RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
इटली के एटना ज्वालामुखी को निम्न में से किस प्रकार में रखा जा सकता है?
(अ) सक्रिय
(ब) शान्त
(स) मृत
(द) सुषुप्त
उत्तर:
(अ) सक्रिय

प्रश्न 2.
इटली के विसुवियस ज्वालामुखी को निम्न में से किस प्रकार में रखा जा सकता है?
(अ) सक्रिय
(ब) शान्त
(स) मृत
(द) सुषुप्त
उत्तर:
(द) सुषुप्त

प्रश्न 3.
म्यांमार का माउण्ट पोपा ज्वालामुखी निम्नलिखित में से किस प्रकार का है?
(अ) सक्रिय
(ब) शान्त
(स) मृत
(द) सुषुप्त
उत्तर:
(द) सुषुप्त

प्रश्न 4.
जिन ज्वालामुखियों में उद्गार एक मुख से होता है उन्हें किस प्रकार के ज्वालामुखी की श्रेणी में रखा जा सकता है?
(अ) दरारी उद्गार
(ब) केन्द्रीय उद्गार
(स) मृत
(द) सुषुप्त
उत्तर:
(ब) केन्द्रीय उद्गार

प्रश्न 5.
भारत में ‘दक्कन का पठार’ किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित पठार है?
(अ) दरारी उद्गार
(ब) केन्द्रीय उद्गार
(स) मृत
(द) सुषुप्त
उत्तर:
(अ) दरारी उद्गार

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 अतिलघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
भूकम्प को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
‘भूकम्प भूगर्भिक शक्तियों के परिणामस्वरूप धरातल के किसी भाग में उत्पन्न होने वाले आकस्मिक कम्पन को कहते हैं। भूपृष्ठ का यह कम्पन ही भूकम्प कहलाता है।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी से निस्तृत पदार्थों के नाम बताइये।
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया से अनेक प्रकार की गैसें, छोटे व बड़े शिलाखण्ड एवं उनके टुकड़े तथा तरल रूप में मैग्मा व लावा निकलता है।

प्रश्न 8.
द्वितीयक तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
एस तरंगों को द्वितीयक तरंग भी कहा जाता है। ये तरंगें प्राथमिक तरंगों के पश्चात् धरातल पर पहुँचती हैं। इसी कारण इन्हें द्वितीयक तरंग कहते हैं।

प्रश्न 9.
दो सक्रिय ज्वालामुखियों के नाम बताइये।
उत्तर:
दो सक्रिय ज्वालामुखियों के नाम क्रमश: एटना एवं स्ट्राम्बोली हैं।

प्रश्न 10.
दो शान्त ज्वालामुखियों के नाम बताइये।
उत्तर:
दो शान्त ज्वालामुखियों के नाम क्रमश: म्यांमार का माउण्ट पोपा व ईरान का कोहे सुल्तान हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 लघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 11.
प्रत्यास्थ पुनश्चलन को समझाइये।
उत्तर:
भूपटल भ्रंश पर प्रो. एफ. एस.रीड. ने प्रत्यास्थ पुनश्चनल सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। इनके अनुसार चट्टानें रबर की तरह लचीली होती हैं तथा खींची जाने पर बढ़ती हैं। इन चट्टानों का स्वभाव रबड़ की तरह होता है। ये एक निश्चित सीमा तक खिंचती हैं। उसके बाद टूट जाती हैं एवं टूटे हुए भूखण्ड पुनः खिंचकर अपना स्थान ग्रहण करते हैं। इस प्रकार चट्टान टूटने तथा विखंडित भाग द्वारा शीघ्रता से अपने स्थान ग्रहण करने की प्रवृत्ति को प्रो. रीड ने प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त कहा हैं। चट्टानों की इस प्रकार फैलने व पुन: संकुचन की प्रक्रिया के कारण भूपटल पर भूकम्प की स्थिति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 12.
ज्वालामुखी क्रिया में भूकम्प कैसे आते हैं? समझाइये।
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया भूकम्प आने का एक मुख्य कारण है तथा ज्वालामुखी क्रिया एवं भूकम्प एक-दूसरे के अभिन्न अंग माने जाते हैं। ज्वालामुखी उद्गार के साथ जब तीव्र एवं वेगवती गैस एवं वाष्प धरातल के निचले भाग से बाहर प्रकट होने के लिए धक्के लगाती है तो भूपटल में अनायास ही जोरों से कम्पन पैदा हो जाता है तथा भयंकर भूकम्प अनुभव किया जाता है। इसी प्रकार जहाँ पर भूपटल कमजोर होता है, वहाँ पर वेगवती गैसें तीव्रता के साथ भूपटल को तोड़कर विस्फोट के रूप में धरातल पर ज्वालामुखी के उद्गार के साथ प्रकट होती हैं। इस प्रकार के भयंकर उद्गार के साथ ही साथ भूपटल में कम्पन पैदा हो जाती है। यह क्रिया भूकम्प हेतु उत्तरदायी बनती है। यथा – एटना, विसुवियस, क्राकाटोवा ज्वालामुखियों के विस्फोट के समय आए विनाशकारी भूकम्प।

प्रश्न 13.
जलीय भार से भूकम्प कैसे आते हैं? समझाइये।
उत्तर:
धरातलीय भाग पर जब जल की अपार राशि का भंडारण हो जाता है तो उससे उत्पन्न अत्यधिक भार तथा दबाव के कारण जलभंडार की तली के नीचे स्थित चट्टानों में हेर-फेर होने लगता है। जब यह बदलाव शीघ्रता से होता है तो भूकम्प का अनुभव किया जाता है। यहाँ जलभण्डार का अभिप्राय भूपटल पर मानव निर्मित जलाशयों व बाँधों से है। बहुउद्देशीय परियोजनाओं व नदी-बांध योजनाओं के अन्तर्गत नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाये जाते हैं। इस प्रकार अनावश्यक जल को जब बड़े-बड़े जलभण्डारों के रूप में इकट्ठा कर दिया जाता है तो भूपटल पर भार व दबाव अचानक बढ़ जाता है जिससे भूपटल में पुनर्व्यवस्था होने लगती है जिसके कारण भूकम्प आते हैं। यथा – 1967 में महाराष्ट्र के कोयना में आया भूकम्प कोयना बांध का परिणाम माना जाता है।

प्रश्न 14.
ज्वालामुखियों के प्रकार बताइये।
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्भेदन की प्रक्रिया व उसके समय में पर्याप्त अन्तर मिलता है। कुछ ज्वालामुखी भयंकर उद्गार के साथ तीव्र विस्फोट के रूप में तो कुछ शान्त रूप में उद्गारित होते हैं। कुछ जल्दी शान्त हो जाते हैं तो कुछ देरी से शान्त होते हैं। कुछ ज्वालामुखी कुछ समय शांत पड़ जाते हैं तो कुछ थोड़े अंतराल के बाद पुन: जाग्रत हो जाते हैं। इन सभी विविधताओं को आधारे मानकर ज्वालामुखियों को मुख्यतः दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है-

  1. उद्गार की अवधि के आधार पर,
  2. उद्गार के आधार पर।

ज्वालामुखी के वर्गीकरण को निम्न तालिका से दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी 1

प्रश्न 15.
जाग्रत ज्वालामुखी के उदाहरण बताइये।
उत्तर:
जिन ज्वालामुखियों से निरन्तर लावा, गैस व अनेक प्रकार के पदार्थ निकलते रहते हैं, ऐसे ज्वालामुखी जाग्रत ज्वालामुखी कहलाते हैं। विश्व में ऐसे ज्वालामुखियों की संख्या लगभग 500 है। ऐसे ज्वालामुखियों में इटली का एटना तथा स्ट्राम्बोली प्रमुख हैं। फिलीपाइन का पिनाटुबो ज्वालामुखी भी एक सक्रिय ज्वालामुखी है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
भूकम्प की उत्पत्ति के कारण बताते हुए विभिन्न भूकम्पीय तरंगों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प की प्रक्रिया एक आकस्मिक आपदा है। इसके लिए अनेक कारक उत्तरदायी होते हैं। ये कारण निम्नानुसार हैं-

  1. भ्रंशन,
  2. ज्वालामुखी क्रिया,
  3. जलीय भार,
  4. भूपटल का संकुचन,
  5. समस्थिति समायोजन,
  6. प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त,
  7. प्लेट विवर्तनिकी,
  8. मानवीय कारण आदि।

भूकम्पीय तरंगों की व्याख्या-भूकम्पीय लहरों का सिस्मोग्राफ द्वारा अंकन किया जाता है। इन भूकम्पीय लहरों का वर्णन निम्नानुसार है

(i) पी-तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंगों के नाम से भी जाना जाता है। भूकम्प मूल से प्रारम्भ होकर ये तरंगें धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। इन तरंगों की औसत गति 8-10 किमी प्रति सैकण्ड होती है। इन तरंगों के शैल में से होकर गुजरने पर शैल कणों में कम्पन तरंगों की गति की दिशा में आगे-पीछे होता है। प्राथमिक तरंगें ठोस, द्रव वे गैस तीनों माध्यमों से गुजरती हैं। ये तरंगें
ध्वनि तरंगों के समान चलती हैं।

(ii) एस-तरंगें इन्हें द्वितीयक तरंगों के नाम से जाना जाता है। ये तरंगें प्राथमिक तरंगों के पश्चात धरातल पर पहुँचती हैं। इन तरंगों की गति 5 किमी प्रति सैकण्ड होती है। इन तरंगों के शैलों से होकर गुजरने पर शैल कणों में गति तरंग की दिशा में समकोण पर होती है। ये तरंगें केवल ठोस भाग से गुजरती हैं। ये तरंगें तरल भाग में लुप्त हो जाती हैं। इन्हें आड़ी तरंगें भी कहते हैं। इन तरंगों की गति जल तरंगों अथवा प्रकाश तरंगों के समान होती है। इन आड़ी लहरों का सागरीय भागों में पहुँचने पर लुप्त होना पाया जाता है।

(iii) एल-तरंगें-इन्हें धरातलीय तरंगें भी कहा जाता है। इन तरंगों के द्वारा सबसे लम्बा मार्ग तय किया जाता है। ये तरंगें केवल धरातल पर अधिकेन्द्र से चारों ओर फैलती हैं, इसलिए इन तरंगों को लम्बी तरंगें कहा जाता है। इन तरंगों की गति 3 किमी प्रति सेकण्ड होती है। इन तरंगों के द्वारा भूकम्पीय क्षेत्र में सर्वाधिक क्षति होती है। ये तरंगें धरातल पर सबसे बाद में पहुँचती हैं। अधिक गहराई पर धरातलीय लहरें लुप्त हो जाती हैं। ये लहरें जल से भी होकर गुजर जाती हैं। इन तरंगों का सिस्मोग्राफ यंत्र पर अंग्रेजी के L अक्षर के समान अंकन होता हैं।

भूकम्पीय तरंगों के इस स्वरूप को निम्न चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी 2

प्रश्न 17.
भूकम्पों का वर्गीकरण देते हुए, उनका विश्व वितरण बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी तल पर आने वाले भूकम्प अपने स्वभाव के कारणों के आधार पर अलग-अलग होते हैं। इसी आधार पर भूकम्पों को निम्न भागों में बांटा गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी 3

भूकम्पों का विश्व वितरण – विश्व के अधिकांश भूकम्प नवीन मोड़दार पर्वतों, ज्वालामुखी क्षेत्रों के समुद्र तटीय क्षेत्रों में आते हैं। ये वे क्षेत्र हैं जहाँ भूसंतुलन अव्यवस्थित है या कमजोर भूपटल है। विश्व में भूकम्पों का वितरण निम्न पेटियों के रूप में मिलता है–

  1. परिप्रशांत पेटी,
  2. मध्य महाद्वीपीय पेटी,
  3. मध्य अटलांटिक कटक पेटी।

(i) परिप्रशांत पेटी (Circum Pacific Belt) – यह विश्व का सबसे विस्तृत भूकम्प क्षेत्र है जहाँ पर विश्व के 2/3 (लगभग 63 प्रतिशत) भूकम्प आते हैं। यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों ओर एक वृत्त की परिधि की तरह द्वीपों तथा महाद्वीपों में स्थित है। यहाँ पर भूकम्प की चार प्रमुख दशायें सागर तथा स्थल मिलन क्षेत्र, नवीन वलित पर्वत क्षेत्र, ज्वालामुखी क्षेत्र विनाशकारी प्लेट, सीमा अपसरण क्षेत्र मिलती हैं। इसमें उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम तटीय क्षेत्र, एशिया के कमचटका प्रायद्वीप से पूर्वी एशिया के द्वीप; यथा–क्यूराइल, जापान, ताइवान फिलिपीन्स आते हैं।

(ii) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid continental Belt) – इसे भूमध्यसागरीय पेटी भी कहते है। यहाँ पर भ्रंशमूलक तथा संतुलन क्रिया के कारण भूकम्प आते हैं। विश्व के 21 प्रतिशत भूकम्प इसी भाग में आते हैं। इस पेटी में पुर्तगाल से लेकर हिमालय, तिब्बत तथा दक्षिणी पूर्वी द्वीप समूह आते हैं। भारत का भूकम्पीय क्षेत्र भी इसी पेटी में आता है। यहाँ के प्रमुख क्षेत्र
इटली, चीन, एशिया माइनर, हिन्दकुश, हिमालय, आल्पस, म्यांमार हैं।

(iii) मध्य अटलांटिक कटक पेटी (Mid Atlantic Ridge Belt) – यह पेटी मध्य अटलांटिक कटक के सहारे स्थित है जो अटलांटिक महासागर के पश्चिमी द्वीप समूह से लेकर दक्षिण में बोवेट द्वीप तक विस्तृत है। इसकी शाखा नील घाटी से होकर अफ्रीका की महान दरार घाटी तक विस्तृत है। यहाँ पर भूकम्प मुख्य रूप से रूपान्तरण भ्रंश के निर्माण व प्लेटों के अपसरण से और ज्वालामुखी क्रिया के कारण आते हैं। भूमध्य रेखा पर सर्वाधिक भूकम्प आते हैं।

भूकम्पों के इस विश्व वितरण प्रारूप को निम्न चित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी 4

प्रश्न 18.
ज्वालामुखी के कारण बताते हुए, उनके वर्गीकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी के कारण – ज्वालामुखी क्रिया के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं। इनमें से मुख्य कारण निम्नानुसार हैं-

  1. भूगर्भिक असंतुलन,
  2.  गैसों की उत्पत्ति,
  3. भूगर्भ में ताप वृद्धि,
  4. दाब में कमी,
  5. प्लेट विवर्तनिकी।

ज्वालामुखियों का वर्गीकरण – ज्वालामुखियों को मुख्यत: दो आधारों पर वर्गीकृत किया गया हैं

  1. उद्गार की अवधि के आधार पर,
  2. उद्गार के स्वरूप के आधार पर।

(i) उद्गार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों के प्रकार-उद्गार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों को निम्न भागों में बांटा गया है

(अ) सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी – जिन ज्वालामुखियों से निरन्तर उद्गार होता रहता हैं, उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं।
यथा – एटना व स्ट्राम्बोली।
(ब) सुषुप्त ज्वालामुखी – ऐसे ज्वालामुखी जो कुछ समय शान्त रहने के बाद पुनः उद्गारित होते रहते हैं, उन्हें सुषुप्त ज्वालामुखी कहते हैं। यथा – विसुवियस ज्वालामुखी।

(स) शान्त या मृत ज्वालामुखी – जिन ज्वालामुखियों में दीर्घावधि से कोई उद्गार नहीं हुए एवं ज्वालामुख में पानी आदि भर गया हो, उन्हें शान्त ज्वालामुखी कहते हैं। यथा-माउंट पोपा, कोहे सुल्तान आदि।

(ii) उद्गार के स्वरूप के आधार पर ज्वालामुखियों के प्रकार
(अ) केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी,
(ब) दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी।

(अ) केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी-जिन ज्वालामुखियों से उद्गार एक नली मार्ग एवं एक मुख से होता है, उन्हें केन्द्रीय
उद्गार वाले ज्वालामुखी कहते हैं। ऐसे ज्वालामुखियों को निम्न भागों में बांटा गया है-

  1. हवाई तुल्य ज्वालामुखी,
  2. (स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी,
  3. वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी,
  4. पीलियन तुल्य ज्वालामुखी।

इन सभी ज्वालामुखी प्रकारों का वर्णन निम्नानुसार है-

(i) हवाई तुल्य ज्वालामुखी (Hawatlian Types of volcanoes) – इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोटक क्रिया कम . होती है एवं उद्गार शांत ढंग से होता हैं। इसका मुख्य कारण लावा का पतला होना और गैस की तीव्रता में कमी होना है। इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार के उदाहरण मुख्यतः हवाई द्वीप में देखने को मिलते हैं, अत: इसे हवाई तुल्य ज्वालामुखी कहा जाता है।

(ii) स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी (Strombolian Type of volcanoes) – इस प्रकार के उद्गार में लावा अपेक्षाकृत तीव्रता के साथ प्रकट होता है और गाढ़ा होता हैं कभी-कभी विस्फोटक उद्गार भी होता है। स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी में इस प्रकार का उद्गार होता है। इसी के नाम पर इस तरह के उद्गार वाले ज्वालामुखियों को स्ट्राम्बोली तुल्ये ज्वालामुखी कहते हैं।

(iii) वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी (Volcanian Type of volcanoes) – इस प्रकार के ज्वालामुखी से ज्वालामुखी पदार्थ भयंकर विस्फोट व अधिक तीव्रता के साथ बाहर निकलते हैं और विस्फोट के पश्चात् राख और धूल से भरी गैसें, विशाल काले बादलों के रूप में काफी ऊँचाई तक ऊपर उठती हैं और फूलगोभी के रूप में दिखाई पड़ती हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखियों का नामकरण लिपारी द्वीप समूह स्थित वलैकनो नामक ज्वालामुखी के आधार पर किया जाता हैं

(iv) पीलियन तुल्य ज्वालामुखी (Pelean Type) – ऐसे ज्वालामुखी में उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर रूप में होता है तथा सर्वाधिक विनाशकारी होता है। पश्चिमी द्वीप समूह में मार्टिनिक द्वीप में पीलि (Pelee) ज्वालामुखी में हुए विस्फोटक उद्गार के समान ज्वालामुखियों को पीलियन तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं।

(ब) दरारी उदगार वाले ज्वालामुखी (Volcanoes with Fissure Eruption) – ऐसे ज्वालामुखी में लावा दरारों के माध्यम से बिना विस्फोट के शांतिपूर्वक निकलता है। लावा प्रायः पतला होता है फलस्वरूप लावा पठार का निर्माण होता है। कोलंबिया के पठार एवं भारत में दक्कन का पठार दरारी उद्गार वाले लावा से निर्मित पठार है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराष्ट्र के कोयना में आये भूकम्प का कारण था
(अ) भ्रंशन
(ब) जलीय भार
(स) भूपटल का संकुचन
(द) प्लेट विवर्तनिकी
उत्तर:
(ब) जलीय भार

प्रश्न 2.
प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन है?
(अ) प्रो.एफ.एस.रीड
(ब) मार्गन
(स) जेफ्रीज
(द) वेगनर
उत्तर:
(अ) प्रो.एफ.एस.रीड

प्रश्न 3.
भूकम्पीय तरंगों का आलेखन किस यंत्र से होता है?
(अ) क्लाइमोग्राफ
(ब) हीदरग्राफ
(स) अर्गोग्राफ
(द) सिस्मोग्राफ
उत्तर:
(द) सिस्मोग्राफ

प्रश्न 4.
प्राथमिक तरंगें किसे कहते हैं?
(अ) P तरंगों को
(ब) 5 तरंगों को
(स) L तरंगों को
(द) गामा तरंगों को
उत्तर:
(अ) P तरंगों को

प्रश्न 5.
सर्वाधिक क्षति कारक तरंगें कौन-सी हैं?
(अ) P तरंगें
(ब) S तरंगें
(स) L तरंगें
(द) अल्फा तरंगें
उत्तर:
(स) L तरंगें

प्रश्न 6.
सुनामी किस भाषा का शब्द है?
(अ) फ्रेंच
(ब) अरबी
(स) हिन्दी
(द) जापानी
उत्तर:
(द) जापानी

प्रश्न 7.
सर्वाधिक भूकम्प किस पेटी में आते हैं?
(अ) मध्य महाद्वीपीय पेटी
(ब) मध्य अटलांटिक पेटी
(स) परिप्रशांत महासागरीय पेटी
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) परिप्रशांत महासागरीय पेटी

प्रश्न 8.
विसुवियस ज्वालामुखी किस प्रकार का ज्वालामुखी है?
(अ) सक्रिय
(ब) सुषुप्त
(स) शान्त
(द) पीलियन तुल्य.
उत्तर:
(ब) सुषुप्त

प्रश्न 9.
फूलगोभी के समान विशाल काले बादल किस ज्वालामुखी में बनते हैं?
(अ) हवाई तुल्य
(ब) स्ट्रोम्बोली तुल्य
(स) वलकैनो तुल्य
(द) पीलियन तुल्य
उत्तर:
(स) वलकैनो तुल्य

प्रश्न 10.
दरारी उद्गार वाले ज्वालमुखियों में लावा कैसा होता है?
(अ) गाढ़ा
(ब) पतला
(स) राख युक्त
(द) सिलिका प्रधान
उत्तर:
(ब) पतला

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए,

स्तम्भ अ (भूकम्प का कारण)स्तम्भ ब (सम्बन्धित क्षेत्र)
(i) भ्रंशन(अ) क्रोकाटोवा
(ii) ज्वालामुखी क्रिया(ब) मानवीय कारण
(iii) जलीय भार(स) दरार घाटियाँ
(iv) समस्थिति समायोजन(द) कोयना
(v) आणविक विस्फोट(य) हिमालय क्षेत्र

उत्तर:
(i) (स) (i) (अ) (iii)(द) (iv)(य) (v) (ब)

(ख)

स्तम्भ अ (भूकम्प का क्षेत्र)स्तम्भ ब (भूकम्प का प्रकार)
(i) क्राकोटोवा का भूकम्प(अ) संतुलन मूलक भूकम्प
(ii) कैलिफोर्निया का भूकम्प(ब) ज्वालामुखी भूकम्प
(iii) हिंदुकश का भूकम्प(स) सामुद्रिक भूकम्प
(iv) फुकुशिमा का नष्ट होना(द) विर्वतनिक भूकम्प

उत्तर:
(i)(ब) (i) (द) (ii)(अ) (iv) (स)

स्तम्भ अ (दशा)स्तम्भ ब (सम्बन्ध)
(i) सक्रिय ज्वालामुखी(अ) धरातलीय तरंगें
(ii) शान्त ज्वालामुखी(ब) द्वितीयक तरंगें
(iii) सुषुप्त ज्वालामुखी(स) प्राथमिक तरंगें
(iv) P तरंग(द) एटना
(v) s तरंग(य) विसुवियस
(vi) L तरंग(र) कोहे सुल्तान

उत्तर:
(i)(द) (i) (र) (ii)(य) (iv)(स) (v) (ब)(vi) (अ)

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तर्जात बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उत्पन्न होने वाले बलों की अन्तर्जात बल कहा जाता है।

प्रश्न 2.
बहिर्जात बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के बाहरी भाग में उत्पन्न होने वाले बलों को बहिर्जात बल कहा जाता है। इन बलों से पृथ्वी के बाहरी भाग में परिवर्तन होते हैं।

प्रश्न 3.
मोंकहाऊस ने भूकम्प की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
मोंकहाऊस के अनुसार, “भूपटल की शैली में संचालन व समायोजन की क्रिया द्वारा बाहर की और सभी दिशाओं में होने वाले प्रत्यास्थ प्रघाती तरंगों के संचार को भूकम्प कहते हैं।”

प्रश्न 4.
धरातल की संतुलन व्यवस्था में असंतुलन उत्पन्न करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
धरातल की संतुलन व्यवस्था में असंतुलन लाने वाले कारकों में भ्रंशन, ज्वालामुखी क्रिया, जलीय भार, भूपटल का संकुचन, समस्थिति समायोजन, प्रत्यास्थ पुनश्चलन व प्लेट विवर्तनिकी हैं।

प्रश्न 5.
भ्रंश से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भूगर्भिक शक्तियों द्वारा तनाव व सम्पीडन के कारण शैलों में चटकन व दरारें पड़ने से चट्टानों का अव्यवस्थित होना भ्रंश कहलाता है।

प्रश्न 6.
प्लेंट विवर्तनिकी क्या है?
उत्तर:
स्थलीय दृढ़ भूखण्डों को प्लेट कहते हैं। इन प्लेटों के अध्ययन व विश्लेषण करने वाले विज्ञान को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं। यह प्रक्रिया पृथ्वी तल पर परिवर्तन लाती है।

प्रश्न 7.
सागरीय निक्षेप से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सागर की तली में जमे हुए अवसादों को ही सागरीय निक्षेप कहते हैं। ये निक्षेप जैविक, अजैविक, स्थलीय, सामुद्रिक या ब्रह्माण्डीय हो सकते हैं।

प्रश्न 8.
भूकम्प की उत्पत्ति के मानवीय कारण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भूकम्प की उत्पत्ति हेतु मानव के द्वारा किये जाने वाले आणविक विस्फोट, खनन क्षेत्रों में विस्फोट व गहरे छिद्रण तथा बाँध निर्माण की प्रक्रिया को शामिल किया गया है।

प्रश्न 9.
भूकम्प मूल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूगर्भ में जिस स्थान पर भूकम्प की उत्पत्ति होती है, उसे भूकम्प मूल कहा जाता है।

प्रश्न 10.
अधिकेन्द्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प मूल के समकोण पर पृथ्वी की सतह का वह केन्द्र जहाँ पर भूकम्पीय लहरों का अनुभव सबसे पहले होता है। इस स्थान को अधिकेन्द्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूकम्पीय तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प मूल पर आघात उत्पन्न होने से शैलों में कम्पन होता है जिससे उत्पन्न होने वाली तरंगों को भूकम्पीय तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 12.
प्राथमिक तरंगों की गति कितनी होती है?
उत्तर:
प्राथमिक तरंगों की गति 8-10 किलोमीटर प्रति सैकण्ड होती है।

प्रश्न 13.
धरातलीय तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
एल-तरंगें धरातल पर सबसे लम्बा मार्ग तय करती हैं इसलिए इन तरंगों को लम्बी व धरातलीय तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 14.
कृत्रिम भूकम्पों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे भूकम्प मानवीय क्रियाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। उन्हें कृत्रिम भूकम्प कहते हैं। ये स्थानीय प्रभाव वाले होते हैं।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक भूकम्पों को कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
प्राकृतिक भूकम्पों को उत्पत्ति के आधार पर ज्वालामुखी भूकम्प, विवर्तनिक भूकम्प, संतुलन मूलक भूकम्प व प्लूटानिक भूकम्पों के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 16.
विवर्तनिक भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे भूकम्प जो भूगर्भ की विवर्तनिक हलचलों; यथा-तनाव व संपीडन से उत्पन्न होते हैं। उन्हें विवर्तनिक भूकम्प कहते है।

प्रश्न 17.
प्लूटोनिक भूकम्प क्या हैं?
उत्तर:
ऐसे भूकम्प जो धरातल से अत्यधिक गहराई पर उत्पन्न होते हैं, उन्हें प्लूटोनिक या पातालीय भूकम्प कहते हैं।

प्रश्न 18.
सुनामी से क्या तात्पर्य है? अथवा सुनामी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी भूकम्प की उत्पत्ति सामुद्रिक क्षेत्र में होती है, तो ऐसे अन्त:सागरीय भूकंम्पों से उत्पन्न ऊँची विनाशकारी सागरीय लहरों की उत्पत्ति होती है। इन लहरों को ही सुनामी कहा जाता है।

प्रश्न 19.
भूकम्पों के विश्व वितरण को किन पेटियों में बांटा गया है?
उत्तर:
भूकम्पों के विश्व वितरण को मुख्यतः तीन पेटियों-परिप्रशान्त महासागरीय पेटी, मध्य महाद्वीपीय पेटी व मध्य अटलांटिक कटक पेटी के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 20.
विश्व के सर्वाधिक भूकम्प कहाँ आते हैं?
उत्तर:
विश्व के सर्वाधिक भूकम्प परिप्रशान्त महासागरीय पेटी में आते हैं। इस पेटी में विश्व के लगभग 63 प्रतिशत भूकम्प आते हैं।

प्रश्न 21.
परिप्रशान्त महासागरीय मेखला में अधिक भूकम्पों की उत्पत्ति क्यों होती है?
उत्तर:
परिप्रशान्त महासागरीय मेखला में मिलने वाली सागरों व स्थलों की मिलन स्थिति, नवीन वलित पर्वतों का क्षेत्र होने, ज्वालामुखी क्षेत्र होने व विनाशकारी प्लेटों का अपसरण होने से सर्वाधिक भूकम्प आते हैं।

प्रश्न 22.
मध्य महाद्वीपीय पेटी के प्रमुख क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मध्य महाद्वीपीय पेटी के प्रमुख क्षेत्रों में इटली, चीन, एशिया माइनर, हिन्दकुश, हिमालय पर्वत व आल्पस पर्वतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है।

प्रश्न 23.
अटलांटिक कटक पेटी में भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
मध्य अटलांटिक कटक पेटी में भूकम्प आने का मुख्य कारण रूपान्तरण भ्रंशों का निर्माण व प्लेटों के अपसरण से और ज्वालामुखी क्रिया के कारण आते हैं।

प्रश्न 24.
भूकम्प की तीव्रता किस पर मापी जाती है?
उत्तर:
भूकम्प की तीव्रता रिचर (रिएक्टर) पैमाने पर मापी जाती है। इसमें 0 से 9 तक बिन्दु होते हैं।

प्रश्न 25.
ज्वालामुखी किसे कहते हैं?
अथवा
ज्वालामुखी क्रिया से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ज्वालामुखी भूगर्भिक शक्तियों द्वारा जनित एक आकस्मिक क्रिया है जिसमें भूपटल के रिज या दरारे से गैस, शैल पदार्थ एवं तप्त तरल मैग्मा बाहर निकलते हैं।

प्रश्न 26.
उलदिन व मार्गन ने ज्वालामुखी की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
उलदिन व मार्गन के अनुसार, “ ज्वालामुखी वैह क्रिया है जिसके अन्तर्गत पृथ्वी के भीतर तथा बाहर प्रकट होने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं।”

प्रश्न 27.
ज्वालामुखी का वर्गीकरण किन-किन आधारों पर किया गया है?
उत्तर:
ज्वालामुखी का वर्गीकरण उद्गार की अवधि एवं उद्गार के स्वरूप के आधार पर किया गया हैं।

प्रश्न 28.
उद्गार की अवधि के आधार ज्वालामुखियों को किन भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
उद्गार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों को तीन भागों-सक्रिय ज्वालामुखी, सुषुप्त ज्वालामुखी एवं शान्त ज्वालामुखी के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 29.
उद्गार के स्वरूप के आधार पर ज्वालामुखियों को कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
उद्गार के स्वरूप के आधार पर ज्वालामुखियों को दो भागों-केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी एवं दरारी उद्गार वाले। ज्वालामुखियों में विभाजित किया गया है।

प्रश्न 30.
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखियों को किन-किन भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखियों को हवाईतुल्य ज्वालामुखी, स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी, वल्कैनो तुल्य ज्वालामुखी एवं पीलियन तुल्य ज्वालामुखी के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 31.
ज्वालामुखी क्रिया के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया के लिए मुख्यत: भूगर्भिक असंतुलन, गैसों की उत्पत्ति, भूगर्भ में ताप वृद्धि, दाब में कमी एवं प्लेट विवर्तनिकी प्रक्रिया उत्तरदायी है।

प्रश्न 32.
सक्रिय ज्वालामुखी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे ज्वालामुखी जिनमें लगातार उद्गार होता रहता है, उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 33.
सुषुप्त ज्वालामुखी से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे ज्वालामुखी जो कुछ समय की सुषुप्ति के पश्चात पुन: उद्गारित होते रहते हैं, उन्हें सुषुप्त ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 34.
शान्त ज्वालामुखी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन ज्वालामुखियों में दीर्घावधि से कोई उद्गार नहीं हुए एवं ज्वालामुखी में जलादि भर जाते हैं। उन्हें शान्त ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 35.
ज्वालामुखी की कौन-कौन सी पेटियाँ मिलती हैं?
उत्तर:
विश्व में ज्वालामुखी वितरण की मुख्यतः जो पेटियाँ मिलती हैं उनमें परिप्रशान्त महासागरीय मेखला, मध्य महाद्वीपीय मेखला, मध्य अटलांटिक कटक मेखला एवं पूर्वी अफ्रीका मेखला आदि शामिल हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 लघूत्तात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
भूकम्प क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में अन्तर्जात बल सक्रिय रहते हैं। इन अन्तर्जात बलों से आकस्मिक परिवर्तन के रूप में भूकम्प की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। सामान्यतः भूकम्प भूपृष्ठ के कम्पन को कहा जाता है। भूकम्प की यह प्रक्रिया मुख्यत: किसी क्षेत्र की समस्थिति में अस्थायी रूप से उत्पन्न असंतुलन से होती है। इस प्रक्रिया में प्रघाती तरंगों का संचार होता है, यह एक प्राकृतिक आपदा है।

प्रश्न 2.
भूपटल का संकुचन भूकम्प की उत्पत्ति में कैसे सहायक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प की उत्पत्ति भूपटल संकुचन का भी परिणाम होता है। पृथ्वी अपने प्रारम्भिक काल से ही ताप ह्रास के कारण ठंडी होती जा रही है। पृथ्वी के इस प्रकार ठंडा होने से वह निरन्तर सिकुड़ती जा रही है। पृथ्वी के ठंडा होने व सिकुड़ने की यह प्रक्रिया जब शीघ्र व तीव्रता से होती है तो भूकम्प आते हैं। इस तथ्य के समर्थन में अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए हैं जिनमें डाना, ब्यूमाउण्ट व जेफ्रीज प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
समस्थिति समायोजन भूकम्प की उत्पत्ति में कैसे सहायक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूपटल के विभिन्न भू-आकारों; यथा- पर्वत, पठार, मैदान व महासागरीय गर्त में संतुलन बना रहता है। जब कभी अपरदन कारी क्रिया द्वारा निक्षेपित मलबे से समुद्री क्षेत्रों में भार अधिक हो जाता है, तो इस संतुलन व्यवस्था में क्षणिक रूप से असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस क्षणिक असंतुलन के कारण ही भूकम्पों की उत्पत्ति होती है। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में भूकम्प प्राय: इसी कारण से आते हैं।

प्रश्न 4.
धरातलीय तरंगों की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(i) धरातलीय तरंगें (एल-तरंगें) सबसे मंद गति से चलने वाली तरंगें होती हैं।
(ii) इन तरंगों से भूकम्पीय क्षेत्र में सर्वाधिक क्षति होती है।
(iii) ये तरंगें सबसे लम्बा मार्ग तय करती हैं।
(iv) ये तरंगें केवल धरातल पर अधिकेन्द्र से चारों ओर फैलती हैं। .
(v) इन तरंगों की गति 3 किमी प्रति सैकण्ड होती है।

प्रश्न 5.
सामुद्रिक भूकम्प क्या होते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी तल के 71 प्रतिशत भाग पर जल पाया जाता है। इस विशाल जल के भराव स्थल के रूप में समुद्र मिलते हैं। इन समुद्रों में आने वाले भूकम्पों को सामुद्रिक भूकम्प कहते हैं। इस तरह के अन्तः सागरीय भूकम्पों द्वारा अत्यंत ऊँची विनाशकारी लहरें उठती हैं। सामुद्रिक भूकम्प के कारण उत्पन्न होने वाली इन लहरों को सुनामी के नाम से जाना जाता है। इस तरह की लहरें प्रायः विनाशकारी होती हैं।

प्रश्न 6.
मध्य महाद्वीपीय पेटी का भूकम्प के संदर्भ में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मध्य महाद्वीपीय पेटी को ही भूमध्य सागरीय पेटी भी कहा जाता है। इस पेटी में विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकम्प आते है। इस पेटी में भ्रंशमूलक तथा संतुलन क्रिया के कारण भूकम्प आते हैं। इस पेटी में पुर्तगाल से लेकर हिमालय, तिब्बत तथा दक्षिण पूर्वी द्वीप समूह आदि क्षेत्र सम्मिलित किये जाते हैं। भारत भी इसी भूकम्पीय पेटी में आता है। इस पेटी में इटली, चीन, एशिया माइनर, हिन्दुकश, हिमालय व आल्पस व म्यामांर तक के क्षेत्र शामिल हैं।

प्रश्न 7.
भूकम्पों से होने वाली हानियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्पों से निम्न हानियाँ होती हैं-

  1. भूकम्पों से अपार जन-धन की हानि होती है। इससे लाखों व्यक्ति मर जाते हैं तथा मकान, बाँध व जलाशय टूट जाते हैं।
  2. (भूकम्पों से समुद्री भागों में ऊँची लहरें उठती हैं। इन सुनामी लहरों से समुद्रतटीय भागों में जलप्लावन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  3. भूकम्पों से यातायात मार्ग अव्यवस्थित हो जाते हैं।
  4. नदियों के मार्ग बदलने से कालान्तर में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  5. भूकम्पों से इमारतें नष्ट हो जाती हैं तथा संपूर्ण नगर नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
सक्रिय एवं शान्त ज्वालामुखी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सक्रिय एवं शान्त ज्वालामुखी में निम्न अंतर मिलते हैं-

सक्रिय ज्वालामुखीशान्त ज्वालामुखी
(i) ये ज्वालामुखी निरन्तर उद्गारित होते रहते हैं।ये ज्वालामुखी एक लम्बी दीर्घावधि से कोई उद्गार नहीं होने को दर्शाते हैं।
(ii) ये ज्वालामुखी विवर्तनिक दृष्टि से सक्रिय क्षेत्रों में मिलते हैं।ऐसे ज्वालामुखियों की स्थिति प्रायः वर्तमान में विवर्तनिक दृष्टि से निष्क्रिय क्षेत्रों में मिलती है।
(iii) इन ज्वालामुखियों की मुख्य नाली स्वच्छ एवं क्रियाशील रहती है।इन ज्वालामुखियों की नाली में प्राय: जलादि भर जाते हैं या ये अवरुद्ध हो जाती है।

प्रश्न 9.
हवाई तुल्य एवं स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
हवाई तुल्य एवं स्ट्रोम्बोली तुल्य ज्वालामुखी में निम्न अन्तर मिलते हैं-

हवाई तुल्य ज्वालामुखीस्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी
1.  इन ज्वालामुखियों में विस्फोट की क्रिया कम होती है।1. इन ज्वालामुखियों में उद्गार तीव्रता से होता है।
2.  इन ज्वालामुखियों में निकलने वाला लावा पतला होता है।2. इन ज्वालामुखियों में निकलने वाला लावा गाढ़ा होता है।
3.  ये ज्वालामुखी मुख्यत: हवाई द्वीप में देखने को मिलते हैं।3. ये ज्वालामुखी स्ट्राम्बोली द्वीप में देखने को मिलते हैं।
4.  इसमें लावा अधिक दूरी तक फैलता है।4. इन ज्वालामुखियों से निकला लावा गाढ़ा होने से कम फैलता है।

प्रश्न 10.
वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी एवं पीलियन तुल्य ज्वालामुखी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वलकैनों तुल्य ज्वालामुखी एवं पीलियन तुल्य ज्वालामुखी में निम्न अन्तर मिलते हैं-

वलकैनो तुल्य ज्वालामुखीपीलियन तुल्य ज्वालामुखी
1.  इस प्रकार के ज्वालामुखी में ज्वालामुखी पदार्थ भयंकर विस्फोट के साथ बाहर निकलते हैं।1. इस प्रकार के ज्वालामुखियों में सर्वाधिक तीव्र विस्फोट होता हैं।
2.  इनमें निकलने वाले पदार्थ, गैसें पीलियन की तुलना में कम ऊँचाई पर जाते हैं।2. इनमें निकलने वाले पदार्थ, गैस सर्वाधिक ऊँचाई तक जाते हैं।
3. इन ज्वालामुखियों का नामकरण वलकैनो ज्वालामुखी के आधार पर किया गया है।3. इन ज्वालामुखियों का नामकरण पीलि ज्वालामुखियों के आधार पर किया गया है।

प्रश्न 11.
ज्वालामुखी की गौण पेटी में कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी की गौण पेटी में प्रशान्त महासागर के हवाईद्वीप, हिन्द महासागर के मॉरिशस, कमोरो, रियुनियन आदि द्वीपों पर स्थित ज्वालामुखियों को शामिल किया जाता है। ये सभी ज्वालामुखी क्षेत्र परिप्रशान्त महासागरीय मेखला, मध्य महाद्वीपीय मेखला, मध्य अटलांटिक कटक मेखला, पूर्वी अफ्रीका मेखला आदि पेटियों के अतिरिक्त क्षेत्रों में फैल हुए मिलते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 लघूत्तात्मक प्रश्न Type ।।

प्रश्न 1.
भूकम्प की उत्पत्ति में प्लेट विवर्तनिकी एवं मानवीय कारणों के योगदान की विवेचना कीजिए।
अथवा
मानव क्रियाएँ एवं प्लेट विवर्तनिकी भूकम्प की उत्पत्ति में सहायक होते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी का प्रभाव – भूकम्प की उत्पत्ति में प्लेट विवर्तनिकी को अहम् योगदान रहता हैं। क्योंकि धरातल के नीचे विभिन्न प्लेटें पाई जाती हैं। इन प्लेटों में प्लेट किनारों के सहारे अपसरण, अभिसरण एवं इसके दाएँ व बाएँ सरकने की प्रक्रिया होती रहती है। इन क्रियाओं के दौरान होने वाले भूपर्पटीय परिवर्तन से जो हलचलें उत्पन्न होती हैं, वे भूकम्प की उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

मानवीय योगदान – भूकम्प की उत्पत्ति में मानवीय क्रियाओं का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। मानव के द्वारा अनेक ऐसी क्रियाएँ की जाती हैं जिनसे भूकम्प की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानव के द्वारा किये जाने वाले आणविक विस्फोट, खनन क्षेत्रों में चट्टानों के विखण्डन हेतु किये जाने वाले विस्फोट, गहरे छिद्रण तथा मानव के द्वारा तैयार किये गये विशाल जलराशि वाले बांधों के कारण भूकम्पीय प्रक्रिया के उत्पन्न होने की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। खनन प्रक्रिया के दौरान खानों के किनारों के ऊँचे हो जाने एवं उनके कभी-कभी गिरने से भी भूकम्प की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 2.
स्थिति के अनुसार भूकम्पों को वर्गीकृत कीजिए।
अथवा
स्थिति को आधार मानकर भूकम्पों को किन भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
स्थिति को आधार मानकर भूकम्पों को मुख्यत: दो भागों में बांटा गया है-

  1. स्थलीय भूकम्प,
  2. सामुद्रिक भूकम्प।

1. स्थलीय भूकम्प – स्थलीय भाग में आने वाले भूकम्प स्थलीय भूकम्प कहलाते हैं। मध्य महाद्वीपीय पेटी में आने वाले भूकम्प अधिकांशतः इसी श्रेणी में आते हैं।
2. सामुद्रिक भूकम्प – समुद्रों में आने वाले भूकम्पों को सामुद्रिक भूकम्प कहते हैं। इस तरह के अन्तः सागरीय भूकम्पों द्वारा समुद्रों में सामुद्रिक लहरों की उत्पत्ति होती हैं। इन सामुद्रिक लहरों को सुनामी के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की सागरीय लहरें प्रायः समुद्रतटवर्ती भागों में अत्यधिक विनाशकारी सिद्ध होती हैं। वर्ष 2011 में जापान के हाँशू द्वीप के निकट आये तीव्र भूकम्प की वजह से उत्पन्न सुनामी से फुकुशिमा नगर पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी एवं दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखियों में क्या अन्तर है?
अथवा
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखियों से किस प्रकार भिन्न हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखियों एवं दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखियों में मिलने वाले अन्तर निम्न हैं-

केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखीदरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी
1. इन ज्वालामुखियों में उद्गार एक नली मार्ग एवं एक मुख से होता है।1. इन ज्वालामुखियों में उद्गार अनेक नलियों (दरारों) के माध्यम से होता है।
2. इस प्रकार के ज्वालामुखियों में प्रायः विस्फोट की प्रक्रिया होती है।2. इन ज्वालामुखियों में दबाव कम होने से विस्फोट का अभाव मिलता है।
3. ऐसे ज्वालामुखियों की विश्व में प्रधानता मिलती है।3. ऐसे ज्वालामुखियों की प्रायः कमी मिलती है।
4. इन ज्वालामुखियों में प्रायः अधिक विकसित शंकु दृष्टिगत है।4. इन ज्वालामुखियों में शंकु का अधिक विकास नहीं हो पाता होता है।

प्रश्न 4.
भूकम्प के क्या-क्या लाभ हैं?
अथवा
भूकम्प से होने वाले लाभों का विवेचन कीजिए।
अथवा
भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा होते हुए भी कभी-कभी लाभकारी सिद्ध होता है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है जिससे मुख्यत: विनाशकारी प्रभाव ही पड़ते हैं किन्तु इसके कभी-कभी कुछ सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। इन लाभकारी प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-

  1. भूकम्प की प्रक्रिया से ऊँचे भागों की उत्पत्ति हो जाती है जोकि उस क्षेत्र की जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  2. जब समुद्रतटीय भूमि नीचे धंस जाती है तो बंदरगाह गहरे हो जाते हैं। जिसके कारण बड़े जलयानों के दृष्टिकोण से आदर्श स्थिति का निर्माण होता है।
  3. समुद्री क्षेत्र में जलमग्न भूमि सतह से ऊपर आने से उपजाऊ मैदान निर्मित हो जाते हैं। ये मैदानी भाग कृषि कार्य के लिए उपयोगी हैं।
  4. भूकम्प से पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने में सहायता मिलती है।
  5. भूकम्पीय प्रक्रिया से जलस्तर में परिवर्तन होता है। कभी-कभी जलस्तर ऊपर आने से पेयजल आपूर्ति सुगम हो जाती है।
  6. भूकम्पीय प्रक्रिया से निर्मित पृथ्वीतले की गर्तिकाएँ जल प्रवहन का सुगम साधन बनती हैं।
  7. कभी-कभी भूकम्पीय प्रक्रिया से जल स्वभाव में परिवर्तन होने से खारे जले वाले स्रोतों की जगह मीठे जल स्रोतों की उत्पत्ति हो जाती है।

प्रश्न 5.
ज्वालामुखी क्रिया के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी क्यों आते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी क्रिया हेतु उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विश्व में सम्पन्न होने वाली ज्वालामुखी क्रिया के लिए प्रादेशिक आधार पर भिन्न-भिन्न कारण उत्तरदायी होते हैं। विश्व में दृष्टिगत होने वाले प्रमुख कारण निम्न हैं-

  1. भूगर्भिक असंतुलन,
  2. गैसों की उत्पत्ति,
  3. भूगर्भ में ताप वृद्धि,
  4. दाब में कमी,
  5. प्लेट विवर्तनिकी।

इन सभी कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-

  1. भूगर्भिक असंतुलन (Isostatic Disequilibrium) – भूगर्भिक असन्तुलन के कारण भूगर्भिक क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं जिनसे ज्वालामुखी क्रिया होती है।
  2. गैसों की उत्पत्ति (Formation of Gases) – भूगर्भिक जल दरारों से पृथ्वी के आन्तरिक भाग में पहुँचकर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है जो कि उद्गार में नोदक शक्ति का कार्य करती है।
  3. भूगर्भ में ताप वृद्धि – भूगर्भ में स्थित रेडियो सक्रिय पदार्थों के निरन्तर विखण्डन से निकलते ताप से शैलें द्रवित होकर कमजोर एवं आयतन में बढ़ जाती हैं तत्पश्चात् कमजोर दरारों में लावा के रूप में बाहर निकलती हैं।
  4. दाब में कमी – ऊपरी परतों के दबाव के कारण भूगर्भ की शैलें ठोस अवस्था में रहती हैं और दबाव कम होने पर पिघल जाती हैं जो ज्वालामुखी क्रिया को प्रोत्साहित करती हैं।
  5. प्लेट विवर्तनिकी (Ptate Tectonic) – भूपृष्ठ की विभिन्न प्लेटों की गतियों के कारण भी ज्वालामुखी क्रिया होती है। प्लेटों के एक-दूसरे के सम्मुख दिशा में गति करने से यह क्रिया अधिक होती है।

प्रश्न 6.
उद्गार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखियों को उद्गार की अवधि के आधार पर कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
विश्व में मिलने वाले ज्वालामुखियों को उनके उद्गारित होने की अवधि के आधार पर मुख्यतः निम्न भागों में बांटा गया है-

  1. सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी,
  2. सुषुप्त ज्वालामुखी,
  3. शान्त या मृत ज्वालामुखी।

इन सभी ज्वालामुखी प्रकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है

  1. सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी (ActiveVolcano) – इस प्रकार के ज्वालामुखियों से बहुधा उद्गार होते रहते हैं। इटली. के एटना व स्ट्रोम्बोली सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
  2. सुषुप्त ज्वालामुखी (DormantVolcano) – ऐसे ज्वालामुखियों से कुछ समय की सुषुप्ति के पश्चात् पुनः उद्गार होते रहते हैं। इटली का विसूवियस इसी प्रकार का ज्वालामुखी है, जिसमें सन् 1631, 1812, 1906 तथा सन् 1943 में उद्गार हो चुके हैं।
  3. शान्त या मृत ज्वालामुखी (Extinct volcano)-जिन ज्वालामुखियों में दीर्घावधि से कोई उद्गार नहीं हुए एवं ज्वालामुखी में जलादि भर जाते हैं उन्हें शान्त ज्वालामुखी कहते हैं। म्यांमार की माउण्ट पोपा, ईरान का कोहे सुल्ताने आदि। शान्त या मृत ज्वालामुखी हैं।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी से निस्सृत पदार्थों का वर्णन कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी से निकले पदार्थों को कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
ज्वालामुखी क्रिया के दौरान पृथ्वी के आन्तरिक भाग से अनेक प्रकार के पदार्थ निस्सृत होते हैं। जिनमें तरल तप्त पदार्थ, शिलाखण्ड, लैपिली, अनेक गैसें मुख्य हैं। इन सभी पदार्थों को मुख्यत: निम्न भागों में बांटा गया है-

  1. गैस व जलवाष्प (Gasses and Water Vapour) – ज्वालामुखी के उद्भेदन के साथ ही जलवाष्प एवं कार्बन डाई। ऑक्साइड, सल्फर डाइ-आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, अमोनिया क्लोराइड आदि गैसें निकलती हैं।
  2. ठोस पदार्थ (Solid Material) – ज्वालामुखी से सूक्ष्म धूल या राख से लेकर बड़े आकार के शिलाखण्ड निकलते हैं।
  3.  तरल पदार्थ (Liquid Material) – धरातल के नीचे समस्त पिघला शैल पदार्थ मैग्मा कहलाता है एवं ज्वालामुखी से जब ये धरातल पर आता है तो उसे लावा के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8.
ज्वालामुखी क्रिया के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी प्रक्रिया रचनात्मक एवं ध्वंसात्मक प्रभावों का सम्मिश्रण है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी के लाभदायक वह हानिकारक प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वीतल पर सम्पन्न होने वाली ज्वालामुखी क्रिया एक प्राकृतिक आपदी होती है। इस क्रिया से कभी-कभी ध्वंसात्मक प्रभावों के साथ-साथ रचनात्मक प्रभाव भी दृष्टिगत होते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के इन दोनों प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-

  1. रचनात्मक प्रभाव – ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा बिखराव के बाद अत्यधिक उपजाऊ मृदा को जन्म देता है। भारतीय प्रायद्वीप की काली मिट्टी ज्वालामुखी उद्गार के लाभप्रद पक्षों का एक उदाहरण है। विभिन्न प्रकार के खनिज युक्त भूपट्टियों के विकास में ज्वालामुखी प्रक्रिया की महत्वपूर्ण भूमिका है।
  2. ध्वंसात्मक प्रभाव-ज्वालामुखी उद्गार के साथ बहते हुए लावा एवं अन्य पदार्थों व गैसों से मानव जीवन व वातावरण की हानि के साथ ही सांस्कृतिक भूदृश्यं की भी हानि होती है। करोड़ों जीवन ज्वालामुखी उद्गार से नष्ट हो जाते हैं। तटीय क्षेत्रों में जलप्लावन से अपार क्षति होती है। करोड़ों की संख्या में समुद्री जीव-जन्तु मर जाते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूकम्प की उत्पत्ति के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूकम्पीय प्रक्रिया किन कारकों की देन है? वर्णन कीजिए।
अथवा
पृथ्वीतल पर भूकम्पीय प्रक्रिया हेतु उत्तरदायी कारकों का विस्तृत विवेचन कीजिए।
अथवा
भूकम्पों की उत्पत्ति के कारणों का उदाहरण सहित स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:
किसी क्षेत्र की समस्थिति में अस्थायी रूप से उत्पन्न असंतुलन ही मुख्य रूप से भूकम्प का कारण है। धरातल की संतुलन व्यवस्था में असंतुलन उत्पन्न करने वाले निम्नलिखित कारक हैं जिनके कारण भूकम्प की उत्पत्ति होती है।

(i) भ्रंशन (Faulting) – भूगर्भिक शक्तियों द्वारा तनाव व सम्पीडन के कारण शैलों में चटकन व दरारें पड़ जाती है एवं भ्रंशन उत्पन्न होते हैं। इन क्रियाओं के दौरान भूकम्प आते हैं, नवीन वलित पर्वत श्रेणियों व दरार घाटियों के सहारे इस कारण भूकम्प आते हैं।

(ii) ज्वालामुखी क्रिया (Volcanism) – ज्वालामुखी क्रिया भूकम्प के आने का प्रमुख कारण है। ज्वालामुखी उद्गार के समय जब तीव्र व वेगवती गैसें पृथ्वी के अभ्यांतर से बाहरी भाग पर प्रकट होने के लिए धक्का लगाती हैं तो भूपटल पर अनायास जोरों पर कम्पन पैदा होता है। ऐटना, क्राकाटोवा, विसूवियस आदि ज्वालामुखी विस्फोट के समय विनाशकारी भूकम्प आए थे।

(iii) जलीय भार (Waterload) – कुछ विद्वानों के अनुसार बड़े बांधों के निर्माण के फलस्वरूप धरातलीय भाग पर अत्यधिक मात्रा में जल का भंडार होने से जल भंडार की तली के नीचे स्थित शैलों में हेर-फेर होने लगता है जिससे भूकम्प आते हैं। दिसम्बर 1967 को महाराष्ट्र के कोयना भूकम्प का एक कारण ‘कोयना बांध’ को माना जाता है।

(iv) भूपटल का संकुचन (Constraction of the Earth) – कुछ विद्वानों ने भूकम्पों की उत्पत्ति का कारण भूपटल के संकुचन को माना है। उनके अनुसार पृथ्वी के तापक्रम में निरन्तर विकिरण की क्रिया के फलस्वरूप ह्रास हो रहा है। जिससे भूपटल ठंडा होने से सिकुड़ने लगता है। जब यह क्रिया शीघ्र व तीव्र गति से होती है तो भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

(v) समस्थिति समायोजन (Isostatic Adjustments) – सामान्यतया भूपटल के विविध भूआकारों; यथा-पर्वत, पठार, मैदान व महासागरीय गर्त में संतुलन बना रहता है। जब कभी अपदरनकारी क्रिया द्वारा निक्षेपित मलबे से समुद्री क्षेत्रों में भार अधिक हो जाता है, तो इस संतुलन व्यवस्था में क्षणिक रूप से असन्तुलन होने से भूकम्प आते हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में भूकम्प प्रायः इसी कारण से आते हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 7 भूकंप एवं ज्वालामुखी 5
(vi) प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त (Elastic Rebound Theory) – प्रो. एफ.एस.रीड के अनुसार शैलें रबड़ की भांति एक सीमा तक खिंचती हैं। उसके बाद टूट जाती हैं एवं टूटे हुए भूखण्ड पुनः खिंचकर अपना स्थान ग्रहण करते हैं इससे भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

(vii) प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) – विभिन्न प्लेट किनारों पर भूप्लेटें अपसरित, अभिसरित या दाएं-बाएं सरकती हैं। तो इन क्रियाओं के दौरान होने वाली हलचलों के कारण भूकम्प आते हैं।

(viii) अन्य कारण- उपर्युक्त कारणों के अलावा गैसों के फैलाव, भूस्खलन, समुद्रतटीय भागों में भृगुओं के टूटने, कन्दराओं की छतों के ढहने आदि के कारण लघु प्रभाव वाले भूकम्प आते हैं। इसके अतिरिक्त मानवीय कारणों; यथा–आणविक विस्फोट, खनन क्षेत्रों में विस्फोट, गहरे छिद्रण आदि से भी स्थानीय प्रभाव वाले भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 2.
भूकम्प के प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
भूकम्पों को किन-किन भागों में बांटा गया है?
अथवा
विभिन्न आधारों पर भूकम्पों का वर्गीकरण करते हुए उनका वर्णन कीजिए।
अथवा
भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग प्रकार के भूकम्प उत्पन्न होते हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प के प्रकार-अनेक प्रकार के भूकम्प पृथ्वी के विभिन्न भागों को प्रभावित करते रहते हैं। स्वभाव तथा कारणों के आधार पर भूकम्पों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है-

(i) कृत्रिम भूकम्प (Artificial Earthquake) ये भूकम्प मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये भूकम्प स्थानीय प्रभाव वाले होते हैं और इनकी तीव्रता बहुत कम होती है। जैसे– खान खोदने, परमाणु विस्फोट, भूमिगत आणविक परीक्षण आदि से उत्पन्न भूपटल कम्पन।

(ii) प्राकृतिक भूकम्प (Natural Earthquake) ये प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न क्रियाशील भूकम्प होते हैं, जो कि निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

  • ज्वालामुखी भूकम्प (Volcanic Earthquakes) – जो भूकम्प ज्वालामुखी क्रिया या उद्गार के समय उत्पन्न होते हैं, वे ज्वालामुखी भूकम्प कहलाते हैं; यथा-विसूवियस, एटना, क्रोकाटोवा उद्गार के समय उत्पन्न भूकम्प
  • विवर्तनिक भूकम्प (Tectonic Eathquakes) – ये संरचनात्मक भूकम्प हैं, जो भूगर्भ की विवर्तनिक हलचलों; यथा-
    तनाव, संपीड़न आदि से उत्पन्न होते हैं। ऐसे भूकम्प अधिक गहराई पर उत्पन्न नहीं होते हैं; यथा -कैलिफोर्निया का भूकम्प।
  • संतुलन मूलक भूकम्प (lsostatic. Earthquake) – ये भूकम्प भूपटल की संतुलन व्यवस्था में अव्यवस्था उत्पन्न होने के फलस्वरूप आते हैं। इस प्रकार के भूकम्प प्रायः नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्र हिमालय आदि में आते हैं। यथा-वर्ष 2015 में हिन्दूकुश तथा नेपाल का भूकम्प।
  • प्लूटोनिक भूकम्प (Plutonic Earthquake) – धरातल से अत्यधिक गहराई पर उत्पन्न होने वाले भूकम्प प्लूटोनिक भूकम्प या पातालीय भूकम्प कहलाते हैं। ऐसे भूकम्प की उत्पत्ति तथा शक्ति के बारे में बहुत कम ज्ञान है।

(iii) स्थिति के अनुसार भूकम्प – इस आधार पर भूकम्पों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • स्थलीय भूकम्प (Land Earthquake) – स्थल पर आने वाले भूकम्पों को स्थलीय भूकम्प कहते हैं। मध्य महाद्वीपीय पेटी में आने वाले भूकम्प अधिकांशतः इसी श्रेणी के हैं।
  • सामुद्रिक भूकम्प (Marine Earthquake) – समुद्रों में आने वाले भूकम्पों को सामुद्रिक भूकम्प कहते हैं। इस तरह के अन्त: सागरीय भूकम्पों द्वारा उत्पन्न ऊँची विनाशकारी सागरीय लहरों को जापानी भाषा में ‘सुनामी’ (Tsunami) कहते हैं। मार्च 2011 को जापान के होशू द्वीप के निकट आये तीव्र भूकम्प की वजह से उत्पन्न सुनामी से फुकुशिमा नगर पूरी तरह से
    नष्ट हो गया था।

प्रश्न 2.
ज्वालामुखियों के विश्व वितरण प्रतिरूप को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
विश्व में ज्वालामुखी क्रिया के प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
ज्वालामुखी क्रिया से प्रभावित क्षेत्रों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में ज्वालामुखी का वितरण निम्न मेखलाबद्ध वितरण प्रणाली में प्रस्तुत किया जा सकता है-

(i) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Belt) – विश्व के दो-तिहाई से कुछ अधिक ज्वालामुखी केवल इसी मेखला में पाये जाते हैं। यह मेखला प्रशान्त महासागर के चारों ओर तटवर्ती क्षेत्र में फैली हुई है। यही पेटी अन्टार्कटिका के एरेबस पर्वत से प्रारम्भ होकर एण्डीज, रॉकीज पर्वत होती हुई अलास्का से मुड़कर दक्षिणी पूर्वी तटीय भागों के सहारे होती हुई मध्य महाद्वीपीय पेटी में मिल जाती है। इस मेखला में जापान का फ्यूजीयामा, फिलीपाइन को माउण्टताल, अमेरिका का शास्ता, रेनियर आदि प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत हैं।

(ii) मध्यमहाद्वीपीय मेखला (Mid-Continentat Belt) – यह मुख्य रूप से आल्पस हिमालय पर्वतीय श्रृंखला के क्षेत्र में फैली हुई है, भूमध्य सागर के ज्वालामुखी भी इसी मेखला में फैले हैं। वैरन, माउण्ट पोपा, एल्बूर्ज, एटना, विसुवियस, स्ट्रॉम्बोली आदि इसी मेखला के ज्वालामुखी हैं।

(iii) मध्य अटलाण्टिक कटक मेखला (Mid-Atlantic Ridge Belt) – अटलाण्टिक महासागर में S की आकृति में यह । मेखला फैली हुई है। यह मेखला उत्तर में आइसलैण्ड से लेकर मध्य में अटलाण्टिक कटक के सहारे दक्षिण में अण्टार्कटिका महाद्वीप तक फैली है। हैकला, कटला, एसेन्शियन, सेन्ट हैलेना इस मेखला के प्रमुख ज्वालामुखी हैं।

(iv) पूर्वी अफ्रीका मेखला (East African Belt) – यह मेखला उत्तर में इजराइल, दक्षिण में लाल सागर तथा पूर्वी अफ्रीकी दरार घाटी में होते हुए मैडागास्कर तक विस्तृत है। एल्गन, तिबेस्ती व किलिमन्जारो इस मेखला के अंग हैं।

(v) अन्य ज्वालामुखी (Other Volcanism) – उक्त मेखला के अतिरिक्त अन्य कुछ ज्वालामुखी एकाकी रूप में विस्तृत है। इनमें प्रशान्त महासागर के हवाई द्वीप तथा हिन्द महासागर के मॉरिशस, कमोरो, रियुनियन आदि द्वीपों पर स्थित ज्वालामुखी को सम्मिलित किया जाता है।

ज्वालामुखियों के इस वितरण को निम्न चित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
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