म की पुस्तकें बन्द करने के लिए जर्नल प्रविष्टियाँ दीजिए तथा आवश्यक खाते बनाइए।

उत्तर:
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प्रश्न 3.
X, Y और Z साझेदार हैं जो लाभ-हानि को 2:2:1 अनुपात में बाँटते हैं। 31 मार्च, 2010 को साझेदारी के विघटन को सहमत हुए। उस तिथि को फर्म का चिट्ठा निम्न प्रकार था।
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प्लाण्ट एवं मशीन से Rs 10,000, फर्नीचर Rs 5,000, देनदारों से पूर्ण, स्टॉक से Rs 4,000 प्राप्त हुए । विनियोग Z द्वारा लिये गए (पुस्तक मूल्य पर) । लेनदारों को 10 प्रतिशत बट्टे पर भुगतान किया, वसूली व्ययर Rs 100 हुए। Rs 550 की सम्पत्ति का पुस्तकों में लेखा नहीं किया गया था। जिसे X ने Rs 450 में ले लिया। Rs 100 का एक दायित्व पुस्तकों में दर्ज नहीं किया गया था। फर्म की पुस्तकें बन्द कीजिए और आवश्यक खाते बनाइये।
उत्तर:
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RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 4 फर्म का समापन

प्रश्न 4.
तानु और मानु एक साझेदारी फर्म में 3:1 अनुपात में लाभों का विभाजन करते हैं। ये फर्म के समापन के लिए सहमत हुए । फर्म की सम्पत्तियों (Rs 2,000 नकद को छोड़कर) से Rs 1,08,500 वसूल हुए। समापन की तिथि पर फर्म के दायित्व व अन्य विवरण निम्न प्रकार थे-
लेनदार Rs 40,000, तानु का पूँजी खातार Rs 1,00,000 (जमा) , मानु का पूँजी खातारे Rs 10,000 (नामे), लाभ-हानि खाता Rs 8,000 नामे, वसूली खर्चेर Rs 1,000 । यह ज्ञात हुआ कि एक विनियोग जो कि Rs 2,000 के थे। पुस्तकों में नहीं लिखे थे, इसे एक लेनदार द्वारा Rs 1,500 में ले लिया। शेष लेनदारों को Rs 36,500 का पूर्ण भुगतान किया गया।
वसूली खस्ता, रोकड़ खस्ता एवं साझेदारों के पूँजी खाते बनाइये।
उत्तर:
Memorandum Balance Sheet
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प्रश्न 5.
राम रहीम और करीम 2:2:1 के अनुपात में लाभ विभाजित करते हुए साझी थे। उन्होंने 31 मार्च 2012 को समापन निर्णय लिया। उस दिन उनका चिट्ठा निम्न प्रकार था-
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वे साझेदारी के विघटन का निश्चय करते हैं। निम्नलिखित राशियाँ वसूल होती हैं-फिक्स्च र्स व अन्य सम्पत्तियाँ Rs 9,000, स्टॉक Rs 4,520, देनदार Rs 1,800, लेनदारों को पूर्ण भुगतान में Rs 3,800 चुकाए । वसूली व्यय Rs 120 हुए। फर्म की पुस्तकें बन्द करने के लिए आवश्यक खाते बनाइए।
उत्तर:
Realization Account
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित चिट्ठा मैसर्स राकेश एवं दीपक की 31 दिसम्बर, 2012 को स्थिति बताता है। वे अपने व्यापार का विघटन करने का निश्चय करते हैं। उनका चिट्ठा निम्न है
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पुस्तक ऋण 7.5 प्रतिशत की हानि पर वसूल किये गये। स्टॉक Rs 3,000 में बेचा गया। प्लाण्ट व मशीन Rs 700 में बेचे गये और फर्नीचर Rs 250 में बेचा । साझेदार लाभ-हानि का विभाजन बराबर अनुपात में करते हैं। विघटन पर आवश्यक खाते खोलिए।
उत्तर:
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प्रश्न 7.
X, Y और Z क्रमशः 4: 3 : 3 के अनुपात में लाभ-हानि को बाँटते हुए एक फर्म में साझेदार हैं। 31 दिसम्बर, 2015 को साझेदारी का विघटन करने का निर्णय लेते हैं उनका चिट्ठा निम्न हैं
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Y को सम्पत्तियों की वसूली करने और प्राप्य राशि का वितरण करने के लिए नियुक्त किया गया। यह स्टॉक और देनदारों से प्राप्त राशि का 5 प्रतिशत पारिश्रमिक के रूप में प्राप्त करेगा तथा वसूली के समस्त खर्चे स्वयं वहन करेगा। Y वसूली के परिणाम की इस प्रकार रिपोर्ट करता है कि स्टॉक से Rs 96,000 वसूल हुए देनदारों से Rs 72,000 वसूल हुए। लेनदारों को पूर्ण भुगतान में Rs 76,000 चुकाये। Rs 1,000 के अदत्त लेनदार जो कि चिट्टे में शामिल नहीं हैं चुकाये गये। Z दिवालिया हो गया, उसकी जायदाद से Rs 7,720 से प्राप्त हुए। गार्नर बनाम मरें नियम लागू होता है, वसूली खाता पूँजी खाते एवं रोकड़ खाता बनाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 8.
