RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 14 प्रो. जे. के. मेहता के आर्थिक विचार

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Chapter 14 प्रो. जे. के. मेहता के आर्थिक विचार

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रो. मेहता के अनुसार मनुष्य को सच्चा सुख प्राप्त होता है
(अ) आवश्यकताओं को बढ़ाने में
(ब) आवश्यकताओं को स्थिर रखने पर
(स) आवश्यकताओं को न्यूनतम करने में
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) आवश्यकताओं को न्यूनतम करने में

प्रश्न 2.
प्रो. मेहता के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क पूर्ण संतुलन में कब रहता है?
(अ) इच्छा रहित अवस्था में
(ब) कम इच्छाओं की स्थिति में
(स) अधिक इच्छाओं की स्थिति में
(द) कुछ इच्छाओं की पूर्ति में
उत्तर:
(अ) इच्छा रहित अवस्था में

प्रश्न 3.
प्रो. मेहता के अनुसार आर्थिक समस्या कौन-सी है?
(अ) चुनाव की समस्या
(ब) आवश्यकताओं को न्यूनतम करने की
(स) आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधन जुटाने की
(द) धन वृद्धि की
उत्तर:
(ब) आवश्यकताओं को न्यूनतम करने की

प्रश्न 4.
प्रो. मेहता के अनुसार एक इकाई के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
(अ) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(ब) समष्टि अर्थशास्त्र में
(स) कल्याणवादी अर्थशास्त्र में
(द) विकासात्मक अर्थशास्त्र में
उत्तर:
(अ) व्यष्टि अर्थशास्त्र में

प्रश्न 5.
प्रो. मेहता के अनुसार अर्थशास्त्र का जो अध्ययन समयाबिन्दु के स्थान पर समय अवधि से संबंधित है, उसे कहा जाता है
(अ) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(ब) कल्याणकारी अर्थशास्त्र
(स) समष्टि अर्थशास्त्र
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 6.
प्रो. मेहता के अनुसार उपयोगिता में निम्न में से कौन-सा गुण नहीं पाया जाता है?
(अ) उपयोगिता एक भाववाचक पदार्थ है
(ब) उपयोगिता स्थिर नहीं रहती है
(स) मुद्रा द्वारा मापनीय है
(द) उपयोगिता अमापनीय है
उत्तर:
(द) उपयोगिता अमापनीय है

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रो. मेहता के अनुसार समस्त दुःखों का मूल कारण क्या है?
उत्तर:
मनुष्य की आवश्यकताएँ।

प्रश्न 2.
प्रो. मेहता के अनुसार चेतन आवश्यकताओं का अर्थ बताइए।
उत्तर:
सुख की प्राप्ति हेतु आवश्यकता के विद्यमान रहने या उसके संतुष्ट न कर पाने की स्थिति में दुख की अनुभूति होती है जो कि मस्तिष्क की चेतना का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
प्रो. मेहता के अनुसार करों का निर्धारण किस प्रकार होना चाहिए?
उत्तर:
त्याग की मात्रा के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 4.
प्रो. मेहता के अनुसार अर्थशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य बताइए।
उत्तर:
सीमित साधनों से असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करना।

प्रश्न 5.
प्रो. मेहता के अनुसार कौन-सी आवश्यकताओं के संतुष्ट नहीं होने पर दुःख की अनुभूति नहीं होती है?
उत्तर:
एक व्यक्ति जिसने न कभी किसी वस्तु के विषय में सुना है न कभी देखा है उसकी पूर्ति न होने पर दुख की अनुभूति नहीं होती है।

प्रश्न 6.
प्रो. मेहता के अनुसार कल्याण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
मनुष्य का कल्याण दिए हुए समय पर संतुष्टि की मात्रा से है।

प्रश्न 7.
प्रो. मेहता के अनुसार लगान का अर्थ बताइए।
उत्तर:
लगान एक लागत के ऊपर अतिरेक है।

प्रश्न 8.
प्रो. मेहता के अनुसार ब्याज कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर:
सीमान्त उत्पादकता द्वारा।

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रो. मेहता की आवश्यकता विहीनता दृष्टिकोण की प्रमुख बातें बताइए।
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार आवश्यकताएँ अनन्त हैं, असीमित हैं और इनमें से कोई एक आवश्यकता की पूर्ति के बाद तत्काल ही दूसरी आवश्यकता जन्म ले लेती है। वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन व उपभोग में आवश्यकता विहीनता के आदर्शानुसार परिवर्तन किया जा सकता है। इस स्थिति का आशय है कि वे सभी कार्य जो कि आवश्यक हैं स्वार्थरहित उद्देश्य से करने हैं।

प्रश्न 2.
प्रो. मेहता की आवश्यकता विहीनता की स्थिति को गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में समझाइए।
उत्तर:
प्रो. जे. के. मेहता ने आवश्यकता विहीनता को गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के परिप्रेक्ष्य में भी प्रस्तुत किया है तथा इसे समस्त समस्याओं का अन्त माना है। प्रो. मेहता के शब्दों में यदि हम सभी प्रसन्नता के सही कार्य का अनुसरण कर लें तो सभी कार्य समाप्त नहीं होंगे। निर्धनों के कल्याण हेतु धनी वर्ग पर कर लगाने की आवश्यकता नहीं होगी। गाँधीजी की इच्छा थी कि धनी व्यक्ति इतना अधिक करें कि इसका उपभोग स्वयं के साथ गरीबों के लिए भी हो सके।

प्रश्न 3.
मेहता के अनुसार धनी व निर्धन की आवश्यकताओं में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मेहता के अनुसार धनी व निर्धन की आवश्यकताओं में अन्तर:

धनी आवश्यकताएँनिर्धन आवश्यकताएँ
1. धनी व्यक्ति की आवश्यकताएँ अधिक होती हैं।1. इनकी आवश्यकताएँ धनी व्यक्ति की तुलना में बहुत कम होती हैं।
2. धनी व्यक्ति की आय बहुत अधिक होती है।2. जबकि निर्धन व्यक्ति की आय बहुत न्यूनतम होती है।
3. धनी व्यक्ति की समस्त आवश्यकताएं पूरी होती हैं।3. निर्धन व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।
4. कर भार धनी व्यक्ति पर अधिक होता है।4. निर्धन व्यक्ति पर कोई कर भार नहीं होता है।

प्रश्न 4.
प्रो. मेहता के अनुसार विशुद्ध एवं व्यावहारिक अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. विशुद्ध विज्ञान के अन्तर्गत हम सामान्य सिद्धान्त का अध्ययन करते हैं जबकि व्यावहारिक विज्ञान के अन्तर्गत दिए हुए ढांचे में उपर्युक्त सिद्धान्तों का परीक्षण करते हैं।
  2. विशुद्ध अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशुद्ध कल्याण के क्षेत्र में अधिक होते हैं। जबकि व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम संसार के क्षेत्र में होते हैं।
  3. विशुद्ध अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सिद्धान्त शामिल किए जाते हैं जबकि व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नियम शामिल किए जाते हैं।

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रो. मेहता के आवश्यकता विहीनता दृष्टिकोण की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रो. मेहता ने आवश्यकता विहीनता के सिद्धान्त में मनुष्य की आवश्यकता को अनन्त माना है जिसमें एक आवश्यकता की पूर्ति होने पर दूसरी आवश्यकता तुरन्त जन्म ले लेती है। यह अचेतन आवश्यकताओं की होने की स्थिति है। एक व्यक्ति जिसने न कभी किसी के विषय में सुना, न कभी देखा है तो निश्चय की उसके देखने की चेतना आवश्यकता नहीं होगी। न ही उसके मन में दुःख की अनुभूति होगी। अर्थात् मेहता द्वारा दिए गए आवश्यकता विहीन सिद्धान्त इस अचेतन आवश्यकता पर लागू नहीं होता है। मनुष्य की आवश्यकताएँ उसकी आय के साथ बढ़ती हैं। एक धनी व्यक्ति की आवश्यकताएँ एक निर्धन व्यक्ति की आवश्यकताओं से अधिक होंगी। अर्थात् निर्धन व्यक्ति अपनी एक आवश्यकता की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधनों की खोज करता है तथा उसकी पूर्ति के पश्चात् उसी में ही आनन्द की अनुभूति प्राप्त करता है। मेहता का आवश्यकता विहीन सिद्धान्त पूरी तरह हर क्षेत्र में लागू नहीं होता है। यह केवल व्यक्ति की आवश्यक वस्तुओं के लिए ही लागू होता है।

प्रश्न 2.
प्रो. मेहता द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा को बताइए तथा उनके द्वारा प्रस्तुत आवश्यकता विहीनता दृष्टिकोण को समझाइए।
उत्तर:
प्रो. मेहता ने महात्मा गाँधी के सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए अर्थशास्त्र की परिभाषा दी है। मेहता ने यह बताया है कि आवश्यकता को न्यूनतम करना ही आर्थिक समस्या है। मेहता के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा निम्न प्रकार है “अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो उस मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जो कि आवश्यकता विहीनता के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रयत्न करता है।”

आवश्यकता विहीनता का दृष्टिकोण :
आवश्यकता अनन्त है, असीमित है और जैसे ही एक आवश्यकता की पूर्ति की जाती है। तत्काल ही दूसरी आवश्यकता जन्म ले लेती है। अत: मेहता ने भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ “संतोष परम सुखम्” का अनुसरण करते हुए आवश्यकता विहीनता को अन्तिम ध्येय माना है। संतोष की स्थिति को ही मेहता ने अर्थशास्त्र में आवश्यकता विहीनता की स्थिति माना है। प्रो. मेहता की आवश्यकता विहीनता की स्थिति क्रियाहीनता की स्थिति नहीं है। उन्हीं के शब्दों में आवश्यक विहीनता का आशय क्रिया विहीनता कदापि नहीं है। जब एक आवश्यकता विहीनता की नीति का अनुसरण करते हैं तो आर्थिक क्रियागाँ कक नहीं जाती हैं। वप्न एवं सेवा यों का उत्पादन एवं उपभोग में माना यस्ता विहीरता के आदर्शानुसार परिवर्तन किया जा सकता है।

इस स्थिति का आशय यह नहीं है कि हम खाना-पीना बन्द कर दें और न ही आय अर्जन नहीं करने से है। ये सभी कार्य जो कि आवश्यक हैं, स्वार्थहीन उद्देश्य से करने हैं। प्रो. मेहता ने आवश्यकता विहीनता को गाँधीजी ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में भी प्रस्तुत किया है। तभी इन समस्त समस्याओं का अन्त माना है।

प्रश्न 3.
प्रो. मेहता के अनुसार चेतन तथा अचेतन आवश्यकताओं को समझाइये।
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार जब एक आवश्यकता की पूर्ति की जाती है तो निश्चित ही संतुष्टि की प्राप्ति होती है। यह सुख या संतुष्टि की प्राप्ति दुःख निवारण की प्रक्रिया के रूप में होती है। यह इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि आवश्यकता के विद्यमान रहने या उसकी संतुष्ट न कर पाने की स्थिति में दुःख की अनुभूति होती है जो कि मस्तिष्क की चेतना का प्रतीक है। मेहता के अनुसार यह चेतन आवश्यकता है।

प्रो. मेहता के अनुसार कुछ आवश्यकताएँ ऐसी होती हैं जिनके अभाव की हमें अनुभूति होती है परन्तु दुःख का निवारण नहीं होता है। दुःख का निवारण इसलिए नहीं होता क्योंकि ये मस्तिष्क की चेतन अवस्था में विद्यमान ही नहीं होती हैं। यह चेतन को पूरा करने पर अस्तित्व में आती है। मेहता के अनुसार आवश्यकताओं की पूर्ति सुखदायक है एक व्यक्ति जिसने न कभी चेतना के विषय सुना, न कभी देखा है तो निश्चय की उसकी उसे देखने की चेतना आवश्यकता नहीं होगी न ही इसके अभाव में दुःख की अनुभूति होगी। लेकिन फिर भी यदि वह चेतना देखता है तो निश्चय ही आनन्दित होगा। इस प्रकार चेतन आवश्यकता की पूर्ति धनात्मक योगदान प्रदान करेगी लेकिन एक बार अचेतन आवश्यकता की सन्तुष्टि हो जाने के बाद पुन: वह चेतन आवश्यकता के रूप में हमारे समक्ष आ जाती है।

प्रश्न 4.
प्रो. मेहता के विशुद्ध एवं व्यावहारिक अर्थशास्त्र संबंधी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रो. मेहता ने अर्थशास्त्र को विशुद्ध व व्यावहारिक अर्थशास्त्र के रूप में प्रस्तुत किया है। मेहता के शब्दों में यह कहना उचित होगा कि विशुद्ध विज्ञान के अन्तर्गत हम सामान्य सिद्धान्त का अध्ययन करते हैं। जबकि व्यावहारिक विज्ञान के अन्तर्गत दिए हुए ढांचे में उपर्युक्त सिद्धान्तों का परीक्षण करते हैं। चूँकि अर्थशास्त्र में विषयवस्तु मानव व्यवहार का अध्ययन है इसलिए विशुद्ध अर्थशास्त्र इस व्यवहार से शासित सिद्धान्तों का अध्ययन करता है। यह विशुद्ध अर्थशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन “साधनों में सीमितता’ की निश्चित दृष्टिकोण के अन्तर्गत करता है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र में हम देखते हैं कि ये सिद्धान्त मानव क्रियाओं के विशिष्ट क्षेत्र में किस प्रकार लागू रहते हैं।

