श्वसन की परिभाषा क्या है | प्रकार | उदाहरण | मनुष्य में श्वसन तंत्र

श्वसन : वे सभी क्रियाएँ जो ऑक्सीकरण द्वारा खाद्य पदार्थों से रासायनिक ऊर्जा मुक्त करने से सम्बन्धित होती है , श्वसन कहलाती है |

श्वसन दो प्रकार का होता है –

  • बाह्य श्वसन : वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा CO2 बाहर निकालने की क्रिया को बाह्य श्वसन कहते है |
  • आन्तरिक श्वसन : ऑक्सीजन के उपयोग तथा ATP व CO2 उत्पादन से सम्बन्धित प्रक्रियाएँ आंतरिक या कोशिकीय श्वसन कहलाता है |

प्राणियों में गैसों का आदान प्रदान हेतु निम्न संरचनाएं पायी जाती है –

  • शरीर की सामान्य सतह द्वारा : जलीय व अर्द्धजलीय वातावरण में रहने वाले जीवों में गैसों का आदान प्रदान सामान्य सतह द्वारा होता है , इन प्राणियों में श्वसन अंगो का अभाव होता है |

उदाहरण – अमीबा , स्पंज , मेंढक इत्यादि |

  • क्लोम (gills) के द्वारा : ये गैस विनिमय के विशिष्ट अंग होते है , क्लोम के द्वारा प्राणियों में जलीय श्वसन होता है , ऑक्सीजन क्लोम द्वारा ग्रहण की जाती है तथा co2 बाहर निकाली जाती है | मछलियों में क्लोम गिल दरारों में पाये जाते है |

उदाहरण – मछलियाँ , मोलस्का व कुछ आर्थोपोड़ा के सदस्य |

  • ट्रेकिया या श्वासनली द्वारा : कीटो व कुछ मछलियों में गैस विनिमय के लिए पतली , शाखित , उत्तकों तक फैली नलिकाएं पायी जाती है जिन्हें ट्रेकिया कहते है | ये ट्रेकिया तंत्र का निर्माण करती है , ये o2 व co2 को उत्तकों तक पहुंचाने व निकालने का कार्य करती है |

उदाहरण – किट

  1. फेफड़े (lungs) : सभी कशेरुकीयों में श्वसन हेतु फेफड़े पाये जाते है | फेफडो द्वारा o2 व co2 के आदान प्रदान में हीमोग्लोबिन , श्वसन वर्णक सहायक होता है |

मनुष्य में श्वसन तंत्र :

  • नासाद्वार : ये एक जोड़ी होते है , नासाद्वार में रोम व श्लेष्मिका झिल्ली पायी जाती है | नासाद्वार से वायु प्रवेश करती है |
  • नासागुहा : नासागुहा में वायु गर्म व नम हो जाती है तथा धूल के कम व अन्य सूक्ष्म कणों को श्लेष्मिका झिल्ली में तथा रोमों द्वारा रोक लिया जाता है अर्थात वायु छनती है |
  • नासाग्रसनी : नासागुहा आगे की ओर नासा ग्रसनी में खुलती है , नासा ग्रसनी में त्रिभुजाकार संरचना होती है जिसे कंठ कहते है | कन्ठ में स्तर रज्जू पाये जाते है जो स्तर उत्पन्न करते है|
  • श्वासनली : यह लगभग 12 cm लम्बी नली होती है जो आगे की ओर दो श्वसनियों में बंट जाती है | श्वासनली व श्वसनियों में सी (C) आकार की उपास्थियाँ पायी जाती है | जो सहारा प्रदान करती है , श्वासनली में श्लेष्मा एवं पक्ष्माभी कोशिकाएँ पायी जाती है |श्लेष्मा में जीवाणुओं व सूक्ष्म कणों को रोक लिया जाता है , श्वसनियाँ आगे श्वसनिकाओं में बंट जाती है|

  • फेफडे : मनुष्य की वक्ष गुहा में , ह्रदय के पास दो फेफड़े होते है , दायाँ फेफड़ा तीन व बायाँ फेफड़ा दो पालियों में विभक्त होता है | फेफडो के चारो ओर दो फुफ्फुस आवरण पाये जाते है , प्रत्येक फेफडे में एक श्वसनी प्रवेश करती है | जो उतरोत्तर विभाजित होकर श्वसनीकाएं बनाती है | श्वसनीकाएं उप-विभाजित होकर वायु कुपिका कोष बनाती है | दोनों फेफडो में लगभग 60 करोड़ वायुकुपिकाएं पायी जाती है | वायु-कूपिका श्वसन तंत्र की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है जिनका व्यास 0.2mm होता है | वायु कूपिका की भित्ति अत्यंत पतली होती है , वायु कुपिकाओं के चारो ओर रुधिर केशिकाओं का सघन जाल होता है वायुकूपिका व रुधिर केशिकाओ के मध्य गैसों का आदान प्रदान होता है |

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