RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत: संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सतलज व काली नदियों के बीच जो भूआकृतिक भाग विस्तृत है, वह है-
(अ) हिमाचल हिमालय
(ब) उप-हिमालय
(स) कुमाऊँ हिमालय
(द) नेपाल हिमालय
उत्तर:
(स) कुमाऊँ हिमालय

प्रश्न 2.
ह्वीलर द्वीप है-
(अ) दूरस्थ द्वीप
(ब) काँप मिट्टी के द्वीप
(स) पर्वतीय द्वीप
(द) प्रवाल द्वीप
उत्तर:
(ब) काँप मिट्टी के द्वीप

प्रश्न 3.
जहाँ मिट्टी को प्रतिवर्ष प्राकृतिक नवीनीकरण होता रहता है, वह है-
(अ) भाबर प्रदेश
(ब) तराई प्रदेश
(स) बांगर प्रदेश
(द) खादर प्रदेश
उत्तर:
(द) खादर प्रदेश

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 4.
तल्ली किसे कहते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में बालुका स्तूप एवं रेत के टीले मिलते हैं। इन टीलों के बीच जो निम्न भूमि मिलती है, उसे तल्ली कहते हैं।

प्रश्न 5.
मर्ग कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
मर्ग मुख्यत: घास के मैदान हैं जो लघु हिमालय क्षेत्र में मिलते हैं।

प्रश्न 6.
कोंकण तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तट के उत्तरी भाग को (सूरत से गोआ) कोंकण तट कहते हैं।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
तल्ली व ढांढ़ में क्या अन्तर है?
उत्तर:
तल्ली व ढांढ़ में निम्न अन्तर है-

तल्लीढांढ़
(i) इनका निर्माण बालुका स्तूपों के बीच में मिलने वाली निम्न भूमि के रूप में होता है।(i) इनका निर्माण तल्लियों में वर्षा का जल भर जाने से उत्पन अस्थायी झीलों के रूप में होता है।
(ii) तल्ली जल रहित भाग होता है।(ii) ढांढ जलयुक्त भाग होता है।

प्रश्न 8.
पश्चिमी व पूर्वी घाट में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पश्चिमी व पूर्वी घाट में अनेक अन्तर मिलते हैं। जिनका विवरण निम्नानुसार है-

पश्चिमी घाटपूर्वी घाट
(i)  पश्चिमी घाट भारत के पठारी भाग के पश्चिमी भाग में स्थित है।(i) ये घाट भारत के दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में स्थित है।
(ii) इस घाट की ऊँचाई अधिक है।(ii) इस घाट की ऊँचाई कम है।
(iii) इस घाट के उत्तरी भाग का निर्माण लावा व दक्षिणी भाग का निर्माण, नाइंस, शिस्ट व चकाइट रूपी शैलों से हुआ है।(iii) इस घाट का निर्माण शिस्ट, नीस व खौंडलाइट तथा चनोंकाइट शैलों से हुआ है।
(iv) पश्चिमी तीव्र ढाल के स्वरूप को दर्शाता है।(iv) यह घाट मंद ढाल के स्वरूप को दर्शाता है।

प्रश्न 9.
भारत के पथरीले द्वीप कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत के पथरीले द्वीप पश्चिमी घाट के तटीय भागों में मिलते हैं। इन द्वीपों में मुम्बई के निकट हैनरे कैनरे बुचर, ऐलीफैण्टा, पिजन द्वीप व काठियावाड़ तट पर मिलने वाले पीरम, भैंसला आदि प्रमुख पथरीले द्वीप हैं।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 10.
भारत को स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभाजित करते हुए हिमालय प्रदेश का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल भौगालिक विविधता वाला राष्ट्र है। इन विविधताओं के कारण धरातलीय स्वरूपों की विविधता का होना स्वाभाविक है। इन विविधताओं के आधार पर भारत को निम्न स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. विशाल मैदानी क्षेत्र
  3. थार का मरुस्थल
  4. दक्षिण का पठार
  5. समुद्र तटीय मैदान
  6. द्वीप समूह क्षेत्र

हिमालय प्रदेश का विस्तृत वर्णन

हिमालय की स्थिति – हिमालय पर्वतीय प्रदेश भारत के उत्तरी भाग में फैला हुआ है जो भारत की प्राकृतिक सीमा का निर्धारण करता है। हिमालय की उत्पत्ति टिथिस भूसन्नति में अवसादों के बलन के परिणामस्वरूप हुई है- ऐसी मान्यता कोबर महोदय की हैं। वलन की प्रक्रिया से निर्मित हिमालय को बलि या मोड़दार पर्वत माना जाता है। यह नवीनतम (टर्शियरी युग की) वलित पर्वत श्रेणी है।

हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार – यह पर्वतीय प्रदेश भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व में एक वृहत् चाप के आकार में 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह 2400 किमी लम्बा तथा 250 से 400 किमी चौड़ाई में विस्तृत है। यह विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत है जिसे हिम का घर भी कहते हैं। हिमालय में विश्व की सर्वोच्च चोटियों के रूप में एवरेस्ट, कंचनजंघा, नंगापर्वत, नंदादेवी, मकालू, मनसालू आदि प्रमुख चोटियाँ मिलती हैं।

हिमालय का भौतिक विभाजन – भारत के उत्तरी भाग में फैले हुए इस विशाल पर्वतीय क्षेत्र की संरचना, संगठन, उच्चावचन व निर्माण सम्बन्धी दशाओं के आधार पर इसे निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. महान हिमालय
  2. लघु हिमालय
  3. उप-हिमालय

1. महान हिमालय – यह हिमालय का सबसे ऊपरी भाग है। जिसमें वर्ष भर बर्फ जमी रहती है। इसे हिमाद्री भी कहा जाता है।हिमालय के इसी भौतिक विभाग में सबसे अधिक ऊँची चोटियाँ मिलती हैं जिनमें कंचन जंगा (8598 मी), मुकालू (8481मी), नंगा पर्वत (8126 मी), अन्नपूर्णा (8078 मी),नंदा देवी (7818 मी) आदि चोटियाँ प्रमुख हैं। यहाँ नदियों द्वारा निर्मित संकीर्ण घाटियाँ मिलती हैं। इसकी दक्षिणी-पूर्वी शाखा में गारो, खासी, जयन्तिया, पटकोई, नागा, बुम व लुशाई की पहाड़ियाँ मिलती हैं। इस भाग में खैबर, गोमल, टोची व बोलन प्रमुख दरें मिलते हैं।

2. लघु हिमालय – यह भाग महा हिमालय के दक्षिण में स्थित है। इसे मध्य या हिमाचल हिमालय भी कहा जाता है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी तक व औसत ऊँचाई 3000 मी. है। किन्तु अधिकतम ऊँचाई 5000 मीटर तक पाई जाती है। इसमें धौलाधर, पीर पंजाल, नाग टीबा, महाभारत व मसूरी मुख्य श्रेणियाँ मिलती हैं। इस भाग में अनेक पर्यटन स्थल पाये जाते हैं। यहाँ नदी-अपहरण के उदाहरण दृष्टिगत होते हैं।

3. उप-हिमालय – हिमालय की यह सबसे दक्षिणी श्रेणी है, इसे बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है। यह पोटवार बेसिन से कोसी नदी तक फैला है। इसे डूंडवा, चूरियाँ व मूरियाँ भी कहते हैं। इसी प्रदेश के भागों में भाबर व तराई प्रदेश मिलते हैं। शिवालिक के बीच नदियों की मिट्टी व बालू निर्मित मैदानों के रूप में द्वार व दून मिलते हैं। हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण-प्रादेशिक आधार पर हिमालय को मुख्यत: हिमाचल हिमालय, कुमाऊँ हिमालय, नेपाल हिमालय व असम हिमालय के रूप में बाँटा गया है। हिमालय का महत्त्व- हिमालय को पर्वतराज व देवभूमि भी कहा जाता है। कालिदास ने इसका उल्लेख अपने ग्रन्थ में किया है। हिमालय का महत्त्व संक्षेप में निम्न रूपों है

  • यह भारत की उत्तरी-पूर्वी सीमा बनाता है।
  • यह उत्तरी ठण्डी ध्रुवीय हवाओं से भारत की रक्षा करता है।
  • दक्षिणी मानूसनी हवाओं को रोककर भारत में वर्षा में सहायक होता है।
  • हिमालय की सतत् वाहिनी नदियाँ मैदानी भागों में सिंचाई की प्रमुख स्रोत हैं। ये जलोढ़ मैदानों का निर्माण करती हैं।
  • हिमालय पर्वतीय वनों में उद्योगों के लिए कच्चे माल, कीमती लकड़ियाँ व औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
  • पहाड़ी ढालों पर केसर, चाय, आलू तथा फसलों की खेती की जाती है।
  • पर्वतीय भागों में स्थित प्राकृतिक झीलें, स्वास्थ्यवर्धक एवं मनोरम स्थान प्रमुख पर्यटन केन्द्र हैं।
  • यहाँ पौराणिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल स्थित हैं।

प्रश्न 11.
भारत को स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त करते हुए विशाल मैदान का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल भौगोलिक विविधताओं वाला राष्ट्र है जिसके कारण यहाँ धरातलीय स्वरूपों का भिन्न-भिन्न मिलना स्वाभाविक है। इन विविधताओं के आधार पर भारत को निम्न स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. विशाल मैदानी क्षेत्र
  3. थार का मरुस्थल
  4. दक्षिण का पठार
  5. समुद्र तटीय मैदान
  6. द्वीप-समूह क्षेत्र ।

विशाल मैदान का विस्तृत वर्णन
विशाल मैदान की स्थिति – विशाल मैदानी क्षेत्र भारत के मध्यवर्ती भाग में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र और प्रायद्वीपीय पठार के मध्य स्थित है। इसे सतजल गंगा-बह्मपुत्र का मैदान कहते हैं।

विशाल मैदान की उत्पत्ति – भारत के इस मैदानी भाग की उत्पत्ति हिमालय पर्वतीय क्षेत्र से दक्षिण की ओर बहने वाली नदियों से हुई है। इन नदियों द्वारा अपने साथ बहाकर लाये गए अवसादों का जमाव दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में स्थित निम्न भागों में होता रहा जिनसे इस मैदान का निर्माण हुआ।

विशाल मैदान का विस्तारं – यह मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम राज्य में मुख्य रूप से फैला हुआ है। यह मैदानी भाग धनुषाकार रूप में 2400 किमी लम्बाई तथा 150-480 किमी की चौड़ाई में 7 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।

विशाल मैदानी भाग का भौगोलिक वर्गीकरण – यद्यपि समतलता के कारण इसे उच्चावच रहित मैदान कहा जाता है। तथापि भौगोलिक दृष्टि से इसे चार भागों में विभाजित किया गया हैं-

  1. भाबर प्रदेश
  2. तराई प्रदेश
  3. बांगर प्रदेश
  4. खादर प्रदेश।

1. भाबर प्रदेश – इसका विस्तार शिवालिक के पर्वतपदीय क्षेत्र में सतजल नदी से तीस्ता नदी तक 8 से 16 किमी चौंडी पट्टी के रूप में मिलता है। नदियों द्वारा जमा किये गये चट्टानी अवसाद के कारण इस क्षेत्र में अधिकांश नदियाँ भूमिगत प्रवाह के स्वरूप को दर्शाती हैं।

2. तराई प्रदेश – यह भाबर के दक्षिण में स्थित है। इस मैदानी भाग में भाबर प्रदेश की भूमिगत प्रवाह वाली नदियाँ पुनः धरातल पर प्रकट हो जाती हैं। यह 15-30 किमी की चौड़ाई में फैला हुआ है। यहाँ अनियमित जल प्रवाह के कारण दलदल पाया जाता है।

3. बांगर प्रदेश – ये प्राचीन तलछट से निर्मित उच्च मैदानी भाग होते हैं। जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है। ये उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पश्चिमी भाग व उत्तरांचल (उत्तराखंड) में अधिक पाये जाते हैं।

4. खादर प्रदेश – ये नई काँप मिट्टी से बने हुए निचले मैदान हैं जिनमें बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष पहुँचकर मिट्टी की नई परतें जमा करता रहता है। ऐसा क्षेत्र मुख्यत: पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार व पश्चिम बंगाल में पाया जाता है।

विशाल मैदानी भाग का प्रादेशिक वर्गीकरण – प्रादेशिक आधार पर विशाल मैदानी भाग को पंजाब – हरियाणा के मैदान, गंगा के मैदान, ब्रह्मपुत्र के मैदान व गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा के रूप में बाँटा गया है।
विशाल मैदान का महत्त्व – भारत का उत्तरी विशाल मैदान कॉप मिट्टी द्वारा निर्मित उपजाऊ है। यहाँ की नदियाँ सतत् वाहिनी हैं जिनके जल का उपयोग सिंचाई, उद्योग व पीने के पानी के रूप में किया जाता है। यह एक उपजाऊ क्षेत्र है। यहाँ सघन जनसंख्या, आवागमन के पर्याप्त साधन, बड़े औद्योगिक व व्यापारिक नगर, धार्मिक तीर्थस्थल व जीवनोपयोगी प्रचुर सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

प्रश्न 12.
भारत को स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त करते हुए दक्षिण के पठार का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के स्थालाकृतिक प्रदेशों का विभाजन-भारत एक भौगोलिक विविधताओं से युक्त राष्ट्र है जिसके कारण यहाँ अनेक धरातलीय भिन्नताएँ पायी जाती हैं। इन धरातलीय स्वरूपों व इनमें मिलने वाली भिन्नताओं के आधार पर भारत को निम्न स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  2. विशाल मैदानी प्रदेश
  3. दक्षिण का पठार
  4. थार का मरुस्थल
  5. समुद्र तटीय प्रदेश
  6. द्वीप समूह क्षेत्र

दक्षिण के पठार का विस्तृत वर्णन
दक्षिण के पठार की स्थिति – यह पठारी क्षेत्र एक प्राचीन भू-भाग है जो भारत के विशाल मैदानी भाग के दक्षिण में स्थित है। यह तीन ओर से समुद्र के द्वारा (पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर व दक्षिण में हिन्द महासागर से घिरा हुआ है।

दक्षिण के पठार की उत्पत्ति – यह पठारी भाग करोड़ों वर्ष पूर्व टेथिस सागर के दक्षिण में स्थित गौंडवाना लैण्ड का भाग था। जो कालान्तर में भूगर्भिक हलचलों के कारण अलग होकर वर्तमान प्रायद्वीपीय भारत के रूप में उत्तर-पूर्व की ओर खिसका। दकन के पठार का उत्तरी भाग ज्वालामुखी क्रिया से उत्पन्न आग्नेय शैलों का बना है।

दक्षिण के पठार का विस्तार – दक्षिण का पठारी भाग भारत में विशाल मैदान के दक्षिणी भाग से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। जिसका आधार उत्तर में एवं शीर्ष दक्षिण में मिलता है। यह 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल में आंशिक रूप से फैला हुआ है। दक्षिण के पठार का वर्गीकरण–भारत के इस पठारी भाग को निम्न भागों में विभाजित किया गया है-

  1. पश्चिमी घाट
  2. पूर्वी घाट
  3. दक्षिणी पठार।

1. पश्चिमी घाट – दक्षिण के पठार के पश्चिमी किनारे को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि के नाम से जाना जाता है जो अरब सागर की ओर तीव्र ढाल वाला है। यह ताप्ती की घाटी से कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 1600 किमी है। इसको उत्तरी भाग लावा से ढका है। जबकि दक्षिणी भाग में नाइस, शिस्ट व चकाइट शैलों की प्रधानता मिलती है। इस घाट क्षेत्र में अन्नामलाई, इलाइची व पालनी श्रेणियों का संगम होता है जिसके समीप नीलगिरि की पहाड़ियों में सबसे ऊँची दोदाबेटा चोटी (2637 मीटर) पाई जाती है।
इस पठारी भाग से गोदावरी, भीमा, कृष्णा, तुंगभद्रा, कावेरी, ताम्रपर्णी, पेरियार आदि नदियाँ निकलती हैं।

2. पूर्वी घाट – यह भारत के दक्षिण पठार के पूर्वी किनारे के रूप में फैला हुआ है। ये उत्तर में महानदी की घाटी से नीलगिरि पर्वत तक फैला हुआ है। इस घाट में ऊँचाई कम पायी जाती है। इस पठारी भाग में शिस्ट, नीस, चकाइट व खौंडलाइट नामक चट्टानें पायी जाती हैं।

3. दक्षिणी पठार – यह आग्नेय, बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, कायान्तरित, धारवाड़ व गौंडवाना शैलों से बना एक प्राचीन पिण्ड है। यह उपजाऊ काली मिट्टी से बना है जो 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पठारी क्षेत्र में मैसूर का पठार, रायल सीमा का पठार, तेलंगाना का पठार आदि को शामिल किया गया है। यह पठारी क्षेत्र मुख्यतः दक्षिणी पूर्वी राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश व कर्नाटक में फैला हुआ है।

4. दक्षिण के पठार का आर्थिक महत्त्व – दक्षिण का पठारी भाग एक स्थिर भूखण्ड है। यह आकस्मिक भूगर्भिक घटनाओं से सुरक्षित है। यहाँ की जलवायु सम है तथा यह प्रदेश खनिज पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न है। उत्तरी-पश्चिमी भाग का काली मिट्टी वाला क्षेत्र विशेष महत्त्वपूर्ण है। यहाँ सस्ती जल विद्युत शक्ति के उत्पादन की परिस्थितियाँ सुलभ हैं। यहाँ कच्चे माल की सुविधा के कारण आधारभूत उद्योगों का विकास हुआ है।

आंकिक प्रश्न

प्रश्न 13.
भारत के रूपरेखा मानचित्र में प्रमुख भू-आकृतिक विभाग दशाईये।
उत्तर:
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग निम्नानुसार हैं-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 1

प्रश्न 14.
दक्षिण के पठार के उपविभागों को रेखाचित्र द्वारा दर्शाइये।
उत्तर:
दक्षिणी के पठार के प्रमुख उपविभाग निम्नानुसार हैं-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 2

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के भूगर्भिक इतिहास को कितने कालों में बाँटा गया है?
(अ) तीन कालों में
(ब) चार कालों में
(स) पाँच कालों में
(द) छ: कालों में
उत्तर:
(ब) चार कालों में

प्रश्न 2.
संगमरमर किस क्रम की शैलों का हिस्सा है?
(अ) आद्यक्रम की शैलों का
(ब) धारवाड़ क्रम की शैलों का
(स) कुडप्पा क्रम की शैलों का
(द) विन्ध्ययन क्रम की शैलों का
उत्तर:
(ब) धारवाड़ क्रम की शैलों का

प्रश्न 3.
गौंडवाना क्रम की शैलें किस कल्प में मिलती हैं?
(अ) द्रविड़ कल्प में
(ब) आर्य कल्प में
(स) पुराण कल्प में
(द) आद्य कल्प में
उत्तर:
(अ) द्रविड़ कल्प में

प्रश्न 4.
देश का कितने प्रतिशत स्थलीय भाग 2 से 5 मीटर ऊँचा है?
(अ) 33.4 प्रतिशत
(ब) 28.3 प्रतिशत
(स) 18.6 प्रतिशत
(द) 18.7 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 28.3 प्रतिशत

प्रश्न 5.
पैजिया के दक्षिणी भाग को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) लॉरेशिया
(ब) अंगारालैण्ड
(स) गौंडवानालैण्ड
(द) यूरेशिया
उत्तर:
(स) गौंडवानालैण्ड

प्रश्न 6.
पर्वत निर्माण के सम्बन्ध में भूसन्नति सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं-
(अ) कोबर
(ब) होम्स
(स) जैफ्रीज
(द) डेविस
उत्तर:
(अ) कोबर

प्रश्न 7.
नागटीबा व धौलाधर श्रेणी हिमालय के किस भाग में मिलती हैं?
(अ) महा हिमालय में
(ब) लघु हिमालय में
(स) उप-हिमालय में
(द) ट्रांस हिमालय में
उत्तर:
(ब) लघु हिमालय में

प्रश्न 8.
नूतन जलोढ़ का क्षेत्र किसे कहा जाता है?
(अ) भाबर प्रदेश को
(ब) तराई प्रदेश को
(स) बांगर प्रदेश को
(द) खादर प्रदेश को
उत्तर:
(द) खादर प्रदेश को

प्रश्न 9.
बारी दोआब किन-किन नदियों के बीच मिलता है?
(अ) रावी व व्यास
(ब) व्यास व सतलज
(स) सिन्धु व झेलम
(द) झेलम व चिनाब
उत्तर:
(अ) रावी व व्यास

प्रश्न 10.
आकल जीवाश्म पार्क कहाँ स्थित है?
(अ) बाड़मेर में
(ब) पाली में
(स) जैसलमेर में
(द) जोधपुर में
उत्तर:
(स) जैसलमेर में

प्रश्न 11.
पश्चिमी तटीय मैदान के दक्षिणी भाग को कहा जाता है-
(अ) सौराष्ट्र तट
(ब) मालाबार तट
(स) कारोमण्डल तट
(द) उत्तरी सरकार तट
उत्तर:
(ब) मालाबार तट

प्रश्न 12.
निम्न में से प्रवाल निर्मित द्वीप कौन-सा है?
(अ) पोम्बन द्वीप
(ब) पिजन द्वीप
(स) लक्षद्वीप
(द) क्रोकोडाइल द्वीप
उत्तर:
(स) लक्षद्वीप

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए।

(क)

स्तम्भ अस्तम्भ ब
(i) नीलगिरि नाइस(अ) धारवाड़ क्रम की शैल।
(ii) छोटा नागपुर पठारी क्षेत्र(ब) विन्ध्ययन क्रम की शैल
(iii) गोदावरी घाटी(स) आद्यक्रम की शैल
(iv) बलुआ पत्थर(द) कुडप्पा क्रम की शैल

उत्तर:
(i) स (ii) अ (iii) द (iv) ब।

(ख)

स्तम्भ अ
(चोटियाँ)
स्तम्भ ब
(विभाग का नाम)
(i) नंदा देवी(अ) पूर्वी घाट
(ii) पीर पंजाल(ब) उप हिमालय
(iii) मूरिया(स) महा हिमालय
(iv) महेन्द्रगिरि(द) लघु हिमालय

उत्तर:
(i) स (i) द (iii) ब (iv) अ ।

स्तम्भ अ (द्वीप का नाम)स्तम्भ ब
(द्वीप का प्रकार)
(i) शॉर्ट(अ) प्रवाल निर्मित द्वीप
(ii) ऐलीफैण्टा(ब)पर्वतीय द्वीप
(iii) मिनीकॉय(स) पथरीली द्वीप
(iv) निकोबार(द) काँप मिट्टी का द्वीप

उत्तर:
(i) द (ii) स (iii) अ (iv) ब ।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय भूगर्भिक इतिहास को कितने वर्गों में बांटा गया है?
उत्तर:
भारतीय भूगर्भिक इतिहास को चार भागों- आद्य कल्प, पुराण कल्प, द्रविड़ कल्प व आर्य कल्प में विभाजित किया गया है।

प्रश्न 2.
आद्य कल्प को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
आद्य कल्प को दो भागों -आद्यक्रम की शैलों व धारवाड़ क्रम की शैलों के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 3.
आद्यक्रम की शैलों के क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
आद्यक्रम की शैलों के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं- बंगाल नाइस, बुन्देलखण्ड नाइस और नीलगिरि नाइस।

प्रश्न 4.
धारवाड़ क्रम की शैलें किन-किन क्षेत्रों में मिलती हैं?
उत्तर:
धारवाड़ क्रम की शैलें मैसूर-धारवाड़-बेल्लारी क्षेत्र, छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र, राजस्थान के अरावली क्षेत्र, पंजाब व उपहिमालय के कुछ क्षेत्रों में मिलती हैं।

प्रश्न 5.
पुराण कल्प को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
पुराण कल्प की शैलों को दो भागों कुडप्पा क्रम की शैलों व विन्ध्ययन क्रम की शैलों में बाँटा गया है।

प्रश्न 6.
कुडप्पा क्रम की शैले कहाँ-कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
कुडप्पा क्रम की शैलें मुख्यतः कृष्णा व पेन्नार नदियों के मध्य स्थित पर्वतीय श्रेणी कुडप्पा (पापकनी नदी) की घाटी, नल्लामलाई व वेनीकोण्डा पर्वत श्रेणियों, गोदावरी घाटी दिल्ली क्रम व कश्मीर के कई क्षेत्रों में मिलती हैं।

प्रश्न 7.
विन्ध्ययन क्रम की शैलें कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
विन्ध्ययन क्रम की शैलें बिहार के सासाराम एवं रोहतास क्षेत्रों से लेकर अरावली में चित्तौड़गढ़ से होते हुए विन्ध्याचल पर्वतों तक मिलती हैं।

प्रश्न 8.
द्रविड़ कल्प की शैलें कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
द्रविड़ कल्प की शैलें मुख्यत: दामोदर घाटी, महानदी घाटी, गोदावरी घाटी, सतपुड़ा श्रेणी, राजमहल पहाड़ी, कच्छ, काठियावाड़, पश्चिमी राजस्थान, कश्मीर व स्पीति क्षेत्र में मिलती हैं।

प्रश्न 9.
आर्य कल्प का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इस कल्प की शैलों का निर्माण कार्बोनिफैरस युग से प्रारम्भ हुआ जिसके कारण इन शैलों में कार्बनिक पदार्थों के रूप में कोयले, खनिज तेल वे प्राकृतिक गैस की प्रधानता मिलती है। इसी कारण इस काल का अत्यधिक महत्त्व है।

प्रश्न 10.
उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को महा हिमालय, लघु हिमालय एवं उप-हिमालय के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 11.
पैजिया के विभिन्न भागों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पैंजिया के उत्तरी भाग को लारेशिया एवं दक्षिणी भाग को गौंडवानालैण्ड के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 12.
कोबर ने अग्रदेश व मध्य पिण्ड किसे कहा है?
उत्तर:
कोबर ने भूसन्नति के दोनों ओर के दबाव डालने वाले किनारों को अग्रदेश कहा है जबकि इन दोनों अग्रदेशों के बीच वलन-प्रकिया से अप्रभावित रहे क्षेत्र को मध्य पिण्ड कहा है।

प्रश्न 13.
महा हिमालय (वृहत् हिमालय) की प्रमुख चोटियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
महा हिमालय में कंचनजंगा (8598 मी) नंगा पर्वत (8126 मी), मकालू (8481 मी), मनसालू (8156 मी), अन्नपूर्णा (8078 मी) व नंदादेवी (7818 मी) प्रमुख चोटियाँ हैं।

प्रश्न 14.
लघु हिमालय में कौन-कौन से पर्यटन स्थल मिलते हैं?
उत्तर:
लघु हिमालय में मुख्यत: शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, रानीखेत आदि पर्यटन स्थल मिलते हैं।

प्रश्न 15.
बुग्याल व पयार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
लघु हिमालय क्षेत्र में उच्च व निम्न ढालों पर जो वन व घास के मैदान पाये जाते हैं उन्हें उत्तरांचल (उत्तराखंड) में बुग्याल व पयार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 16.
द्वार व दून से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणी में जो बालू से निर्मित कुछ ऊँचे घाटी-मैदान मिलते हैं, उन्हें पूर्व में द्वार तथा पश्चिम में दून कहा जाता है।

प्रश्न 17.
प्रादेशिक आधार पर हिमालय को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
प्रादेशिक आधार पर हिमालय को चार भागों -हिमाचल-हिमालय, कुमाऊँ हिमालय, नेपाल हिमालय व असम हिमालय के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 18.
भौगोलिक आधार पर मैदानी प्रदेश को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भौगोलिक आधार पर मैदानी प्रदेश को चार भागों – भाबर प्रदेश, तराई प्रदेश, बांगर प्रदेश एवं खादर प्रदेश के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 19.
बांगर प्रदेश से क्या तात्पर्य है।
उत्तर:
एक ऐसा मैदानी क्षेत्र जो अपने समीपवर्ती भाग की तुलना से ऊँचा होता है। जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता है। ऐसे प्राचीन तलछट से निर्मित मैदान को बांगर प्रदेश कहते हैं।

प्रश्न 20.
प्रादेशिक आधार पर मैदानी भाग को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
प्रादेशिक आधार पर मैदानी भाग को पंजाब-हरियाणा के मैदान, गंगा के मैदान, ब्रह्मपुत्र के मैदान व गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 21.
दोआब से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी स्थान विशेष में परस्पर मिलने वाली दो नदियों के बीच जो मैदानी भाग पाये जाते हैं, उन्हें दोआब कहते हैं।

प्रश्न 22.
पंजाब व हरियाणा के मैदान के रूप में कौन-कौन से दोआब मिलते हैं?
उत्तर:
पंजाब व हरियाणा के मैदान के रूप में बिस्त दोआब (व्यास व सतलज के बीच), बारी दोआब (रावी व व्यास के बीच), चाज दोआब (चिनाव व झेलम के बीच), रेचना दोआब (रावी व चिनाब के बीच) तथा सिन्धु सागर दोआब (सिन्धु व झेलम के बीच) पाये जाते हैं। वर्तमान में केवल विस्त-बारी दोआब ही भारत में है।

प्रश्न 23.
भूड़ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बांगर प्रदेश अर्थात् उच्च मैदानों के कुछ शुष्क भागों में छोटे-छोटे टीले मिलते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में भूड़ कहते हैं।

प्रश्न 24.
चर व बिल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय जल की डूब में न आने वाली उच्च भूमि को चर तथा निम्न भूमि को बिल कहते हैं।

प्रटन 25.
थार के मरुस्थल में कौन-कौन सी खारे पानी की झीलें मिलती हैं?
उत्तर:
थार के मरुस्थल में लूणकरणसर, डीडवाना, पंचपद्रा, डेगाना, कुचामन, फलौदी, कावोद, परबतसर व सांभर नामक खारे पानी की झीलें मिलती हैं।

प्रश्न 26.
पश्चिमी घाट में कौन-कौन से घाट (दरें) मिलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट में मुख्यतः भोर घाट, थाल घाट व पाल घाट, नामक प्रमुख घाट (दरें) पाये जाते हैं।

प्रश्न 27.
पश्चिमी घाट से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट से निकलने वाली प्रमुख नदियों में गोदावरी, भीमा, कृष्णा, तुंगभद्रा, पेन्नार, कावेरी, ताम्रपर्णी, पेरियार, वैगई, आदि प्रमुख नदियाँ हैं।

प्रश्न 28.
पूर्वी घाट में किन शैलों की प्रधानता मिलती है?
उत्तर:
पूर्वी घाट में शिस्ट, नीस, चनोंकाइट व खौंडलाइट नामक शैलों की प्रधानता मिलती है।

प्रश्न 29.
दक्षिण के पठार को नदियों ने किन छोटे-छोटे पठारी भागों में विभक्त कर दिया है?
उत्तर:
दक्षिण के पठार को नदियों ने छत्तीसगढ़ के पठार, मैसूर के पठार, रायलसीमा के पठार, तेलंगाना के पठार व शिलांग के पठार के रूप में विभक्त किया है।

प्रश्न 30.
लैंगून से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समुद्र के निकटवर्ती भागों में बालू के ढेरों से घिरकर जिन झीलों का निर्माण होता है। ऐसी झीलों को ही लैगून कहा जाता है।

प्रश्न 31.
भारत के द्वीपों को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भारत के द्वीपों को मुख्यतः दो भागों तटीय द्वीप (काँप मिट्टी के द्वीप व पथरीले द्वीप) तथा दूरस्थ द्वीपों (पर्वतीय द्वीप व प्रवाल निर्मित द्वीप) के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 32.
पश्चिमी घाट के प्रमुख दरों के नाम बताइये।
उत्तर:
पश्चिमी घाट में भोर घाट, थाल घाट तथा पाल घाट प्रमुख दरें हैं।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
भूगर्भिक संरचना का क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
भूगर्भिक संरचना किन-किन कारकों को प्रभावित करती है?
उत्तर:
भूगर्भिक संरचना किसी क्षेत्र के उच्चावच व स्थलाकृतिक स्वरूप की नियंत्रक होती है। प्रायः पर्वत, पठार व मैदानों के रूप में मिलने वाले उच्चावचीय स्वरूप भूगर्भिक संरचना के ऊपर ही निर्भर करते हैं। इसके साथ ही भूगर्भिक संरचना किसी क्षेत्र में मिलने वाली मृदाओं की संरचना व संगठन, खनिज संसाधनों, प्राकृतिक वनस्पति, भूमिगत जल संसाधन आदि के स्वरूप को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

प्रश्न 2.
धारवाड़ क्रम की शैलों का निर्माण कैसे हुआ है?
उत्तर:
आद्यक्रम की शैलों के ऊपर धारवाड़ क्रम की शैलें मिलती हैं। कुछ स्थानों पर आद्यक्रम व धारवाड़ क्रम की शैलें पास-पास भी मिलती हैं। आद्यक्रम की शैलों के निर्माण के बाद उनका कायान्तरण एवं अपरदन होता रहा। इस अपरदन की प्रक्रिया से जो तलछट एकत्रित हुआ उस तलछट से शैलों की रचना हुई। ऐसी चट्टानों को ही धारवाड़ क्रम की प्राचीनतम तलछट शैलें माना। गया है। इन शैलों का भी कालान्तर में कायान्तरण हुआ है। इस क्रम की शैलों में धात्विक खनिजों के साथ-साथ संगमरमर के रूप में कायान्तरित शैलें भी पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
कुडप्पा क्रम की शैलों का निर्माण कैसे हुआ है?
उत्तर:
आद्यक्रम व धारवाड़ क्रम की शैलों के अपरदित पदार्थों का निक्षिप्त रूप कालान्तर में परतदार शैलों का रूप धारण करता गया। इनका काफी अंश कायान्तरण की एक लम्बी प्रक्रिया से गुजर चुका है। इस प्रकार के कायान्तरण से निर्मित हुई चट्टानों को ही कुडप्पा क्रम की शैलों के नाम से जाना जाता हैं। ऐसी चट्टानों में मुख्यत: स्लेट, क्वार्टजाइट व चूने के पत्थर के जमाव मिलते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में उच्चावचीय भिन्नता को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में धरातल ऊँचा-नीचा मिलता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत का सम्पूर्ण क्षेत्र एक समान उच्चावच को प्रदर्शित नहीं करता। कहीं ऊँचाई कम तो कहीं पर ज्यादा पाई जाती है। भारत के कुल क्षेत्रफल में से लगभग 33.4 प्रतिशत भाग समुद्रतल से 2 मीटर से भी कम ऊँचा है। देश का 28.3 प्रतिशत भाग 2-5 मीटर ऊँचा है। देश का 18.6 प्रतिशत भाग 5-10 मीटर, 8.7 प्रतिशत भाग 10-20 मीटर तथा 11 प्रतिशत 20 मीटर से भी अधिक ऊँचा है। देश के एक तिहाई भाग का ढाल 5° से भी कम है। जबकि देश के 2 प्रतिशत भाग का ढाल 15° से भी अधिक है। इन सभी तथ्यों से देश की उच्चावचीय विविधता दृष्टिगत होती है।

प्रश्न 5.
हिमालय को वलित पर्वत क्यों कहा जाता है?
अथवा
हिमालय की उत्पत्ति वलित पर्वत के रूप में क्यों हुई है?
उत्तर:
प्राचीन काल में अंगारालैण्ड व गौंडवानालैण्ड के बीच में टेथीज सागर नामक एक भूसन्नति थी। इस भूसन्नति में दोनों ओर से बहकर आने वाली नदियों द्वारा तलछट जमा होती रही। यह तलछट निरन्तर जमने से इसकी मोटाई हजारों फीट हो गई। तत्पश्चात् विभिन्न कारणों से इस तलछट पर दबाव पड़ने से इसमें वलन या मोड़ पड़े जिसके कारण हिमालय की उत्पत्ति हुई। इन वलनों के निर्मित होने के कारण ही हिमालय को एक वलित पर्वत माना जाता है।

प्रश्न 6.
कोबर के पर्वत निर्माण को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोबर ने पर्वत निर्माण हेतु भूसन्नति को आधार माना है। इनके अनुसार भूसन्नति में एकत्रित हुए तलछट पर दोनों ओर से दबाव पड़ने के कारण मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ है। इन्होंने दबाव डालने वाले दोनों ओर के इन प्रदेशों को अग्रदेश कहा था। इन अग्रदेशों के दबाव के कारण इनके तटीय क्षेत्रों में वलन पड़ते हैं जबकि इनका मध्यवर्ती भाग इस वलन से अछूता रहने के कारण समतल उच्च भूमि के रूप में रह जाता है। जिसे कोबर ने मध्य पिण्ड कहा था। इस प्रकार दोनों ओर पर्वतों व बीच में पठारी भागों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 7.
नदियों के हड़पने से क्या तात्पर्य है?
अथवा
नदी अपहरण क्या है?
उत्तर:
हिमालय का एक लघु हिमालय रूपी उपभाग विवर्तनिकी दृष्टिकोण से अन्य भागों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक संतुलित एवं स्थिर हो गया है। जिसके कारण इस उपविभाग में मुख्य नदियों के द्वारा अन्य छोटी नदियों को अपने में मिला लिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण छोटी नदियों द्वारा बड़ी नदियों के साथ मिल जाने का प्रारूप मिलता है। यही प्रवृत्ति नदी हड़पने की प्रक्रिया कहलाती है।

प्रश्न 8.
शिवालिक श्रेणी की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शिवालिक श्रेणी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. शिवालिक श्रेणी में नदियाँ घाटियाँ या गार्ज बनाती हैं।
  2. इस श्रेणी के दक्षिणी भागों में नदियों द्वारा जलोढ़ पंखों निर्माण किया गया है।
  3. शिवालिक श्रेणी के दक्षिण में भाबर व उससे आगे चलकर तराई प्रदेश का निर्माण हुआ है।
  4. शिवालिक श्रेणी वाला भाग वनाच्छादित है।
  5. इस श्रेणी के पूर्व में द्वार व पश्चिम में दून मिलते हैं।
  6. यह हिमालय की नवीनतम रचना है।

प्रश्न 9.
थार के मरुस्थल के प्रसार को रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाए ये हैं?
उत्तर:
थार के मरुस्थल के प्रसार को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गये हैं-

  1. वृक्षों की पट्टियों का अवरोधक रूप में विकास किया गया है ताकि मृदा का अधिक दूरी तक अपरदन न हो।
  2. मरुस्थलीय भाग में अर्द्ध-मरुस्थलीय वनस्पति लगाई गई है।
  3. मरुस्थलीय विस्तार को रोकने हेतु केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) की स्थापना की गई है।
  4. इंदिरा गांधी नहर का विकास करके सिंचित क्षेत्र को बढ़ाया गया है ताकि नमी के द्वारा मृदा अपरदन को कम किया जा सके।
  5. वर्षा के जल को विभिन्न माध्यमों से एकत्रित किया जा रहा है ताकि उनके चारों ओर अधिक समय तक नमी बनी रहे।

प्रश्न 10.
द्वीपों के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में द्वीपों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
भारत में द्वीपों का निम्नलिखित महत्त्व है-

  1. सागरों से घिरा होने के कारण यहाँ की जलवायु सम रहती है।
  2. अपने अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण द्वीप सदैव आकर्षण के केन्द्र होते हैं।
  3. द्वीपों के मुख्य भू-भाग से अलग होने के कारण यहाँ जैविक विविधता रहती है।
  4. व्यापारिक जलयानों को ईंधन, संक्षिप्त विश्राम व संकटकालीन स्थिति में शरण देने में द्वीपों का मुख्य योगदान रहता है।
  5. हिन्द महासागर में भारतीय द्वीपों की विशिष्ट स्थिति होने के कारण इनका सुरक्षात्मक रूप से भी विशिष्ट महत्त्व है।
  6. भारतीय द्वीप हिन्द महासागर में अपना प्रभाव बढ़ाने व नौसैनिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II

प्रश्न 1.
उत्तरी पर्वतीय श्रृंखला की स्थालाकृतिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उत्तरी पर्वतीय प्रदेश की धरातलीय विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के उत्तरी भाग में फैले हुए उत्तरी पर्वतीय प्रदेश की निम्नलिखित स्थलाकृतिक विशेषताएँ मिलती हैं-

  1. यह एक नवीन मोड़दार पर्वत है जिसकी चौड़ाई पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है।
  2. इस पर्वतीय भाग की ऊँचाई पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है।
  3. यह पर्वत श्रृंखला कई श्रेणियों के मिलने से बनी है।
  4. इन पर्वत की श्रेणियों का ढाल भारत की ओर तीव्र जबकि तिब्बत की ओर कम पाया जाता है।
  5. पर्वत चोटियाँ एक दूसरे से काफी दूर स्थित मिलती हैं।
  6. हिमालय का पूर्वी भाग उत्तर प्रदेश व बंगाल से एकदम ऊँचा उठा हुआ है जिसके कारण एवरेस्ट व कंचनजंघा चोटियाँ इस मैदान से दृष्टिगोचर होती हैं।
  7. नंगा पर्वत, बद्रीनाथ, नंदादेवी नामक चोटियाँ मैदानी भाग से दिखाई नहीं देती हैं।

प्रश्न 2.
महा हिमालय की दक्षिणी-पूर्वी एवं उत्तरी-पश्चिमी शाखा कैसे सीमांकित की गई हैं?
अथवा
महा हिमालय के सीमांकन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महा हिमालय हिमालय पर्वत का सबसे उत्तरी भाग है जिसकी दक्षिणी-पूर्वी शाखा भारत की पूर्वी सीमा पर होती हुई म्यांमार तक चली गयी है। गारो, खासी, जयन्तिया, पटकोई, नागा, बुम व लुशाई पहाड़ियाँ इसी का अंग हैं। इन सभी पहाड़ियों के द्वारा भारत की पूर्वी भौगोलिक सीमा बनाई गई है। महा हिमालय की उत्तरी-पश्चिमी शाखा पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर फैली है। सुलेमान, किरथर, हिन्दूकुश व कराकोरम नामक श्रेणियाँ इसी भाग में मिलती हैं। हिमालय की इसी शाखा में खैबर, गोमल, टोची, बोलन नामक दरें भी मिलते हैं। इन दरों के कारण भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्य देशों के साथ सम्पन्न होता है।

प्रश्न 3.
भाबर और तराई प्रदेश की तुलना कीजिए।
अथवा
भाबर व तराई प्रदेश एक-दूसरे से भिन्न हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भाबर प्रदेश व तराई प्रदेश का तुलनात्मक विवरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाबर वे तराई प्रदेश के तुलनात्मक विवरण को अग्र बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया गया है-

क्र.सं.तुलना के आधार परभाबर प्रदेशतराई प्रदेश
1.स्थिति(i) भाबर प्रदेश का विस्तार शिवालिक के पर्वतीय क्षेत्र में सतजल नदी से तीस्ता नदी तक फैला हुआ है।(i) यह प्रदेश भाबर प्रदेश के दक्षिण में फैला हुआ है।
2.जल प्रवाह का स्वरूप(ii) इस प्रदेश में नदियाँ आन्तरिक जल प्रवाह के स्वरूप को दर्शाती हैं(ii) इस प्रदेश में भाबर प्रदेश के अन्दर बहने वाला जल पुनः धरातल पर प्रकट हो जाता है।
3.भौतिक स्वरूप(iii) इसे प्रदेश में चट्टानी संरचना दृष्टिगत होती है।(iii) इस प्रदेश में दलदली स्वरूप देखने को मिलता है।
4.वनस्पति की स्थिति(iv) इस प्रदेश में लम्बी जड़ों वाले वृक्ष पाये जाते हैं।(iv) इस प्रदेश में मुख्यत: घासे यथा कांस व हाथी घोस आदि पायी जाती हैं।

प्रश्न 4.
बांगर प्रदेश व खादर प्रदेश की तुलना कीजिए।
अथवा
बांगर व खादर एक-दूसरे से भिन्न क्यों हैं?
अथवा
बांगर व खादर प्रदेशों की विविधता युक्त स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बांगर व खादर प्रदेश की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर की गई है-

क्र.सं.तुलना के आधार परबांगर प्रदेशखादर प्रदेश
1.तलछट(i) ये प्राचीन तलछट से निर्मित मैदानी भाग है।(i) ये नई तलछट से निर्मित मैदानी भाग है।
2.जल प्रवाहन(ii) इन प्रदेशों में बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है।(ii) इन प्रदेशों में प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुँचता है।
3.उच्चावच की स्थिति(iii) ये प्रदेश अपने समीपवर्ती क्षेत्रों की तुलना में ऊँचे होते हैं।(iii) ये प्रदेश अपने समीपवर्ती क्षेत्रों की तुलना में नीचे होते हैं।
4.मिट्टी(iv) ये पुरातन जलोढ़ के क्षेत्र होते हैं।(iv) ये नूतन जलोढ़ के क्षेत्र होते हैं।
5.क्षेत्र(v) ये प्रदेश उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग व उत्तराखंड में मिलते हैं।(v) ये प्रदेश मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार व पश्चिमी बंगाल में मिलते हैं।

प्रश्न 5.
थार के मरुस्थल की उत्पत्ति को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
थार के मरुस्थल का निर्माण कैसे हुआ ?
अथवा
थार का मरुस्थल एक लम्बी प्रक्रिया का प्रतिफल है। कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
थार का मरुस्थल भारत के पश्चिमी भाग में फैला हुआ है। यह प्राचीन कालीन अवशेष जन्य भौतिक विभाग है। इसकी उत्पत्ति के संदर्भ में विविधता अवश्य मिलती है किन्तु यह एक विशिष्ट क्षेत्र है। कुछ विद्वानों के अनुसार चट्टानों के विघटने से यहाँ की बालू का निर्माण हुआ है। जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार इस मरुस्थलीय क्षेत्र में पहले आर्द्र जलवायु थी किन्तु कालान्तर में यहाँ की शुष्कता बढ़ती गई तथा यह क्षेत्र एक शुष्क मरुस्थल बन गया। भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार पहले यह भाग एक उपजाऊ मैदान था जहाँ बड़ी-बड़ी नदियाँ बहती थीं। किन्तु भूगर्भिक हलचलों द्वारा इस क्षेत्र के ऊपर उठ जाने से इस क्षेत्र का जल प्रवाह गंगा या सिन्धु नदी में मिल गया तथा यहाँ शुष्कता बढ़ने से मरुस्थल का निर्माण हुआ। ला टूश नामक विद्वान के अनुसार इस क्षेत्र में बालू का जमाव दक्षिण-पश्चिमी झंझावातों द्वारा उड़ाकर लाई गयी मृदा के कारण हुआ है।

प्रश्न 6.
थार मे मरुस्थल के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
थार का मरुस्थल भारत के लिए वरदान कैसे सिद्ध हो रहा है?
अथवा
थार का मरुस्थल भारत का एक आर्थिक क्षेत्र बनकर उभर रहा है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
थार के मरुस्थल के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

  1. थार का मरुस्थल ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्म हो जाने के कारण निम्न दाब का केन्द्र बन जाता है। जिससे दक्षिणी-पश्चिमी मानसून (ग्रीष्म कालीन मानसून) को यह आकर्षित करता है।
  2. इस मरुस्थलीय क्षेत्र में मिलने वाले खनिजों; यथा- अभ्रक, जिप्सम, ताँबा, संगमरमर, एस्बेस्टास, रॉक फॉस्फेट, फेल्सपार व खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के विशाल भडारों ने इसे आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बना दिया है।
  3. पाकिस्तान के साथ सीमा की स्थिति इसे सामरिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण बनाती है।
  4. भौतिक विविधता के कारण यह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
  5. यहाँ मिलने वाले कम वर्षा के क्षेत्र पशुपालन क्षेत्रों के रूप में चारागाहों के स्वरूप को दर्शाते हैं।
  6. इस क्षेत्र की मिट्टियाँ उपजाऊ हैं, जो जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में अन्न व अन्य फसलों का भंडार गृह बनती जा रही हैं।

प्रश्न 7.
पश्चिमी घाट व पूर्वी घाट की तुलना कीजिए।
अथवा
भारत का पश्चिमी घाट पूर्वी घाट से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के दक्षिणी भाग के पूर्वी व पश्चिमी पठारी किनारों के रूप में मिलने वाले इन दोनों घाटों की तुलना निम्नानुसार है-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 3

प्रश्न 8.
पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना कीजिए।
अथवा
पूर्वी एवं पश्चिमी तट एक-दूसरे से भिन्न हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी भारतीय भाग की सीमाएँ सागरीय भाग के रूप में मिलती हैं। जो पूर्व एवं पश्चिम में क्रमश: पूर्वी समुद्र तट व पश्चिमी समुद्र तट के रूप में अनेक भिन्नताओं को दर्शाती हैं। इन दोनों तटीय भागों में मिलने वाली भिन्नताएँ निम्नानुसार हैं-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 4

प्रश्न 9.
समुद्र तटीय मैदानों के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में सामुद्रिक तटों का क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
समुद्र तटों की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मिलने वाले पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्र तटीय मैदानों के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

  1. भारत समुद्र तटीय मैदान कृषि कार्य में सहायक हैं। इन उपजाऊ मैदानों में चावल की व्यापक कृषि की जाती है।
  2. समुद्र तटीय भाग नारियल, काजू, सुपारी, रबड़ व ताड़ के बागानों के लिए आदर्श दशा प्रदान करते हैं।
  3. इन तटीयं भागों में मत्स्य पालन का कार्य किया जाता है।
  4. इन समुद्र तटीय भागों में देश के प्रमुख बन्दरगाह स्थित हैं जो आयात-निर्यात के रूप में व्यापार को बढ़ाने में सहायक हैं।
  5. इन तटों से नमक का उत्पादन किया जाता है।
  6. भारत के केरल राज्य में इन्हीं तटीय भागों पर मोनोजाइट नामक महत्त्वपूर्ण आणविक खनिज मिलता है।
  7. इन तटों के सहारे अनेक पर्यटन केन्द्र; यथा- पणजी, मडगाँव, जूहू, चेन्नई, पुरी, वास्कोडिगामा आदि विकसित हुए हैं।

प्रश्न 10.
भारत के तटीय द्वीपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में मिलने वाले तटीय द्वीपों को मुख्यत: दो भागों में बाँटा गया है-

  1. काँप मिट्टी के द्वीप तथा
  2. पथरीले द्वीप।

1. काँप मिट्टी के द्वीप – भारत में ऐसे द्वीप पूर्वी तट पर पाये जाते हैं। यहाँ चिल्का झील के निकट भासरा, मांडला को छोड़कर सभी द्वीप, काँप मिट्टी से बने हैं जिनमें हुगली नदी के मुहाने पर स्थित सागर द्वीप, महानदी-ब्राह्मणी डेल्टा में शार्टद्वीप व मुहाने पर ह्वीलर द्वीप, भारत श्रीलंका के बीच रामसेतू, रामेश्वरम् का पाम्बन द्वीप, मन्नार की खाड़ी में स्थित
क्रोकोडाइल, अंडा व कोटा नामक द्वीप मुख्य हैं।

2. पथरीले द्वीप – ऐसे द्वीप मुख्यत: पश्चिमी तट पर मिलते हैं। जिनमें मुम्बई के निकट हैनरे, कैनरे, बुचर, ऐलीफेंटा, पिजन व काठियावाड़ तट पर पीरम, भैंसला आदि द्वीप इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 11.
भारत के दूरस्थ द्वीपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऐसे द्वीप जो समुद्र तट से काफी दूर स्थित हैं उन्हें दूरस्थ द्वीप कहा जाता है। भारत में मिलने वाले द्वीपों को मुख्यत: दो भागों में बाँटा गया है-

  1. पर्वतीय द्वीप
  2. प्रवाल द्वीप।

1. पर्वतीय द्वीप – इस श्रेणी में उन द्वीपों को शामिल किया गया है जो डूबी हुई पर्वत श्रेणियों के समुद्र तल से ऊपर उठे हुए भागों से बने हैं। बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह इसके उदाहरण हैं। कुछ द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गारों से भी हुई है; यथा- बैरन द्वीप, नारकोण्डम द्वीप आदि। अंडमान द्वीप समूह दस डिग्री जलमार्ग द्वार निकोबार द्वीप
समूह से अलग हुआ है।

2. प्रवाल निर्मित द्वीप-ऐसे द्वीप जिनकी उत्पत्ति प्रवाल (मुंगा) के कारण हुई है उन्हें इस वर्ग में शामिल किया जाता है। प्रवाल निर्मित द्वीप भारत के पश्चिमी भाग में स्थित अरब सागर में मिलते हैं। यथा- लक्षद्वीप समूह (अमीनदीवी, मिनिकाय, कावारत्ती, इलाइची, बत्रा आदि)।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के भूगर्भिक इतिहास को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में कितने भूगर्भिक काल मिलते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय शैलों का कालक्रम भिन्न-भिन्न मिलता है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का भूगर्भिक इतिहास अनेक विविधताओं से युक्त है। हमारे देश में शैलें विभिन्न कल्पों एवं युगों में निर्मित हुई हैं। भारत के भूगर्भिक इतिहास को संरचना, चट्टानों के प्रक्रम व कालानुसार निम्न भागों में बाँटा गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 5

1. आद्यकल्प-भारत के भूगर्भिक इतिहास का यह सबसे प्राचीन काल है। इस काल की शैलों को प्रमुख रूप से निम्न दो भागों में विभक्त किया गया है-

(अ) आद्यक्रम की शैलें
(ब) धारवाड़ क्रम की शैलें।

(अ) आद्यक्रम की शैलें – इस क्रम की शैले अत्यन्त प्राचीन व रवेदार हैं जिनमें जीवावशेषों का अभाव पाया जाता है। इस क्रम की शैलों में बंगाल, बुन्देलखंड व नीलगिरि नाइस को शामिल किया जाता है।
(ब) धारवाड़ क्रम की शैलें – आद्यक्रम की शैलों के ऊपर धारवाड़ क्रम की शैलें पाई जाती हैं। ये शैलें अपरदित पदार्थों के निक्षेप से निर्मित तलछट शैलों से बनी हैं। मैसूर-धारवाड़-बेल्लारी, छोटा नागपुर, अरावली, पंजाब, उपहिमालय क्षेत्र इस प्रकार की चट्टानों के क्षेत्र हैं।

2. पुराण कल्प-आद्यकल्प के पश्चात कालानुसार इस कल्प का क्रम आता है। इस कल्प की शैलों को भी मुख्यत: निम्न दो – भागों में बाँटा गया है
(अ) कुडप्पा क्रम की शैलें
(ब) विन्ध्ययन क्रम की शैलें।

(अ) कुडप्पा क्रम की शैलें – इस प्रकार की शैलों का निर्माण आद्यक्रम व धारवाड़ क्रम की शैलों के अपरदित पदार्थ के निक्षिप्त रूप का कालान्तर में परतदार शैलों में परिवर्तन के कायान्तरण से हुआ है। स्लेट, क्वार्टजाइट व चूना पत्थर ऐसी प्रमुख शैलें हैं। इस क्रम की शैलें मुख्यत: कृष्णा, पेन्नार, पापकनी नदी, नल्लामलाई, वेनकोण्डा, गोदावरी घाटी व दिल्ली क्रम के रूप में मिलती हैं।

(ब) विन्ध्ययन क्रम की शैलें – इस क्रम की शैलें मुख्यत: विन्ध्याचल पर्वत के सहारे स्थित हैं। ये शैलें कुडप्पा क्रम की शैलों के ऊपर मिलती हैं। इनमें बालूका पत्थर, क्वार्टजाइट व चूना पत्थर पाया जाता है। ये बिहार के सासाराम एवं रोहतास से लेकर अरावली में चित्तौड़गढ़ होते हुए विन्ध्याचल पर्वत तक मिलती हैं।

3. द्रविड़ कल्प – इस कल्प में गौंडवाना क्रम की शैलें पाई जाती हैं। इनका विस्तार दामोदर घाटी, महानदी घाटी, गोदावरी घाटी सतपुड़ा श्रेणी, राजमहल पहाड़ी कच्छ, काठियावाड़, पश्चिमी राजस्थान, कश्मीर व स्पीति क्षेत्र में मिलता हैं। इस क्रम की शैलें मुख्यतः दक्षिणी भारत में मिलती हैं।

4. आर्य कल्प – इस कल्प की शैलों का निर्माण कार्बोनिफैरस युग से प्रारम्भ हुआ। अत: इन शैलों का कार्बनिक खनिज अर्थात् कोयला, खनिज तेल व प्राकृतिक गैस की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इस क्रम की शैलें नवीनतम शैलें हैं।

प्रश्न 2.
हिमालय के प्रादेशिक वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हिमालय के क्षेत्रीय वर्णन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय भारत के उत्तरी क्षेत्र में फैला हुआ एक मुख्य भौतिक प्रदेश है। इस भौतिक प्रदेश का विस्तार अनेक प्रदेशों में . फैला हुआ मिलता है। हिमालय के इस प्रादेशिक स्वरूप को मुख्यत: निम्न भागों के रूप में वर्गीकृत किया गया है-

  1. हिमाचल हिमालय
  2. कुमाऊँ हिमालय
  3. नेपाल हिमालय
  4. असम हिमालय।

1. हिमाचल हिमालय – इसका विस्तार सिन्धु नदी से सतलज नदी तक मिलता है। यह भाग 570 किमी की लम्बाई में विस्तृत है जो मुख्यत: जम्मू-कश्मीर व हिमालय प्रदेश में फैला हुआ है। इस प्रादेशिक भाग में पीरपंजाल, धौलाधार, जास्कर, लद्दाख श्रेणियाँ मिलती हैं। इसी में कांगड़ी, लाहुल व स्पीति घाटियाँ मिलती हैं, जिनमें फलों की कृषि की जाती है।

2. कुमाऊँ हिमालय–हिमालय का यह प्रादेशिक भाग 320 किमी की लम्बाई में सतलज नदी से काली नदी तक फैला हुआ है। यह प्रदेश हिमाचल हिमालय से अधिक ऊँचा है। जिसमें बद्रीनाथ (7138 मीटर) केदारनाथ (6831 मीटर) त्रिशूल (6770 मीटर) व गंगोत्री (6580 मीटर) चोटियाँ मिलती हैं। इसी प्रादेशिक विभाग से गंगा, यमुना नदियों का उद्गम होता है। इस प्रादेशिक विभाग में अनेक पर्यटन केन्द्र मिलते हैं। जिनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री प्रमुख हैं।

3. नेपाल हिमालय – हिमालय का यह प्रादेशिक विभाग लगभग 800 किमी में काली नदी से तीस्ता नदी तक फैला हुआ है। इसका अधिकांश भाग नेपाल में होने के कारण इसे नेपाल हिमाचल के नाम से जाना जाता है। इसी प्रदेश को सिक्किम व भूटान हिमालय तथा दार्जिलिंग हिमालय भी कहा जाता है। यह हिमालय का सर्वोच्च भाग है जिसमें एवेरस्ट, कंचनजंघा, मकालू, धौलागिरी व अन्नपूर्णा नामक चोटियाँ मिलती हैं। जो सतत् हिमाच्छादित रहती हैं।

4. असम हिमालय – हिमालय क़ा यह प्रादेशिक विभाग तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। इस प्रदेश की लम्बाई 740 किमी है। काबरू, चमुल हारी, जांग सांगली, कुला कांगड़ी, पौहुनी इस प्रदेश की मुख्य चोटियाँ हैं। यह घना वनाच्छादित क्षेत्र है। जिसमें कई जनजातियाँ निवास करती हैं। इसी क्षेत्र में नागा पहाड़ियाँ भारत व म्यांमार के बीच जल-विभाजक का कार्य करती हैं।

प्रश्न 3.
हिमालय के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हिमालय की भारत में क्या उपयोगिता है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हिमालय भारत के लिए एक सतत प्रहरी व वरदान क्यों सिद्ध हो रहा है?
अथवा
भारत के संदर्भ में हिमालय की प्राकृतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत का भारत में प्राचीन काल से ही महत्त्व रहा है। जिसकी उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए महाकवि कालिदास ने इसे पर्वतों का राजा एवं देवतुल्य व देवताओं का निवास बताया था। वर्तमान में इसके महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से वर्णित किया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 4 भारत संरचना, उच्चावच एवं स्थलाकृतिक प्रदेश 6

(1) प्राकृतिक महत्त्व-हिमालय के प्राकृतिक महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

(अ) यह भारत की उत्तर व पूर्व में प्राकृतिक सीमा बनाता है।
(ब) यह उत्तर से आने वाली ठण्डी ध्रुवीय हवाओं से भारत की रक्षा करता है।
(स) ध्रुवीय हवाओं के रुकने से ही भारत की मौसमी परिस्थितियों में स्थिरता रहती है।
(द) दक्षिण से आने वाली मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा कराने में सहायक है।
(य) हिमालय से अनेक नदियाँ निकलती हैं जिनसें जल की प्राप्ति होती है।

(2) आर्थिक महत्त्व – हिमालय का आर्थिक महत्व अग्र बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है ।

(अ) हिमालय से निकलने वाली नदियों से प्राप्त पानी सिंचाई की आवश्यकता को पूरा करता है।
(ब) इसमें मिलने वाले जल-प्रपातों पर विद्युत उत्पादन किया जाता है।
(स) इससे निकलने वाली नदियाँ उपजाऊ काँप के मैदान बनाती हैं जो कृषि हेतु विशेष उपजाऊ क्षेत्र हैं।
(द) इसमें मिलने वाले वनों से प्राप्त पदार्थ उद्योगों में काम लिये जाते हैं।
(य) पहाड़ी ढालों पर केसर, चाय, आलू व फलों की कृषि के साथ पशुचारण किया जाता है।
(र) अनेक प्रकार के खनिजों के भंडार के कारण इसका आर्थिक महत्त्व बढ़ जाता है।
(ल) पर्वतारोहण के दृष्टिकोण से भी इसका महत्त्व है।
(व) इसमें अनेक पर्यटन केन्द्र विकसित हुए हैं।
यथा- शिमला, मसूरी, नैनीताल, भीमताल, गरुड़ताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, कसौली, चम्बा, कुल्लू, शेषनाग, पहलगाँव, गुलमर्ग, सोनमर्ग जो विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

(3) धार्मिक महत्त्व – हिमालय का भारतीय संस्कृति में प्राचीन कालीन महत्त्व रहा है, जो अभी भी अक्षुण्य बना हुआ है।
यथा
(अ) इसे देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
(ब) इसमें अनेक धार्मिक केन्द्र विकसित हुए हैं। यथा- केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ, कैलाश, मानसरोवरे, विष्णु प्रयाग, देव प्रयाग, कर्ण प्रयाग, हरिद्वार, उत्तरकाशी, जोशीमठ, गंगोत्री, जमुनोत्री (यमुनोत्री) आदि ।
(स) यहाँ बौद्ध धर्म के स्वयंभूनाथ, तबाग, हैमिस, ध्यागबोचे आदि प्रसिद्ध मठ मिलते हैं।
(द) यह नदियों के संगम के कारण सांस्कृतिक स्वरूप का मुख्य केन्द्र बन गया है।

(4) सामरिक महत्त्व – हिमालय का सामरिक महत्त्व निम्नानुसार है-

(अ) यह देश के उत्तर में एक सजग प्रहरी के समान देश की बाहरी आक्रमणों से रक्षा करता है ।
(ब) यहाँ के गठीले शरीर वाले साहसी युवक भारतीय सेना में योगदान करते हैं।
(स) यह प्राकृतिक रूप से अटले सीमाओं का निर्धारण करता है।

(5) जैविक महत्त्व – हिमालय अनेक जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों व विविध प्रकार की वनस्पति का भारत में मुख्य केन्द्र है। इसको जैविक महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होता है
(अ) इसमें अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ, कन्दमूल, फल, गौंद, लाख व औषधियाँ मिलती हैं।
(ब) इसमें अनेक प्रकार के वन्य जीवों के रूप में शेर, चीते, हाथी, सांभर, हिरण, भालू, तेन्दूए व बन्दर मिलते हैं।
(स) इसमें आदिम संस्कृति वाली जनजातियाँ भी मिलती हैं।

प्रश्न 4.
भारत के विशाल मैदानी भाग का प्रादेशिक वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तर के विशाल मैदान का क्षेत्रीय वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
मैदानी भाग में प्रादेशिक आधार पर भिन्नताएँ पाई जाती हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का विशाल मैदानी भाग सतलज नदी से पूर्व की ओर ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तक फैला है। इस विशाल मैदानी भाग को प्रादेशिक आधार पर निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. पंजाब-हरियाणा का मैदान
  2. गंगा का मैदान
  3. बह्मपुत्र का मैदान
  4. गंगा-बह्मपुत्र का डेल्टा।

1. पंजाब-हरियाणा का मैदान – यह मैदानी भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में फैला हुआ है। इस मैदान का उत्तरी-पश्चिमी भाग सिन्धु एवं सहायक नदियों सतलज, व्यास, रावी, चिनाब व झेलम द्वारा जमा की गई काँप मिट्टी के जमाव से बना है। इस मैदानी भाग में दोआब पाये जाते हैं। भारत में व्यास-सतलज के बीच बिस्त व रावी-व्यास के बीच बारी दोआब मिलता है। नदियों के दोनों ओर मिलने वाले बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों को बट व नदियों द्वारा बने गढडों को चो कहा जाता है। इसी के दक्षिण-पूर्व में घग्घर नदी के मैदान को हरियाणा का मैदान कहते हैं।

2. गंगा का मैदान- यह मैदानी भाग समतल उपजाऊ मैदान हैं जो गंगा व उसकी सहायक नदियों यमुना, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, बेतवा, केन, चम्बल, सोन द्वारा निक्षेपित अवसादों से बना है। यह मैदानी क्षेत्र अरावली श्रेणी के पूर्व से पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है। इसका विस्तार पूर्वी राजस्थान, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार व पश्चिम बंगाल में मिलता है। इस मैदानी भाग का ढाल पूर्व तथा दक्षिणी-पूर्व की ओर है। इस मैदानी भाग में मिलने वाले छोटे-छोटे टीलों को भूड़ के नाम से जाना जाता है। इस प्रादेशिक क्षेत्र में रूहेलखण्ड का मैदान, अवध का मैदान, झारखण्ड व बिहार का मैदान और बंगाल का मैदान शामिल है।

3. ब्रह्मपुत्र का मैदान – इसे मुख्यत: असम के मैदान के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय व गारों पहाड़ियों के बीच फैला हुआ है। यह एक संकरा व लम्बा मैदान है जो ब्रह्मपुत्र द्वारा जमा की गई काँप मिट्टी से बना है। यह मैदान धुबरी से सदिया तक 65 किमी लम्बाई व 100 किमी चौड़ाई में फैला हुआ है। ब्रह्मपुत्र के जल में मिट्टी की अधिकता से उत्पन्न अवरोध से द्वीपों का निर्माण हुआ है।

4. गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा – यह एक समतल एवं कम ऊँचाई वाला भाग है जिसमें ज्वार का जल फैल जाता है। इसी कारण यह भाग दलदली रहता है। इसी क्षेत्र में ज्वार के डूब में न आने वाली भूमि को चर तथा डूब में आने वाली निम्न भूमि को बिल कहते हैं।

प्रश्न 5.
भारत के विशाल मैदानी भाग का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
अथवा
विशाल मैदान भारत की रीढ़ की हड्डी के समान है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के मध्यवर्ती भाग में मिलने वाले मैदानी क्षेत्र का भारत के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिसे निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया गया है-

  1. यह काँप मिट्टी से निर्मित होने के कारण एक उपजाऊ मैदान है।
  2. इस मैदानी भाग में नदियों का जाल सा बिछा है जो सिंचाई, जल परिवहन, जल विद्युत उत्पादन तथा उद्योगों हेतु उपयोगी है।
  3. प्रतिवर्ष नवीन मृदा का जमाव इसे कृषि के लिए आदर्श बनाता है।
  4. इस मैदानी भाग में गन्ना, चाय, चावल, गेहूं व कपास की फसलें उत्पादित होने से यह भारतीय फसलों का भंडार गृह है।
  5. यहाँ भारत की लगभग 45% प्रतिशत जनसंख्या रहती है। इसी कारण यह भारत की मानव पेटी है।
  6. इस मैदानी भाग की समतल स्थिति ने इस क्षेत्र को परिवहन मार्गों का एक जाल बना दिया है।
  7. भारत के विशाल नगर, बड़े औद्योगिक एवं व्यापारिक केन्द्र इसी मैदानी भाग में विकसित हुए हैं।
  8. इस मैदान में जीवनोपयोगी सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  9. इस मैदानी भाग में व्यापार की सुविधाओं के साथ-साथ अनेक दर्शनीय स्थल भी मिलते हैं।
  10. अनेक सुविधाओं के कारण इस क्षेत्र में औद्योगिक प्रगति को प्रोत्साहन मिला है।

प्रश्न 6.
दक्षिण के पठार की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
दक्षिण के पठार का भारत के संदर्भ में क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
दक्षिण का पठार भारत का एक प्रमुख आर्थिक लाभ वाला क्षेत्र सिद्ध हो रहा है। कैसे?
उत्तर:
भारत के दक्षिणी भाग में फैले हुए दक्षिणी पठारी क्षेत्र के महत्त्व को निम्नानुसार वर्णित किया गया है-

  1. यह एक प्राचीन भूखण्ड होने के कारण ज्वालामुखी व भूकम्प जैसी आपदाओं के दृष्टिकोण से सुरक्षित क्षेत्र है।
  2. समुद्र से घिरा होने के कारण इसकी जलवायु प्रायः सम मिलती है।
  3. खनिज पदार्थों के जमाव के दृष्टिकोण से यह भारत का सबसे समृद्ध क्षेत्र है।
  4. इस पठारी भाग में मिलने वाली काली मृदा के कारण कपास व मूंगफली की कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
  5. इसमें साल, सागवान, शीशम, चंदन के बहुमूल्य वन मिलते हैं।
  6. इसके लैटेराइट मृदा वाले क्षेत्र चाय, कहवा व रबर की कृषि हेतु उपयुक्त हैं।
  7. कठोर धरातलीय संरचना सड़क मार्गों के निर्माण में सहायक सिद्ध हुई है।
  8. नदियों पर विकसित जल प्रपात जल विद्युत उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए है।
  9. आन्तरिक भागों में मिलने वाले बाँधों, जलाशयों व झीलों में मत्स्य पालन के केन्द्र विकसित हुए हैं।
  10. यहाँ प्राप्त होने वाले कच्चे माल, शक्ति के संसाधनों, बाजार की सुविधा के कारण यहाँ अनेक उद्योगों का विकास हुआ है।

प्रश्न 7.
भारत के समुद्र तटीय मैदानी भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के दक्षिणी पठार के दोनों तरफ तटीय मैदान मिलते हैं। इन दोनों तटीय मैदानों का निर्माण या तो तटवर्ती भागों के समुद्रतल से ऊपर उठ जाने या नदियों द्वारा मिट्टी के जमने से हुआ है। इन तटीय मैदानों को मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. पश्चिमी तटीय मैदान
  2. पूर्वी तटीय मैदान ।

1. पश्चिमी तटीय मैदान – यह खम्भात की खाड़ी से कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इस मैदानी भाग में नदियाँ तीव्रगामी मिलती हैं। इसलिए मिट्टी के जमाव का कार्य नहीं करती हैं। दक्षिणी भाग में लम्बी व संकरी अनूप झीलें मिलती हैं। कोचीन बन्दरगाह ऐसी ही अनूप झील पर स्थित है। मुम्बई व मंगलौर इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं। यह मैदानी भाग उत्तर में चौड़ा है। इस मैदानी भाग के उत्तरी भाग को कोंकण एवं दक्षिणी भाग को मालाबार तट के नाम से जाना जाता है। यह तटीये प्रदेश चावल की उपज के साथ औद्योगिक विकास व व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

2. पूर्वी तटीय मैदान – यह समुद्र तटीय मैदान गंगा नदी के मुहाने से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। यह पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है जो 16-48 किमी की चौड़ाई में फैला हुआ है। देशान्तरीय आधार पर इसे निचले व ऊपरी तटीय मैदान के रूप में विभक्त किया गया है। निचले मैदानी भाग में नदियों के डेल्टाओं की प्रधानता मिलती है। जिसमें नदियों द्वारा पठारी क्षेत्र से लाकर मृदा का जमाव किया है। इन मृदा जमाओं में बालू के ढेर भी मिलते हैं। इन बाल के ढेरों की श्रृंखलाओं के कारण झीलों का निर्माण हुआ है। ऐसी झीलों को लैगून निर्मित झीलों के नाम से जाना जाता है। जिनमें चिल्का व पुलीकट झीलें प्रमुख हैं। ऊपरी भाग में काँप मिट्टी का अवशिष्ट मैदान मिलता है। जो अधिकांशत नदियों की ऊपरी घाटियों में हैं। इस समुद्र तटीय मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तट (गंगा के मुहाने से कृष्णा तक) तथा दक्षिणी भाग को कारोमण्डल तट (कृष्णा डेल्टा से कुमारी अन्तरीप तक) के नाम से जाना जाता है।

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