मेहता के अनुसार विशुद्ध अर्थशास्त्र के अन्तर्गत कल्याण के क्षेत्र में अधिक होते हैं जबकि व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम संसार के क्षेत्र में होते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि विशुद्ध अर्थशास्त्र के अन्तर्गत मस्तिष्क अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र का अध्ययन अन्तिम ध्येय की प्राप्ति है और होना चाहिए। यह सामान्य सिद्धान्तों का प्रयोग करता है तथा यह देखता है कि किस प्रकार निश्चित व्यावहारिक क्षेत्र के अन्तर्गत कार्य करते हैं। प्रो. मेहता ने आवश्यकता विहीनता की प्राप्ति को अन्तिम ध्येय बताया है। प्रो. मेहता के विशुद्ध एवं व्यावहारिक अर्थशास्त्र के मध्य अन्तर और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि विशुद्ध अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सिद्धान्त शामिल किए जा सकते हैं तथा व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नियम शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 5.
प्रो. मेहता के व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र संबंधी विचारों को बताइए।
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार एक समाज के अन्तर्गत बहुत सी इकाइयां समाहित हैं। अर्थशास्त्र विज्ञान इन इकाइयों के व्यवहार से जुड़ा है। मेहता के मत में तकनीकी भाषा में अर्थशास्त्र के अन्तर्गत उपभोग व उत्पादन के नियम समाहित हैं। यदि एक अर्थशास्त्री को व्यक्ति के व्यवहार का पूर्ण ज्ञान है तथा वातावरण के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी है तो निश्चय ही वह यह बता सकता है कि वह कितना कार्य करेगा, कितनी मात्रा में उत्पादन करेगा, कितनी मात्रा में बेचेगा, कितनी मात्रा में खरीदेगा, कितनी मात्रा में बचत करेगा और कितनी मात्रा में उपभोग करेगा आदि।

उपर्युक्त विवरण के अन्तर्गत प्रस्तुत एक इकाई के व्यवहार का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र है। इसे व्यष्टि या सूक्ष्म अर्थशास्त्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी एक विशिष्ट इकाई सभी कार्यों को मिलाकर एक साथ रखने पर सापेक्ष रूप में बहुत छोटी होती है। यह हमें उस स्थिति की जानकारी प्रदान करती है। जिसमें एक इकाई संतुलन की स्थिति में होती है। समस्त इकाइयों का एक साथ अध्ययन व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में न होकर समष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है। प्रो. मेहता के अनुसार व्यक्ति समाज में रहता है। अतः अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन की उपेक्षा नहीं कर सकता उसे एक का नहीं वरन् समस्त व्यक्तियों का अध्ययन करना चाहिए।

प्रश्न 6.
प्रो. मेहता के लाभ, ब्याज एवं लगान संबंधी विचारों को लिखिए।
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार व्यक्तियों का समूह ही समाज है अत: सामाजिक कल्याण निश्चय ही व्यक्तिगत कल्याण से सम्बन्धित है। सामाजिक कल्याण की एक मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक अवधारणा होने के कारण उसका कोई वस्तु परख माप तो नहीं किया जा सकता है लेकिन हम एक स्थिति के अन्तर्गत सामाजिक कल्याण की तुलना दूसरी स्थिति से कर सकते है।

लाभ :
प्रो. मेहता के अनुसार लाभ, साहसी के जोखिम वहन करने के बदले में प्राप्त होने वाला प्रतिफल है। यह प्रावैगिक स्थिति में ही प्राप्त होता है। लाभ जोखिम वहन करने के प्रतिफल में या असामान्य या अप्रत्याशित प्राप्ति के रूप में प्राप्त होता है। प्रावैगिक स्थिति में प्राप्त लाभ सदैव अनिश्चित व अप्रत्याशित होता है।

ब्याज :
प्रो. मेहता ने ब्याज को पूंजी के अर्जन के रूप में परिभाषित किया है जो कि सीमान्त उत्पादकता के द्वारा निर्धारित होती है। पूंजी की आय का निर्धारण उपयोग में पूंजी के अंतिम इकाई की उत्पादकता से होता है। पूंजी की पूर्ति उपलब्ध पूर्ति द्वारा होती है। उपलब्ध पूंजी निर्माण की लागत द्वारा होती है या प्रत्यक्ष की लागत द्वारा होती है।

लगान :
प्रो. मेहता ने लगान को आय नहीं माना है। उनके अनुसार लगान लागत के ऊपर एक अतिरेक है। मेहता की दृष्टि में जब एक उत्पादन का अध्ययन केवल एक ही विशिष्ट उपयोग में लाया जाता है तो उसको समस्त आय प्रकृति एक अतिरेक ही है। उनके अनुसार यह असंभव है कि कोई साधन निरपेक्ष रूप में केवल एक ही विशिष्ट रूप में प्रयुक्त होता है। जिस साधन की विशिष्टता का गुण जितना होगा उस साधन में उतना ही अधिक लगान प्राप्त होगा।

प्रश्न 7.
प्रो. मेहता के सार्वजनिक वित्त संबंधी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रो. मेहता ने सार्वजनिक वित्त की परिभाषा के साथ इसके प्रत्येक अंग के विचार प्रस्तुत किए हैं। सार्वजनिक वित्त पर प्रो. मेहता के विचारों को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है :

  • सार्वजनिक वित्त की परिभाषा :
    मेहता ने स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक शब्द का आशय राज्य से है। यह राज्य के वित्तीय संसाधनों व इसके उपभोग का अध्ययन करता है।
  • सार्वजनिक आय :
  • प्रो. मेहता के अनुसार आय साधन है तथा सार्वजनिक व्यय साध्य है। सार्वजनिक व्यय हेतु सार्वजनिक आय प्राप्त की जाती है। प्रो. मेहता ने सार्वजनिक आय को चार भागों में बाँटा है
    1. कर
    2. शुल्क
    3. ड्यूटी
    4. विविध स्रोत
  • सार्वजनिक व्यय :
    मेहता के अनुसार सार्वजनिक व्यय का सार्वजनिक वित्त में वह स्थान है जो अर्थशास्त्र के अध्ययन में उपभोग का है। यह राज्य द्वारा समाज को समर्पित सेवाओं के रूप में एक साधन है। प्रो. मेहता ने सार्वजनिक व्यय को नवीन रूप में दो भागों में विभाजित किया है
    1. स्थिर व्यय
    2. परिवर्तनशील व्यय
  • सार्वजनिक ऋण :
    मेहता के अनुसार जब व्यक्ति मुद्रा उधार लेना प्रारम्भ करता है तो वह उसकी आदत बन जाती है। वह अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखे बिना ऐसा करता है यही काम राज्यों के संदर्भ में भी व्याप्त रहता है।

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रो. मेहता का जन्म कब हुआ?
(अ) 1905
(ब) 1910
(स) 1901
(द) 1915
उत्तर:
(स) 1901

प्रश्न 2.
प्रो. मेहता का जन्म कहाँ हुआ?
(अ) मुंबई
(ब) मद्रास
(स) उत्तर प्रदेश
(द) बिहार
उत्तर:
(अ) मुंबई

प्रश्न 3.
आवश्यकता विहीनता का सिद्धान्त दिया
(अ) स्मिथ ने
(ब) कीन्स ने
(स) मेहता ने
(द) दीनदयाल उपाध्याय ने
उत्तर:
(स) मेहता ने

प्रश्न 4.
मेहता ने आवश्यकता विहीनता को बताया
(अ) अन्तिम ध्येय
(ब) प्राथमिक ध्येय
(स) मध्यम ध्येय
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अन्तिम ध्येय

प्रश्न 5.
व्यक्ति का वास्तविक सुख है
(अ) आवश्यकताओं को बढ़ाने में
(ब) आवश्यकताओं को कम करने में
(स) आवश्यकताओं को शून्य करने में
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(ब) आवश्यकताओं को कम करने में

प्रश्न 6.
लागत के ऊपर अतिरेक कहलाता है
(अ) ब्याज
(ब) लगान
(स) व्यय
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(ब) लगान

प्रश्न 7.
साहसी को जोखिम वहन करने के बदले प्राप्त प्रतिफल कहलाता है
(अ) लगान
(ब) ब्याज
(स) लाभ
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) लाभ

प्रश्न 8.
सार्वजनिक आय को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया है?
(अ) दो
(ब) चार
(स) पाँच
(द) एक
उत्तर:
(ब) चार

प्रश्न 9.
सार्वजनिक आय के भाग हैं
(अ) कर
(ब) शुल्क
(स) ड्युटीज
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

प्रश्न 10.
उपयोगिता का क्रमवाचक दृष्टिकोण दिया
(अ) हिक्स व ऐलन ने
(ब) मार्शल
(स) कीन्स
(द) जे. बी. से
उत्तर:
(अ) हिक्स व ऐलन ने

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पब्लिक फाइनेंस के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
जे. के. मेहता।

प्रश्न 2.
भारतीय सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र का प्रवर्तक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जे. के. मेहता को।

प्रश्न 3.
प्रो. मेहता के विचार किन परम्पराओं पर आधारित हैं?
उत्तर:
भारतीय परम्पराओं पर।

प्रश्न 4.
मेहता के विचार किन देशों के अर्थशास्त्रियों से भिन्न हैं?
उत्तर:
पाश्चात्य देशों के अर्थशास्त्रियों से।

प्रश्न 5.
जे. के. मेहता का जन्म कहां हुआ?
उत्तर:
मुंबई के राजनंद गाँव में।

प्रश्न 6.
जे. के. मेहता का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
जमशेद केर खुशरो मेहता।

प्रश्न 7.
सन्तुलन की प्राप्ति हेतु कितने मार्ग हैं?
उत्तर:
दो।

प्रश्न 8.
प्रो. मेहता ने गांधीजी के किस विचार का पालन करते हुए अर्थशास्त्र की परिभाषा दी?
उत्तर:
सादा जीवन उच्च विचार’।

प्रश्न 9.
प्रो. रॉबिन्स ने किस समस्या को आर्थिक समस्या बताया था?
उत्तर:
चुनाव की समस्या को।

प्रश्न 10.
संतुष्टि की प्राप्ति कब होती है?
उत्तर:
आवश्यकता की पूर्ति होने पर।

प्रश्न 11.
दुःख की अनुभूति किसकी चेतना का प्रतीक है?
उत्तर:
मस्तिष्क की चेतना का।

प्रश्न 12.
धनी व्यक्ति की आवश्यकता कैसी होती हैं?
उत्तर:
आवश्यकताएँ अधिक होती हैं।

प्रश्न 13.
मेहता के अनुसार एक निर्धन की आवश्यकताएँ धनी व्यक्ति की तुलना में कैसी होती हैं?
उत्तर:
कम होती हैं।

प्रश्न 14.
कर भार किस पर अधिक होना चाहिए?
उत्तर:
धनी व्यक्ति पर।

प्रश्न 15.
मेहता के अनुसार दुःख का कारण क्या है?
उत्तर:
आवश्यकताओं का निरन्तर उत्पन्न होना।

प्रश्न 16.
मनुष्य को दुःख कब नहीं होगा?
उत्तर:
आवश्यकताएँ शून्य होने पर।

प्रश्न 17.
विशुद्ध विज्ञान के अन्तर्गत हम किसका अध्ययन करते हैं?
उत्तर:
सामान्य सिद्धान्तों का।।

प्रश्न 18.
व्यावहारिक विज्ञान के अन्तर्गत किसका अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
सिद्धान्त के परीक्षण का।

प्रश्न 19.
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु में किस का अध्ययन करते हैं?
उत्तर:
मानव व्यवहार का।

प्रश्न 20.
व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम किस क्षेत्र में होते हैं?
उत्तर:
संसार के क्षेत्र में।

प्रश्न 21.
प्रो. मेहता के अनुसार कल्याण का अर्थशास्त्र वस्तुतः किसके कल्याण का अर्थशास्त्र है?
उत्तर:
सामाजिक कल्याण का अर्थशास्त्र है।

प्रश्न 22.
प्रावैगिक अर्थशास्त्र किससे संबंधित होता
उत्तर:
समय अवधि से।

प्रश्न 23.
स्थैतिक अर्थशास्त्र किससे संबंधित है?
उत्तर:
समय बिंदु के अध्ययन से।

प्रश्न 24.
उपयोगिता कैसा पदार्थ है?
उत्तर:
भाववाचक पदार्थ है।

प्रश्न 25.
उपयोगिता का गणनावाचक दृष्टिकोण किसका था?
उत्तर:
मार्शल का।

प्रश्न 26
उपयोगिता का क्रमवाचक दृष्टिकोण किसने दिया?
उत्तर:
हिक्स व ऐलन ने।

प्रश्न 27.
प्रो. मेहता की किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. Public Finance
  2. Economics of Growth

प्रश्न 28.
प्रो. मेहता ने अर्थशास्त्र की परिभाषा की व्याख्या का आधार क्या बनाया?
उत्तर:
मेहता ने भारतीय दर्शन एवं साधु-संन्यासियों तथा युग पुरुषों के विचारों को अर्थशास्त्र की परिभाषा की व्याख्या का आधार बनाया है।

प्रश्न 29.
मनुष्य का सच्चा सुख किसमें है?
उत्तर:
मनुष्य का सच्चा सुख अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम करने में है।

प्रश्न 30.
मनुष्य के ऊपर किन शक्तियों का प्रभाव पड़ता है?
“उत्तर:
मनुष्य के ऊपर बाह्य शक्तियों का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 31.
संतुलन स्थिति की प्राप्ति का प्रथम मार्ग क्या है?
उत्तर:
प्रथम मार्ग के अन्तर्गत मस्तिष्क की इच्छानुसार वातावरण परिवर्तित किया जाए।

प्रश्न 32.
संतुलन की स्थिति का दूसरा मार्ग क्या है?
उत्तर:
द्वितीय मार्ग के अनुसार मस्तिष्क को इस प्रकार ढाला जाए कि वह वातावरण से व्याकुल हीन हो।

प्रश्न 33.
जब व्यक्ति की आवश्यकताओं या इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती तो क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब आवश्यकताओं या इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति को पीड़ा का अनुभव होता है।

प्रश्न 34.
प्रावैगिक अर्थशास्त्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्रारम्भिक समंक में कोई परिवर्तन नहीं होता, समायोजनों की प्रक्रिया द्वारा अन्तिम स्थिति प्राप्त की जा सकती है और यदि हम यह चाहते तो ऐसा मार्ग अपना सकते हैं जिसके द्वारा पूर्ण संतुलन प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 35.
विकासात्मक अर्थशास्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
विकासात्मक अर्थशास्त्र के अंतर्गत एक दी हुई अवधि में उत्तरोत्तर प्राप्त होने वाली संतुलन की स्थिति का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 36.
लगान से क्या आशय है?
उत्तर:
लगान लागत के ऊपर एक अतिरेक है। जब एक उत्पादन का साधन केवल एक ही विशिष्ट उपयोग में लाया जाता है तो उसको समस्त आय प्रकृति से एक अतिरेक ही है।

प्रश्न 37.
प्रो. मेहता के अनुसार लाभ से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार लाभ साहसी के जोखिम वहन करने के बदले में प्राप्त होने वाला प्रतिफल है।

प्रश्न 38.
सार्वजनिक आय के चार भाग कौन-से
उत्तर:

  1. कर
  2. शुल्क
  3. ड्यूटीज
  4. विविध स्रोत-उपहार, दंड।

प्रश्न 39.
परिवर्तनशील व्यय से क्या आशय है?
उत्तर:
यह वह व्यय है जो व्यक्तियों द्वारा सेवा का उपभोग द्वारा प्रभावित व निर्धारित होता है।

प्रश्न 40.
संतुष्टि को किसके द्वारा मापा जा सकता
उत्तर:
संतुष्टि को मुद्रा द्वारा मापा जा सकता है।

प्रश्न 41.
क्या आवश्यकता विहीनता की स्थिति क्रियाहीनता की स्थिति है?
उत्तर:
आवश्यकता विहीनता की स्थिति क्रियाहीनता की स्थिति नहीं है।

प्रश्न 42.
मेहता के अनुसार आवश्यकताएँ कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
दो प्रकार की :

  1. चेतन
  2. अचेतन।

प्रश्न 43.
चेतन आवश्यकता किसे कहते है?
उत्तर:
जिन आवश्यकताओं के विद्यमान रहने या संतुष्ट न होने पर दुःख की अनुभूति होती है, उन्हें चेतन आवश्यकताएँ कहते हैं।

प्रश्न 44.
अचेतन आवश्यकता किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी आवश्यकताएँ जिनकी वर्तमान में हमें अनुभूति होती है परंतु दुःख का निवारण नहीं होता, उन्हें ही अचेतन आवश्यकता कहते हैं।

प्रश्न 45.
जे. के. मेहता ने किनसे सम्बन्धित विचार-दिए?
उत्तर:
जे. के. मेहता ने अर्थशास्त्र की परिभाषा, प्रतिनिधि फर्म, व्यष्टि एवं समष्टि, अर्थशास्त्र, राजस्व, अर्थशास्त्र के विकास आदि से सम्बन्धित विचार दिए, जिनके कारण उनकी गिनती प्रमुख अर्थशास्त्रियों में की जाती है।

प्रश्न 46.
मेहता द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
“अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो उस मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जो कि आवश्यकता विहीनता स्थिति के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रयत्न करता है।”

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जे. के. मेहता द्वारा लिखित पुस्तकों के नाम बताइए।
उत्तर:
मेहता द्वारा लिखित पुस्तकें निम्न हैं :

  1. Ground Work of Economics
  2. Public Finance
  3. Economics of Growth
  4. Studies in Advanced Economic Theory
  5. Principles of Exchange
  6. Foundations of Economics
  7. Macro Economics

प्रश्न 2.
चेतन व अचेतन आवश्यकताओं से क्या आशय है?
उत्तर:
जिन आवश्यकताओं के विद्यमान रहने या संतुष्ट न होने पर दुःख की अनुभूति होती है, उन्हें चेतन आवश्यकताएँ कहते हैं। कुछ आवश्यकताएँ ऐसी होती हैं जिनकी वर्तमान में हमें अनुभूति होती है परन्तु दुःख का निवारण नहीं होता, इन्हें अचेतन आवश्यकता कहते हैं।

प्रश्न 3.
धनी व निर्धन व्यक्ति की आवश्यकताओं को समझाइये।
उत्तर:
एक औसत निर्धन व्यक्ति एक औसत धनी व्यक्ति के समान सुखी नहीं है। इसलिए निर्धन व्यक्ति दया का पात्र है। एक निर्धन व्यक्ति की इच्छाएँ एक धनी व्यक्ति की तुलना में कम होती हैं तथा वह अपनी न्यून आय के माध्यम से न्यून आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। उसकी कुछ आवश्यकताएँ भी संतुष्ट हुए बिना रह जाती हैं।