A, B और C साझेदार हैं जो लाभ-हानि 5:3:2 के अनुपात में बाँटते हैं। 31 मार्च, 2008 को व्यवसाय समाप्त कर दिया गया तब चिट्ठा निम्न थी
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मशीन से Rs 50,000 एवं स्टॉक से Rs 36,000 वसूल हुए। मोटरकार B द्वारा Rs 24,000 में ली गयी। देनदारों से Rs 40,000 वसूल हुए। किसी भी साझेदार की पूँजी की कमी अन्य साझेदारों द्वारा लाभ विभाजन अनुपात में वहन की जायेगी। A दिवालिया हो गया, उससे कुछ भी राशि प्राप्त नहीं हो सकी। आवश्यक खाते बनाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 9.
राम और श्याम के मध्य साझेदारी का 31 मार्च, 2010 को विघटन हो गया। राम की पूँजी Rs 17,000 और श्याम की पूँजी Rs 3,000 थी । Rs 2,000 श्याम द्वारा फर्म को देय थे Rs 10,000 फर्म द्वारा राम को देय थे और Rs 20,000 लेनदारों को देय थे। फर्म की पुस्तकों में नकद और फर्नीचर क्रमशः Rs 300 एवं Rs 1,200 पर दिखाये गये थे। लाभ-हानि क्रमशः 2:1 के अनुपात में विभाजित करते थे। उक्त दायित्वों का प्रतिनिधित्व करने वाली सम्पत्तियों से Rs 40,000 (नकद और फर्नीचर तथा श्याम द्वारा Rs 2,000 देय के अलावा) वसूल हुए। फर्नीचर राम द्वारा Rs 800 की कीमत पर ले लिया गया। दायित्वों का पुस्तक मूल्य पर निपटारा कर दिया गया। वसूली खर्च Rs 200 थे। विघटन की तिथि को वसूली के पहले का चिट्ठी और विघटन पर आवश्यक खाते बनाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 10.
31 मार्च 2014 को राम, श्याम एवं मोहन का चिट्ठा निम्न था
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मोहन दिवालिया हो गया, वह केवल Rs 4,000 का ही भुगतान कर सका । साझेदारी विघटन का निश्चय किया गया । सम्पत्तियों से निम्न प्रकार वसूली हुई-विविध देनदार Rs 15,000, प्राप्य विपत्र Rs 14,000, स्टॉक के Rs 32,000, प्लाण्ट एवं मशीनरी Rs 28,000, समापन व्यय Rs 5,000 हुए। फर्म की पुस्तकें बन्द करने पर खाते बनाइये ।
उत्तर:
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प्रश्न 11.
A, B और C एक फर्म में बराबर के साझेदार है। 31 मार्च, 2012 को चिट्ठा निम्न था
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उक्त तिथि को फर्म का समापन हो गया। A दिवालिया हो जाता है, फर्म के देदार से Rs 80,000 व स्टॉक से Rs 50,000 वसूल होते हैं। लेनदारों को पूर्ण भुगतान में Rs 86,000 चुकाये गये । वसूली व्य Rs 4,000 थे। A से कुछ भी वसूल नहीं हो सका। वसूली खाते, साझेदारों के पूँजी खाते व रोकड़ खाते बनाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 12.
कपिल, भरत, विवेक और भावेश बराबर के साझेदार हैं, 31 मार्च, 2006 को फर्म का समापन हो गया। इस तिथि को चिट्ठी निम्न है
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देनदारों से पुस्तक मूल्य का 20 प्रतिशत कम वसूल हुआ। स्टॉक केवल Rs 4,000 में ही बेचा जा सकी । Rs 2,000 का संदिग्ध दायित्व था, जिसका पुस्तकों में लेखा नहीं हुआ जिसके लिये Rs 1,600 चुकाने पड़े। भरत दिवालिया हो गया, उससे केवल Rs 6,000 वसूल हुए। वसूली व्यय Rs 4,800 हुए। गार्नर बनाम मरें नियम लागू करते हुए आवश्यक खाते बनाइये।
उत्तर:
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Working Note-भरत दिवालिया साझेदार की पूँजी की कमी को विवेक और भावेश के बीच पूँजी अनुपात 2:1 में बाँटा गया है इस कमी की पूर्ति ये दोनों ही करेंगे। कपिल की पूँजी का शेष डेबिट है इसलिये वह इस पूँजी की कमी में हिस्सा नहीं देगा।]

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