RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 5 संस्कृति एवं समाजीकरण

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 संस्कृति एवं समाजीकरण

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से संस्कृति की कौनसी विशेषता नहीं है?
(अ) संस्कृति सीखी जाती है।
(ब) संस्कृति मानव निर्मित है।
(स) संस्कृति खरीदी जाती है।
(द) संस्कृति सामाजिक होती है।
उत्तर:
(अ) संस्कृति सीखी जाती है।

प्रश्न 2.
संस्कृति की सबसे छोटी इकाई कहलाती है।
(अ) संस्कृति तत्व
(ब) संस्कृति संकुल
(स) संस्कृति प्रतिमान
(द) संस्कृति क्षेत्र।
उत्तर:
(स) संस्कृति प्रतिमान

प्रश्न 3.
“समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो सीखने वाले को सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने योग्य बनाती है” यह परिभाषा किसने दी है?
(अ) ग्रीन
(ब) गिलिन व गिलिन
(स) जॉनसन
(द) मर्टन।
उत्तर:
(स) जॉनसन

प्रश्न 4.
समाजीकरण का तात्पर्य निम्न में से कौन सा है?
(अ) समाज का एकीकरण करने की प्रक्रिया
(ब) संस्कृति को सीखने की प्रक्रिया
(स) घूमने-फिरने की प्रक्रिया
(द) लोगों से वार्तालाप करने की प्रक्रिया।
उत्तर:
(ब) संस्कृति को सीखने की प्रक्रिया

प्रश्न 5.
माइण्ड, सेल्फ एण्ड सोसायटी पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) फ्रायड
(ब) कूले
(स) वेबर
(द) मीड।
उत्तर:
(द) मीड।

प्रश्न 6.
फ्रायड ने समाजीकरण का कौन सा सिद्धान्त दिया है?
(अ) समाज में रहने का
(ब) मैं और मुझे का
(स) आत्मदर्पण दर्शन का
(द) इड, अहम् और परा अहम् का।
उत्तर:
(द) इड, अहम् और परा अहम् का।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृति की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. संस्कृति मानव निर्मित है।
  2. संस्कृति सीखी जाती है।

प्रश्न 2.
समाजीकरण की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
हारालाम्बोस के अनुसार “वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को सीखता है, समाजीकरण के नाम से जानी जाती है।”

प्रश्न 3.
फ्रायड ने ‘प्राथमिक परिचय’ की स्थिति किसे कहा है?
उत्तर:
फ्रायड ने ‘प्राथमिक परिचय’ मौखिक अवस्था को कहा है।

प्रश्न 4.
“ह्यूमन नेचर एण्ड सोशल आर्डर” नामक पुस्तक किसने लिखी है?
उत्तर:
समाजशास्त्री सी.एच. कूले ने।

प्रश्न 5.
समाजीकरण की प्रथम पाठशाला क्या है?
उत्तर:
परिवार।

प्रश्न 6.
फ्रायड के अनुसार उचित-अनुचित का ज्ञान किसके द्वारा होता है?
उत्तर:
फ्रायड के अनुसार उचित-अनुचित का ज्ञान ‘परा अहम्’ के द्वारा होता है।

प्रश्न 7.
समाजीकरण की किन्हीं दो द्वितीयक संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. शिक्षण संस्थाएँ
  2. आर्थिक संस्थाएँ।

प्रश्न 8.
मानव किसके ज्ञान के कारण पशुओं से भिन्न है?
उत्तर:
मानव संस्कृति के ज्ञान के कारण पशुओं से भिन्न है।

प्रश्न 9.
हर्षकोविट्स के अनुसार संस्कृति तत्वों के अर्थपूर्ण योग से क्या निर्मित होता है?
उत्तर:
हर्षकोविट्स की दृष्टि में संस्कृति तत्वों के अर्थपूर्ण योग से संस्कृति संकुल का निर्माण होता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टायलर के अनुसार संस्कृति की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
टायलर महोदय के अनुसार-“संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है, जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के नाते प्राप्त करता है।” उपर्युक्त परिभाषा में टायलर महोदय ने संस्कृति को सामाजिक विरासत माना है, जिसे मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।

प्रश्न 2.
संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित की जाती है, समझाइए।
उत्तर:
‘संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित की जाती है’ इसका तात्पर्य यह है कि मानव जिस ज्ञान को अर्जित करता है वह केवल उसी की पीढ़ी तक सीमित नहीं रहता बल्कि अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित हो जाता है।

मानव संस्कृति का हस्तान्तरण प्रमुखतया भाषा के माध्यम से करता है। वस्तुतः भाषा, लेखन व प्रतीक ही वह माध्यम है जिनके द्वारा मानव ज्ञान का अर्जन व अर्जित ज्ञान का हस्तान्तरण हो पाता है। हस्तानान्तरण का यह क्रम लगातार चलता रहता है। इससे मानव का ज्ञान एवं संस्कृति का कोष समय बीतने के साथ समृद्ध होता चला जाता है।

प्रश्न 3.
‘संस्कृति का कोई तत्व बेकार नहीं होता’ समझाइए।
उत्तर:
‘संस्कृति का कोई तत्व बेकार नहीं होता’ इसका कारण यह है कि विभिन्न सांस्कृतिक तत्व एक-दूसरे से अलग न होकर परस्पर बँधे हुए रहते हैं। ऐसी दशा में ये व्यवस्थित एवं संतुलित रहते हैं। जब परिवर्तन संस्कृति के किसी एक तत्व में होता है तो उसका प्रभाव अन्य तत्वों पर भी पड़ता है। इसका कारण यह है कि किसी भी तत्व का अस्तित्व अलग-अलग न होकर संगठन में ही होता है। अतः उपर्युक्त कथन सत्य है कि ‘संस्कृति का कोई तत्व बेकार नहीं होता।

प्रश्न 4.
समाजीकरण की प्रक्रिया समय व स्थान सापेक्ष कैसे है?
उत्तर:
समाजीकरण की प्रक्रिया समय व स्थान सापेक्ष है। इसका तात्पर्य यह है कि जो व्यवहार एक समाज में पुरस्कार के योग्य है वही दूसरे समाज में दण्डनीय भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीका की जनजाति में एक-दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एक दूसरे पर थूकते हैं। लेकिन सम्मान प्रकट करने का यह तरीका यदि भारत में अपनाया जाये तो वह अनुचित माना जाएगा। समाजीकरण की प्रक्रिया समय सापेक्ष भी है। यदि भिन्न-भिन्न समयों में एक समाज व समूह के रीति-रिवाजों से बहुत अधिक परिवर्तन आ जाता है। उदाहरण के लिए प्राचीन भारतीय समाज में नव-वधू को पर्दा करना सिखाया जाता था। परन्तु आधुनिक समाज में नव-वधू से ऐसी अपेक्षा सामान्यतया नहीं की जाती।

