Dhatu Roop in Sanskrit: हेलो स्टूडेंट्स, आज हम इस आर्टिकल में धातु रूप की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण ( Dhatu Roop hindi me) के बारे में पढ़ेंगे | यह हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसे हर एक विद्यार्थी को जानना जरूरी है |
Table of Contents
Dhatu Roop in Sanskrit
संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं के मूल रूप को धातु (Verb) कहते हैं। धातु ही संस्कृत शब्दों के निर्माण का मूल तत्त्व है। धातुओं के साथ उपसर्ग, प्रत्यय मिलकर तथा सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि) बनते हैं। ‘धातु’ शब्द स्वयं ‘धा’ में ‘तिन्’ प्रत्यय जोड़ने से बना है। भू, स्था, ज्ञा, युज्, गम्, मन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं।
धातु रूप में पुरुष
संस्कृत भाषा में तीन पुरूष होते हैं
- प्रथम पुरुष
- मध्यम पुरुष
- उत्तम पुरुष
1. प्रथम पुरूष – प्रथम पुरुष को अन्य पुरुष भी कहा जाता है। अस्मद् और युष्मद् शब्द के कर्ताओं को छोड़कर शेष जितने भी कर्ता हैं, वे सभी प्रथम पुरूष के अंतर्गत आते है।
2. मध्यम पुरुष – इसमें केवल युष्मद् शब्द के कर्ता का प्रयोग होता है।
3. उत्तम पुरूष – इसमें भी केवल अस्मद् शब्द के कर्ता का प्रयोग होता है।
धातु रूप में वचन
संस्कृत भाषा में तीन वचन होते हैं।
- एकवचन (वह वचन जिसमें एक होने का बोध हो रहा हो)
- द्विवचन (वह वचन जिसमें दो के होने का बोध हो रहा हो)
- बहुवचन (वह वचन जिसमें दो से अधिक होने का बोध हो रहा हो)
. एकवचन (Singular Number) – जिससे एक का बोध होता है। उसे एकवचन कहते हैं। जैसे- बालक: पठति।
2. द्विवचन (Dual Number) – जिनसे दो का बोध होता है। उसे द्विवचन कहते है। जैसे- बालकौ पठत:।
3. बहुवचन (Plural Number) – जिससे दो से अधिक का बोध होता है, उसे बहुवचन कहते है। जैसे- बालका: पठन्ति।
संस्कृत लकार – Sanskrit lakar
संस्कृत में धातुओं के दस लकार हैं, जो निम्न है:
- लट् लकार (Present Tense)
- लोट् लकार (Imperative Mood)
- लङ्ग् लकार (Past Tense)
- विधिलिङ्ग् लकार (Potential Mood)
- लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic)
- लृट् लकार (Second Future Tense)
- लृङ्ग् लकार (Conditional Mood)
- आशीर्लिन्ग लकार (Benedictive Mood)
- लिट् लकार (Past Perfect Tense)
- लुङ्ग् लकार (Perfect Tense)
1 . लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | ति | तस् (तः) | अन्ति |
मध्यम पुरुष | सि | थस् (थः) | थ |
उत्तम पुरुष | मि | वस् (वः) | मस् (मः) |
2. लृट् लकार (भविष्यत काल, Future Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | ष्यति | ष्यतम् (ष्यतः) | ष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | ष्यसि | ष्यथस् (ष्यथः) | ष्यथ |
उत्तम पुरुष | ष्यामि | ष्यावः | ष्यामः |
3. लङ् लकार (भूतकाल, Past Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | त् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
4. लोट् लकार (आज्ञा के अर्थ में, Imperative Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यम पुरुष | हि | तम् | त |
उत्तम पुरुष | आनि | आव | आम |
5. विधिलिङ् लकार (चाहिए के अर्थ में, Potential Mood)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | यात् | याताम् | युस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यातम् | यात् |
उत्तम पुरुष | याम् | याव | याम |
6. लुङ् लकार (सामान्य भूतकाल, Perfect Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | द् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
7. लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल, Past Perfect Tense)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
8. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्य काल, First Future Tense of Periphrastic)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस् |
मध्यम पुरुष | तासि | तास्थस् | तास्थ |
उत्तम पुरुष | तास्मि | तास्वस् | तास्मस् |
9. आशिर्लिङ् लकार (आशीर्वाद हेतु, Benedictive Mood)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | यात् | यास्ताम् | यासुस |
मध्यम पुरुष | यास् | यास्तम् | यास्त |
उत्तम पुरुष | यासम् | यास्व | यास्म |
10. लृङ् लकार (हेतुहेतुमद् भविष्य काल, Conditional Mood)पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष | स्यत् | स्यताम् | स्यन् |
मध्यम पुरुष | स्यस् | स्यतम् | स्यत् |
उत्तम पुरुष | स्यम | स्याव | स्याम |
धातुओं के भेद
संस्कृत भाषा में धातुओं को तीन भागों में बाटा गया है।
1. परस्मैपद – ऐसा वाक्य जो कर्तृवाच्य हो, वहाँ परस्मैपद धातु का प्रयोग होता है। जिन क्रियाओं का फल कर्ता को छोड़कर अन्य (कर्म) को मिलता है, उन्हे परस्मैपद धातु कहा जाता है।
2. आत्मनेपद – जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता को मिलता, उसे आत्मनेपद कहते हैं। कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में सभी धातुएँ आत्मनेपदी होते हैं।
3. उभयपद – जिन क्रियाओं के रूप परस्मैपद और आत्मनेपद दोनों प्रकार से चलते हैं, उन्हे उभयपद कहा जाता है।
इन्हे भी पढ़े:
- अलंकार की परिभाषा, प्रकार, उदाहरण
- पर्यायवाची शब्द हिंदी में | उदाहरण
- विलोम शब्द किसे कहते हैं?
- एकार्थक शब्द किसे कहते हैं
- अनेकार्थीशब्द किसे कहते हैं
- विलोम शब्द किसे कहते हैं?
- संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण