प्रतिरोधक, सुचालक तथा अवरोधक | प्रतिरोधकता का कारण , कुचालक तथा अवरोधक 

प्रतिरोधकता किसे कहते हैं

एक समान मोटाई वाले किसी भी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई (l) के समानुपाती होता है तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

तथा R∝1/A ——(2)

समीकरण (1) तथा (2) से

जहाँ ρ एक स्थिरांक है जिसे चालक के पदार्थ की विधुत प्रतिरोधकता कहते हैं।

समीकरण (iii) से स्पष्ट है कि

किसी भी चालक की लम्बाई बढ़ने से उसकी प्रतिरोधकता बढ़ती है तथा चालक की लम्बाई घटने से पदार्थ की प्रतिरोधकता घटती है।

तथा उस पदार्थ के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल बढ़ने से प्रतिरोधकता घटती है तथा चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल से घटने पर उसकी प्रतिरोधकता बढ़ती है।

प्रतिरोधकता का SI मात्रक 

प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम मीटर (Ohm m)होता है।

प्रतिरोध या प्रतिरोधकता का कारण 

विधुत धारा किसी चालक में आसानी से प्रवाहित नहीं होती है बल्कि उसे रूकावट का सामना करना पड़ता है। सभी पदार्थ सूक्ष्म कणों से बने हैं जिन्हे परमाणु कहते हैं। परमाणु में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं। विधुत धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉन का प्रवाह है। जब विधुत धारा अर्थात इलेक्ट्रॉन जब किसी चालक से प्रवाहित होता है तो उसे पदार्थ के अवयवी तत्वों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। अवयवी तत्वों का यह प्रतिरोध विधुत धारा के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करता है।

चालक किसे कहते हैं :

विधुत धारा सभी पदार्थ में प्रवाहित नहीं होती है। वैसे पदार्थ जिसमे विधुत धारा प्रवाहित होती है सुचालक कहलाते है । या

ऐसे पदार्थ जिनका प्रतिरोध कम होता है अर्थात् विधुत धारा आसानी से प्रवाहित हो सके चालक या सुचालक कहलाते हैं।

उदाहरण: सोना, चाँदी, कॉपर, लोहा, एल्युमिनियम आदि विधुत धारा के सुचालक होते हैं।

चाँदी विधुत धारा का सबसे अच्छा सुचालक होता है। क़ॉपर तथा एल्युमिनियम भी विधुत धारा के अच्छे सुचालक होते है अर्थात् विधुत धारा के प्रवाह में बहुत ही कम प्रतिरोध उत्पन्न करते है अत: कॉपर तथा एल्युमिनियम भी विधुत धारा के अच्छे सुचालक हैं। यही कारण है कि विधुत के तार कॉपर या एल्युमिनियम के बने होते हैं। चूँकि चाँदी एक मँहगी धातु है अत: चाँदी का उपयोग विधुत के तार बनाने में नहीं किया जाता है|

कुचालक तथा अवरोधक 

विधुत धारा सभी पदार्थ में प्रवाहित नहीं होती है। वैसे पदार्थ जिसमे विधुत धारा प्रवाहित नहीं होती है कुचालक या अवरोधक कहलाते है। या

ऐसे पदार्थ जिनका प्रतिरोध ज्यादा होता है अर्थात् विधुत धारा आसानी से प्रवाहित नहीं हो सकती है अवरोधक या कुचालक कहलाते हैं।

उदाहरण रबर, प्लास्टिक, लकड़ी इत्यादि। ये पदार्थ विद्युत धारा के प्रवाह में ज्यादा अवरोध उत्पन्न करते हैं, अत: ये पदार्थ कुचालक कहलाते हैं।

वैसे पदार्थ जो विद्युत धारा के प्रवाह में बहुत ज्यादा अवरोध उत्पन्न करते हैं अर्थात् जिनका प्रतिरोध ज्यादा होता है अवरोधक कहलाते हैं।

कोई भी पदार्थ पूर्ण अवरोधक नहीं होता है परंतु अवरोधक विधुत धारा के प्रवाह में इतना अधिक अवरोध उत्पन्न करते हैं कि उनसे प्रवाहित होने वाली विधुत धारा की मात्रा नगण्य होती है।

ऐसे पदार्थों का उपयोग विधुत तारों के उपर कवर चढ़ाने में अर्थात् इसका इंसुलेशन करने, विद्युत स्विच आदि के उपरी कवर बनाने आदि में होता है। इसे उपयोग में लेने वाले व्यक्ति को विधुत के झटके जो कि कई बार जानलेवा भी होते हैं से सुरक्षित रखा जाता है। उदारहण : ग्लास, कागज, टेफलॉन, आदि

प्रतिरोधक, सुचालक तथा अवरोधक (Resistivity and Conductor and Insulators in hindi)

अलग अलग पदार्थ की प्रतिरोधता भी अलग अलग होती है ऐसे पदार्थ जिनकी प्रतिरोधता कम होती है सुचालक कहलाते है तथा जिनकी प्रतिरोधता ज्यादा होती है कुचालक कहलाते है।

वैसे पदार्थ जिनकी प्रतिरोधकता 10−8Ω m to 10−6Ω m के बीच होती है विधुत धारा के सुचालक कहलाते हैं। धातुओं की प्रतिरोधकता 10−8Ω m to 10−6Ω m के बीच होती है अत: धातु विधुत धारा के सुचालक होते हैं।

वैसे पदार्थ जिनकी प्रतिरोधकता 1010 Ωm to 1017 Ωm के बीच होती है अवरोधक (Insulator) कहलाते हैं। रबर तथा ग्लास विद्युत धारा का बहुत अच्छा अवरोधक है इनकी प्रतिरोधकता 1012 Ωm to 1017 Ωm के बीच होती है।

मिश्रातु की प्रतिरोधकता 

मिश्रातु की प्रतिरोधकता शुद्ध धातु से ज्यादा होती है और अधातु से कम होती है। मिश्रातु उच्च ताप पर जलते नहीं हैं। यही कारण है कि उष्मा देने वाले विधुत उपकरणों यथा हीटर, आयरन, गीजर, आदि में मिश्रातु का ही उपयोग किया जाता है।

उदाहरण: बल्ब के तंतु टंगस्टन के बने होते हैं, क्योंकि टंगस्टन की प्रतिरोधकता काफी अधिक है। जबकि कॉपर तथा एल्युमिनियम की प्रतिरोधकता कम होने के कारण इनका उपयोग बिजली के तारों में किया जाता है।

विद्युत अवयवों का विद्युत परिपथ में संयोजन 

किसी भी विधुत परिपथ में विधुत अवयवों को निम्नांकित दो तरीकों से संयोजित या जोड़ा जा सकता है।

1.श्रेणीक्रम में संयोजन तथा

2.पार्श्वक्रम में संयोजन

विधुत अवयवों का श्रेणीक्रम (series circuit) में संयोजन 

विद्युत अवयव यथा बल्ब, प्रतिरोधक आदि का एक सिरा दुसरे अवयव के एक सिरे से जोड़कर जोड़कर विद्युत परिपथ में लगाया जाता है तो इस संयोजन को श्रेणीक्रम में संयोजन कहते हैं।

जब विधुत के उपकरणों को विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है, अर्थात उपकरणों के एक सिरे को दूसरे सिरे से मिलाकर जोड़ा जाता है तो श्रेणीक्रम में संयोजित सभी अवयवों से समान विधुत धारा प्रवाहित होती है।

अर्थात श्रेणीक्रम में संयोजित सभी अवयवों से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा की मात्रा समान होती है। विधुत परिपथ में लगे हर एक उपकरण पर वोल्टेज की मात्रा अलग अलग होती है।

हम आशा करते है कि यह नोट्स आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है |
आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है |

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *