RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण

RBSE Class 11 Biology Chapter 31 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 31 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
क्लोम छिद्रों के बाहर गिल आच्छद उपस्थित नहीं होता है
(क) डिप्नोई
(ख) कोण्ड्रिक्थीन्स
(ग) आस्टीक्थीज
(घ) होलोसिफेलाई

प्रश्न 2.
शिशुधानी कौनसे वर्ग के प्राणियों में होती है?
(क) मैटाथीरिया
(ख) यूथीरिया
(ग) प्रोटोथीरिया
(घ) ऐवीज

प्रश्न 3.
थैले के समान आकृति वाले प्राणी किस उपसंघ के होते हैं?
(क) सिफेलोकोडैटा
(ख) यूँरोकोडैटा
(ग) वटिब्रेटा
(घ) हैमीकाऊँटा

प्रश्न 4.
समुद्री घोड़ा किस वर्ग का प्राणी है?
(क) स्तनी वर्ग
(ख) मत्स्य वर्ग
(ग) पक्षी वर्ग
(घ) सरीसृप वर्ग

प्रश्न 5.
शल्क उपस्थित होते हैं
(क) पिसीज में
(ख) रेप्टाइल्स में
(ग) एवीज में
(घ) उपर्युक्त सभी में

प्रश्न 6.
राजस्थान का राज्य पक्षी है
(क) गजेला-गजेला
(ख) गोडावन
(ग) मोर
(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर तालिका
1. (ख)
2. (क)
3. (ख)
4. (ख)
5. (घ)
6. (ख)

RBSE Class 11 Biology Chapter 31 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कार्पस केलोसम’ कौनसे स्तनियों में पाया जाता है?
उत्तर-
अधोवर्ग यूथीरिया के सदस्यों में कार्पस केलोसम पाया जाता है।

प्रश्न 2.
पिसीज वर्ग में कपालीय तंत्रिकाएँ कितनी होती हैं?
उत्तर-
पिसीज वर्ग में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ होती हैं।

प्रश्न 3.
जन्तुओं में स्पष्ट सिर एवं कपाल की उपस्थिति वाले समूह को क्या कहते हैं?
उत्तर-
जन्तुओं में स्पष्ट सिर एवं कपाल की उपस्थिति वाले समूह को क्रेनियेटा (Craniata) कहते हैं।

प्रश्न 4.
यूरोकाउँटा उपसंघ के जन्तुओं में शरीर के चारों ओर आवरण किसका बना होता है?
उत्तर-
यूरोकाडैटा संघ के जन्तुओं में शरीर के चारों ओर ट्यूनिसिन (tunicin)का आवरण पाया जाता है, जिसे यूनिक या टेस्ट भी कहते हैं।

प्रश्न 5.
जैव प्रतिदीप्त जन्तु का नाम बताइये।।
उत्तर-
पाइरोसोमा (Pyrosoma) जैव प्रतिदीप्त जन्तु है।

प्रश्न 6.
एग्नैथा वर्ग के किसी एक विलुप्त प्राणी का नाम बताइये।
उत्तर-
एग्नैथा वर्ग का प्राणी सिफैलेस्पिस (cephalaspis)एक विलुप्त प्राणी है।

प्रश्न 7.
सबसे बड़ा स्थलीय स्तनी कौनसा है?
उत्तर-
सबसे बड़ा स्थलीय स्तनी जन्तु हाथी है।

प्रश्न 8.
किस वर्ग की मछलियों में गिल अच्छद नहीं पाया जाता है?
उत्तर-
कॉन्ड्रिक्थीज वर्ग की मछलियों में गिल आच्छद नहीं पाया जाता है।

प्रश्न 9.
टेडपोल लार्वा अवस्था कौनसे वर्ग के जन्तुओं में पायी जाती है?
उत्तर-
टेडपोल लार्वा एम्फीबिया वर्ग के जन्तुओं में पायी जाती

प्रश्न 10.
तीन वेश्मी हृदय किस वर्ग के जन्तुओं में पाया जाता है?
उत्तर-
एम्फीबिया वर्ग के जन्तुओं में तीन वेश्मी हृदय पाया जाता है।

प्रश्न 11.
देहगुहा में पेशीय तनु पट्ट की उपस्थिति कौनसे वर्ग का लक्षण है?
उत्तर-
देहगुहा में पेशीय तन्तु पट्ट की उपस्थिति मैमेलिया वर्ग का लक्षण है।

प्रश्न 12.
किस वर्ग के जन्तुओं की गर्दन में सात ग्रीवा कशेरूकायें पायी जाती हैं?
उत्तर-
मैमेलिया वर्ग के जन्तुओं की गर्दन में सात ग्रीवा कशेरूकायें पायी जाती हैं।

प्रश्न 13.
रेप्टाइल के समान अण्डे देने वाले स्तनधारी का कौनसा वर्ग है?
उत्तर-
रेप्टाइल के समान अण्डे देने वाले स्तनधारी का वर्ग प्रोटोथीरिया है।

प्रश्न 14.
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम बताइये ।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम बाघ (Tiger) है।

प्रश्न 15.
शेर का वैज्ञानिक नाम लिखिये।
उत्तर-
शेर का वैज्ञानिक नाम पैन्थेंरा लियो (Panthera leo) है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 31 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैमेलिया वर्ग के चार प्रमुख लक्षण बताइये।
उत्तर-

  • शरीर पर बालों को पाया जाना ।
  • बाह्य कर्ण उपस्थित।
  • मादाओं में विकसित स्तन ग्रन्थियों का पाया जाना ।
  • मस्तिष्क में कार्पस कैलोसम का पाया जाना।
  • ग्रीवा में 7 ग्रेव कशेरूक को पाया जाना ।।

प्रश्न 2.
पृष्ठवंशियों के वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर-
कार्डेटा संघ के वर्गीकरण के निम्न आधार हैं

  • कपाल (Cranium)
  • जबड़े एवं जोड़ीदार उपांग (Jaws & Paired append ages)
  • उपांगों का प्रकार (Type of Appendages)
  • बाह्य भ्रूणीय झिल्लियां (Extra embryonic membranes)
  • त्वचा की संरचना (Structure of skin)

प्रश्न 3.
पृष्ठवंशी एवं अपृष्ठवंशी में पाँच अन्तर लिखिये।
उत्तर-
पृष्ठवंशी एवं अपृष्ठवंशी में अन्तर

पृष्ठवंशी अपृष्ठवंशी
1. इनमें द्विपार्श्व समिति (bi-lateral symmetry) पायी जाती है।इनमें अरीय (radial), द्विपार्व (bilateral), द्विअक्षीय (biradial) सममिति पायी जाती है अथवा असममित होते हैं।
2. इनमें वास्तविक खण्डीभवन पाया जाता है।इनमें खण्डीभवन अनुपस्थित या वास्तविक खण्डीभवन या मिथ्या खण्डीभवन पाया जाता है।
3. यह सदैव त्रिस्तरीय होते हैं।जनन स्तर अनुपस्थित या द्विस्तरीय अथवा त्रिस्तरीय होते हैं।
4. इनमें अंग तन्त्र स्तर पाया जाता है।इसमें जीवद्रव्य स्तर या ऊतक स्तर या अंग तन्त्र स्तर पाया जाता है।
5. यह सीलो मेट्स (coelo-mates) जन्तु हैं।यह एसीलोमेट (acoelomate) या स्यूडोसीलोमेटस या सोलोमेट्स जन्तु हैं।

प्रश्न 4.
उड़ने वाले प्राणियों के चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर-
उड़ने वाले प्राणियों के चार लक्षण

  • अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित हो गये जो उड़ने में सहायता करते
  • अस्थियाँ वातवीय (Pneumatic) होती हैं। इनमें वायु भरी होती है अतः इनकी शरीर हल्का होता है।
  • 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकायें पायी जाती हैं।
  • इनमें मूत्राशय का अभाव होता है (शुतुरमुर्ग में मूत्राशय पाया जाता है)।
  • चोंच पाई जाती है लेकिन चोंच में दांत नहीं पाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
एम्नियोट्स से क्या तात्पर्य है ? इस समूह में आने वाले वर्गों के नाम लिखिये।
उत्तर-
एम्नियोट्स-जिन जन्तुओं में एम्नियोन नामक बाह्य भ्रूणीय झिल्लियाँ पायी जाती हैं, उन्हें एम्नियोटा समूह में रखा गया एवं इन जन्तुओं को एम्नियोट्स कहते हैं
एम्निओटा समूह में आने वाले वर्गों के नाम निम्न हैं-

  • रेप्टीलिया
  • एवीज
  • मैमेलिया।

प्रश्न 6.
क्रेनियेटा एवं एक्रेनिया समूह को परिभाषित करते हुए दो-दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
क्रेनियेटा-इस समूह के अन्तर्गत आने वाले प्राणियों में स्पष्ट सिर व कपाल पाया जाता है।
उदाहरण-

  1. मेंढक
  2. मछली

एक्रेनियेटी-इस समूह के अन्तर्गत आने वाले प्राणियों में सिर व कपाल नहीं पाया जाता है।
उदाहरण-

  1. हर्डमानिया
  2. पाइरोसोमा

प्रश्न 7.
द्विबारदन्ती से क्या तात्पर्य है? कौनसे वर्ग के जन्तुओं में यह गुण पाया जाता है?
उत्तर-
द्विबारदन्ती-दांतों का जीवन में केवल दो बार निकलना द्विबारदन्ती या डाइफायोडोन्ट कहलाता है। मैमेलिया वर्ग के जन्तुओं में उक्त गुण पाया जाता है।

प्रश्न 8.
काण्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण लिखो।
उत्तर-
काण्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण

  1. इस वर्ग के सदस्य समुद्रीय होते हैं।
  2. इनका अन्त:कंकाल उपास्थिल (Cartilagenous) होता है।
  3. बाह्य कंकाल प्लेकॉयड शल्कों का बना होता है।
  4. इनमें 5-7 जोड़ी गिल दरारें (gill slits)पायी जाती हैं।
  5. गिल दरारों पर आपरकुलम अनुपस्थित होता है।
  6. इनमें J की आकृति का अमाशय पायी जाती है तथा इनकी आन्त्र में सर्पिल कपाट (spiral valve) पाया जाता है।
  7. नर प्राणी में क्लेस्पर (Clasper) मैथुनी अंग के रूप में पाये जाते हैं। अवस्कर पाया जाता है।
  8. इस वर्ग की मछलियों के सिर के पृष्ठ भाग पर लोरेंजिनी तुम्बिकाएँ (ampulla of lorenzini) नामक तापग्राही संवेदांग पाये जाते हैं।
  9. हृदय में दो वेश्म एक आलिन्द व एक निलय पाया जाता है। इनके अलावाहृदय में शिराकोटर तथा कोनस आर्टिरियोस पाया जाता है।
  10. निषेचन आन्तरिक। ये अण्डप्रजक या शिशुप्रजक होते हैं।
    उदाहरण-स्कोलिओड्रोन, स्फिरना।

प्रश्न 9.
स्तनियों के कौनसे वर्ग में शिशुधानी पायी जाती है? इसका क्या महत्व है?
उत्तर-
शिशुधानी अधोवर्ग मेटाथीरिया के सदस्यों में पायी जाती है। मेटाथीरिया के सदस्यों के बच्चे अपरिपक्व अवस्था में जन्म लेते हैं। इन बच्चों का शेष परिवर्धन मादा प्राणी के उदर भाग में स्थित थैली/ शिशुधानी (Marsupium) में होता है। इस थैली की उपस्थिति के कारण इसे थैली वाले स्तनी भी कहते हैं। उदाहरण- कंगारू

प्रश्न 10.
मछलियों में मौसम के अनुसार स्थानान्तरण को उदाहरण सहित समझाइये?
उत्तर-
कुछ मछलियों में एक निश्चित मौसम में स्थानान्तरण (Seasonal migration) होता है, जिसे मौसम में स्थानान्तरण कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है।

  • केटाड्रोमस स्थानान्तरण-अलवणीय जल से समुद्री जल में स्थानान्तरण को केटाड्रोमसे स्थानान्तरण कहते हैं।
    उदाहरण- एन्गुइला।।
  • एनाड्रोमस स्थानान्तरण-समुद्री जल से अलवणीय जल में स्थानान्तरण को एनड्रोमस स्थानान्तरण कहते हैं।
    उदाहरण- सालमने (Salmon), हिल्सा (Hilsa) एवं ट्राऊट (Trout) आदि।

प्रश्न 11.
द्विकन्दीय कपाल कौन-कौनसे वर्गों का लक्षण है? नाम बताइये।
उत्तर-
द्विकन्दीय कपाल निम्नलिखित वर्गों के लक्षण हैं

  1. वर्ग- एम्फीबिया (Amphibia)
  2. वर्ग- मैमेलिया (Mammalia)

प्रश्न 12.
यूथिरिया वर्ग के चार लक्षण लिखिये?
उत्तर-
यूथिरिया वर्ग के लक्षण निम्न हैं

  • इसके सदस्य परिपक्व शिशुओं (mature infants) को जन्म देते हैं। पूर्णतया जरायुज (viviparpus) जन्तु हैं।
  • स्तन ग्रंथियां पूर्ण सुविकसित तथा चूचकयुक्त होती हैं।
  • वास्तविक एलेन्टोइक प्लेसेन्टो पाया जाता है।
  • अण्डे अपीतकी (Alecithal) होते हैं। पूर्ण: समतापी होते हैं।
  • कार्पस केलोसम सुविकसित होता है।
  • नर में शिश्न एकल होता है।
  • मादा में योनि व गर्भाशय एकल होते हैं।

RBSE Class 11 Biology Chapter 31 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैमेलिया वर्ग के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख करते हुए इसके उपवर्गों को उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वर्ग-स्तनी या मैमेलिया (class-Mammalia)
मैमेलिया शब्द ग्रीक भाषा के मैमी (स्तन ग्रंथि) से लिया गया है अर्थात् इस वर्ग के सभी जन्तुओं में स्तन ग्रन्थियाँ (mammary glands) पाई जाती हैं। स्तनी जन्तु जगत के सर्वश्रेष्ठ विकसित जन्तु हैं। वे संरचना, कार्यिकी एवं बुद्धिमत्ता की दृष्टि से अधिक विकसित हैं। ये स्थलीय, जलीय एवं वायुवीय आवासों में पाये जाते हैं।
सीनोजॉइक (Coenozoic) काल को ”स्तनधारी काल (age of mammals) कहा जाता है।

मुख्य लक्षण (Important Characteristics)

  1. इनके शरीर का तापमान निश्चित होता है अतः ये समतापी (warm blooded or Homeothermal) जन्तु कहलाते हैं।
  2. त्वचा पर बालों का आवरण (pelage) पाया जाता है। बाल सम्पूर्ण शरीर पर या कुछ भागों तक सीमित होते हैं । सीटेशिया के सदस्यों में रोम अनुपस्थित होते हैं।
  3. स्तनधारियों की त्वचा मोटी जलरोधी होती है। त्वचा में | अनेक प्रकार की ग्रंथियाँ पायी जाती हैं, जैसे- स्वेद ग्रन्थियां (sweat glands), तेल ग्रंथियाँ (sebaceous glands) व स्तन ग्रंथियाँ (mammary glands)
  4. स्तन ग्रंथियाँ (imammary glands) पायी जाती हैं जो मादा में क्रियाशील होकर दुग्ध का स्रावण करती हैं जिससे शिशुओं का पोषण किया जाता है।
  5. बाह्य कर्ण पल्लव (earpinna) पाये जाते हैं। कर्ण पल्लव | मोनोट्रिमेटा (monotremata) में अनुपस्थित होते हैं।
  6. मध्य कर्ण (middle ear) में तीन कर्ण अस्थिकाएँ (ear ossicles) पायी जाती हैं-
    (i) मेलियस (malleus),
    (ii) इन्कस (Incus),
    (iii) स्टेपीज (Stepes)
  7. इनमें टिम्पैनिक बुला (tympanic bulla) पाया जाता है। यह ऑटिक व पेरीऑटिक अस्थि के आपस में मिलने से बनता है।
  8. अधिकांश सदस्यों का शरीर सिर (head), ग्रीवा (neack), धड़ (trunk) व पूंछ (tail) में विभक्त होता है।
  9. धड़ पर दो जोड़ी पाद (limbs) पाये जाते हैं। इनमें पंचांगुलिक पाद (pentadactyl) पाये जाते हैं। अंगुलियों पर नाखून (nails) या पंजे (claws) या खुर (hoofs) पाये जाते हैं।
  10. स्तनधारियों में दांत मसूड़ों में स्थित होते हैं, अतः इसे गर्तदन्ती (thecodont) अवस्था कहते हैं। इनमें चार प्रकार के दांत पाये जाते हैं अतः इसे विषमदन्ती (heterodont) अवस्था कहते हैं। इनके जीवन में दो बार दांत आते हैं इसे द्विवारदन्ती (diphyodont) अवस्था कहते हैं।
  11. स्तनधारियों में वक्ष व उदर गुहा के बीच पेशीय तनुपट्ट (diaphragm) पाया जाता है। डायफ्राम द्वारा निम्न कार्यों में सहायता की जाती है- संवातन (breathing), मूत्र त्याग (micturition), मल त्याग (defaecation) व प्रसव (parturation)
  12. स्तनधारियों में पूर्ण चार कोष्ठीय (completely four chambered) हृदय पाया जाता है। इसमें दो आलिन्द (auricles) व दो निलय (ventricles) पाये जाते हैं। इसके हृदय में शिराकोटर (sinus venosus) नहीं पाया जाता है।
  13. इनमें दोहरा रक्त संचरण (double blood circulation) पाया जाता है। वयस्क में केवल बायीं ग्रीवा दैहिक चाप (left caroticosystemic arch) पायी जाती है।
  14. RBC केन्द्रकविहीन (non-nucleated) एवं उभयावतल (biconcave) होती है। अपवादस्वरूप ऊंट (camel) व लामा (larma) की RBC में केन्द्रक पाया जाता है।
  15. वृक्क निवाहिका तंत्र (renal portal system) अनुपस्थित जबकि यकृत निवाहिका उपतंत्र (Hepatic portal system) पाया जाता है।
  16. ध्वनि यंत्र (sound box) या लेरिक्स (Larynx) पाया जाता है। इसमें वास्तविक व मिथ्य वाकतन्तु (vocal cords) पाये जाते हैं।
  17. श्वसन (Respiration) हेतु एक जोड़ी फुफ्फुस (lungs) पाये जाते हैं । फुफ्फुस वक्ष गुहा में प्ल्यूरल गुहाओं (pleural eavities) में स्थित होते हैं।
  18. मस्तिष्क सुविकसित होता है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध बड़े होते हैं। मस्तिष्क में कार्पस केलोसम (Carpous callosum) पाया जाता है। (कार्पस केलोसम एक तंत्रिकीय पट्टिका है। जो दोनों प्रमस्तिष्क गोलाद्ध (cerebral hemispheres) को आपस में जोड़ती है।
  19. कपाल द्विकन्दी (dicondylic) होता है। इसमें दो कपाल अस्थिकंद (occipital condyle) पाये जाते हैं।
  20. निचला जबड़ा (lower jaw) केवल डेन्टरी (dentary) नामक अस्थि द्वारा निर्मित होता है। प्रिमैक्सीला (premaxilla), मैक्सीला (maxilla) व पैलेटाइन (palatine) अस्थियों द्वारा तालु (palate) का निर्माण होता है जो नासा मार्ग को मुख गुहा से पृथक् करती है। नासा मार्ग में टरबाइनल अस्थियाँ पायी जाती हैं।
  21. ग्रीवा में सात (seven) ग्रैव कशेरुक (cervical vertebrae) पायी जाती हैं।
  22. इनमें अगर्ती या एसीलस कशेरुक पाये जाते हैं। कशेरुक के सेन्ट्रम पर एपिफाइसिस (epiphysis) पाये जाते हैं।
  23. पसलियाँ दो सिर युक्त होती हैं। इनके शीर्षों को केपिटुलम व हुबरकुलम कहते हैं।
  24. मस्तिष्क में चार दृकपिण्ड (optic lobes) पाये जाते हैं। इन्हें कॉरपोरा क्वाड्रीजेमिना (corpora quadrigemina) कहते हैं।
  25. इनमें 12 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ (cranial nerves) पायी जाती हैं।
  26. इनके अन्त:कर्ण में कुण्डलित व सर्पिलाकार कोकलिया (cochlea) पाया जाता है।
  27. स्तनधारियों में मेटानेफ्रिक (metanephric) प्रकार के वृक्क पाये जाते हैं। उत्सर्जन के आधार पर प्राणी यूरियोटेलिक हैं क्योंकि ये यूरिया का उत्सर्जन करते हैं।
  28. प्रोटोथिरिया (Prototheria) के सदस्यों में अवस्कर (cloaca) पाया जाता है, लेकिन मेटाथिरिया व यूथीरिया में अनुपस्थित होता है।
  29. एकलिंगी (unisexual) होते हैं। नर व मादा जन्तु अलगअलग होते हैं। लैंगिक द्विरूपता (dimorphism) पायी जाती है।
  30. नर में वृषण (testes) उदरगुहा के बाहर वृषण कोष (scrotalsac) में पाये जाते हैं। लेकिन एकिडना, प्लेटीपस, हाथी, व्हेल, राइनो, हिप्पो आदि में वृषण उदरगुहा में स्थित होते हैं।
  31. नर में मैथुनी अंग के रूप में शिश्न (Penis) पाया जाता है। इस वर्ग के अधिकांश सदस्य अण्डज (oviparous) व कुछ अण्डजरायुज (ovoviviparous) प्रकार के होते हैं। मादा में हासित शिश्न समान क्लाइटोरिस (clitoris) पाया जाता है।
  32. इस वर्ग के सदस्यों में अपीतकी (alecithal) अण्डे पाये जाते हैं। प्रोटोथिरिया में अतिपीतकी (polylecithal) अण्डे पाये जाते हैं।
  33. सभी सदस्यों में अन्तःनिषेचन (internal fertilization) पाया जाता है। इनमें अण्डवाहिनी (oviduct) में निषेचन पाया जाता है।
  34. स्तनधारियों में निषेचन के समय शुक्राणु के एक्रोसोम (acrosome) द्वारा हाएलोयूरो नाइडेज (Hyalouronidase) एन्जाइम का स्रावण होता है।
  35. स्तनधारियों से पूर्णभंजी समान विदलन (holoblastic equal cleavage) पाया जाता है। परिवर्धन के दौरान चार प्रकार की बाह्य भ्रूणीय झिल्लियों (extra embryonic membrane) का निर्माण होता है, जैसे- कोरियोन (Chorion), एमनियोन (Amnion), एलेनटॉइस (allantois) व योक सेक (yolk sac)।
  36. परिवर्धन मादा के गर्भाशय (uterus) में होता है। गर्भाशय भ्रूण के बीच अपरा (placenta) का निर्माण होता है।
  37. स्तनधारियों में उच्चकोटि का पैतृक संरक्षण (parental care) पाया जाता है।

वर्गीकरण (Classification)-
वर्ग मैमेलिया को दो उपवर्गों में वर्गीकृत किया गया है

  • उपवर्ग- प्रोटोथीरिया (Subclass- Prototheria)
  • उपवर्ग- थीरिया (Subclass- Theria)

1. उपवर्ग- प्रोटोथीरिया (Subclass- Prototheria)

  • ये आदिम (Primitive) प्रकार के अण्डे देने वाले (Oviparous) स्तनधारी हैं।
  • इनके अण्डे अतिपीतकी (Polylecithal) एवं कवचयुक्त (Shelled) होते हैं।
  • स्तन ग्रंथियों (Mammary glands) में चूचुकों (nipples) का अभाव होता है।
  • कर्णपल्लव (Earpinna) अनुपस्थित होता है। अन्त:कर्ण का कोकलिया (Cochlea) कम कुण्डलित होता है।
  • वयस्क जन्तु में दन्तविहीन श्रृंगी चोंच (teethless horny beak) पायी जाती है। लेकिन शिशु अवस्था में दांत उपस्थित होते हैं।
  • मस्तिष्क में कार्पस केलोसम (Corpus callosun) अनुपस्थित होता है।
  • नर में वृषण उदरगुहा में होते हैं।
  • अवस्कर पाया जाता है।
  • मादा में अण्ड वाहिनियाँ पश्च भाग में समेकित होकर गर्भाशय तथा योनि नहीं बनाते हैं।
  • ये आंशिक समतापी (Partially homothermal) होते हैं। ये शरीर के ताप को आंशिक रूप में स्थिर रख पाते हैं।
  • इस उपवर्ग के सदस्य आस्ट्रेलिया (Australia), तस्मानिया (Tasmania) व न्यूगुइना (Newguinea) में पाये जाते हैं।
  • इस उपवर्ग में एक ही गण आता है जिसे मोनोट्रिमेटा (Monotremata) कहते हैं।

उदाहरण-

  1. टैकीग्लोसस या इकीडना। इसे कंटकीय चींटीखोर (Spiny anteater) भी कहते हैं।
  2. आर्निथोरिंकस या डक बिल्ड प्लेटीपस। ये रेप्टीलिया एवं मैमेलिया वर्ग की योजक कड़ी (Connecting Link) है।

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2. उपवर्ग थीरिया (Subclass- Theria)-

  • ये स्तनधारी जरायुज (viviparous) होते हैं, जो शिशुओं को जन्म देते हैं।
  • बाह्य कर्ण या कर्ण पल्लव (pinna) उपस्थित होता है।
  • शिशु तथा वयस्क दोनों में दांत (teeth) पाये जाते हैं।
  • समतापी (homothermal) होते हैं।
  • गुदा (anus) व मूत्रजनन छिद्र (urinogenital aperture) अलग-अलग होते हैं।
  • नर में वृषण (testis) वृषण कोषों (scrotal sacs) में स्थित होते हैं।
  • मादा में गर्भाशय (uterus) व योनि (vagina) उपस्थित होते हैं।
  • भ्रूण (embryo) प्लैसेन्टा द्वारा गर्भाशय की भित्ति से जुड़ा रहता है।
    उपवर्ग थीरिया को दो अधोवर्गों (Infra classes) में वर्गीकृत किया गया है

(अ) अधोवर्ग- मैटाथीरिया (Infraclass-Metatheria)-

  1. ये प्रारम्भिक प्रकार के स्तनधारी हैं। इनके शिशु अपरिपक्व अवस्था में पैदा होते हैं। इनका शेष परिवर्धन मादा के उदर पर स्थित मासूपियम में पूर्ण होता है।
  2. इनके स्तनग्रंथियों में चूचक (nipples) पाये जाते हैं। ये भी मासूपियम (शिशुधानी) के अन्दर स्थित होते हैं।
  3. कार्पस केलोसम (Corpus Callosum) कम विकसित यो अनुपस्थित होता है।
  4. दांत जीवन में एक बार निकलते हैं अर्थात् एकबारदन्ती (monophyodont) होते हैं।
  5. इनकी श्रोणी मेखला (Pelvic Girdlo) में एपीप्यूबिक या मार्क्सपियल अस्थि पायी जाती हैं।
  6. गर्भाशय एवं योनि दोनों युग्मित रचनाएं होती हैं।
  7. इनमें योक सेक (Yolk Sac) प्लैसेन्टा पाया जाता है। इस अधोवर्ग में सिर्फ एक गण मासूपियेलिया होता है। इसके लक्षण मेटाथीरिया के समान ही हैं। उदाहरण- मेक्रोपस (कंगारू), ओपोसम (डाइडेलिफिस)।

(अ) अधोवर्ग- यूथीरिया (Infra Class-Eutheria)-

  1. भ्रूण मादा के गर्भाशय में वास्तविक प्लैसेन्टा एलेन्टॉइक प्लैसेन्टा के द्वारा पोषण प्राप्त करते हैं। शिशु जन्म परिपक्व अवस्था में होता है।
  2. मार्क्सपियम तथा एपीप्यूविक अस्थि अनुपस्थित होती है।
  3. स्तनग्रंथियां सुविकसित तथा चुचुकयुक्त होती हैं।
  4. कार्पस केलोसम (corpus callosum) भी सुविकसित होता है।
  5. अवस्कर (cloaca) का अभाव, गुदा उपस्थित होती है।
  6. गर्भाशय एवं योनि केवल एक-एक उपस्थित होती है।

इस अधोवर्ग की जीवित जातियों को करोटि दांतों आदि लक्षणों के आधार पर 16 गणों में बांटा गया है, जिनके निम्नलिखित उदाहरण हैं- एरीनेसियस-हेजहॉक-झाऊ चूहा, टेरोपस-फलभक्षी चमगादड़ या उड़न लोमड़ी, राइनोपोमा-कीटभक्षी चमगादड़, रेटस घरेलू चूहा, व्हेल, डाल्फिन, कुत्ता (canisfamdiaris)। शेर (Panthera leo), बाघ (Panthera tigris – भारत का राष्ट्रीय जन्तु), हाथी, भेड़, भैंस, घोड़ा, गधा, हिरन, चिम्पेन्जी बन्दर एवं मनुष्य (होमोसेपयन्स) । सोरेक्स (sorex या श्रु-सबसे छोटा स्तनी), चिंकारा (Gazella)-राजस्थान का राज्य पशु । फैलिस डोमेस्टिका (Felis domecticus-बिल्ली) ।

प्रश्न 2.
रेप्टीलिया वर्ग के प्रमुख लक्षणों को उदाहरण सहित समझाइये?
उत्तर-
वर्ग-रेप्टीलिया/सरीसृप ( Reptilia )
मीसोजोइक युग इस वर्ग के लिए सरीसृपों (Reptiles) का स्वर्ण युग (Golden periods of Reptiles) कहा जाता है।
रेप्टिलिया वर्ग के प्राणियों के अध्ययन को हरपेटोलोजी (Herpatology) कहते हैं।

  • इस वर्ग के अधिकांश जन्तु रेंगकर चलने वाले या बिलवासी होते हैं।
  • शरीर स्पष्ट रूप से चार भागों में विभक्त होता है- सिर, गर्दन, धड़ तथा पूंछ।।
  • दो जोड़ी पाद (two pair limbs) पाये जाते हैं, जिन पर प्रारूपिक रूप से. 5-5 नखरित (clawed) अंगुलियाँ होती हैं। सर्यों में पाद का अभाव होता है।
  • त्वचा शुष्क (dry), शल्कयुक्त व ग्रंथिविहीन होती है। इनमें किरेटिन द्वारा निर्मित एपिडर्मल शल्क पाये जाते हैं। कुछ जन्तुओं में अस्थिमय प्लेट्स (bony plates) पाये जाते हैं।
  • अन्त:कंकाल अस्थियों का बना होता है।
  • खोपड़ी में केवल एक ऑक्सीपिटल कन्द (occipital condyle) पाया जाता है। इसे मोनोकाण्डाइली अवस्था कहते हैं।
  • मुख शीर्षस्थ होता है व जबड़ों पर दांत पाये जाते हैं। कछुओं में दांत अनुपस्थित होते हैं व इनके स्थान पर श्रृंगीय चोंच (horny beak) पायी जाती है।
  • हृदय अपूर्ण रूप से चारवेश्मी (incompletely four chambered) होता है। इसमें दो आलिन्द तथा अपूर्ण निलय होते हैं। लेकिन मगरमच्छ में निलय का भी पूर्ण विभाजन हो जाता है।
  • इसमें 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएं (cranial nerves) पायी जाती है।
  • लाल रक्त कणिकाएं उभयोतल (biconvex), अण्डाकार (oval) तथा केन्द्रकयुक्त (nucleated) होती है।
  • एम्फीबिया की भांति असमतापी अर्थात् शीत रुधिर (coldblooded) जन्तु जो सुप्तावस्था का सहारा लेते हैं।
  • उत्सर्जन के आधार पर मुख्यतः यूरिकोटेलिक प्राणी है। वृक्क मेटानेफ्रिक (metanephric) प्रकार के होते हैं।
  • इनमें अवस्कर (cloaca) पाया जाता है। जननवाहिनियाँ मलाशय का मूत्रवानिहियाँ अवस्कर में खुलती हैं।
  • क्रोकोडाइल्स, एलीगेटर्स में मूत्राशय का अभाव होता है।
  • श्वसन (Respiration) केवल फेफड़ों के द्वारा होता है।
  • ये एकलिंगी (nuisexual) होते हैं। इनमें नर व मादा प्राणी पृथक्-पृथक् होते हैं। नर में डबल या हेमीपेनिस पाया जाता है।
  • अण्डे अतिपीतकी होते हैं। निषेचन आन्तरिक होता है। भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान बाह्य भ्रूणीय कला का निर्माण होता है।
    RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-4
    RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-5
    RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-6
  • अण्डे सकोशी (celidoic) पाये जाते हैं, जिनके चारों ओर CaCO3, का कवच पाया जाता है।
  • इनमें विदलेन चक्रीकाय अंशभंजी (discoidal meso blastic) प्रकार का होता है।
  • परिवर्धन प्रत्यक्ष (direct) प्रकार का होता है।

उदाहरण-के लोटस (बगीचे की छिपकली), ऐलीगेटर (ऐलीगेटर), क्रोकोडाइल्स (घड़ियाल), केमलिओन (वृक्ष छिपकली), हैमीडेक्टायल्स (घरेलू छिपकली), जहरीले सर्प- नाजा (कोबरा), वंगेरस (क्रेत), वाइपर।।

वर्ग रेप्टीलिया का वर्गीकरण इनकी कोटि के टेम्पोरल भाग में टेम्पोरल छिद्र की अनुपस्थिति या उपस्थिति होने पर त्वचा इन छिद्रों की संख्या के आधार पर किया जाता है। रेप्टीलिया वर्ग को पांच उपवर्गों में विभक्त किया गया है। इनमें तीन उपवर्गों के प्राणी लुप्त हो चुके हैं जो निम्न हैं- उपवर्ग सिनैप्सिडा (Synapsida), पैरेप्सिडी (parapsida) एवं यूस्सेप्सिडा (Euryapsida)

  • उपवर्ग- एनेप्सिडा (Subclass- Anapsida)-इस वर्ग के सदस्यों के टेम्पोरल भाग में टेम्पोरल छिद्र (temporal fossa) अनुपस्थित होता है अर्थात् करोटि की छत पूर्ण होती
  • उपवर्ग डाइऐप्सिडा (subclass-Diapsida)-इस वर्ग के सदस्यों के टेम्पोरल भाग से एक जोड़ी ऊपरी (Superior) तथा एक जोड़ी निचले (Inferior) टेम्पोरल छिद्र
    पाये जाते हैं।

उदाहरण-के लोटस (बगीचे की छिपकली), ऐलीगेटर (ऐलीगेटर), क्रोकोडाइल्स घड़ियाल, क्रेमलिओन (वृक्ष छिपकली), हैमीडेक्टायल्स (घरेलू छिपकली), जहरीले सर्प-नाजा (कोबरा), वंगेरस (क्रेत), ड्रेको-उड़न छिपकली, हीलोडर्मा संसार की एक मात्र जहरीली छिपकली, ओफियोसोरस-पादहीन छिपकली, हाइड्रोफिश-समुद्री सांप, टिप्लोप्स-अंधा सर्प, गेवेगेलिस-घड़ियाल, अजगर-सबसे बड़ा विषहीन सांप, स्फीनेडॉन पन्क्टेटम- टुआटरा जीवित जीवाश्म।

वर्ग रेप्टीलिया का आर्थिक महत्व-
इस वर्ग के जन्तुओं में सर्प आर्थिक दृष्टि से लाभकारी एवं हानिकारक प्राणी है।

लाभदायक जन्तु

  • विनाशकारी जन्तुओं का भक्षण-
    ऐसे जन्तु जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे-चूहे, गिलहरी, टिड्डे आदि का सांप द्वारा भक्षण किया जाता है। जिससे इनके द्वारा होने वाले फसल के नुकसान को बचाया जाता है। इसी प्रकार खाद्य श्रृंखला में भी सांप का महत्वपूर्ण रोल है।
  • औषधि के रूप में-
    सर्यों से प्राप्त विष बहुत महत्वपूर्ण है। जिसका उपयोग विभिन्न रोगों में औषधि के रूप में किया जाता है।
  1. हिमोफिलिया रोग से ग्रसित व्यक्ति, जिसमें रक्त स्त्राव को रोकने, रुधिर का थक्का के निर्माण हेतु एक आयुर्वेदिक औषधि का निर्माण किया जाता है। यह औषधि रसलवाइपर नामक सर्प (Russel viper) के विष से तैयार की जाती है।
  2. दमा रोग, तंत्रिका थकावट एवं मिर्गी जैसे रोगों के उपचार हेतु होम्योपैथिक औषधि का निर्माण किया जाता है। यह औषधि रेटल सर्प के विष से तैयार की जाती है।
  3. इसी प्रकार कोबरा के विष का प्रयोग निम्नांकित रोगों के उपचार हेतु औषधियों में प्रयुक्त किया जाता है। तंत्रिका जनित रोग, दर्द निवारक गोलियां एवं इंजेक्शन निर्माण, होम्योपैथिक औषधि में हृदय रोग के लिए उपयोग किया जाता है।
  • प्रयोगशाला में प्रादर्श एवं सूक्ष्म अध्ययन हेतु उपयोग-
    जीवविज्ञान के विद्यार्थियों द्वारा प्रयोगशाला में इनका अध्ययन किया जाता है। इस वर्ग के जन्तुओं को फोरमलीन के घोल में रखा जाता है। जो एक प्रादर्श के रूप में होते हैं। इसकी आंतरिक संरचना के लिए विद्यार्थियों द्वारा विच्छेदन भी किया जाता है। जैसे वेरेनस।।
  • हानिकारक महत्व-
    सर्प विष में Ca की अधिकता होने के कारण, तंत्रिका तथा पेशियों के पक्षाघात से श्वसन गति रुक जाती है जिससे मृत्यु हो जाती है। सर्प विष तंत्रिका तंत्र एवं हृदय कार्य को अधिक प्रभावित करता है। जिससे दम घुटने के कारण मृत्यु हो जाती है। जैसे कोबरा विष श्वसन तंत्र के कार्य को तत्काल रोकता है। समुद्री सर्प तंत्रिका तंत्र पर शीघ्र प्रभाव डालता है।

प्रश्न 3.
ऐम्फीबिया वर्ग के प्रमुख लक्षणों को लिखिए?
उत्तर-
वर्ग- एम्फीबिया (Amphibia)

  • इस वर्ग के सदस्य जल व थल दोनों पर निवास करते हैं। अतः इन्हें उभयचर (Amphibians) कहते हैं।
  • सिर स्पष्ट, धड़ लम्बा होता है। पूंछ (Tail) उपस्थित या अनुपस्थित ।
  • दो जोड़ी पंचांगुली पाद (pentadactyle limb) पाये जाते हैं । अग्रपाद (fore limbs) में चार व पश्च पाद (hind limbs) में पांच अंगुलियाँ पायी जाती हैं। एपोडा में पाद अनुपस्थित।
  • त्वचा नम एवं ग्रंथिल होती है। त्वचा पर बहुकोशकीय श्लेष्मा ग्रंथियाँ पायी जाती हैं। शल्क अनुपस्थित। कुछ सदस्यों में विष ग्रंथियाँ पायी जाती हैं।
  • मुख में समदंती (homodont), बहुवारदंती व शिखदंती (acrodont) होते हैं।
  • ये असमतापी (cold blooded or polykothermal) प्राणी हैं। इनके शरीर का ताप वातावरण के ताप के साथ बदलता रहता है।
  • श्वसन फुफ्फुस (lungs), त्वचा (skin), मुखगुहा (buccal cavity) आदि द्वारा होता है। लार्वा में गिल्स द्वारा श्वसन होता है। प्रोटियस साइरन आदि में गिल्स पाये जाते हैं।
  • इनका हृदय तीन वेश्मी (three chambered) होता है। इनमें दो आलिन्द व एक निलय होता है। एक बड़ा शिरापात्र (sinus venosus) पाया जाता है। यह दायां आलिन्द में खुलता है।
  • यकृत व वृक्क निवाहिक उपतंत्र उपस्थित । लाल रुधिर कणिकाएं केन्द्रयुक्त (nucleated) होती हैं।
  • उत्सर्जन के आधार पर यूरियोटेलिक प्राणी हैं। इनमें मीसोनेफ्रिक वृक्क पाये जाते हैं।
  • इनके सदस्यों में अवस्कर पाया जाता है जिसमें मूत्राशय, मूत्र वाहिनियां, जनन वाहिनियां व मलाशय पाया जाता है।
  • दो नासा छिद्र उपस्थित, बाह्य कर्ण अनुपस्थित, मध्य कर्ण में केवल एक कर्ण अस्थिका काल्यूमेला (collumella) उपस्थित नेत्र पलक वाले होते हैं।
  • इनका कपाल आटोस्टाइलिक प्रकार का होता है एवं दो आक्सीपिटल कोन्डाइल, पाये जाते हैं।
  • त्वचा में रंग बदलने की क्षमता पायी जाती है, इसे मेटाक्रोसिस कहते हैं। त्वचा के नीचे लसिका स्थान (lymph space) पाये जाते हैं।
    RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-7
  • प्राणी एकलिंगी, मैथुन अंग अनुपस्थित, ये अण्डप्रजक (oviparous) होते हैं। अण्डे जैली के आवरण में लिपटे रहते हैं।
  • अण्डे मध्य पीतकी होते हैं। निषेचन बाह्य (external) प्रकार का होता है । असमान पूर्ण भंजी विदलन (Hloloblastic unequal cleavage) होता है।
  • परिवर्धन अप्रत्यक्ष लार्वा अवस्था पाई जाती है । इसके लार्वा को टेडपोल कहते हैं। चिरभ्रूणीयता में लार्वा परिपक्व होकर जनन आरम्भ कर देते हैं।

उदाहरण- बुफो (टोड), राना टिग्रीना (मेंढक), हायला (वृक्ष मेंढक), सैलामेन्ड्रा (सेलामेन्डर), इक्थियोफिस (पादरहित उभयचर) एवं अन्धाकृमि, रेकोफोरस (Rhacophorus)-उड़ने वाला मेंढक, नेक्टयूरस (Necturus)-जलीय कुत्ता, एम्फीयूमा (Amphiuma), कोगोईल (congoeel) इसकी RBC सबसे बड़ी होती है। साइरन (siren) कीचड़ईल (mudeel) पश्च पादों का अभाव।

वर्ग- एम्फीबिया का आर्थिक महत्व ( Economic Importance of Amphibia)
एम्फीबिया वर्ग के जन्तुओं का आर्थिक (लाभकारी) निम्न है

  1. भोजन की दृष्टि-
    मेंढक की टांगों में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा | पाई जाती है। इसके साथ ही ओमेगा-3, वसीय अम्ल, विटामिन ए एवं पोटेशियम भी पाया जाता है। इनका स्वाद मछली और चिकन के मध्य का होता है। संयुक्त राज अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, चीन, पणजी गोआ में इसके मांस का उपयोग किया जाता है। मेंढक का मांस स्वादिष्ट होता है। इसमें संतृप्त वसा की मात्रा न्यूनतम होती है। इसके साथ ही इसमें थायमीन राइबोफ्लोविन, आयरन, फास्फोरस आदि की मात्रा भी प्रचुर होती है जो शरीर के लिए लाभदायक होता है।
    नेक्टयूरेस (Necturus) और ऐक्सोलोटल्स (Axolotls) उभयचर जन्तु अमेरिका तथा सैलामेन्डर, एण्डुिअस जापान में खाद्य के रूप में खाये जाते हैं।
  2. औषधि के रूप में-
    वैज्ञानिकों के अनुसार मेंढक की त्वचा से स्रावित होने वाली प्रोटीन के द्वारा कैंसर का इलाज व अन्य बीमारियों का उपचार किया जाता है। इसी प्रकार मेंढक की त्वचा से स्रावित पदार्थ द्वारा रुधिर चाप (Blood presure) बढ़ाने में सहायक होता है।
  3. व्यापार एवं मनोरंजन के रूप में-
    व्यापार एवं मनोरंजन की। दृष्टि से मेंढक की त्वचा (skin) महत्वपूर्ण है। इसकी त्वचा से कोमल बटुए एवं किताबों के जिल्द तैयार किये जाते हैं। मनोरंजन के लिए मेंढक व भेक अपने घरों की जलजीवशाला में रखे जाते हैं। अमेरिका में प्रतिवर्ष उछलने वाले मेंढकों (बुलफ्रोग-Bull Frogs) की कूद प्रतियोगिता मनोरंजन के लिए आयोजित की जाती है।
  4. परभक्षण-
    मेंढक कीटों को नष्ट (भक्षण द्वारा) करने में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं जो एक कीटनाशक का कार्य करते हैं। फ्रांस में माली उद्यानों को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए भेकों को खरीदकर उद्यानों में छोड़ दिया जाता है। गन्ने के खेतों में ब्यूफो मैरिनस (Bufomarinus) द्वारा हानिकारक कीटों का भक्षण किया जाता है।
    खाद्य श्रृंखला में मेंढक एवं भेक सूर्य ऊर्जा (Solar Energy) को उपलब्ध करवाने में सहायता प्रदान करते हैं। इसके साथ ही पक्षियों, सांप एवं अन्य जन्तुओं के लिए महत्वपूर्ण भोजन के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
  5. प्रयोगशाला में अध्ययन के रूप में-
    प्राणी विज्ञान में जन्तुओं की संरचना एवं कार्यों को भली प्रकार परिचित हो जाने के उद्देश्य से विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की प्रयोगशालाओं में विद्यार्थियों द्वारा विच्छेदन कर अध्ययन किया जाता है। विच्छेदन से प्रत्येक अंग की संरचना का अध्ययन बिना किसी यंत्र की सहायता से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मेंढक की रचना का अध्ययन करने से यह भी ज्ञान हो जाता है कि इसकी और मनुष्य की शारीरिक रचना में बहुत समानता है।
    नेक्टयूरस का प्रयोग विच्छेदन एवं अनुसंधान में किया जाता है। वर्तमान में सरकार द्वारा विच्छेदन पर रोक लगा दी गई है।
  6. हानिकारक महत्व-
    भेक (ब्यूफो मैरिनस-Bufomelanostictus) की त्वचा में विषैली ग्रन्थियां पाई जाती हैं, ये ग्रंथियां एक जगह एकत्रित होकर पैरोटिड ग्रन्थियां (parotidglards) बनाती है। इन ग्रंथियों से एक गाढ़ा, दूधिया स्राव निकलता है जो उत्तेजक एवं विषैला होता है। यदि कोई जन्तु इस भेक का भोजन के रूप में ग्रहण करता है तो तुरन्त उस जन्तु के श्वसन में कमी एवं पक्षाघात (paralysis) से ग्रसित हो जाएगा।
    अमेरिका में जनजातियों के लोग तीरों के नुकीले स्थान विषैला बनाने के लिए डेंड्रोबेटीज (Dendrobates) के विष का प्रयोग करते

प्रश्न 4.
पिसीज वर्ग के वर्गीकरण को उदाहरण सहित समझाइये?
उत्तर-

  1. सभी जन्तु जलीय (aquatic) होते हैं, ये अवलवणीय (freshwater) तथा समुद्री (marine) दोनों प्रकार के जल में पाये जाते हैं ।
  2. शरीर तरूपी (spindle shaped) होता है जो सिर (head) धड़ (trunk) तथा पूच्छ (tail) में विभेदित होता है।
  3. शरीर तैरने में सुविधा के लिए धारा रेखित (Stream lined) होता है।
  4. इनका शरीर शल्कों (scales) से ढका रहता है।
  5. तैरने के लिए जोड़ीदार अंश (Pectrol) तथा श्रोणी पंख (pelvic fins) पाये जाते हैं। इनके अलावा मध्य पृष्ठीय (median dorsal) तथा पूच्छीय पंख (caudal fin) भी होते हैं
  6. अन्तःकंकाल उपास्थि (cartilage) या अस्थि (bone) का बना होता है।
  7. श्वसन (Respiration) क्लोमो (gills) के द्वारा होता है। क्लोम 5 से 7 जोड़ी होते हैं जो खुले या ऑपर कुलम (operculum) से ढके रहते हैं।
  8. पाश्र्व रेखा सवेदांग (Lateral line Sense organs) पाये जाते हैं।
  9. हृदय (heart) द्वि कक्षीय (two chambered) होता है, इसे वीनस हृदय’ (venous heart) आता है जो शुद्धिकरण हेतु हृदय से क्लोमों में जाता है तथा वहां से शुद्ध रक्त (pure blood) सीधा शरीर के विभिन्न अंगों में चला जाता है, अर्थात् रुधिर का परिसंचरण एक परिपथ (unicircuit) होता है।
  10. इनकी लाल रक्त कणिकाएँ (RBC) केन्द्रकमय (nucleated) होती हैं। शिरा कोटर (sinus venosus) तथा वृक्क निवाहिका उपतंत्र उपस्थित होते हैं।
  11. ये अनियमितमापी (poliothermal) होते हैं।
  12. क्रेनियल तंत्रिकाएं (cranial nerves) 10 जोड़ी होती हैं ।
  13. बाह्य व मध्यकर्ण अनुपस्थित होते हैं, सिर्फ अन्त:कर्ण (Internal ears) पाये जाते हैं।
  14. मछलियों में वृक्क (kidney) मीसोनेफ्रोस (mesonephros) प्रकार के होते हैं। उपस्थिल मछलियां (cartilaginous fishes) यूरिया (Urea) का तथा समुद्री अस्थिल मछलियां ट्राइमिथाइल अमीन (trimethylamine) का उत्सर्जन करती हैं।
  15. मछलियां एक लिंगी (unisexual) होती हैं।
  16. निषेचन (fertilizatim) आन्तरिक (Internal) या बाह्य (External) प्रकार का होता है।
  17. अण्डे (eggs) मध्यपीतकी (mosolecithal) या अतिपतिकी (megalecithal) प्रकार के होते हैं।
  18. जन्तु अण्डयुज (Oviparous) या अण्डजरायुज (oviparous) प्रकार के होते हैं।
  19. विदलन (Cleavage) असमान पूर्णभंजी (holoblastic unequal) या चक्रि काय अंशमजी (meroblastic discaodal) प्रकार का होता है।
  20. इनमें बाह्य भ्रूणीय झिल्लियां (Extra embryonic membrane) अनुपस्थित होती है, इसलिए इन्हें एनएम्नीओटा (anamniota) समूह में रखा जाता है।
  21. मछलियों में एक निश्चित मौसम में स्थानान्तरण (Season migration) होता है। यह दो प्रकार का होता है

(अ) अलवणीय जल (Freshwater) से समुद्री जल (marine water) में स्थानान्तरण को केटाड्रोमस (Catadromous) स्थानान्तरण कहते हैं। उदाहरण- एन्गुइला (Anguilla)

(ब) समुद्री जल (marine water) से अलवणीय जल (Fresh water) में स्थानान्तरण को एनड्रोमस (Anadromous) स्थानान्तरण कहते हैं। उदाहरण-सालमन, हिलसा ट्राऊट।

वर्गीकरण (Classification)-
रोमर (Romer, 1959) पार्कर एवं हेजवेल (Parkar and Haswell, 1960) के अनुसार महावर्ग-पिसीज को तीन वर्गों (Classes) में विभाजित किया गया

  1. प्लैकोडर्मी (Placodermi)
  2. कॉन्डिक्थीज (Chondrichthyes)
  3. आस्टिक्थीज (Osteichthyes)

1. वर्ग- प्लेकोडर्मी ( Class- Placodermi)

  • इस वर्ग में डेवोनियन से परमियन (Devonian to Permian) युग तक जीवित रहने वाली विलुप्त (extinct) मछलियाँ आती हैं। अतः ये प्रथम अलवणीय जल की मछलियां थीं।
  • इनके शरीर पर अस्थिल प्लेटों (bony plates) का आवरण पाया जाता था, इसलिए इन्हें कवचित मछलियां (armored fishes) कहते हैं।
  • इनमें दांत व जबड़े कम विकसित थे एवं टखनों में बड़ेबड़े कांटे पाये जाते हैं।
    उदाहरण-क्लाइमेटीयम (Climatius) एवं डायनिक्थीज (Dianichthves)

2. वर्ग- कॉण्डूिक्थीज (Chondrichthyes)

  • इस वर्ग के सदस्य समुद्रीय होते हैं।
  • इनका अन्त:कंकाल उपास्थिल (Cartilagenous) होता
  • बाह्य कंकाल प्लेकॉयड शल्कों का बना होता है।
  • इनमें 5-7 जोड़ी गिल दरारें (gill slits) पायी जाती हैं।
  • गिल दरारों पर ऑपरकुलम अनुपस्थित।
RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-8
  • इसमें J की आकृति का आमाशय पाया जाता है तथा इनकी आन्त्र में सर्पिल कपाट (spiral valve) पाया जाता है।
  • नर प्राणी में क्लास्पर (Clasper) मैथुनी अंग के रूप में पाये जाते हैं। अवस्कर पाया जाता है।
  • इस वर्ग की मछलियों के सिर के पृष्ठ भाग पर लोरेंजिनी तुम्बिकाएं (ampulla of lorenzimi) तापग्राही संवेदांग पाये जाते हैं।
  • हृदय में दो वेश्म एक आलिन्द व एक निलय पाया जाता है। इनके अलावा हृदय में शिराकोटर तथा कोनस आर्टिरियोस पाया जाता है।
  • ये असमतापी (polikothermal) होते हैं अर्थात इनमें शरीर का तापमान नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है।
  • इस वर्ग के प्राणियों में वायुकोष की अनुपस्थिति के कारण ये डूबने से बचने के लिए लगातार तैरते रहते हैं।
  • मुख द्वार सिर के अधरतल पर स्थित, जबड़े मजबूत एवं दांत उपस्थित।
  • कुछ मछलियों में विद्युत अंश (electric organ) पाये जाते हैं, जैसे-टॉरपीडो। इसी प्रकार कुछ में विष दंश होते हैं, जैसे- ट्राइगोन।
  • नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं अर्थात् एकलिंगी (unisexual) निषेचन आन्तरिक होता है।
  • ये अण्डप्रजक (oviparous) या शिशुप्रजक (जरायुज) होते हैं।
    उदाहरण-स्कॉलियोडोन (कुत्ता मछली), प्रीस्टिस (आरा मछली), कारकेरोडोन (विशाल सफेद शार्क), ट्राइगोन (व्हेल शार्क)।
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3. वर्ग- ओस्टिक्थीज (Osteicthyes)-
सबसे विकसित, Freita Hafstei (Bony fishes)

  • इस वर्ग की मछलियां लवणीय (marine) तथा अलवणीय (fresh water) दोनों प्रकार के जल में पायी जाती हैं।
  • अन्तःकंकाल अस्थिल (bony) होता है। त्वचा पर साइक्लॉइड (cycloid) एवं गैनोयड (Ganoid) शल्क पाये जाते हैं।
RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-10
  • मुख अधिकांशतः अग्र सिरे के अन्त में होता है। दांते व जबड़े उपस्थित । इनका शरीर धारारेखित होता है।
  • चार जोड़ी क्लोम छिद्र दोनों ओर ऑपरकुलम (operculum) से ढके रहते हैं।
  • वायु कोष (air bladder) उपस्थित होता है, जो उत्प्लावन में सहायक है।
  • हृदय उपस्थित, हृदय में दो वेश्म, एक आलिन्द वे एक निलय पाया जाता है।
  • ये सभी असमतापी (polykothermal) होते हैं।
  • एकलिंगी (unisexual), जनद जोड़ीदार, अधिकांश अंडज होते हैं।
  • निषेचन बाह्य प्रकार का होता है। परिवर्धन प्रत्यक्ष (direct) होता है।

RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 31 कशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण img-11
उदाहरण-समुद्री- एक्सोसिटस (उड़न मछली), हिप्पोकेम्पस (समुद्री घोड़ा), अलवणीय लेबिओ (रोहू), क्लोरियस (केट मछली), पेट्रोप्डसम (एंगज मछली), एक्वोरियम बेटा (फाइटिंग फिश), गैम्बूसीया (मच्छर मीन)। एमिया (Amia)- धनुष मछली, लेटिमेरिया (Latemaria-जीवित जीवाश्म, प्रोटोप्टेरस फुफ्फुस मछली)।

वर्ग-पिसीज का आर्थिक महत्व
पिसीज वर्ग की मछलियों को व्यावसायिक दृष्टि एवं अन्य उत्पादों के महत्व के कारण इनका पालन किया जाता है जिसे मत्स्य पालन कहते हैं।

  • भोजन के रूप में-कोचीन की केन्द्रकीय तकनीकी मत्स्य उद्योग संस्थान (IFT) ने मछलियों से एक प्रकार का मत्स्य आटा (Fish flour) तैयार किया जाता है। मछलियों से प्राप्त भोजन में प्रोटीन की मात्रा अन्य सभी प्रकार के भोजनों से अधिक होता है तथा प्रोटीन शीघ्र पच जाती है। इसका बिस्कुट, डबलरोटी, केक, मिठाई व सूप के रूप में प्रयोग किया जाता है। कई मछलियों में हीमोग्लोबिन की मात्र अधिक पाई जाती है। जैसे- वैलेगा अट्टू (wallagoattu) थायमीन, क्रिएटिन टैररिन, यइरोसीन जैन्थीन एवं विटामिन B का मुख्य स्रोत है। इसके अतिरिक्त विटामीन डी, सी व ई भी होता है। यह सब भोजन में आसानी से पच जाता है। उदाहरण लेबियो रोहिता, कतला, लेबियो कालवासू ।।
  • मत्स्यपालन-मछलियों को पालन स्वादिष्ट एवं अधिकांश पौष्टिक मांस प्राप्ति हेतु किया जाता है। उदाहरण- टिन्का टिन्का क्रसियन कार्प, केरेसियस केरेसियस एवं साइप्रिन्स कारपियो आदि।
  • उद्योग की दृष्टि से-
  1. शरीर तेल-चमड़ा उद्योग में मछली के तेल को चायमोसिंग के लिए प्रयोग किया जाता है। मत्स्य शरीर तेल का उपयोग मोमबत्ती, स्नेहक, सौन्दर्य प्रसाधनों, पेन्ट एवं वार्निश निर्माण में किया जाता है। मत्स्य गोंद मछली के पूंछ भाग से प्राप्त किया जाता है।
  2. मत्स्य त्वचा-जापान में मछली की त्वचा से लालटेन बनाई जाती है। इनकी त्वचा से ताश के डिब्बे, आभूषण के डिब्बे, तलवार की म्यान, जूते, स्त्रियों के पर्स, तम्बाकू को रखने वाले थैले भी बनाए जाते हैं। उदाहरण शार्क तथा रे मछली। इसके अतिरिक्त वायु आशय (airbladder) से हनीकोम्ब (Honey comb) पुस्तक तथा रिबन भी तैयार किये जाते हैं।
  3. रजत शल्क द्वारा मोती निर्माण-शल्कों से प्राप्त वर्णक को खुरच कर निकाल लिया जाता है एवं कांच के मोती पर लगाकर मोम भर मोती तैयार किया जाता है। उदाहरण- ब्लैक फिश-एल्ब्यूनस (Blackfish-albunus)
  • औषधि के रूप में-कॉड मछली के यकृत से प्राप्त तेल को कॉडमछली का तेल (cod liver oil) कहते हैं। इसमें विटामिन ए, सी, डी व ई की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। यह उन व्यक्तियों जो कि अभाव रोग से ग्रसित है उनके लिए तेल उपचार हेतु औषधि का कार्य करता है। उदाहरण, हथौड़ा मछली, शार्क, हैलीबट मछली एवं टूना आदि।
  • मत्स्य चूर्ण-मत्स्य चूर्ण प्रक्रिया डिब्बाबंदी या मत्स्य तेल उद्योग के उत्पादन में बचे हुए भाग या बिना तेल वाली मछलियों से बनाया जाता है। कॉड उद्योग के वर्त्य सफेद मत्स्य चूर्ण के नाम से जाना जाता है।
    मत्स्य चूर्ण का उपयोग पालतू जन्तुओं जैसे सुअर, मुर्गीपालन, मवेशी आदि के लिए वृहद भोजन के रूप में होता है। इसमें शीघ्रता से पचाने वाली प्रोटीन, कैल्सियम एवं फास्फोरस होता है।
  • उर्वरक के रूप में-मत्स्य चूर्ण तैयार करते समय बचे पदार्थ का उपयोग कॉफी, चाय व तम्बाकू की खेती में उर्वरक के रूप में किया जाता है।

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