प्रश्न 5.
आडिपस कॉम्पलेक्स और इलैक्ट्रा कॉम्पलेक्स क्या है?
उत्तर:
आडिपस कॉम्पलेक्स :
यह लड़कों की वह भावना है जिसमें वह अपनी माँ के प्रति स्नेह रखता है और उस पर अपना एकाधिकार चाहता है। यह अवस्था सामान्यतः चौथे वर्ष से शुरू होकर बारह या तेरह वर्ष की आयु तक रहती है।

इलेक्ट्रा कॉम्पलेक्स :
इसमें पुत्री अपने पिता के प्रति स्नेह रखती है और उस पर अपना एकाधिकार चाहती है। यह अवस्था भी चौथे वर्ष से शुरू होकर बारह या तेरह वर्ष की आयु तक रहती है।

प्रश्न 6.
समाजीकरण की किन्हीं दो प्राथमिक संस्थाओं को समझाइए।
उत्तर:
समाजीकरण की दो प्राथमिक संस्थाएँ। :
नातेदारी समूह :
नातेदारी में रक्त व विवाह से सम्बन्धित रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं। भाई-बहिन, पति-पत्नी, सास-ससुर, साले-साली, देवर-भाभी तथा अन्य रिश्तेदारों के सम्पर्क में आने से व्यक्ति अनेकानेक बातें सीखता है। उनके अनुरूप भूमिकाएँ निभाता है तथा आचरण के विभिन्न नियमों का ज्ञान प्राप्त करता है।

विवाह :
विवाह के बाद व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। विवाह के बाद ही व्यक्ति को नये दायित्वों का निर्वहन करना होता है। पति-पत्नी को एक दूसरे के लिए. त्याग व निष्ठा की भावना रखनी होती है। पति-पत्नी ही आगे चलकर माता-पिता व दादा-दादी बनते हैं तथा उनके पद के अनुरूप भूमिका निभाना सीखते हैं।

प्रश्न 7.
समाजीकरण की प्रक्रिया आजीवन चलती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया शैशवकाल से शुरू होकर वृद्धावस्था तक चलती है। वृद्धावस्था की तुलना में बाल्यावस्था में व्यक्ति अधिक शीघ्रता से सीखता है। व्यक्ति अपने जीवन काल में विभिन्न प्रस्थितियाँ धारण करता है और उन प्रस्थितियों के अनुरूप भूमिकाओं का निष्पादन करना सीखता है। जैसे बाल्यावस्था में वह अपने माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन, मित्र आदि के साथ व्यवहार करना सीखता है। युवावस्था में वह पति, पिता, व्यापारी, कर्मचारी तथा अन्य पद धारण करता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति दादा, नाना, श्वसुर आदि पदों के अनुरूप भूमिकाओं का निर्वहन करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाजीकरण जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है।

प्रश्न 8.
“दर्पण में आत्मदर्शन” का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
दर्पण में आत्मदर्शन का सिद्धान्त :
अमेरिकी समाजशास्त्री सी.एच. कुले ने समाजीकरण से सम्बन्धित जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, उसे दर्पण में आत्मदर्शन का सिद्धान्त कहते हैं। इस सिद्धान्त में निम्न बिन्दु सम्मिलित हैं :

  1. व्यक्ति यह सोचता है कि समाज के लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं।
  2. दूसरों की राय के बारे में सम्बद्ध व्यक्ति क्या सोचता है।
  3. व्यक्ति अपने बारे में सोचकर अपने को कैसा मानता है। दूसरे शब्दों में, वह ग्लानि अनुभव करता है कि गर्व महसूस करता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृति को परिभाषित कीजिए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
संस्कृति के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नलिखित है। :
समाजशास्त्री टायलर महोदय के अनुसार “संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है जिन्हें मनुष्य आज के सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है। टायलर ने इस परिभाषा में संस्कृति को सामाजिक विरासत माना है, जिसे मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।

इसी प्रकार हर्षकोविट्स महोदय ने संस्कृति की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए लिखा है, “संस्कृति पर्यावरण का मानव-निर्मित भाग है।” इस परिभाषा में हर्षकोविट्स ने स्पष्ट किया है कि सम्पूर्ण पर्यावरण को हम संस्कृति नहीं कह सकते बल्कि संस्कृति वही कहलायेगी जो मनुष्य द्वारा निर्मित है। मनुष्य द्वारा निर्मित इन वस्तुओं को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक जो मूर्त है जिन्हें छुआ जा सकता है, देखा जा सकता है तथा दूसरी वह जिन्हें देखा व छुआ नहीं जा सकता। आगबर्न ने इसी आधार पर संस्कृति के दो प्रकार बताए हैं-भौतिक व अभौतिक संस्कृति। उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संस्कृति मानव की वह विरासत है जो उसे समाज का सदस्य होने के कारण प्राप्त होती है। सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति अपने समाज से जो कुछ प्राप्त करता है व सीखता है वही सामाजिक ज्ञान उसकी सामाजिक विरासत कहलाता है। सीखा हुआ यही ज्ञान संस्कृति कहलाता है।

संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ :
संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  • संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है :
    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य ही संस्कृति का निर्माण करता है। मानव ने नये-नये आविष्कार किए और अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति की। मनुष्य के द्वारा किए गये आविष्कार व उसके अनुभव मिलकर ही संस्कृति का निर्माण करते हैं।
  • संस्कृति सीखी जाती है :
    व्यक्ति के सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का सम्पूर्ण योग ही संस्कृति कहलाता है। जन्म के समय मानव शिशु और पशु शिशु में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है। मानव शिशु संस्कृति को सीखकर ही सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होता है। संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है परन्तु प्रत्येक सीखा हुआ व्यवहार संस्कृति नहीं होता है। पशुओं में भी सीखने की क्षमता पाई जाती है। मानव के साथ रहते-रहते पशु भी बहुत कुछ व्यवहार सीख जाते हैं, किन्तु पशु द्वारा सीखा हुआ व्यवहार उसका व्यक्तिगत है न कि सामूहिक व्यवहार का अंग। इसी कारण पशुओं द्वारा सीखा गया व्यवहार संस्कृति नहीं बन सकता।
  • संस्कृति हस्तान्तरित की जाती है :
    वस्तुतः संस्कृति सीखी जा सकती है इसलिए यह सरलता से एक समूह से दूसरे समूह को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित हो जाती है। मानव संस्कृति का हस्तान्तरण मुख्यतया भाषा के माध्यम से करता है।
  • संस्कृति सामाजिक होती है :
    संस्कृति एक समाज की सम्पूर्ण सामाजिक जीवन पद्धति को प्रकट करती है। संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं बनाई जाती, अपितु यह सम्पूर्ण समाज की देन होती है।
  • प्रत्येक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति :
    प्रत्येक समाज की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति पायी जाती है। इसका कारण यह है कि अलग-अलग समाजों में भौगोलिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में भिन्नता पाई जाती है। भौगोलिक व सामाजिक विभिन्नताओं के कारण प्रत्येक समाज की आवश्यकताएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इसी कारण प्रत्येक समाज में विशिष्ट संस्कृति का निर्माण होता है।

