पर्यावरण पर भाषण – Environment Speech in Hindi

हम विद्यार्थियों के लिए पर्यावरण पर बहुत से भाषणों की श्रृंखला उपलब्ध करा रहे हैं। सभी पर्यावरण पर भाषण सरल और साधारण शब्दों वाले वाक्यों का प्रयोग करके लिखे गए हैं। ये सभी भाषण विद्यार्थियों की जरुरत और आवश्यकता के अनुसार बहुत सी शब्द सीमाओं में लिखे गए हैं।

आप नीचे दिये गए भाषण में से कोई भी भाषण 3 मिनट, 5 मिनट आदि समय सीमा के अनुसार चुन सकते हो।

पर्यावरण पर छोटे तथा बड़े भाषण (Short and Long Speech on Environment in Hindi)

भाषण 1

आदरणीय महानुभाव, मेरे अध्यापक और मेरे प्यारे दोस्तों, आप सभी को सुबह की नमस्ते। मेरे भाषण का विषय पर्यावरण है। पर्यावरण हमारे आसपास का वो माहौल है जिसमें हम रहते हैं। यह जीवन का स्रोत है। हमारा सारा जीवन पर्यावरण पर निर्भर करता है।

यह हमारे जीवन को निर्देशित करता है और हमारे उचित विकास और वृद्धि को निर्धारित करता है। सामाजिक जीवन के अच्छे और बुरे गुण हमारे प्राकृतिक वातावरण की गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं।

मनुष्यों की भोजन, पानी, आवास और अन्य वस्तुओं की जरुरत हमारे चारों ओर के पर्यावरण पर निर्भर होती है। पर्यावरण और मनुष्यों, पेड़-पौधों और पशुओं के बीच एक संतुलित प्राकृतिक चक्र मौजूद है। मानव समाज प्राकृतिक वातावरण को गंदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसके बदले में यह भी ग्रह पर जीवन को नकारात्मक रुप से प्रभावित कर रहा है। इस आधुनिक दुनिया में सभी मानवीय कार्य सीधे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं।

सभी कार्य इस ग्रह में एक बड़ा बदलाव लाये हैं, जिसका परिणाम पर्यावरणीय समस्याएं हैं। आधुनिक समय में प्रौद्योगिकियों और उद्योगों की बढ़ती हुई मांग प्रकृति को प्रभावित करती है। नयी प्रौद्योगिकियों के बढ़ते हुये अविष्कारों ने लोगों की पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया को बदल दिया है, जिसने अधिक जनसंख्या वृद्धि को अनुमति प्रदान की है।

आधुनिक तकनीकों में असीम शक्ति है, जिसने पूरे पर्यावरण को बहुत असंतुलित तरीके से बदला है। पर्यावरण का अंधा-धुंध प्रयोग पारिस्थितिक संकट की जड़ है। प्रौद्योगिकी और मानव व्यवहार में इस तरह की निरंतर वृद्धि बहुत गंभीर है। ऐसी अद्भुत प्रौद्योगिकी 20 वीं सदी में आर्थिक विकास का कारण बन गयी है हालांकि, इसने नाटकीय ढंग से प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किया है।

पर्यावरण संबंधी समस्याओं में से कुछ निम्न हैं – दुनिया की आबादी में तेजी से विकास, प्राकृतिक संसाधनों का क्षय होना, जंगलों और झीलों का ह्रास, मिट्टी और प्रवाल भित्तियों का कटाव, भूमिगत पानी का घटना, पीने योग्य पानी में निरंतर कमी, पेड़-पौधों में कमी, अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और के मध्य-पूर्व में लवणन। कुछ अन्य मुद्दे, जैव विविधता, कुछ महत्वपूर्ण पशु प्रजातियों का तेजी से विलुप्त होना, मत्स्य पालन का पतन, वायु और जल प्रदूषण में वृद्धि, तापमान में वृद्धि, ओजोन परत का पतला होना, नदियों, समुद्रों और जमीन के अंदर के स्रोतों का गंदा (प्रदूषित) होना आदि हैं।

भले ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने प्रकृति के अनुकूलन की मौलिक शर्तों को बदल दिया हो, लेकिन हमें अभी भी पर्यावरण को धारण करने की जरुरत है। मानव समाज पर्यावरण में निहित है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सबसे पहले मनुष्य को पर्यावरण में, जिस पर कि वो पारस्परिक निर्भरता के साथ रह रहे हैं पशुओं, अन्य जानवरों की प्रजातियों के साथ रहने की जगह को साझा करना चाहिये। अपने पर्यावरण और पृथ्वी को बचाना और यहाँ स्वस्थ्य और सुखी जीवन की संभावनाओं को बनाना हमारी जिम्मेदारी है।

भाषण 2

मेरे आदरणीय अध्यापक और प्यारे साथियों को सुबह की नमस्ते। जैसे कि हम सभी यहाँ इस उत्सव को मनाने के लिए एकत्र हुये हैं, मैं इस अवसर पर आप सभी के सामने पर्यावरण पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। जीवन को सुखी और स्वस्थ्य तरीके से चलाने के लिए, हमें एक स्वस्थ्य और प्राकृतिक वातावरण की जरुरत होती है। निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या जंगलों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। मनुष्य अपनी सुरक्षा के साथ रहने के लिए, घरों के निर्माण के लिए, बड़े पैमाने पर जंगलों को काट रहे हैं हालांकि, वो जंगलो की कमी के कारण होने वाली समस्याओं के बारे में नहीं सोचते।

इसने पृथ्वी पर पूरी तरह से जीवन और पर्यावरण के बीच प्राकृतिक चक्र को बाधित किया है। अत्यधिक जनसंख्या के कारण, वातावरण में बहुत से रासायनिक तत्वों की वृद्धि हुई है जो अंततः अनियमित वर्षा और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनें हैं। हम ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभाव को जलवायु और मनुष्य और अन्य जीवित प्रजातियों पर सोच भी नहीं सकते।

शोध के अनुसार यह पाया गया है कि, अतीत में तिब्बत के चिरस्थायी बर्फ के पहाड़ जो पूरी तरह से बर्फ के मोटे आवरण से ढके रहते थे, हालांकि, पिछले कुछ दशकों से बर्फ की वो मोटी परत दिन प्रतिदिन बहुत पतली होती जा रही है। इस तरह की स्थिति बहुत ही खतरनाक और पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति का संकेतक है, जिसे संसार के सभी देशों के द्वारा गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

यह भी सत्य हैं कि, जलवायु में परिवर्तन की क्रियाएं बहुत धीरे-धीरे हो रही हैं हालांकि, ये निरंतर चलती प्रक्रिया बहुत खतरनाक है। पर्यावरण में निरंतर परिवर्तनों के कारण मनुष्य और अन्य जीव जन्तुओं की प्रजातियों की भौतिक संरचना में पीढी दर पीढी निरंतर परिवर्तन हो रहा है। मानव जनसंख्या में वृद्धि के कारण कृषि, खेती-बाड़ी और रहने के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ती है, जो उन्हें अधिक पेड़-पौधे और जंगलों को काटने के लिए मजबूर करता है इसलिए वनों का उन्मूलन भी अपने बुरे प्रभावों को रखता है।

बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण भी वातावरण पर जहरीले रासानिक रिसाव और खतरनाक अपशिष्टों को बड़े पानी के स्रोतों में बहाना जैसे; गंगा, यमुना, और अन्य नदियों के माध्यम से बहुत से अनगिनत खतरनाक प्रभावों को डालता है। यह बदलता (नकारात्मक) हुआ पर्यावरण न केवल कुछ देशों और सरकारों का मुद्दा है, ये पूरी मानव प्रजाति के लिए चिन्ता का विषय है क्योंकि हम सभी पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का कारण है इसलिए हम सभी को भी अपने इस प्राकृतिक पर्यावरण को, पृथ्वी पर स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए सुरक्षित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी।

पर्यावरण की सुरक्षा का मुद्दा सभी वर्तमान और भविष्य की पीढियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। आज पर्यावरण पर भाषण देने का मुख्य कारण आम जनता के बीच में वातावरण की स्वच्छता के स्तर में गिरावट के बारे में लोगों को जागरुक करने के साथ ही पृथ्वी पर स्वस्थ्य और प्राकृतिक वातावरण की आवश्यकता को प्रदर्शित करना है। इसलिए, यह मेरा सभी से आग्रह है कि, पर्यावरण की सुरक्षा में भागीदारी करें।

धन्यवाद।

भाषण 3

मेरे आदरणीय अध्यापक और मेरे प्यारे साथियों, सुबह की नमस्ते। हम सभी यहाँ इस अवसर को मनाने के लिए एकत्र हुये हैं, इस अवसर पर मैं पर्यावरण के मुद्दे पर अपने भाषण के माध्यम से पर्यावरण में हो रहे नकारात्मक प्रभावों के बारे में लोगों के बीच में जागरुकता लाना चाहता/चाहती हूँ। पर्यावरण वो प्राकृतिक आवरण होता है जो, हमें प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि हमारा स्वस्थ्य और प्राकृतिक वातवरण दिन प्रति दिन गिर रहा है और प्रदूषण एक दानव का रुप ले रहा है जो, प्रत्येक जीवित जीवों को प्रभावित कर रहा है।

जैसा कि भी हम जानते हैं कि, पर्यावरण दो प्रकार के होते हैं, प्राकृतिक पर्यावरण और निर्मित पर्यावरण। प्राकृतिक पर्यावरण वो होता है जो, हमारे चारों और प्राकृतिक रुप से अस्तित्व में रहता है और जिसके लिए मनुष्य जिम्मेदार होता है जैसे – शहरों आदि को, उसे निर्मित पर्यावरण कहते हैं। ऐसे बहुत से प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारक है जो, पूरे प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषित करते हैं।

कुछ प्राकृतिक कारक जैसे चक्रवात, बाढ़ आदि वातावरण में गिरावट के कारण है। हालांकि, मानव निर्मित कारक भी जैसे मनुष्य का बाधारहित और निरंतर प्रदूषित करने वाले कार्यों, का प्रयोग भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में बहुत महत्वपूर्ण है। पर्यावरण को प्रदूषित करने के पीछे मनुष्य की आत्मकेन्द्रित गतिविधियाँ बहुत अधिक जिम्मेदार है।

अन्य पर्यावरणीय खतरे जैसे – जंगलों की अंधा-धुन्ध कटाई, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण आदि पर्यावरण ह्रास के कारण है। पृथ्वी के सतही तापमान में निरंतर वृद्धि बहुत से मानव निर्मित गतिविधियों और प्राकृतिक कारकों ने भी पर्यावरण को बहुत बड़े स्तर पर मनुष्य और अन्य सजीव जीवों के स्वस्थ्य और सामान्य जीवन को बहुत प्रभावित किया है।

पिछले कुछ दशकों से हमारे प्राकृतिक पर्यावरण में बहुत बड़े बदलाव आये हैं जिन्होंने बहुत बड़े एक दानव का रुप ले लिया है और जो प्रत्येक मनुष्य और सभी सजीव जीवों को हर एक क्षण प्रभावित करता है। प्रकृति ने सब कुछ इस तरह से निर्मित किया है कि वो प्रकृति के चक्र के साथ संतुलित तरीके से चले हालांकि, बहुत से कारक पर्यावरण ह्रास का कारण बनते हैं। जनसंख्या में वृद्धि और आर्थिक सम्पनता को, अन्य द्वितीयक कारकों को जन्म देने वाला मुख्य कारक माना जाता है।

हमें पारिस्थितिक चक्र की महत्ता को समझना होगा और पर्यावरण पर इसके बुरे प्रभावों को रोकने के लिए और स्वस्थ्य वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए इसे प्राकृतिक रुप से चलाने का सबसे अच्छा प्रयास करना होगा। हमें हमारे चारो ओर की सामान्य जनता को साफ-सफाई करने और वातावरण को हरा-भरा बनाने के लिए इस कहावत को सही साबित करने कि “हमारे पास समाज नहीं होगा यदि हम वातावरण को नष्ट करेंगे” लोगों को प्रोत्साहित करना होगा।

धन्यवाद।


भाषण 4

सबसे पहले, यहाँ उपस्थिति महानुभावों, आदरणीय अध्यापकों और मेरे सहपाठियों को मेरी सुबह की नमस्ते। जैसा कि हम सभी यहाँ इस महान उत्सव को मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं, मैं पर्यावरण के बारे में जन-जागरण में पर्यावरण में निरंतर होते ह्रास के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए भाषण देना चाहता/चाहती हूँ।

हम सभी मिलकर कुछ प्रभावशाली कदमों को उठाकर अपने पर्यावरण को सुरक्षित करने में सफल हो सकते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, हम पृथ्वी नामक ग्रह पर रहते हैं जो अपने चारों ओर बहुत सी विविधता को धारण किये हुये है और इसी विविध वातावरण को पर्यावरण कहा जाता है, जिसमें कि हम सभी स्वस्थ्य खाते हैं, ताजी सांस लेते हैं, और सुरक्षित रहते हैं।

यदि किसी प्राकृतिक और मानव निर्मित क्रिया से पर्यावरण को हानि पहुँचे तो हमारे जीवन का क्या होगा, हम मानव जीवन और अन्य सजीव जीवों के अस्तित्व के खत्म होने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। पारिस्थितिक चक्र और प्राकृतिक चक्र बाधित हो गया है, जिसे वापस पहले जैसी स्थिति में लाना बहुत कठिन है। बल्कि, सामान्य तौर पर यह कहा जाता है कि, “रोकथाम इलाज से बेहतर है”, इसलिए हमें अपने प्रयासों को करते हुए थकना नहीं चाहिये और अपने पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए अपने सबसे अच्छे प्रयासों को जारी रखना चाहिये।

इस ग्रह का भौतिक पर्यावरण हमारे हित के लिए आवश्यक सभी स्थितियों को प्रदान करता है जो, मानव के अस्तित्व और वृद्धि के लिए जीवन के विभिन्न रुपों में समर्थन देने के लिए यहाँ अस्तित्व में है। प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण प्रकृति के द्वारा प्रदान किया जाता है हालांकि, सभी सजीव जीवों के विभिन्न रुप एक अलग वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसे जैविक पर्यावरण कहा जाता है। दोनों वातावरण एक साथ बहुत निकटता से जुड़े हुये हैं और जीवन जीने के लिए एक अद्भुत प्राकृतिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं।

यदि जैविक पर्यावरण किसी भी तरह से बाधित होता है, भौतिक पर्यावरण भी स्वतः ही बाधित हो जाता है और दोनों मिलकर मानव जीवन को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं। एक अन्य पर्यावरण जिसका निर्माण मानव ने किया है, जो पूरी तरह से मानव पर निर्भर करता है उसे सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण जो भी है, यह पृथ्वी पर वर्तमान और भविष्य में हमेशा निरंतर चलने वाले जीवन के लिए स्वस्थ्य और सुरक्षित होना चाहिये।

हमें हमारी गलती को मानते हुये साफ, सुरक्षित, और स्वस्थ्य जीवन के लिए पर्यावरण के बारे में सोचना चाहिये। बहुत सी मानव गतिविधियाँ जैसे वनों का उन्मूलन, औद्योगिकीकरण, प्रौद्योगिकीकरण सुधार और भी बहुत से कारक हमारे पर्यावरण को खतरे की ओर ले जा रहे हैं और सभी संगठनों की वृद्धि, विकास के द्वारा जीवन को खतरे पर रख रही हैं।

बहुत प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण जैसे – जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर रहे हैं और मनुष्यों और पशुओं के लिए बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण पारिस्थितिक तंत्र को और प्राकृतिक पारिस्थितिक चक्र के खूबसूरत तंत्र को नष्ट कर रहा है। इसलिए, आज-कल, पर्यावरण प्रषदूण बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है, जिसे कुछ प्रभावशाली कदमों को उठाकर हम सभी मिलकर समस्या के जड़ से खत्म होने तक प्रयास करते रहेंगे।

धन्यवाद।

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