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Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 शक्ति पृथक्करण तथा अवरोध एवं संतुलन सिद्धान्त
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं?
उत्तर:
जीन बोदा। शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त को वास्तविक वे अन्तिम रूप मांटेस्क्यू ने दिया था।
प्रश्न 2.
शक्ति पृथक्करण का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण का शाब्दिक अर्थ है-व्यवस्थापन, शासन एवं न्याय से सम्बन्धित शक्तियों का एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करना तथा किसी दूसरे अंग के कार्य में हस्तक्षेप न करना।
प्रश्न 3.
मान्टेस्क्यू का शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त किस देश की शासन व्यवस्था से प्रभावित था?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की।
प्रश्न 4.
मैं ही राज्यं हूँ’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘मैं ही राज्य हूँ’ से तात्पर्य यह है कि राजा की इच्छा या उसके मुँह से निकले शब्द कानून होते हैं।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का विकास क्रम क्या है?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का विकास क्रम – राज्य की शक्ति के विभाजन का विचार अति प्राचीन है। यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने अपने शासन विधान को पहली बार राज्य को
- विमर्शकारी
- कार्यकारी
- न्यायकारी नामक तीन विभागों में बाँटा था जो वर्तमान युग में व्यवस्थापिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के रूप में अस्तित्व में हैं।
अरस्तू के पश्चात् रोमन विचारकों सिसरो तथा पीलीबियस ने ‘शक्तियों की सन्तुलित समता के महत्व पर बल दिया। 14वीं सदी में मार्सिलियो ने इस सम्बन्ध में प्रयास किये। वर्तमान युग में 16वीं सदी में बोदां ने इस बात पर बल दिया कि “शासन के कर्मचारी एवं न्यायिक अंग पृथक्-पृथक होने चाहिए।” 17वीं सदी में जॉन लॉक एवं अन्य विचारकों ने व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के पृथक्करण की बात कही। शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की विधिवत् व्याख्या 18वीं सदी में फ्रांसीसी दार्शनिक मांटेस्क्यू ने की।
इसीलिए मांटेस्क्यू को शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का जनक कहा जाता है। मांटेस्क्यू के अनुसार सरकार की विधायी, कार्यपालिका और न्यायिक शक्तियों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण के लिए अलग – अलग हाथों में सौंपा जाना आवश्यक है। कोई अंग किसी अन्य के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करे। मांटेस्क्यू के बाद अंग्रेज विचारक ‘ब्लैकस्टोन, प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान मैडिसन एवं जेफरसन ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया। भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण सिद्धान्त के स्थान पर ‘शक्तियों के समन्वय’ सिद्धान्त को अपनाया गया है।
प्रश्न 2.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त सरकार के तीनों अंगों की शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है। व्यवस्थापिका विधि निर्माण का कार्य करे। कार्यपालिका विधि को लागू करने का कार्य करे और न्यायपालिका विधि के अनुसार निर्णय करने का कार्य करे। सरकार का प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहे और एक अंग, दूसरे अंग से स्वतन्त्र होकर कार्य करे।
माण्टेस्क्यू ने इस बात पर विशेष बल दिया कि “इनमें से प्रत्येक को अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होना चाहिए। उसे अपने कार्यक्षेत्र तक ही सीमित रहना चाहिए और उसके द्वारा दूसरे अंग के कार्यों को प्रभावित करने अथवा उस पर नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए।” गैटेल के अनुसार, “शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि सरकार के तीनों प्रमुख कार्य भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा सम्पादित होने चाहिए और इन तीनों विभागों के कार्यक्षेत्र इस प्रकार सीमित होने चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र एवं सर्वोच्च बने रहें।”
प्रश्न 3.
नियन्त्रण एवं सन्तुलन का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
नियन्त्रण व सन्तुलन का सिद्धान्त-नियन्त्रण व सन्तुलन के सिद्धान्त के अनुसार शासन के तीनों अंगों, यथा-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों का ऐसा प्रबन्ध किया जाता है जिससे वे अपने-अपने कार्य क्षेत्र में स्वतन्त्र रहते हुए परस्पर नियन्त्रण स्थापित रखें जिससे तीनों अंगों के मध्य सन्तुलन बना रहे।
इससे शासन के तीनों अंग एक-दूसरे से सन्तुलित हो जाते हैं क्योंकि किसी भी अंग के मनभानेपन को दूसरे अंग के द्वारा नियन्त्रित कर लिया जाता है। परिणामस्वरूप कोई भी अंग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता। इस प्रकार सभी अंगों के मध्य शक्तियों में सन्तुलन बना रहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को लागू किया गया है।
प्रश्न 4.
शक्ति पृथक्करण स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं है। कैसे?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ है – जब व्यवस्थापन ऐवं शासन तथा न्याय से सम्बन्धित शक्तियाँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करें तथा किसी दूसरे अंग के कार्य में हस्तक्षेप न करें, तो हम इन्हीं शक्तियों को पृथक्करण कहते हैं। शक्ति पृथक्करण स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं है। यद्यपि मान्टेस्क्यू व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण को आवश्यक मानता है किन्तु उसकी यह धारणा उचित नहीं है।
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए अच्छे कानून के साथ – साथ उसके सफल क्रियान्वयन एवं न्याय की नैसर्गिकता आवश्यक है। संसदीय शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में घनिष्ठता होते हुए भी नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में कोई कमी नहीं रहती है। गैटेल नामक
राजनीतिक विचारक ने स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शक्ति पृथक्करण को आवश्यक नहीं माना है। वहीं दूसरी ओर प्रो. लास्की स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण के स्थान पर सतत् जागरूकता को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शक्ति पृथक्करण स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं है।
प्रश्न 5.
शक्ति पृथक्करण के दो गुण बताइए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण के दो गुण निम्नलिखित हैं:
(i) स्वेच्छाचारी शासन पर रोक-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसको व्यवहार में लाने से स्वेच्छाचारी अथवा निरंकुश शासन की स्थापना नहीं हो सकती। मॉन्टेस्क्यू, ब्लैकस्टोन, मैडिसन व जेफरसन जैसे राजनैतिक विचारकों ने इसी आधार पर शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इस सिद्धान्त ने पहले राजाओं तत्पश्चात व्यवस्थापिका की निरंकुशता पर रोक लगाई है।
(ii) स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिक को न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप करने से रोकता है। इस सिद्धान्त के अभाव में न्यायपालिका स्वतन्त्र एवं निष्पक्षतापूर्वक कार्य करने में असमर्थ रहेगी। प्रो. लास्की ने ठीक ही कहा है, “शक्ति विभाजन सिद्धान्त का अधिकतम मूल्य इस विशेषतः में निहित है कि इससे न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित होती है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके गुण-दोष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त सरकार के तीनों अंगों की शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है। व्यवस्थापिका विधि निर्माण का कार्य करे। कार्यपालिका विधि को लागू करने का कार्य करे और न्यायपालिका विधि के अनुसार निर्णय करने का कार्य करे। सरकार के प्रत्येक अंगे अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहें और एक अंग दूसरे अंग से स्वतन्त्र होकर कार्य करें। यही शक्ति पृथक्करण का निहितार्थ है।
प्रो. गैटेल के अनुसार, “शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि शासन के तीनों प्रमुख कार्य भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा सम्पादित होने चाहिए और इन तीनों विभागों का कार्यक्षेत्र इस प्रकार सीमित होना चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र एवं सर्वोच्च बने रहें।”
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के गुण:
- शक्तियों का विकेन्द्रीकरण – शक्तियों का केन्द्रीकरण भ्रष्टाचार एवं अत्याचार की सम्भावना को जन्म देता है, वहीं शक्ति पृथक्करण शासन सत्ता को तीन स्वतन्त्र विभागों में विभाजित कर सरकार के समस्त कार्यों को श्रेष्ठता और गतिशीलता प्रदान करता है।
- स्वेच्छाचारी शासन पर रोक-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त को सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके कारण स्वेच्छाचारी अथवी निरंकुश शासन की स्थापना नहीं हो सकती। शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त ने सर्वप्रथम राजाओं की निरंकुशता पर रोक लगाने का कार्य किया तत्पश्चात् व्यवस्थापिका की निरंकुशता पर रोक लगायी।
- नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन का अन्त केर नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
- स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप करने से रोकता है। इस सिद्धान्त के अभाव में न्यायपालिका स्वतन्त्र एवं निष्पक्षतापूर्वक न्याय करने में असमर्थ रहेगी।
- विभिन्न योग्यताओं का सदुपयोग-शासन शक्तियों के समुचित क्रियान्वयन तथा मर्यादित आचरण के लिए विभिन्न प्रतिभाओं की सेवाओं का अवसर शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के तहत राज्य को प्राप्त होता है।
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के दोष:
1. लोकतान्त्रिक भावनाओं के विपरीत – वर्तमान समय में लोकतन्त्र के विकास के फलस्वरूप लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को बल मिला है। अत: सरकार के कार्यों में वृद्धि हुई है एवं लोगों की आकांक्षाएँ भी बड़ी हैं। लोकतन्त्र में लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व व्यवस्थापिका करती है। ऐसे में कई बार न्यायपालिका की स्वतन्त्र सत्ता व्यवस्थापिका के लोककल्याणकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न कर लोकतन्त्र की मूलभावना को नष्ट कर सकती है।
2. सरकार के विभिन्न अंगों में आन्तरिक संघर्ष की सम्भावना-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त शासन के विभिन्न अंगों में आन्तरिक संघर्ष की सम्भावना को उत्पन्न करता है। शासन के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतन्त्र रहकर कार्य करेंगे तो शासन में गतिरोध बढ़ जाएगा। सरकार का प्रत्येक अंग अंपनी शक्तियों की रक्षा में अधिक रुचि लेगा । इसलिए सरकार के भली-भाँति संचालन के लिए शक्ति पृथक्करण के स्थान पर सरकार के तीनों अंगों में परस्पर समन्वय, सहयोग एवं सन्तुलन आवश्यक है।
3. अवैज्ञानिक सिद्धान्त-सरकार का गठन सावयव सिद्धान्त के आधार पर होता है। सरकार के अंगों में आंगिक एकता पायी जाती है जिससे सरकार को अंगों में विभक्त नहीं किया जा सकता। जैसे–मानव शरीर के किसी अंग को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता। आधुनिक राज्यों में सभी विभाग प्रायः परस्पर आश्रित एवं सम्बन्धित होते हैं। प्रो. लास्की ने ठीक ही कहा है कि “कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों की सीमा व्यवस्थापिका द्वारा घोषित की गई इच्छा में निहित है। सरकार के अंगों का पृथक्करण. व्यवहार में सम्भव नहीं है। इसलिए यह सिद्धान्त न तो वैज्ञानिक है और न ही वांछनीय।
4. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण अनिवार्य नहीं है–मॉन्टेस्क्यू का यह कथन कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण अनिवार्य है, उचित नहीं हैं। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता शक्ति पृथक्करण पर निर्भर नहीं करती बल्कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अच्छे कानून के साथ-साथ उसके सफल क्रियान्वयन एवं न्याय की नैसर्गिकता आवश्यक है। संसदीय शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में घनिष्ठता के होते हुए भी नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में कोई कमी नहीं रहती। गैटेल ने स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शक्ति विभाजन को आवश्यक नहीं माना है, जबकि प्रो. लॉस्की स्वतन्त्रता के लिए ‘सतत जागरूकता’ को अधिक महत्वपूर्ण मानता है, न कि शक्ति पृथक्करण को।
प्रश्न 2.
“शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त न तो व्यावहारिक है न वांछनीय” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ है कि जब व्यवस्थापन, शासन एवं न्याय से सम्बन्धित शक्तियाँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करें एवं किसी दूसरे अंग के कार्य में हस्तक्षेप न करें, तो हम इसे शक्तियों को पृथक्करण कहते हैं। शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की मान्यता है कि शासन का कोई अंग दूसरे अंग के कार्यों को सम्पादित, प्रत्यायोजित या उसमें हस्तक्षेप न करे।
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के द्वारा शक्तियों का विकेन्द्रीकरण होता है, स्वेच्छाचारी शासन पर रोक लगती है, नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा होती है तथा लोगों की विभिन्न योग्यताओं एवं अनुभव का सदुपयोग होता है। इस सिद्धान्त के अभाव में न्यायपालिका निष्पक्षतापूर्वक न्याय करने में असमर्थ रहेगी। इन सब के बावजूद शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त न तो व्यावहारिक है न वांछनीय। इस सिद्धान्त में अग्रलिखित दोष हैं
(1) अलोकतान्त्रिक सिद्धान्त-वर्तमान समय में लोकतन्त्र के विकास के फलस्वरूप लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को बल मिला है। अतः सरकार के कार्यों में वृद्धि हुई है एवं लोगों की आकांक्षाएँ भी बढ़ी हैं। लोकतन्त्र में जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व व्यवस्थापिका करती है। ऐसे में कई बार शक्ति पृथक्करण व्यवस्थापिका के लोक कल्याणकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है।
(2) सरकार के विभिन्न अंगों में संघर्ष-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त शासन के विभिन्न अंगों में आन्तरिक संघर्ष की सम्भावना को जन्म देता है। शासन के तीनों अंग, यथा-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करेंगे तो शासन में गतिरोध बढ़ जाएगा। सरकार का प्रत्येक अंग अपनी-अपनी शक्तियों की रक्षा में अधिक रुचि लेगा। इसलिए सरकार के कुशलतम संचालन के लिए शक्ति पृथक्करण के स्थान पर सरकार के तीनों अंगों में परस्पर समन्वय, सहयोग व सन्तुलन आवश्यक है।
(3) स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं-शक्ति पृथक्करण स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए आवश्यक नहीं है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अच्छे कानून के साथ-साथ उसके सफल क्रियान्वयन तथा न्याय की नैसर्गिकता। आवश्यक है। संसदीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका में घनिष्ठता के होते हुए भी नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में कोई कमी नहीं रहती।
(4) अवैज्ञानिक सिद्धान्त-सरकार का गठन सावयव सिद्धान्त के आधार पर होता है। उसके विभिन्न अंगों, यथा-कार्यपालिका व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में आंशिक एकता पायी जाती है। प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्यों के लिए एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। प्रो. लास्की नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही कहा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों की सीमा व्यवस्थापिका द्वारा घोषित की गयी इच्छा में निहित है।” अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सरकार के अंगों, यथा-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का आपस में पृथक्करण व्यवहार में सम्भव नहीं है। इसलिए शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त न तो व्यावहारिक है और न ही वांछनीय प्रतीत होता है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
मैं ही राज्य हूँ’ कथन है?
(अ) जान लॉक
(ब) जेफरसन
(स) लुई चौदहवाँ
(द) लास्की।
उत्तर:
(स) लुई चौदहवाँ
प्रश्न 2.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का वास्तविक जनक है?
(अ) मांटेस्क्यू
(ब) जीन बोदां
(स) मैडिसन
(द) ब्लैकस्टोन।
उत्तर:
(अ) मांटेस्क्यू
प्रश्न 3.
किस देश का संविधान मुख्यतः शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त पर आधारित है
(अ) अमेरिका
(ब) फ्रांस
(स) इंग्लैण्ड
(द) भारत।
उत्तर:
(अ) अमेरिका
प्रश्न 4.
किस देश के अधिकार घोषणा’ में शक्ति पृथक्करण पर बल दिया गया है
(अ) भारत
(ब) इंग्लैण्ड
(स) फ्रांस
(द) जापान
उत्तर:
(स) फ्रांस
प्रश्न 5.
‘स्पिरिट ऑफ लॉज’ के लेखक हैं
(अ) सिसरो
(ब) लास्की
(स) बिलोवी
(द) मांटेस्क्यू।
उत्तर:
(द) मांटेस्क्यू।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रमुख उद्देश्य है
(अ) स्वतन्त्रता की रक्षा करना
(ब) कानून की रक्षा करना
(स) न्याय की स्थापना करना
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) स्वतन्त्रता की रक्षा करना
प्रश्न 2.
किस प्राचीन यूनानी दार्शनिक ने सबसे पहले शक्ति पृथक्करण का प्रारम्भिक संकेत दिया था
(अ) सुकरात
(ब) प्लेटो
(स) अरस्तू
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(स) अरस्तू
प्रश्न 3.
16वीं शताब्दी में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
(अ) जीन बोदां ने
(ब) माण्टेस्क्यू ने
(स) मैडिसन ने
(द) ब्लैकस्टोन ने।
उत्तर:
(अ) जीन बोदां ने
प्रश्न 4.
18वीं शताब्दी में किस विद्वान ने कार्यपालिका और विधायिका के मध्य शक्ति विभाजन का समर्थन किया
(अ) जॉन लॉक
(ब) हेरिंग्टन जेम्स
(स) ब्लैकस्टोन
(द) अरस्तू।
उत्तर:
(ब) हेरिंग्टन जेम्स
प्रश्न 5.
निम्न में से किस विद्वान के जीवनकाल में फ्रांस में निरंकुश शासन था
(अ) माण्टेस्क्यू
(ब) ब्लैकस्टोन
(स) अरस्तू
(द) प्लेटो।
उत्तर:
(अ) माण्टेस्क्यू
प्रश्न 6.
मांटेस्क्यू ने किस देश की शासन व्यवस्था से प्रभावित होकर शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था
(अ) चीन
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका
(स) इंग्लैण्ड
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(स) इंग्लैण्ड
प्रश्न 7.
किस विद्वान ने मतानुसार व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा एवं न्याय की स्थापना के लिए शक्तियों का विभाजन आवश्यक है
(अ) प्लेटो
(ब) अरस्तू
(स) जीन बोदां
(द) माण्टेस्क्यू
उत्तर:
(द) माण्टेस्क्यू
प्रश्न 8.
निम्न में से किस विद्वान ने शासन के प्रत्येक विभाग की शक्ति को सीमित और मर्यादित रहते हुए अपने-अपनेक्षेत्र का अतिक्रमण न करने एवं प्रतिरोध और सन्तुलन की स्थिति को बनाए रखने पर बल दिया
(अ) ब्लैकस्टोन
(ब) जेफरसन
(स) माण्टेस्क्यू
(द) मैडिसन।
उत्तर:
(स) माण्टेस्क्यू
प्रश्न 9.
निम्न में से किस देश के संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के स्थान पर शक्तियों के समन्वय सिद्धान्त को अपनाया गया है
(अ) भारत
(ब) चीन
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
(द) इंग्लैण्ड।
उत्तर:
(अ) भारत
प्रश्न 10.
निम्न में से किस विद्वान ने माण्टेस्क्यू के शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का समर्थन किया था
(अ) ब्लैकस्टोन
(ब) प्लेटो
(स) अरस्तू
(द) रूसो
उत्तर:
(अ) ब्लैकस्टोन
प्रश्न 11.
निम्न में से शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रमुख गुण है
(अ) शक्तियों का विकेन्द्रीकरण
(ब) स्वेच्छाचारी शासन पर रोक
(स) नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 12.
यह किस विद्वान का कथन है कि “शक्ति विभाजन सिद्धान्त का अधिकतम मूल्य इस विशेषता में निहित है कि इससे न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित होती है।”
(अ) प्रो. लास्की
(ब) डॉ. गार्नर
(स) जैफरसन
(द) ब्लैकस्टोन।
उत्तर:
(अ) प्रो. लास्की
प्रश्न 13.
शक्ति पृथक्करण का प्रमुख दोष है
(अ) अलोकतान्त्रिक
(ब) सरकार के विभिन्न अंगों में संघर्ष
(स) स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 14.
निम्न में से किस देश के संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त के साथ अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया गया है
(अ) भारत
(ब) इंग्लैण्ड
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रश्न 15.
संयुक्त राज्य अमेरिका में समस्त विधायी शक्तियाँ निहित हैं
(अ) राष्ट्रपति में
(ब) काँग्रेस में
(स) सर्वोच्च न्यायालय में
(द) उपरोक्त सभी में।
उत्तर:
(ब) काँग्रेस में
प्रश्न 16.
अमेरिकी काँग्रेस राष्ट्रपति को किस प्रकार नियन्त्रित करती है
(अ) न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा
(ब) सन्देश भेजना
(स) महाभियोग
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) महाभियोग
प्रश्न 17.
अमरीकी राष्ट्रपति काँग्रेस को किस प्रकार नियन्त्रित रखता है
(अ) सन्देश से
(ब) महाभियोग से
(स) निषेधाधिकार द्वारा
(द) न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा।
उत्तर:
(स) निषेधाधिकार द्वारा
प्रश्न 18.
संयुक्त राज्य अमेरिका में समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ निहित हैं
(अ) राष्ट्रपति में
(ब) प्रधानमन्त्री में
(स) सचिव में
(द) काँग्रेस में।
उत्तर:
(अ) राष्ट्रपति में
प्रश्न 19.
निम्न में से सर्वोच्च न्यायालय की कौन-सी शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों पर एक प्रभावशाली नियन्त्रण है
(अ) न्यायिक पुनरावलोकन
(ब) न्यायिक समीक्षा
(स) महाभियोग
(द) निषेधाधिकार।
उत्तर:
(अ) न्यायिक पुनरावलोकन
प्रश्न 20.
निम्न में से किसे अमेरिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति व क्षमादाने अधिकार प्राप्त है
(अ) राष्ट्रपति
(ब) सचिव
(स) न्यायालय
(द) काँग्रेस।
उत्तर:
(अ) राष्ट्रपति
RBSE Class 11 Political Science Chapter 11 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त से क्या आशय है?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त से आशय यह है कि शासन के तीनों अंगों, यथा-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करें एवं अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहें।
प्रश्न 2.
शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त किस बात पर आधारित है?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त सरकार के तीनों अंगों, यथा – कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है।
प्रश्न 3.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के कोई दो तत्व लिखिए।
उत्तर:
- शासन के तीनों अंगों, यथा-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में पृथक्करण हो।
- तीनों अंग परस्पर स्वतन्त्र हों, स्वयं अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहें।
प्रश्न 4.
शक्तियों के केन्द्रीकरण का एक दुष्प्रभाव बताइए।
उत्तर:
शक्तियों के केन्द्रीकरण से शासन निरंकुश बन जाता है।
प्रश्न 5.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की प्रमुख मान्यता क्या है?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की मान्यता यह है कि शासन का कोई अंग दूसरे अंग के कार्यों को सम्पादित, प्रत्यायोजित या उसमें हस्तक्षेप न करे।
प्रश्न 6.
यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने अपने शासन विधान को कितने भागों में बाँटा था?
उत्तर:
तीन भागों में बाँटा था –
- विमर्शकारी
- कार्यकारी
- न्यायकारी।
प्रश्न 7.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जान बोदाँ को।
प्रश्न 8.
जॉन लॉक ने शासन शक्तियों को कितने भागों में बाँटा?
उत्तर:
तीन भागों में
- व्यवस्थापिका
- कार्यपालिका
- संघात्मक शक्ति।
प्रश्न 9.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के वास्तविक प्रतिपादक कौन माने जाते हैं?
उत्तर:
फ्रांसीसी दार्शनिक मॉण्टेस्क्यू।
प्रश्न 10.
फ्रांसीसी दार्शनिक मॉण्टेस्क्यू ने किस पुस्तक में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है?
उत्तर:
स्प्रिट ऑफ दि लॉज’ (Spirit of the Laws) नामक पुस्तक में।
प्रश्न 11.
माण्टेस्क्यू कहाँ की राजतन्त्रात्मक व्यवस्था से प्रभावित हुआ?
उत्तर:
मॉन्टेस्क्यू इंग्लैण्ड की तत्कालीन सीमित राजतन्त्रात्मक व्यवस्था से प्रभावित हुआ।
प्रश्न 12.
मॉण्टेस्क्यू के अनुसार शक्तियों का विभाजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मॉण्टेस्क्यू के अनुसार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा एवं न्याय की स्थापना के लिए शक्तियों का विभाजन आवश्यक है।
प्रश्न 13.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के समर्थक किन्हीं दो आधुनिक विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- ब्लैकस्टोन
- मैडिसन।
प्रश्न 14.
फ्रांस में ‘अधिकार घोषणा की धारा 16 में क्या कहा गया है?
उत्तर:
फ्रांस में ‘अधिकार घोषणा की धारा 16 में कहा गया है कि जिस देश और समाज में अधिकार विभाजन नहीं है, वहाँ कोई संविधान नहीं है।
प्रश्न 15.
शक्तियों के पृथक्करण सिद्धान्त के स्थान पर शक्तियों के समन्वय सिद्धान्त को किस देश के संविधान में अपनाया गया है।
उत्तर:
भारत के संविधान में।
प्रश्न 16.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:
- शक्तियों का विकेन्द्रीकरण
- नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा।
प्रश्न 17.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रमुख लाभ बताइए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त ने पहले राजा तत्पश्चात् व्यवस्थापिका की निरंकुशता पर रोक लगायी।
प्रश्न 18.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:
- यह लोक कल्याणकारी राज्य के विरुद्ध है,
- सरकार के विभिन्न अंगों में आन्तरिक संघर्ष की सम्भावना।
प्रश्न 19.
कौन-सा विद्वान व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण को आवश्यक मानता है?
उत्तर:
फ्रांसीसी दार्शनिक मॉण्टेस्क्यू
प्रश्न 20.
किस विद्वान ने स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शक्ति विभाजन को आवश्यक नहीं माना है?
उत्तर:
गैटेल ने।
प्रश्न 21.
कौन-सा विद्वान स्वतन्त्रता के लिए शक्ति पृथक्करण के स्थान पर सतत् जागरूकता को अधिक महत्वपूर्ण मानता है?
उत्तर:
प्रो. लास्की।
प्रश्न 22.
माण्टेस्क्यू ने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की प्रेरणा किस देश की शासन व्यवस्था से ली थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की शासन व्यवस्था से।
प्रश्न 23.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का सर्वाधिक प्रभाव किस देश के संविधान पर पड़ा?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान पर।
प्रश्न 24.
नियन्त्रण एवं सन्तुलन का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
नियन्त्रण एवं सन्तुलन सिद्धान्त का आशय यह है कि शासन के तीनों अंग अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में स्वतन्त्र रहते हुए परस्पर नियन्त्रण स्थापित रखें जिससे शक्ति सन्तुलन बना रहे।
प्रश्न 25.
शक्ति पृथक्करण के साथ नियन्त्रण व सन्तुलन के सिद्धान्त को क्यों अपनाया गया है?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण को व्यावहारिक रूप देने तथा उसकी हानियों से बचने एवं शासन के तीनों अंगों में शक्ति सन्तुलन स्थापित करने हेतु नियन्त्रण व सन्तुलन सिद्धान्तं को अपनाया गया है।
प्रश्न 26.
नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को किस देश के संविधान में अपनाया गया है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में।
प्रश्न 27.
नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य शासन के तीनों अंगों, यथा-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मर्यादा में रखना है।
प्रश्न 28.
किस देश के संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त के साथ अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया गया है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में।
प्रश्न 29.
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा व्यवस्थापिका पर नियन्त्रण करने वाली किसी एक शक्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विधेयकों पर (वीटो) निषेधाधिकार का अधिकार।
प्रश्न 30.
संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यवस्थापिका (काँग्रेस) पर न्यायालय द्वारा नियन्त्रण करने वाली किसी एक शक्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महाभियोग की शक्ति।
प्रश्न 31.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय की कौन-सी शक्ति राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों पर एक प्रभावशाली नियन्त्रण है?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति।
प्रश्न 32.
अमेरिकी संविधान में न्यायिक शक्तियाँ किसमें निहित हैं?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय में।
प्रश्न 33.
अमेरिका में न्यायपालिका पर किसका नियन्त्रण है?
उत्तर:
व्यवस्थापिका (काँग्रेस) एवं राष्ट्रपति का।
प्रश्न 34.
अमेरिकी संविधान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
- शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त
- अवरोध व सन्तुलन का सिद्धान्त।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की आवश्यकता बताइए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की आवश्यकता – शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की आवश्यकता के प्रमुख कारण निम्न हैं
- शासन को अत्याचारी होने से रोकने के लिए।
- शासन के विभिन्न अंगों के उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने के लिए।
- नागरिकों की स्वतन्त्रता एवं अधिकारों के संरक्षण हेतु।
- शासन की कार्यक्षमता में वृद्धि करने के लिए।
- राजनीतिक सिद्धान्त के दुरुपयोग से बचाव की व्यवस्था के लिए।
- न्यायपालिका की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता को बनाये रखने के लिए शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त आवश्यक माना जाता है।
- शक्ति की शक्ति के द्वारा पहरेदारी सम्भव बनाने के लिए।
- शक्तियों के केन्द्रीकरण से शासन को निरंकुश होने से बचाने के लिए।
प्रश्न 2.
मॉण्टेस्क्यू के शक्ति पृथक्करण सम्बन्धी विचारों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मॉण्टेस्क्यू एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे। इन्होंने ‘द स्पिरिट ऑफ लाज’ नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में इन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या की है। मॉण्टेस्क्यू के अनुसार सरकार की विधायी, कार्यपालिका। और न्यायिक शक्तियों का व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण के लिए अलग-अलग हाथों में सौंपा जाना आवश्यक है अन्यथा नागरिक स्वतन्त्रता समाप्त हो जाएगी इसलिए सरकार के तीनों अंगों को एक-दूसरे से स्वतन्त्र रहना अनिवार्य है।
जहाँ इन तीनों शक्तियों का केन्द्रीकरण होगा नागरिकों की स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। इसलिए सरकार का प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्य-क्षेत्र तक सीमित रहे और दूसरे अंग से स्वतन्त्र होकर कार्य करे। इस प्रकार मॉण्टेस्क्यू ने शासन के प्रत्येक विभाग की शक्ति को सीमित और मर्यादित रखते हुए अपने-अपने क्षेत्रों का अतिक्रमण न करने तथा प्रतिरोध और सन्तुलन की स्थिति को बनाए रखने पंर बल दिया।
प्रश्न 3.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की विशेषताएँ – शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की तीन विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
- शक्तियों का विकेन्द्रीकरण – शक्ति पृथक्करण शासन सत्ता को तीन स्वतन्त्र विभागों, यथा-व्यवस्थापिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका में विभाजित कर सरकार के समस्त कार्यों को श्रेष्ठता और गतिशीलता प्रदान करता है तथा भ्रष्टाचार एवं अत्याचार को कम करता है।
- नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा – शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन का अन्त कर नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। शक्ति पृथक्करण के कारण शासन का कोई भी अंग नागरिक स्वतन्त्रता में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता।
- स्वेच्छाचारी शासन पर रोक – शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके कारण स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन की स्थापना नहीं हो सकती।
प्रश्न 4.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के कोई दो दोष बताइए।
अथवा
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की किन्हीं दो आधारों पर आलोचना कीजिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के दो दोष या आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं –
1. अलोकतान्त्रिक सिद्धान्त – वर्तमान समय में लोकतन्त्र के विकास के फलस्वरूप लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को बल मिला है। अतः सरकार के कार्यों में वृद्धि हुई है एवं लोगों की आकांक्षाएँ भी बढ़ी हैं। लोकतन्त्र में जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व व्यवस्थापिका करती है। ऐसे में कई बार व्यवस्थापिका कल्याणकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न कर लोकतन्त्र की मूल भावना को नष्ट कर सकती है।
2. सरकार के विभिन्न अंगों में संघर्ष – शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त सरकार के विभिन्न अंगों में आन्तरिक संघर्ष की सम्भावना को जन्म देता है। शासन के तीनों अंग, यथा-न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य करेंगे तो शासन को गतिरोध बढ़ जाएगा। इसलिए सरकार के ठीक प्रकार से संचालन के लिए शक्ति पृथक्करण के स्थान पर सरकार के तीनों अंगों में परस्पर समन्वय, सहयोग व सन्तुलन आवश्यक है।
प्रश्न 5.
नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
अथवा
नियन्त्रण एवं सन्तुलन का सिद्धान्त क्या है? इसका प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
नियन्त्रण एवं सन्तुलन का सिद्धान्त – नियन्त्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त के अनुसार शासन के तीनों अंगों, यथा-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों का ऐसा प्रबन्ध किया जाता है जिसमें वे अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में स्वतन्त्र रहते हुए परस्पर नियन्त्रण स्थापित रखें जिससे तीनों अंगों के मध्य सन्तुलन बना रहे।
इससे शासन के तीनों अंग एक – दूसरे से सन्तुलित हो जाते हैं क्योंकि किसी भी अंग के मनमानेपन को दूसरे अंग के अंकुश द्वारा नियन्त्रित कर लिया जाता है। परिणामस्वरूप कोई भी अंग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर पाता। इस प्रकार सभी अंगों के मध्य शक्तियों में सन्तुलन बना रहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ नियन्त्रण व सन्तुलन के सिद्धान्त को लागू किया गया है।
प्रश्न 6.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के पक्ष में कोई तीन तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित प्रमुख तर्क दिये जा सकते हैं –
1. सरकार की कार्य कुशलता में वृद्धि-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त में शक्ति विभाजन के कारण शासन का प्रत्येक अंग अपना निर्धारित कार्य ही करेगा और दूसरे अंग के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा। अपने ही कार्यक्षेत्र की कार्य करने से उसमें कार्य की विशेषज्ञता आयेगी और विशेषज्ञता से कार्य करने से प्रत्येक अंग की कार्य कुशलता बढ़ जायेगी जिससे शासन में दक्षता आयेगी।
2. उत्तरदायित्व की स्थापना में सुगमता-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के अनुसार सरकार की शक्तियाँ तीनों अंगों को अलग-अलग रूप से सौंपी जायेंगी। यदि सरकार का कोई अंग ठीक से कार्य नहीं करे तो उसके लिए उत्तरदायित्व स्थापित करना सरल हो जायेगा और कोई अंग अपनी गलती के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण नहीं कर सकेगा।
3. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के माध्यम से विधायी, न्यायिक व कार्यकारी शक्तियाँ अलग-अलग होने से नागरिक स्वतन्त्रता की भली-भाँति रक्षा हो सकेगी।
प्रश्न 7.
संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध व सन्तुलन की प्रणाली केसे कार्य करती है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध व सन्तुलन की प्रणाली अग्रलिखित प्रकार से कार्य करती है
(1) अमेरिका में यद्यपि समस्त विधायी शक्तियाँ व्यवस्थापिका (काँग्रेस) को दी गई हैं किन्तु काँग्रेस मनमानी विधि नहीं बना सकती, यथा –
- राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह विधायी कार्यक्रम को स्पष्ट करते हुए काँग्रेस को अपना सन्देश भेजे।
- काँग्रेस द्वारा पारित सभी विधेयकों के लिए यह आवश्यक है कि विधि बनने से पहले उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो । विधेयकों की स्वीकृति के विषय में राष्ट्रपति को निषेधाधिकार प्राप्त है।
- सर्वोच्च न्यायालय काँग्रेस द्वारा निर्मित विधि की व्याख्या कर न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा किसी भी कानून को रद्द करने का अधिकार रखता है।
(2) राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों पर भी काँग्रेस व न्यायपालिका का नियन्त्रण है; यथा –
- राष्ट्रपति द्वारा महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ तथा विदेशों से की गई सन्धियों, युद्ध व शान्ति की घोषणा पर काँग्रेस की स्वीकृति आवश्यक है।
- कार्यपालिका का आदेश न्यायिक समीक्षा की शक्ति के न है।
- काँग्रेस राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाकर उसे पद से हटा सकती है।
(3) संयुक्त राज्य अमेरिका में काँग्रेस और राष्ट्रपति का न्यायपालिका पर नियन्त्रण है, यथा –
- काँग्रेस महाभियोग द्वारा न्यायाधीशों को पद से हटा सकती है। संघीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सीमित कर सकती है।
- राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति व क्षमादान का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 8.
संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यवस्थापिका पर राष्ट्रपतिं और सर्वोच्च न्यायालय का नियन्त्रण किस प्रकार रहता है? बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यवस्थापिका पर राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय का नियन्त्रण-संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यवस्थापिका को काँग्रेस कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में समस्त विधायी शक्तियाँ काँग्रेस को दी गयी हैं किन्तु उस पर राष्ट्रपति व न्यायपालिका द्वारा नियन्त्रण एवं सन्तुलन की व्यवस्था की गई है। काँग्रेस मनमानी विधि निर्मित नहीं कर सकती।
राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह विधायी कार्यक्रम को स्पष्ट करते हुए कॉग्रेस को अपना सन्देश भेजे। काँग्रेस द्वारा पारित सभी विधेयकों के लिए यह आवश्यक है कि विधि बनने से पहले उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो। विधेयकों की स्वीकृति के विषय में राष्ट्रपति को निषेधाधिकार (वीटो) प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय, काँग्रेस द्वारा निर्मित विधि की व्याख्या कर न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा किसी भी कानून को रद्द करने का अधिकार रखता है।
प्रश्न 9.
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति पर व्यवस्थापिका और सर्वोच्च न्यायालय का किस प्रकार नियन्त्रण रहता है? समझाइए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति पर व्यवस्थापिका और सर्वोच्च न्यायालय का नियन्त्रण-संयुक्त राज्य अमेरिका में समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं परन्तु उस पर काँग्रेस अर्थात् व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का नियन्त्रण है। राष्ट्रपति द्वारा महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों एवं विदेशों से की गई सन्धियों की सीनेट (संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यवस्थापिका अर्थात् कॉग्रेस के उच्च सदन को सीनेट कहते हैं।) द्वारा पुष्टि अनिवार्य है।
युद्ध वे शान्ति की घोषणा भी राष्ट्रपति काँग्रेस की स्वीकृति से ही कर सकता है। काँग्रेस संविधान के उल्लंघन एवं अन्य किसी गम्भीर दोष के आधार पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों पर एक प्रभावशाली नियन्त्रण है क्योंकि कार्यपालिका का आदेश न्यायिक समीक्षा की शक्ति के अधीन है।
प्रश्न 10.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय पर राष्ट्रपति एवं व्यवस्थापिका का किस प्रकार , नियन्त्रण रहता है? बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय पर राष्ट्रपति एवं व्यवस्थापिका का नियन्त्रण-यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में न्यायिक शक्तियाँ सर्वोच्च न्यायालय में निहित हैं परन्तु व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस और राष्ट्रपति का न्यायपालिका पर नियन्त्रण है। व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस न्यायाधीशों को महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है और संघीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सीमित कर सकती है।
काँग्रेस न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा सकती है। न्यायाधीशों की सेवाशर्ते, वेतन व अन्य सुविधाएँ काँग्रेस विधि द्वारा निश्चित करती है। राष्ट्रपति को न्यायाधीशों की नियुक्ति । व क्षमादान का अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त न्यायपालिका सम्बन्धी जो भी विधि बनायी जाती है, उसकी अन्तिम । अनुमति राष्ट्रपति से प्राप्त करनी पड़ती है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त, अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषता है।” कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त – संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त के साथ लागू किया गया है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में इन दोनों का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से हुआ है संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त – संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकार की तीनों शक्तियों, यथा – विधायी, कार्यकारी एवं न्यायिक शक्तियों को एक ही व्यक्ति या एक ही संस्था में केन्द्रित नहीं किया गया है, बल्कि इन्हें अलग – अलग व्यक्तियों अथवा संस्थाओं को सौंपा गया है।
विधायी अर्थात् कानून बनाने की शक्ति अमेरिकी व्यवस्थापिका जिसे काँग्रेस कहा जाता है को सौंपी गयी हैं। कार्यकारी शक्तियों को राष्ट्रपति को सौंपा गया है। इसके अतिरिक्त न्यायिक शक्तियों को वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय में निहित किया गया है। अमेरिकी सरकार के तीनों अंग पृथक्-पृथक् तथा एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में अवरोध-सन्तुलन का सिद्धान्त-अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त का आशय यह है कि सरकार के विभिन्न अंग एक-दूसरे की शक्ति पर इस प्रकार अवरोध स्थापित करें कि शक्तियों का सन्तुलन बना रहे और कोई भी एक विभाग निरंकुश शक्तियों का प्रयोग न कर सके।
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में शक्ति पृथक्करण के साथ अवरोध एवं सन्तुलन का सिद्धान्त सम्मिलित किया गया, जिससे प्रत्येक अंग को दूसरे अंगों पर कुछ सीमा तक अवरोध रखने के अधिकार दिए गए हैं, जिससे कोई भी अंग निरंकुश आचरण न कर सके। इन आपसी अवरोध से ऐसा सन्तुलन भी बना रहता है कि जब भी एक अंग, शक्तियों का दुरुपयोग करता है, तो दूसरा अंग उस पर अंकुश लगा देता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में शक्ति पृथक्करण के साथ अवरोध एवं सन्तुलन का सिद्धान्त निम्न उदाहरणों से समझा जा सकता है
1. काँग्रेस पर राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय का नियन्त्रण-संयुक्त राज्य अमेरिका में समस्त विधायी शक्तियाँ व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस को दी गई हैं किन्तु उस पर राष्ट्रपति व न्यायपालिका द्वारा अवरोध एवं सन्तुलन की व्याख्या की गई है। व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस मनमानी विधि निर्मित नहीं कर सकती है, राष्ट्रपति को यह अधिकार है।
कि वह विधायी कार्यक्रम को स्पष्ट करते हुए व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस को अपना सन्देश भेजे। व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस द्वारा पारित सभी विधेयकों के लिए यह आवश्यक है कि विधि बनने से पहले उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो। विधेयकों की स्वीकृति के विषय में राष्ट्रपति को निषेधाधिकार (वीटो) प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस द्वारा निर्मित विधि की व्याख्या कर न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा किसी भी कानून को रद्द करने का, अधिकार रखता है।
2. राष्ट्रपति पर काँग्रेस और सर्वोच्च न्यायालय का नियन्त्रण-संयुक्त राज्य अमेरिका की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं परन्तु उस पर व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस व न्यायपालिका का नियन्त्रण है। राष्ट्रपति द्वारा महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों व विदेशों से की गई सन्धियों की सीनेट द्वारा पुष्टि अनिवार्य है।
युद्ध व शान्ति की घोषणा भी राष्ट्रपति व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस की स्वीकृति से ही कर सकता है। काँग्रेस संविधान के उल्लंघन तथा अन्य किसी गम्भीर दोष के आधार पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों पर एक प्रभावशाली नियन्त्रण है।
3. सर्वोच्च न्यायालयं पर राष्ट्रपति और व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस का नियन्त्रण-संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में न्यायिक शक्तियाँ सर्वोच्च न्यायालय में निहित हैं परन्तु व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस और राष्ट्रपति का न्यायपालिका पर नियन्त्रण है। व्यवस्थापिका अर्थात् काँग्रेस न्यायाधीशों को महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है और संघीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सीमित कर सकती है।
राष्ट्रपति को न्यायाधीशों की नियुक्ति व क्षमादान का अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त न्यायपालिका सम्बन्धी जो भी विधि बनायी जाती है, उनकी अन्तिम अनुमति राष्ट्रपति से प्राप्त करनी पड़ती है। इस प्रकार शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त तथा अवरोध सन्तुलन का सिद्धान्त संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की एक प्रमुख विशेषता है।
प्रश्न 2.
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ, आवश्यकता एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त सरकार के तीनों अंगों की शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित है। व्यवस्थापिका का कार्य विधि का निर्माण करना है। कार्यपालिका का कार्य विधि को लागू करना है और न्यायपालिका का कार्य विधि के अनुसार कार्य करना है।
फ्रांसीसी दार्शनिक माण्टेस्क्यू का कहना है कि जहाँ इन तीनों शक्तियों को केन्द्रीकरण होगा, वहाँ नागरिकों की स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती इसलिए माण्टेस्क्यू ने इस बात पर बल दिया है कि सरकार को प्रत्येक अंग अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होना चाहिए, उसे अपने कार्यक्षेत्र तक ही सीमित रहना चाहिए। उसे दूसरे अंग के कार्य को प्रभावित करने या उस पर नियन्त्रण स्थापित करने की चेष्टा नहीं की जानी चाहिए। शक्तियों के केन्द्रीकरण से शासन निरंकुश हो जाता है और निरंकुश शासक भ्रष्ट हो जाते हैं।
शक्ति पृथक्करण की आवश्यकता अथवा महत्व:
शक्ति पृथक्करणं की आवश्यकता / महत्व के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:
- नागरिक स्वतन्त्रताओं व अधिकारों के संरक्षण हेतु।
- कार्य विभाजन के विशेषीकरण व कार्यकुशलता में वृद्धि हेतु।
- राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग से बचने हेतु
- न्यायपालिका की स्वतन्त्रता व निष्पक्षता कायम करने हेतु
- सरकार के विभिन्न अंगों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने हेतु
- शक्ति को शक्ति द्वारा नियन्त्रित करने हेतु।
- शासन के कार्यों को सरल एवं सुविधाजनक बनाने हेतु।
- शासन के अत्याचारी होने को रोकने के लिए। उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि शक्ति पृथक्करण की आवश्यकता के एक नहीं वरन् अनेक कारण हैं।
शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का विकास:
यद्यपि शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का विधिवत् प्रतिपादन फ्रांसीसी दार्शनिक माण्टेस्क्यू द्वारा किया गया है तथापि इस सिद्धान्त के सूत्र प्राचीनकाल में भी मिलते हैं। इस सिद्धान्त के विकासक्रम को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है–
- यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने अपने शासन विधाने को पहली बार
- विमर्शकारी
- कार्यकारी
- न्यायकारी नामक तीन विभागों में बाँटा था जो वर्तमान युग के व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को परिभाषित करते हैं। यह कार्य शक्ति पृथक्करण की संभवतः शुरुआत थी।
- 16वीं शताब्दी में फ्रांसीसी दार्शनिक जीन बोदाँ ने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने न्यायपालिकों की स्वतन्त्रता पर बल दिया और इसे कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त रखने की वकालत की।
- 17वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ‘प्युरिटन क्रान्ति’ के समय कार्यपालिका एवं विधायिका की शक्तियों का पृथक्करण किया गया।
- 18वीं शताब्दी में ‘हेरिण्टन जेम्स’ ने कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति विभाजन का समर्थन किया।
- फ्रांसीसी दार्शनिक मांटेस्क्यू ने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त की सर्वप्रथम वैज्ञानिक तथा स्पष्ट व्याख्या की। उसने 1748 में अपनी पुस्तक। ‘स्पिरिट ऑफ द लॉज’ (Spirit of the Laws) में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा फ्रांस की क्रान्तियों के पीछे यही राजनीतिक दर्शन प्रमुख रहा।
- ब्लैकस्टोन ने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का समर्थन करते हुए कहा कि “जब कानून बनाने और उसको चलाने का अधिकार एक ही व्यक्ति या व्यक्ति समूह में निहित हो, तो वहाँ जनता की स्वतन्त्रता नहीं रह सकती।
- प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान मैडिसन ने भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए शक्तियों के विभाजन को आवश्यक। बताया है।
- जेफरसन नामक विद्वान ने विधायिनी, कार्यकारिणी तथा न्यायिक शक्तियों के एक ही हाथ में केन्द्रीकरण को निरंकुशता की संज्ञा दी है तथा फ्रांस में ‘अधिकार घोषणा की धारा 16 में कहा गया है कि “जिस देश और समाज में अधिकार विभाजन नहीं है वहाँ कोई संविधान नहीं है।”
- भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण सिद्धान्त के स्थान पर शक्तियों के समन्वय सिद्धान्त को अपनाया गया है।
प्रश्न 3.
अवरोध व सन्तुलन सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अवरोध व सन्तुलन का सिद्धान्त अवरोध व सन्तुलन के सिद्धान्त से आशय यह है कि सरकार के विभिन्न अंग एक-दूसरे की शक्ति पर इस प्रकार नियन्त्रण स्थापित करें कि शक्तियों का सन्तुलन बना रहे तथा सरकार का कोई भी अंग निरंकुश शक्तियों का प्रयोग न कर सके। अवरोध व सन्तुलन का उद्देश्य है – शासन के तीनों अंगों, यथा – कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मर्यादा में रहना है न कि शासन की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव डालना है। अवरोध व नियन्त्रण के सिद्धान्त के अनुसार शासन के तीनों अंगों की शक्तियों का ऐसा प्रबधन किया जाता है जिसमें वे अपने – अपने कार्यक्षेत्र में स्वतन्त्र रहते हुए परस्पर नियन्त्रण स्थापित रखें जिससे तीनों अंगों के मध्य सन्तुलन बना रहे।
इससे शासन के तीनों अंग एक-दूसरे से सन्तुलित हो जाते हैं क्योंकि किसी भी अंग के मनमानेपन को दूसरे अंग के अकुंश द्वारा नियन्त्रित कर दिया जाता है। फलस्वरूप कोई भी अंग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर पाती। इस प्रकार शासन के अंगों के मध्य शक्तियों में सन्तुलन बना रहता है। उदाहरण के रूप में; संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति । पृथक्करण के सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध व सन्तुलन के सिद्धान्त को भी अपनाया गया है।
इस सिद्धान्त के तहत शासन के प्रत्येक अंग को दूसरे अंगों पर कुछ सीमा तक नियन्त्रण रखने के अधिकार दिए गए। हैं जिससे कोई भी अंग निरंकुश आचरण न कर सके। आपसी नियन्त्रण में इस प्रकार का सन्तुलन भी बना रहता है जिससे कोई एक अंग दुसरे अंगों को अपने अधीन नहीं कर सकता और न ही किसी अंग को असीमित शक्तियाँ प्राप्त हैं। प्रत्येक अंग को संविधान द्वारा शक्तियाँ प्राप्त हैं। संबद्ध अंग उनका अतिक्रमण नहीं कर सकती। जब भी एक अंग शक्तियों को दुरुपयोग करेगी तो दूसरा अंग उस पर अंकुश लगा सकता है।
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