उपरोक्त के अलावा संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, उसमें अनुकूलन की क्षमता होती है, संस्कृति समाज के लिए आदर्श होती है, संस्कृति व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती है, संस्कृति में संतुलन एवं संगठन होता है एवं संस्कृति अधि-वैयक्तिक एवं अधि-सावयवी होती है। संस्कृति की ये सभी विशेषताएँ संस्कृति को वृहद् परिप्रेक्ष्य प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृति के उपादानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार संस्कृति के भी विभिन्न अंग या उपादान होते हैं, जो निम्नलिखित हैं :

  • सांस्कृतिक तत्व :
    संस्कृति की वह सबसे छोटी इकाई जिसका और अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता, सांस्कृतिक तत्व कहलाती है। जिस प्रकार शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका, पदार्थ की छोटी से छोटी इकाई परमाणु तथा सामाजिक संरचना की इकाई परिवार है, उसी प्रकार से संस्कृति की सबसे छोटी अविभाज्य इकाई सांस्कृतिक तत्व है।
  • सांस्कृतिक संकुल :
    सांस्कृतिक तत्वों का वह समूह जिसमें अनेक सांस्कृतिक तत्व आपस में अर्थपूर्ण ढंग से घुल-मिलकर मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं तो उसे संस्कृति संकुल कहा जाता है। सम्पूर्ण संस्कृति में अकेले सांस्कृतिक तत्व का कोई महत्व नहीं होता। अपितु कुछ सांस्कृतिक तत्व मिलकर मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। सांस्कृतिक संकुल में अनेकानेक सांस्कृतिक तत्व अर्थपूर्ण ढंग से जुड़े रहते हैं। बिना सांस्कृतिक तत्वों के सांस्कृतिक संकुल का निर्माण सम्भव नहीं है।
  • संस्कृति प्रतिमान :
    सांस्कृतिक तत्व व संकुल प्रकार्यात्मक रूप से सम्बन्धित होकर जब किसी सार्थक उपादान (अंग) का निर्माण करते हैं, तो वह सांस्कृतिक प्रतिमान कहलाता है। सांस्कृतिक प्रतिमान में संस्कृति तत्व एक संस्कृति संकुल विशेष प्रकार से व्यवस्थित होते हैं। संस्कृति प्रतिमान ही समाज की संस्कृति का निर्माण करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि संस्कृति प्रतिमानों की सम्पूर्ण व्यवस्था ही संस्कृति है। संस्कृति प्रतिमानों के माध्यम से हम संस्कृति की विशेषताओं को सरलतापूर्वक समझ सकते हैं।
  • संस्कृति क्षेत्र :
    प्रत्येक संस्कृति एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तृत होती है। वह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में जिसमें सांस्कृतिक तत्वों, संकुलों एवं प्रतिमानों का प्रसार होता है, संस्कृति क्षेत्र कहलाता है। सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई स्पष्ट सीमा निश्चित नहीं की जा सकती है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के आस-पास के क्षेत्र व प्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताएँ दूसरे क्षेत्र में किसी-न-किसी रूप में अवश्य ही देखी जा सकती हैं।

उपर्युक्त चारों अवयव मिलकर एक समृद्ध संस्कृति का निर्माण करते हैं।’

प्रश्न 3.
‘संस्कृति’ अधि-वैयक्तिक एवं अधि-सावयवी है। समझाइए।
उत्तर:
‘संस्कृति’ अधि-वैयक्तिक है- अकेला व्यक्ति न तो संस्कृति का निर्माण कर सकता है और न ही उसमें कोई बदलाव ला सकता है। यह अर्थ ग्रहण करने पर संस्कृति अधि-वैयिक्तक कही जाएगी।

संस्कृति अधि :
सावयवी है ‘सावयवी’ शब्द का प्रयोग मानव व अन्य जीवित प्राणियों के लिए किया जाता है। संस्कृति का निर्माण स्वयं मानव ने किया है। चूँकि मानव एक सावयव है, ऐसी स्थिति में मानव द्वारा निर्मित संस्कृति उससे अधिक होने के कारण अधिक सावयवी है।

उपरोक्त दोनों कथनों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि संस्कृति व्यक्ति एवं सावयवों से ऊपर है। यद्यपि संस्कृति का निर्माता स्वयं मानव है, परन्तु जब संस्कृति का निर्माण हो जाता है तो वह व्यक्तियों से ऊपर हो जाती है क्योंकि व्यक्ति उस संस्कृति के अनुरूप व्यवहार करता है। कोई भी अकेला व्यक्ति संस्कृति का निर्माण नहीं कर सकता है बल्कि ये सम्पूर्ण समाज व संस्कृति की देन होती है। कभी-कभी कुछ समाज सुधारक समाज में कुछ मूल्यों, परम्पराओं व प्रथाओं में परिवर्तन अवश्य लाते हैं। परन्तु वे सम्पूर्ण संस्कृति को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष की देन न होकर सम्पूर्ण समाज व समूह की देन होती है। इसलिए उसमें निरन्तरता का गुण पाया जाता है।

प्रश्न 4.
समाजीकरण को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार का मत प्रस्तुत किया है। इस मत-भिन्नता के कारण समाजीकरण की परिभाषाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं, जो निम्नलिखित हैं
(क) “समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो सीखने वाले को सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने के योग्य बनाती है।” -जॉनसन
इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि हर चीज सीखना समाजीकरण नहीं होता बल्कि सामाजिक नियमों एवं मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करना सीखना ही समाजीकरण है।

(ख) “समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्मपन और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।” -ए.डब्ल्यू.
ग्रीन प्रस्तुत परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति सांस्कृतिक विशेषताओं को सीखता है और उनके अनुरूप अपने आप को ढालता है जिससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है।

(ग) “समाजीकरण से हमारा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति, समूह में एक क्रियाशील सदस्य बनता है, समूह की कार्यविधियों से समन्वय स्थापित करता है, उसकी परम्पराओं का ध्यान रखता है और सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना विकसित करता है।” -गिलिन और गिलिन

(घ) “वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को सीखता है, समाजीकरण के नाम से जानी जाती है।” -हारालाम्बोस

(ड) “समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है और जिसके द्वारा उसे समाज के मूल्यों और मानकों को स्वीकार कने की प्रेरणा मिलती है।” -किम्बाल यंग

उपर्युक्त समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति सामाजिक मूल्यों, मानदण्डों एवं समाज-सम्मत व्यवहार को सीखता है। इसी के अन्तर्गत मनुष्य अपने समाज व समूह की सामाजिक व सांस्कृतिक विशेषताओं से अनुकूलन करता है।

समाजीकरण की विशेषताएँ :
समाजीकरण की विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं :

  1. समाजीकरण सकारात्मक गतिविधियों को सीखने की प्रक्रिया है। सामाजिक मूल्यों और मानदण्डों के अनुरूप किए गए व्यवहार ही समाजीकरण कहलाते हैं।
  2. समाजीकरण की प्रक्रिया शैशवकाल से शुरू होकर वृद्धावस्था तक चलती है। यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
  3. समाजीकरण की प्रक्रिया समय एवं स्थान सापेक्ष है। यह संस्कृति को आत्मसात करने की भी प्रक्रिया है। समाजीकरण के अन्तर्गत व्यक्ति संस्कृति के भौतिक एवं अभौतिक दोनों पक्षों को सीखता है।
  4. समाजीकरण की क्रिया द्वारा ही कोई व्यक्ति समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनता है। समाजीकरण से ही व्यक्ति के ‘आत्म’ या ‘स्व’ का विकास होता है।
  5. समाजीकरण की क्रिया से सांस्कृतिक हस्तान्तरण होता है। हम अपनी पुरानी पीढ़ी से सांस्कृतिक विरासत को सीखकर उसे आत्मसात करते हैं।

प्रश्न 5.
समाजीकरण के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण के विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं :
(क) मौखिकावस्था :
मानव शिशु जन्म के बाद विभिन्न तनावों का अनुभव करता है। उसे भूख, सर्दी, गर्मी, गीलेपन आदि से पीड़ा होती है, वह रोता-चिल्लाता है। समाजीकरण के प्रथम चरण में बच्चा अपने सुख-दुख, हाव-भाव आदि मुँह के माध्यम से ही प्रकट करता है। इसलिए इसे मौखिकावस्था कहा जाता है। इस अवस्था में बच्चा और माँ आपस में मिले हुए रहते हैं। इस स्थिति को फ्रायड ने प्राथमिक परिचय कहा है। बच्चा अपनी माँ के शारीरिक सम्पर्क से आनन्द का अनुभव करता है। यह चरण लगभग जन्म से डेढ़ वर्ष तक चलता है।

(ख) शौच अवस्था :
समाजीकरण का द्वितीय चरण शौच अवस्था है। यह अवस्था विभिन्न समाजों में अलग-अलग आयु में शुरू होती है। भारतीय समाज में यह अवस्था डेढ़-दो वर्ष से प्रारम्भ होकर तीन-चार वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में बच्चे को शौच-प्रशिक्षण दिया जाता है, उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह थोड़ा आत्मनिर्भर होना चाहिए।

समाजीकरण की यह अवस्था माँ व बच्चे के लिए कष्टदायक होती है। माता बच्चे को शौच प्रशिक्षण देते वक्त तथा दूध छुड़ाते वक्त आनन्द का अनुभव नहीं करती लेकिन अन्तिम परिणामों को ध्यान में रखकर वह यह भावात्मक भूमिका निभाती है इस अवस्था के अन्त में बच्चा परिवार के अन्य सदस्यों के सम्पर्क में आता है। वह बोलना, चलना, खेलना आदि सीखता है।

(ग) आडिपल या मातृरति स्तर :
इस चरण में बच्चों से आशा की जाती है कि वह अपने लिंग के अनुरूप व्यवहार करें। अपने लिंग के अनुकूल व्यवहार करने पर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। लड़के व लड़कियों के खिलौनों व उनके पहनावे में भी भिन्नता होती है। जिससे बालक अपने विपरीत लिंग के प्रति जागरूक होता है तथा विपरीत लिंग के प्रति रुचि बढ़ने लगती है।

(घ) किशोरावस्था :
किशोरावस्था मानव जीवन का वह संक्रान्ति काल है जिसमें एक किशोर को भारी तनाव व संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था में बच्चे अपने माता-पिता के नियन्त्रण से अधिकाधिक मुक्त होना चाहते हैं। किशोर का पारिवारिक सदस्यों की अपेक्षा अपने साथियों में अधिक मन लगता है। इस आयु में लड़के व लड़कियों में शारीरिक परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं।

उपर्युक्त के अलावा समाजीकरण के अन्य चरण भी हैं जिन्हें क्रमशः युवावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था के नाम से जाना जाता है। इन चरणों के तहत समाजीकरण की प्रक्रिया जीवनभर चलती रहती है, जिसमें मनुष्य जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कुछ-न-कुछ सीखता रहता है।

प्रश्न 6.
समाजीकरण के फ्रायड के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
समाजीकरण से सम्बन्धित फ्रायड का सिद्धान्त :
समाजीकरण के सम्बन्ध में सिगमण्ड फ्रायड ने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किया वह मनोविज्ञान पर आधारित था। इन्होंने समाजीकरण की क्रिया को मानसिक क्रियाओं के आधार पर समझाया। फ्रायड के अनुसार मस्तिष्क में एकल अनुभव व घटनाएँ व्यक्तित्व निर्माण में योगदान देते हैं। समाजीकरण का सिद्धान्त प्रस्तुत करते समय फ्रायड ने ‘स्व’ को तीन भागों ‘इड’ ‘अहम्’ और ‘परा अहम्’ में विभक्त किया और इनके सम्बन्ध में निम्नलिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया

इड :
यह व्यक्ति की समस्त मानसिक क्रियाओं का आधार है। इसका सम्बन्ध मूल प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं, असमाजीकृत इच्छाओं एवं स्वार्थों के योग से है। इसके सम्मुख अच्छे-बुरे, नैतिक, अनैतिक का कोई प्रश्न नहीं होता है। यह किसी न किसी प्रकार से संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है।

अहम् :
‘अहम्’ वास्तविकता के सिद्धान्त पर काम करता है। यह ‘स्व’ का चेतन व तार्किक पक्ष है जो इड पर नियंत्रण रखता है और उसे परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करने का निर्देश देता है। यद्यपि ‘अहम्’ भी नैतिक-अनैतिक, प्रेम व घृणा को अधिक महत्व तो नहीं देता फिर भी ‘अहम्’ ‘इड’ से अधिक व्यावहारिक है। ‘अहम् आवश्यकता पूर्ति के लिए ‘इड’ से परिस्थिति अनुकूल व्यवहार करने का निर्देश देता है।

परा अहम् :
इसका सम्बन्ध समाज के नैतिक मूल्यों और मान्यताओं से होता है। ‘परा अहम्’ व्यक्ति को यह बताता है कि व्यक्ति की इच्छापूर्ति हेतु समाज ने क्या नियम बना रखा है।

उपर्युक्त ‘इड’ ‘अहम्’ और परा अहम् के पारस्परिक सम्बन्ध को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। माना ‘इड’ ‘अहम्’ तथा परा अहम् तीन भाई हैं। ‘इड’ सबसे छोटा है, ‘अहम्’ मँझला तथा ‘परा अहम्’ बड़ा भाई है। छोटा भाई (इड) एक बाग में पेड़ पर लगे हुए आम देखकर खाने की इच्छा प्रकट करता है। वह किसी भी तरह आम प्राप्त करना चाहता है। मँझला भाई अहम् उसे समझाता है कि अभी रुको माली के इधर-उधर जाने पर आम तोड़ लेना। किन्तु बड़ा भाई परा अहम् कहता है चोरी करना पाप है। यदि आम. खाना है तो पैसे देकर प्राप्त करना चाहिए, अन्यथा नहीं।

ऐसी दशा में ‘इड’ तथा परा अहम् में अन्तर्द्वन्द्व शुरू होता है। फ्रायड के अनुसार इसी प्रक्रिया में व्यक्ति जितना परा अहम् के अनुसार आचरण करता है, उतना ही उसका समाजीकरण सफल माना जाता है।

प्रश्न 7.
‘सामान्यीकृत अन्य’ का सिद्धान्त किसने दिया है? इसका विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘सामान्यीकृत अन्य’ का सिद्धान्त समाजशास्त्री मीड ने प्रस्तुत किया। ‘सामान्यीकृत अन्य’ का अर्थ है किसी व्यक्ति की स्वयं के बारे में वह धारणा जो दूसरे लोग उसके बारे में रखते हैं। अन्य शब्दों में दूसरे लोग किसी व्यक्ति के बारे में जो निर्णय लेते हैं और उससे जो अपेक्षाएँ रखते हैं। व्यक्ति उसका आन्तरीकरण करता है, उसे ही “सामान्यीकृत अन्य” कहते हैं।

मीड यह मानते हैं कि व्यक्ति ही समाज का निर्माता है, जिसमें दिमाग और ‘स्व’ होता है। जन्म के समय बच्चा मात्र जैविकीय प्राणी होती है, जिसमें बुद्धि का अभाव होता है। उस समय वह आन्तरिक प्रेरणाओं से प्रेरित होकर ही क्रियाएँ करता है। समाज के सम्पर्क में रहकर ही व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है। इस प्रकार बच्चे का ‘स्व’ दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होने लगता है। इसे ही वह “सामान्यीकृत अन्य” कहते हैं।

मीड के अनुसार समाज से सम्पर्क के कारण बालक जो कुछ सीखता है उसे वह दुबारा अपनाने का प्रयत्न करता है। उदाहरणस्वरूप बच्चा खेल के दौरान अपने माता-पिता, चोर-पुलिस आदि बनकर भूमिकाओं को निभाता है और वैसा ही व्यवहार करता है, जैसा कि उनके साथ वास्तविक जीवन में होता है। बच्चा दूसरे के व्यवहारों को अनुकरण, संकेत एवं भाषा के माध्यम से ग्रहण करता है। धीरे-धीरे उसमें विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभाने की क्षमता पैदा हो जाती है, इसे ही मीड ने “आत्म का विकास” कहा है।

उपर्युक्त विवरण “सामान्यीकृत अन्य” की तर्कसंगत पुष्टि करते हैं।

प्रश्न 8.
समाजीकरण की प्रमुख संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण की प्रमुख संस्थाएँ :
समाजीकरण की संस्थाओं में प्राथमिक संस्थाएँ एवं द्वितीयक संस्थाएँ सम्मिलित हैं। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है :

समाजीकरण की प्राथमिक संस्थाएँ :

  • परिवार :
    समाजीकरण करने वाली संस्थाओं में परिवार की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह बच्चों की प्रथम पाठशाला है।
  • क्रीड़ा समूह :
    परिवार के बाद इसका स्थान आता है क्योंकि परिवार के बाद सबसे अधिक समय बच्चे क्रीड़ा समूह में ही व्यतीत करते हैं।
  • पड़ोस :
    पड़ोसी समाजीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनकी प्रशंसा या निन्दा व्यक्ति को समाज-सम्मत व्यवहार करने की प्रेरणा देती है।
  • नातेदारी समूह :
    इसमें रक्त व विवाह से सम्बन्धित रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं। व्यक्ति रिश्तों के अनुरूप व्यवहार करता है तथा आचरण के विभिन्न नियमों का ज्ञान प्राप्त करता है।
  • विवाह :
    विवाह के बाद व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। ये बदलाव व्यक्ति को गम्भीर व सुव्यवस्थित आचरण करने हेतु प्रेरित करते हैं।

समाजीकरण की द्वितीयक संस्थाएँ :

  • शिक्षण संस्थाएँ :
    विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त कर व्यक्ति धीरे-धीरे समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनता है तथा अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
  • राजनैतिक संस्थाएँ :
    ये संस्थाएँ व्यक्ति को अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के प्रति सजग बनाती हैं। इनके द्वारा व्यक्ति समाज का जागरूक नागरिक बनता है।
  • आर्थिक संस्थाएँ :
    ये संस्थाएँ व्यक्ति को सहयोग, प्रतिस्पर्धा और समायोजन के प्रति सजग करती हैं। बेईमानी और ईमानदारी के लक्षण आर्थिक संस्थाओं के द्वारा ही सीखे जाते हैं।
  • सांस्कृतिक संस्थाएँ :
    इनके द्वारा व्यक्ति अपनी प्रथाओं, साहित्य, वेशभूषा, परम्पराओं, संगीत, कला एवं भाषा आदि का ज्ञान प्राप्त कर अपने व्यक्तित्व का विकास करता है।
  • धार्मिक संस्थाएँ :
    कोई भी समाज बिना धर्म के नहीं रह सकता। धर्म के कारण ही व्यक्ति में शक्ति, पवित्रता और नैतिकता आदि भावनाओं का विकास होता है।
  • व्यवसाय समूह :
    व्यवसाय के दौरान व्यवसायी व्यक्ति अनेकानेक अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है, जिससे उसके व्यावसायिक ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। यह दशा समाजीकरण के लिए आदर्श स्थिति है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न है
(अ) रंग के आधार पर
(ब) भौतिक समृद्धि के आधार पर
(स) संस्कृति के आधार पर
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) संस्कृति के आधार पर

प्रश्न 2.
“संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है।” यह मानना है
(अ) फ्रायड का
(ब) जॉनसन का
(स) सी.एच. कूले का
(द) हर्षकोविट्स का।
उत्तर:
(द) हर्षकोविट्स का।

प्रश्न 3.
संस्कृति का भौतिक एवं अभौतिक प्रकार बताया
(अ) आगबन ने
(ब) कार्ल मार्क्स ने
(स) मीड ने
(द) हर्षकोबिट्स ने।
उत्तर:
(अ) आगबन ने

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन-सा एक कथन संस्कृति के सम्बन्ध में सत्य है?
(अ) संस्कृति संस्कृत भाषा का पर्यायवाची है
(ब) संस्कृति परम्परा का परिनिष्ठित रूप है।
(स) व्यक्ति के सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का सम्पूर्ण योग ही संस्कृति कहलाता है।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) व्यक्ति के सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का सम्पूर्ण योग ही संस्कृति कहलाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में किसने संस्कृति को व्यक्ति एवं सावयवों से ऊपर माना है?
(अ) इमाईल दुर्थीम ने
(ब) गिडिंग्स ने
(स) मैक्स वेबर ने
(द) क्रोबर ने।
उत्तर:
(स) मैक्स वेबर ने
(द) क्रोबर ने।

प्रश्न 6.
जब अनेक सांस्कृतिक तत्व अर्थपूर्ण ढंग से मिलते हैं तो निर्माण होता है
(अ) संस्कृति संकुल का
(ब) संस्कृति प्रतिमान का
(स) संस्कृति क्षेत्र का
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) संस्कृति संकुल का

प्रश्न 7.
“पैटर्नस ऑफ कल्चर” के लेखक हैं
(अ) क्रोबर
(ब) सी.एच. कूले
(स) रूथ बेनेडिक्ट्स
(द) डॉ. एस. सी. दुबे।
उत्तर:
(स) रूथ बेनेडिक्ट्स

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन समाजशास्त्री जॉनसन की पुस्तक है
(अ) सोशियोलॉजी
(ब) सोशियोलॉजी ए सिस्टेमेटिक इन्ट्रॉडक्शन
(स) कल्चरल सोशियोलॉजी
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) सोशियोलॉजी ए सिस्टेमेटिक इन्ट्रॉडक्शन

प्रश्न 9.
“वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को सीखता है, समाजीकरण के नाम से जानी जाती हैं” यह परिभाषा है
(अ) किम्बाल यंग की
(ब) हारालम्बोस की
(स) फ्रायड की
(द) मीड की।
उत्तर:
(ब) हारालम्बोस की

प्रश्न 10.
‘इलेक्ट्रा कॉम्पलेक्स’ में पुत्री अत्यधिक स्नेह रखती है
(अ) अपने भाई से
(ब) अपने दादा से
(स) अपनी माता से
(द) अपने पिता से।
उत्तर:
(द) अपने पिता से।

प्रश्न 11.
समाज में रहकर ही व्यक्ति के ‘आत्म’ का विकास होता है, यह मानना है
(अ) फ्रायड का
(ब) सी.एच. कूले का
(स) मीड का
(द) गिन्सबर्ग का।
उत्तर:
(ब) सी.एच. कूले का

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कृति’ तथा ‘संस्कृत’ ये दोनों किस शब्द से बने हैं?
उत्तर:
उपर्युक्त दोनों शब्द ‘संस्कार’ शब्द से बने हैं।

प्रश्न 2.
“संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है, जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के नाते प्राप्त करता है” यह परिभाषा किस समाजशास्त्री की है?
उत्तर:
उपर्युक्त परिभाषा समाजशास्त्री टायलर की है।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में सामाजिक विरासत क्या है?
उत्तर:
सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति अपने समाज से जो कुछ प्राप्त करता है व सीखता है, वही सामाजिक ज्ञान उसकी सामाजिक विरासत है।

प्रश्न 4.
किस समाजशास्त्री का मानना है कि संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है?
उत्तर:
समाजशास्त्री हॉबल का।

प्रश्न 5.
संस्कृति का कोई तत्व बेकार नहीं होता। यह किन समाजशास्त्रियों का मानना है?
उत्तर:
मैलिनोवस्की एवं रैडक्लिफ ब्राउन का।

प्रश्न 6.
संस्कृति की रचना करने वाले अंगों (उपादानों) के नाम लिखिए।
उत्तर:
संस्कृति की रचना करने वाले अंगों (उपादानों) के नाम हैं-सांस्कृतिक तत्व, संस्कृति संकुल, संस्कृति प्रतिमान व संस्कृति क्षेत्र।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रतिमान का प्रसार एक विशिष्ट क्षेत्र तक होता है। इस विशिष्ट क्षेत्र को ही सांस्कृतिक क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 8.
“कतिपय संस्कृति तत्व या सांस्कृतिक संकुल एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में फैलकर संस्कृति क्षेत्र का निर्माण करते हैं’-यह परिभाषा किस समाजशास्त्री की है?
उत्तर:
डॉ. एस. सी. दुबे की।

प्रश्न 9.
‘सोशियोलॉजी’ एवं ‘कल्चरल सोशियोलॉजी’ नामक पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
इन पुस्तकों के लेखक क्रमशः ए. डब्ल्यू. ग्रीन एवं गिलिन तथा गिलिन हैं।

प्रश्न 10.
समाजीकरण से सम्बद्ध किम्बाल यंग की परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
“समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है और जिसके द्वारा उसे समाज के मूल्यों और मानकों को स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है।”

प्रश्न 11.
किस जनजाति के लोग एक-दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एक-दूसरे पर थूकते हैं?
उत्तर:
अफ्रीका की मसाई जनजाति के लोग।

प्रश्न 12.
समाजशास्त्री गिडिन्स ने समाजीकरण के कितने स्तर बताए हैं?
उत्तर:
गिडिन्स ने समाजीकरण के दो स्तर बताए हैं-प्राथमिक एवं द्वितीयक।

प्रश्न 13.
पारसन्स ने समाजीकरण को कितने भागों में विभाजित किया है?
उत्तर:
पारसन्स ने समाजीकरण को चार भागों में विभाजित किया है मौखिकावस्था, शौच अवस्था, आडिपल स्तर और किशोरावस्था।

प्रश्न 14.
‘आडिपल कॉम्पलेक्स’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऑडिपल कॉम्पलैक्स’ चौथे वर्ष से लकर बारह या तेरह वर्ष के बच्चे की वह भावना है जिसमें पुत्र माँ के प्रति अत्यधिक स्नेह रखता है तथा उस पर अपना एकाधिकार चाहता है।

प्रश्न 15.
समाजीकरण की प्राथमिक संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण की प्राथमिक संस्थाएँ हैं-परिवार, क्रीड़ा, समूह, पड़ोस, नातेदारी समूह एवं विवाह।

प्रश्न 16.
समाजीकरण की द्वितीयक संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण की द्वितीयक संस्थाएँ हैं-शिक्षण संस्थाएँ, राजनैतिक संस्थाएँ, आर्थिक संस्थाएँ, सांस्कृतिक संस्थाएँ, धार्मिक संस्थाएँ एवं व्यावसायिक समूह आदि।

प्रश्न 17.
किस समाजशास्त्री ने अपने सिद्धान्त को दर्पण में आत्मदर्शन के आधार पर समझाया है?
उत्तर:
समाजशास्त्री सी.एच. कले ने।

प्रश्न 18.
समाजीकरण सम्बन्धी अपने सिद्धान्त को किसने मानसिक क्रियाओं के आधार पर समझाया
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रत्येक समाज की विशिष्ट संस्कृति होती है’ इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
हर एक समाज में अपनी एक विशिष्ट संस्कृति पायी जाती है। इसका कारण यह है कि भिन्न-भिन्न समाजों में अलग-अलग भौगोलिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ पायी जाती हैं।

भौगोलिक व सामाजिक विभिन्नताओं के कारण प्रत्येक समाज की आवश्यकताएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। अपनी इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव अनेक आविष्कार करता है। मानव द्वारा किए गये आविष्कार ही संस्कृति को एक नया रूप प्रदान करते हैं। अलग-अलग समाजों की आवश्यकताओं में भिन्नता होने के कारण ही प्रत्येक समाज की संस्कृति भी विशिष्ट बन जाती है। प्रत्येक समाज में संस्कृति के कुछ तत्व समान होते हैं तो कुछ तत्व असमान भी होते हैं। ये तत्व ही प्रत्येक समाज की संस्कृति को विशिष्ट बनाते हैं। .

प्रश्न 2.
‘संस्कृति में अनुकूलन क्षमता होती है’ यह बात आप कैसे सिद्ध करेंगे?
उत्तर:
संस्कृति में अनुकूलन क्षमता निश्चित रूप से होती है। संस्कृति में समय, स्थान, परिस्थितियों के अनुसार बदलाव होते रहते हैं। अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों जैसे मैदानी भागों, पहाड़ी क्षेत्रों, रेगिस्तानों, दुर्गम स्थानों, शीत प्रदेशों आदि स्थानों की संस्कृतियों में पर्याप्त विभिन्नता पाई जाती है। पहाड़ी प्रदेशों की संस्कृति मैदानी भागों से भिन्न होती है। उसी प्रकार ठंडे प्रदेशों के लोगों की जीवनशैली एवं जनरीतियाँ गर्म प्रदेशों में रहने वालों से भिन्न होती हैं। इस विभिन्नता का कारण यह है कि प्रत्येक स्थान की संस्कृति ने अपनी भौतिक परिस्थितियों के साथ अनुकूलन कर लिया है।

संस्कृति के विभिन्न तत्वों व इकाइयों में समय के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है परन्तु यह परिवर्तन यकायक न होकर अत्यन्त धीमी गति से होता है। परिवर्तन व समंजन की यही प्रक्रिया अनुकूलनशीलता कहलाती है।

प्रश्न 3.
‘समाजीकरण आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? समझाइए।
उत्तर:
समाजीकरण की प्रक्रिया बचपन से शुरू होकर वृद्धावस्था तक चलती है। यह आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। वृद्धावस्था की तुलना में बाल्यावस्था में व्यक्ति अधिक शीघ्रता से सीखता है। व्यक्ति अपने जीवन काल में विभिन्न प्रस्थितियाँ धारण करता है तथा उन प्रस्थितियों के अनुरूप भूमिकाओं का निर्वहन करना सीखता है; जैसे-बाल्यावस्था में वह अपने माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन, मित्र आदि के साथ व्यवहार करना सीखता है। युवावस्था में वह पति, पिता, व्यापारी, कर्मचारी या अन्य पद धारण करता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति दादा, नानी, श्वसुर आदि पदों के अनुरूप भूमिकाओं का निर्वाह करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाजीकरण जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
समाजीकरण की किन्हीं दो द्वितीयक संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण की दो द्वितीयक संस्थाएँ निम्नलिखित हैं :

  • शिक्षण संस्थाएँ :
    शिक्षण संस्थाओं में बालक अपने शिक्षकों, पाठ्य-पुस्तकों एवं कक्षा के साथियों से अनेक बातें सीखता है। इन शिक्षण संस्थाओं के अन्तर्गत स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय आदि प्रमुख हैं। इन विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर व्यक्ति धीरे-धीरे समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनता है तथा अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
  • आर्थिक संस्थाएँ :
    आर्थिक संस्थाएँ मनुष्य के जीवनयापन एवं व्यावसायिक गतिविधियों का दिशा-निर्देशन करती हैं। ये संस्थाएँ ही व्यक्ति को सहयोग, प्रतिस्पर्धा एवं समायोजन के भाव सिखाती है। बेईमानी व ईमानदारी के लक्षण भी आर्थिक संस्थाओं के द्वारा ही सीखे जाते हैं।

प्रश्न 5.
समाजीकरण के सम्बन्ध में टालकट पारसन्स एवं जानसन के विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण के सम्बन्ध में टालकट पारसन्स एवं जॉनसन के विचार :
टालकट पारसन्स ने कहा है कि एक बच्चा उस पत्थर के समान है जो मानो जन्म के द्वारा सामाजिक तालाब में फेंक दिया जाता है। समाजरूपी तालाब में ही रहकर उसका समाजीकरण होता है। जन्म के समय बालक मात्र मानव शरीर होता है, जिसमें सीखने की क्षमता होती है। जॉनसन ने भी कहा है कि बालक का मस्तिष्क कोमल होता है उसे जैसे चाहे वैसे मोड़ा जा सकता है। उपर्युक्त विचारों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समाजीकरण मानव के लिए एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके बिना मानव जीवन अपूर्ण है। अत: मानव व्यक्तित्व के निर्माण में समाजीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृति का सामान्य अर्थ समझाते हुए इसके समाजशास्त्रीय पक्ष की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संस्कृति का सामान्य अर्थ-सामान्यतया संस्कृत का अर्थ ‘सुसंस्कृत’ होने से लगाया जाता है। :

व्यक्ति द्वारा परिष्कृत भाषा, अच्छा पहनावा, शालीन व्यववहार, खान-पान, रहन-सहन के तरीके, धर्म, आचार-विचार, मनोरंजन के साधन आदि के प्रयोग को संस्कृति में सम्मिलित किया जाता है। किन्तु यह संस्कृति का समाजशास्त्रीय पक्ष अथवा परिप्रेक्ष्य नहीं है।

संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। संस्कृति तथा संस्कृत दोनों ही शब्द संस्कार से बने हैं और संस्कार का शाब्दिक अर्थ है कि कुछ धार्मिक क्रियाओं की पूर्ति करना अर्थात् विभिन्न संस्कारों के माध्यम से सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति।

