RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाह

हेलो स्टूडेंट्स, यहां हमने राजस्थान बोर्ड Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाह सॉल्यूशंस को दिया हैं। यह solutions स्टूडेंट के परीक्षा में बहुत सहायक होंगे | Student RBSE solutions for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाह pdf Download करे| RBSE solutions for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाह notes will help you.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 ईदगाह

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11  पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11  वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1.प्रेमचन्द के पहले कहानी संग्रह का नाम है
(क) मानसरोवर
(ख) सोजे वतन
(ग) निर्मला
(घ) माधुरी

2. दुकानदार ने हामिद को पहली बार चिमटे की कीमत बताई थी
(क) तीन पैसे
(ख) पाँच पैसे
(ग) छह पैसे
(घ) चार पैसे
उत्तर:
1. (ख)
2. (ग)

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11  अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
हामिद की दादी का नाम क्या था?
उत्तर:
हामिद की दादी का नाम अमीना था।

प्रश्न 4.
हामिद ने चिमटा कितने पैसे का खरीदा?
उत्तर:
हामिद ने चिमटा तीन पैसे का खरीदा।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 5. महमूद ने कौन-सा खिलौना खरीदा?
उत्तर:
महमूद ने सिपाही खरीदा। उसकी वर्दी खाकी रंग की थी तथा ‘पगड़ी लाल रंग की थी। कंधे पर बन्दूक रखे हुए वह ऐसा लग रहा था जैसे कवायद किए चला आ रहा हो।

प्रश्न 6.
ईद किस महीने में आती है?
उत्तर:
ईद रमजान के महीने में तीस रोजे बीत जाने के बाद आती है।

प्रश्न 7.
ईदगाह’ किस लेखक की रचना है?
उत्तर:
ईदगाह हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द की रचना है। यह उनकी एक प्रसिद्ध कहानी है।

प्रश्न 8.
हामिद के चरित्र की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
हामिद चरित्र की तीन विशेषताएँ
1. आशावान हामिद आशा की भावना से भरा है। इसके बल पर वह सभी कठिनाइयों से लड़ सकता है।
2. हामिद संवेदनशील है। वह बातों को गहराई से समझता है।
3. कम उम्र में ही उसमें उत्तरदायित्व की भावना आ गई है।

प्रश्न 9.
हामिद ने चिमटे की उपयोगिता को सिद्ध करते हुए क्या-क्या तर्क दिए?
उत्तर:
हामिद ने अपने साथी बच्चों के सामने अपने चिमटे की उपयोगिता सिद्ध करते हुए कहा
1. चिमटा खिलौना है। बन्दूक तथा फकीर के चिमटे की तरह उसका प्रयोग हो सकता है।
2. जमीन पर गिरने पर टूटेगा नहीं, जबकि मिट्टी के खिलौने टूट जायेगे।
3. उसका चिमटा बहादुर है, शेर है। वह आग, पानी, तूफान में डटा रहता है।

प्रश्न 10.
‘ईदगाह’ कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए, जिनसे ईद के अवसर पर ग्रामीण परिवेश का उल्लास प्रकट होता है।
उत्तर:
ईद आ गई है। प्रकृति अत्यन्त सुन्दर प्रतीत हो रही है। गाँव में हलचल है। लोग ईदगाह जाने की तैयारी में लगे हैं। कोई कुर्ते के बटन लगाने के लिए पड़ोस से सुई-धागा लेने तो कोई अपने कड़े हो गए जूते को मुलायम करने के लिए तेली के घर से तेल लेने जा रहा है। बैलों को सानी-पानी दी जा रही है। बच्चे ईदगाह जाने की जल्दी में हैं। सेवइयाँ पकाने के लिए दूध-शक्कर का प्रबन्ध हो रहा है। ‘

प्रश्न 11.
हामिद के अतिरिक्त इस कहानी के किस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है और क्यों?
उत्तर:
हामिद के अतिरिक्त हमको सर्वाधिक प्रभावित करने वाला पात्र है अमीना। वह हामिद की बूढ़ी दादी हैं। हामिद के माता-पिता नहीं हैं। वही हामिद को पाल रही है। स्नेहमयी है। वह गरीब है। उसे त्योहार मनाने की चिन्ता है। इतनी उम्र होने पर भी वह घर का काम करती है, खाना बनाती है तथा सिलाई करके घर-गृहस्थी का खर्च चलाती है।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
बच्चों में लालच तथा एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ के साथ-साथ निश्छलता भी मौजूद होती है। कहानी से कोई दो प्रसंग चुनकर इस मत की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
बच्चों में लालच, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ के साथ, निश्छलता के गुण भी विद्यमान होते हैं। कहानी ‘ईदगाह’ के निम्नलिखित दो प्रसंग इसकी पुष्टि करते हैं

प्रसंग एक-मेले में बच्चे खिलौने तथा मिठाई खरीदते हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं। खिलौने खरीदने में असमर्थ हामिद उनको पाने के लिए ललचाता है। बच्चे उसे अपने खिलौने तथा मिठाई नहीं देते।

तब हामिद ऊपरी मन से इन चीजों की बुराई करता है। वह तर्क देकर चिमटे को खिलौना, शेर, बहादुर, रुस्तमे-हिंद तथा सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध करता है। वह अपनी खरीद को श्रेष्ठ बताकर आगे निकलने की होड़ में अन्य बच्चों से पीछे रहना नहीं चाहता।
प्रसंग दो-हामिद के माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं।

उसे समझाया गया है कि उसके पिता बहुत सारा पैसा कमाने गए हैं तथा माँ खुदा के यहाँ से अच्छी-अच्छी चीजें लेने गई है। वे जल्दी लौटेंगे। हामिद कोई प्रतिवाद नहीं करता और इस बात को मान लेता है। इससे उसकी निश्छलता सिद्ध होती है।

प्रश्न 13.
मुंशी प्रेमचंद का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर:
संकेत-मुंशी प्रेमचंद का जीवन-परिचय इस पाठ के आरम्भ में ‘लेखक-परिचय’ शीर्षक के अन्तर्गत दिया जा चुका है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है ……………… ईद की बधाई दे रही है।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में गद्यांश-1 का अवलोकन कीजिए।

(ख) कितना अपूर्व दृश्य था …………….. एक लड़ी में पिरोए हुए हैं।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में गद्यांश-7 का अवलोकन कीजिए।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रणोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. प्रेमचंद उर्दू में किस नाम से लिखते थे?
(क) नवाब राय
(ख) धनपत राय
(ग) उलफत राय
(घ) हिन्दुस्तानी लोग

2. प्रेमचंद के उर्दू कहानी-संग्रह का नाम है
(क) मानसरोवर
(ख) सोजेवतन
(ग) मादरे वतन
(घ) प्रेमचंद

3. निम्नलिखित में किस पत्रिका के सम्पादक प्रेमचंद नहीं थे?
(क) जागरण
(ख) माधुरी
(ग) हंस
(घ) सरस्वती

4. प्रेमचंद को, ‘उपन्यास सम्राट’ कहा था
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी ने
(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने
(ग) शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने
(घ) जयशंकर प्रसाद ने।

5. ‘ईदगाह’ कहानी का नायक है
(क) मोहसिन
(ख) महमूद
(ग) हामिद
(घ) नूरे।

6. मेले में जाते समय हामिद के पास कितने पैसे थे
(क) चार आने
(ख) बारह पैसे
(ग) तीन पैसे
(घ) पाँच पैसे

7. ईद के मुहर्रम हो जाने का अर्थ ह
(क) खुशी का त्योहार मातम में बदलना
(ख) सेवइयाँ न पक पाना
(ग) ईदगाह न जा सकना
(घ) रोना-पीटना

8. हामिद के पिता का नाम है
(क) आमिर
(ख) आबिद
(ख) सलमान
(घ) अली
उत्तर:
1. (क)
2. (ख)
3. (घ)
4. (ग)
5. (ग)
6. (ख)
7. (के)
8. (ख)

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ईदगाह कहानी की विषयवस्तु क्या है?
उत्तर:
ईदगाह कहानी की विषयवस्तु ईद के त्योहार की पृष्ठभूमि में बच्चों का व्यवहार तथा क्रियाकलाप हैं।

प्रश्न 2.
कहानी को शीर्षक ‘ईदगाह’ कैसा है?
उत्तर:
कहानी का शीर्षक घटनास्थल से सम्बन्धित है। ईद की नमाज पढ़ने ग्रामीण वहीं जा रहे हैं। यह उपयुक्त शीर्षक है।

प्रश्न 3.
ईदगाह किसको कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ ईद की नमाज पढ़ी जाती है, उस स्थान को ईदगाह कहते हैं।

प्रश्न 4.
सामूहिक नमाज लोगों को किस सूत्र से जोड़ती है?
उत्तर:
सामूहिक नमाज लोगों को भाईचारे के सूत्र से जोड़ती है।

प्रश्न 5.
ईदगाह कहानी का नायक कौन है?
उत्तर:
‘ईदगाह’ कहानी का नायक हामिद है

प्रश्न 6.
हामिद के चरित्र की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना को बहुत चाहता है। उनको जलने से बचाने के लिए वह खिलौनों को मोह त्याग कर चिमटा खरीदता है।
इससे यह सिद्ध होता है कि हामिद संवेदनशील चरित्र का व्यक्ति है

प्रश्न 7.
हामिद के हाथ में चिमटा देखकर अमीना की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
हामिद हाथ में चिमटा देखकर अमीना चौंकी। दोपहर तक इस लड़के ने न कुछ खाया न पिया। बड़ा बेसमझ लड़का है। उसका अपने प्रति प्रेम देखकर वह रोने लगी और दुआएँ देने लगी।

प्रश्न 8.
हामिद ने चिमटा क्यों खरीदा?
उत्तर:
हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की उँगलियों को रोटी सेंकते समय आग में जलने से बचाना चाहता इसलिए उसने चिमटा खरीदा।

प्रश्न 9.
हामिद के तर्को का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
बच्चे हामिद के तर्को से प्रभावित हुए और वे उसके चिमटे के मुरीद हो गए।

प्रश्न 10.
हामिद दूसरे लड़कों से किस तरह भिन्न है?
उत्तर:
हामिद समझदार है। बचपन में ही उसमें जिम्मेदारी की भावना आ गई है।

प्रश्न 11.
प्रेमचंद के सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रेमचंद का सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास गोदान है।

प्रश्न 12.
प्रेमचंद की कहानियों के संग्रह से नाम क्या है?
उत्तर:
प्रेमचंद की कहानियों के संग्रह का नाम मानसरोवर है। इसके आठ भाग हैं।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ईदगाह’ कहानी की कथावस्तु की क्या विशेषता है?
उत्तर:
‘ईदगाह’ कहानी की कथावस्तु प्रसिद्ध त्योहार ईद पर आधारित है। इसमें हामिद तथा अन्य बच्चों का चरित्र-चित्रण बाल मनोविज्ञान से प्रभावित है। अभावग्रस्त जीवन जीने वाले बच्चे कम उम्र में ही जिम्मेदार बन जाते हैं। हामिद इसका प्रमाण है। उसके द्वारा चिमटा खरीदना इस बात को सिद्ध करने वाला है।

प्रश्न 2.
‘ईदगाह’ कहानी द्वारा प्रेमचंद ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
‘ईदगाह’ कहानी में प्रेमचंद ने धर्म को भाईचारे और मेल कराने वाला बताया है। उन्होंने त्योहारों को प्रेम तथा भाईचारे से मनाने का संदेश दिया है। इसमें हामिद के चरित्र द्वारा बड़ों के प्रति प्रेम और आदर प्रकट करने, अपने उत्तरदायित्वों को निभाने तथा श्रमपूर्ण जीवन व्यतीत करने का संदेश भी दिया गया है।

प्रश्न 3.
“धर्म मानवता तथा भाईचारा सिखाता है किन्तु अपने इस रूप के विपरीत वह कभी-कभी हिंसा और अशांति कराने वाला बन जाता है।” इस कथन पर अपने तर्कपूर्ण विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
धर्म मानवता और भाईचारा सिखाता है किन्तु जब उसको मानने वाले कट्टरता अपनाते हैं और दूसरों के धर्म का आदर नहीं करते, तब उसका रूप बदल जाता है और वह समाज में हिंसा और अशांति फैलाने वाला बन जाता है। सच तो यह है कि हिंसा और अशांति धर्म नहीं उसके विवेकहीन, अनुदार अनुयायी हीं फैलाते हैं।

प्रश्न 4.
इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन’ यह कहकर कहानीकार क्या बताना चाहता है?
उत्तर:
यह कथन बच्चों के बारे में है। ईद पर सबसे अधिक प्रसन्न वे ही हैं। बड़ों को ईद मनाने के लिए रुपये-पैसों की व्यवस्था करने की चिंता है। परन्तु बच्चों को इससे कोई मतलब नहीं है। लम्बी प्रतीक्षा के बाद ईद आई है। वे प्रसन्न हैं। जल्दी ही ईदगाह जाना चाहते हैं।

प्रश्न 5.
‘रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है’ वाक्य में प्रयुक्त ‘रमजान’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मुस्लिम कैलेंडर में रमजान नामक एक महीना होता है। इस्लाम धर्म में इसको पवित्र माना जाता है। रमजान में रोजे (उपवास) रखे जाते हैं। तीस दिन रोजे रखे जाने के पश्चात् ईद का त्योहार आता है।

प्रश्न 6.
ईद के अवसर पर सबसे ज्यादा प्रसन्न कौन है तथा क्यों?
उत्तर:
ईद के अवसर पर लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। वे बहुत दिनों से ईद के आने की प्रतीक्षा में थे। अब ईद आ गई है। उनको ईदगाह जाने का अवसर मिलेगा। वहाँ मिठाई खायेंगे, झूला झूलेंगे, खिलौने खरीदेंगे, घर पर मीठी सेवइयाँ खाने को मिलेंगी।

प्रश्न 7.
उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाये’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँव के लड़के जल्दी ईदगाह जाना चाहते थे। बड़ों द्वारा देर करना उनको अच्छा नहीं लग रहा था। ईद के त्योहार पर घर में सेवइयाँ बननी थीं। उसके लिए दूध और शक्कर की जरूरत थी। गरीब ग्रामीणों के पास ये चीजें नहीं थीं।

इनको खरीदने के लिए पैसे भी नहीं थे। वे उधार माँगने महाजन चौधरी कायम अली के घर दौड़े जा रहे थे। यदि चौधरी उधार देने से मना कर दें तो ईद की खुशियाँ काफूर हो जायेंगी और वह मुहर्रम के मातम में बदल जाएगी। बच्चों को यह नहीं पता था।

प्रश्न 8.
इसलिए हामिद प्रसन्न है’-हामिद क्यों प्रसन्न है?
उत्तर:
हामिद गरीब है। उसके पास कुल तीन पैसे हैं। उसके माता-पिता मर चुके हैं। बूढ़ी दादी अमीनी किसी तरह उसको पाल रही है। हामिद को बताया गया है कि उसकी माता अल्लाह के यहाँ से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लेने गईहै तथा उसका पिता रुपये कमाने गया है। हामिद को आशा है कि एक दिन वे बहुत-सी चीजें तथा खूब पैसा लेकर लौटेंगे। व उसके सारे अरमान पूरे हो जायेंगे। यही सोचकर वह गरीबी में भी प्रसन्न है।

प्रश्न 9.
“उसके अन्दर प्रकाश है और बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आए, हामिद की आनन्द-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हामिद के मन में प्रबल आशा और आत्मविश्वास है कि माता-पिता के लौटने पर उसके सभी संकट मिट जायेंगे। वे इतना धन लायेंगे कि वह गरीब नहीं रहेगा। उसके सारे अरमान पूरे होंगे। आशा में बड़ी शक्ति होती है। उसके बल पर मनुष्य बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का सामना कर लेता है। हामिद का मन भी प्रकाश, आशा और आनन्द से भरा है। उसके मन की इस स्थिति के कारण निराशा और विपत्ति वहाँ ठहर ही नहीं सकती।

प्रश्न 10.
अमीना का दिल क्यों कचोट रहा था?
उत्तर:
गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ ईदगाह जा रहे थे। हामिद अकेला था। अमीना के सिवाय उसका कोई नहीं था। उसे घर पर सेवइयाँ न पकानी होती तो वह साथ जाती। तीन कोस तक वह पैदल कैसे चलेगा? उसके पैरों में जूते भी नहीं हैं। अमीनी साथ जाती तो बीच-बीच में उसे गोद में उठा लेती। यह सोचकर उसका दिल कचोट रहा था।

प्रश्न 11.
बच्चों में ईदगाह जाते समय रास्ते में क्या बातें हुईं?
उत्तर:
ईदगाह जाते समय रास्ते में बच्चे तरह-तरह की बातें करते रहे। उन्होंने जिन्नात के बारे में बातें की। पुलिस वालों के बारे में भी उनमें बातें हुईं। रास्ते में पड़ने वाले कालेज तथा क्लबों और उनमें जाने वालों के बारे में भी उन्होंने बातें कीं।

प्रश्न 12.
ईदगाह जाने वालों के बारे में लेखक ने क्या लिखा है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार लोग टोलियों में ईदगाह जा रहे थे। वे एक से एक भड़कीले कपड़े पहने हुए थे। कोई इक्के-ताँगे पर और कोई मोटर पर सवार था।

उनके कपड़ों से इत्र की सुगंध आ रही थी। सभी के दिलों में उमंग थी। गाँव के लोगों का छोटा-सा दल भी अपनी विपन्नता से बेखबर संतोष और धैर्य के साथ ईदगाहे जा रहा था।

प्रश्न 13.
ईदगाह का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
ईदगाह के ऊपर इमली के पेड़ों की घनी छाया थी। नीचे पक्का फर्श था। उस पर जाजिम बिछा हुआ था। उस पर रोजेदार पंक्तियों में बहुत दूर तक खड़े थे। बाद में आने वाला पीछे खड़ा हो जाता था। वहाँ जाजिम भी नहीं था।

प्रश्न 14.
“मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है-इस कथन के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘धर्म तोड़ती नहीं जोड़ता है।’
उत्तर:

ईदगाह में पढ़ी जाने वाली सामूहिक नमाज में सुन्दर व्यवस्था एवं अनुशासन था। सब लोग कतारबद्ध होकर एक साथ खुदा को सिजदा करते थे, एक साथ खड़े होते थे, एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते थे। यह देखकर ऐसा लगता था मानो सब लोग भाईचारे एवं एकता के सूत्र से जुड़े हुए हों।

कोई ऐसा तत्व उन सबके बीच में सामान्य रूप से व्याप्त था। जो उन्हें आपस में जोड़े हुए था। यह तत्व था-इस्लाम धर्म। सभी मुस्लिम ईद के अवसर पर सामूहिक नमाज पढ़कर अपनी एकता प्रदर्शित कर रहे थे। इससे लग रहा था कि धर्म वह तत्व है जो लोगों को आपस में जोड़ता है, तोड़ता नहीं।.

प्रश्न 15.
ईद की नमाज के बाद हामिद तथा अन्य लड़कों ने क्या किया?
उत्तर:
ईद की नमाज के बाद हामिद तथा अन्य लड़कों ने चर्सी पर बैठकर चक्कर काटें। इसके पश्चात वे खिलौनों की दुकान की ओर मुड़े। महमूद ने सिपाही, मोहसिन ने भिश्ती और नूरे ने वकील खरीदा।

इसके बाद उन्होंने गुलाब जामुन, सोहन हलवा और रेवड़ियाँ खाईं। हामिद इस दल से अलग ही रहा। उसके पास कुल तीन ही पैसे थे। अत: वह उनके साथ मेले का मजा नहीं ले सकता था।

प्रश्न 16.
साथी लड़कों ने हामिद के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
महमूद, मोहसिन तथा नूरे हामिद के साथी थे। हामिद उनके खिलौने देखकर ललचा रहा था। परन्तु उन्होंने उसे खिलौने छूने भी नहीं दिए। सभी ने हामिद को दिखाकर और चिढ़ाकर मिठाइयाँ खाईं परन्तु उसे नहीं दी। तीनों एक साथ मेले में हामिद से दूर-दूर ही रहे।

प्रश्न 17.
खिलौनों और मिठाइयों के प्रति हामिद का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
हामिद ने न चर्ची की मजा लिया, न खिलौने और मिठाई ही खरीदी। वह खिलौनों और मिठाई के लिए ललचा तो रहा था किन्तु उसके पास पैसे नहीं थे। तीन पैसों में वह क्या-क्या खरीदता ? उसने दिखाने के लिए खिलौनों की निन्दा की, कहा-खिलौने मिट्टी के बने हैं। जल्दी टूट जायेंगे। मिठाइयों से पेट खराब होता है। यह किताबों में भी लिखा है।

प्रश्न 18.
हामिद ने ईद के मेले से क्या खरीदा और क्यों?
उत्तर:
हामिद ने ईद के मेले से तीन पैसों में लोहे का चिमटा खरीदा, क्योंकि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं था। जब वे तवे पर से रोटियाँ उतारतीं तो उनके हाथ की उँगलियाँ जल जाती थीं, इसलिए हामिद ने दादी के लिए चिमटा खरीदा।

प्रश्न 19.
हामिद ने खिलौनों तथा मिठाइयों को बुरा बताया। क्या आप उसके इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर:
हामिद ने खिलौनों तथा मिठाइयों को बुरा बताया। उसके पास कुल तीन पैसे थे। अतः वह इनको खरीद नहीं सका। परन्तु उनको पाने के लिए मन में लालच अवश्य उत्पन्न हो रहा था। वह दिखाने के लिए ही इनको बुरा बता रहा था। हम उसके कथन से सहमत हैं क्योंकि उस परिस्थिति में वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा इसी प्रकार कर सकता था।

प्रश्न 20.
खिलौनों तथा मिठाइयों के प्रति बच्चों में कैसी भावना होती है? हामिद के व्यवहार से क्या पता चलता है?
उत्तर:
खिलौनों तथा मिठाइयों के प्रति बच्चों में लालच की भावना होती है। हामिद के व्यवहार से पता चलता है कि बच्चों का स्वभाव ही उनको इन चीजों को पाने के लिए ललचाता है। ये चीजें उनको सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं। हामिद इसका अपवाद नहीं है।

प्रश्न 21.
यदि आप हामिद के स्थान पर होते तो अपने तीन पैसों का उपयोग कैसे करते?
उत्तर:
यदि हम हामिद के स्थान पर होते और मेले में जाते तो अपने तीन पैसों में कोई ऐसी वस्तु खरीदते जो उपयोगी होती। हामिद ने चिमटा खरीदा था। हम भी ऐसी ही वस्तु खरीदते। वह कोई कॉपी या कलम भी हो सकती थी। हामिद ने अपने पैसों का सही प्रयोग किया था। हम भी ऐसा ही करते ।

प्रश्न 22.
हामिद ने खिलौनों की निन्दा की यद्यपि वह उनको पाने के लिए ललचा रहा था। इसका कारण आपकी दृष्टि में क्या है?
उत्तर:
हामिद ने खिलौनों की निन्दा की। अन्य बच्चों के हाथों में खिलौने देखकर वह ललचा रहा था। निन्दा करना उसकी मजबूरी थी। वह खिलौने खरीद नहीं सकता था। दूसरे बच्चे अपने खिलौने उसे दे नहीं रहे थे। अपने आपको समझदार तथा चालाक सिद्ध करने के लिए उसने ऊपरी मन से खिलौनों की निन्दा की। इस विषय में हम हामिद से सहमत हैं। आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उसके पास यही एक उपाय था।

प्रश्न 23.
“कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो”–वाक्य में ‘धेलचा कनकौआ तथा ‘गंडेवाले कनकौए’ किसके प्रतीक हैं? प्रेमचंद ने यह उदाहरण क्यों दिया है?
उत्तर:
‘धेलचा कनकौआ’ कुतर्क का तथा ‘गंडेवाले कनकौए’ प्रभावी तर्क के प्रतीक हैं। प्रेमचंद ने यह उदाहरण देकर प्रकट किया है कि हामिद के कुतर्क ने अन्य लड़कों के तर्को को प्रभावहीन बना दिया और वे निरुत्तर हो गये। उनको हामिद के कानून पेट में डालने वाले कुतर्क की कोई काट नहीं सूझी

प्रश्न 24.
हामिद ने साथी लड़कों के सामने चिमटे की उपयोगिता कैसे सिद्ध की?
उत्तर:
हामिद ने चिमटा खरीदा था। साथी लड़कों के सामने उसने अपने प्रबल तर्को से चिमटे की उपयोगिता सिद्ध की। उसने कहा कि खिलौने मिट्टी के बने हैं, शीघ्र टूट जायेंगे। चिमटा लोहे से बना है और मजबूत है। वह आग, पानी, तूफान का सामना कर सकता है।

वह बहादुर है। शेर की गर्दन पर सवार होकर उसकी आँखें निकाल सकता है। उसका चिमटा बहादुर है, रुस्तमे हिंद है। वह एक ही प्रहार से खिलौनों को तोड़ सकता है। उसका प्रयोग बन्दूक, फकीर के चिमटे तथा मजीरों की तरह भी हो सकता है। चिमटे को पाकर उसकी दादी उसको दुआएँ देंगी।

प्रश्न 25.
“सम्मी तो विधर्मी हो गया”-कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
विधर्मी का अर्थ है-पराये धर्म को अपनाने वाला। सम्मी महमूद, नूरे, मोहसिन आदि के साथ था किन्तु हामिद के कुतर्क से प्रभावित होकर वह उसके साथ हो गया। उसने मान लिया कि हामिद को चिमटा दूसरे लड़कों के खिलौने से बेहतर है।

प्रश्न 26.
“उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति” -यह किसके बारे में कहा गया है तथा क्यों?
उत्तर:
न्याय का बल और नीति की शक्ति हामिद के पास बताई गई है। कहानीकार ने हामिद के लिए ही इस कथन का प्रयोग किया है। हामिद ने अपनी बूढ़ी दादी की उँगलियों को जलने से बचाने के लिए चिमटा खरीदा है। मेले में भी उसको दादी के कष्ट का ध्यान रहा।

चिमटा खरीदने का हामिद का निर्णय उसके नीति और न्याय के पथ पर चलने के कारण ही हो सका है। उसके चिमटे के पक्ष में उसके तर्क, नीति और न्याय से पूर्ण होने के कारण ही प्रभावशाली है।।

प्रश्न 27.

“कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया है।”-वाक्य में ‘धेलचा’ ‘कनकौआ और ‘गंडेवाले’ कैसे शब्द हैं? इनके प्रयोग का प्रेमचंद की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
“धेलचा’ और ‘गंडेवाले’ काशी क्षेत्र (वाराणसी) के बोलचाल के शब्द हैं। प्रेमचंद ने जनता में प्रचलित शब्दों । को भी अपनी भाषा में स्थान दिया है। लोक में प्रचलित शब्दों के प्रयोग के कारण उनके भाषा के प्रभाव तथा शक्ति में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 28.
“बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं”का आशय क्या है?
उत्तर:
हामिद ने चिमटा खरीदा, सोचा, चिमटे से रोटियाँ सेंकने पर दादी के हाथ नहीं जलेंगे। तब दादी खुश होकर उसे खूब दुआएँ देंगी। बड़े-बुजुर्ग लोगों के आशीर्वाद को ईश्वर तुरन्त सुनता है और जिसे आशीर्वाद दिया जाता है उसका तुरन्त. भला करता है। आशय यह है कि बड़ों का आशीर्वाद अत्यन्त हितकारी होता है।

प्रश्न 29.
हामिद का कौन-सा कुतर्क लड़कों के तर्कों पर भारी पड़ा? क्या आप कुतर्क को सही मानते हैं?
उत्तर:
खिलौनों को लड़के उपयोगी बताकर उनके पक्ष में तर्क दे रहे थे। महमूद ने कहा-वकील साहेब कुर्सी पर बैठेंगे परन्तु चिमटा तो बावर्चीखाने में पड़ा रहेगा। इस तर्क की कोई काट न सूझने पर हामिद ने कुतर्क का सहारा लिया।

उसने कहा कि उसका चिमटा वकील साहब को नीचे गिराकर कानून को उनके पेट में डाल देगा। उसके इस कुतर्क ने सभी को निरुत्तर कर दिया। मैं कुतर्क को सही तो नहीं मानती किन्तु कुछ स्थितियों में वह तर्क से अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है।

प्रश्न 30.
चिमटे को देखकर अमीना की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
चिमटे को देखकर अमीना पहले तो हामिद की नासमझी पर क्रोध व्यक्त करने लगी, किन्तु जब हामिद ने कहा कि तुम्हारी उँगलियाँ तवे पर रोटियाँ सेकते समय जल जाती हैं इसलिए चिमटा लाया हूँ, तब वह गदगद होकर रोने लगी और दामन फैलाकर हामिद के लिए दुआ माँगने लगी। हामिद के प्रति उसका हृदय स्नेह से भरा था।

प्रश्न 31.
“हामिद ने बूढ़े हामिद को पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हामिद दादी अमीना के लिए चिमटा लाया है जिससे उसकी उँगलियाँ न जलें। यह जानकर अमीना का हृदय स्नेह से गदगद हो उठा और भावातिरेक से उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह बालिका बनकर रो रही थी और हामिद बड़े-बूढ़ों की तरह उसे चुप करा रहा था।

छोटे से हामिद ने अपनी उम्र से अधिक जिम्मेदारी का निर्वाह किया था। खिलौनों और मिठाइयों के लालच में वह नहीं पड़ा था और दादी के लिए चिमटी खरीदा था। हामिद तथा अमीना दोनों का ही आचरण उनकी आयु के प्रतिकूल था।

प्रश्न 32.
प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था? वे किस नाम से लिखा करते थे?
उत्तर:
प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था किन्तु उर्दू में वे नवाबराय के नाम से लिखते थे। उर्दू में लिखा उनका कहानी संग्रह ‘सोजेवतन’ जब अँग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया तब वे हिन्दी में प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 11  निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“प्रेमचंद की भाषा बहुत सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है।” ईदगाह कहानी के आधार पर इस कथन की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण एवं मुहावरेदार है तथा बोलचाल की भाषा के निकट है। कहानी में कहीं भी ऐसी भाषा प्रयुक्त नहीं हुई है जो समझ में न आने वाली हो।

कहानी में प्रयुक्त कुछ मुहावरे इस प्रकार हैं-छक्के छूटना, नानी मरना, मिजाज दिखाना, कुबेर का धन, आँखें बदलना, गर्दन पर सवार होना, कानून पेट में डाल देना, तीन कौड़ी का, आँखों तले अँधेरा छाना, राई का पर्वत बनाना आदि। भाषा के स्वरूप को लेकर प्रेमचंद बड़े उदार हैं।उनकी भाषा में तत्सम प्रधान पूरे वाक्य हैं तो उर्दू, अँग्रेजी तथा बोलचाल में प्रचलित शब्द तत्सम शब्दों के साथ मिलते हैं।

उदाहरणार्थ-“बुढ़िया अमीना बालिका बन गई। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।” तथा “विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आए हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।”

प्रश्न 2.
ईदगाह कहानी के शीर्षक का औचित्य सिद्ध कीजिए। क्या आपकी दृष्टि में इस कहानी का कोई अन्य उचित शीर्षक हो सकता है?
उत्तर:
कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, रोचक और आकर्षक होना चाहिए, साथ ही वह कहानी से जुड़ा हुआ भी होना चाहिए। प्रायः कहानी का शीर्षक किसी घटना, चरित्र या स्थान के आधार पर रखा जाता है। ईद के अवसर पर ईदगाह’ मेंसामूहिक नमाज अदा करने के लिए ग्रामीण भी आते हैं।गाँव के बच्चों को भी ईदगाह जाने की खुशी होती है।

ईद की नमाज के बाद वहाँ लगे मेले में वे खिलौने और मिठाइयाँ खरीदते हैं। कहानी प्रारम्भ से अंत तक ईद और ईदगाह से जुड़ी है। अतः इसका शीर्षक ‘ईदगाह’ उपयुक्त है। यह सरल, संक्षिप्त, रोचक और आकर्षक भी है।ईदगाह जाने पर ही हामिद ने वहाँ लगने वाले मेले से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा, क्योंकि वह नहीं चाहता कि अब आगे से उसकी दादी के हाथ तवे से रोटियाँ उतारते समय जलें ।

कहानी का एक अन्य शीर्षक ‘हामिद का चिमटा’ भी हो सकता है, क्योंकि हामिद ने अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा था। कहानी के कथानक के विकास तथा पात्रों के चरित्र-चित्रण में चिमटे का भी योगदान है। ईदगाह’ के बाद ‘हामिद का चिमटा’ भी एक अच्छा और प्रभावशाली शीर्षक हो सकता है।

प्रश्न 3.
‘ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है’, सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
ईदगाह कहानी में बाल मनोविज्ञान का भरपूर उपयोग प्रेमचंद ने किया है। बच्चे मेले में जाने के लिए कितने उत्साहित होते हैं और किस प्रकार अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं इसका यथार्थ चित्रण कहानी में है। जिन्नात के बारे में उनकी कल्पना उनके मन में बैठे भूत-प्रेत के विश्वास को व्यक्त करती है। इसी प्रकार मोहसिन यह भी जानता है कि शहर के

पुलिस वाले चोरों से मिलकर चोरियाँ करवाते हैं। बच्चों में लालच की प्रवृत्ति भी होती है। वे अपने खिलौने दूसरों को छूने भी नहीं देते। अपनी चीज को बेहतर बताने की प्रवृत्ति भी उनमें होती है। हामिद ने सबल तर्को से सिद्ध कर दिया कि उसकाचिमटा सब खिलौनों से श्रेष्ठ है। बच्चों में निश्छलता इस सीमा तक होती है कि उनसे जो कुछ कह दो, उसी को मान लेते हैं।

अमीना ने हामिद से कह दिया कि तुम्हारे अब्बा रुपये कमाने गए हैं और अम्मी खुदा के यहाँ से तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाएँगी तो हामिद ने इसे सच मान लिया। बच्चे निश्छल स्नेह करते हैं। हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा इसलिएलाया क्योंकि वह दादी से स्नेह करती है और चाहता है कि तवे से रोटियाँ, उतारते समय उनके हाथ न जलें। इस प्रकार यह कहानी बाल मनोविज्ञान पर पूरी तरह आधारित है।

प्रश्न 4.
‘ईदगाह’ कहानी की संवाद-योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संवाद का तात्पर्य है-दो पात्रों के बीच का वार्तालाप। संवाद योजना नाटक का अनिवार्य तत्व है, किन्तु कथा साहित्य अर्थात् कहानी, उपन्यास में भी संवाद योजना रहती है। संवादों की भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। संवाद रोचक एवं प्रभावी होने चाहिए। संवाद छोटे-छोटे एवं चरित्र पर प्रकाश डालने वाले हों तभी सार्थक होते हैं।
वे कथा को गति प्रदान करते हैं, यथा-उसने दुकानदार से पूछा-यह चिमटा कितने का है?

दुकानदार ने कहा-तुम्हारे काम का नहीं है जी।
बिकाऊ है कि नहीं? बिकाऊ क्यों नहीं है?
और यहाँ क्यों लाद लाए हैं?
तो बताते क्यों नहीं, कितने पैसे का है?
छः पैसे लगेंगे।

उक्त संवाद योजना में संवाद छोटे-छोटे, सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण तथा नाटकीय हैं और कथा को आगे भी बढ़ाते हैं। संवाद पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को भी प्रकट करते हैं।

प्रश्न 5.
हामिद के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हामिद के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • कहानी का नायक-हामिद कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है। हामिद ही ‘ईदगाह’ कहानी की घटनाओं के केन्द्र में है।
  • निर्धन तथा माता-पिताहीन-हामिद माता-पिता जीवित नहीं हैं। वह अपनी दादी के साथ रहता है। वह अभी चार-पाँच वर्ष का ही है। उसका परिवार निर्धन है।
  • समझदार-हामिद यद्यपि अभी छोटा बच्चा है परन्तु वह बहुत समझदार है। अभावग्रस्त जीवन जीने के कारण वह उम्र से पहले ही जिम्मेदारी की भावना से भर गया है। मेले में वह खिलौने और मिठाई नहीं खरीदता। वह अपनी दादी के हाथों को जलने से बचाने के लिए चिमटा खरीदता है।
  • विवेकशील और तर्क प्रवीण-हामिद विवेकशील है। वह तर्कशील है। वह अपने तर्को से खिलौनों को अनुपयोगी तथा शीघ्र नष्ट होने वाले तथा चिमटे को उपयोगी और मजबूत सिद्ध कर देता है।
  • दादी के प्रति स्नेह-हामिद को अपनी दादी के प्रति गहरा स्नेह है। मेले में उसे ध्यान रहता है कि चिमटे के न होने से रोटियाँ बनाते समय दादी अमीना की उँगलियाँ जल जाती हैं। वह अपने पूरे तीन पैसे चिमटे खरीदने में खर्च करता है।

प्रश्न 6.
गाँव से शहर जाने वाले रास्ते के मध्य पड़ने वाले स्थलों का ऐसा वर्णन लेखक ने किया है कि वे आँखों के सामने उपस्थित चित्र के समान लगते हैं। आप भी अपने घर तथा विद्यालय के मध्य रास्ते में पड़ने वाले स्थलों का वर्णन कल्पना के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
जब मैं विद्यालय जाता हूँ तो रास्ते में दुर्गा माँ का मंदिर पड़ता है। सवेरे से ही देवी माँ के मन्दिर में भक्तों और दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। कोई मन्दिर के बाहर जूते उतारकर घण्टा बजाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रहा होता है तो कोई प्रसाद के लिए मन्दिर के बाहर वाली दुकान पर खड़ा लड्डू तुलवा रहा होता है।

कोई पूजन सामग्री एवं फूलमाला लेने के लिए मिठाई वाले की पड़ोस में लगी पूजन सामग्री की दुकान पर खड़ा सामान ले रहा होता है। मन्दिर के बाहर तमाम लोग, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, प्रसाद लेने के लिए खड़े रहते हैं। | कुछ दूर आगे बढ़ने पर खेल का मैदान पड़ता है, जहाँ ज्यादातर क्रिकेट होती रहती है। चारों ओर दर्शक बैठे होते हैं, जो हर अच्छे शॉट पर तालियाँ बजाते हैं।

प्रश्न 7.
“अमीना दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।” लेखक किस रहस्य की बात कर रहा है, जिसे हामिद नहीं समझ सका?
उत्तर:
हामिद मेले से अपनी दादी के लिए चिमटा लाया। वह जानता था कि तवे से रोटियाँ उतारते समय दादी के हाथ जल जाते थे। उसने न कुछ खाया न पिया। दोपहर तक भूखा-प्यासा रहा। उसके पास तीन ही पैसे थे। उसने इन पैसों से एक चिमटा खरीदा। अपने प्रति पोते के इस लगाव को देखकर बूढ़ी दादी अमीना रोने लगी और अपने पोते को दुआएँ देने लगी।

उसकी आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें गिर रही थीं, पर बेचारा हामिद क्या जाने कि उसकी दादी रो क्यों रही थी? उसे तो यही लग रहा था कि शायद उससे कोई गलती हो गई थी। वह इस रहस्य को नहीं जानता था कि ये ममता एवं वात्सल्य की अधिकता से निकले आँसू थे। वह स्नेह के वशीभूत होकर रो रही थी और दामन फैलाकर अपने पोते को दुआएँ देती जा रही थी, पर हामिद इस रहस्य से अपरिचित था।

लेखक परिचय

प्रश्न 1.
प्रेमचन्द का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्य-सेवा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जीवन-परिचय-मुंशी प्रेमचन्द का मूल नाम धनपत राय था। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के ‘लमही’ नामक गाँव में सन् 1864 ई. में हुआ था। इनके पिता मुंशी अजायब लाल तथा माता आनन्दी देवी थीं।

प्रेमचन्द अध्यापक तथा डिप्टी इंस्पेक्टर रहे। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर आपने नौकरी छोड़ दी। आप साहित्य-रचना और सम्पादन का कार्य करने लगे। सन् 1936 में आपका निधन हो गया। साहित्यिक परिचय-आरम्भ में प्रेमचन्द उर्दू में ‘नवाबराय’ के नाम से लिखते थे। सर्वप्रथम आपका कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ प्रकाशित हुआ। राष्ट्रीय भावनाओं की प्रधानता के कारण ब्रिटिश सरकार ने उसको प्रतिबन्धित कर दिया। इसके बाद आप हिन्दी में ‘प्रेमचन्द’ नाम से लिखने लगे।

प्रेमचन्द के साहित्य में देशप्रेम, राष्ट्रीयता, दलितों, नारियों, किसानों आदि की पीड़ा, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों, अशिक्षा, निर्धनता, जमीदारों और अँग्रेज शासकों के अत्याचारों आदि का मार्मिक चित्रण मिलता है। उनकी भाषा सहज, सरल और पात्रानुकूल है। आपने वर्णनात्मक, विवरणात्मक संवादपरक तथा मनोविश्लेषणात्मक शैलियों में रचनाएँ की हैं। प्रेमचन्द ‘कलम के सिपाही’ तथा ‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। कृतियाँ

कहानी संग्रह-मानसरोवर (आठ भाग)। उपन्यास-निर्मला, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान। नाटक-कर्बला, संग्राम। पत्रिकाएँ-माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण।

‘पाठ-सार

प्रश्न 1.
‘ईदगाह’ कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर–
पाठ-परिचय-‘ईदगाह’ बाल मनोविज्ञान पर आधारित प्रेमचन्द की प्रतिनिधि कहानी है। इसमें ईद के त्यौहार को आधार बनाकर अभावग्रस्त मुस्लिम ग्रामीण परिवार का चित्रण किया गया है। अभावग्रस्त बालक बचपन में ही बड़ों के समान समझदार हो जाते हैं। कहानी के नायक हामिद का चरित्र इसका उदाहरण है। हामिद के चिमटे ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ के माध्यम से कहानीकार ने श्रम की महत्ता तथा सौन्दर्य का भी उद्घाटन किया है।

ईद का त्यौहार-रमजान के तीस रोजे बीतने के बाद ईद का दिन आया है। पूरे गाँव में चहल-पहल है। ईदगाह में जाकर ईद की नमाज अदा करनी है। तीन कोस पैदल चलना होगा। लौटते-लौटते दोपहर हो जायेगी। बच्चों को ईद की ज्यादा खुशी है। वह जल्दी ईदगाहे जाना चाहते हैं। वे अपने पास के पैसों को बार-बार गिनकर जेब में रख लेते हैं। महमूद के पास बारह, मोहसिन के पास पन्द्रह और हामिद के पास तीन पैसे हैं। हामिद के माँ-बाप नहीं हैं। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के पास रहता है। अमीना का दिल कचोट रहा है। सब बच्चे अपने पिताओं के साथ ईदगाह जायेंगे, मगर हामिद अकेला जा रहा है। अगर सेवइयाँ पकाने की चिन्ता न होती तो अमीना भी उसके साथ जाती। हामिद अपनी दादी को विश्वास दिलाता है-“तुम डरना नहीं अम्मा, मैं सबसे पहले आऊँगा।” बच्चे रास्ते की चीजों पर बातें करते हुए प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जा रहे हैं।

ईदगाह की नमाज-तभी ईदगाह दिखाई पड़ता है। उसके ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे फर्श पर जाजिम बिछा है। रोजेदार उस पर नमाज पढ़ने के लिए कतारों में बैठे हैं। गाँव के लोग भी वजू करते हैं और पिछली कतार में खड़े हो जाते हैं। नमाज शुरू होती है। लाखों के सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं। फिर सब एक साथ खड़े होते हैं। घुटनों के बल बैठते हैं। अत्यन्त सुंदर दृश्य है। यह सामूहिक नमाज सबमें भाईचारा पैदा करती है। नमाज खत्म होने पर सभी आपस में गले मिलते हैं।

मेले में बच्चे-नमाज के बाद बच्चे झूला झूलते हैं। लकड़ी के बने ऊँटों और घोड़ों वाले चर्सी पर महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी बैठे। हामिद के पास तीन पैसे थे। वह इनमें से एक भी पैसा झूले पर खर्च करना नहीं चाहता था। इसके बाद वे खिलौनों की दुकान पर पहुँचे। महमूद ने सिपाही, मोहसिन ने भिश्ती और नूरे ने वकील खरीदा। इन पर उन्होंने दो-दो पैसे खर्च किए। हामिद यहाँ भी दूर रहा। इसके बाद बच्चों ने मिठाई की दुकान पर मिठाई खरीदी। उन्होंने रेवड़ियाँ, गुलाब जामुन और सोहन हलवा खरीदा। हामिद ने कुछ नहीं खरीदा। वह ललचाते हुए खिलौनों और मिठाई की बुराई करता रहा।

हामिद का चिमटा-मेले में लोहे के सामान की एक दुकान थी। हामिद वहाँ रुक गया। उसे याद आया कि चिमटा न होने के कारण दादी की उँगलियाँ रोटी सेंकते समय जल जाती हैं। उसने मोल-भाव करके दुकानदार से तीन पैसे में चिमटा खरीद लिया। हामिद के हाथ में चिमटा देखकर बच्चे उसकी हँसी उड़ाने लगे। परन्तु हामिद ने कहा उसका चिमटा मजीरों की तरह बज सकता है, कंधे पर रखने पर बन्दूक बन सकता है, उसके चिमटे की एक ही कोर से उनके खिलौने टूट जायेंगे, उसका चिमटा ‘रुस्तम-ए-हिंद’ है, वह आग, पानी, तूफान में डटा रह सकता है। उनके खिलौने उसके चिमटे के आगे नहीं टिक सकते। हामिद के तर्को से प्रभावित होकर बच्चे उसके चिमटे के बदले अपने खिलौने थोड़ी देर के लिए देने को तैयार हो गए।

गाँव वापसी-ग्यारह बजे तक लोग गाँव वापस लौट आये। बच्चों ने खेलकर थोड़ी देर में ही खिलौने तोड़ डाले। अमीना आकर हामिद को गोद में लेकर प्यार करने लगी। उसके हाथ में चिमटा देखकर दादी ने उसके बारे में पूछा तो हामिद ने उसको बताया कि उसने तीन पैसों में चिमटा खरीदा है। अमीना ने छाती पीट ली। कैसा लड़का है! दोपहर तक भूखा-प्यासी रहा! खरीदा तो यह चिमटा। हामिद ने कहा तुम्हारी उँगलियाँ रोटियाँ सेंकते समय जल जाती थीं इसलिए यह चिमटा खरीदा। यह सुनकर अमीना का मन मूक स्नेह से भर गया। वह हामिद के भोले एवं गहरे प्यार पर टपटप आँसू गिराने लगी। वह रोती थी और उसको दुआएँ देती जाती थी। हामिद को इसका रहस्य समझ में नहीं आ रहा था।

कठिन शब्द और उनके अर्थ।

(पृष्ठ सं. 40)
रमजान = मुस्लिम कैलेंडर के एक महीने का नाम। रोजा = व्रत (उपवास)। रौनक = शोभा। अजीब = अनोखी। ईदगाह = जहाँ ईद की सामूहिक नमाज पढ़ी जाती है। प्रयोजन = मतलब। अब्बाजान = पिता। बदहवास = घबराए हुए। आँखें बदलना = मुहावरा, अर्थ है-व्यवहार में परिवर्तन आना। मुहर्रम = मातम का त्योहार (यह शब्द ईद का विरोधी है क्योंकि ईद खुशियों का त्योहार है)। कुबेर का धन = अत्यधिक वैभव (लक्षणा से)। हैजे की भेंट हो गया = हैजे से मर गया। अल्लाह मियाँ = ईश्वर।

(पृष्ठ सं. 41)
राई का पर्वत बनाना = मुहावरा, छोटी बात को बड़ा बना देना। नियामतें = आशीर्वाद। अम्मीजान = माता। दिल के अरमान निकालना = मुहावरा, इच्छाएँ पूरी करना। निगोड़ी = अभागी (ब्रज क्षेत्र में प्रचलित एक गाली, जिसका कोई न हो उसे निगोड़ा या निगोड़ी कहते हैं।) विध्वंस = विनाश। दिल कचोट रहा है = हृदय बेचैन है। ईमान की तरह बचाना = बहुत सँभालकर रखना। ग्वालन = दूध वाली। सिर पर सवार होना = मुहावरा, बार-बार तगादा करना, कड़ाई से माँगना। बिसात = सामर्थ्य (ताकत)। बेड़ा पार लगाना = मुहावरा, मुसीबत से पार पाना। आँख नहीं लगना = पसंद नहीं आना। मुँह चुराएगी = मुँह छिपाना (देने से मना कर देना)। खैरियत = राजी-खुशी। तकदीर = भाग्य। सलामत रखना = कुशलता से रखे। पर लग जाना = तेज चलना, दामन = किनारा। अमीर = धनवान।।

(पृष्ठसं. 42)
अदालत = न्यायालय। मदरसे = स्कूल। तीन कौड़ी के = नगण्य, व्यर्थ (मुहावरा)। लुढ़क जाएँ = गिर पड़े। आँखों तले अँधेरा आना = चक्कर आना, बेहोश हो जाना। जिन्नात = भूत-प्रेत। अब्बा = पिता।

(पृष्ठ सं. 43)
बछवा = बछड़ा। हैरान हुए = परेशान हुए। झक मारकर = हार मानकर। मवेशी खाना = जहाँ लावारिस जानवरों को पकड़कर बंद कर देते हैं, पशुओं का बाड़ा। सारे जहाने की = सारी दुनिया की। कानिसटिबिल = सिपाही। कवायद = ड्रिल, परेड। रैटन = राइट टर्न (दायें मुड़)। प्रतिवाद करना = विरोध करना। हजरत = महोदय (श्रीमान्)। नादानी = नासमझी (मुर्खता)। हराम का माल = बेईमानी की कमाई। लेई पूँजी = जोड़ी सम्पत्ति। उमंग = उत्साह। विपन्नता = गरीबी। बेखबर = अनजान। मगन = प्रसन्न। हार्न = भोंपू। न चेतते = सावधान न होते।

(पृष्ठ सं. 44)
जाजिम = नमाज पढ़ने के लिए बिछाई गई दरी (बिछावन)। रोजेदारों = रोजे रखने वालों। कतार = पंक्ति। वजू करना = नमाज़ से पहले हाथ-पैर और मुँह धोना। सिजदे में झुकना = खुदा के आगे माथा झुकाना। प्रदीप्त होना = जल उठना। आत्मानंद = आन्तरिक प्रसन्नता। भ्रातृत्व = भाईचारा। एक लड़ी में पिरोना = एकता के बंधन में बाँधना। धावा होना = आक्रमण होना किन्तु यहाँ इसका तात्पर्य है-मिठाई और खिलौनों की दुकान पर एक साथ सभी बच्चों का जाना। हिंडोला = झूला। चर्बी = वृत्ताकार झुलाने वाला झूला। कोष = खजाना। कतार = पंक्ति। भिश्ती = पानी छिड़कने वाला। मशक = चमड़े का बड़ा थैला जिसमें पानी भरा जाता है। विद्वत्ता = बुद्धिमानी। अचकन = अंगरखा। पोथा = मोटी पुस्तक। जिरह = तर्क।

(पृष्ठसं. 45)
फैर = फायर। निंदा = बुराई। चकनाचूर = चूर-चूर होना। अनायास = बिना प्रयास किए (अचानक)। बिरादरी = जमात (बच्चों की जमात)। पृथक् = अलग। खुशबूदार = सुगंधित। अल्ला कसम = भगवान की सौगंध। नेमत = कृपा, बहुत बढ़िया। गिलट = एक धातु। फायदा = लाभ।

(पृष्ठसं. 46)
चटपट = शीघ्र। सबील = धर्मार्थ लगाई गई प्याऊ। जबान = जीभ। चटोरी होना = अच्छी चीजें खाने के लिए जी ललचाना। दुआएँ = आशीर्वाद। मिजाज दिखाना = नखरे करना। सलूक = व्यवहार। घुड़कियाँ = फटकार।

(पृष्ठसं. 47)
बाल भी बाँका न कर पाना = कुछ भी न बिगाड़ पाना। मोहित = आकर्षित। शास्त्रार्थ = बहस, अपनी बात से प्रमाण देकर सही सिद्ध करना। विधर्मी होना = दूसरे अर्थात विरोधी पक्ष से मिल जाना। आघात = प्रहार, चोट। आतंकित = भयभीत। फौलाद = स्टील, मजबूत। अजेय = जो हार न माने, जो जीता न जा सके। छक्के छूटना = घबरा जाना। नानी मर जाना = मुसीबत आना। रुस्तमे हिन्द = बहादुर, भारत का सर्वश्रेष्ठ पहलवान होना।

(पृष्ठ सं. 48)
एड़ी-चोटी का जोर लगाना = पूरा प्रयास करना। कुमुक = सेना। पैरों पड़ना = विनती करना। प्रबल = शक्तिशाली। लाजवाब = उत्तर देने में असमर्थ। आग में कूदना = जान बूझकर मुसीबत में पड़ना। बावर्चीखाना = रसोईघर। धाँधली = बेईमानी। सूरमा = योद्धा, वीर। धेलचा कनकौआ = धेला (दो पैसे) वाली सस्ती पतंग। गंडा = चार आना, कीमती। मैदान मारे लेना = बाजी जीत लेना। सत्कार = आदर। पेश किए = प्रस्तुत किए।

(पृष्ठसं. 49)
दिलासा देना = समझाना, विश्वास दिलाना। सिक्का बैठना = प्रभाव होना। प्रसाद = दया, कृपा। सुरलोक सिधारना = मृत्यु होना, नष्ट हो जाना।।

(पृष्ठसं. 50) :
मृत्युलोक = धरती, इहलोक। माटी का चोला = मिट्टी से बना शरीर। अस्थि = हड्डी, टूटा हुआ खिलौना। घूरा = कूड़े का ढेर। टाँग में विकार आना = टाँग टूट जाना। शल्य क्रिया = ऑपरेशन, चीरफाड़ करना। रूपान्तर = परिवर्तन। बाट = वजन तौलने के लिए प्रयुक्त ईंट, पत्थर आदि। छाती पीटना = पछताना। बेसमझ = नादान, मूर्ख। (पृष्ठसं. 51)

स्नेह = प्रेम। मूक = शब्दहीन, चुप। प्रगल्भ = वाक्पटु। गदगद = प्रसन्न। विचित्र = अनोखी। पार्ट खेला = अभिनय किया। दामन = आँचल, पल्लू। दुआएँ = आशीर्वाद। रहस्य = भेद।

महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

(1) रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है।

(पृष्ठ सं. 40)
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हैं। लेखक कहते हैं कि ईद मुस्लिमों का एक बड़ा त्योहार है। उस समय लोगों का मन प्रसन्नता और उत्साह से भरा होता है। मन में प्रसन्नता होने के कारण प्रकृति भी उल्लासमय प्रतीत होती है।

व्याख्या-ईद के त्योहार के आने पर इस्लाम धर्म को मानने वालों की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए लेखक कहते हैं कि ईद का त्योहार रमजान के पूरे तीस रोजों (उपवास) के बाद आया है। चारों ओर त्योहार की प्रसन्नता व्याप्त है। आज का सवेरा लोगों को अधिक मनोहर एवं सुहावना लग रहा है। पेड़ों पर कुछ नए ढंग की हरियाली दिख रही है और खेतों की शोभा भी आज अनोखी ही है। आकाश में एक विचित्र-सा लाल रंग छा गया है। प्रकृति में सर्वत्र हँसी-खुशी छा रही है। आज का सूरज भी और दिनों की अपेक्षा अधिक प्यारा और शीतल लग रहा है। मानो सबको ईद की बधाई दे रहा हो।

विशेष-
(i) प्रेमचन्द की कहानियाँ मानव-मन की भावनाओं को कुशलता से व्यक्त करती हैं।
(ii) त्योहार का उत्साह बच्चों में साफ दिख रहा है। हृदय की प्रसन्नता ही जैसे वातावरण को मनोहर और आकर्षक बना रही है।
(iii) प्रेमचंद की भाषा में उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग प्रचुरता से हुआ है। वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
(iv) मन के भाव जैसे होते हैं, प्रकृति हमें वैसी ही लगती है।

(2) लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं: लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते? इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जाने कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए।

(पृष्ठ सं. 40)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। ईद के त्योहार पर पूरे गाँव में हलचल हो रही है। लोग ईदगाह जाकर नमाज पढ़ने की तैयारी में लगे हुए हैं। ईदगाह शहर में है और गाँव से तीन कोस दूर है। वहाँ तक पैदल जाना है। इसलिए सभी ग्रामीण रोजेदार अपने काम जल्दी निबटाने में लगे हैं।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि ईद के अवसर पर सबसे अधिक खुशी लड़कों को हो रही है। इनमें से कुछ ने एक दिन ही रोजा रखा है। वह भी पूरा नहीं, बस दोपहर तक। ज्यादातर  बच्चों ने रोजा रखा ही नहीं है परन्तु उनकी प्रसन्नता का सम्बन्ध रोजे रखने या न रखने से नहीं है। उनकी खुशी का कारण तो ईद का त्योहार है। ईदगाह जाने की उनको भी खुशी है। रोजा रखना बड़े-बूढ़ों का काम है। लेकिन ईद का त्योहार तो बच्चों के लिए प्रसन्नता देने वाला है। वे हर दिन ईद की बात करते थे। कब आयेगी ईद? अब उनकी प्रतीक्षा समाप्त हुई है।

ईद का त्योहार आ गया है। अब उनको ईदगाह जाने की जल्दी है। वे लोगों के जल्दी ईदगाह न चलने से बेचैन हो रहे हैं। बड़ों को घर-गृहस्थी की चिन्ता है। बच्चों को इससे क्या मतलब? ईद पर सेवइयाँ पकानी हैं। इसके लिए दूध और शक्कर का इंतजाम करना है। यह बड़ों की चिन्ता है। बच्चों को इससे कोई मतलब नहीं। उनको तो सेवैयाँ खानी हैं। बच्चों के पिता चौधरी कायमअली के घर कुछ परेशान होकर दौड़े गये हैं। वह उनसे ईद के त्योहार को मनाने के लिए कुछ रुपये उधार माँगने गये हैं, नहीं तो ईद कैसे मनेगी? यदि चौधरी रुपया उधार नहीं देंगे तो ईद के त्योहार की खुशी मुहर्रम के मातम में बदल जायेगी। सारा त्योहार फीका हो जायेगा। बच्चे इस बात को नहीं जानते।

विशेष-
(i) ईद के अवसर पर बच्चों की प्रसन्नता और ईदगाह जल्दी जाने की बेचैनी का वर्णन है।
(ii) लेखक ने ग्रामीणों की निर्धनता की ओर संकेत किया है।
(iii) भाषा सरल और सुबोध है। उसमें प्रवाह है। मुहावरों और उर्दू शब्दों के प्रयोग ने उसको प्रभावशाली बनाया है।
(iv) शैली वर्णनात्मक-विवरणात्मक है।

(3) आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसको गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा।

(पृष्ठ सं. 41)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचन्द की ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। ईदगाह कहानी का नायक बालक हामिद है। उसके माता-पिता जीवित नहीं हैं। वह अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। उसे बताया गया है कि उसके माता-पिता अल्लाह से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लेने गए हैं। हामिद को आशा है कि उनके लौटने पर उसके सब कष्ट दूर हो जायेंगे।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि आशा मनुष्य के मन की महत्वपूर्ण भावना है। उसके बल पर वह कष्टपूर्ण जीवन भी काट लेता है। बच्चों के मन में आशा की भावना और ज्यादा महत्व की चीज होती है। बच्चे कल्पनाशील होते हैं। वे अपनी कल्पना के सहारे बड़ी-बड़ी बातें सोच लेते हैं। हामिद के माता-पिता नहीं हैं। आमदनी का कोई जरिया न होने से वह गरीब है। पैरों में पहनने के लिए जूते नहीं हैं। सिर पर एक टोपी है, वह भी पुरानी है। उस पर लगा हुआ गोटा पुराना है और उसकी चमक नष्ट हो चुकी है। परन्तु हामिद खुश है। उसको आशा है कि ये परेशानियाँ जल्दी ही दूर हो जायेंगी। जब उसके पिता लौटेंगे तो उनके पास उनकी कमाई का थैलियों में भरा धन होगा। उसकी माता भी भगवान के आशीर्वाद के रूप में अनेक चीजें लेकर वापस आयेंगी। तब उसके पास किसी चीज की कमी नहीं होगी और उसकी सभी इच्छायें पूरी हो जायेंगी।

विशेष-
(i) आशा की भावना का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व होता है। बच्चे अपनी कल्पना से आशा को और अधिक प्रबल बना देते हैं।
(ii) हामिद के माता-पिता मर चुके हैं परन्तु उसको यह बात बताई नहीं गई है। दादी की बात के आधार पर ही उसने कल्पना की आशा का पहाड़ खड़ा कर लिया है।
(iii) भाषा सरल, सुबोध, प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार है। उसमें उर्दू शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
(iv) शैली विवरणात्मक है।

(4) अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही थी। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आए, हामिद की आनंद भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।

(पृष्ठ सं. 41)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द हैं। हामिद के माता-पिता जीवित नहीं हैं। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता है। अमीना गरीब है। घर में कोई कमाने वाला नहीं है। ईद का त्योहार आ गया है। इससे अमीना की चिन्ता और बेचैनी बढ़ गई है। वह सोच रही है कि पैसे के अभाव में वह ईद का त्योहार कैसे मनायेगी?

व्याख्या-लेखक ने कहा है कि अमीना अपने दुर्भाग्य पर अपनी कोठरी में बैठकर आँसू बहा रही है। ईद का त्योहार आ गया है और उसके घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है। ऐसे में वह त्योहार कैसे मनायेगी? यदि आज उसका पुत्र आबिद जिन्दा होता तो ईद के आने पर उसको ऐसी चिन्ता न होती। बिना हर्ष-उल्लास के ईद आती और चली नहीं जाती। आबिद सब इंतजाम करता और वह खुशी से ईद मनाती। उसको ऐसी निराशा और अँधेरेपन का सामना न करना पड़ता। वह बहुत व्याकुल और निराश थी।

कहीं से किसी सहारे की उम्मीद नहीं थी। उसके मन में घना अँधेरा छाया था। वह। व्याकुलतापूर्वक सोच रही थी कि इस ईद को उसने तो बुलाया नहीं था। उसके घर में ईद आई ही क्यों? यहाँ उसकी क्या जरूरत थी? अमीना की सोच से हामिद को कोई मतलब नहीं था। जहाँ अमीना निराश और दुखी थी वहीं दूसरी ओर हामिद खुश था। उसको अमीना की चिन्ता और व्याकुलता से मतलब नहीं था। उसका मन आशा से भरा था और उसमें प्रसन्नता और उल्लास की रोशनी छाई हुई थी। उसका मन ईद के आने पर खुशी से भर उठा था। कितनी ही बड़ी आफत क्यों न आए, हामिद के मन की प्रसन्नता और आशा उसको नष्ट करने की सामर्थ्य रखती थी।

विशेष-
(i) भाषा सरल प्रवाहपूर्ण एवं सुबोध है। उर्दू तथा लोकजीवन के (जैसे निगोड़ी) शब्दों के प्रयोग ने उसको प्रभावशाली बनाया है।
(ii) शैली विचारात्मक और मनोविश्लेषणात्मक है।
(iii) अमीना के मन की निराशा और व्याकुलता का प्रभावशाली चित्रण हुआ है। ईद का त्योहार और निर्धनता उसकी बेचैनी का कारण है।
(iv) दूसरी ओर हामिद है। वह अभी बच्चा है। ईद के अवसर पर उसका मन आशा और उल्लास से भरा है।।

(6) उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्वालनं सिर पर सवार हो गई तो क्या करती! हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे हामिदं की जेब में, पाँच अमीना के बटुवे में। यही तो बिसात है और ईद का त्योहार, अल्लाह ही बेड़ा पार लगाए। सभी को सेवैयाँ चाहिए और थोड़ा किसी की आँखों नहीं लगता। किस-किस से मुँह चुराएगी। और मुँह क्यों चुराए? साल-भर का त्योहार है। जिंदगी खैरियत से रहे, उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ है। बच्चे को खुदा सलामत रखें, ये दिन भी कट जाएँगे।

(पृष्ठ सं. 41)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ईदगाह’ नामक कहानी से ली गई हैं जो हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित हैं। इस कहानी के लेखक कथा-सम्राट् मुंशी प्रेमचंद हैं। हामिद की दादी अमीना एक गरीब महिला थी। आज ईद पर उसे इस बात की चिंता थी कि त्योहार का खर्च कहाँ से आएगा? उसके पास कुल दो आने (आठ पैसे) थे, जिनमें से तीन पैसे उसने ईद के मेले पर खर्च करने हेतु हामिद को दे दिए थे और पाँच पैसे से वह ईद पर बनने वाली सेवइयों का जुगाड़ कर रही थी। उसकी इसी गरीबी और विवशता का चित्रण प्रेमचंद ने इस अवतरण में किया है।

व्याख्या-अमीना का इकलौता पुत्र आबिद पिछले वर्ष हैजे की बीमारी के कारण चल बसा था। अतः अपने पोते हामिद का पालन-पोषण वह इधर-उधर सिलाई करके उससे मिले पैसों से करती थी। उस दिन फहीमन के कपड़े सिलने से आठ आने सिलाई के मिले थे जिन्हें वह ईद का त्योहार हेतु सहेजकर रखे हुए थी। किन्तु कल दूध देने वाली ग्वालन अपने पैसे के लिए तगादा करने लगी तो उसका हिसाब करना पड़ा। उस अठन्नी को अमीना बड़ी सावधानी से बचाकर रखे थी, किन्तु अब ग्वालन को देने के बाद उसके पास केवल दो आने शेष बचे थे जिनमें से तीन पैसे उसने हामिद को ईद के मेले हेतु दे दिए थे और शेष बचे पाँच पैसों से वह सेवइयों का जुगाड़ कर रही थी।

कैसे होगा सब, अब तो अल्लाह (ईश्वर) का ही भरोसा है, वही बेड़ा पार लगाएगा। त्योहार पर सभी कामवालियों को सेवइयाँ देनी पड़ेगी चाहे वह धोबिन हो या नाइन, जमादारिन हो या चूड़ीवाली (मनिहारिन)। थोड़ी सेवइयों से इनका काम न चलेगा, मुँह फुला लेंगी और फिर त्योहार रोज थोड़े ही आते हैं। ये बेचारी भी तो त्योहार पर आश लगाए रहती हैं। रोज थोड़े ही आता है त्योहार। इनकी तकदीर भी तो उसी के साथ बँधी है। मेरा पोता खैरियत से रहे, भगवान् उसे सही-सलामत रखे, गरीबी के ये दिन भी कट ही जाएँगे।

विशेष-
(i) ईद के त्योहार के आने पर निर्धन अमीना की चिन्ता का सजीव वर्णन हुआ है।
(ii) त्योहार भी निर्धन लोगों के लिए आनन्ददायक नहीं होते। उस समय भी पीड़ा और चिन्ता उनका पीछा नहीं छोड़ती।
(iii) प्रेमचन्द को गरीबों के पीड़ा भरे जीवन का गहन ज्ञान है। यह इस वर्णन से स्पष्ट होता है।
(iv) भाषा विषयानुकूल, प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार है।
(v) मनोविश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

(6) मोहसिन ने प्रतिवाद किया- यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं। तभी तुम बहुत जानते हो। अजी हजरत, यही चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हैं, सब इनसे मिले रहते हैं। रात को ये लोग चोरों से तो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर “जागते रहो! जागते रहो!” पुकारते हैं। जभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं। मेरे मायूँ एक थाने में कानिसटिबिल हैं। बीस रुपया महीना पाते हैं; लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मायूँ आप इतने रुपये कहाँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे-बेटा, अल्लाह देता है। फिर आप ही बोले-हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए!

(पृष्ठ सं. 43)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक की ‘ईदगाह’ नामक कहानी से ली गई हैं। यह कहानी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने लिखी है। शहर में बच्चों को पुलिस लाइन’ की इमारत दिखाई पड़ी। बच्चे वार्तालाप कर रहे थे कि यहाँ कांस्टेबिल (सिपाही) ड्रिल करते हैं और रात को पहरा देते हैं, जिससे चोरियाँ न हों। तब मोहसिन ने विरोध करते हुए कहा कि ये सिपाही ही तो चोरों से मिल-जुलकर चोरियाँ करवाते हैं और दूसरे मुहल्ले में जाकर ‘जागते रहो, जागते रहो’ पुकारते हैं। व्याख्या-मोहसिन ने इस बात का विरोध किया कि सिपाहीं रात को पहरा देकर चोरियाँ रोकते हैं। उसने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए और हामिद एवं अन्य बच्चों को मूर्ख साबित करते हुए कहा-अजी यही लोग तो चोरी करवाते हैं।

शहर के सारे चोर-डोकू पुलिस वालों से मिले रहते हैं और इनकी मिलीभगत से ही चोरियाँ होती हैं। रात को चोरों से तो कहते हैं चोरी करो और खुद दूसरे मोहल्लों में जाकर जागते रहो-जागते रहो कहकर पहरा देते हैं। चोरी में मिले माल में इनका हिस्सा भी होता है, तभी तो इन सिपाहियों के पास ढेर सारे रुपये आते रहते हैं। मोहसिन ने बताया कि उसके मायूँ एक थाने में सिपाही हैं। उनका वेतन तो बीस रुपये मासिक है परन्तु वह घर पर हर माह पचास रुपये भेजते हैं। साथी बच्चों को अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए मोहसिन ने अल्लाह की कसम खाकर कहा कि उसने अपने मायूँ से पूछा था कि उनको इतने रुपये कहाँ से मिलते हैं। उन्होंने हँसकर बताया था कि सब अल्लाह देता है। फिर खुद ही आगे बताया कि वह तो एक दिन में लाखों कमा लें परन्तु वह इतना ही रुपया रिश्वत में लेते हैं कि उनकी बदनामी न हो और नौकरी पर संकट न आये।

विशेष-
(i) प्रेमचंद ने पुलिसवालों की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। समाज के लोग इनके बारे में क्या सोचते हैं; यह बच्चों की बातों से पता चलता है।
(ii) मोहसिन की जानकारी उसके व्यक्तिगत अनुभव से जुड़ी है। उसके मायूँ सिपाही हैं। वेतन बीस रुपया है, पर हर महीने पचास रुपये घर भेजा करते हैं।
(iii) इस प्रकार यथार्थ का चित्रण करते हुए भी प्रेमचंद ने उसमें आदर्श का समावेश कर दिया है। इसे आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद कहते हैं।
(iv) भाषा में उर्दू शब्दों की बहुलता है। शैली विवरणात्मक है।

(7) क्रितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं, और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहा। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।

(पृष्ठ सं. 44)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द हैं। ग्रामीण जन ईदगाह पहुँचते हैं। वहाँ ईद की नमाज अदा करने की व्यवस्था की गई है। नमाजी कतारों में खड़े हैं। जो बाद में आता है वह पीछे खड़ा हो जाता है। यहाँ धन और पद का महत्व नहीं है। इस्लाम की नजर में सभी बराबर हैं। यहाँ होने वाली सामूहिक नमाज सभी को भाईचारे के एक सूत्र में बाँधती है।

व्याख्या-ईदगाह में पढ़ी जाने वाली सामूहिक नमाज की संचालन व्यवस्था बहुत सुन्दर और अनुशासित है। लाखों सिर एक साथ खुदा की इबादत में झुक जाते हैं और फिर सब लोग एक साथ खड़े हो जाते हैं। एक साथ झुकते हैं और फिर सभी लोग घुटनों के बल बैठ जाते हैं। बार-बार यही क्रिया दुहराई जाती है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे बिजली के लाखों बल्ब एक साथ जल-बुझ रहे हों और यह क्रम निरन्तर जारी हो। इस अपूर्व दृश्य को और इन सामूहिक क्रियाओं को इतने बड़े स्तर पर देखकर देखने वाले के हृदय में श्रद्धा, गर्व और आनन्द के भाव भर जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे लाखों लोग पारस्परिक भाईचारे के भाव से एक सूत्र में बँधे हों। जहाँ छोटे-बड़े और अमीर-गरीब का कोई भेद न हो।

विशेष-
(i) ईद की नमाज का दृश्य यहाँ लेखक ने साकार कर दिया है।
(ii) इस्लाम में पारस्परिक भ्रातृत्व की भावना का मूल कारण यही सामूहिक इबादत है।
(iii) भाषा में उर्दू के शब्दों की बहुलता है।
(iv) प्रस्तुतीकरण की शैली वर्णनात्मक है।

(8) कितने सुन्दर खिलौने हैं। अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए; मालूम होता है अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए हैं। कितना प्रसन्न है। शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उँडेला ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे हैं।

(पृष्ठ सं. 44)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। सामूहिक नमाज के पश्चात बच्चों ने मेले का आनन्द लिया। वे चर्खियों पर झूलने पहुँचे। वहाँ से वे खिलौनों की दुकान पर पहुँचे। दुकान में मिट्टी के तरह-तरह के खिलौने सजे हुए थे। दुकान में खिलौनों की कतारें लगी थीं। उनमें सिपाही, गुजरिया, राजा, वकील, भिश्ती, धोबिन आदि तरह-तरह के खिलौने थे।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि दुकान में रखे खिलौने अत्यन्त सुन्दर थे। वे जीवित-से लग रहे थे। जैसे अभी बोलना ही चाहते हों। महमूद ने सिपाही खरीदा। वह खाकी रंग की वर्दी पहने था तथा उसके सिर पर लाल पगड़ी थी। उसके कंधे पर बन्दूक रखी थी। ऐसा लग रहा था कि वह अभी-अभी कवायद करके आया हो। मोहसिन को भिश्ती अच्छा लगा। उसने वही खरीदा। उसकी झुकी कमर पर मशक लदी थी। उसने एक हाथ से मशक के मुँह को पकड़ रखा था। वह अत्यन्त खुश लग रहा था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई गीत गा रहा हो। लग रहा था कि वह अपनी मशक से पानी जमीन पर गिराना चाहता है। एक खिलौना वकील था। नूरे का वकील से प्यार था। उसके चेहरे पर विद्वता झलक रही थी। उसने काले चोगे के नीचे सफेद रंग की अचकन पहन रखी थी। अचकन की जेब में घड़ी थी, जो सुनहरी जंजीर से बँधी थी। उसके एक हाथ में कानून की मोटी किताब थी। खिलौना जीता-जागता वकील ही लग रहा था। उसे देखकर ऐसा लगता था। जैसे कोई वकील न्यायालय में किसी मुकदमे में बहस करके आ रहा हो।

विशेष-
(i) ईदगाह के मैदान में सजी हुई खिलौनों की दुकान का सजीव चित्रण हुआ है।
(ii) बाल-मनोविज्ञान के अनुसार बताया गया है कि बच्चों का खिलौनों की ओर स्वाभाविक आकर्षण होता है।
(iii) वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

(9) हामिद खिलौनों की निंदा करता है- मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास से लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है।

(पृष्ठसं. 45)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ से लिया गया है। लड़के खिलौनों की दुकान पर धावा बोलते हैं। महमूद, मोहसिन, नूरे आदि सभी कोई न कोई खिलौना खरीदते हैं। खिलौने अत्यन्त आकर्षक तथा सुंदर हैं। हामिद के पास तीन ही पैसे हैं। वह खिलौने देखकर ललचाता है परन्तु खरीदता नहीं।

व्याख्या-हामिद साथी बालकों ने खिलौनों की दुकान से मिट्टी के बने आकर्षक खिलौने खरीदे पर हामिद उन्हें कैसे खरीद सकता था, उसके पास कुल मिलाकर तीन ही पैसे तो थे। अतः वह उन खिलौनों की निंदा करके अपने मन को समझा रहा था कि ये मिट्टी के बने खिलौने हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँगे किन्तु वह ललचाई नज़रों से खिलौनों की ओर देखता और चाहता है कि थोड़ी देर के लिए वे खिलौने उसके हाथ में आ जाएँ और वह उन्हें छूकर और देखकर तृप्त हो जाए। काश ये खिलौने उसके हाथ में आ जाते, पर बच्चे इतनी त्यागवृत्ति वाले नहीं होते कि अपना खिलौना दूसरों को छूने भी दें। अभी तो उनको ही शौक पूरा नहीं हुआ, खिलौना लाए देर ही कितनी हुई थी। फिर भला अपना खिलौना हामिद को कैसे दे देंगे, बेचारा हामिद ललचाई नजरों से उन खिलौनों को देखता था और मन को समझाने के लिए खिलौनों की निंदा कर रहा था।

विशेष-
(i) प्रेमचंद ने बाल मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण इस अवतरण में किया है। जब हामिद को खिलौने नहीं मिलते तो मन समझाने के लिए वह खिलौनों की निंदा करने लगता है।
(ii) खिलौनों के प्रति बच्चों के मन में स्वाभाविक आकर्षण होता ही है।
(iii) भाषा में उर्दू के शब्दों के साथ-साथ संस्कृत के शब्द (यथा-अनायास) भी प्रयुक्त हुए हैं।
(iv) वर्णनात्मक शैली प्रयुक्त है।

(10) उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है; अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई आँख उठाकर नहीं देखता। या तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे, या छोटे बच्चे जो मेले में नहीं आए हैं; जिद्द करके ले लेंगे और तोड़ डालेंगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो।

(पृष्ठसं. 45-46)
संदर्भ एवं प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसकी रचना प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द ने की है।हामिद को उसकी दादी ने तीन पैसे मेले के लिए दिए हैं। वह इनसे चिमटा खरीदता है क्योंकि उसे स्मरण है कि दादी के पास चिमटी नहीं है और तवे से रोटियाँ उतारते समय उसके हाथ जल जाते हैं। प्रेमचंद जी ने हामिद की इसी मनोदशा का वर्णन इन पंक्तियों में किया है।

व्याख्या-हामिद साथ आये बच्चे खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर कुछ आगे बढ़ गए हैं जबकि हामिद लोहे के सामान वाली एक दुकान पर रुक जाता है जहाँ कई चिमटे रखे हुए हैं। उसे ध्यान आता है कि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं है। जब वे तवे से रोटियाँ उतारती हैं तो हाथ जल जाता है। क्यों न वह दादी के लिए एक चिमटा खरीद ले। दादी चिमटा पाकर कितनी खुश हो जाएँगी, फिर कभी उनकी उँगलियाँ न जलेंगी और वे उसे ढेरों दुआएँ देंगी। घर में एक काम की चीज भी हो जाएगी। इन खिलौनों से भला क्या फायदा, बस थोड़ी देर की खुशी है, टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे और पैसे व्यर्थ में बरबाद हो जाएँगे। चिमटा काम की चीज है।।

चिमटे की सहायता से तवे से रोटी उतारी जा सकती है, रोटी को चिमटे से पकड़कर चूल्हे की आग में सेंका जा सकता है। गाँव का कोई पड़ोसी अगर आग माँगने आये तो झटपट चिमटे से चूल्हे से आग निकाल कर उसे दी जा सकती है। यह सब सोचकर हामिद ने चिमटा ही खरीदने का निश्चय किया।

विशेष-
(i) चिमटा खरीदना इस बात का सबूत है कि हामिद अपनी दादी से बहुत स्नेह करता है। उसे मेले में भी दादी का ध्यान रहा। अन्य बच्चे खिलौने एवं मिठाइयों पर पैसा खर्च करते हैं जबकि हामिद अपने मन पर काबू करके मेले के लिए मिले पैसों से दादी के लिए चिमटा खरीदता है।
(ii) हामिद के तर्क उसके विवेक एवं बुद्धि को व्यक्त करते हैं।
(iii) बाल मनोविज्ञान का चित्रण हुआ है।
(iv) भाषा उर्दू मिश्रित सरल, सुबोध खड़ी बोली है। शैली मनोविश्लेषणात्मक है।

(11) हामिद – खिलौना क्यों नहीं है? अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा हूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, वे मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर हैचिमटा।

(पृष्ठ सं. 47)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित। ‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसकी रचना प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द ने की है। हामिद ने दादी अमीना के कष्ट का विचार करके तीन पैसे में चिमटा खरीद लिया। उसको बंदूक की तरह अपने कंधे पर रखकर वह दूसरे लड़कों के पास आया। मोहसिन ने हँसकर पूछा कि वह चिमटे का क्या करेगा। उसने चिमटा क्यों खरीदा? हामिद अपने चिमटे से संबंधित तर्क प्रस्तुत कर रहा है।

व्याख्या-महमूद के कथन को तर्कपूर्वक काटते हुए हामिद ने कहा कि चिमटा खिलौना क्यों नहीं है। इसको कंधे पर रखते ही यह बन्दूक बन जाता है। हाथ में लेने पर फकीरों का चिमटा बन जाता है। इच्छा हो तो इसको मंजीरे की तरह बनाया जा सकता है। उसका चिमटा मजबूत है। चिमटे की एक ही चोट से उनके सारे खिलौने टूट-फूट जायेंगे। सभी खिलौने पूरी ताकत लगाकर भी उसके चिमटे का मुकाबला नहीं कर सकते। वे उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। उसका चिमटा बहादुर है, वह शेर है।

विशेष-
(i) भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहपूर्ण है। उर्दू शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग, उसके प्रभाव में वृद्धि करने वाला है।
(ii) शैली तर्क प्रधान तथा प्रतीकात्मक है।
(iii) हामिद सभी लड़कों को अपने तर्को से निरुत्तर कर देता है। वह बुद्धिमान तथा समझदार है।
(iv) संवाद प्रभावशाली हैं।

(12) उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए, तो मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाएँ, मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागें, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुँह छिपाकर जमीन पर लेट जाएँ। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रुस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखें निकाल लेगा।

(पृष्ठ सं. 47)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ से उधृत है। ईदगाह के मैदान पर मेला लगा था। बच्चों ने वहाँ खिलौने खरीदे परन्तु हामिद ने अपने पूरे तीन पैसों से एक चिमटा खरीदा। उसने अपने प्रबल तर्को द्वारा चिमटे को खिलौनों से श्रेष्ठ तथा उपयोगी सिद्ध कर दिया।

व्याख्या-हामिद पक्ष में न्याय और नीति की शक्ति थी। चिमटे की श्रेष्ठता प्रतिपादित करने के लिए वह जो तर्क दे रहा था वे न्याय और सत्य पर आधारित थे। अतः बालक उसके चिमटे को अपने खिलौनों से श्रेष्ठ स्वीकार करने को अन्ततः तैयार हो ही गए। और क्यों न होते, खिलौने तो मिट्टी के बने हैं जबकि हामिद का चिमटा मजबूत लोहे से बना है, जो इस समय फौलाद का सिद्ध हो रहा था। निश्चय ही वह चिमटा बच्चों के खिलौनों से श्रेष्ठ, अजेय और घातक भी था। हामिद ने तर्क दिया कि अगर कोई शेर आ जाए तो भिश्ती परास्त हो जायेगा, सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भाग जाएगा और वकील साहब को नानी याद आने लगेगी, बेचारे अपने चोगे में मुँह छिपाते फिरेंगे किन्तु हामिद का चिमटा बहादुर पहलवान की तरह शेर की गर्दन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखें निकाल लेगा। निश्चय ही उसका चिमटा उसके साथियों के सभी खिलौनों से बेहतर था। क्योंकि ये खिलौने अन्ततः मिट्टी के बने थे। जो अंत में टूट-फूट जाएँगे जबकि चिमटा लोहे का बना था जो कभी नष्ट नहीं होगा। चिमटे की इस महिमा ने सभी खिलौनों को और उनके मालिकों (बच्चों) को परास्त कर दिया।

विशेष-
(i) बाल मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण इस अवतरण में प्रेमचंद ने किया है।
(ii) हामिद के तर्क इतने सटीक एवं जोरदार थे कि बच्चे परास्त होकर उसके चिमटे की श्रेष्ठता को मानने के लिए विवश हो गए।
(iii) भाषा मुहावरेदार है यथा-छक्के छूटना, नानी याद आना, गर्दन पर सवार होना आदि।
(iv) प्रेमचंद ने इस अवतरण में विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है।

(13) बात कुछ बनी नहीं। खासी गाली-गलौज थी; कानून को पेट में डालने वाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए, मानो कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकालने वाली चीज है। उसको पेट के अंदर डाल दिया जाना, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रुस्तमे-हिंद है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।

(पृष्ठ सं. 48)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ईदगाह’ नामक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द हैं। हामिद और अन्य लड़कों में बहस हो रही थी। हामिद अपने चिमटे की तारीफ कर रहा था तो अन्य लड़के अपने-अपने खिलौनों की। महमूद ने कहा कि वकील साहब तो मेजकुर्सी पर बैठेंगे परन्तु चिमटा बावर्ची खाने में ही पड़ा रहेगी। यह तर्क दमदार था। हामिद को इसकी कोई काट नहीं सूझी तो उसने कुतर्क से काम लेना शुरू कर दिया। उसने कहा कि चिमटा वकील साहब को कुर्सी से उठाकर जमीन पर गिरा देगा और उनके कानून को उनके पेट में डाल देगा।

व्याख्या-लेखक कहता है कि कहने को तो हामिद ने कह दिया परन्तु उसकी बात प्रभावशाली नहीं थी। उसका तर्क एक प्रकार की गाली जैसा ही था परन्तु कानून को पेट में डालने की बात का प्रभाव हुआ। वह अकाट्य बात थी। बहस में लगे मोहसिन, महमूद और नूरे कोई उत्तर नहीं दे पा रहे थे। वे तर्क से विमुख और चुप थे। जिस प्रकार कोई धेलचा कनकौआ अर्थात् दो पैसे की कम कीमत वाली पतंग किसी गंडेवाल कनकौए अर्थात् चार आने या चौथाई रुपये वाली कीमती पतंग को काट दे उसी प्रकार हामिद के स्तरहीन तर्क ने अन्य लड़कों के सभी प्रभावशाली तर्कों को प्रभावहीन कर दिया था। कानून की बात मुँह से कही जाती है। उसको पेट के अन्दर डालना केवल कुतर्क है परन्तु उसमें नवीनता है। हामिद के इस तर्क ने सबको परास्त कर दिया। सब ने मान लिया कि हामिद का चिमटा भारत के इनामी, प्रसिद्ध पहलवान के समान था। अब उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी।

विशेष-
(i) प्रेमचन्द ने बालकों के मनोभावों का सुन्दर चित्रण किया है।
(ii) बच्चे जब बहस करते हैं तो अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए कुतर्क का भी सहारा लेते हैं।
(iii) कानून को पेट में डालने के कुतर्क ने सभी विरोधी बच्चों को निरुत्तर कर दिया।
(iv) भाषा सरल और प्रभावशाली है। उसमें उर्दू के, लोकभाषा के तथा तत्सम शब्द हैं। शैली विवरणात्मक है।

(14) बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा। इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी उसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।

(पृष्ठ सं. 50)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से ली गई हैं। मेले से हामिद घर लौटा। अमीना ने उसे गोद में उठा लिया। जब चिमटा उसके हाथ में देखा तो पूछा कि यह कहाँ से लिया? हामिद ने बताया कि उसने तीन पैसे में मोल लिया है। बुढ़िया पहले तो नाराज हुई किन्तु जब हामिद ने अपराधी भाव से कहा कि तुम्हारी अँगुलियाँ तवे से जल जाती थीं इसलिए मैंने चिमटा लिया तो बुढ़िया का क्रोध स्नेह में बदल गया।

व्याख्या-बुढ़िया अमीना पहले तो इस बात पर नाराज हुई कि पैसे उसने हामिद को मिठाई, खिलौनों के लिए दिए थे, वह चिमटा क्यों लाया? हामिद ने यह कहा कि तवे से उसकी दादी की उँगलियाँ जल जाती थीं इसलिए उसने चिमटा खरीदा। यह जानकर बुढ़िया का क्रोध स्नेह, वात्सल्य और ममता में बदल गया। इस स्नेह को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था, केवल हृदय में अनुभव किया जा सकता था। उसका हृदय प्रेम के रस एवं स्वाद से भरा हुआ था कि उसका पोता उससे कितना स्नेह करता था। मेले में भी उसे दादी का ध्यान रहा। हामिद में कितना त्याग, कितना सद्भाव एवं कितना विवेक है। दूसरे बच्चे जब मिठाई और खिलौने खरीद रहे होंगे, तब उसका मन कितना ललचाया होगा? पर उसने अपने मन पर काबू कर लिया और मिठाई या खिलौने न खरीदकर पूरे तीन पैसों से यह चिमटा खरीदा। निश्चय ही वह अपनी दादी से स्नेह करता था। यह भावना बुढ़िया अमीना के हृदय को गदगद कर रही थी और उसकी आँखों से खुशी के आँसू निकल रहे थे।

विशेष-
(i) हामिद ने दादी को बता दिया कि उसकी उँगलियाँ तवे से जलती थीं, इसलिए चिमटा लिया। अपने प्रति हामिद का स्नेह देखकर बुढ़िया अमीना गदगद हो गई।
(ii) जब हृदय भावों से भरा होता है तो वाणी मूक हो जाती है।
(iii) भाषा में सरलता, सहजता है।
(iv) वर्णन में मनोवैचारिकता का समावेश है।

(15) और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र! बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थीं। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।

(पृष्ठ सं. 51)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ईदगाह’ शीर्षक कहानी का अन्तिम अनुच्छेद है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचंद हैं। दादी अमीना को रोटी बनाते समय तवे से जलने से बचाने के लिए उसके पौत्र हामिद ने अपने पूरे तीन पैसे में एक चिमटा खरीदा। वह दोपहर तक भूखा-प्यासा रहा और कोई खिलौना भी नहीं खरीदा। हामिद के इस गहरे प्रेम से अमीना अभिभूत हो उठी।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि हामिद के अपने प्रति गहरे प्रेम को देखकर दादी अमीना बच्चों की तरह रोने लगी। वह वृद्धा थी और समझदार भी परन्तु बच्चों की तरह रोना एक विचित्र बात थी। हामिद बच्चा था। उसको घर-गृहस्थी का ज्ञान नहीं था। उसका चिमटा खरीदना एक अनोखी बात थी। उसका खिलौनों और मिठाई से मुँह फेरकर चिमटा खरीदना किसी बूढ़े आदमी के आचरण जैसा था। दूसरी ओर वृद्धा अमीना का व्यवहार किसी बच्ची के समान होने के कारण विचित्र था।

बालक हामिद ने वृद्ध व्यक्ति का उत्तरदायित्वपूर्ण आचरण किया था तो वृद्धा अमीना ने बच्चों जैसा भावुकतापूर्ण व्यवहार किया था। ये दोनों ही व्यवहार अनोखे तथा असामान्य थे। अमीना रो रही थी और आँचल फैलाकर हामिद को आशीर्वाद दे रही थी। उसकी आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें टपक रही थीं। दादी अमीना के इस व्यवहार के पीछे छिपे भाव को. समझना हामिद के बस की बात नहीं थी।

विशेष-
(i) भाषा सरल तथा प्रभावपूर्ण है। इसमें तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं।
(ii) शैली मनोविश्लेषणात्मक और चित्रात्मक है।
(iii) लेखक ने हामिद तथा अमीना के व्यवहार को उनकी आयु के व्यवहार के प्रतिकूल माना है। अत: वह विचित्र कहा गया है।
(iv) हामिद तथा अमीना दोनों का व्यवहार भावुकता से प्रभावित है।

All Chapter RBSE Solutions For Class 10 Hindi

All Subject RBSE Solutions For Class 10 Hindi Medium

Remark:

हम उम्मीद रखते है कि यह RBSE Class 10 Hindi Solutions आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है |

यदि इन solutions से आपको हेल्प मिली हो तो आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है और HindiLearning.in को सोशल मीडिया में शेयर कर सकते है, जिससे हमारा मोटिवेशन बढ़ेगा और हम आप लोगो के लिए ऐसे ही और मैटेरियल अपलोड कर पाएंगे |

आपके भविष्य के लिए शुभकामनाएं!!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *