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Rajasthan Board RBSE Class 11 Pratical Geography Chapter 1 मानचित्र
RBSE Class 11 Pratical Geography Chapter 1 प्रायोगिक पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्लोब व मानचित्र में क्या अन्तर है?
उत्तर:
ग्लोब व मानचित्र में निम्न अन्तर मिलते हैं-
ग्लोब | मानचित्र |
1. ग्लोब पृथ्वी का मानव द्वारा निर्मित मॉडल अथवा प्रतिरूप है। | 1. मानचित्र पृथ्वी के किसी एक भाग का समतल कागज पर वैज्ञानिक एवं कलात्मक विधि से किया गया चित्रण होता है। |
2. ग्लोब पर सदैव पृथ्वी का आधा भाग ही दिखाई देता है सकता है। | मानचित्र पर सम्पूर्ण भाग को एक साथ देखा जा व आधा भाग उसके पीछे छिपा रहता है। |
3. ग्लोब को लाने व ले जाने की असुविधा रहती है। | 3. मानचित्र को लाने ले जाने में सुविधा रहती है। |
4. ग्लोब का अध्ययन किसी छोटे क्षेत्र के विस्तृत अध्ययन के लिए नहीं किया जा सकता है क्योंकि ग्लोब को बड़े आकार में बनाना बहुत कठिन है। | 4. मानचित्र का अध्ययन किसी छोटे से लेकर बड़े क्षेत्रों हेतु किया जा सकता है। इसे बनाना भी प्रायः आसान होता है। |
प्रश्न 2.
मापक के आधार पर मानचित्रों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मापक के आधार पर मानचित्रों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया ह-
- बड़ी मापनी वाले मानचित्र
- छोटी मापनी वाले मानचित्र।
1. बड़ी मापनी वाले मानचित्र-इस प्रकार के मानचित्रों में छोटे क्षेत्र को बड़े आकार में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भू-भाग के विभिन्न तथ्यों को विस्तारपूर्वक प्रदर्शित किया जाता है। इन मानचित्रों को पुनः दो भागों में बाँटा गया है-
(क) भूसम्पत्ति मानचित्र,
(ख) स्थलाकृति मानचित्र।
(क) भूसम्पत्ति मानचित्र – इन्हें प्लान मानचित्र भी कहा जाता है। इनकी रचना भूसम्पत्ति के पंजीकरण हेतु की जाती है। इनमें नगरों, गाँवों, खेतों व भवनों के मानचित्र आते हैं। इनकी मापनी सामान्यतः 1 सेमी. = 20 मी. से 1 सेमी. = 40 मी. तक रखी जाती है।
(ख) स्थलाकृतिक मानचित्र – इन मानचित्रों का निर्माण भारतीय सर्वेक्षण विभाग करता है। इनमें प्राकृतिक व सांस्कृतिक दोनों प्रकार के तथ्य प्रदर्शित किये जाते हैं। इन मानचित्रों में उच्चावच, प्रवाह-प्रणाली, जलाशय, वन क्षेत्र, परिवहन मार्ग सिंचाई आदि से सम्बन्धित मानचित्र शामिल होते हैं। इन मानचित्रों की मापनी 1 : 1000000 से लेकर 1 : 250000 तक होती है।
2. छोटी मापनी वाले मानचित्र-ये मानचित्र आकार में छोटे होते हैं, किन्तु इनमें छोटे आकार के मानचित्रों में बहुत बड़े-बड़े क्षेत्रों को प्रदर्शित किया जाता है। इन मानचित्रों में तथ्यों को विस्तृत रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है। इन्हें पुनः दो भागों में बाँटा गया है-
(क) दीवारी मानचित्र,
(ख) एटलस मानचित्र।
(क) दीवारी मानचित्र-ये मानचित्र दीवारों पर टाँगने के लिए बनाये जाते हैं। इनका प्रयोग मुख्य रूप से अध्यापन कार्य हेतु किया जाता है। इनकी मापनी प्रायः 1 : 5,00,000 से लगाकर 1 : 40,00,000 तक होती है।
(ख) एटलस मानचित्र-इनका मापक बहुत छोटा होता है। ये दीवार मानचित्र से छोटे किन्तु पुस्तकों पर बने मानचित्रों से बड़े होते हैं। इन मानचित्रों की मापनी का चयन क्षेत्र के आकार व एटलस के आकार के अनुरूप होता है।
प्रश्न 3.
सैनिक मानचित्रों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सैनिक मानचित्र विशिष्ट प्रकार के मानचित्र होते हैं। इन मानचित्रों का उपयोग सेना हेतु किया जाता है। इनकी मापनी उपयोग के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। सेना में सामान्य नियोजन हेतु इनका उपयोग किया जाता है। इन मानचित्रों में रूढ़ चिन्हों व संकेतों का प्रयोग किया जाता है। 1 : 5,00,000 मापक पर बने मानचित्र युद्ध में व्यूह रचना व 1 : 10,00,000 पर बने मानचित्र विशिष्ट स्थलाकृतिक लक्षणों को दर्शाते हैं। इस प्रकार के मानचित्र मार्ग प्रदर्शन के काम भी आते हैं।
प्रश्न 4.
प्रदर्शित तथ्यों के आधार पर वितरण मानचित्रों को कितने वर्गों में रखा जा सकता है?
उत्तर:
प्रदर्शित तथ्यों के आधार पर वितरण मानचित्रों को दो वर्गों में रखा जा सकता है-
- गुणात्मक वितरण मानचित्र,
- मात्रात्मक वितरण मानचित्र।
प्रश्न 5.
मानचित्रों का क्या महत्व है? समझाइये।
उत्तर:
मानचित्रों का भौगोलिक अध्ययन में विशिष्ट स्थान है। इनसे अनेक सूचनाओं की प्राप्ति होती है। इनके महत्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से दर्शाया गया है-
- किसी क्षेत्र के आकार व उसकी अवस्थिति का अनुमान मानचित्र को देखकर लगाया जा सकता है।
- मानचित्र द्वारा तथ्यों को सरलता व सहजता से प्रदर्शित किया जा सकता है।
- इनसे आमजन को महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
- मानचित्रों द्वारा छोटे क्षेत्र से लगाकर विश्व स्तर तक की सूचनाओं को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।
- मानचित्रों द्वारा गन्तव्य स्थानों व आवासीय कॉलोनियों को दर्शाया जा सकता है।
प्रश्न 6.
सममान रेखा किसे कहते हैं? इस विधि द्वारा बनाये जाने वाले मानचित्रों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
चित्र 1: सममान रेखाएँ बनाने की विधि
चित्र 2 : समवर्षा रेखाएँ
चित्र 3 : जनवरी माह की समताप रेखाएँ (सातसियस)
चित्र 4 : सममान रेखा विधि
उत्तर:
सममान रेखा का अर्थ-समान मान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा सममान रेखा होती है।
- इस विधि से मुख्यतः किसी क्षेत्र में तापमान, वर्षा, वायुदाब, उच्चावच, लवणता आदि के वितरण को दर्शाया जाता है।
- इस विधि में स्थानिक बिन्दुओं के मध्य ही अन्तराल निश्चित करने के बाद अन्तर्वेशन विधि से समान माने वाली रेखाएँ बनायी जाती हैं।
- इस विधि द्वारा अधिकांशतः प्राकृतिक तत्वों की मात्रा को वितरण दर्शाया जाता है।
- इस विधि से निर्मित मानचित्रों को आकर्षक बनाने के लिए सममान रेखाओं के मध्य छाय व अलग-अलग रंगों का अंकन भी किया जाता है तथा इन रंगों व छायाओं को संकेतों द्वारा दर्शाया जाता है।
- प्रत्येक सममान रेखा पर उसका मान अंकित किया जाता है।
- इस विधि में मात्रा को संख्या के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
- इस विधि द्वारा छोटे-से-छोटे या विश्वस्तरीय क्षेत्र के सन्दर्भ में आँकड़ों का प्रदर्शन सम्भव होता है।
- इस विधि द्वारा प्रदर्शित दशाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
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