RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 26 प्राणिविज्ञान: परिचय

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 26 प्राणिविज्ञान: परिचय

RBSE Class 11 Biology Chapter 26 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 26 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पैलिओन्टोलॉजी के अन्तर्गत अध्ययन होता है
(अ) हड्डी का
(ब) प्राइमेट्स का
(स) विलुप्त जन्तुओं का
(द) जीवाश्मों का

प्रश्न 2.
शब्द “जीवविज्ञान’ किसने दिया।
(अ) डार्विन व ट्रैविरेनस ने
(ब) लैमार्क व ट्रैविरेनस ने
(स) डार्विन वे वैलेस ने
(द) लैमार्क व डार्विन ने

प्रश्न 3.
जन्तु विज्ञान का जनक किसे माना जाता है।
(अ) अरस्तू को
(ब) डार्विन को
(स) लैमार्क को
(द) हिप्पोक्रेटस को

प्रश्न 4.
वातावरण (पर्यावरण) के सम्बन्ध में जन्तुओं के अध्ययन की शाखा है।
(अ) इक्थियोलॉजी
(ब) इकोलॉजी
(स) पैलिओन्टोलॉजी
(द) फिजियोलॉजी

प्रश्न 5.
जन्तुविज्ञान की शाखा जिसमें वंशागति का अध्ययन होता है
(अ) उविकास
(ब) भौणिकी
(स) आनुवांशिकी
(द) पारिस्थितिकी

प्रश्न 6.
जाति का सिद्धांत किसने दिया था
(अ) जॉन रे
(ब) मारसैलो मैलपीजी
(स) डार्विन
(द) लैमार्क

प्रश्न 7.
चिकित्सा शास्त्र का जनक किसे कहा जाता है
(अ) अरस्तू को
(ब) थियोफ्रेस्टस को
(स) हिप्पोक्रेटस को
(द) विलियम हार्वे को

उत्तर तालिका
1. (द)
2. (ब)
3. (अ)
4. (ब)
5. (स)
6. (अ)
7. (स)

RBSE Class 11 Biology Chapter 26 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अरस्तू द्वारा लिखी गई पुस्तका का नाम लिखिए।
उत्तरे-
अरस्तू द्वारा हिस्टोरिया एनीमेलियस (Historia animaloum) नामक पुस्तक लिखी गई।

प्रश्न 2.
जन्तुओं में रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज किसने की थी? नाम बताओ।
उत्तर-
जन्तुओं में रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने की थी।

प्रश्न 3.
आधुनिक भौणिकी के जनक किसे कहा जाता है।
उत्तर-
आधुनिक भौणिकी के जनक वॉन बेयर (Von-Baer) को कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पैलिओन्टोलॉजी में किसको अध्ययन किया जाता है?
उत्तर-
पैलिओन्टोलॉजी में जीवाश्मों (Fossils) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 5.
मानव नस्ल में सुधार का अध्ययन जन्तु विज्ञान की किस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है?
उत्तर-
मानव नस्ल में सुधार का अध्ययन जन्तु विज्ञान की शाखा सुजननिकी (Eugenics) में किया जाता है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 26 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गिकी की परिभाषा दीजिये।
उत्तर-
समानताओं एवं असमानताओं के आधार पर जन्तु, जातियों को छोटे-बड़े समूहों में बांटना वर्गीकरण कहलाता है। जन्तु जातियों का सही निर्धारण करके इन्हें वैज्ञानिक नाम देना नामकरण कहलाता है। नामकरण और वर्गीकरण तथा इनके सिद्धांतों नियमों, विधियों आदि के अध्ययन को वर्गीकरण विज्ञान या वर्गिकी (Taxonomy) कहते हैं।

प्रश्न 2.
मेडल के नियमों की पुनः खोज किन वैज्ञानिकों ने की। थी?
उत्तर-
मेडल के नियमों की पुनः खोज निम्न तीन वैज्ञानिकों ने की थी।

  • हालैण्ड के ह्यूगो डी ब्रीज (Hugodevries)
  • जर्मनी के कार्ल कोरेन्स (Karl Correns)
  • आस्ट्रिया के एरिक वान शेरेमेक (Eric Van Tschermak)

प्रश्न 3.
विशुद्ध एवं व्यावहारिक जीव विज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर –
विशुद्ध एवं व्यावहारिक जीव विज्ञान में अन्तर
(Difference between Pure & Applied Zoology)

विशुद्ध जन्तुविज्ञान
(Pure Zoology)
व्यावहारिक जन्तु विज्ञान
(Applied Zoology)
1. इसमें जन्तु विज्ञान का अध्ययन केवल ज्ञानापार्जन या ज्ञान की वृद्धि के लिए किया जाता है।जबकि इसमें जन्तु विज्ञान को अध्ययन मानव कल्याण एवं आर्थिक लाभ को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
2. उदाहरण-जन्तु विज्ञान की शाखाएं जैसे प्राणिभूगोल (Zoo geography) भ्रौणिकी (Embryology) जीवाश्म विज्ञान (Paleontology)आदि।उदाहरणः पशुपालन (Animal husbandry) मत्स्य विज्ञान (Fisheries) रेशमकीट पालन (Cericulture) मधुमक्खी पालन (Epiciulture) मुर्गीपालन (Poultry) आदि।

प्रश्न 4.
16वीं शताब्दी के बाद के किन्हीं चार जन्तु वैज्ञानिकों के नाम एवं उनके कार्य लिखिए।
उत्तर-
16वीं शताब्दी के बाद के निम्न चार जन्तु वैज्ञानिक एवं उनके कार्य –

वैज्ञानिक का नामकार्य
1. मारसैलो मैल्पीगी (Macello Malpighi )(1628-1694)इन्होंने रक्त एवं ऊत्तकों का सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन, मुर्गी में भ्रोणिकी का अध्ययन तथा कशेरुकियो के वृक्कों में मैल्पीजी सम्पुंट की खोज की।
2. एन्टोनीवॉन लूवेन हॉक (Antony Van Leeuwenhock 1632-1723)शुक्राणुओं, रुधिरणाओं, पेशियो, प्रोटोजोआ, जीवाणुओं आदि का अध्ययन किया।
3. लियानार्डो दा विन्सी (Leonardo da Vinci)इन्होंने 1690 में जीवाश्मों (Fossils) का गहन अध्ययन किया। इन्हें जीवाश्मिकी के जनक (Father of Paleontology) कहा जाता है।
4. लैमार्क (Lamark, 1744-1829)इन्होंने जैव विकास के सम्बन्ध में उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त दिया। इन्होंने 1809 में फिलोसोफी जुलोजिक (Philophie Zoologique) नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 5.
मानव स्वास्थ्य में जन्तु विज्ञान के अध्ययन का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जन्तु विज्ञान (Zoology) के अध्ययन से हमें अपने शरीर तथा विभिन्न अंगों के कार्य-विधियों का ज्ञान होता है तथा कार्यिकी ज्ञान हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। प्रकृति में ऐसे अनेक परजीवी (Parasite) जन्तु हैं जो हमारे शरीर में रहकर अपार हानि पहुंचाते हैं। इन हानिकारक जन्तुओं की संरचना तथा आदतों का ज्ञान होने से हम अपने शरीर का बचाव कर सकते हैं। क्योंकि यह रोग मलेरिया परजीवी प्लाजमोडियम (Plasmodium) द्वारा मनुष्य में होता है तथा यह मादा एनाफिलिज (Female Anopheles) द्वारा फैलाया जाता है। अनेक परजीवी एवं रोग जनक जन्तु हमारे शरीर को रोगग्रस्त बनाते हैं। इनकी रचना, स्वभाव, जीवन वृत (Life Cycle) आदि का ज्ञान प्राप्त करके इनसे अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। प्लेग (Plague), पेचिस (Diarrhea), फीलपांव, पाइलेरियसिस (Filariasis), एस्केरिसता (Ascariasis), अमीवायसिस (Amoebiasis) आदि रोगों से सुरक्षा जन्तु विज्ञान से ही सम्भव हो पाया है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 26 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्तु विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के नाम व परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
वर्तमान समय में आधुनिक उपकरणों तथा प्रयोगात्मक शोधकार्यों द्वारा जन्तु विज्ञान का बहुत विकास एवं विस्तार हुआ है। जन्तु विज्ञान को अनेक शाखाओं में विभाजित किया गया है। इसकी मुख्य शाखाएं निम्नलिखित हैं:

  • वर्गीकरण विज्ञान (Taxonomy) – समानताओं एवं असमानताओं के आधार पर जन्तु जातियों को छोटे-बड़े समूहों में बांटना वर्गीकरण कहलाता है। जन्तु जातियों का सही निर्धारण करके इन्हें वैज्ञानिक नाम देना नामकरण कहलाता है। नामकरण और वर्गीकरण तथा इनको सिद्धांतों, नियमों, विधियों आदि के अध्ययन को वर्गीकरण विज्ञान या वर्गीकी (Taxonomy) कहते हैं।
  • पारिस्थितिकी (Ecology) – इस शाखा के अन्तर्गत जन्तुओं के पर्यावरण तथा उनके आपस के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है।
  • प्राणी भूगोल (Zoo geography) – इसके अन्तर्गत पृथ्वी पर जन्तुओं के वितरण (Geographical distribution) का अध्ययन किया जाता है।
  • भ्रोणिकी (Embryology) – इसके अन्तर्गत सजीवों के भ्रूणीय विकास अर्थात् अण्डे से जीव कैसे बनता है, का अध्ययन किया जाता है।
  • जीवाश्म विज्ञान (Paleontology) – इस शाखा में जीवों के जीवाश्मों (Fossils) का अध्ययन किया जाता है।
  • आनुवंशिकी (Genetics) – इसके अन्तर्गत सजीवों के आनुवंशिकी लक्षण (Hereditary Characters) की वंशागति तथा भिन्नताओं (Variations) का अध्ययन किया जाता है।
  • उविकास (Evolution) – इस शाखा के तहत जीव जातियों के उद्भव एवं विभेदीकरण के इतिहास का अध्ययन किया जाता है।
  • बाह्य आकारिकी (Morphology) – इस शाखा में जन्तुओं के शरीर की बाह्य संरचना तथा आकृति का अध्ययन किया जाता है।
  • शारीरिकी (Anatomy) – इसमें आन्तरिक रचना (Internal Structure) का अध्ययन किया जाता है। भीतरी संरचना में स्थित ऊत्तकों (tissues) का अध्ययन भौतिकी (Histology) कहते हैं।
  • कार्यिकी (Physiology) – इस शाखा में शरीर के विभिन्न अंगों एवं तंत्रों के कार्य तथा कार्याविधि का अध्ययन किया जाता है।
  • सुजननिकी (Eugenics) – आनुवंशिकी के नियमों के आधार पर मानव जाति के सुधार (Improvement of of human race) के अध्ययन को सुजननिकी कहते हैं।
  • जैवप्रौद्योगिकी (Bio-Technology) – सजीवों में वांछनीय गुणों को पैदा करने के लिए जीन्स में परिवर्तन या DNA में काँट-छाँट करने की क्रिया विधि को जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं।

प्रश्न 2.
जन्तु विज्ञान के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जन्तु विज्ञान का इतिहास (History of Zoology)
प्राचीन काल से मानव की स्वाभाविक अभिरुचि जन्तुओं को उपयोग में लेने की रही है। प्रारम्भ में जन्तुओं को मारकर भोजन, वस्त्र एवं अन्य उपयोगी सामग्री प्राप्त करता था। मानव सभ्यता के विकास के साथ जन्तुओं का उपयोग विविध कार्यकलापों में होने लगा । प्राचीन कालीन यूनान देश के कई दार्शनिकों ने जीवनों के बारे में लिखा। अनेक कलाकारों ने गुफाओं, दीवारों, मिट्टी के बर्तनों आदि पर जन्तुओं के चित्र बनाएँ। जन्तु विज्ञान पर प्रथम लेख ईसा पूर्व 5वीं सदी के एक यूनानी चिकित्सा ग्रन्थ को माना जाता है। इसमें जन्तुओं की उपयोगिता के आधार पर वर्गीकरण किया गया था तथा खाने योग्य जन्तु तथा न खाने योग्य जन्तु ।।

प्राचीन चिकित्सा ग्रन्थ आयुर्वेद में सजीवों को उनके जन्म के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया गया है

  • गर्भ से उत्पन्न
  • अण्डों से उत्पन्न
  • गर्मी व नमी से उत्पन्न
  • बीजों से उत्पन्न

सुश्रुत प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने मनुष्य की शारीरिक संरचना का विस्तृत अध्ययन किया। सुश्रुत स्वयं नासिका एवं आंखों की शल्य चिकित्सा में दक्ष थे। इसलिए उन्हें शल्य विज्ञान का जनक कंहा जाता है। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक चिकित्सा ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने 700 औषधिय पादप (Medicinal Plants) 64 औषधियां रासायनिक स्रोत से 57 औषधियां जन्तु स्रोत से तैयार करने का लेख मिलता है। हिप्पोक्रेटस (460-370 BC) ने मानव रोगों का प्रथम उल्लेख लिखे। हिप्पोक्रेटस को चिकित्साशास्त्र का जनक कहा जाता है। आज भी चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थियों को उनकी शपथ दिलाई जाती है।

अरस्तु (Aristotle 384-322 ईसा पूर्व) ने 9 भागों में छपी 500 पृष्ठों की अपनी जन्तु इतिहास (Historia animalium) नामक पुस्तक में 500 जन्तुओं की रचना, स्वभाव, वर्गीकरण, जनन आदि का तथा मुर्गी के अण्डों से भ्रूणीय विकास का वर्णन किया इसलिए इन्हें भ्रूण विज्ञान का जनक (Father of Embryology) कहते हैं। साथ ही इन्हें जीव विज्ञान व जन्तु विज्ञान के जनक भी कहते हैं । पौराणिक हिन्दु धर्मग्रन्थों, वेदों (2500 ई. पूर्व) रामायण, महाभारत, उपनिषदों आदि में जीवों (जन्तुओं) का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए हिन्दु देवी-देवताओं के वाहन के रूप में जन्तुओं का चित्रण किया गया है। जैसे भगवान कार्तिकेय का मोर, भगवान विष्णु का गरुड़ पक्षी, भगवान शंकर का बैल, गणेश जी का चूहा, माँ काली का शेर तथा भगवान कृष्ण का गायों से लगाव आदि का चित्रण प्राचीन काल में जन्तुओं के ज्ञान को दर्शाता है।

इसी प्रकार रामायण में भी हिरण गिद्ध (जटायु),वानर, रीछ, भालू | आदि का वर्णन भी देखने को मिलता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन काल में भी जन्तुओं के बारे में ज्ञान था।

ईसा के बाद प्लिनी (Pliny 23-79 BC) ने 37 भागों में प्रकृति विज्ञान (Natural History) नामक वृहद ग्रन्थ लिखा। गैलेन (Galen- 130200 BC) ने जन्तुओं के आन्तरांगों की कार्यिकी पर सबसे पहला प्रयोगात्मक (Experimental) अध्ययन किया। उन्हें इसीलिए प्रयोगात्मक कार्यिकी का पिता (Father of Experimental Physiology) कहा जाता है।

इसके बाद 1000 वर्षों तक विज्ञान में प्रगति नहीं वरन अवनति हुई। यह विज्ञान का अंधकार युग (Dark period) था। 13वीं सदी में ऐल्बर्टस मैग्नस (Albertus Magnus, 1200-1800 BC) के जन्तुओं पर अथवा जन्तुओं के विषय पर (on animals) नामक ग्रन्थ से जन्तु विज्ञान का पुनर्जागणरण (Period of Renaissance) हुआ। 16वीं सदी में जन्तुओं पर अनेक ग्रन्थ छपे । इसी सदी में सूक्ष्मदर्शी (Microscope) का आविष्कार हुआ और जीव वैज्ञानिकों ने जन्तुओं पर बहुमुखी अध्ययन प्रारम्भ किया। इन वैज्ञानिकों में निम्नलिखित ने विशेष उल्लेखनीय कार्य किया।

  • एंड़ियस विसैलियस (Andreas Veslius 1514-1564) – मृतक मानव शरीर की रचना का प्रयोगात्मक अध्ययन करके सन् 1543 में मानव शरीर की संरचना पर (”ऑन द स्ट्रक्चर ऑफ ह्यूमन बॉडी”) नामक पुस्तक लिखी। वे आधुनिक शारीरिकी के जनक (Father of Modern Anatomy) माने जाते हैं।
  • विलियम हार्वे (William Harvey, 1578- 1657) – इन्होंने रुधिर परिसंचरण तंत्र (Blood Circulatory System) की खोज की तथा कार्यिकी एवं भ्रोणिकी का प्रयोगात्मक अध्ययन किया।
  • जैकेरयस जैन्सन (Z. Janssen, 1590) – अपने पिता, हान्सजेन्सन (H. Janssen) के साथ प्रथम संयुक्त प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (Compound microscope) बनाया।
  • मारसैलो मैल्पीगी (Marcello Malpighi, 1628-1694) – इन्होंने रुधिर (Blood) एवं ऊत्तकों (Tissues) का सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन किया। रेशम कीट (Cericulture) का तथा मुर्गी में भ्रोणिकी का अध्ययन किया। कशेरुकियो के वृक्कों में मैलपीर्गी संपुटो (Malpighi Capsules की, त्वचा की अधियर्म (Pidermis) में जनसिक स्तर की खोज हुई। इन्हें आधुनिक शारीरिकी के जनक कहा जाता है।
  • जॉन रे (John Ray, 1627-1705) – इन्होंने पादपों, कीटों, सर्पो एवं चौपायों का वर्गीकरण (1693) किया। जाति के सिद्धान्त (Biological Concept of Species) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  • एन्टोनी वानल्यूवेनहाक (Antoni Vanleeuwonhock, 1632-1723) – इन्होंने शुक्राणुओं (Sperms), रुधिराणुओं, पेशियों, प्रोटोजोआ, यीष्ट बैक्टीरिया आदि का अध्ययन किया। उनको ‘‘सूक्ष्म-जैविकी (Microbiology) के जनक कहते हैं।
  • लियानार्डो दा विन्सी (Leonardo da vinci) – इन्होंने जीवाश्मों का 1690 में गहनता से अध्ययन किया। लियानार्डो दा विन्सी को जीवश्मिकी के जनक कहते हैं।
  • क्यूवियर (Cuvier, 1769- 1832) – ने तुलनात्मक शारीरिकी तथा जीवश्मिकी (Paleontology) की स्थापना की।
  • लैमार्क (Lamark, 1744- 1829) – जैव विकास की क्रिया के संदर्भ में पहला तर्क संगत सिद्धान्त फ्रांसिसी। वैज्ञानिक जीन बेप्टिस्ट डी लैमार्क द्वारा प्रतिपादित किया। लैमार्क द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत लैमार्कवाद कहलाया। लैमार्क द्वारा प्रस्तावित उद्विकोशीस सिद्धांत सन् 1809 में उनकी पुस्तक फिलोसोफी जूलोजिक (Philosophic Zelogique) में प्रकाशित हुआ था। इनके द्वारा उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत (Theory of Inheritance of acquired characters) प्रतिपादित किया।
  • वॉन बेयर (Von Baer, 1792- 1876) – इन्होंने तुलनात्मक एवं भ्रौणिकी का व्यापक अध्ययन किया। आधुनिक भ्रोणिकी के जनक (Father of Modem Embryology) कहलाते हैं।
  • चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin, 1809-1882) – डार्विन ने जैव विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण सिद्धांत डारविन वाद (Darwinism) प्रस्तुत किया। इनके द्वारा प्राकृतिक वरण का सिद्धांत (Theory of natural Selection) दिया तथा इन्होंने 1859 में जातियों की उत्पति (Origin of life) नामक पुस्तिका का लेखन भी किया जिसे सर्वाधिक मान्यता मिली।
  • ग्रेगर जॉन मेन्डल (Gregor John Mendal, 1822-1884) – मेन्डल ने सर्वप्रथम आनुवंशिक लक्षणों का अध्ययन किया। मेन्डल को आनुवांशिकी का जनक (Father of Genetics) कहते हैं।
  • ह्यूगो डी व्रिज (Hugo De Vries, 1902) – ह्यूगो डी व्रिज ने उत्परिवर्तन का सिद्धान्त (Theory of Mutation) प्रतिपादित किया।
  • टी.एच. मोरगन (TH. Morgan, 1993)- इन्होंने जीन की अवधारणा (Concept of Gene) को प्रस्तुत किया। जिसके फलस्वरूप इन्हें नोबेल पुरस्कार द्वारा नवाजा गया।
  • ए.आई. ओपेरिन (A.I. Oparin, 1957- 1968) – इन्होंने प्रकृतिवाद या रासायनिक विकास का सिद्धान्त (Naturalistic Theory or Theory of Chemical Evolution) प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त (Modem Theory of origin of Life) है।
  • डॉ. हरगोविन्द खुराना (Dr. Hargovind Khurana) – इन्होंने 1968 में कृत्रिम जीन (Artificial Gene) का संश्लेषण किया। जिसके फलस्वरूप इन्हें नोबल पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया। जीनी कोड (Genetic Code) का पूरा उल्लेख किया।
  • स्टेनली कोहेन व हर्बट बोभर (1973) – इन्होंने पुनर्संयोजन (Recombination) DNA की तकनीक खोजी तथा आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के जन्मदाता कहलाए। इस विधि द्वारा जीवाणुओं से इन्सुलिन का उत्पादन किया जाने लगा तथा आनुवंशिक रोगों का भी इलाज संभव हो पाया।
  • इयान विलामेन्ट (1996) – इयान विलामेन्ट (Eonvilament 1996) ने सर्वप्रथम भेड़ (Sheep) का क्लोन बनाया।

प्रश्न 3.
जन्तु विज्ञान के अध्ययन का महत्व बतलाइये।
उत्तर-
उपयोगिता के आधार पर आज दुनिया के हर कोने में वैज्ञानिक जन्तु विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में लगे हैं। जन्तु-विज्ञान का मानव कल्याण के बीच एक गहरा तथा महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। जन्तु विज्ञान का मानव कल्याण में योगदान महत्वपूर्ण है। विज्ञान की इस शाखा (जन्तु विज्ञान Zoology) का महत्व निम्न क्षेत्रों में विशेष माना जाता है।

  • पर्यावरण संतुलन – जीवित तंत्रों तथा पर्यावरण के मध्य के सम्बन्धों का अध्ययन जन्तु विज्ञान के माध्यम से किया जाता है। जन्तुओं तथा पर्यावरण के बीच एक विशिष्ट सामंजस्य व समन्वय बना रहता है। जिसके फलस्वरूप सभी प्राणी अनुकूलित होकर जीवित रह पाते हैं। मनुष्य किसी भी जन्तु के समान इस तंत्र का एक भाग है। भिन्न प्रकार की समस्याओं का निदान पारिस्थितिकी के अन्तर्गत किया जाना चाहिए। पर्यावरण के विभिन्न घटकों का ज्ञान हमें जीव विज्ञान के अध्ययन से ही प्राप्त होता है।
  • अंधविश्वास का निवारण – हम लोग कई ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं जो वास्तव में केवल भ्रम है। अंधविश्वास से छुटकारा दिलाने में जन्तु विज्ञान का बड़ा हाथ है तथा अंधविश्वास हटता है तो केवल वास्तविकता का अध्ययन रह जाता है। वास्तविकता पर विश्वास ही मानसिक विकास है।
  • औद्योगिक विकास में महत्व – इस विज्ञान से हम जन्तुओं से कई उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त करते हैं जो बड़े-बड़े उद्योग बनाते हैं तथा हजारों लोगों को रोजगार देते हैं। चमड़ा, मछली, व्हेल (Whale) पकड़ना, शहद, सींग, मोती, मोम तथा स्पंज इस वर्ग के मुख्य उद्योग हैं। जो निम्न उद्योग हैं
    1. मधुमक्खीपालन
    2. मत्स्य पालन
    3. मुर्गीपालन
    4. रेशम उद्योग।
  • जन्तुओं का संरक्षणः – अनेक ऐसी लाभदायक एवं महत्वपूर्ण जन्तु जातियों को, जिन्हें जीव प्राकृतिक विनास का खतरा होता रहता है हमने जन्तु विज्ञान की सहायता से विभिन्न राष्ट्रीय उद्यान (National Park) एवं जन्तु विहार (Animal Sancturies) की सहायता से संरक्षित किया गया है।
    जैसे कारबेट राष्ट्रीय उद्यान जो नैनीताल में स्थित है, यहां पर बाघ, पैंथर, सांभर, चीतल, हाथी, नीलगाय, मगर, अजगर आदि संरक्षित हैं। इसी प्रकार केवलादेवी घना पक्षी विहार, जो भरतपुर (राजस्थान) में स्थित है, यहां अजगर, सारस, अरेबियाई सारस, कारपोरेन्ट, बगुला आदि संरक्षित हैं।
  • पशुपालन में महत्व – प्राचीन समय से ही पशुपालन के लिए गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट आदि का पालन किया जाता है। पशुपालन मुख्य रूप से दूध, मांस, चमड़ा, गोबर, कृषि कार्य, ऊन आदि के लिए किया जाता है। चमड़ा उद्योग, फल उद्योग और घोड़ा, सूअर पालन द्वारा भी आजीविका कमाई जा सकती है।
  • कृषि से महत्व – जन्तु विज्ञान के अध्ययन से कृषि के लाभदायक एवं हानिकारक जन्तुओं व परजीवियों का ज्ञान होता है। इस विज्ञान के अध्ययन से रोगजनक जन्तुओं का पूर्ण ज्ञान होता है तथा कृषि का इनसे बचाव करने के लिए उपाय किए जाते हैं। केचुए जैसे उपयोगी जन्तु मिट्टी को उलट-पलट कर इसको उपजाऊ बनाते हैं। उपयोगी कीड़े मनुष्य के लिए रेशम, लाख, मोम व उत्तम शहद बनाते हैं। कीट पौधों से पराग की क्रिया में सहायता करते हैं। विभिन्न प्रकार के श्लभ, ईल्ली, टिड्डे मक्खियां आदि सभी फसलों को हानि पहुंचाते हैं। इन्हें कीटनाशक द्वारा नियंत्रित कर फसल को बचाया जाता है।
  • मानव स्वास्थ्य – जन्तु विज्ञान के अध्ययन से हमें अपने शरीर तथा विभिन्न अंगों की कार्यविधियों का ज्ञान होता है तथा यह कार्यिकी ज्ञान हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। प्रकृति में ऐसे अनेक परजीवी जन्तु हैं जो हमारे शरीर में रहकर उसे अपार हानि पहुंचाते हैं। इन हानिकारक जन्तुओं की संरचना तथा आदतों के ज्ञान होने से हम अपने शरीर को बचाव कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर मलेरिया (Malaria) रोग से बचाव के लिए हम जन्तु विज्ञान की सहायता से सफल हुए हैं। क्योंकि यह रोग मलेरिया परजीवी (Plasmodium) द्वारा मनुष्य में होता है तथा यह मादा एनोफिलिज (Anopheles) मच्छर द्वारा फैलाया जाता है।
    प्लेग (Plague), पेचिस (Diarrhoea), फीलपांव, फाइलेरियेसिस (Filariasis), एस्केरिसता (Ascariasis), अमिबायासिस (Amoebiasis) आदि अर्थात् जीवाणु जनित एवं वाइरस जनित सभी रोगों से बचाव जन्तु विज्ञान के अध्ययन से ही सम्भव हुआ है।

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