RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 17 लोक संत दादू दयाल

हेलो स्टूडेंट्स, यहां हमने राजस्थान बोर्ड Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 17 लोक संत दादू दयाल सॉल्यूशंस को दिया हैं। यह solutions स्टूडेंट के परीक्षा में बहुत सहायक होंगे | Student RBSE solutions for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 17 लोक संत दादू दयाल pdf Download करे| RBSE solutions for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 17 लोक संत दादू दयाल notes will help you.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 17 लोक संत दादू दयाल

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न1.
दादू का जन्म स्थान है
(क) अहमदाबाद
(ख) साँभर
(ग) काशी
(घ) नराणा।

प्रश्न2.
दादू के प्रसिद्ध शिष्य हैं
(क) गरीब दास
(ख) रज्जब
(ग) सुन्दर दास
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
1. (क)
2. (घ)

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
दादू का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर:
दादूपंथी मानते हैं कि दादू अहमदाबाद में साबरमती नदी में बहते हुए पाए गए थे।

प्रश्न 4.
दादू के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर:
दादू की माता का नाम बसीबाई तथा पिता का नाम लोदीराम था।

प्रश्न 5.
दादू के गुरु का नाम क्या था ?
उत्तर:
दादू के गुरु का नाम बुड्ढन माना जाता है।

प्रश्न 6.
दादू पंथ के पंचतीर्थ का नाम लिखें।
उत्तर:
कल्याणपुर, साँभर, आमेर, नराणा तथा भैराणा दादू पंथ के पंचतीर्थ माने जाते हैं।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
दादू ने अपनी जाति क्या बताई थी ?
उत्तर:
दादू को समाज में प्रचलित जात-पाँत में कोई विश्वास नहीं था। लोगों द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उनकी जाति जगतगुरु (ईश्वर) है।

प्रश्न 8.
दादू की गुरु परम्परा के बारे में क्या मान्यता है?
उत्तर:
दादू पंथियों के अनसार दादू के गुरु बुड्ढन नामक एक अज्ञात संत थे। दादू के प्रमुख शिष्य गरीब दास, रज्जब, सुन्दर दास आदि थे। दादू ने परब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की थी। इसे अब दादू-पंथ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
‘दादू खोल’ से क्या आशय है ?
उत्तर:
दादू दयाल के देहांत के बाद उनके शव को, उनकी इच्छा के अनुसार भैराणा की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रखा गया। वहीं पर दादू को समाधि भी दी गई। इस पहाड़ी को अब ‘दादू खोल’ कहा जाता है।

प्रश्न 10.
दादू ने निंदा-स्तुति के बारे में क्या कहा ?
उत्तर:
दादू ने अपने शिष्यों को परनिंदा से दूर रहने को कहा है। उनके अनुसार जिस व्यक्ति के हृदय में राम नहीं बसते वही दूसरों की निंदा किया करता है। उन्होंने कहा कि निन्दा और प्रशंसा दोनों को एक भाव से ग्रहण करना चाहिए।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न’11.
दादू ने अपने शिष्यों को क्या शिक्षा दी?
उत्तर:
दादू ने अपने शिष्यों को अनेक हितकारी शिक्षाएँ दीं। उन्होंने जात-पाँत के आधार पर मनुष्यों में भेद न करने और अपने-पराये के भाव से दूर रहने की शिक्षा दी। उन्होंने मनुष्य को संतोष के साथ जीवन बिताने को कहा।

दादू ने शिष्यों को उपदेश दिया कि वे निंदा–स्तुति को समान भाव से ग्रहण करें।उन्होंने लोहे और सोने में समान दृष्टि रखने, किसी से बैर-भावे ने रखने, अहंकार न करने और निष्काम भाव से कर्म करने का भी उपदेश दिया।

प्रश्न 12.
दादू के देशाटन एवं उनसे जुड़े पावन तीर्थों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अन्य संतों की भाँति दादू ने भी भारत में भ्रमण किया। उत्तर भारत में काशी, बिहार, बंगाल तथा राजस्थान में उन्होंने यात्राएँ ।
दादू से सम्बन्धित पवित्र तीर्थों में पहला स्थान कल्याणपुर है। यहाँ उन्होंने बहुत समय तक साधना की थी। यहाँ ‘दादू

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 अन्य महत्वपूर्ण प्रजोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. दादू की मुख्य साधना भूमि है
(क) अहमदाबाद
(ख) काशी
(ग) राजस्थान
(घ) बंगाल।

2. दादू के अनुसार परिवारी व्यक्ति अपने सगों के लिए करता है
(क) त्याग
(ख) कमाई
(ग) छल-कपट
(ख) घोर परिश्रम।

3. दादू ने सर्वप्रथम साधना की
(क) साँभर में
(ख) आमेर में
(ग) भैराणा में
(घ) कल्याणपुर में।

4. दादू के परिवार का भरण-पोषण होता था
(क) नौकरी से
(ख) व्यापार से
(ग) राम की कृपा से
(घ) दान से।

5. दादू द्वारा स्थापित संप्रदाय का नाम था
(क) सिद्ध संप्रदाय
(ख) दादू संप्रदाय
(ग) परमार्थ संप्रदाय
(घ) परब्रह्म संप्रदाय

6. ‘दादू खोल’ स्थित है
(क) कल्याणपुर में
(ख) भैराणा में
(ग) आमेर में
(घ) साँभर में।
उत्तर:
1. (ग)
2. (ग)
3. (घ)
4. (ग)
5. (घ)
6. (ख)

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दादू दयाल किस परम्परा के संत थे ?
उत्तर:
दादू दयाल निर्गुण संत परंपरा के संत थे।

प्रश्न 2.
दादू अपने परिवार का नाम क्या बताते थे ?
उत्तर:
दादू अपने परिवार का नाम ‘परमेश्वर’ बताते थे ?

प्रश्न 3.
दादू की दृष्टि में जात-पाँत क्या थी?
उत्तर:
दादू की दृष्टि में जात-पाँत एक निरर्थक परम्परा थी।

प्रश्न 4.
दादू संसार में किसे अपना सगा मानते थे ?
उत्तर:
दादू अपने ‘सिरजनहार’ ईश्वर को ही अपना सगा मानते थे।

प्रश्न 5.
श्री दादू जन्म लीला परची’ नामक ग्रन्थ में दादू के गुरु के विषय में क्या कहा गया है?
उत्तर:
इस ग्रन्थ के अनुसार ग्यारह वर्ष की अवस्था में भगवान ने दादू को स्वप्न में एक वृद्ध के रूप में दर्शन देकर इन्हें आशीर्वाद दिया था।

प्रश्न 6.
दादू ने राजस्थान आकर सर्वप्रथम कहाँ निवास किया ?
उत्तर:
दादू ने राजस्थान में सर्वप्रथम साँभर में निवास किया।

प्रश्न 7.
दादू ने किस संप्रदाय की स्थापना की और अब उसे क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
दादू ने परब्रह्म से सम्प्रदाय की स्थापना की थी जो अब दादू-पंथ कहा जाता है।

प्रश्न 8.
दादू ने अपनी रोजी, संपत्ति और परिवार का पोषक किसे बताया ?
उत्तर:
दादू ने राम को ही अपनी रोजी, संपत्ति तथा परिवार का भरण-पोषण करने वाला बताया है।

प्रश्न 9.
गरीबी को लेकर दादू की क्या प्रतिक्रियाएँ थीं ?
उत्तर:
दादू अपनी गरीबी को लेकर संतुष्ट थे। उन्हें अभावग्रस्त जीवन के प्रति कोई आक्रोश नहीं था।

प्रश्न 10.
आरम्भ में दादू के शिष्यों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर:
आरम्भ में दादू के शिष्यों की संख्या 152 मानी जाती थी।

प्रश्न 11.
दादू की भजनशाला कहाँ पर स्थित है ?
उत्तर:
दादू की भजनशाला कल्याणपुर में स्थित है।

प्रश्न 12.
कहाँ का दादू द्वारा सर्वप्रमुख माना जाता है ?
उत्तर:
नराणा का दादू द्वारा सर्वप्रमुख माना जाता है।

प्रश्न 13.
‘दादू खोल’ किस स्थान को कहा जाता है?
उत्तर:
जहाँ दादू का अंतिम स्मारक बना है, वह स्थान ‘दादू खोल’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
दादू की स्मृति में कहाँ-कहाँ मेले लगते हैं ?
उत्तर:
दादू की स्मृति में नराणा और भैराणा में मेले लगते हैं।

प्रश्न 15.
परनिंदा कौन-सा व्यक्ति किया करता है ?
उत्तर:
दादू के अनुसार जिस व्यक्ति के हृदय में राम का निवास नहीं, वही दूसरों की निंदा किया करता है।

प्रश्न 16.
दादू के अनुसार लोग कैसे व्यक्ति को दोष लगाया करते हैं ?
उत्तर:
दादू के अनुसार जो व्यक्ति किसी से बैर नहीं करता और निष्काम भाव से रहता है, उसे ही लोग दोषी बताया करते हैं।

प्रश्न 17.
विरोधियों और समर्थकों के प्रति दादू की क्या नीति थी ?
उत्तर:
दादू विरोधियों से बहस नहीं करते थे और समर्थकों को सही परामर्श दिया करते थे।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दादू के जन्म और पालन-पोषण के बारे में क्या मान्यताएँ हैं ?
उत्तर:
दादू का जन्म फागुन सुदी अष्टमी गुरुवार को माना जाता है। इनका जन्म स्थान विवादित रहा है किन्तु मान्यता है कि दादू एक छोटे-से बालक के रूप में अहमदाबाद के समीप, साबरमती नदी में बहते हुए मिले थे। इनका ‘पालन-पोषण’ लोदीराम नाम के ब्राह्मण ने किया था। इनकी माता का नाम वसीबाई बताया जाता है।

प्रश्न 2.
दादू के जाति, कुल, परिवार तथा सगे व्यक्ति के विषय में क्या विचार थे ? लोक संत दादू दयाल’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
दादू ने कहा है केशव मेरा कुल है, मेरी जाति जगत्गुरु है, परमेश्वर ही मेरा परिवार है। संसार में मेरा राम एकमात्र ईश्वर है। मन, वचन और कर्म से उस ईश्वर के अतिरिक्त मेरा और कोई नहीं है।” दादू उन पहुँचे हुए संतों में से थे जो इन सांसारिक नातों से बहुत ऊपर उठे हुए होते हैं।

प्रश्न 3.
दादू के गुरु के विषय में कौन-सी मान्यताएँ प्रचलित हैं ? लिखिए।
उत्तर:
दादू ने अपनी वाणी में गुरु-महिमा का बहुत वर्णन किया है। किन्तु अपने गुरु के नाम का परिचय नहीं दिया। जन गोपाल के अनुसार ग्यारह वर्ष की अवस्था में स्वयं भगवान ने एक वृद्ध पुरुष के रूप में दर्शन देकर इनको आशीर्वाद दिया था। दादू पंथियों की मान्यता है कि ‘बुड्ढन” नामक एक अज्ञात संत दादू के गुरु थे।

प्रश्न 4.
दादू ने राजस्थान में कब प्रवेश किया और किन-किन स्थानों पर निवास और साधना की? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
दादू ने तीस वर्ष की अवस्था में राजस्थान में प्रवेश किया। सर्वप्रथम वह साँभर में बसे साँभर के बाद वह आमेर में रहे। कल्याणपुर, नराणा में भी उन्होंने निवास किया। कल्याण में उन्होंने सर्वप्रथम लम्बे समय तक साधना की।

यहाँ उनकी पुरानी कुटी और विशाल मंदिर है। नराणा में उनके बैठने के स्थान पर खेजड़े का प्राचीन वृक्ष है। पास में ही भजनशाला और मंदिर है। भैराणा दादू के चिरविश्राम की पवित्र स्थली है।

प्रश्न 5.
संत दादू दयाल की आर्थिक स्थिति के विषय में ‘लोक संत दादू दयाल’ पाठ में क्या बताया गया है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
इस विषय में बताया गया है कि दादू के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनका जीवन अभावों से ग्रस्त था। एक बार किसी व्यक्ति ने उनसे पूछा कि उनके परिवार के भरण-पोषण का आधार क्या है ? इसके उत्तर में दादू ने कहा कि राम ही उनकी रोजी हैं, वही सम्पत्ति हैं और वही परिवार के पालनकर्ता हैं। अपने अभाव और निर्धनता से ग्रस्त जीवन के प्रति दादू के मन में कोई असंतोष नहीं था।

प्रश्न 6.
दादू की शिष्य परंपरा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
आरम्भ में दादू के शिष्यों की संख्या सीमित थी। उनकी संख्या एक सौ बावन बताई जाती है। दादू ने अपना
नया संप्रदाय चलाया। इसे उन्होंने ‘परब्रह्म संप्रदाय’ नाम दिया। दादू के देहावसान के बाद उनके शिष्य इसे दादू-पंथ कहने लगे। इनके शिष्यों के थाँभे भी प्रचलित हुए। ये थाँभे या निवास स्थल अधिकतर राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा में हैं।

प्रश्न 7.
‘दादू के सारे सांसारिक नाते राम पर केन्द्रित हैं। इस कथन के विषय में अपना मत लिखिए।
उत्तर:
दादू जाति, कुल, परिवार और सगे-सम्बन्धी सभी कुछ राम को ही मानते हैं। उनका कहना है कि राम ही उनका कुल है। सृष्टिकर्ता राम ही उनकी जाति है। परमेश्वर ही उनका परिवार है और वही संसार में उनका एकमात्र सगा है। इस प्रकारे दादू की दृष्टि में इस सामाजिक नातों का कोई महत्व नहीं है।

प्रश्न 8.
क्या दादू की दृष्टि में पारवारिक निर्धनता कोई समस्या नहीं ? आज के परिप्रेक्ष में दादू के मत की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
किसी व्यक्ति को दादू के परिवार की आर्थिक स्थिति को देखकर जिज्ञासा हुई कि संत के परिवार का भरण-पोषण कैसे हो रहा होगा। उसने दादू से इस विषय में पूछा तो दादू ने उत्तर दिया

दादू रोजी राम है, राजक रिजक हमार।।
दादू उस परसाद से, पोष्या सब परिवार।।

आज के पैसा-प्रधान युग में संत दादू का यह महा संतोषी स्वभाव कैसे निभ पाएगा। जिसके साथ परिवार है, उसे कोई न कोई पेट भरने की युक्ति निकालनी ही पड़ेगी। आज साधु-संत भी लक्ष्मी देवी के उपासक बने हुए हैं। अत: आज के युग में दादू का मत व्यावहारिक नहीं लगता।

प्रश्न 9.
‘दादू खोल स्थान का महत्व किन कारणों से है ? लिखिए।
उत्तर:
दादू खोल संत दादू की समाधि स्थली है। दादू की इच्छा थी कि उनके शरीर को वहीं भूमिस्थ किया जाय। यह स्थान भैराणा की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा है। यही दादू की समाधि है। कहा जाता है कि यहीं कहीं उनके बाल, तूंबा, चोला तथा खड़ाऊँ सुरक्षित हैं। इसी कारण दादू-पंथियों के लिए इस स्थान का बहुत महत्व है।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दादू दयाल के जीवन दर्शन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
दादू एक निर्गुण भक्ति धारा के संत थे। अन्य निर्गुण उपासक संतों की ही भाँति उनका जाति-पाँति और कुल-परंपरा में विश्वास नहीं था। उनकी दृष्टि में मानव मात्र एक समान थे। इस विषय में उनका कहना था

दादू कुल हमारै केसवा, सगात सिरजनहार।।
जाति हमारी जगतगुर, परमेस्वर परिवार।।

हिन्दू और मुसलमान दोनों को उन्होंने समान भाव से शिष्य बनाया।दादू कबीर दास के इस मत से सहमत हैं कि इतनी आय पर्याप्त होती है, जिसमें परिवार का पालन-पोषण होता रहे और अतिथि भूखा न लौटे। इसी कारण उन्होंने अभावग्रस्त जीवन को सहज भावसस्वीकार किया है। दादू खुले रूप में स्वीकार करते हैं

दादू रोजी रामं हैं, राजक रिजक हमार।।
दादू उस परसाद सौं, पोष्या सब परिवार।।

प्रश्न 2. संत दादू दयाल के उपदेशों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
दादू ने अपनी वाणी के द्वारा अपने शिष्यों को ही नहीं सम्पूर्ण समाज को संबोधित किया है। उनके प्रमुख उपदेश तथा संदेश संक्षेप में इस प्रकार हैं
संत दादू जाति, कुल, परिवार के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद को स्वीकार नहीं करते। वह अपने परिचय में ‘राम’ को अपना कुल, जाति, परिवार और सगा घोषित करते हैं। इस प्रकार वह मानवीय एकता की भावना का उपदेश करते हैं।

दादू मनुष्य को ईश्वर पर दृढ़ विश्वास रखने की प्रेरणा देते हैं। अपने आचार से वह संदेश दे रहे हैं कि परिवार का भरण-पोषण और सुरक्षा ईश्वर पर छोड़ दो। गरीबी को लेकर असंतुष्ट और रुष्ट होना उचित नहीं।दादू निंदा-स्तुति से दूर रहने का भी संदेश दे रहे हैं। ‘न्यंदा स्तुति एक करि तौले।’ निंदा करने वाले को वह राम विरोधी मानते हैं।

एक्सीलेण्ट हिन्दी लोभ से बचने और निष्काम भाव से जीवन बिताने की प्रेरणा भी दादू दे रहे हैं। ‘लोहा कंचन एक समान’ तथा ‘निरवैरी निहकामी साधं ।’ उनक संदेश है कि जो तुम्हारे विरोधी हैं, उनसे विवाद में मत पड़ो। जो समर्थक हैं, उनको सत्परामर्श दो। इस प्रकार दादू के उपदेश परखे हुए सरल और मानव मात्र को लाभ पहुँचाने वाले हैं।

प्रश्न 3.
दादू दयाल ने निंदा की प्रवृत्ति के बारे में अपनी वाणी में क्या कहा है ? लोक संत दादू दयाल’ पाठ के आधार पर लिखिए
उत्तर:
दादू ने अपनी वाणी में निंदा तथा निदंकों पर व्यंग्य करते हुए निन्दा का त्याग करने का संदेश दिया है।वह कहते हैं कि लोग न जाने क्या सोचकर दूसरों की निंदा करते हैं। लगता है उन्हें परनिंदा में आनन्द का अनुभव होता है, पर हमको तो हमारे प्यारे राम ही अच्छे लगते हैं। लोगों को दूसरों के दोष खोज-खोज कर उन पर आरोप लगाते देखकर दादू को बड़ा आश्चर्य होता है।

उनका मत तो यह है कि निन्दकों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए। ‘न्यंदा स्तुति एक करि तौले’। इसी से साधु का मन शांत रह सकता है। अंत में दादू कहते हैं कि ‘दादू निंदा ताक भाबै, जाके हिरदे राम न आवै।” इस प्रकार निंदा के परित्याग का सद्यपदेश देकर दादू सामाजिक जीवन को सौहार्दमय बनाने का कार्य कर रहे

लेखक-परिचय

रामबक्ष का जन्म राजस्थान के नागौर जनपद के चिताणी गाँव में 4 सितम्बर, 1951 ई. को हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में तथा समीपवर्ती विद्यालयों में सम्पन्न हुई। इसके पश्चात् कक्षा 10 से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा जोधपुर में पूरी हुई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पी.एच-डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद आप इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (इग्नू) रोहतक तथा जोधपुर में अध्यापन करते रहे। इस समय आप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) के भाषा संस्थान में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।

रचनाएँ-रामबक्ष जी की प्रमुख रचनाएँ प्रेमचंद, प्रेमचंद और भारतीय किसान, दादू दयाल, समकालीन हिन्दी आलोचक और आलोचना आदि हैं।

पाठ-सार

संकलित पाठ ‘लोक संत दादू दयाल’ में लेखक ने दादू दयाल का जीवन परिचय देते हुए उसके आध्यात्मिक विचारों तथा उनकी लोकप्रियता पर प्रकाश डाला है। दादू आज से कई शताब्दी पूर्व धराधाम पर अवतीर्ण हुए थे। उनके जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। वैसे उनकी जन्मभूमि गुजरात तथा प्रमुख साधना-भूमि राजस्थान माना जाता है। दादू निर्गुण उपासक संतों की परम्परा में आते हैं।

उनका जाति-पाँति में विश्वास न था। उनके गुरु के विषय में निश्चित पता नहीं चलता। उन्होंने अनेक प्रदेशों में भ्रमण किया और अंत में राजस्थान में बस गए। आपने ‘परब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की, जो बाद में ‘दादू पंथ’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनके साधना स्थलों को ‘दादू द्वारा’ तथा समाधि स्थल को ‘दादू खोल’ कहा जाता है।

पाठ के कठिन शब्द और उनके अर्थ।

(पृष्ठ सं. 97)
विचार-प्रणाली = सोचने का ढंग। व्यक्त = प्रकट। बद्ध = बँधा हुआ। मुक्त = स्वतन्त्र। सांसारिक = संसार से. सम्बन्धिते। निरर्थक = अर्थहीन, व्यर्थ की। लौकिक = समाज में प्रचलित।

(पृष्ठ सं. 98)।
जिज्ञासु = जानने की इच्छा वाला। खाना-पीना = भोजन की व्यवस्था। भरण-पोषण = पालन। अभाव = कमी, निर्धनता। जिज्ञासा = प्रश्न, जानने की इच्छा। प्रसाद = कृपा। सहज ही = सरलता से। ऐश्वर्य = ठाट-बाट, धन-सम्पत्ति। बोलवाला = प्रभाव, दिखाना। रेखांकित करने लायक = ध्यान दिलाने योग्य। सहज स्थिति = स्वाभाविक दशा। बोध = अनुभव। आक्रोश = तीव्र असंतोष।

(पृष्ठ सं. 99)
विवाद = बहस। निंदा-स्तुति = बुराई और प्रशंसा। समभाव = समान भावना। ग्रहण = स्वीकारना। आविष्कार = खोज, विचार। समर्थक = सहमति जताने वाला।

महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

(1) यहाँ दादू ने अपनी विचार-प्रणाली को व्यक्त करते हुए कहा है कि मेरे सच्चे सम्बन्ध तो ईश्वर से हैं और इसी सम्बन्ध से मेरा परिचय है। परिवार में बद्ध व्यक्ति अपने सगे-संबंधियों के लिए छल-कपट करता है। उसके मन में अपने पराए की भावना आ जाती है। दादू इसे संसार की ‘माया’ और संसार से ‘मोह’ की संज्ञा देते हैं। दादू अपने आपको इनसे मुक्त कर चुके थे। वह संसार में रहते हुए भी सांसारिक बंधनों को काट चुके थे अतः निरर्थक जात-पाँत की लौकिक भाषा में अपना वास्तविक परिचय कैसे देते?

(पृष्ठ सं. 97)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित श्री रामबक्ष द्वारा लिखित ‘लोक संत दादू दयाल नामक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक दादू के जाति-पाँति सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कर रहा है।

व्याख्या-दादू मानव मात्र की समानता में विश्वास करते थे। जब लोगों ने उनसे उनकी जाति के बारे में प्रश्न करने आरम्भ किए, तो उन्होंने जाति के बारे में अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह केवल ईश्वर से ही अपना सच्चा सम्बन्ध मानते हैं और केवल इसी सम्बन्ध को जानते हैं। उनका कहना था कि जो व्यक्ति परिवार बनाकर रहता है, वह अपने पारिवारीजनों को सुखी बनाने के लिए नाना प्रकार के छल-कपट किया करता है। उसके मन में लोगों के प्रति अपने और पराये का भाव रहता है। दादू का मानना था कि मनुष्य का ऐसा व्यवहार सांसारिक माया-मोह के प्रभाव से हुआ करता है। दादू अपने-पराये की भावना और माया-मोह से ऊपर उठ चुके थे। उनके लिए ने कोई अपना था न पराया। संसार के बीच रहते हुए भी वे जात-पाँत, अपना-पराया जैसे बंधनों को त्याग चुके थे। यही कारण था कि उन्होंने संसार में प्रचलित भाषा या परिभाषा में अपना परिचय नहीं दिया। संत के लिए जात-पाँत और अपना-पराया जैसे भेद व्यर्थ होते हैं। उसका एकमात्र नाता ईश्वर से रहता है।

विशेष-
(1) लेखक ने दादू दयाल के संसार और परिवार विषयक विचारों का परिचय कराया है।
(2) दादू दयाल का जीवन एक सच्चे संत के अनुरूप था, लेखक ने यही सिद्ध किया है।
(3) गद्यांश की भाषा सरल और शैली परिचयात्मक है।

(2) ऐसा लगता है कि किसी जिज्ञासु व्यक्ति ने दादू से सीधा सवाल पूछा था कि आपका खाना-पीना कैसे चलता है ? आप अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करते हैं ? अर्थात् आपकी आय के साधन क्या हैं ? यहाँ तो चारों ओर अभाव ही अभाव दिखाई दे रहा है। इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए दादू ने कहा था कि राम ही मेरा रोजगार है, वही मेरी सम्पत्ति है, उसी राम के प्रसाद से परिवार का पोषण हो रहा है। इन पंक्तियों से यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि यहाँ ऐश्वर्य का बोलबाला नहीं, गरीबी का साम्राज्य है।

(पृष्ठ सं. 98)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘लोक संत दादू दयाल’ नामक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक रामबक्ष संत दादू दयाले के पारिवारिक जीवन की अभावग्रस्तता और दादू के संतोषी स्वभाव का परिचय करा रहे हैं।

व्याख्या-संत दादू की रचनाओं से ऐसा ज्ञात होता है कि किसी जानने के इच्छुक व्यक्ति ने दादू से उनकी पारिवारिक स्थिति के बारे में जानने के लिए उनसे सीधे-सीधे पूछ लिया होगा। उसने जानना चाहा होगा कि उनके परिवार की भोजन-व्यवस्था कैसे चलती थी ? इसके पीछे यह जानने की इच्छा भी रही होगी कि दादू की आय के साधन क्या थे ? ऐसा इसलिए पूछा गया होगा कि दादू की पारिवारिक स्थिति निर्धनता से पूर्ण थी। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए दादू ने कहा था कि राम (ईश्वर) ही उनका रोजगार था और वही उनकी संपत्ति भी थी। उनका स्पष्ट कहना था कि राम की कृपा से ही उनके परिवार का पालन-पोषण होता था। दादू का यह उत्तर बताता है कि उनके घर पर धन-वैभव का दिखावा नाममात्र को भी नहीं था। निर्धनता में ही उनके दिन कट रहे थे।

विशेष-
(1) लेखक ने दादू के संतोषी स्वभाव का परिचय कराया है।
(2) दादू स्पष्ट वक्ता थे, यह भी इस गद्यांश से ज्ञात होता है।
(3) दादू को रामकृपा पर अखण्ड विश्वास था और अपनी निर्धनता पर उनको किसी प्रकार का असंतोष नहीं था, यह भी पता चलता है। (4) भाषा मिश्रित शब्दावली युक्त है।
(5) शैली परिचयात्मक है।

(3) यह बात यहाँ रेखांकित करने लायक है कि दादू को अपनी गरीबी से कोई शिकायत नहीं है, इसे सहज स्थिति मानकर उन्होंने स्वीकार कर लिया है। गरीबी की पीड़ा और उससे उत्पन्न आक्रोश, दादू की रचनाओं में कहीं दिखाई नहीं देता।

(पृष्ठ सं. 98)
संदर्भ तथा प्रसंग–प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘लोक संत दादू दयाल’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पद्यांश में रामबक्ष दादू दयाल की सहनशीलता और संतोषी स्वभाव का परिचय करा रहे हैं।

व्याख्या-दादू का पारिवारिक जीवन निर्धनता में बीत रहा था, किन्तु इस दशा में यह बात ध्यान दिलाए जाने योग्य है कि दादू को अपनी निर्धनता और अभावों के प्रति कोई असंतोष नहीं था। उनके लिए यह एक स्वाभाविक और साधारण बात थी। अभावों के बीच रहते हुए भी उनके मन में कोई दु:ख नहीं था। संत दादू ने अपनी रचनाओं में कहीं भी गरीबी से होने वाले कष्ट अथवा उससे उत्पन्न होने वाले तीव्र असंतोष को व्यक्त नहीं किया है। वास्तव में वह एक सच्चे संत थे।

विशेष-
(1) लेखक ने संत दादू के स्वभाव की सरलता और संतोष की ओर ध्यान दिलाया है।
(2) दादू के लिए निर्धनता भी ईश्वर का प्रसाद था।
(3) दादू अपनी गरीबी से व्यथित थे या अत्यंत असंतुष्ट थे, इसकी झलक भी उनकी रचनाओं में कहीं दिखाई नहीं। देती।
(4) भाषा मिश्रित शब्दावलीयुक्त है।
(5) कथन शैली परिचयात्मक है।

(4) दादू इतने शांत स्वभाव के थे कि किसी विवाद में उलझे ही नहीं। निंदा-स्तुति को उन्होंने समभाव से ग्रहण कर लिया था। उनके शिष्य हिन्दू और मुसलमान दोनों थे।
उन्होंने अपने आचरण और उपदेशों द्वारा पूरी मानवता के लिए एक समान पथ का आविष्कार किया। उन्होंने अपने विरोधियों से बहस कम की और समर्थकों को सलाह ज्यादा दी है।

(पृष्ठ सं. 98)
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “लोक संत दादू दयाल’ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामबक्ष हैं। लेखक इस गद्यांश में संत दादू दयाल के सहनशील स्वभाव का परिचय करा रहा है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि दादू शांतिप्रिय संत थे। उन्होंने कभी किसी से अपने विचारों को लेकर बहस नहीं की। चाहे किसी ने उनकी बुराई की चाहे उनकी प्रशंसा की। उन्होंने दोनों को समान भाव से स्वीकार किया। उनके शिष्य हिन्दू भी थे और मुसलमान थी। दादू ने अपने जीवन और उपदेशों द्वारा बिना किसी भेद-भाव के मनुष्य मात्र के लिए कल्याण का मार्ग दिखाया है। वह कबीर की भाँति अपने मत का विरोध करने वालों से विवाद करने में रुचि नहीं रखते थे। अपने अनुयायियों को सही मार्ग दिखाने में ही अधिक रुचि ले थे। इसी कारण वह आज एक लोकप्रिय संत बने हुए हैं।

विशेष-
(1) लेखक ने बताया है कि दादू विवादों से दूर रहने वाले शांतिप्रिय संत थे।
(2) निंदा, प्रशंसा, हिन्दू, मुसलमान जैसे भेदों से ऊपर रहने वाले संत दादू वास्तव में सच्चे संतों की श्रेणी में आते हैं।
(3) गद्यांश की भाषा सरल है।
(4) शैली परिचयात्मक है।

All Chapter RBSE Solutions For Class 10 Hindi

All Subject RBSE Solutions For Class 10 Hindi Medium

Remark:

हम उम्मीद रखते है कि यह RBSE Class 10 Hindi Solutions आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है |

यदि इन solutions से आपको हेल्प मिली हो तो आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है और HindiLearning.in को सोशल मीडिया में शेयर कर सकते है, जिससे हमारा मोटिवेशन बढ़ेगा और हम आप लोगो के लिए ऐसे ही और मैटेरियल अपलोड कर पाएंगे |

आपके भविष्य के लिए शुभकामनाएं!!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *