फ़िनॉल का अभिक्रिया , नाइट्रीकरण , ब्रोमोनीकरण

फ़िनॉल का अभिक्रिया , नाइट्रीकरण , ब्रोमोनीकरण

फ़िनॉल का अभिक्रिया :

  1. इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
    फीनॉल +R प्रभाव के कारण O व P पर इलेक्ट्रॉन का घनत्व अधिक हो जाता है जिससे इलेक्ट्रॉन स्नेही (E+) O व P पर प्रहार करता है अतः ये अभिक्रिया O व P पर होती है।
    ये क्रियाएँ निम्न है।

नाइट्रीकरण :
जब फिनॉल की क्रिया तनु HNO3 के साथ की जाती है। O व P नाइट्रोफिनॉल बनती है।
नोट : जब फिनॉल की क्रिया सांद्र HNO3 के साथ सांद्र H2SO4 की उपस्थिति में की जाती है तो पिक्रिक अम्ल बनता है।


प्रश्न 1 : O-nitro फिनॉल का क्वथनांक कम है जबकि p -नाइट्रो फिनॉल का क्वथनांक अधिक होता है क्यों ?
उत्तर : O नाइट्रो फिनोल में अन्तः अणुक हाइड्रोजन बंध होता है। अणुओ के मध्य संगुणन नहीं होता अतः क्वथनांक कम वाष्पशीलता अधिक होती है।
p nitro फिनॉल का क्वथनांक कम होने के कारण इसे भापिन आसव द्वारा अलग किया जा सकता है।

ब्रोमोनीकरण :
जब फिनॉल की क्रिया ब्रोमीन के साथ CHCl3 या CS2 की उपस्थिति में की जाती है इसे O व P ब्रोमो फिनॉल बनती है।
जब फिनॉल की क्रिया ब्रोमीन जल से की जाती है 2,4,6 ट्राई ब्रोमो फिनॉल का सफ़ेद अवक्षेप बनता है (फिनॉल की पहचान )

राइमरटीमान अभिक्रिया :
जब फिनॉल की क्रिया CHCl3 व NaOH के साथ की जाती है तो सेलैसिल एल्डिहाइड बनता है।

कोल्बे अभिक्रिया :
जब सोडियम फिनेट की क्रिया CO2 के साथ उच्च दाब व ताप पर की जाती है तो सोडियम फेनिल कार्बोनेट बनता है जिससे पुनर्विन्यास से सोडियम से लैसिलेट बनता है इसे तनु HCl से क्रिया करने पर सैलैलीक अम्ल बनता है।

फिनॉल की क्रिया यशदरज (ज़िंक चूर्ण) के साथ करने पर बेंजीन बनती है।

ऑक्सीकरण :
फिनॉल का ऑक्सीकर क्रोमिक अम्ल (H2CrO4) अथवा वायु व प्रकाश की उपस्थिति में करने पर p बेंजोफिनोन बनता है।
औद्योगिक महत्व के एल्कोहल :

मैथिल एल्कोहल इसे काष्ट एल्कोहल या काष्ट स्प्रिट कहते है।
इसे लकड़ी के भंजक आसवन से बनाया जाता है।
मैथिल एल्कोहल की कम मात्रा के सेवन से अंधापन तथा अधिक मात्रा के सेवन से मृत्यु हो सकती है।

एथिल एल्कोहल :
इसे अंगूर , गन्ने का रस , मोलेसेज (शीरा)से किण्वन विधि से प्राप्त किया जाता है।

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