बहुलकीकरण की परिभाषा क्या है | प्रकार | योगात्मक | संघनन बहुलकीकरण

बहुलकीकरण (polymerization in hindi) : एकलक इकाइयों से बहुलक बनने की प्रक्रिया को बहुलकीकरण कहते है।

सामान्यत बहुलकीकरण क्रिया दो प्रकार से होती है –

1. योगात्मक बहुलकीकरण

2. संघनन बहुलकीकरण

1. योगात्मक बहुलकीकरण

जब एकलक अणु / इकाइयाँ परस्पर योगात्मक अभिक्रिया द्वारा बहुलक का निर्माण करती है तो इस प्रक्रिया को योगात्मक बहुलकीकरण कहते है।

योगात्मक बहुलकीकरण में एकलक इकाइयाँ असंतृप्त अणु जैसे एल्किन , एल्काइन या इसके व्युत्पन्न होते है।

यह प्रक्रिया सामान्यत: श्रृंखला क्रियाविधि द्वारा सम्पन्न होती है अत: इसे श्रृंखला वृद्धि बहुलकीकरण भी कहते है।

योगात्मक बहुलकीकरण की क्रियाविधि दो प्रकार से सम्पन्न होती है।

(a) मुक्त मूलक योगात्मक बहुलकीकरण : O2 , पेरोक्साइड या परऑक्सी अम्ल की उपस्थिति में एल्किन , एल्काइन या इनके व्युत्पन्न मुक्त मूलक योगात्मक बहुलकीकरण द्वारा बहुलक बनाते है , यह क्रियाविधि तीन पदों में सम्पन्न होती है।

step 1 :  श्रृंखला प्रारम्भ पद : इस पद में प्रारम्भिक पदार्थ जैसे पेरोक्साइड , हाइड्रोपेरोक्साइड , एजोयोगिक परऑक्सी अम्ल आदि से पहले अपघटित होकर मुक्त मूलक बनाते है जो एकलक अणु से योग करके एक बड़ा मुक्त मूलक बना लेता है अत: इसलिए इस पद को प्रारम्भ पद कहते है।

step 2 : श्रृंखला संचरण पद : प्रारम्भिक संचरण पद : प्रारंभिक पद में बना एकलक मुक्त मूलक दूसरे एकलक अणु से योग करके दूसरा बड़ा मुक्त मूलक बनाता है जो फिर एकलक अणु से क्रिया कर अन्य मुक्त मूलक बना लेता है।

इस प्रकार विभिन्न एकलक इकाइयाँ जुडती जाती है तथा श्रृंखला वृद्धि के साथ बहुलक निर्माण हो जाता है।

step 3 : श्रृंखला समापन पद : श्रृखला का समापन मुक्त मुलको के युग्मन अथवा असमानुपातन द्वारा होता है।

असमानुपातन – दो मुक्त मूलक H के स्थानान्तरण द्वारा उदासीन अणु बनाते है तो इसे असमानुपातन कहते है।

(b) आयनिक योगात्मक बहुलकीकरण : वाइनिल एकलको की बहुलकीकरण क्रियाएं आयनिक पदार्थों की उपस्थिति में सम्पन्न होती है , इन्हें आयनिक क्रियाविधि कहा जाता है।

ये क्रियाविधि दो प्रकार से होती है –

(i) धनायनी बहुलकीकरण : ये अभिक्रिया लुईस अम्ल द्वारा प्रारम्भ होती है , यह तीन पदों में सम्पन्न होती है।

step 1 : श्रृंखला प्रारम्भ पद : इस पद में लुइस अम्ल electron स्नेही के समान व्यवहार करता है एवं वाइनिल एकलक इकाई पर आक्रमण करके मध्यवर्ती कार्बधनायन बनाता है जिसे अभिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

step 3 : श्रृंखला समापन पद : इस पद में नाभिक स्नेही की उपस्थिति में एकलक श्रृंखलायें प्रोटोन त्यागकर बहुलक अणु का निर्माण करती है जिससे अभिक्रिया रुक जाती है।

(ii) ऋणायनी बहुलकीकरण : ये अभिक्रिया लुईस क्षार की उपस्थिति में सम्पन्न होती है , इनमे नाभिक स्नेही के आक्रमण से कार्बऋणायन का निर्माण होता है।

2. संघनन बहुलकीकरण

जब एकलक इकाई संघनन अभिक्रिया द्वारा बहुलक का निर्माण करती है तो इस प्रक्रिया को संघनन बहुलकीकरण कहते है।

इस प्रक्रिया में एकलक इकाइयों के जुड़ने पर छोटे अणु जैसे H2O , NH3 , HX आदि का विलोपन होता है।

इनमे प्रयुक्त एकलक इकाइयों में दो क्रियात्मक समूह होते है।

उदाहरण : नाइलोन-66

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