संघ – एस्केलमिन्थीज :-
सामान्य लक्षण
1. इस संघ की स्थापना तोपन ने की थी।
2. इस संघ की 12000 जातियाँ पायी जाती है।
3. इन्हें सामान्यत: गोलकृमि कहते है।
4. ये जलीय , स्थलीय स्वतंत्र या परजीवी होते है।
5. ये द्विपाशर्व सममित , त्रिकोरिक , कुटगुहिया तथा अंग तंत्र स्तर का शारीरिक संगठन रखते है।
6. शरीर पर क्यूटिकल का आवरण पाया जाता है।
7. आहारनाल पूर्ण तथा उत्सर्जन , उत्सर्जन नालों द्वारा होता है।
8. ये एकलिंगी होते है तथा इनमें आन्तरिक निषेचन होता है।
9. इनमे नर छोटा तथा मादा बड़ी होती है।
10. परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
उदाहरण – एस्केरिस , पुचेरिया , एनसाइकलो स्टोमेटा लौआ – लौआ आदि।
Table of Contents
संघ – ऐनेलिडा (annelida )
सामान्य लक्षण –
1. इस संघ की स्थापना लैमार्क ने 1801 में की।
2. इस संघ की लगभग 9000 जातियाँ पायी जाती है।
3. ये प्राणी जलीय , स्थलीय , स्वतंत्र या परजीवी होते है।
4. इनमे द्विपाशर्व सममिति , त्रिकोरिक , वास्तविक देहगुहा तथा अंग तंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
5. इनका शरीर लम्बा , पतला व खण्डो में विभक्त होता है।
6. इनमें वास्तविक खण्डीभवन पाया जाता है।
7. गमन व तैरने के लिए पाश्र्वपाद (पैरापोडिया) पाए जाते है।
8. इनमें आहारनाल पूर्ण तथा परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है।
9. परासरण व उत्सर्जन तृवक्क (नेफ्रीडिया) द्वारा होता है।
10. तंत्रिका तंत्र गुच्छिकाओं (गैग्लिया) के रूप में होता है।
11. ये एकलिंगी या द्विलिंगी होते है।
12. इनमें लैंगिक जनन व आन्तरिक निषेचन होता है।
13. परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
14. लार्वा को ट्रोकोफोर कहते है।
उदारहण – नेरिस , केंचुआ , जोंक , बोनिलिया आदि।
संघ – आर्थोपोडा (arthropoda)

सामान्य लक्षण :
1. यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है।
2. इसकी लगभग 9 लाख जातियाँ ज्ञात है।
3. इस संघ की स्थापना 1845 में बोनसीबॉल्ड ने की है।
4. इस संघ के सदस्य सभी प्रकार के आवासों में पाये जाते है।
5. इनका शरीर सिर , वक्ष तथा उदर में विभक्त होता है।
6. शरीर पर काइटिन का आवरण पाया जाता है।
7. इनमें द्विपाशर्व सममिति , वास्तविक देह्गुहा , त्रिकोरिक तथा अंग तंत्र स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है।
8. इनमे गमन हेतु संघियुक्त पाद पाये जाते है। कुछ सदस्यों में एक जोड़ी पंख भी पाये जाते है।
9. श्वसन पुस्त क्लोम , पुस्त फुफ्फुस व श्वसनिकाओं द्वारा होता है।
10. परिसंचरण तंत्र खुला तथा रक्त रंग विहीन होता है।
11. उत्सर्जन मैलपिघी नलिकाओं द्वारा होता है।
12. संवेदी अंग के रूप में शृंगिकाएँ , सरल या संयुक्त नेत्र व संतुलन पुट्टी होती है।
13. तंत्रिका तंत्र गुच्छिकाओं के रूप में होता है।
14. ये एकलिंगी , अण्डज तथा आंतरिक निषेचन वाले प्राणी है।
15. परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
उदाहरण – ऐपिस (मधुमक्खी) , लेपिफर (लाखकीट) , बाम्बीकस (रेशम कीट )
आर्थिक महत्व :
रोगवाहक किट – एनोफिलिस , एडीज , क्यूलैक्स , दीमक। टिड्ढी
अन्य – लीमुलस (किंग क्रेब) , बिच्छू , मकड़ी , तितली , झींगा , केकड़ा , झींगुर , सभी कीट।
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