साइटोपंजर (साइटोस्केलेटन) : कोशिकाद्रव्य में फैली हुई प्रोटीन युक्त जालिकावत संरचनाएं साइटोपंजर कहलाती है।
कार्य : यह कोशिका को यांत्रिक सहायता कोशिकाद्रव्य की गति तथा कोशिका के आकार को बनाये रखने में सहायता होती हैं।
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पक्ष्माभ व कशाभिका (cilia and flagella)
उपस्थिति : पादपों में शैवाल , कवक , ब्रायोफाइटा व कुछ जिम्नोस्पर्म पादपो के युग्मको व एक कोशिकीय जन्तुओं में एक या अधिक तन्तुमय संरचनाएँ पायी जाती है जिन्हें पक्ष्माय या कशाभिका कहते है।
संरचना : पक्ष्माय या कशाभिका जीवद्रव्य झिल्ली से ढके रहते है , इनके कोर को अक्ष सूत्र कहते है , जो कई सूक्ष्म नलिकाओं का बना होता है। अक्ष अक्ष सूत्र के मध्य में एक जोड़ी सूक्ष्म नलिकाएं तथा परिधि पर 9 द्विक सूक्ष्म नलिकाएँ व्यवस्थित रहती है , इस व्यवस्था को 9+2 प्रणाली कहते है , केन्द्रीय सूक्ष्म नलिकाएं केन्द्रीय आवरण से ढकी रहती है तथा आपस में केन्द्रीय नलिका सेतु से जुड़े रहते है।
परिधीय द्विक सूक्ष्म नलिकाएं अन्तराद्विक सेतु आपस में जुडी रहती है।
कार्य : पक्ष्माय या कशाभिका का मुख्य कार्य , गति करना है।
तारककाय व तारक केन्द्र (centrosome , centriole)
खोज : टी. बावेरी ने 1888 में इसकी खोज की तथा इसे सेन्ट्रोसोम नाम दिया।
उपस्थिति : तारककाय मुख्यतः जंतु कोशिकाओं में पाया जाता है।
संरचना : तारककाय दो बेलनाकार संरचनाओं से मिलकर बना होता है , तारककाय में दोनों तारक केन्द्र एक दूसरे के लम्बवत स्थित होते है , इसकी आंतरिक संरचना में तीन तीन के 9 समूहों में सूक्ष्मनलिकाएं परिधि पर तिरछी लगी रहती है , केन्द्र में 25 A’ व्यास की छड होती है इसका आंतरिक भाग प्रोटीन का बना होता है।
कार्य : 1. कोशिका विभाजन के समय तर्कुतन्तुओं का निर्माण करता है।
2. शुक्र जनन के दौरान शुक्राणु की पूंछ का निर्माण करता है।
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