संस्कृति का समाजशास्त्रीय पक्ष अथवा परिप्रेक्ष्य :
मानवशास्त्री एवं समाजशास्त्री ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में करते हैं। उनके अनुसार संस्कृति के विभिन्न आयाम बच्चा सामूहिक जीवन में सहभागिता के द्वारा बचपन से ही सीखता रहता है। सीखकर ही एक व्यक्ति समाजीकृत प्राणी बनता है।

टायलर के अनुसार “संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के नाते प्राप्त करता है।

इस परिभाषा में टायलर ने संस्कृति को सामाजिक विरासत माना है। जिसे मनुष्य समाज का सदस्य होने के कारण प्राप्त करता है। हर्षकोविट्स ने संस्कृति की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए लिखा है, ‘संस्कृति पर्यावरण का मानव-निर्मित भाग है।” इस परिभाषा में हर्षकोविट्स ने स्पष्ट किया है कि सम्पूर्ण पर्यावरण को हम संस्कृति नहीं कह सकते बल्कि संस्कृति वही कहलायेगी जो मनुष्य द्वारा निर्मित है। मनुष्य द्वारा निर्मित इन वस्तुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक जो मूर्त है जिन्हें छुआ जा सकता है, देखा जा सकता है तथा दूसरी वह जिन्हें देखा व छुआ नहीं जा सकता। आगर्बन ने इसी आधार पर संस्कृति के दो प्रकार बताए हैं-भौतिक व अभौतिक संस्कृति। उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि संस्कृति मानव की वह विरासत है, जो उसे समाज का सदस्य होने के कारण प्राप्त होती है। सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति अपने समाज से जो कुछ प्राप्त करता है व सीखता है वही सामाजिक ज्ञान उसकी सामाजिक विरासत कहलाता है। सीखा हुआ यही ज्ञान संस्कृति कहलाता है।

प्रश्न 2.
सांस्कृतिक तत्व को समझाते हुए इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सांस्कृतिक तत्व :
सांस्कृतिक तत्व संस्कृति की वह सबसे छोटी इकाई है जिसका और अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता है, जिस प्रकार से शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका पदार्थ की छोटी से छोटी इकाई परमाणु तथा सामाजिक संरचना की इकाई परिवार है, उसी प्रकार से संस्कृति की सबसे छोटी अविभाज्य तत्व है। सांस्कृतिक तत्व किसी भी संस्कृति की सबसे छोटी इकाई है। संस्कृति के दो पक्ष होते हैं… भौतिक व अभौतिक इसलिए सांस्कृतिक तत्व भी दोनों ही प्रकार के भौतिक व अभौतिक होते हैं। भौतिक पक्ष में साइकिल, पंखा, टेबल, कुर्सी घड़ी आदि सम्मिलित हैं। जबकि अभौतिक पक्ष में संकेत, विचार, प्रथा, जनरीति आदि सम्मिलित हैं। ये सभी भौतिक व अभौतिक सांस्कृतिक तत्व कहलाते हैं।

सांस्कृतिक तत्व को समझने के लिए हम एक घड़ी का उदाहरण ले सकते हैं। घड़ी एक सांस्कृतिक तत्व है तथा मानव जीवन में इसका उपयोग समय का ज्ञान करवाने से है, जब तक घड़ी के पुर्जे यथा सुइयाँ नम्बर, सेल आदि व्यवस्थित व संगठित रहते हैं तब तक ये उपयोगी रहते हैं परन्तु सभी पुर्जे अलग-अलग हो जाने के बाद इनका घड़ी जैसा उपयोग नहीं हो पायेगा। चूँकि सांस्कृतिक तत्व अविभाज्य होते हैं और विभाजन होते ही वे अर्थहीन हो जाते हैं।

सांस्कृतिक तत्व की विशेषताएँ :
सांस्कृतिक तत्व की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  1. सांस्कृतिक तत्व के उद्भव का एक इतिहास होता है।
  2. सांस्कृतिक तत्व परिवर्तनशील एवं गतिशील होते हैं।
  3. सांस्कृतिक तत्व परस्पर संगठित और व्यवस्थित होते हैं।

संस्कृति को समझने के लिए सांस्कृतिक तत्वों को समझना आवश्यक है। सम्पूर्ण सांस्कृतिक संरचना के सांस्कृतिक तत्व ही प्राथमिक आधार हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(अ) संस्कृति प्रतिमान
(ब) संस्कृति क्षेत्र
उत्तर:
संस्कृति प्रतिमान :
सांस्कृतिक तत्व व संकुल प्रकार्यात्मक रूप से सम्बन्धित होकर जब किसी सार्थक उपादान का निर्माण करते हैं तो वह सांस्कृतिक प्रतिमान कहलाते हैं। सांस्कृतिक प्रतिमान में संस्कृति तत्व एवं संस्कृति संकुल विशेष प्रकार से व्यवस्थित होते हैं। हर्षकोविट्स के अनुसार, संस्कृति प्रतिमान एक संस्कृति के तत्वों का वह डिजाइन है जो कि उस समाज के सदस्यों के व्यक्तिगत व्यवहार प्रतिमान के माध्यम से व्यक्त होता हुआ जीवन इस तरीके को संबद्धता, निरन्तरता एवं विशिष्टता प्रदान करता है।

उदाहरण :
विवाह एक प्रतिमान है, जिसके दूल्हा, दुल्हन, मिठाई, लड्डू, कुर्सी लाइट आदि तत्व हैं। शादी में साज-सज्जा किसी एक तत्व से न होकर अनेक तत्वों से होती है। अतः साज-सज्जा एक संकुल हुआ। इसी प्रकार अनेक संकुल भोजन संकुल, स्वागत संकुल फेरों का संकुल, विदा संकुल आदि अनेक संकुल होते हैं जो मिलकर विवाह प्रतिमान को बनाते हैं।

संस्कृति क्षेत्र :
प्रत्येक संस्कृति निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तृत होती है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तृत होती है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र जिसमें सांस्कृतिक तत्वों, संकुलों एवं प्रतिमानों का प्रसार होता है, संस्कृति क्षेत्र कहलाता है।

प्रत्येक संस्कृति या उसके तत्वों का विस्तार एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में होता है। चूँकि संस्कृति सीखी जा सकती है। अतः कोई भी व्यक्ति संस्कृति को सीख सकता है, परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से एक व्यक्ति के लिए अपने क्षेत्र की संस्कृति को सीखना अधिक सरल होता है। सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई स्पष्ट सीमा निश्चित नहीं की जा सकती है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के आस-पास के क्षेत्र व प्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताएँ दूसरे क्षेत्र में किसी-न-किसी रूप में अवश्य ही देखी जा सकती हैं।

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