परितंत्र संरचना एवं क्रियाशीलता | परिभाषा

परिभाषा परितंत्र Ecology and Functionality in hindi  :  वातावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों की अंतर क्रियाओं के फलस्वरुप बने तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र या परितंत्र कहते हैं |

परितंत्र संरचना एवं क्रियाशीलता :

[A] उत्पादकता ( प्रोडक्टिविटी) :  प्रति इकाई समय में जीवों द्वारा जैव भार ( बायोमास)  के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं , उत्पादकता को भार g/m2/yr या उर्जा Kcal/m2/yr के रूप में व्यक्त किया जाता है |

उत्पादकता दो प्रकार की होती है

[1]  प्राथमिक उत्पादकता ( प्राइमरी प्रोडक्टिविटी) :  उत्पादकों द्वारा सूर्य की विकिरण ऊर्जा को कार्बनिक पदार्थ के रूप में संग्रहित करने की दर को प्राथमिक उत्पादक कहते हैं यह दो प्रकार की होती है

(i) सकल प्राथमिक उत्पादकता ( ग्रॉस प्राइमरी प्रोडक्टिविटी ) : प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बनिक पदार्थों के कुल उत्पादन की दर को सकल प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं |

(ii)  शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता ( नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी) :

उत्पादकों की श्वसन क्रिया के बाद बचे हुए जैव भार को शुद्ध उत्पादक प्राथमिक कहते हैं |

NPP = GPP – respiration rate

शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता =   सकल उत्पादकता – re spiration rate

[2]  द्वितीयक उत्पादकता ( सेकेंडरी प्रोडक्टिविटी) :

उत्पादकों द्वारा संग्रहित ऊर्जा का उपयोग उपभोक्ता करते हैं उपभोकता इस उर्जा का कुछ भाग श्वसन व उत्सर्जन में प्रयुक्त कर लेते हैं उपभोक्ता में शेष बची हुई संग्रहित ऊर्जा द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है|

संपूर्ण जीव मंडल की वार्षिक सकल उत्पादकता भार कार्बनिक तत्व ( शुष्क भार)  के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आका गया है ,  समुद्र की उत्पादकता 55 बिलियन टन है |

[B] अपघटन ( डी कंपोजीशन) :

वह प्रक्रिया जिसमें  अपघटक द्वारा मृत पादपों वह जंतुओं के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक तत्व , CO2 & जल में बदल दिया जाता है अपघटन कहलाती है |

पादपों के मृत अवशेष ( पत्तियां ,  शाखाएं आदि)  वह जंतुओं के मृत अवशेष अपरद  कहलाते हैं

अपघटक निम्न चरण में होता है

  1. विखंडन : इस प्रक्रिया में अपरद को कुछ अपरद  हारी चीन जैसे केंचुआ द्वारा छोटे-छोटे कणों में खंडित कर दिया जाता है |
  2. अपचय (catabolism) :
  • अपरद में काइटिन व  लिग्निन की अधिक मात्रा अपघटन की दर को कम करती है
  • अपरद मैं नाइट्रोजन तथा जल विलेय तत्व जैसे शर्करा की अधिकता अपघटन की दर बढ़ाती है
  • 25 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर अपघटन 23 व निम्न ताप अर्थार्थ 10 डिग्री से कम पर अपघटन धीमा हो जाता है |

[C] ऊर्जा प्रवाह ( एनर्जी फ्लो) :

पृथ्वी पर पहुंचने वाली कुल प्रकाश ऊर्जा का केवल 2 से 10% भाग ही पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में उपयोग में होता है कोई भी जीव प्राप्त की गई ऊर्जा का केवल 10% उपयोग कर पाता है और शेष 90% ऊर्जा स्वसन आदि क्रियाओं में नष्ट हो जाती है अतः एक पोषण स्तर में केवल 10% ऊर्जा ही संग्रहित होती है इसे  दशांक्ष  का नियम कहते हैं यह नियम लिंडेमांन ने दिया था|

Remark:

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