कृत्रिम अंकुरण क्या है | परिभाषा | प्रकार दोहरा निषेचन (द्वि-निषेचन)

दोहरा निषेचन (द्वि-निषेचन) (Double fertilization) कृत्रिम संकरण:-दो जनकों के दो या अधिक उत्तम लक्षणों को एक ही संतति में प्राप्त करने हेतु उनके मध्य कोश कराने की क्रिया कृत्रिम संकरण कहते है।

कृत्रिम -संकरण की तकनियाँ:-

1. दो जनकों के दो या अधिक ऊतक लक्षणों को एक ही संतति में प्राप्त करने हेतु उनके मध्य कोश कराने की क्रिया कृत्रिम-शँकरण कहते है।

2. कृत्रिम संकरण की तकनियाँ:-

1.  विपुंसन (emasculation):- परागकोश के स्फूटन से पहले पुकेसर को हटाने की क्रिया विपुसन कहलाती है पुकेसरों को चिमटी द्वारा अथवा गर्म पानी या एल्कोहाॅल में डूबोकर हटा देते है।

विपूंसन के महत्व:-

1. द्विलिंगी पुष्पों में स्व-पराण को रोकने हेतु

2. थेलीकरण या ओरावतावरण:-

पुष्प के कलिका अवस्था में उनके बत्तीकेसर को एक पतली कागज की थैली (बटर पेपर) के द्वारा ढकने की क्रिया थैलीकरण कहलाती है। वतिक्राग के परिपक्व होने पर थैली को हटाकर वाँछित परागकण डालने के बाद पुनः थैली द्वारा ढक देते है।

महत्व:- अवंाछित परागकणों के संदूषण से बचाने के लिए थैलीकरण की क्रिया की जाती है।

दोहरा निषेचन (द्वि-निषेचन) (Double fertilization):-

परागनलिका से होती हुई अण्डाशय तक पहुंचती हे तथा बीजाण्डद्वारी सिरे से बीजाण्ड में प्रवेश करती है परागनलिका के दोनो नर युग्मक तक सासकोशिका में युक्त कर दिये जाते है।

1. युग्मक संलयन (दि-संलयन):-

एक नर युग्मक + अण्ड कोशिका =  युग्मनज   भ्रूण

2. त्रिसंलयन:-

दूसरा नर युग्मक +  केन्द्रीय कोशिका के  =  प्राथमिक   भूणकोष

ध्रुवीय केन्द्रक शूणकोण केन्द्रक

दोहरा निवेचन =   युग्मक संलयन  +    निसंलयन

निषेचन पश्च संरचनाऐ व घटनाऐं:- निषेचन के पश्चात् युग्मनज से भ्रूण का तथा प्राथमिक भूण पोष केन्द्रक से भ्रूणपोष का विकास होता है तथा अण्डाशय फल में एवं बीजाण्ड बीज में बदल जाता है। इन सब क्रियाओं को निषेचन पश्च घटनाऐं कहते है।

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