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भू-आकृति विज्ञान : अर्थ, प्रकृति व क्षेत्र:
20 वीं शताब्दी तक भू-आकृति विज्ञान को भौतिक भूगोल में ही मिश्रित माना जाता था। वारसेस्टर ने कहा है कि ‘भू-आकृति विज्ञान स्थलरूपाों (पृथ्वी पर पायी जाने वाली भू-आकृतियों) का विज्ञान है। पंरतु अपनी परिभाषा को विस्तृत करते हुए कहा कि भू-आकृति विज्ञान पृथ्वी के धरातलीय स्वरूपाों का व्याख्यात्मक वर्णन हैं।
भू-आकृति विज्ञान पृथ्वी पर ही आकृतियों का वर्णन और व्याख्या प्रस्तुत करता है। भू वैज्ञानिकों ने इसे भूगोल से जोड़ा है क्योंकि भूगोल की दो प्रमुख शाखा-भौतिक और मानव-में से भू-आकृति विज्ञान का सम्बन्ध पहली शाखा, यानी भौतिक भूगोल से है।
यह वही भौतिक भूगोल है, जिसके अध्ययन से शुरुआत ही पृथ्वी, पृथ्वी पर के वातावरणों और सौर्यमण्डलीय-रूपारेखा से होती है, इसी प्रकार अर्थरहोम्स – भौतिक भूगोल को ‘भौतिक वातावरण का अध्ययन‘ मानते हैं। इनके अनुसार, ‘भौतिक वातावरण का अध्ययन‘ ही भौतिक भूगोल है। ग्लोब के धरातलीय पटल, सागर और महासागरों, तथा पवन के अध्ययन को समेटता है।
भू-आकृति विज्ञान की स्थिति ढूंढे, तो पायेंगे कि भू-आकृति विज्ञान ग्लोब के धरातलीय पटल से सम्बन्धित है। अर्थात् इस विज्ञान के अन्तर्गत ग्लोब के धरातलीय पटल का अध्ययन किया जाता है।
भू आकृति विज्ञान की परिभाषाएँ:
भू-आकृति विज्ञान का अंग्रेजी रूपा ज्योमार्कोलॉजी (Geomorphology) ग्रीक भाषा के निम्न तीन शब्दों से बना है-
(1) Geo , जिसका अर्थ है, पृथ्वी (earth)
(2) Marphi , जिसका अर्थ है, आकार (forms)
(3) logos , जिसका अर्थ है, वर्णन (discription)से बना है।
इस प्रकार इस शब्द विन्यास के अर्थों को अगर जोड़ दें, तो भू-आकृति विज्ञान का अर्थ होगा श्पृथ्वी के आकार का वर्णन’A लेकिन भू-आकृति विज्ञान इससे भी कुछ बढ़कर है।
(1) स्ट्राहलर की परिभाषा के अनुसार – भू-आकृति विज्ञान के अन्तर्गत दो प्रमुख बातों का समावेश करती है।
(अ) भू-आकृतियों की उत्पत्ति, और (ब) भू-आकृतियों का क्रमबद्ध विकास
इसका अर्थ हुआ कि पृथ्वी पर जितनी भी भू-आकृतियाँ हैं उनकी उत्पत्ति तथा उनके क्रमबद्ध विकास की पूरी जानकारी भू-आकृति विज्ञान के जरिये मिलनी चाहिये।
(2) स्पार्कस के अनुसार मोटे तौर पर अपक्षरण की प्रक्रिया, भू-आकृतियों के अध्ययन पर बल देती है। यह परिभाषा निःसंदेह संकुचित मानी जाती अगर आगे उन्होंने संरचनात्मक शक्तियों ‘द्वारा उत्पन्न भू आकृतियों को इसमें शामिल न कर लिया होता।
(3) स्टाइलर के अनुसार – ‘भू-आकृति विज्ञान सभी प्रकार की भू-आकृतियों की उत्पत्ति तथा क्रमबद्ध विकास की व्याख्या करता है और यह भौतिक भूगोल का एक प्रमुख हिस्सा है।
(4) स्पार्कस के अनुसार – (भू-आकृति विज्ञान) अनिवार्यतः भू-आकृतियों का अध्ययन है. खासकर अपक्षरण की प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न भू-आकृतियों का।।
(5) मैचाशेक के अनुसार – ‘भू-आकृति विज्ञान उन भौतिक प्रक्रियाओं का विज्ञान को की कठोर सतह तथा अपने द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों को विभिन्न रूपा देते हैं।
ज्योमार्कोलॉजी और फिजियोग्राफी:
ज्योमाफोलॉजी, यानी भू-आकृति विज्ञान, भू-आकृतियों के अध्ययन से सम्बन्धित है और फिजियोगै्रफी अधिकांशतः तीनों मण्डलों (स्थल, जल और वायु) को अपने में समेटता है। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘साइंस ग्लासरी‘ भी ज्योमार्कोलॉजी और फिजियोग्रैफी के लिए ‘भू-आकृति विज्ञान‘ शब्द का प्रयोग करता है. लेकिन कहीं-कहीं ऐसा लगता है कि भू-आकृति विज्ञान (ळमवउवतचीवसवहल) और फिजियोग्रैफी में अना है।
असल में फिजियोग्रैफी की फिजियो (चीलेपव) ही जियो (ळमव) से अलग लगता है। क्योंकि फिजियो का अर्थ है भौतिक और जियो का अर्थ है ‘पृथ्वी‘ और ‘भौतिक‘ और पृथ्वी, या ‘भू‘ में अन्तर स्पष्ट करने की जरूरत, हम समझते हैं अब नहीं है। अब हम यहाँ भू आकृति विज्ञान का अन्य विज्ञानों से क्या संबंध है, इसका अध्ययन करेंगे।
(1) भू-आकृति विज्ञान और वनस्पति विज्ञान – भू-आकृतियों के अध्ययन में वनस्पतियों की जानकारी जरूरी है, यद्यपि सामान्यतः वनस्पतियों का भू-आकृतिकयों से सम्बन्ध समझ में नहीं आता, फिर भी हम इससे इनकार नहीं कर सकते कि पूर्व-कैम्ब्रियत युग में, लगभग 10 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर वनस्पतियाँ थीं, और तब यह मानने में भी कठिनाई नहीं होनी चाहिये कि इनका प्रभाव पृथ्वी के क्रमबध्द विकास पर पड़ा होगा। इसका अर्थ है कि वनस्पति विज्ञान से जुड़कर ही हम भू-आकृति विज्ञान के समग्र रूपा का अध्ययन क्षेत्र बना सकते हैं।
(2) भू-आकृति विज्ञान और भूगर्भ शास्त्र – भू-आकृति विज्ञान निःसंदेह पृथ्वी पर की आकृतियों का अध्ययन करता है, लेकिन ये आकृतियाँ कैसे बनी. एक खास प्रकार की आकृतियों में कौन-कौन सा चट्टानें मिलती हैं, चटानें कैसी बनती हैं, आदि अनेक प्रश्नों का उत्तर सीधा भू-गर्भशास्त्र के अध्ययन से सम्बन्धित है।
(3) भू-आकृति विज्ञान और जीव-विज्ञान – वनस्पति विज्ञान की तरह जीव विज्ञान में भू-आकृति विज्ञान के समग्र अध्ययन के लिए सहायक है। चट्टानों में पाये जाने वाले जीव-अवशेष इस बात का पुष्टि करते हैं।
(4) भू-आकृति विज्ञान और जल विज्ञान – जल विज्ञान मूलतः इंजीनियरी विषय है, लेकिन इसके अन्तर्गत उल्लिखित समस्त तत्व जैसे – बाढ़, बर्फ का इकट्ठा होना, भूमिगत जल आदि का अध्ययन पृथ्वी पर की समस्त आकृतियों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी में सहायक देता है।
(5) भू-आकृति विज्ञान और मिट्टी विज्ञान – संसार में पायी जाने वाली अधिकतर मिट्टिया अपक्षरण की क्रिया से बनी है। किस प्रकार की मिट्टी में अपरदन और अपक्षरण हो सकता है, कितना हो सकता है, आदि अनेक बातों की जानकारी के लिए मिट्टी-विज्ञान सहायक है और यह ज्ञान विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियों के निर्माण-प्रक्रिया के लिए बहुत आवश्यक है। इस प्रकार भू-आकृति विज्ञान और मिट्टीवज्ञान के आपसी सम्बन्ध स्पष्ट होते हैं।
इस प्रकार भू-आकृति विज्ञान का विविध विज्ञानों से संबंध पाया जाता है।
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