Indravajra Chhand: इन्द्रवज्रा छंद किसे कहते हैं? परीक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण टॉपिक है. अक्सर इस विषय से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है. अतः परीक्षार्थियों को इन्द्रवज्रा छंद से जुड़े सभी सम्बंधित प्रश्नों को भलीभांति तैयार कर लेना चाहिए।
आज यहां हम आपको इन्द्रवज्रा छंद के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं, इसलिए यदि आप इन्द्रवज्रा छंद के बारे में नहीं जानते हैं, तो इस लेख की मदद से, आप आज इस विषय को बेहतर तरीके से जान पाएंगे।
इन्द्रवज्रा छंद – Indravajra Chhand
इन्द्रवज्रा छंद किसे कहते है?
इन्द्रवज्रा छन्द के प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं । इस का लक्षण इस प्रकार से है:
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः ।
इसका अर्थ है कि इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण और दो गुरु के क्रम से वर्ण रखे जाते हैं।
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उदारहण
परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।
माथ नवा जयकार, मधुर स्तोत्र गा जो करें।
भरें सदा भंडार, औघड़ दानी कर कृपा।।
कैलाश वासी त्रिपुरादि नाशी।
संसार शासी तव धाम काशी।
नन्दी सवारी विष कंठ धारी।
कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।१।।
ज्यों पूर्णमासी तव सौम्य हाँसी।
जो हैं विलासी उन से उदासी।
भार्या तुम्हारी गिरिजा दुलारी।
कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।२।।
जो भक्त सेवे फल पुष्प देवे।
वाँ की तु देवे भव-नाव खेवे।
दिव्यावतारी भव बाध टारी।
कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।३।।
धूनी जगावे जल को चढ़ावे।
जो भक्त ध्यावे उन को तु भावे।
आँखें अँगारी गल सर्प धारी।
कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।४।।
यूँही नहीं आप हमें सताओ
कान्हा कभी दर्शन तो कराओ
भूले हमें, क्यों जबसे गये हो
बोलो यहाँ और किसे ठगे हो
झूठा भरोसा हमको दिलाया
भूले हमें औ ब्रज को भुलाया
लीला तुम्हारी तुम सी छलिया
जानैं कहाँ है हम गूजरिया
इस आर्टिकल में अपने इन्द्रवज्रा छंद को पढ़ा। हमे उम्मीद है कि ऊपर दी गयी जानकारी आपको आवश्य पसंद आई होगी। इसी तरह की जानकारी अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करे ।