RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 12 कौटिल्य के आर्थिक विचार

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Chapter 12 कौटिल्य के आर्थिक विचार

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य द्वारा वर्णित ज्ञान की किस शाखा में आर्थिक विषयों का अध्ययन किया
(अ) त्रयी
(ब) वार्ता
(स) आन्वीक्षिकी
(द) दण्डनीति
उत्तर:
(ब) वार्ता

प्रश्न 2.
कौटिल्य ने धर्म का मूल किसे कहा है
(अ) अर्थ
(ब) काम
(स) मोक्ष
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अर्थ

प्रश्न 3.
योग्य तथा अच्छे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य द्वारा किस सहायता की व्यवस्था की थी
(अ) सिंचाई व्यवस्था
(ब) अच्छे बीजों की व्यवस्था
(स) ऋण पर अनुदान
(द) अच्छे पशुओं की व्यवस्था
उत्तर:
(स) ऋण पर अनुदान

प्रश्न 4.
कौटिल्य की शासन व्यवस्था में मिलावट रोकने, घटिया वस्तुओं की बिक्री तथा कम तोल करने वालों पर निगरानी निम्नलिखित में से कौन सा अधिकारी रखता है
(अ) पण्याध्यक्ष
(ब) अन्तःपाल
(स) पौतवाध्यक्ष
(द) संस्थाध्यक्ष
उत्तर:
(द) संस्थाध्यक्ष

प्रश्न 5.
कौटिल्य के अनुसार विदेशों से आयातित माल पर सामान्यतः वस्तु की लागत का कितना हिस्सा चुंगी के रूप में लिया जाना चाहिए
(अ) 1 भाग
(ब) 1 भाग
(स) 1 भाग
(द) 1 भाग
उत्तर:
(ब) 1 भाग

प्रश्न 6.
कौटिल्य ने देश में उत्पादित वस्तुओं पर लाभ की दर निश्चित की थी
(अ) 5%
(ब) 10%
(स) 15%
(द) 20%
उत्तर:
(अ) 5%

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य ने वार्ता में किन-किन आर्थिक क्रियाओं को शामिल किया है?
उत्तर:
कौटिल्य ने वार्ता में कृषि, पशुपालन, उद्योग और व्यापार जैसी आर्थिक क्रियाओं को शामिल किया है।

प्रश्न 2.
कौटिल्य के बताये गए शुल्क के तीन विभागों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ये तीन विभाग हैं-बाह्य, अभ्यान्तर एवं आतिथ्य।

प्रश्न 3.
कौटिल्य के अनुसार बचत (नीवीं) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार राज्य के आय-व्यय का भली-भांति हिसाब करने पर जो शेष रहता है उसे बचत (नीवीं) कहते हैं।

प्रश्न 4.
कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित पेंशन योजना के प्रावधानों को समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार यदि किसी कर्मचारी को कार्य करते हुए मृत्यु हो जाए तो उसका वेतन पेंशन के रूप में उसके पुत्र-पत्नी को दिया जाना चाहिए। साथ ही उस कर्मचारी के व्ययों, वृद्धों व बीमार व्यक्तियों को आर्थिक सहायता के अलावा मृत्यु, बीमारी या बच्चा होने पर आर्थिक सहायता करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
कौटिल्य के अनुसार राज्य को आयातित माल पर उसकी लागत का कितना हिस्सा चुंगी लेना चाहिए।
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार राज्य को आयातित माल पर उसकी लागत का – हिस्सा चुंगी लेना चाहिए।

प्रश्न 6.
कौटिल्य के अनुसार कृषि पर अनुदान कब दिया जाना चाहिए?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार योग्य तथा अच्छे किसानों को प्रात्साहित करने के लिए राजा द्वारा ऋण पर अनुदान देना चाहिए। साथ ही किसानों को स्वास्थ्य लाभ एवं रूग्णता निवारण हेतु सीमित आर्थिक सहायता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
कौटिल्य ने बाजार की अव्यवस्थाओं के नियमन के लिए किन-किन अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया है?
उत्तर:
कौटिल्य ने बाजार अव्यवस्थाओं के नियमन के लिए पाँच प्रकार के अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया है :

  1. पण्याध्यक्ष
  2. शुल्काध्यक्ष
  3. संस्थाध्यक्ष
  4. पौतवाध्यक्ष और
  5. अन्त:पाल।

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य के मत में वस्तु की कीमत को प्रभावित करने वाल तत्व कौन-कौन से हैं? नाम बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य के मत में वस्तु की कीमत को निम्नलिखित तत्व प्रभावित करते हैं :

  1. समाज
  2. वेतन
  3. परिवहन व्यय
  4. किराया।

कौटिल्य के अनुसार संस्थाध्यक्ष को अन्य तत्वों के साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि यदि वस्तु शीघ्र नष्ट होने वाली है तो उसे जल्दी ही किसी भी कीमत पर किसी भी स्थान पर बेच देना चाहिए।

प्रश्न 2.
कौटिल्य द्वारा लिखित पुस्तक ‘अर्थशास्त्र में वर्णित व्यापार के नियमों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा व्यापार के सम्बंध में निम्नलिखित नियमों का उल्लेख किया गया हैं :

  1. राज्य में उत्पन्न वस्तुओं की बिक्री का प्रबंध एक निश्चित स्थान पर होना चाहिए।
  2. विदेशों में उत्पन्न वस्तुओं की बिक्री का प्रबंध एक ही मूल्य पर विभिन्न स्थानों पर होना चाहिए।
  3. उन्होंने अस्त्र-शस्त्र, अश्व एवं अन्न आदि के निर्यात को वर्जित किया है तथा इन वस्तुओं के आयात को निःशुल्क एवं कर मुक्त रखा।
  4. कौटिल्य ने व्यापार से प्राप्त लाभ को भी निर्धारित किया था।
  5. उनके द्वारा जनता के हित में राज्य व्यापार को प्रधानता दी गई है।
  6. वस्तु की कीमतों का निर्धारण मांग व पूर्ति के अतिरिक्त पण्याध्यक्ष एवं संस्थाध्यक्ष द्वारा होना चाहिए।

प्रश्न 3.
कौटिल्य द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा अर्थशास्त्र की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार है, “मनुष्यों के व्यवहार या जीविका को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों से युक्त भूमि का नाम ही अर्थ है। ऐसी भूमि को प्राप्त करने, विकसित करने (या पालन-पोषण करने) के उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र ही अर्थशास्त्र कहलाता है।” कौटिल्य स्पष्ट करते हैं कि यही अर्थशास्त्र अर्थ को धर्म, अर्थ और काम में प्रयुक्त करता है और उसकी रक्षा करता है।

प्रश्न 4.
कौटिल्य द्वारा बताये गए राजकीय आय के स्रोतों को बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा वर्णित राजकीय आय के निम्नलिखित स्रोत हैं

  1. विभिन्न प्रकार के भूमिकर, शहरों में मकान कर, आकस्मिक कर आदि।
  2. बाजार में बेची जाने वाली वस्तुओं पर कर, आयात-निर्यात कर।
  3. मार्ग कर, नहर कर तथा माल या सामान लादने वाली भारी गाड़ियों पर कर।
  4. कलाकार कर, मत्स्य कर।
  5. द्यूत कर तथा नशीली वस्तुओं पर कर।
  6. सम्पत्ति कर, वनोत्पादन कर, खान कर, नमक आदि व वस्तुओं पर एकाधिकारिक कर।
  7. श्रमिक कर।
  8. आकस्मिक आय कर।
  9. ऋण पर ब्याजा
  10. खैराती कर।
  11. जुर्माना
  12. राज्य के लाभ
  13. घोड़ों, ऊन, हाथी कर, फल एवं वृक्ष कर।

प्रश्न 5.
कौटिल्य की कर व्यवस्था में करारोपण के नियमों को समझाइए।।
उत्तर:
कौटिल्य की कर व्यवस्था में करारोपण के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं :

  • उचित समय पर कर वसूली :
    कौटिल्य के अनुसार कृषि पर कर की वसूली फसल पकने के समय करनी चाहिए असमय कर लगाकर धन संग्रह नहीं करना चाहिए।
  • उचित एवं न्यायपूर्ण करारोपण :
    कौटिल्य का मत था कि राजा को कर की वसूली मनमाने ढंग से न करके स्नेह पूर्वक एवं एक ही बार करनी चाहिए। उसे अन उपजाऊ भूमि पर भारी कर नहीं लेना चाहिए।
  • सामर्थ्य के अनुसार करारोपण :
    सभी व्यक्तियों से कर उनकी सामर्थ्य के अनुसार लेना चाहिए।
  • वित्तीय अनुशासन:
    कौटिल्य ने वित्तीय अनुशासन पर बहुत बल दिया। राजस्व कर्मचारियों की नियुक्ति बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो भी वसूला जाय वह सम्पूर्ण धन राज्य कोष में जमा हो जाए।

प्रश्न 6.
कौटिल्य के मत में अपहार का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
कौटिल्य राजकीय कोष में गड़बड़ी को अपहार कहते हैं। उनके अनुसार प्राप्त आय को रजिस्टर में न चढ़ाना, नियमित कर को रजिस्टर में चढ़ाकर भी खर्च न करना, प्राप्त बचत के सम्बंध में मुकर जाना, ये तीन प्रकार के अपहार कर चुराने वाला (Abejilment) है। अपहार के द्वारा राजकोष को हानि पहुँचाने वाले अध्यक्ष को हानि से बारह गुना दण्ड वसूलने का कौटिल्य ने सुझाव दिया है।

प्रश्न 7.
कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित कर्मचारियों के अवकाश के नियमों को समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने स्पष्ट किया है कि यदि त्यौहारों या छुट्टियों के दिनों में महिला मजदूरों से कटाई बुनाई का कार्य कराया जाता है। तो उन्हें भोजन, दाल तथा सामान के अलावा अतिरिक्त मजदूरी का भुगतान होना चाहिए। मजदूर आकस्मिक कार्य आने पर, बीमार होने या किसी विपत्ति में फंसने पर आकस्मिक अवकाश का अधिकारी होगा या वह अपनी एवज में किसी दूसरे व्यक्ति को भेजकर छुट्टी ले सकता है।

प्रश्न 8.
कौटिल्य द्वारा वर्णित श्रम संघों के मुख्य प्रकार बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने श्रम संघों के निम्नलिखित प्रकार बताए हैं :

  1. बुनकर संघ
  2. खान कार्यकर्ता संघ
  3. पाषाण कलाकारी संघ
  4. बढ़ईगिरी संघ
  5. पुरोहित संघ
  6. गायक संघ
  7. न्यूनतम कलाकार संघ
  8. क्रय-विक्रय कर्ता संघ
  9. सेवा संघ। उपर्युक्त संघ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करते हैं। कौटिल्य ने श्रम संघों को अत्यंत शक्तिशाली बताया है।

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य की सार्वजनिक वित्त व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने राज्य के लिए पर्याप्त वित्त व्यवस्था पर बल दिया है क्योंकि उनके अनुसार राजा के सभी कार्य राजकीय कोष पर निर्भर करते हैं। यदि राजा के पास कोष पर्याप्त नहीं होता है तो राजकीय कार्यों का सुचारू संचालन भी मुश्किल हो जाता है। कौटिल्य ने सार्वजनिक वित्त का महत्त्व बताते हुए कहा है कि वित्त से ही धर्म की रक्षा होती है। अत: राजकोष सदैव भरा रहना चाहिए। उनकी सार्वजनिक वित्त व्यवस्था सही मायने में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से जुड़ी हुई है।

  1. अप्राप्त को अर्जित करना,
  2. प्राप्त की रक्षा करना
  3. रक्षित का संवर्द्धन करना, तथा
  4. संबर्द्धित को प्रजा के कल्याण के लिए व्यय करना।

कौटिल्य द्वारा राजकीय आय के निम्नलिखित स्रोत बताये गए हैं :

  1. विभिन्न प्रकार के कर लगाना जैसे-भूमिकर, मकान कर, आकस्मिक कर आदि,
  2. आयात-निर्यात कर तथा बिक्री कर,
  3. मार्ग कर, नहर कर तथा भारी गाड़ियों पर कर,
  4. कलाकार कर, मत्स्य कर,
  5. द्यूत कर तथा नशीली वस्तुओं पर कर,
  6. सम्पत्ति कर, खान कर, वनोत्पादन कर तथा नमक आदि वस्तुओं पर एकाधिकारिक कर,
  7. श्रमिक कर,
  8. आकस्मिक आय कर,
  9. ऋण पर ब्याज,
  10. खैराती कर,
  11. जुर्माना,
  12. राज्य के लाभ,
  13. घोड़ों, ऊन, हाथी कर, फल एवं वृक्ष कर आदि।

कौटिल्य द्वारा करारोपण के विभिन्न नियमों का भी वर्णन किया गया है जो कर की दर, राशि, वसूली के ढंग तथा करारोपण के तरीकों से हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार हैं :

  • कर की वसूली उचित समय पर :
    कौटिल्य ने स्पष्ट किया है कि कर फसल के पकने के समय पर ही वसूला जाना चाहिए। कर की वसूली असमय नहीं करनी चाहिए।
  • उचित एवं न्यायपूर्ण करारोपण :
    राजा को करारोपण न्यायसंगत तरीके से करना चाहिए। करारोपण में मनमानी नहीं करनी चाहिए। आपातकाल में जब ज्यादा कर लगाने की आवश्यकता हो तो कर प्रजा से स्नेहपूर्वक लेना चाहिए।
  • सामर्थ्य के अनुसार करारोपण :
    राजा द्वारा नागरिकों से उनकी सामर्थ्य के अनुसार ही कर वसूलना चाहिए।
  • वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता :
    कौटिल्य ने इस बात पर भी विशेष बल दिया है कि वित्त से सम्बन्धित कर्मचारियों को वित्तीय अनुशासन का पालन करना चाहिए। जितना कर वसूल हो वह पूरा राज्य कोष में जमा होना चाहिए।

प्रश्न 2.
कौटिल्य के अनुसार शुल्क किसे कहते हैं तथा उसके द्वारा प्रतिपादित शुल्क के नियमों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शुल्क का आशय कौटिल्य के अनुसार चुंगी से है जो राज्य के भीतर या बाहर लाने पर ले जाने वाली वस्तुओं पर लगायी जाती थी। इसकी वसूली चौकियों पर की जाती थी। चुंगी वसूलने वाले अधिकारी को शुल्काध्यक्ष कहा जाता था। शुल्काध्यक्ष का कार्य चुंगी चौकियों का निर्माण कराना, अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से चुंगी वसूल कराना तथा वूसली गई राशि का राजकीय कोष में जमा करना था।

कौटिल्य ने शुल्क के तीन विभाग किये थे-ब्राह्य, अभ्यांतर तथा आतिथ्य। अपने देश में पैदा होने वाली वस्तुओं पर जो चुंगी लगाई जाती थी उसे ब्राह्य कहते थे। दुर्ग व राजधानी के भीतर उत्पन्न वस्तुओं के शुल्क को अभ्यांतर तथा विदेश से आने वाले माल की चुंगी को आतिथ्य कहा जाता था।

प्रश्न 3.
कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित मजदूरी निर्धारण के सिद्धान्तों एवं सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों को समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मजदूरी निर्धारण के अनेक सिद्धान्तों का वर्णन है जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार हैं :

  • मजदूरी का जीवन निर्वाह सिद्धान्त (Cost of Living Theory of Wages) :
    कौटिल्य ने स्पष्ट किया है कि एक मजदूर को इतनी मजदूरी अवश्य दी जानी चाहिए कि वह अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके तथा अपने मालिक की सेवा पूर्ण उत्साह एवं निष्ठा के साथ कर सके। साथ ही वह किसी भी तरह की लालच व असन्तुष्टि से भी मुक्त रह सके। कौटिल्य के यह विचार स्पष्ट करते हैं कि श्रमिक की मजदूरी जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक धन राशि के बराबर होनी चाहिए।
  • मजदूरी की योग्यता या कार्यकुशलता का सिद्धान्त (Ability Theory of Wages) :
    प्रत्येक मजदूर की कार्यकुशलता अलग-अलग होती है। कुशल एवं अकुशल श्रमिक को समान मजदूरी देना न्यायसंगत नहीं हो सकता है। इसीलिए कौटिल्य का विचार था कि श्रमिकों को उनकी योग्यता एवं कार्यकुशलता के अनुरूप मजदूरी एवं भत्तों का भुगतान होना चाहिए।
  • मजदूरी का उत्पादकता सिद्धान्त (Productivity Theory of Wages) :
    कौटिल्य का कहना था कि श्रमिक की मजदूरी उसकी उत्पादकता से सम्बन्धित होनी चाहिए अर्थात् श्रमिक को मजदूरी उसके द्वारा किये गए उत्पादन की मात्रा ‘ तथा उत्पादन में लगे समय के आधार पर दी जानी चाहिए। सूत कातने वाले को मजदूरी सूत की किस्म, मोटाई अर्थात् सूत की गुणवत्ता के आधार पर ही देनी चाहिए।
  • वेतन का प्रथागत सिद्धान्त (Customary Theory of Wages) :
    जिन व्यवसायों में मजदूरी निर्धारण का कोई निश्चित नियम नहीं था उन व्यवसायों के सम्बन्ध में कौटिल्य का कहना था कि ऐसे व्यवसायों में प्रथा के अनुसार नकद या वस्तु के रूप में मजदूरी दी जानी चाहिए। उनका यह भी विचार था कि यदि कोई श्रमिक कार्य न करे तो उसे दण्ड दिया जाना चाहिए।
  • मजदूरी का भागेदारी सिद्धान्त (Share Theory of Wages) :
    जिन व्यवसायों में पहले से मजदूरी निर्धारण करना संभव न हो उन व्यवसायों में कौटिल्य का मत था कि मजदूरों को उत्पादन में से एक हिस्सा दिया जाना चाहिए। चाणक्य कहते थे कि किसान का नौकर अनाज, ग्वाले का नौकर घी तथा बनिये का नौकर अपने द्वारा व्यवहार की गई वस्तुओं का दसवां हिस्सा ले बशर्ते उनका वेतन पहले तय नहीं हुआ हो।

सामाजिक सुरक्षा प्रावधान (Provisions of Social Security) :
कौटिल्य ने मजदूरी के कल्याण तथा सुरक्षा के लिए भी अनेक योजनाओं का प्रावधान किया था। उनमें से कुछ प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं :

  • पेंशन योजना (Pension Scheme) :
    कौटिल्य ने पेंशन स्कीम का भी निर्माण किया था। उनके अनुसार यदि कार्य करते हुए किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाए तो उसका वेतन पेंशन के रूप में उसके पुत्र-पत्नी को दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, ऐसे कर्मचारी के बच्चों, वृद्धों तथा बीमार व्यक्तियों को आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिए। उनके घर में मृत्यु होने, बीमारी या बच्चे के जन्म पर भी आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए।
  • अवकाश के नियम (Rules of Leave) :
    कौटिल्य का मत था कि मजदूर आकस्मिक कार्य होने पर, बीमार पड़ने पर या किसी विपत्ति के आने पर आकस्मिक अवकाश ले सकता है अथवा अपनी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को काम पर भेजकर छुट्टी ले सकता है। उनका यह भी कहना था कि यदि कोई महिला मजदूर त्यौहारों अथवा छुट्टी वाले दिनों में कटाई, बुनाई का कार्य करती है तो उसे भोजन, दाल तथा सामान के अलावा अतिरिक्त मजदूरी भी दी जानी चाहिए।
  • गरीब एवं असहायों को रोजगार में प्राथमिकता (Prefernce in Employment for the poor and disabled) :
    कौटिल्य ने यह भी व्यवस्था की थी कि विधवा, अपाहिज महिलाओं, कलाकारों आदि को कटाई, बुनाई आदि कार्यों में राजा को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस कार्य में उन्होंने ओवर टाइम का भी प्रावधान किया था। स्थायी एवं अस्थायी कर्मचारियों को उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता के अनुरूप वेतन दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
कौटिल्य के राजकीय आय-व्यय सम्बंधी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य का मत था कि राजा को समय-समय पर उत्पन्न परिस्थितियों तथा राज्य की सुचारू व्यवस्था के लिए अपनी आय को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। राजा के सभी कार्य राजकीय कोष पर ही निर्भर करते हैं। यदि राजा का कोष ही खाली हो जाएगा तो विभिन्न कार्यों को कैसे सम्पन्न किया जाएगा।

कौटिल्य का कहना था कि वित्त से धर्म की रक्षा होती है। अत: राजकोष सदैव भरा रहना चाहिए। बिना कोष के राज्य द्वारा विकास किया जाना संभव नहीं है। कौटिल्य का कहना था कि राजा को अपनी आय बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के कर लगाने चाहिए। जैसे भूमि कर, चुंगी, मकान कर, बिक्री कर, रोजगार कर, नशीले पदार्थों पर कर, आयात-निर्यात कर आदि।

राज्य को विभिन्न करों, व्यवसायों आदि से जो आय प्राप्त हो उसे राज्य के विकास तथा जन कल्याण पर व्यय करना चाहिए तथा कोषाध्यक्ष को राज्य के आय एवं व्यय का लेखा रखना चाहिए। यदि आय व्यय से अधिक हो तो उसे कोष में दिखाना चाहिए।

राजा को आय-व्यय के निरीक्षण की भी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए तथा आय-व्यय पंजिका में लेखाकार का नाम अंकित होना चाहिए। उन्होंने राजकीय आय-व्यय में गड़बड़ी करने वालों के लिए दण्डित करने की व्यवस्था भी की थी।

कौटिल्य के अनुसार प्राप्त आय को रजिस्टर में न चढ़ाने तथा नियमित रूप से प्राप्त कर को रजिस्टर में चढ़ाकर भी खर्च न करने तथा प्राप्त बचत के सम्बन्ध में मुकर जाने, इन तीनों प्रकार की गलतियों को अपहार कर चुराने वाला कहा है। अपहार के द्वारा राजकोष को होने वाली हानि पर अध्यक्ष को हानि से 12 गुना दण्ड लगाना चाहिए।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कौटिल्य की कर प्रणाली में समानता, विविधता, लोभपूर्ण तथा न्यायशीलता के गुण विद्यमान थे तथा उन्होंने प्राप्त आय से कल्याणकारी कार्य करने का प्रावधान भी किया था।

प्रश्न 5.
कौटिल्य के बाजार संगठन तथा मापतौल की व्यवस्था पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य ने व्यापार की सुविधा के लिए उचित मुद्रा व्यवस्था एवं नाप-तोल की व्यवस्था की थी। वस्तुओं की कीमत निर्धारण के लिए कौटिल्य पण्याध्यक्ष एवं संस्थाध्यक्ष को जिम्मेदार मानते थे। उनका कहना था कि राज्य में उत्पन्न वस्तुओं की बिक्री का प्रबंध एक निश्चित स्थान पर होना चाहिए तथा विदेशों में उत्पन्न वस्तुओं का विक्रय अनेक स्थानों पर किया जाना चाहिए जिससे जनता को उन वस्तुओं को प्राप्त करने में कष्ट न हो। ये वस्तुएँ विभिन्न स्थानों पर विक्रेताओं द्वारा एक ही मूल्य पर. बेची जानी चाहिए, ऐसा उनका मत था।

कौटिल्य राज्य व्यापार को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने राज्य व्यापार को जनता के हित में व्यवस्थित किया था। उनकी नीति आयात-निर्यात बढ़ाने की थी लेकिन उन्होंने अस्त्र-शस्त्र, अश्व एवं अन्न आदि के निर्यात को वर्गीकृत किया था। इन वस्तुओं के आयात को कर मुक्त रखा गया था।

कौटिल्य राज्य के व्यापारिक मार्गों पर व्यापारियों की सुरक्षा के लिए राज्य द्वारा सुरक्षा प्रदान करने के पक्षपाती थे। कौटिल्य ने व्यापार के होने वाले लाभ को भी नियंत्रित किया था। उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी जिससे उपभोक्तओं को वस्तुएँ उचित मूल्य पर मिल जाए तथा व्यापारियों को भी उचित लाभार्जन हो सके।

नाप-तोल की सुविधा के लिए कौटिल्य ने 16 प्रकार की तराजुओं का उल्लेख किया है तथा तोल के लिए प्रयुक्त बांटों पर चिह्न लगे हुए होते थे। माप तोल की जाँच के लिए पौतवाध्यक्ष की नियुक्ति करने की उनके द्वारा संस्तुति की गई थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि कौटिल्य द्वारा बाजार को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अनेक व्यवस्थाएँ की गई थी।

प्रश्न 6.
कौटिल्य ने बाजार की अव्यवस्थाओं के नियमन हेतु कौन-कौन से प्रावधान किये थे? समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य के बारे में कहा जाता है कि वह विश्व का पहला चिंतक था जिसने बाजार को नियमित करने के लिए विस्तृत एवं सुनियोजित योजना प्रस्तुत की। उन्होंने कालाबाजारी रोकने, मिलावटखोरी को नियंत्रित करने, धोखाधड़ी एवं तस्करी को नियंत्रित करने आदि अव्यवस्थाओं को रोकने के लिए पाँच प्रकार के अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया था

  • पण्याध्यक्ष :
    इस अधिकारी का कार्य वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करना, उनकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करना था तथा यह व्यक्ति व्यापारियों की क्रियाओं पर भी निगाह रखता था।
  • शुल्काध्यक्ष :
    यह अधिकारी राज्य के अन्दर व्यापारियों से चुंगी की वसूली का कार्य करता था, माल पर मोहर लगाता था तथा माल की तोल व बिक्री आदि का कार्य करता था।
  • संस्थाध्यक्ष :
    संस्थाध्यक्ष का कार्य मिलावट को रोकना, कम तोलने वाले को दण्डित करना था। यह घटिया वस्तुओं की बिक्री करने वालों पर भी लगाम लगाता था तथा आवश्यकता पड़ने पर उनको दण्डित करता था।
  • पौतवाध्यक्ष :
    पौतवाध्यक्ष का मुख्य कार्य नाप तोल के साधनों को उपलब्ध कराना था।
  • अन्तःपाल :
    यह राज्य के अन्दर तथा विदेशों से आने-जाने वाले मालों पर निगाह रखता था।

इनके अतिरिक्त कौटिल्य के द्वारा स्वयं कुछ नियमों का निर्माण किया गया था। जैसे यदि कोई व्यापारी अन्य व्यापारियों से मिलकर किसी वस्तु को अनुचित कीमत पर बेचे या खरीदे तो प्रत्येक पर एक-एक हजार पण का जुर्माना लगाने का प्रावधान था। व्यापारियों द्वारा मुनाफाखोरी एवं सट्टेबाजी द्वारा लाभ कमाने पर उन्होंने लाभ को नियमित करने का सुझाव दिया था। उनका मानना था कि घरेलू वस्तुओं पर 5 प्रतिशत तथा विदेशी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत से अधिक लाभ नहीं लेना चाहिए। यदि कोई व्यापारी इससे अधिक लाभ लेता है तो उस पर 200 पण के दण्ड का प्रावधान था।

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुराणों के अनुसार कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की थी
(अ) 321 एवं 300 ई. पू. के बीच
(ब) 321 एवं 300 ई. पू. की अवधि के बाद
(स) 321 एवं 300 ई. पू. की अवधि के पहले
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 321 एवं 300 ई. पू. के बीच

प्रश्न 2.
कौटिल्य ने ज्ञान की शाखाओं का वर्णन किया है
(अ) 2.
(ब) 3
(स) 4
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) 4

प्रश्न 3.
वातशास्त्र में प्रधानता की गई है
(अ) कृषि को
(ब) पशुपालन को
(स) उद्योग एवं व्यापार को
(द) इन सभी को
उत्तर:
(द) इन सभी को

प्रश्न 4.
कौटिल्य ने विदेशी वस्तुओं पर लाभ की दर निश्चित की थी
(अ) 5 प्रतिशत
(ब) 10 प्रतिशत
(स) 15 प्रतिशत
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) 10 प्रतिशत

प्रश्न 5.
कौटिल्य के समय में भूमि कर दिया जाता था
(अ) उत्पादन का 1
(ब) उत्पादन का 1
(स) उत्पादन का
(द) उत्पादन का 1
उत्तर:
(ब) उत्पादन का 1

प्रश्न 6.
कौटिल्य ने शुल्क (चुंगी) के विभाग किये थे
(अ) 1
(ब) 2
(स) 3
(द) 4
उत्तर:
(स) 3

प्रश्न 7.
कौटिल्य के अनुसार धातुओं की चोरी करने वाले व्यक्तियों पर दण्ड लगाया जाना चाहिए
(अ) चोरी का चार गुना
(ब) चोरी का पांच गुना
(स) चोरी का आठ गुना
(द) चोरी का दस गुना
उत्तर:
(स) चोरी का आठ गुना

प्रश्न 8.
कौटिल्य के अनुसार विदेशों से आयातित नमक पर कर लेना चाहिए
(अ) छठा भाग
(ब) आठवां भाग
(स) पाँचवा भाग
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) छठा भाग

प्रश्न 9.
कौटिल्य के अनसार राजा को व्यापारियों से मार्ग कर वसलना चाहिए
(अ) संस्थाध्यक्ष के माध्यम से
(ब) पण्याध्यक्ष के माध्यम से
(स) अन्तःपाल (सीमा के रक्षकों) के माध्यम से
(द) शुल्काध्यक्ष के माध्यम से
उत्तर:
(स) अन्तःपाल (सीमा के रक्षकों) के माध्यम से

प्रश्न 10.
मुर्गे व सूअर पालने वालों को राज्य को अपनी आय का हिस्सा देना होगा
(अ) आधा हिस्सा
(ब) चौथाई हिस्सा
(स) एक तिहाई हिस्सा
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) आधा हिस्सा

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आचार्य कौटिल्य के दो अन्य नाम बताओ।
उत्तर:
आचार्य कौटिल्य के दो अन्य नाम हैं-विष्णु गुप्त एवं चाणक्य।

प्रश्न 2.
कौटिल्य ने ज्ञान की किन चार शाखाओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
कौटिल्य ने ज्ञान की निम्नलिखित चार शाखाओं का वर्णन किया हैं

  1.  त्रयी
  2. वार्ता
  3. आन्विक्षिकी
  4. दण्डनीति।

प्रश्न 3.
कौटिल्य की अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा “मनुष्यों के व्यवहार या जीविका को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों से युक्त भूमि का नाम ही अर्थ है। ऐसी भूमि को प्राप्त करने, विकसित करने (या पालन-पोषण करने) के उपायों को निरूपण करने वाला शास्त्र ही अर्थशास्त्र कहलाता है।”

प्रश्न 4.
कौटिल्य ने शान्ति व्यवस्था एवं न्याय के अतिरिक्त राज्य के कौन से चार उद्देश्य बताए हैं?
उत्तर:
राज्य के चार उद्देश्य हैं :

  1. अप्राप्त को अर्जित करना
  2. प्राप्त की रक्षा करना,
  3. रक्षित का सम्बर्द्धन करना,
  4. संवर्द्धित को प्रजा के कल्याण के लिए प्रयुक्त करना।

प्रश्न 5.
कौटिल्य द्वारा बताये गए राज्य के आय के दो प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. भूमि कर, मकान कर तथा आकस्मिक कर
  2. बिक्री कर, आयात-निर्यात कर।

प्रश्न 6.
कृषि से प्राप्त उत्पादन का कितना हिस्सा राजा को देना होता था?
उत्तर:
कृषि से प्राप्त उत्पादन का भाग कृषक राजा को देता था।

प्रश्न 7.
कौटिल्य ने विदेशों से आयातित नमक पर कितना कर निर्धारित किया था?
उत्तर:
कौटिल्य ने विदेशों से आयातित नमक पर – भाग कर निर्धारित किया था।

प्रश्न 8.
शुल्क (चुंगी) वसूलने का अधिकार किस अधिकारी को था?
उत्तर:
शुल्काध्यक्ष को।

प्रश्न 9.
कौटिल्य ने धातुओं की चोरी करने वाले व्यक्तियों पर कितने दण्ड की व्यवस्था की थी?
उत्तर:
कौटिल्य ने धातुओं की चोरी करने वाले व्यक्तियों पर चोरी की राशि का आठ गुना दण्ड लगाने की व्यवस्था की थी।

प्रश्न 10.
कौटिल्य द्वारा मार्ग कर की क्या दरें निर्धारित की थी?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार व्यापार के सामान से भरी एक गाड़ी पर 1(frac{1}{4}) पण, पशु पर (frac{1}{2}) पण, छोटे पशुओं पर (frac{1}{4}), पण तथा मनुष्य के कंधे पर ढोये गए सामान पर एक माष कर लगाने की व्यवस्था की गई थी।

प्रश्न 11.
कौटिल्य ने पशु कर की क्या दरें निश्चित की थी?
उत्तर:
कौटिल्य ने पशु कर की निम्नलिखित दरें निश्चित की थी :

  1. मुर्गे एवं सूअर पालने वालों पर उनकी आय का आधा हिस्सा,
  2. भेड़-बकरी पालने वालों पर आय का छठा हिस्सा,
  3. गाय, भैंस, गधा व ऊंट पालने वालों पर आय का दसवां हिस्सा।

प्रश्न 12.
करारोपण के दो नियम बताइए।
उत्तर:
करारोपण के दो नियम हैं :

  1. कर की वसूली उचित समय पर होनी चाहिए।
  2. सामर्थ्य के अनुसार करारोपण होना चाहिए।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक व्यय की चार प्रमुख मदें बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय की चार प्रमुख मदें थीं :

  1. धार्मिक कार्यों पर व्यय
  2. अधिकारियों के वेतन पर व्यय
  3. सैन्य शक्ति पर व्यय
  4. सड़क निर्माण पर व्यय

प्रश्न 14.
कौटिल्य ने कौन-सी दो प्रकार की बचतों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार बचत दो प्रकार की होती हैं :

  1. राजकीय कोष में जमा राशि अर्थात् प्राप्त बचत
  2. राजकीय कोष में जमा होने वाली अर्थात् अप्रत्याशित बचत

प्रश्न 15.
कौटिल्य की कर प्रणाली के चार गुण बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य की कर प्रणाली के चार गुण है :

  1. विविधता
  2. समानता
  3. न्यायशीलता
  4. लोचपूर्ण

प्रश्न 16.
कौटिल्य ने अपहार के कौन से तीन प्रकारों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
अपहार के तीन प्रकार हैं :

  1. प्राप्त आय को रजिस्टर में न चढ़ाना,
  2. नियमित कर को रजिस्टर में चढ़ाकर भी खर्च न करना,
  3. प्राप्त बचत के सम्बंध में मुकर जाना।

प्रश्न 17.
अपहार के कारण राजकोष को होने वाली हानि के लिए क्या दण्ड व्यवस्था थी?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार अपहार के द्वारा राजकोष को हानि पहुँचाने वाले अध्यक्ष पर हानि से बारह गुना दण्ड लगाया जाना चाहिए।

प्रश्न 18.
कौटिल्य द्वारा मजदूरी निर्धारण के प्रतिपादित दो सिद्धान्तों को बताइए।
उत्तर:

  1. मजदूरी का जीवन निर्वाह सिद्धान्त,
  2. मजदूरी का उत्पादकता सिद्धान्त।

प्रश्न 19.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कौन-सी चार प्रकार की मुद्राओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित मुद्राएँ निम्नलिखित हैं :

  1. सोने के सिक्के
  2. कार्षापण या पण या धरण (चाँदी का)
  3. मानक तांबे का
  4. कांकणी तांबे का।

प्रश्न 20.
कौटिल्य के अनुसार वस्तुओं की कीमत का निर्धारण किन अधिकारियों द्वारा होना चाहिए?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार कीमत का निर्धारण निम्नलिखित अधिकारियों द्वारा होना चाहिए :

  1. पण्याध्यक्ष
  2. संस्थाध्यक्षा

प्रश्न 21.
कौटिल्य द्वारा वस्तुओं की बिक्री पर लाभ की क्या सीमा निर्धारित की गई थी?
उत्तर:
कौटिल्य ने घरेलू वस्तुओं पर 5 प्रतिशत तथा विदेशी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत अधिकतम लाभ की सीमा निश्चित की थी।

प्रश्न 22.
कौटिल्य ने किन वस्तुओं के निर्यात को वर्जित बताया था?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार अस्त्र-शस्त्र, अश्व व अन्न का निर्यात वर्जित था।

प्रश्न 23.
कौटिल्य के अनुसार किन वस्तुओं का आयात निःशुल्क एवं कर मुक्त था?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार अस्त्र-शस्त्र, अश्व व अन्न का आयात नि:शुल्क एवं कर मुक्त था।

प्रश्न 24.
कौटिल्य ने धर्म, अर्थ एवं काम में किसको प्रधानता दी है?
उत्तर:
कौटिल्य ने धर्म, अर्थ एवं काम में अर्थ को प्रधानता दी है क्योंकि उनके अनुसार अर्थ के बिना किसी भी प्रकार की क्रिया संभव नहीं है।

प्रश्न 25.
आपातकालीन कर क्या है?
उत्तर:
कौटिल्य ने राज्य पर विपत्ति आने पर आपातकालीन कर लगाने का विधान किया था। ऐसी स्थिति में राजा धनिकों पर कर लगा सकता है तथा व्यापारियों, वेश्याओं, पशुपालकों से भी विशेष याचना करके धन ले सकता है।

प्रश्न 26.
उचित एवं न्यायपूर्ण करारोपण से क्या आशय है?
उत्तर:
कौटिल्य का विचार था कि राजा को कर के सम्बन्ध में मनमानी नहीं करनी चाहिए बल्कि कर की दर उचित एवं न्यायसंगत होनी चाहिए। अनुपजाऊ भूमि पर तो भारी कर लगाना ही नहीं चाहिए।

प्रश्न 27.
वस्तु विनिमय किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति अपनी कम आवश्यक वस्तु के बदले में दूसरे व्यक्ति से ज्यादा आवश्यक वस्तु लेता है तो इसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 28.
संस्थाध्यक्ष के कार्य संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
संस्थाध्यक्ष का कार्य व्यापारियों द्वारा की जाने वाली मिलावट, घट तोली या घटि तथा वस्तुओं की बिक्री को नियंत्रित करना या। इसे ऐसी गतिविधियों में लिप्त लोगों को दण्डित करने का अधिकार होता था।

प्रश्न 29.
कौटिल्य के समय में अन्तःपाल का क्या कार्य था?
उत्तर:
अन्त:पाल राज्य के अन्दर तथा विदेशों से आने और निराशा में जाने वाले माल की निगरानी करता था।

प्रश्न 30.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में गाय, भैस आदि पालतू पशुओं की देखरेख के लिए किस अधिकारी की नियुक्ति का उल्लेख है?
उत्तर:
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में गाय, भैंस आदि पालतू पशुओं की देख-रेख के लिए गोध्यक्ष नामक अधिकारी की नियुक्ति का वर्णन मिलता है।

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य द्वारा बताये गए राजकीय आय के 5 स्रोत बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा बताये गए राजकीय आय के 5 स्रोत निम्नलिखित हैं

  1. भूमि कर, भवन कर, आकस्मिक कर।
  2. बिक्री कर, आयात-निर्यात कर।
  3. आकस्मिक आय कर।
  4. सम्पत्ति कर, वनोत्पादन कर, खान कर, नमक कर आदि।
  5. द्यूत कर तथा नशीली वस्तुओं पर कर।

प्रश्न 2.
भूमिकर क्या है? भूमि कर की व्यवस्था क्या थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूमि कर कृषि भूमि के प्रयोग के बदले में राजा द्वारा वसूला जाता है। भूमि कर राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था। समाज के लोग जितनी भूमि अपने अधिकार में लेकर उस पर उत्पादन करते थे, उसके बदले में उन्हें राजा को उत्पादन का (frac{1}{6}) भाग कर के रूप में देना होता था। कर का भुगतान नकद या वस्तुओं के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 3.
आपातकालीन कर क्या होता है?
उत्तर:
कौटिल्य ने राज्य पर विपत्ति आने की अवस्था में आपातकालीन कर लगाने का प्रावधान किया था। उनके अनुसार राजा का कोष खाली होने पर वह धनी व्यक्तियों पर राज्य अतिरिक्त कर का बोझ डाल सकता है। राजा के पास पर्याप्त कोषों का होना आवश्यक है क्योंकि बिना कोष के राजा न तो कर्मचारियों का वेतन दे सकता है और न ही समाज के कल्याण के कार्य करा सकता है।

प्रश्न 4.
कौटिल्य ने वित्तीय अनुशासन के सम्बंध में क्या विचार प्रकट किये हैं?
उत्तर:
कौटिल्य फिजलखर्ची के बहुत विरोधी थे। उनका मत था कि जनता से जितना कर वसूला जाए वह पूरा का पूरा राजकोष में जमा होना चाहिए। राज्य कर्मचारी भ्रष्टाचार न करें इसके लिए उन्होंने सुझाव दिया था कि राज्य की.आय का सही-सही लेखा-जोखा रखा जाना चाहिए तथा इस कार्य को करने के लिए योग्य एवं ईमानदार व्यक्तियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक व्यय के सम्बंध में कौटिल्य के विचारों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने सार्वजनिक व्यय के प्रमुख मदों में धार्मिक कार्य, अधिकारियों के वेतन एवं पेंशन का भुगतान, सैन्यशक्ति का संगठन, कारखानों का प्रबंध, श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान, कृषि पर व्यय, सड़क निर्माण, नहर निर्माण, शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, जंगलों की सुरक्षा पर व्यय, पशुओं पर व्यय, राजकीय गृह कार्यों का प्रबंध आदि को शामिल किया है। कौटिल्य सार्वजनिक व्यय पर उचित नियंत्रण के पक्षपाती थे। उन्होंने राजकीय व्यय में गड़बड़ी करने पर लेखाधिकारियों को दण्डित करने का प्रावधान भी किया था।

प्रश्न 6.
कृषि व्यवस्था के सम्बंध में कौटिल्य के विचारों को बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में कृषि को विशेष महत्त्व दिया है। उनका मत था कि राजा को कृषि अधिकारी नियुक्त करना चाहिए जो अनाज, फल, सब्जियों, कपास आदि के अच्छे बीज एकत्रित करे तथा समय से उनको खेतों में डलवाये। उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने खेतों में उचित किस्म की खाद डालने के लिए भी निर्देशित किया है। उनके अनुसार खेती में गंदा खाद न डालकर उत्तम खाद का ही प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 7.
कौटिल्य द्वारा मजदूरों की सुरक्षा एवं कल्याण हेतु प्रतिपादित योजनाओं को बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा मजदूरों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित योजनाओं का प्रावधान किया गया था :

  • पेंशन योजना :
    कौटिल्य के अनुसार कार्य करते हुए कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में उसका पूर्ण वेतन पेंशन के रूप में उसकी पत्नी/पुत्र को दिया जाना चाहिए।
  • अवकाश :
    आकस्मिक कार्य आ जाने पर, बीमार हो जाने अथवा किसी परेशानी में फंसने पर मजदूर को आकस्मिक अवकाश की व्यवस्था की गई। मजदूर अपनी जगह दूसरे व्यक्ति को भेजकर भी छुट्टी ले सकता था।
  • ओवरटाइम :
    कौटिल्य द्वारा कटाई, बुनाई के कार्य में ओवर टाइम का भी प्रावधान किया था।

प्रश्न 8.
मुद्रा निर्माण के लिए कौटिल्य द्वारा किस व्यवस्था का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
मुद्रा निर्माण का कार्य केवल सरकारी टकसाल में होता था। कोई भी व्यक्ति अपनी धातु टकसाल में ले जाकर अपने लिए मुद्राएँ बनवा सकता था। इस कार्य के लिए निर्धारित शुल्क लिया जाता था। टकसाल के अधिकारियों के नाम लक्षणाध्यक्ष तथा सौवार्णिक थे।

प्रश्न 9.
कौटिल्य द्वारा मुख्य रूप से कितने प्रकार के श्रम संघों का उल्लेख किया गया है, उनके नाम बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा सघों के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं :

  1. बुनकर संघ
  2. खान कार्यकर्ता संघ
  3. पाषाण कलाकारी संघ
  4. बढ़ईगिरी संघ
  5. पुरोहित संघ
  6. गायक संघ
  7. क्रय-विक्रयकर्ता संघ
  8. सेवी संघ
  9. कलाकार संघ।

ये सभी संघ मुख्य रूप से अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए बनाये जाते थे।

प्रश्न 10.
वस्तुओं की कीमत निर्धारण के सम्बन्ध में कौटिल्य के विचार संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने न्यायपूर्ण एवं उचित कीमत की अवधारणा को प्रतिपादित किया था। न्यायपूर्ण कीमत में वह लागत के साथ-साथ उचित लाभ को शामिल करते थे। उनका कहना था कि देशी वस्तुओं पर 5 प्रतिशत तथा विदेशी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत से अधिक लाभ नहीं लिया जाना चाहिए। उनके अनुसार वस्तु की कीमत को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं जैसे-वेतन, परिवहन व्यय, रीति-रिवाज, पर्व, त्यौहार, फैशन, किराया व समाज आदि। उनके अनुसार वस्तुओं की कीमत का निर्धारण राजा द्वारा नियुक्त पण्याध्यक्ष तथा संस्थाध्यक्ष को करना चाहिए।

प्रश्न 11.
कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित मजदूरी के उत्पादकता सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य का मत था कि मजदूर को मजदूरी उसके द्वारा किये गए उत्पादन की मात्रा तथा उस उत्पादन में लगे समय के अनुपात में होना चाहिए। मजदूर को मजदूरी उसके द्वारा किये जा चुके कार्य के लिए ही दी जानी चाहिए। सूत कातने वाले को सूत की मोटाई व गुणवत्ता को देखकर मजदूरी दी जानी चाहिए। उनका मत था कि सरकारी कर्मचारियों को भी वेतन उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता के अनुरूप कम या अधिक दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 12.
मजदूरी का भागीदारी सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
जिन व्यवसायों में कर्मचारी का वेतन पहले से निश्चित नहीं है वहां कर्मचारी को उत्पादन में से एक निश्चित हिस्सा दिया जाना चाहिए। जैसे-किसान को अनाज का, ग्वाले को नौकर के घी का तथा बनिये के नौकर को अपने द्वारा व्यवहार की गई वस्तुओं का दसवां हिस्सा दिया जाना चाहिए। राज्य कर्मचारियों के वेतन निर्धारण के लिए राज्य की आवश्यकता, धर्म तथा नैतिकता, सेवा योग्य वेतन, राज्य के प्रति निष्ठा, नौकरी के गुण, कार्य का सम्पादन आदि तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए लेकिन किसी भी हालत में राजा को अपनी आय का एक चौथाई भाग से अधिक वेतन मद पर व्यय नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 13.
कौटिल्य ने बाजार की अव्यवस्थाओं को रोकने के लिए किन-किन अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया था?
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा बाजार अव्यवस्थाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया था :

  • पण्याध्यक्ष :
    इसका कार्य वस्तुओं की गुणवत्ता की जाँच करना तथा व्यापारियों की गतिविधियों पर निगाह रखना था। यह वस्तुओं के मूल्य निर्धारण का कार्य भी करता था।
  • शुल्काध्यक्ष :
    इसका कार्य व्यापारियों से चुंगी वसूलना, माल पर मोहर लगाना, माल की तौल व बिक्री आदि करना था।
  • संस्थाध्यक्ष :
    यह मिलावट को रोकने, घटिया वस्तुएँ बेचने व घटतोली करने वालों को दण्डित करता था।
  • पौतवाध्यक्ष :
    यह तौल व माप जारी करता था।
  • 5. अन्तःपाल :
    यह राज्य के अन्दर तथा विदेशों से आने-जाने वाले मालों की निगरानी करता था।

प्रश्न 14.
वस्तु की बिक्री व्यवस्था के सम्बंध में कौटिल्य के क्या विचार थे?
उत्तर:
कौटिल्य का मत था कि राज्य में पैदा होने वाली वस्तुओं की बिक्री की व्यवस्था एक निश्चित स्थान पर होनी चाहिए। विदेशों में पैदा होने वाली वस्तुओं की बिक्री की व्यवस्था उनके अनुसार अनेक स्थानों पर होना चाहिए जिससे जनता को कष्ट न हो। अनेक स्थानों पर बेचा जाना चाहिए। कौटिल्य व्यापारियों को राज्य द्वारा पूर्ण संरक्षण दिये जाने के पक्षकर थे।

प्रश्न 15.
खनन से प्राप्त आय कर की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार राज्य की भूमि पर राज्य का ही अधिकार होता है अतः भूगर्भ पदार्थों से राजा को कर वसूलने का भी अधिकार है। खान का अध्यक्ष शंख, वज्र, मणि, मुक्ता तथा अन्य सभी प्रकार के क्षारों के निकासी व बिक्री की व्यवस्था देखता है। विदेश से आयात किये गए नमक पर छठा भाग कर लगना चाहिए, ऐसा कौटिल्य का विचार था। धातुओं की चोरी करने वाले व्यक्ति पर उनके अनुसार चोरी का आठ गुना दण्ड लगना चाहिए तथा रत्नों की चोरी करने पर मृत्यु दण्ड लगाना चाहिए।

प्रश्न 16.
मार्ग कर के सम्बंध में क्या नियम थे?
उत्तर:
कौटिल्य का मत था कि राजा को अपने अन्त:पाल के माध्यम से व्यापारियों से मार्ग कर लेना चाहिए। उस समय व्यापार के सामान से भरी एक गाड़ी पर 1 (frac{1}{4}) पण, पशु कर (frac{1}{2}) पण, छोटे पशुओं पर (frac{1}{4}) पण तथा मनुष्य द्वारा कंधे पर ढोये गए सामान पर एक ‘माष’ कर लगता था।

प्रश्न 17.
कौटिल्य द्वारा आय-व्यय के लेखांकन की क्या विधि बताई गई थी?
उत्तर:
कौटिल्य का विचार था कि कोषाध्यक्ष को राज्य की आय-व्यय का पूर्ण विवरण रखना चाहिए। आय-व्यय रजिस्टर में माह, पक्ष एवं दिन, काल तथा लेखक का नाम तथा लेने वाले का नाम अंकित होना चाहिए। अन्त में बचत या शेष का पूर्ण विवरण तैयार रहना चाहिए। लेखे इस प्रकार रखे जाने चाहिए कि पिछले सौ वर्ष के आय-व्यय का लेखा जोखा की आवश्यकता पड़ने पर देखा जा सके। उन्होंने आय-व्यय के लेखे में गडबड़ी करने पर दण्ड का सुझाव भी दिया था।

प्रश्न 18.
कृषि ऋण एवं सहायता के सम्बंध में कौटिल्य की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
कौटिल्य का यह निर्देश था कि राजा कृषकों को अन्न, बीज, बैल आदि के लिए ऋण उपलब्ध करायें तथा फसल तैयार होने पर कटने के बाद उधार दी गई रकम को वसूलें। उन्होंने अच्छे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ऋण पर अनुदान देने की भी व्यवस्था की थी।

प्रश्न 19.
कौटिल्य ने अर्थ, धर्म एवं काम में किस को प्रधानता दी थी?
उत्तर:
कौटिल्य ने अर्थ, धर्म एवं काम में अर्थ को ही प्रधानता दी थी। उनका विचार था कि सुख का मूल धर्म है और धर्म का मूल अर्थ है और अर्थ का मूल राजा है। उनके अनुसार धर्म तथा काम दोनों ही क्रियाएँ अर्थ पर निर्भर करते हैं। कौटिल्य ने उचित तरीके से अर्जित किये गए धन को न्यायपूर्ण बताया है। उनका कहना था कि “संसार में धन ही वस्तु है, धन के अधीन धर्म और काम है।”

प्रश्न 20.
कौटिल्य की बचत की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य के अनुसार राज्य के आय-व्यय का हिसाब करने के बाद जो शेष बचता है वह धन ‘नीवी’ (बचत) कहलाता है। बचत के दो प्रकार बताये गए हैं-(i) प्राप्त तथा (ii) अनुवृत। प्राप्त से आशय उस बचत से है जो वास्तव में राजकीय खजाने में जमा हो। इसे वास्तविक बचत कहा गया है। अनुवृत वह है जो खजाने में जमा किया जाने वाला है अर्थात् प्रत्याशित बचत।

प्रश्न 21.
वेतन का प्रथागत सिद्धान्त (Customary Theory of Wages) क्या है?
उत्तर:
कौटिल्य का विचार था कि ऐसे व्यवसायों में जिनमें मजदूरी निर्धारण का कोई निश्चित नियम नहीं था उनमें व्यवसायों की प्रथा के अनुसार नकद या वस्तु के रूप में मजदूरी दी जानी चाहिए। उनके अनुसार कारीगर, नट, चिकित्सक, वकील व नौकर को वेतन उसी प्रकार दिया जाए जिस तरह अन्यत्र दिया जाता है। उनका कहना था कि वेतन काम करने के लिए दिया जाता है खाली बैठने के लिए नहीं। अत: यदि कोई व्यक्ति कार्य नहीं करता है तो उसे कार्य से हटा देना चाहिए।

प्रश्न 22.
गरीब एवं असहायों को रोजगार देने के सम्बंध में कौटिल्य के क्या विचार थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य ने ऐसी व्यवस्था की थी जिसके अन्तर्गत विधवाओं, अपाहिजों, महिलाओं, कलाकारों आदि को कटाई, बुनाई के काम में प्राथमिकता के आधार पर नौकरी मिलती थी। उन्होंने इस काम में ओवर टाइम की भी व्यवस्था की थी। स्थायी तथा अस्थायी कर्मचारियों को उसकी योग्यता एवं कार्यक्षमता के अनुरूप कम या अधिक वेतन प्राप्त होता था।

प्रश्न 23.
व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए कौटिल्य ने क्या सुझाव दिये थे?
उत्तर:
कौटिल्य ने व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए कहा था कि राज्य को जल व थल मार्गों तथा बड़े-बड़े बाजारों और मण्डियों का निर्माण करना चाहिए। इन बाजारों में बिक्री योग्य वस्तुओं का संग्रह कर उनके क्रय-विक्रय की व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य को व्यापारिक मार्गों पर सुरक्षा की व्यवस्था भी करनी चाहिए। कौटिल्य चाहते थे कि व्यापारियों को उचित लाभ हो तथा उपभोक्ताओं को वस्तुएँ उचित मूल्य पर मिले।

प्रश्न 24.
पशुपालन के सम्बंध में कौटिल्य के विचार बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने पशुधन के महत्त्व को स्वीकार किया है। इसलिए गाय, भैंस आदि पालतू पशुओं की देखभाल करने के लिए गोध्यक्ष नामक अधिकारी की नियुक्ति का उनके अर्थशास्त्र में उल्लेख मिलता है। उनके द्वारा पशुओं को चराने वालों के लिए प्रत्येक पशु के लिए एक-एक पण मजदूरी भी निर्धारित की गई है तथा पशुओं को क्षति पहुंचाने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के विधान का भी उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 25.
कौटिल्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य का वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था। उन्होंने नन्दवंश का नाश कर चन्द्रगुप्त को राज्य सिंहासन पर बैठाया था। उनकी विचारधारा भौतिकवादी थी। इसी कारण तत्कालीन धर्माचार्यों ने उनको कुटिलता का पुट देने के लिए कौटिल्य नाम रख दिया। आचार्य कौटिल्य ने समकालीन आर्थिक समस्याओं पर और अर्थव्यवस्था पर जितना अधिक चिन्तन किया है, उतना किसी अन्य आचार्य ने नहीं किया है। कौटिल्य को चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है।

RBSE Class 11 Economics Chapter 12 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित करारोपण के नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में करारोपण के अनेक नियमों का वर्णन है। ये नियम कर की राशि, वसूली के ढंग तथा करारोपण के तरीकों से सम्बन्धित हैं। इन नियमों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं

  • उचित एवं न्यायपूर्ण करारोपण :
    कौटिल्य के अनुसार राजा को कर वसूली में मनमानी नहीं करनी चाहिए। करारोपण उचित एवं न्यायसंगत होना चाहिए। यदि राजा को आपातकाल में ज्यादा कर की आवश्यकता हो तो प्रजा से स्नेहपूर्वक अतिरिक्त कर वसूलना चाहिए तथा ऐसे कर की वसूली एक ही बार होनी चाहिए। अनुपजाऊ भूमि पर भारी करारोपण नहीं करना चाहिए।
  • उचित समय पर कर वसूली :
    कौटिल्य का मत था कि कृषि पर कर फसल के पक जाने पर ही वसूला जाना चाहिए। राजा को असमय कर की वसूली नहीं करनी चाहिए।
  • करारोपण सामर्थ्य के आधार पर :
    राजा को कर लगाते समय व्यक्ति विशेष की सामर्थ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् उसकी हैसियत के अनुरूप ही कर लगाना चाहिए। इससे कर वसूली में आसानी रहती है तथा कर का विरोध भी नहीं होता है।
  • वित्तीय अनुशासन:
    कौटिल्य वित्तीय अनुशासन पर बहुत बल देते थे। उनके अनुसार प्रजा से प्राप्त समस्त कर रोजकोष में जमा होना चाहिए। इस कार्य के लिए ईमानदार एवं योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। करारोपण से प्राप्त आय का अपव्यय बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इस कार्य में संलग्न कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त न हों, इसके लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रमुख कल्याणकारी योजनाएँ निम्नलिखित हैं

  • पेंशन योजना :
    कौटिल्य सरकारी कर्मचारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखते थे। उन्होंने इन कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना का सुझाव दिया था। कौटिल्य के अनुसार यदि किसी कर्मचारी की काम करते हुए मृत्यु हो जाए तो उसका वेतन पेंशन के रूप में उसके पुत्र-पत्नी को दिया जाना चाहिए। इसके अलावा राजा द्वारा मृत कर्मचारी के बच्चों, वृद्धों तथा बीमार व्यक्तियों की आर्थिक सहायता करनी चाहिए। इतना ही नहीं, उनके घर में बच्चा होने या किसी की मृत्यु होने या किसी के बीमार होने पर भी आर्थिक सहायता करनी चाहिए।
  • अवकाश :
    कौटिल्य के अनुसार यदि मजदूर को कोई आकस्मिक काम लग जाता है या वह बीमार पड़ जाता है या वह किसी विपत्ति में फंस जाता है तो वह आकस्मिक अवकाश ले सकता है। वह अपनी एवज में काम पर दूसरे व्यक्ति को भेजकर भी छुट्टी ले सकता है। उनका कहना था कि यदि त्यौहारों अथवा अन्य छुट्टी के दिनों में महिलाओं से कटाई, बुनाई का कार्य कराया जाता है तो उन्हें खाने के साथ-साथ अतिरिक्त मजदूरी भी दी जानी चाहिए।
  • गरीब एवं असहायों को रोजगार :
    कौटिल्य ने यह भी व्यवस्था की थी कि राजा द्वारा विधवाओं, अपाहिज महिलाओं तथा कलाकारों आदि को कटाई एवं बुनाई के काम में राजा द्वारा प्राथमिकता के आधार पर रोजगार उपलब्ध हो। इस कार्य में उन्होंने ओवरटाइम का भी प्रावधान किया था। उनका मानना था कि नौकरों को यथोचित प्रतिफल प्राप्त होना चाहिए। स्थायी एवं अस्थाई कर्मचारियों को उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता के अनुरूप कम या अधिक वेतन अथवा मजदूरी दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित वस्तुओं की कीमत निर्धारण से सम्बन्धित अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
कौटिल्य ने वस्तुओं की कीमत निर्धारण के सम्बंध में एक न्यायपूर्ण एवं उचित कीमत की अवधारणा को विकसित किया था। उनके द्वारा न्यायपूर्ण कीमत में वस्तु की लागत के साथ उचित लाभ को भी शामिल किया गया था। उनका विचार था कि न्यायपूर्ण कीमत न तो समाजवादी अर्थव्यवस्था की तरह उत्पादक की काम करने की प्रेरणा को कुप्रभावित करती है और न ही यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की तरह उपभोक्ता की जेब पर भारी पड़ती है।

कौटिल्य मानते थे कि यदि वस्तु की कीमत लागत से कम होगी तो उत्पादक उत्पादन करना बंद कर देंगे। इससे बेरोजगारी बढ़ेगी। इसके विपरीत यदि वस्तु की कीमत ऊँची होगी तो उपभोक्ताओं द्वारा मांग कम होगी जिससे उत्पादक अपना उत्पादन कम करने के लिए बाध्य होंगे। अत: दोनों ही स्थितियों में बेरोजगारी बढ़ेगी। अत: वस्तु का मूल्य उचित एवं न्यायपूर्ण होना चाहिए।

कौटिल्य का कहना था कि विभिन्न वस्तुओं का मूल्य राजा द्वारा नियुक्त पण्याध्यक्ष एवं संस्थाध्यक्ष द्वारा किया जाना चाहिए। कौटिल्य यह मानते थे कि वस्तु के मूल्य में कमी या वृद्धि उसकी मांग एवं पूर्ति की मात्रा पर निर्भर करती है अत: पण्याध्यक्ष को कीमत निर्धारण से पूर्व बाजार में वस्तु की मांग का अध्ययन करना चाहिए। इस प्रकार कौटिल्य एक ओर तो वस्तु की कीमत के निर्धारण में मांग एवं पूर्ति सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं दूसरी ओर राजकीय नियंत्रण की भी व्याख्या करते है।

कौटिल्य का मत था कि वस्तु की कीमत निर्धारित करते समय संस्थाध्यक्ष की उन सभी तत्वों का अध्ययन करना चाहिए जो वस्तु की कीमत को प्रभावित करते हैं जैसे-वेतन, परिवहन व्यय, किराया एवं समाज की स्थिति आदि। उनका यह भी मत था कि नाशवान वस्तुओं जैसे- दूध, दही, सब्जी, फल आदि को किसी भी मूल्य पर जल्दी से जल्दी बेचने की व्यवस्था करनी चाहिए। कौटिल्य का यह भी मानना था कि यदि वस्तुओं की कीमतें व्यापारियों तथा मजदूरों की तरफ से बढ़ती हैं तो ये न्याय के सिद्धान्त के प्रतिकूल होगा। अत: वस्तुओं की कीमतें देश एवं समय के अनुसार ही निर्धारित की जानी चाहिए।

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