प्रश्न 4.
प्रो. मेहता के अनुसार वास्तविक सुख किसमें है? समझाइये।
उत्तर:
प्रो. मेहता के अनुसार व्यक्ति का वास्तविक सुख अपनी इच्छाओं या आवश्यकताओं को बढ़ाने में नहीं वरन् उन्हें कम करने में निहित है। व्यक्ति के पास साधन सीमित होते हैं और इन सीमित साधनों से भी आवश्यकताओं की तृप्ति करना संभव नहीं है। अत: अधिकतम सुख इच्छाओं को घटाकर ही प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
विशुद्ध व व्यावहारिक अर्थशास्त्र को संक्षिप्त में समझाओ।
उत्तर:
विशुद्ध विज्ञान के अंतर्गत हम सामान्य सिद्धान्त का अध्ययन करते हैं जबकि व्यावहारिक विज्ञान के अन्तर्गत एक दिए हुए ढाँचे में उपर्युक्त सिद्धान्तों का परीक्षण करते हैं। विशुद्ध अर्थशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन “साधनों की सीमितता” के निश्चित दृष्टिकोण के अंतर्गत करते हैं। व्यावहारिक अर्थशास्त्र में हम यह देखते हैं कि ये सिद्धान्त मानव क्रियाओं के विशिष्ट क्षेत्र में किस प्रकार लागू होते हैं।

प्रश्न 6.
स्थैतिक अर्थशास्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
हम संतुलन की स्थिति से यह निश्चित करते हैं कि उत्पादन के प्रत्येक साधन का क्या अंश होगा। सभी उत्पादित वस्तुओं की क्या कीमत होगी व उपभोग की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की क्या मात्रा होगी। जब हम आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत इस संतुलन की स्थिति की प्राप्ति की प्रत्याशा करते हैं व उसका अध्ययन करते हैं तो उसे स्थैतिक अर्थशास्त्र के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 7.
उपयोगिता की मापनीयता को समझाइये।
उत्तर:
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है अतः हमें उपयोगिता के मात्रात्मक स्वरूप की व्याख्या करना आवश्यक है। प्रो. मेहता ने उपयोगिता के मात्रात्मक मापन पर बल दिया है। उन्होंने उपयोगिता के मापन के संबंध में निम्न तथ्य प्रस्तुत किए हैं :

  1. उपयोगिता एक भाववाचक पदार्थ है।
  2. उपयोगिता स्थिर नहीं रहती, यह समय-समय पर बदलती रहती है।
  3. सन्तुष्टि को मुद्रा द्वारा मापा जा सकता है।

प्रश्न 8.
सार्वजनिक आय को समझाइये।
उत्तर:
सार्वजनिक आय साधन है तथा सार्वजनिक व्यय साध्य है। सार्वजनिक व्यय हेतु सार्वजनिक आय ज्ञात की जाती है। सार्वजनिक व्यय निश्चित ही समाज के लिए लाभप्रद है तथा दूसरी ओर सार्वजनिक आय के लिए लोगों को उपभोग में कमी करनी पड़ती है। अतः इसका विशुद्ध परिणाम कल्याण में वृद्धि से है।

RBSE Class 11 Economics Chapter 14 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेहता के आर्थिक दृष्टिकोण की सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
दर्शन तथा नीतिशास्त्र विशेषकर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के दृष्टिकोण से मेहता के विचार अनुकूल प्रतीत होते हैं। फिर भी भौतिकवादी युग में उनके दृष्टिकोण की आलोचना की गई है जो निम्न हैं :

  1. मेहता का दृष्टिकोण मान लेने पर अर्थशास्त्र का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। यदि सभी व्यक्ति आवश्यकताओं को न्यूनतम करके आवश्यकता विहीनता की स्थिति में पहुँच जाएँगे तो अर्थव्यवस्था में कोई आर्थिक क्रिया नहीं होगी।
  2. मेहता के विचार कल्पना पर आधारित हैं। इच्छाओं से मुक्ति पाना एक साधारण व्यक्ति के वश में नहीं है। साधारण जीवन में व्यक्ति यह कभी नहीं सोचता कि अधिकतम सुख उसे आवश्यकताओं को कम करने में है।
  3. प्रो. मेहता ने अर्थशास्त्र को केवल आदर्श विज्ञान माना है जो उचित नहीं है क्योंकि अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान होने के साथ-साथ वास्तविक विज्ञान भी है।
  4. आलोचकों का विचार है कि मेहता ने इच्छा और आवश्यकता को एक ही समझ कर भारी भूल की है। इच्छा और आवश्यकता को दो अलग-अलग अर्थों में लिया जाता है। एक बीमार व्यक्ति के लिए दवा एक आवश्यकता है चाहे वह व्यक्ति उस दवा को लेने का इच्छुक हो या नहीं।
  5. मेहता द्वारा अर्थशास्त्र की परिभाषा स्वयं एक परिभाषा नहीं होकर धार्मिक उपदेश का वर्णन करती है।

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